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डेली न्यूज़

  • 10 Jun, 2021
  • 35 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सुपरसोनिक वाणिज्यिक विमान

प्रिलिम्स के लिये

सुपरसोनिक विमान, ओवरचर विमान, नेट-ज़ीरो कार्बन एमिशन

मेन्स के लिये

वाणिज्यिक क्षेत्र में सुपरसोनिक विमान की आवश्यकता और इसकी चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूएस एयरलाइन युनाइटेड ने वर्ष 2029 में 15 नए सुपरसोनिक एयरलाइनर खरीदने और "विमानन के लिये सुपरसोनिक गति" योजना की घोषणा की है।

  • यह एयरलाइन बूम सुपरसोनिक (Boom Supersonic- एक डेनवर-आधारित स्टार्ट-अप) से ओवरचर विमान (Overture Aircraft) खरीदने के लिये सहमत हो गई है। ये विमान ध्वनि की गति से 1.7 मैक अधिक गति से उड़ान भरने में सक्षम हैं।
  • नया सुपरसोनिक "ओवरचर" विमान विश्व का सबसे तेज़ वाणिज्यिक एयरलाइनर बन जाएगा, जो आज के विमानों के यात्रा समय को लगभग आधा कर देगा।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • कॉनकॉर्ड (Concorde- ब्रिटिश-फ्राँसीसी टर्बोजेट-संचालित वाणिज्यिक एयरलाइनर) यात्रियों को सुपरसोनिक गति से ले जाने वाला पहला विमान था। सुपरसोनिक विमान (Supersonic Plane) वर्ष 1976 से वर्ष 2003 तक यात्री सेवा में लगे हुए थे।
  • लेकिन इन्हें लागत और अन्य चिंताओं के कारण अंततः बंद करना पड़ा।

सुपरसोनिक विमान:

  • सुपरसोनिक विमान ऐसे विमान हैं जो ध्वनि की गति से भी तेज उड़ान भर सकते हैं।
    • आमतौर पर सुपरसोनिक विमान लगभग 900 किमी. प्रति घंटे की गति से उड़ान भर सकते हैं, जो सामान्य विमान की गति से दोगुना है।
  • सुपरसोनिक उड़ानों की तकनीक वास्तव में 70 वर्ष से भी अधिक पुरानी है, लेकिन हाल ही में इसका उपयोग वाणिज्यिक उड़ान के लिये किया गया है।
    • वर्ष 1976 से पहले वाणिज्यिक सुपरसोनिक विमानों का उपयोग पूरी तरह से सैन्य उद्देश्यों के लिये किया जाता था।

बूम का ओवरचर सुपरसोनिक विमान:

  • ओवरचर एयरक्राफ्ट 4,250 नॉटिकल मील की रेंज के साथ 1.7 मैक या 1,805 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से उड़न भरेगा।
  • यह अपनी प्रत्येक उड़ान में 65 से 88 यात्रियों को ले जा सकता है और 60,000 फीट की ऊँचाई तक उड़ सकता है।
  • परीक्षण उड़ानें वर्ष 2026 में शुरू होने वाली हैं, जिसका व्यावसायिक उपयोग तीन वर्ष बाद होगा।
  • इसका तेज़, अधिक कुशल और टिकाऊ प्रौद्योगिकी के माध्यम से कॉनकॉर्ड के आधार पर निर्माण होगा।
  • कंपनी ने विमान का उत्पादन "नेट-ज़ीरो कार्बन एमिशन" (Net-Zero Carbon Emission) के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल होने का दावा किया है, जो 100% धारणीय विमानन ईंधन (Sustainable Aviation Fuel- SAF) के साथ उड़ान भरने के लिये तैयार है।
    • धारणीय विमानन ईंधन में जैव ईंधन और सिंथेटिक केरोसिन शामिल हैं जो अक्षय तथा टिकाऊ सामग्री का उपयोग करके निर्मित होते हैं।
  • इसका उद्देश्य "जीरो ओवरलैंड नॉइज़" (Zero Overland Noise) है।
    • इसका मतलब है कि यह केवल पानी के ऊपर सुपरसोनिक गति से यात्रा करेगा, साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी ध्वनि या अत्यधिक शोर उन स्थानों तक न पहुँचे जहाँ लोग रहते हैं।
    • यह उन्नत वायुगतिकी और कार्बन मिश्रित सामग्री से लैस होगा।
    • यह विकास और रखरखाव लागत को कम करने में सक्षम होगा जो कि कॉनकॉर्ड विमान नहीं कर सके।

सुपरसोनिक विमानों के साथ चुनौतियाँ:

  • उच्च विनिर्माण लागत: "धारणीय" सुपरसोनिक विमान बनाने की लागत बहुत अधिक है।
  • पर्यावरणीय लागत: इन विमानों द्वारा अत्यधिक मात्रा में ईंधन और ऊर्जा का उपयोग किये जाने के कारण पर्यावरणीय नुकसान होने की संभावना है।
    • धारणीय ईंधन के उपयोग के बावजूद इस विमान का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन शून्य नहीं है।
    • यह विमान उड़ान भरने के लिये बहुत अधिक मात्रा में ईंधन की खपत करता है, वह भी ऐसे बाज़ार में जहाँ धारणीय ईंधन आसानी से उपलब्ध नहीं है।
  • अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण: इन विमानों की गति से वातावरण में अत्यधिक मात्रा में ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है।
    • इन विमानों द्वारा बनाया गया "सोनिक बूम" मानव कान के लिये एक विस्फोट जैसा है।
    • इस प्रकार यह सीमित करता है कि सुपरसोनिक विमान कहाँ और कब उड़ सकते हैं। ये केवल तब अपनी वास्तविक गति तक पहुँच सकते हैं जब वे लोगों से काफी दूर और पूरी तरह से समुद्र के ऊपर हों।
  • नियामक अनुमोदन: ऐसे विमानों को उड़ाना असफल हो सकता है, खासकर ट्रान्साटलांटिक (Transatlantic) उड़ानों के लिये। पूरे विश्व के नियामकों से मंज़ूरी प्राप्त करना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा, क्योंकि अतीत में सुपरसोनिक विमानों को इन बाधाओं हेतु पहले ही हरी झंडी दिखाई जा चुकी है।
  • बहुत महँगा: यह सभी के लिये आर्थिक रूप से संभव नहीं होगा। केवल बहुत अमीर लोग ही सुपरसोनिक विमान खरीद सकते हैं, क्योंकि एक नियमित विमान के प्रथम श्रेणी के टिकट की तुलना में इसका टिकट अधिक महँगा हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बहुपक्षवाद पर संयुक्त बयान : ब्रिक्स

प्रिलिम्स के लिये 

बहुपक्षवाद, ब्रिक्स (BRICS), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), विश्व व्यापार संगठन, चौथी औद्योगिक क्रांति

मेन्स के लिये 

बहुपक्षवाद से संबंधित विभिन्न पक्ष (अर्थ, महत्त्व, आवश्यकता एवं दुरुपयोग), ब्रिक्स की भूमिका, बहुपक्षीय प्रणाली के लिये ब्रिक्स द्वारा निर्धारित छह सिद्धांत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हुए एक बैठक में ब्रिक्स विदेश मंत्रियों ने बहुपक्षवाद (Multilateralism) पर एक संयुक्त बयान दिया।

  • ब्रिक्स (BRICS) दुनिया की पाँच उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक संघ का शीर्षक है।

प्रमुख बिंदु 

बहुपक्षवाद (Multilateralism) :

  • अर्थ:
    • बहुपक्षवाद तीन या अधिक हितधारकों के समूहों के बीच संबंधों को व्यवस्थित करने की एक प्रक्रिया है।
    • इसमें सामान्यत: कुछ गुणात्मक तत्त्व या सिद्धांत शामिल होते हैं जो व्यवस्था या संस्था को संरचनात्मक आकार देते हैं। ये सिद्धांत इस प्रकार हैं:
      • प्रतिभागियों के बीच हितों की अविभाज्यता।
      • पारस्परिकता बढ़ाने की प्रतिबद्धता यानी आपसी आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
      • विवाद निपटान की प्रणाली को व्यवहार के एक विशेष तरीके के रूप में लागू करने के उद्देश्य से स्थापित करना।
  • महत्त्व :
    • बहुपक्षीय संस्थानों ने युद्ध-उपरांत वैश्विक शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और वास्तविक तौर पर संगठन के अन्य रूपों की तुलना में अधिक स्थिर हैं क्योंकि उनके अंतर्निहित सिद्धांत अधिक टिकाऊ और बाहरी परिवर्तनों को अनुकूलित करने में अधिक सक्षम प्रतीत होते हैं।
  • आवश्यकता :
    • कानून की बढ़ती घटनाएँ: 
      • इसका अभिप्राय यह है कि कई देशों द्वारा (अनावश्यक प्रौद्योगिकी मांग, बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन और सब्सिडी के माध्यम से) अन्य देशों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिये मौज़ूदा अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों का दुरुपयोग किया गया।
    • वैश्विक आपूर्तिशृंखला का दुरुपयोग :
      • विकसित देशों में से कुछ देशों के पास वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की अधिकारिता और नियंत्रण है जिससे इन देशों के वाणिज्यिक हितों के साथ रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ये आपूर्ति शृंखलाएँ उन्हें बाहरी-सीमा क्षेत्र में व्यापक प्रभावकारी बनाती हैं और नई शक्ति विषमताओं का निर्माण  करती हैं।
        • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना के माध्यम से चीन विश्व आर्थिक प्रशासन में अपनी भूमिका को बढ़ा रहा है।
        • इसके अतिरिक्त, औद्योगिक क्रांति 4.0 के दोहरे उपयोग (वाणिज्यिक संव्यवहार और सैन्य अनुप्रयोग) से भी विश्व भयभीत है।
    • वैश्विक फ्रेमवर्क की कमी :
      • आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और साइबर सुरक्षा आदि से संबंधित मुद्दों पर वैश्विक समुदाय एक मंच पर आकर एक उभयनिष्ठ वैश्विक एजेंडे के निर्माण की दिशा में सक्रिय नहीं हो पा रहा है।
      • इसके साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक सामान्य स्वास्थ्य फ्रेमवर्क की कमी के कारण ही COVID-19 जैसी महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है।

बहुपक्षीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने और सुधारने के कार्य के लिये ब्रिक्स द्वारा निर्धारित छह सिद्धांत: 

  • पहला, इसे विकासशील और कम विकसित देशों की अधिक-से-अधिक सार्थक भागीदारी की सुविधा के लिये वैश्विक शासन को अधिक समावेशी, प्रतिनिधि और सहभागी बनाना चाहिये।
  • दूसरा, यह सभी के लाभ के लिये समावेशी परामर्श और सहयोग पर आधारित होना चाहिये। 
  • तीसरा, बहुपक्षीय संगठनों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के मानदंडों और सिद्धांतों तथा आपसी सम्मान, न्याय, समानता, पारस्परिक लाभकारी सहयोग की भावना के आधार पर अधिक उत्तरदायी, कार्रवाई-उन्मुख और समाधान-उन्मुख बनाना चाहिये। 
  • चौथा, इसे डिजिटल और तकनीकी उपकरणों सहित नवीन और समावेशी समाधानों का उपयोग करना चाहिये। 
  • पाँचवाँ, इसे विभिन्न राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की क्षमताओं को मज़बूत करना चाहिये।
  • छठा, इसे मूल रूप से जन-केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये। 

ब्रिक्स (BRICS)

  • ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
  • वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्री जिम ओ’ नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की  उभरती अर्थव्यवस्थाओं के वर्णन करने के लिये BRICS शब्द की चर्चा की।
  • वर्ष 2006 में ब्रिक (BRIC) विदेश मंत्रियों की प्रथम बैठक के दौरान समूह को एक  नियमित अनौपचारिक रूप प्रदान किया गया।
  • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को ब्रिक (BRIC) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और इस समूह को BRICS कहा जाने लगा।
  • जनवरी 2021 में भारत ने ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण की है।

संरचना : 

  • ब्रिक्स कोई संगठन का रूप नहीं है, बल्कि यह पाँच देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच एक वार्षिक शिखर सम्मेलन है।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मलेन फोरम की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S क्रमानुसार सदस्य देशों द्वारा की जाती है।

 स्रोत : द हिंदू


शासन व्यवस्था

सुरक्षित हम सुरक्षित तुम अभियान: आकांक्षी ज़िले

प्रिलिम्स के लिये 

सुरक्षित हम सुरक्षित तुम अभियान, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के बारे में तथ्यात्मक जानकारी

मेन्स के लिये 

सुरक्षित हम सुरक्षित तुम अभियान, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग और पीरामल फाउंडेशन ने 112 आकांक्षी ज़िलों में 'सुरक्षित हम सुरक्षित तुम अभियान (Surakshit Hum Surakshit Tum Abhiyan)' शुरू किया।

  • यह अभियान कोविड-19 के उन रोगियों को घरेलू देखभाल सहायता प्रदान करने में प्रशासन की सहायता के लिये शुरू किया गया था, जो लक्षणहीन (Asymptomatic) हैं या जिनमें हल्के लक्षण हैं।
  • इनमें से अधिकांश ज़िले झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र में हैं।

प्रमुख बिंदु

अभियान के बारे में:

  • यह अभियान एक विशेष पहल आकांक्षी ज़िला सहयोगी (Aspirational Districts Collaborative) का हिस्सा है जिसमें स्थानीय नेता, नागरिक समाज और स्वयंसेवक जिला प्रशासन के साथ मिलकर आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (Aspirational Districts Programme- ADP) के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में उभरती समस्याओं का समाधान करते हैं।
  • इस अभियान का नेतृत्त्व ज़िला मजिस्ट्रेटों द्वारा किया जाएगा, जिसमें 1000 से अधिक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन भी शामिल होंगे, जो इनबाउंड/आउटबाउंड कॉल के माध्यम से रोगियों से जुड़ने के लिये 1 लाख से अधिक स्वयंसेवकों को सूचीबद्ध और प्रशिक्षित करेंगे।
  • स्वयंसेवकों को कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने, मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करने और प्रशासन को रोगियों के बारे में समय पर अपडेट करने के लिये शिक्षित करके प्रत्येक 20 प्रभावित परिवारों का समर्थन करने हेतु प्रशिक्षित किया जाएगा।

उद्देश्य:

  • इन 112 ज़िलों में प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति तक पहुँचने का लक्ष्य है।
  • इस अभियान से घर पर लगभग 70% कोविड-19 मामलों के प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव को कम करने और लोगों में भय के प्रसार को रोकने के लिये ज़िला स्तर पर तैयारियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।
  • यह कोविड-19 के स्थायी प्रभाव को संबोधित करके आकांक्षी ज़िलों में भारत के सबसे गरीब समुदायों को दीर्घकालिक सहायता प्रदान करेगा।

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम

परिचय:

  • इसे जनवरी 2018 में 'आकांक्षी ज़िलों का परिवर्तन' कार्यक्रम (Transformation of Aspirational Districts’ Programme- TADP) के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • आकांक्षी ज़िले भारत के वे ज़िले हैं जो खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं।
  • इन ज़िलों में सुधार से भारत के मानव विकास में समग्र सुधार हो सकता है।

मंत्रालय:

  • भारत सरकार के स्तर पर यह कार्यक्रम नीति आयोग द्वारा संचालित है। इसके अलावा अलग-अलग मंत्रालयों ने ज़िलों की प्रगति की जिम्मेदारी संभाली है।

उद्देश्य:

  • आकांक्षी ज़िलों की वास्तविक समय की प्रगति की निगरानी करना।

केंद्र-बिंदु क्षेत्र:

  • ADP 5 मुख्य क्षेत्रों 49 संकेतकों पर आधारित है, जो लोगों के स्वास्थ्य एवं पोषण, शिक्षा, कृषि तथा जल संसाधन, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास व बुनियादी ढाँचे में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • राज्यों के मुख्य चालक के रूप में ADP प्रत्येक ज़िले की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है, साथ ही तत्काल सुधार के लिये कम लाभ वाले क्षेत्रों की पहचान करना, प्रगति को मापना और ज़िलों को रैंक प्रदान करना चाहता है।

कार्यक्रम की व्यापक रूपरेखा (Triple-C):

  • अभिसरण (केंद्र और राज्य योजनाओं का) जो सरकार के क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर स्तरों को एक साथ लाता है।
  • सहयोग (केंद्रीय, राज्य स्तर के 'प्रभारी' अधिकारियों और ज़िला कलेक्टरों का) जो सरकार, बाज़ार और नागरिक समाज के बीच प्रभावशाली भागीदारी को सक्षम बनाता है।
  • जन आंदोलन की भावना से प्रेरित ज़िलों के बीच प्रतिस्पर्द्धा ज़िला स्तर पर सरकारों की जवाबदेही को बढ़ावा देती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

लाइव-स्ट्रीमिंग कोर्ट कार्यवाही के लिये ड्राफ्ट नियम

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ई-कोर्ट परियोजना

मेन्स के लिये:

लाइव-स्ट्रीमिंग कोर्ट कार्यवाही के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिये प्रारूप मॉडल नियम जारी किये हैं।

  • न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के कार्यान्वयन के लिये ये नियम राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना का हिस्सा हैं।
  • ये नियम उच्च न्यायालयों, निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों में कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग को कवर करेंगे।
  • इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने न्यायिक प्रणाली में एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पोर्टल 'SUPACE' लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करना है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • स्वप्निल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये इसे खोलने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
  • इसने माना कि लाइव स्ट्रीमिंग की कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत न्याय तक पहुँचने के अधिकार का हिस्सा है।
  • गुजरात उच्च न्यायालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय के बाद अदालती कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम करने वाला पहला उच्च न्यायालय था।

मसौदा नियम:

  • कार्यवाही का प्रसारण: वैवाहिक विवादों, लिंग आधारित हिंसा, नाबालिगों से संबंधित मामलों और "मामले, जो बेंच की राय में, समुदायों के बीच दुश्मनी को भड़काने के परिणामस्वरूप होने की संभावना से जुड़े मामलों को छोड़कर उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाही का प्रसारण किया जा सकता है।
  • निर्णय लेने वाला प्राधिकरण: कार्यवाही या उसके किसी हिस्से की लाइव-स्ट्रीमिंग की अनुमति देने या न देने का अंतिम निर्णय बेंच का होगा, हालाँकि इस बेंच का निर्णय एक खुली और पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होगा।
  • आपत्तियों की अनुमति दें: नियम विशिष्ट मामलों में मामला दर्ज करने के चरण में या बाद के चरण में लाइव स्ट्रीमिंग के खिलाफ आपत्तियाँ दर्ज करने की अनुमति दी गई है।
  • कार्रवाई का रिकॉर्ड: यह मसौदा नियम छह महीने के लिये अदालती कार्यवाही को संग्रहीत करने की अनुमति देते हैं।
    • न्यायालय द्वारा अपने मूल रूप में अधिकृत रिकॉर्डिंग के उपयोग की अनुमति दी जा सकती है, अन्य बातों के साथ-साथ समाचार प्रसारित करने और प्रशिक्षण, शैक्षणिक तथा शैक्षिक उद्देश्यों के लिये भी अनुमति दी जा सकती है।

प्रतिबंध:

  • सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों के बीच चर्चा का न्यायाधीशों द्वारा अधिवक्ता और उसके मुवक्किल के बीच संचार हेतु न तो सीधा प्रसारण किया जाएगा और न ही इसे संग्रहीत किया जाएगा।
  • ये नियम सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म सहित मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारण को रिकॉर्ड करने या साझा करने पर भी रोक लगाते हैं, जब तक कि अदालत द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता है।
  • रिकॉर्डिंग का उपयोग किसी भी रूप में वाणिज्यिक, प्रचार उद्देश्यों या विज्ञापन के लिये नहीं किया जाएगा।

संभावित लाभ:

  • यह कागज़ी फाइलिंग को सीमित करके न्याय वितरण प्रणाली को सस्ती, पारदर्शी, तेज़ और जवाबदेह बना सकता है।
  • यह समय बचाने वाला हो सकता है और इसलिये लंबित मामलों के बैकलॉग को कम कर सकता है और अनैतिक गतिविधियों की संख्या को भी कम कर सकता है।

चिंताएँ:

  • अदालतों में तकनीकी जनशक्ति की कमी और वादियों, अधिवक्ताओं के बीच जागरूकता और व्यवस्था में बदलाव के प्रति उनकी स्वीकृति।
  • साइबर सुरक्षा खतरा एक बड़ी चिंता होगी।
  • न्यायालयों की लाइव स्ट्रीमिंग दुर्व्यवहार के लिये अतिसंवेदनशील है। इस प्रकार गोपनीयता के मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं।
  • अदालतों की लाइव कार्यवाही को लागू करने में इंफ्रास्ट्रक्चर, खासकर इंटरनेट कनेक्टिविटी भी एक बड़ी चुनौती है।

ई-कोर्ट परियोजना:

  • ई-कोर्ट परियोजना की अवधारणा "भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना - 2005" के आधार पर ई-समिति, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत की गई थी। 
  • ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट एक अखिल भारतीय परियोजना है, जिसकी निगरानी और वित्त पोषण देश भर के ज़िला न्यायालयों के लिये कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

परियोजना की परिकल्पना के कारण:

  • ई-कोर्ट प्रोजेक्ट चार्टर में वर्णित कुशल और समयबद्ध नागरिक-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करना।
  • न्यायालयों में निर्णय समर्थन प्रणालियों को विकसित, स्थापित और कार्यान्वित करना।
  • अपने हितधारकों को सूचना की पहुँच में पारदर्शिता प्रदान करने के लिये प्रक्रियाओं को स्वचालित करना।
  • न्यायिक उत्पादकता को गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों रूप से बढ़ाना, न्याय वितरण प्रणाली को वहनीय, सुलभ, लागत प्रभावी, पूर्वानुमेय, विश्वसनीय और पारदर्शी बनाना।

आगे की राह:

  • एक मज़बूत सुरक्षा प्रणाली की तैनाती की आवश्यकता है जो उपयुक्त पक्षों को मामले की जानकारी तक सुरक्षित पहुँच प्रदान करे।
  • इसके अलावा सरकार को ई-कोर्ट परियोजना का समर्थन करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे की पहचान और विकास करने की आवश्यकता है।
  • यह अदालतों में मामलों के निपटान में अत्यधिक देरी, आर्थिक ऑपरेटरों द्वारा वाणिज्यिक विवादों के त्वरित समाधान तक पहुँच की सुविधा, न्याय प्रणाली को सभी उपयोगकर्त्ताओं के अनुकूल और सस्ती बनाने तथा देश में कानूनी सहायता सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार जैसी चुनौतियों का समाधान करेगा तथा ई-कोर्ट के कामकाज को चलाने के लिये अनिवार्य होगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022

चर्चा में क्यों?

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2022 के मुताबिक, शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत के स्थान में बीते पाँच वर्षों में कोई परिवर्तन नहीं आया है।

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग

  • क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस) महत्त्वाकांक्षी पेशेवरों के लिये एक प्रमुख वैश्विक कॅॅरियर और शैक्षिक नेटवर्क है, जिसका लक्ष्य व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक विकास को आगे बढ़ाना हैं।
  • क्यूएस, संस्थानों की गुणवत्ता की पहचान करने के लिये तुलनात्मक डेटा संग्रह और विश्लेषण के तरीकों को विकसित करके उन्हें सफलतापूर्वक लागू करता है।
  • इस यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स का प्रकाशन वार्षिक स्तर पर होता है जिसमें वैश्विक रूप से समग्र सब्जेक्ट रैंकिंग शामिल हैं।
  • मूल्यांकन के लिये छह मापदंड और उनका वेटेज:
    • अकादमिक प्रतिष्ठा (40%)
    • नियोक्ता प्रतिष्ठा (10%)
    • संकाय/छात्र अनुपात (20%)
    • उत्कृष्टता प्रति संकाय (20%)
    • अंतर्राष्ट्रीय संकाय अनुपात (5%)
    • अंतर्राष्ट्रीय छात्र अनुपात (5%)

प्रमुख बिंदु

वैश्विक रैंकिंग

  • शीर्ष रैंक
    • अमेरिका का मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) लगातार 10वीं बार शीर्ष स्थान पर है।
    • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (ब्रिटेन) वर्ष 2006 के बाद पहली बार दूसरे स्थान पर पहुँच गया है, जबकि स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (अमेरिका) और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (ब्रिटेन) तीसरे स्थान पर हैं।
  • एशियाई संस्थान
    • सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर तथा नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटी तथा पेकिंग यूनिवर्सिटी, वैश्विक शीर्ष 20 विश्विद्यालयों में एकमात्र एशियाई विश्वविद्यालय हैं।

भारतीय संस्थान

Top-Varsities

  • समग्र तौर पर शीर्ष 1,000 संस्थानों की सूची में 22 भारतीय संस्थान हैं, जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर और मद्रास आदि शीर्ष स्थान पर हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 2021 में शीर्ष 1,000 संस्थानों की सूची में 21 भारतीय संस्थान थे। 
  • जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने पहली बार रैंकिंग के शीर्ष 1,000 संस्थनों में प्रवेश किया है, क्योंकि इसका नया स्नातक इंजीनियरिंग कार्यक्रम अब इसे रैंकिंग हेतु योग्य बनाता है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे ने लगातार चौथे वर्ष शीर्ष भारतीय संस्थान के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी, हालाँकि यह वैश्विक रैंकिंग में पाँच स्थान गिरकर 177वें स्थान पर आ गया है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (185 रैंक) ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू (186 रैंक) को पीछे छोड़ दिया। इसी के साथ शीर्ष 200 संस्थानों में भारत के तीन संस्थान हैं।
    • संकाय आकार को समायोजित किये जाने पर ‘उत्कृष्टता प्रति संकाय’ के आधार पर भारतीय विज्ञान संस्थान को विश्व का शीर्ष अनुसंधान विश्वविद्यालय घोषित किया गया है।

भारत का प्रदर्शन

  • भारतीय विश्वविद्यालयों ने अकादमिक प्रतिष्ठा मीट्रिक और शोध पर अपने प्रदर्शन में सुधार किया है, लेकिन शिक्षण क्षमता मीट्रिक को लेकर अभी भी भारत संघर्ष कर रहा है।
    • कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय संकाय-छात्र अनुपात के लिये शीर्ष 250 संस्थानों में शामिल नहीं है।
    • शिक्षण क्षमता पर खराब प्रदर्शन छात्रों की भर्ती में गिरावट का कारण नहीं है, बल्कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण को लागू करने हेतु सरकार द्वारा अनिवार्य छात्रों की संख्या में वृद्धि के कारण है।

चिंताएँ

  • वस्तुनिष्ठ पद्धति का अभाव
    • रैंकिंग भारत में शिक्षा की गुणवत्ता को सटीक रूप से नहीं दर्शाती है, बल्कि यह काफी हद तक अंतर्राष्ट्रीय धारणा पर निर्भर है।
    • स्कोर का आधा हिस्सा प्रतिष्ठा संकेतकों से आता है, जो किसी वस्तुनिष्ठ पद्धति के बजाय धारणा पर आधारित होते हैं।
  • रैंक में हेरफेर
    • यह आरोप लगाया जा रहा है कि इस वर्ष स्कोर में सुधार केवल रैंकिंग एजेंसी द्वारा संख्याओं में हेरफेर के कारण हुआ है, जो वाणिज्यिक दबावों से प्रेरित है।

संबंधित भारतीय पहल

  • 'इंस्टीट्यूशंस ऑफ एमिनेंस' योजना
    • सरकार ने 20 संस्थानों (10 सार्वजानिक क्षेत्र से और 10 निजी क्षेत्र से) की स्थापना या उन्नयन के लिये नियामक फ्रेमवर्क प्रदान करने की योजना बनाई है, जिसे विश्व स्तरीय शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों यानी  'इंस्टीट्यूशंस ऑफ एमिनेंस' के रूप में विकसित किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020
    • इसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक महत्त्वपूर्ण बदलाव लाना और भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना है।
  • अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी को प्रभावित करना (IMPRINT)
    • यह एक नई शिक्षा नीति विकसित करने और ऐसी प्रमुख इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी चुनौतियों को हल करने के लिये अनुसंधान हेतु एक रोडमैप विकसित करने की अपनी तरह की पहली पहल है, जिन्हें भारत के लिये समावेशी विकास और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने हेतु संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • उच्चतर आविष्कार योजना
    • इस योजना को ऐसे उच्चतर नवाचार को बढ़ावा देने की दृष्टि से शुरू किया गया था, जो प्रत्यक्ष तौर पर उद्योग की आवश्यकताओं को प्रभावित करता हो और इस प्रकार भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता में सुधार करता हो।

स्रोत: द हिंदू


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