लियोपोल्ड द्वितीय: औपनिवेशिक हिंसा का प्रतीक
प्रीलिम्स के लियेलियोपोल्ड द्वितीय, एडवर्ड कॉलस्टन, विंस्टन चर्चिल मेन्स के लियेविभिन्न देशों की औपनिवेशिक नीतियाँ, भारत पर उपनिवेश का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नस्लभेद को लेकर अमेरिका में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते बेल्जियम में प्रदर्शनकारियों ने लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold II) की प्रतिमा को गिरा दिया है, जिनकी हिंसक और शोषक नीतियों का प्रयोग बेल्जियम को समृद्ध बनाने के लिये किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शन अब यूरोप के विभिन्न देशों में भी फैल गया है। ब्रिटेन और बेल्जियम जैसे देशों में यह आंदोलन आम लोगों को अपने देश में उपनिवेश के हिंसक इतिहास पर बात करने के लिये प्रेरित कर रहा है।
कौन थे लियोपोल्ड द्वितीय?
- वर्ष 1865 से वर्ष 1909 के बीच शासन करने वाले राजा लियोपोल्ड द्वितीय (Leopold II) को बेल्जियम पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला शासक माना जाता है।
- उल्लेखनीय है कि कई विशेषज्ञ कांगो पर प्रशासन के दौरान लियोपोल्ड द्वितीय की अत्याचारों और शोषण से भरी नीति की काफी आलोचना करते हैं।
- कांगो पर अपने स्वामित्त्व के दौरान लियोपोल्ड द्वितीय ने लाखों की संख्या में कांगो के मूल निवासियों की क्रूर हत्याएँ कीं। माना जाता है कि लियोपोल्ड द्वितीय की क्रूर नीतियों के कारण तकरीबन 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
- वर्ष 1908 में लियोपोल्ड द्वितीय ने कांगो को बेल्जियम सरकार के हाथों बेच दिया और यह क्षेत्र बेल्जियम का उपनिवेश बन गया।
- इसके तकरीबन 52 वर्षों बाद वर्ष 1960 में कांगो ने स्वतंत्रता हासिल की और एक लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
- उपनिवेश स्थापित करने में शामिल अन्य राज्यों की तरह बेल्जियम में भी कांगो के लोगों से प्राप्त किया गया धन और संसाधन देश भर में सभी सार्वजनिक भवनों और स्थानों में देखे जा सकते हैं।
- जानकारों का मानना है कि राजधानी ब्रसेल्स (Brussels) समेत कई शहरों और कस्बों को बड़े पैमाने पर लियोपोल्ड द्वितीय द्वारा कांगो से प्राप्त किये गए धन और संसाधन से विकसित किया गया है।
नया नहीं है लियोपोल्ड द्वितीय से संबंधित विवाद
- बेल्जियम राजशाही ने अपने औपनिवेशिक वर्षों के दौरान हुए अत्याचारों के लिये कभी माफी नहीं मांगी।
- बेल्जियम के एक विशिष्ट वर्ग ने सदैव ही यह प्रयास किया है कि लियोपोल्ड द्वितीय समेत देश के औपनिवेशिक इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रतीकों को बेल्जियम के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों से हटा दिया जाए।
- वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मृत्यु के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने बेल्जियम में भी इस मुद्दे को एक बार पुनः चर्चा में ला दिया है।
- कई शोधकर्त्ता और इतिहासकार मानते हैं कि बेल्जियम सरकार के तहत कांगो की स्थिति बेहतर थी, जबकि कुछ का मत है कि लियोपोल्ड द्वितीय के शासनकाल के दौरान कांगो की स्थिति काफी बेहतर थी। वहीं कुछ आलोचक बेल्जियम की समग्र औपनिवेशिक नीतियों की आलोचना करते हैं।
- जानकारों के अनुसार, आम सहमति का अभाव ही वह कारण है जिसकी वजह से बेल्जियम के हिंसक औपनिवेशिक इतिहास पर देश में अधिक गंभीर और व्यापक रूप से चर्चा नहीं की गई।
लियोपोल्ड द्वितीय की प्रतिमा हटाने का पक्ष
- बेल्जियम में ऐसा एक बड़ा वर्ग है जो मानता है कि बच्चों और महिलाओं के विरुद्ध की गई हिंसा समेत कांगों के मूल निवासियों की क्रूर हत्या में लियोपोल्ड द्वितीय की भूमिका के कारण उनकी प्रतिमा को सभी सार्वजनिक स्थानों से हटा दिया जाना चाहिये, क्योंकि इस प्रकार के प्रतीक औपनिवेशिक काल के दौरान हुई हिंसा का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
- बेल्जियम समेत विश्व भर में जारी विरोध प्रदर्शनों के कारण उपनिवेश और नस्लभेद के हिंसक अतीत का प्रतिनिधित्त्व करने वाले अन्य प्रतीकों को भी हटाया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 1960 में कांगो की आज़ादी के बाद कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की राजधानी किंशासा (Kinshasa) में लियोपोल्ड द्वितीय की प्रतिमा को हटा दिया गया था।
संबंधित घटनाएँ
- एडवर्ड कॉलस्टन (Edward Colston): हाल ही में नस्लभेद की निंदा करते हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रदर्शनकारियों द्वारा 17वीं शताब्दी के दास व्यापारी एडवर्ड कॉलस्टन (Edward Colston) की मूर्ति को गिरा दिया गया। एडवर्ड कॉलस्टन रॉयल अफ्रीकन कंपनी (Royal African Company-RAC) के एक शीर्ष अधिकारी थे, जिसने हज़ारों की संख्या में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को दास/गुलाम के तौर पर कई देशों में पहुँचाया, एक अनुमान के अनुसार, रॉयल अफ्रीकन कंपनी (RAC) में रहते हुए एडवर्ड कॉलस्टन ने लगभग 84000 दासों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया, जिसमें से लगभग 20000 दासों की मृत्यु रास्ते में ही हो गई थी। जहाँ एक ओर कुछ लोग एडवर्ड कॉलस्टन को एक दास व्यापारी के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ लोग इन्हें एक लोकोपकारी और समाजसेवी के रूप में भी देखते हैं। दरअसल अफ्रीकी दासों की तस्करी करने वाली ब्रिटिश कंपनियों के लिये ब्रिस्टल, लिवरपूल, ग्लासगो और लंदन प्रमुख बंदरगाह थे। इसीलिये दास व्यापारी और जहाज़ कंपनियों के मालिक इन शहरों की आय का एक प्रमुख स्रोत थे। चूँकि एडवर्ड कॉलस्टन भी इसी प्रकार का एक दास व्यापारी था, इसलिये उसके ब्रिस्टल और लंदन जैसे शहरों के विकास में काफी योगदान दिया और शहर में स्कूल तथा अनाथालय खोले। हालाँकि इन तथ्यों के बावजूद यह नकारा नहीं जा सकता कि एडवर्ड कॉलस्टन एक दास व्यापारी थे और वे मौजूदा दौर में औपनिवेशिक गुलामी का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
- विंस्टन चर्चिल: एक अन्य घटना में लंदन में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) की प्रतिमा के साथ तोड़ फोड़ की गई और उनकी प्रतिमा पर प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर ‘नस्लवादी’ (Racist) लिखा। उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल पर इतिहासकार और शोधकर्त्ता नस्लवादी तथा साम्राज्यवादी नीतियों का आरोप लगते हैं जिसके कारण ब्रिटिश भारत में कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। विदित हो कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom-UK) की जीत का श्रेय विंस्टन चर्चिल को ही दिया जाता है। असल में विंस्टन चर्चिल एक पूर्व सैन्य अधिकारी थे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन
प्रीलिम्स के लिये:मालाबार नौसैनिक अभ्यास, व्यापक रणनीतिक साझेदारी मेन्स के लिये:भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंध, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और भारत |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों के बीच पहले वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ (Comprehensive Strategic Partnership) के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु:
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 4 जून, 2020 को एक वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
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इस अवसर पर दोनों देशों की तरफ से ‘हिंद-प्रशांत समुद्री सहयोग के लिये साझा दृष्टिकोण’ (Shared Vision for Maritime Cooperation in the Indo-Pacific) नामक एक संयुक्त दस्तावेज़ जारी किया गया।
- इस सम्मेलन में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
- साथ ही दोनों देशों के बीच प्रधानमंत्री स्तर की बैठकों को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
समझौते:
- ‘म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Mutual Logistics Support Agreement- MLSA):
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इस शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये सैन्य अभ्यास और साझा गतिविधियों में वृद्धि के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में सहयोग को व्यापक तथा मज़बूत बनाने पर सहमति व्यक्त की।
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इस समझौते के माध्यम से दोनों देशों की सेनाएँ एक दूसरे के सैन्य अड्डों का परस्पर प्रयोग कर सकेंगी।
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इससे पहले भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ वर्ष 2016 में ऐसे ही एक समझौते 'लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट' (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA) पर हस्ताक्षर कर चुका है।
- साथ ही भारत द्वारा कुछ अन्य देशों फ्राँस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के बीच ऐसे ही समझौते पर हस्ताक्षर किये जा चुके हैं।
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- व्यापक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership- CSP):
- इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच वर्ष 2009 की द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए व्यापक रणनीतिक साझेदारी के रूप में स्थापित किया गया है।
- इसके तहत दोनों देशों द्वारा ‘2+2 वार्ताओं’ को सचिव स्तर से आगे ले जाते हुए मंत्री स्तर तक बढ़ाया गया है।
- इसके बाद अब दोनों देशों के विदेश एवं रक्षा मंत्री कम-से-कम हर दूसरे वर्ष मिलकर रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
- वर्तमान में भारत और क्वाड के अन्य दो सदस्यों (USA और जापान) के साथ पहले से ही मंत्रिस्तरीय 2+2 वार्ता की व्यवस्था लागू है।
- भारत ने अब तक यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया, वियतनाम और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ CSP समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया तीन देशों चीन, इंडोनेशिया और सिंगापुर के साथ CSP समझौते का हिस्सा है।
- ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष:
- दोनों पक्षों ने COVID-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और अन्य साझा प्राथमिकताओं पर भी कार्य करने के लिये ‘ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष’ (Australia-India Strategic Research Fund- AISRF) के तहत सहयोग बढ़ाने पर बल दिया।
- AISRF की स्थापना वर्ष 2006 में की गई थी, यह कोष भारत और ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान कार्यों पर सहयोग हेतु सहायता प्रदान करता है।
- दोनों पक्षों ने COVID-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और अन्य साझा प्राथमिकताओं पर भी कार्य करने के लिये ‘ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष’ (Australia-India Strategic Research Fund- AISRF) के तहत सहयोग बढ़ाने पर बल दिया।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग:
- इस सम्मेलन में दोनों पक्षों के बीच ‘साइबर और साइबर-सक्षम महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी सहयोग पर रूपरेखा व्यवस्था’ (Framework Arrangement on Cyber and Cyber-enabled Critical Technology Cooperation) समझौते के तहत डिजिटल अर्थव्यवस्था, साइबर सुरक्षा और अन्य महत्त्वपूर्ण एवं नवीन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मिलकर कार्य करने पर सहमति व्यक्त की।
- महत्त्वपूर्ण और सामरिक खनिजों का खनन और प्रसंस्करण:
- दोनों पक्षों के बीच महत्त्वपूर्ण और सामरिक खनिजों के खनन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते के तहत दोनों देशों ने खनिजों के अन्वेषण और निष्कर्षण के लिये आवश्यक नवीन तकनीकों के क्षेत्र में सहयोग करने की सहमति व्यक्त की है।
- कृषि क्षेत्र में सहयोग:
- इस सम्मेलन में दोनों पक्षों ने भारत और ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व को स्वीकार किया।
- दोनों पक्षों ने फसलों की कटाई के बाद होने वाले नुकसान और कृषि लागत को कम करने के लिये अनाज के प्रबंधन जैसे मुद्दों पर संयुक्त कार्यवाही करने की बात कही।
- साथ ही इस सम्मेलन के दौरान दोनों पक्षों के बीच ‘जल संसाधन प्रबंधन पर एक समझौता ज्ञापन’ (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किया गया।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता:
- इस सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने वर्ष 2015 से स्थगित भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (Comprehensive Economic Cooperation Agreement- CECA) पर वार्ता को पुनः शुरू किये जाने पर सहमति व्यक्त की।
- ध्यातव्य है कि यह निर्णय तब लिया गया है जब हाल ही में भारत ने आसियान (ASEAN) के नेतृत्त्व में बने ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) मुक्त व्यापार समझौते से अलग होने का निर्णय लिया है
- इस सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने वर्ष 2015 से स्थगित भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (Comprehensive Economic Cooperation Agreement- CECA) पर वार्ता को पुनः शुरू किये जाने पर सहमति व्यक्त की।
अन्य समझौते:
- लोक प्रशासन और शासन सुधार के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर।
- व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण में सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर।
द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लाभ:
- COVID-19 महामारी के दौरान भी भारत और ऑस्ट्रेलिया द्वारा द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन को विलंबित न करने का निर्णय दोनों देशों के मज़बूत संबंधों और परस्पर सहयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- रक्षा क्षेत्र में हुए महत्त्वपूर्ण समझौते न सिर्फ दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग में वृद्धि करेंगे बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में दोनों पक्षों की समान विचारधारा को भी मज़बूती प्रदान करेगा जिससे इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।
- खनिज पदार्थों से जुड़े समझौते के माध्यम से भारत को ऑस्ट्रेलिया से दुर्लभ मृदा धातुओं (Rare Earth Metals) की आपूर्ति संभव हो सकेगी।
- हालाँकि इस सम्मेलन में हाल के दिनों में चीन की बढ़ती आक्रामकता और ‘मालाबार नौसैनिक अभ्यास’ में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने पर कोई चर्चा नहीं की गई।
आगे की राह:
- इस सम्मेलन के दौरान भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा क्षेत्र में हुआ समझौता दोनों देशों के 'एक खुले, स्वतंत्र, समावेशी और क़ानून आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ की विचारधारा को मज़बूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- वर्तमान में दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंधों की मज़बूती का लाभ उठाते हुए ऑस्ट्रेलिया से आने वाले निवेश में वृद्धि किये जाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग- 2021 जारी
प्रीलिम्स के लिये:क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग मेन्स के लिये:भारत में शैक्षणिक परिदृश्य एवं मानव संसाधन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (QS World University Rankings) सूची जारी की गई जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (Indian Institute of Technology-IIT Bombay) ने 172वाँ स्थान प्राप्त कर लगातार तीसरे वर्ष भारत का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय बना रहा।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि ‘क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ की 1000 वैश्विक संस्थानों की सूची में भारतीय संस्थानों की कुल संख्या घटकर 21 हो गई है।
- इस सूची में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (Indian Institute of Technology-IIT Bombay) की रैंकिंग में 20 स्थान की गिरावट हुई है।
- केवल IIT- गुवाहाटी और IIT- हैदराबाद की रैंकिंग में सुधार हुआ है।
- भारतीय संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय संकाय और छात्रों के अनुपात के संदर्भ में छह मापदंडों में से शून्य अंक प्राप्त हुए हैं।
- IIT- दिल्ली की रैंक 10 स्थान की कमी के साथ 193 हो गई, जबकि IIT- मद्रास की रैंक 275 रही।
- IIT- खड़गपुर और IIT-कानपुर दोनों शीर्ष 300 विश्वविद्यालयों से बाहर हो गए हैं। IIT-रुड़की ने 383 पर अपनी रैंकिंग बनाए रखी, जबकि IIT- गुवाहाटी का स्थान 491 से घटकर 470 पर आ गया है।
- गौरतलब है कि IIT- हैदराबाद ‘क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ की शीर्ष 1000 विश्वविद्यालयों की सूची में पहली बार प्रवेश किया है।
- BITS पिलानी और वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान शीर्ष 1000 विश्वविद्यालयों की सूची से बाहर हो गए हैं।
- ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (OP Jindal Global University) की रैंकिंग 650-700 के बीच है, जो कि पिछले वर्ष ही 1000 विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल हुआ था।
- शीर्ष 500 में शामिल विश्वविद्यालयों में अन्य भारतीय संस्थान इस प्रकार हैं-
संस्थान |
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग |
IIT-बॉम्बे |
172 |
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) |
185 |
IIT- दिल्ली |
193 |
IIT-मद्रास |
275 |
IIT-खड़गपुर |
314 |
IIT-कानपुर |
350 |
IIT-रुड़की |
383 |
IIT-गुवाहाटी |
470 |
संस्थानों का पक्ष:
- कुछ संस्थानों की रैंकिंग में मामूली गिरावट कठोर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के कारण आई है।
- भारतीय संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय संकाय और छात्रों के अनुपात के संदर्भ में छह मापदंडों में से शून्य अंक इसलिये प्राप्त हुए हैं क्योंकि भारत में इसकी गणना में केवल पूर्णकालिक शिक्षकों को ही शामिल किया गया है, जबकि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पी.एच.डी. छात्रों और अनुसंधान सहायकर्त्ताओं की भी गणना की गई है।
क्यू.एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (QS World University Rankings) |
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आगे की राह:
- एक समिति का गठन कर संस्थानों के प्रदर्शन का आंकलन करने के साथ ही इनके रैंकिंग में सुधार हेतु उचित कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
- भारतीय उच्च शिक्षा क्षेत्र में शिक्षण क्षमता बढ़ाने हेतु और दुनिया भर के अधिक प्रतिभाशाली छात्रों और शिक्षकों को आकर्षित करने के तरीके खोजने होंगे।
स्रोत: द हिंदू
कृष्णा तथा गोदावरी नदी जल विवाद
प्रीलिम्स के लिये:भारत की नदी प्रणालियाँ, कृष्णा नदी एवं गोदावरी नदी की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:भारत में विभिन्न अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘जल संसाधन विभाग’ (Department of Water Resources) ने कृष्णा तथा गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्डों (Krishna and Godavari River Management Boards) के अध्यक्षों को महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं का विवरण एक माह में केंद्र सरकार को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- तेलंगाना और आंध्र प्रदेश द्वारा कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के जल उपयोग को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के बाद केंद्र सरकार ने इन नदियों के जल उपयोग का जायजा लेने का निर्णय लिया है।
- इस कार्यवाही का मुख्य उद्देश्य यह जानना है कि क्या भविष्य में इन नदियों पर जल परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिये अथवा या नहीं।
- कृष्णा और गोदावरी नदी पर अधिकतर बड़ी परियोजनाएँ महाराष्ट्र एवं कर्नाटक सरकार द्वारा बनाई जा गई है जबकि तेलंगाना ने भी इन नदियों पर कई लघु परियोजनाओं को शुरू किया हैं।
- आंध्र प्रदेश में वर्तमान में किसी नवीन परियोजना पर कार्य नहीं किया जा रहा है यद्यपि राज्य में इन नदियों के जल का अधिकतम उपयोग करने के लिये पुरानी कई अधूरी परियोजनाओं पर तेज़ी से कार्य किया जा रहा है।
विवाद समाधान के प्रयास:
- कृष्णा नदी जल विवाद के समाधान हेतु अब तक 2 न्यायाधिकरणों का गठन किया जा चुका है जबकि गोदावरी नदी विवाद को सुलझाने के लिये एक न्यायाधिकरण का गठन किया गया था।
कृष्णा नदी जल विवाद:
- कृष्णा नदी जल विवाद के समाधान हेतु वर्ष 1969 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण’ (Krishna Water Disputes Tribunal- KWDT) की स्थापना की गई थी।
- KWDT ने कृष्णा नदी के 2060 हजार मिलियन घन फीट (Thousand Million Cubic Feet-TMC) जल में से महाराष्ट्र के लिये 560 TMC, कर्नाटक के लिये 700 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 800 TMC निर्धारित किया था।
- वर्ष 2004 में दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई जिसने वर्ष 2010 में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। वर्ष 2010 में दिये गए निर्णय में अधिशेष जल का 81 TMC महाराष्ट्र को, 177 TMC कर्नाटक को तथा 190 TMC आंध्र प्रदेश के लिये आवंटित किया गया था।
- जबकि आंध्र प्रदेश का मानना है कि संपूर्ण अधिशेष 448 TMC जल पर उसका अधिकार था। अत: आंध्र प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय में SLP दायर की गई।
कृष्णा नदी तंत्र:
- कृष्णा नदी पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी (गोदावरी के बाद) प्रायद्वीपीय नदी है, जो सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट से निकलती है।
- इसकी कुल लंबाई 1401 किलोमीटर है।
- कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- इस नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 27% भाग महाराष्ट्र में 44% भाग कर्नाटक में और 29% भाग आंध्र प्रदेश (संयुक्त) में पड़ता है।
गोदावरी नदी जल विवाद:
- ‘गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ (Godavari Water Disputes Tribunal) का गठन अप्रैल, 1969 में किया गया था तथा न्यायाधिकरण ने जुलाई, 1980 में अपना निर्णय दिया।
- गोदावरी नदी विवाद में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक राज्य शामिल थे।
गोदावरी नदी:
- गोदावरी प्रायद्वीपीय भाग का सबसे बड़ा नदी तंत्र है।
- यह महाराष्ट्र में नासिक ज़िले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- इसकी सहायक नदियाँ महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से गुजरती हैं। यह 1465 किलोमीटर लंबी नदी है।
- इसके जलग्रहण क्षेत्र का 49% भाग महाराष्ट्र में 20% भाग मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में और शेष भाग आंध्रप्रदेश में पड़ता है।
- पेनगंगा, इंद्रावती, प्राणहिता और मंजरा इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच नदी विवाद का कारण:
- कृष्णा और गोदावरी तथा उनकी कुछ सहायक नदियाँ तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश से होकर बहती हैं। इन राज्यों द्वारा ‘नदी जल प्रबंधन बोर्ड’ तथा ‘केंद्रीय जल आयोग’ (Central Water Commission) की मंज़ूरी के बिना अनेक नवीन जल परियोजनाओं को शुरू किया गया है।
- उदाहरण के लिये आंध्र प्रदेश द्वारा कृष्णा नदी पर श्रीशैलम बांध की क्षमता में वृद्धि की गई है। इसके चलते तेलंगाना सरकार ने आंध्र प्रदेश के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
- इसके बाद आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना की कृष्णा नदी पर पलामुरू-रंगारेड्डी (Palamuru-Rangareddy) और दिंडी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं (Dindi Lift Irrigation Schemes) तथा गोदावरी नदी पर प्रस्तावित बांधों यथा कालेश्वरम, तुपकुलगुडेम की शिकायत की है।
- आंध्र प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय में एक ‘विशेष अनुमति याचिका’ (Special Leave Petition- SLP) भी दायर की है, जो अभी लंबित है।
केंद्र सरकार के निर्णय का महत्त्व:
- प्रत्येक राज्य में चलाई जा रही परियोजनाओं के आँकड़ों के आधार पर यह विश्लेषण किया जा सकेगा कि कौन-से राज्यों द्वारा न्यायाधिकरण के निर्णय का उल्लंघन किया जा रहा है।
- आंध्र प्रदेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय मे दायर की गई SLP में यह की मांग की गई थी कि कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण में तेलंगाना को एक अन्य पक्ष के रूप में शामिल किया जाए और कृष्णा नदी के जल को तीन के बजाय चार राज्यों में पुनः आवंटित किया जाए। अत: सरकार इस मांग पर भी पुनर्विचार कर सकती है।
स्रोत: द हिंदू
उत्तराखंड में जैव विविधता उद्यान
प्रीलिम्स के लिये:विश्व पर्यावरण दिवस मेन्स के लिये:जैव विविधता उद्यान से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day- WED) के अवसर पर उत्तराखंड वन विभाग द्वारा हल्द्वानी (Haldwani) में उत्तराखंड का सबसे बड़ा जैव विविधता उद्यान (Biodiversity Park) खोला गया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह ‘जैव विविधता उद्यान ’ उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा उद्यान है।
- पार्क को उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने दो वर्षों में तैयार किया है। पार्क में एक अत्याधुनिक ‘स्वचलित मौसम स्टेशन’ (Automatic Weather Station) भी स्थापित किया गया है।
- इस स्टेशन पर आगामी वर्षों में जलवायु परिवर्तन के बारे में अवलोकन हेतु पर्यावरण के नौ अलग-अलग मापदंडों को पर हर मिनट दर्ज किया जाएगा।
- जैव विविधता उद्यान में आध्यात्मिक और धार्मिक, वैज्ञानिक, मानव स्वास्थ्य और सौंदर्य संबंधी पौधों की प्रजातियों को अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है।
विशेषताएँ:
- ‘जैव विविधता उद्यान’ लगभग 18 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें पौधों की लगभग 500 प्रजातियाँ हैं।
- ‘जैव विविधता उद्यान’ को दस क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। जहाँ जलीय पौधों की 25, कैक्टस की 50, क्लेमर्स की 32, 80 विभिन्न प्रकार के पेड़, झाड़ियों की 43, औषधीय जड़ी-बूटियाँ की 40, ताड़ की 25, बाँस की 60, ऑर्किड की 12, और साइकस की 6 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है।
- नीती माना घाटी (Niti Mana Valley) जैसे विभिन्न इलाके और केदारनाथ के आसपास के कुछ हिमनदों से पौधों की विभिन्न प्रजातियों को पार्क में लाया गया है।
- उद्यान में जुरासिक युग के लाइकेन, काई, शैवाल, फ़र्न और गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े बरगद और अशोक जैसे विशाल वृक्ष को भी संरक्षित किया गया है।
- उद्यान में उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टी (अल्पाइन, भाभर, दोमट, तराई, इत्यादि) को भी प्रदर्शित किया गया है।
उद्देश्य:
- खनन, तस्करी, आग, सूखा, बाढ़ और निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण दुनिया भर में जैव विविधता तेजी से घट रही है। अतः विलुप्त होने के कगार पर खड़े पौधों और इनके जर्मप्लास्म को संरक्षित करना।
- लोगों को जैव विविधता को बचाने के लिये जागरूक करना।
- मानव जीवन में प्रत्येक पौधे के महत्त्व को बताना।
जैव विविधता (Biodiversity) |
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जैव विविधता का महत्त्व |
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स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
राइन नदी के जल स्तर में कमी
प्रीलिम्स के लिये:राइन नदी के बारे में मेन्स के लिये:नदी जल स्तर में कमी तथा इसका औद्योगिक गतिविधियों पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जर्मनी की राइन नदी शुष्क ग्रीष्मकाल के शरुआती दिनों में ही पिछले दो दशकों की तुलना में अपने न्यूनतम जल स्तर पर पहुँच गई है। इसके चलते यूरोप के सबसे महत्त्वपूर्ण अंतर्देशीय जलमार्ग पर शिपिंग में व्यवधान की आशंका व्यक्त की जा रही है।
प्रमुख बिंदु:
- जर्मनी की अंतर्देशीय जलमार्ग एजेंसी के अनुसार, बसंत ऋतु में पर्याप्त वर्षा न होने के कारण फ्रैंकफर्ट के पास काब (Kaub) नामक एक प्रमुख चोकपॉइंट में राइन नदी का जल स्तर 3 जून को लगभग 1 मीटर तक नीचे पहुँच गया है जो पिछले दो दशकों का सबसे निम्नतम स्तर है।
- एजेंसी के आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल की शुरुआत में ही राइन नदी में जल स्तर 40% तक गिर गया था।
- वर्ष 2018 में इस आशंका को व्यक्त किया गया था क्योंकि तब भी जल स्तर इतना कम हो गया था कि नदी औद्योगिक जहाज़ों की आवाजाही के लिये सुगम्य नहीं रही थी।
- इसके चलते उत्तरी सागर के बंदरगाहों पर स्थित कारखानों में कच्चे माल की आपूर्ति बाधित हो गई थी ।
राइन नदी:
- खनिज संपदा से भरपूर औद्योगिक क्षेत्र में बहने के कारण इस नदी का महत्त्व व्यापारिक मार्ग के रूप में अधिक है।
- राइन नदी स्विस आल्प्स में उच्च स्रोत से निकलने के साथ, उत्तरी सागर के मुहाने पर स्थित रॉटरडम बंदरगाह तक लगभग 800 मील (1,300 किलोमीटर) से अधिक की दूरी तय करती है।
- उत्तरी सागर में गिरने से पहले यह यूरोप के महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों को बंदरगाहों के माध्यम से सामान की आपूर्ति करती है।
- इस नदी में जल की आपूर्ति वर्षा के पानी तथा हिमनदों के पिघलन (ग्लेशियल रन-ऑफ) से होती है।
नदी के जल स्तर में कमी के कारण:
- पिछले कुछ वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों पर बर्फ का निर्माण कम हो रहा है।
- वर्तमान में यूरोप द्वारा अत्यधिक शुष्क गर्मी का सामना किया जा रहा है।
- मध्य यूरोप में सामान्य से कम वर्षा के साथ-साथ, शुष्क बसंत मौसम का होना।
- वर्ष 2019 की हीट वेव के कारण भू-जल स्तर भी कम हो गया है। जल स्तर की इस कमी ने मिट्टी तथा वनस्पति की आर्द्रता को भी प्रभावित किया है।
- जर्मनी की अंतर्देशीय जलमार्ग एजेंसी के अनुसार, इस वर्ष जल के सभी सामान्य स्रोतों में कमी देखी गई है।
आर्थिक गतिविधयों पर प्रभाव:
- राइन नदी में जल स्तर की कमी के चलते डीज़ल ईंधन आधारित नावों को यदि काब से आगे जाना है तो वे अपनी कुल क्षमता का 40% ही लोड कर पा रही हैं।
- यूरोप के कारखानों द्वारा डुइसबर्ग (Duisburg) में वैकल्पिक माल परिवहन को बुक किया गया है, ताकि कारखानों में कच्चे माल की आपूर्ति बाधित न हो।
- अगर पानी का स्तर लगातार इसी प्रकार कम बना रहा तो राइन नदी का उपयोग करने वाली रिफाइनरियों को वर्ष 2018 की तुलना में तेल का कम उत्पादन करना पड़ेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
गहरे महासागरीय भागों में माइक्रोप्लास्टिक
प्रीलिम्स के लिये:माइक्रोप्लास्टिक, थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन मेन्स के लिये:थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन एवं पर्यावरणीय प्रदूषण |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने एक अध्ययन में सागरीय जैव विविधता के हॉटस्पॉट माने जाने वाले गहरे समुद्री क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण 'माइक्रोप्लास्टिक हॉटस्पॉट' बनने की संभावना व्यक्त की है।
प्रमुख बिंदु:
- माइक्रोप्लास्टिक को समुद्री सतह के लिये एक प्रमुख प्रदूषक माना जाता है, लेकिन समुद्र के गहरे भागों में इसके विसरण तथा संकेंद्रण को नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाओं के संबंध में सटीक जानकारी का अभाव है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा माइक्रोप्लास्टिक के स्थानिक वितरण एवं इसके गहरे समुद्र में अवतलन की प्रक्रिया तथा गहरे महासागरों के जैव विविधता हॉटस्पॉट पर इसके प्रभावों का अध्ययन किया गया है।
माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic):
- माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से भी छोटे आकर के प्लास्टिक के टुकड़ें होते हैं। इसमें माइक्रोबीड्स भी (एक मिलीमीटर से कम आकार के ठोस प्लास्टिक कण) शामिल हैं जो सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकते हैं।
- सौंदर्य प्रसाधन तथा व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों के अलावा अधिकांश माइक्रोप्लास्टिक्स का निर्माण ऐसे प्लास्टिक, जिनका पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है, के सूर्य के तापन या अन्य भौतिक क्रियाओं के कारण टूटने से होता है।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष:
- ऐसा माना गया है की जिस प्रकार 'थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन' (Thermohaline Circulations) अवसादों के समुद्र तल में जमाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है उसी प्रकार यह माइक्रोप्लास्टिक के वितरण को नियंत्रित करके माइक्रोप्लास्टिक हॉटस्पॉट का निर्माण कर सकता है।
- थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन से उत्पन्न धाराएँ गहरे सागरीय भागों में ऑक्सीजन तथा पोषक तत्वों की आपूर्ति करती हैं, इसलिये गहरे सागरीय भागों के 'जैव विविधता हॉटस्पॉट' के 'माइक्रोप्लास्टिक हॉटस्पॉट' में बदलने की संभावना है।
- इन गहरे सागरीय भागों में पाए जाने बेंथोस अर्थात तलीय जीव माइक्रोप्लास्टिक से प्रभावित हो सकते हैं।
थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन (Thermohaline Circulations):
- महासागरीय धाराएँ सामान्यत: समुद्री सतह से 100 मीटर ऊँचाई तक चलने वाली वायु द्वारा उत्पन्न होती हैं। हालाँकि समुद्र के गहरे भागों में भी समुद्री धाराएँ पाई जाती हैं।
- सागरीय धाराओं को उनकी गहराई के आधार पर 2 वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- सतही धाराएँ (Surface Currents):
- ये धाराएँ महासागरीय सतह से 400 मीटर गहराई तक चलती हैं तथा महासागरों के संपूर्ण जल के लगभग 10% भाग का प्रतिनिधित्त्व करती हैं।
- गहरी महासागरीय धाराएँ (Deep Ocean Currents):
- ये धाराएँ 90% समुद्री जल का वहन करती हैं। ये धाराएँ पानी के घनत्व में अंतर से उत्पन्न होती हैं, जिसे तापमान (Thermo) और लवणता (Haline) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- इस घनत्व में अंतर के कारण उत्पन्न होने वाली सागरीय धाराओं की प्रक्रिया को थर्मोहैलाइन सर्कुलेशन के रूप में जाना जाता है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों में सागरीय जल के शीतित होने पर हिम का निर्माण होता है जिससे इन क्षेत्रों में सागरीय जल की लवणता बढ़ जाती है। यह ध्यातव्य है कि जल के हिम में बदलने पर लवण अवशिष्ट के रूप में रह जाता है।
- सागरीय जल की लवणता बढ़ने पर जल का घनत्व भी बढ़ जाता है तथा सागरीय जल भारी होने के कारण अवतलित होने लगता है इससे ध्रुवीय क्षेत्र की ओर विषुवतीय सतही जल अपवाहित होने लगता है ताकि प्रतिसंतुलन बना रहे। इस प्रकार गहरे सागरीय भागों में समुद्री धाराएँ उत्पन्न हो जाती है।
आगे की राह:
- ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ (Single Use Plastic) जैसे- प्लास्टिक की थैलियाँ, स्ट्रॉ, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांशतः खाद्य पैकेजिंग के लिये प्रयुक्त होने वाली प्लास्टिक के उपयोग में कमी को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है क्योंकि यह प्लास्टिक प्रदूषण का प्रमुख तथा खतरनाक स्रोत है।
- प्लास्टिक के पुन: चक्रण को बढ़ावा देने वाली परियोजनाओं के लिये कर छूट, अनुसंधान, सार्वजनिक-निजी भागीदारी आदि को समर्थन देने की आवश्यकता है।
- जैव-निम्नीकरणीय प्लास्टिक के निर्माण को, जैसे बैगास (गन्ने से रस निकालने के बाद का अवशेष) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जून, 2020
कोल एक्सचेंज
कोयला क्षेत्र (Coal Sector) में सरकारी एकाधिकार को पूरी तरह से समाप्त करने की घोषणा की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत सरकार ने देश में एक कोयला व्यापार मंच स्थापित करने का निर्णय लिया है। कोयले के व्यापार के लिये एक्सचेंज स्थापित करने का अर्थ है कि अब ईंधन आपूर्ति समझौता (Fuel Supply Agreement) समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार देश में कमोडिटी एक्सचेंज (Commodity Exchange) की तर्ज़ पर ‘कोल एक्सचेंज’ (Coal Exchange) के माध्यम से एक नियामक के ज़रिये कोयले की खरीद-बिक्री की जा सकेगी। इस संबंध में तैयार किये गए प्रस्ताव के अनुसार, देश में होने वाले कोयला उत्पादन का पूरा हिस्सा ‘कोल एक्सचेंज’ में ट्रेडिंग के लिये रखा जाएगा। ‘कोल एक्सचेंज’ एक प्रकार का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म होगा, जहाँ कीमत के संदर्भ में पारदर्शिता होगी। यह कीमत मांग और पूर्ति के अनुसार निर्धारित की जा सकेगी। इस कदम का उद्देश्य भारत में कोयले के उत्पादन को बढ़ाना और आयातित कोयले पर निर्भरता को कम करना है। कोयला भंडार की उपलब्धता के मामले में विश्व में पाँचवे स्थान पर होने के बावजूद भी भारत को कोयले का आयात करना पड़ता है। वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष स्थानीय कोल उत्पादन लगभग 700-800 मिलियन टन है, जबकि प्रतिवर्ष औसतन लगभग 150-200 मिलियन टन कोयले का आयात किया जाता है। वर्ष 1973 में भारत में कोयले के राष्ट्रीकरण के बाद वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) की स्थापना की गई थी। वर्तमान में देश के कुल कोयला उत्पादन में CIL की भागीदारी लगभग 82% है।
वंदे उत्कल जननी गीत
हाल ही में ओडिशा सरकार ने कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र (Kantakabi Laxmikanta Mohapatra) द्वारा रचित एक देशभक्ति गीत ‘वंदे उत्कल जननी' को राज्यगीत का दर्जा दिया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में आयोजित मंत्रिमंडल की बैठक में ‘वंदे उत्कल जननी' गीत को सरकार मान्यता देने संबंधी निर्णय लिया गया है। ‘वंदे उत्कल जननी’ गीत की रचना कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र द्वारा वर्ष 1910 में की गई थी। यह गीत सर्वप्रथम वर्ष 1912 में उत्कल सम्मिलनी (Utkal Sammilani) की बैठक में गाया गया था और तभी से यह उत्कल सम्मिलनी की सभी बैठकों में गाया जाता है। उत्कल सम्मिलनी स्वतंत्रता सेनानी मधुसूदन दास द्वारा स्थापित एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1936 में जब ओडिशा एक अलग राज्य बना, तब भी इस गीत को गाया गया था। सर्वप्रथम वर्ष 1994 में ओडिशा विधानसभा ने प्रत्येक सत्र के अंत में ‘वंदे उत्कल जननी’ गीत गाने का संकल्प किया था। तभी से इसे राज्य गीत बनाने पर कई विचार-विमर्श किया जा रहा है। वर्ष 2000 और और वर्ष 2006 में भी इस गीत को सरकारी मान्यता देने की मांग उठी थी। ओडिया कवि लक्ष्मीकांत महापात्र का जन्म 9 दिसंबर, 1888 को ओडिशा के भद्रक ज़िले में हुआ था।
भारत और डेनमार्क के बीच बिजली क्षेत्र में क्षेत्र के सहयोग के लिये समझौता
हाल ही में भारत और डेनमार्क ने समानता, पारस्पारिक आदान-प्रदान और आपसी लाभ के आधार पर बिजली क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य मज़बूत, गहरा और दीर्घकालिक सहयोग विकसित करने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। समझौते में अपतटीय पवन ऊर्जा, दीर्घकालीन ऊर्जा नियोजन, ग्रिड में लचीलापन, बिजली खरीद समझौते में लचीलापन आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग की बात कही गई है। समझौता ज्ञापन के अंतर्गत चिह्नित बिंदुओं के कार्यान्वयन के लिये एक संयुक्त कार्य दल (Joint Working Group-JWG) स्थापित किया जाएगा। JWG की अध्यक्षता संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी। समझौता ज्ञापन के माध्यम से पहचाने गए क्षेत्रों में पारस्परिक लाभ के लिये बिजली क्षेत्र में रणनीतिक और तकनीकी सहयोग को प्रोत्साहित करने तथा बढ़ावा देने के लिये सरकार आवश्यक कदम उठाने का प्रयास करेगी। वर्ष 1957 में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की डेनमार्क यात्रा के साथ भारत और डेनमार्क के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधों की शुरुआत हुई थी।
मोनिका कपिल मोहता
वरिष्ठ राजनयिक मोनिका कपिल मोहता को स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) में भारत की नई राजदूत नियुक्त किया गया है। मोनिका कपिल मोहता वर्ष 1985 बैच की भारतीय विदेश सेवा (IFS) की अधिकारी हैं और वर्तमान में स्वीडन (Sweden) में भारत की राजदूत हैं। इससे पूर्व वे विदेश मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (दक्षिण) के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं। भारत और स्विट्ज़रलैंड के मध्य भारतीय स्वतंत्रता के बाद से सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं, जो लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के साझा मूल्यों पर आधारित हैं। ऐतिहासिक रूप से ही भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति और स्विट्ज़रलैंड की तटस्थता की पारंपरिक नीति दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ संबंधों का एक कारण रही है। स्विट्ज़रलैंड ने भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही भारत के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लिये थे और 14 अगस्त, 1948 को नई दिल्ली में भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच मित्रता संधि (Treaty of Friendship) पर हस्ताक्षर किये गए थे। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत, स्विटज़रलैंड का 8वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।