राष्ट्रीय शारीरिक साक्षरता मिशन
प्रिलिम्स के लिये:संविधान का अनुच्छेद 21, जनहित याचिका। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय शारीरिक साक्षरता मिशन, खेल, युवा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत खेलों को स्पष्ट रूप से मौलिक अधिकार बनाने की सिफारिश करने वाली एक रिपोर्ट का जवाब देने को कहा है।
- इसके अलावा न्यायालय के न्याय मित्र (Court’s Amicus Curiae) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि "संकीर्ण" शब्दावली 'खेल' को 'शारीरिक साक्षरता' से बदल दिया जाए, यह ऐसा शब्द है जो "विश्व के अग्रणी खेल राष्ट्रों में दृढ़ता से एक अधिकार के रूप में स्थापित है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आधार:
- खेल को मौलिक अधिकार बनाने एवं खेल शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु इसे राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में शामिल करने के लिये संविधान में संशोधन करने हेतु जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी।
- इसमें मांग की गई थी कि केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी कार्य को सुविधाजनक बनाने के लिए खेलों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाना चाहिये (वर्तमान में खेल एक राज्य का विषय है)।
रिपोर्ट में दिये गए सुझाव:
- रिस्पांसिबिलिटी मैट्रिक्स: केंद्र सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय 'शारीरिक साक्षरता मिशन' शुरू किया जाना चाहिये।
- मिशन को ज़िम्मेदारियों के मैट्रिक्स को लागू करना चाहिये जिसमें पाठ्यक्रम डिज़ाइन, अनुपालन निगरानी और समीक्षा, शिकायत निवारण व आत्म-सुधार तंत्र शामिल हों। जो बच्चों को स्कूल स्तर पर विभिन्न खेलों में प्रशिक्षित करने हेतु आवश्यक हैं।
- खेल के लिये समर्पित समय: सीबीएसई, आईसीएसई, राज्य बोर्ड, आईजीसीएसई सहित सभी स्कूल बोर्डों को यह सुनिश्चित करने के लिये निर्देशित किया जाना चाहिये कि 2022-2023 से शुरू होने वाले शैक्षणिक वर्ष से प्रत्येक स्कूल दिवस में कम-से-कम 90 मिनट खेलने के लिये समर्पित हों।
- मुफ्त में खेल सुविधाएँ: राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वर्तमान शैक्षणिक वर्ष से सभी शिक्षण संस्थान अपने गैर-कार्य वाले घंटों में पड़ोस के बच्चों को अपने खेल के मैदानों और खेल सुविधाओं का मुफ्त में उपयोग करने की अनुमति दें।
- 'भौतिक साक्षरता नीति' का मसौदा: शैक्षणिक संस्थानों को 'भौतिक साक्षरता नीति' का मसौदा तैयार करने के लिये 80 दिनों का समय दिया जाना चाहिये।
- इस नीति में 'कोई भी बच्चा पीछे न छूटे' दृष्टिकोण के लिये संस्थान की प्रतिबद्धता शामिल होगी।
- यह सुनिश्चित करना चाहिये कि संस्थान की शारीरिक साक्षरता गतिविधियों को इस तरह से डिज़ाइन और वितरित किया जाए जो छात्रों के लिये समावेशी हो।
- आंतरिक समिति: विशिष्ट मामलों को संबोधित करने के लिये एक आंतरिक समिति बनाने की आवश्यकता है, जो छात्रों को शारीरिक साक्षरता का अधिकार देने के उत्तरदायित्त्व की विफलता संबंधी मामलों की जाँच करे।
- डैशबोर्ड: देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में उपलब्ध खेल मैदानों और खुले स्थानों की मैपिंग व उनके उपयोग की दर, शारीरिक शिक्षा शिक्षकों की उपलब्धता तथा योग्यता, पाठ्यक्रम, समय सारिणी एवं उपकरणों पर रियल टाइम डेटा के साथ एक डैशबोर्ड बनाने की आवश्यकता है।
शारीरिक शिक्षा, शारीरिक गतिविधि और खेल का अंतर्राष्ट्रीय चार्टर:
- शारीरिक शिक्षा, शारीरिक गतिविधि और खेल का अंतर्राष्ट्रीय घोषणा-पत्र एक अधिकार आधारित दस्तावेज़ है जो खेल संबंधी नीति और निर्णयन कार्य, मार्गदर्शन और समर्थन करता है।
- यह बिना किसी भेदभाव के सभी के लिये खेल तक समावेशी पहुँच को बढ़ावा देता है। यह खेल कार्यक्रमों और नीतियों को बनाने, लागू करने तथा मूल्यांकन करने वाले सभी कार्यकर्त्ताओं के लिये नैतिक व गुणवत्ता मानकों को निर्धारित करता है।
- इसे यूनेस्को के आम सम्मेलन (1978) के 20वें सत्र में इसे अपनाया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और खेल:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में खेलों को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।
- खेल, जिसे पहले पाठ्येतर गतिविधि माना जाता था, अब पाठ्यक्रम का हिस्सा माना जा रहा है और खेल में ग्रेडिंग को बच्चों की शिक्षा में भी शामिल किया जाएगा।
- उच्च शिक्षण संस्थान और खेल विश्वविद्यालय भी स्थापित किये जा रहे हैं। खेल विज्ञान एवं खेल प्रबंधन को स्कूल स्तर तक ले जाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे युवाओं के करियर की संभावनाओं में सुधार होगा तथा खेल अर्थव्यवस्था में भारत की उपस्थिति बढ़ेगी।
खेल को बढ़ावा देने के लिये योजनाएँ:
- खेलो इंडिया योजना
- राष्ट्रीय खेल संघों को सहायता
- अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों में विजेताओं और उनके प्रशिक्षकों को विशेष पुरस्कार
- राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, मेधावी खिलाड़ियों को पेंशन
- पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय खेल कल्याण कोष
- राष्ट्रीय खेल विकास कोष
- भारतीय खेल प्राधिकरण के माध्यम से खेल प्रशिक्षण केंद्रों का संचालन।
स्रोत: द हिंदू
जन सुरक्षा योजनाओं के सात वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली। मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, इन योजनाओं का महत्त्व, कल्याणकारी योजनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
देश के असंगठित वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से सुरक्षित करने के उद्देश्य से सरकार ने दो बीमा योजनाएँ- PMJJBY और PMSBY शुरू कीं एवं वृद्धावस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ने APY की शुरुआत की।
- इन योजनाओं का उद्घाटन पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में प्रधानमंत्री द्वारा मई 2015 में किया गया था।
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना:
- योजना: यह एक वर्षीय दुर्घटना बीमा योजना है जो प्रतिवर्ष नवीनीकृत होती है और दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता के लिये बीमा कवरेज प्रदान करती है।
- अर्हता: यह योजना 18 से 70 वर्ष की आयु समूह के उन लोगों के लिये है, जिनका किसी बैंक में खाता है जिसमें से स्वतः डेबिट सुविधा के ज़रिये प्रीमियम वसूल किया जाता है।
- लाभ: प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 12 रुपए वार्षिक प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर प्रदान किया जाता है और दुर्घटना में मृत्यु होने पर बीमा राशि का भुगतान किया जाता है।
- उपलब्धियाँ: वर्तमान में इस योजना के तहत कुल 28.37 करोड़ से अधिक नामांकन किये गए हैं और 97,227 दावों के लिये कुल 1,930 करोड़ की राशि का भुगतान किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना:
- योजना: यह एक वर्षीय जीवन बीमा योजना है जो प्रतिवर्ष नवीनीकृत होती है और किसी भी कारण से हुई मौत के लिये बीमा कवरेज प्रदान करती है।
- अर्हता: प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना 18 से 50 वर्ष की आयु समूह के उन लोगों के लिये उपलब्ध है, जिनका कोई बैंक खाता होगा जिसमें से स्वतः डेबिट सुविधा के ज़रिये प्रीमियम वसूल किया जा सकता है।
- लाभ: इस योजना के तहत 330 रुपए वार्षिक (प्रतिदिन 1 रुपए से कम) प्रीमियम देने पर 2 लाख रुपए का जीवन बीमा मिलता है। इस योजना में दुर्घटना के साथ-साथ सामान्य मृत्यु पर भी बीमा राशि मिलती है।
- उपलब्धि: इस योजना के तहत संचयी नामांकन 12.76 करोड़ से अधिक और 5,76,121 दावों के लिये 11,522 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया जा चुका है।
अटल पेंशन योजना:
- पृष्ठभूमि: यह योजना मई 2015 में सभी भारतीयों, विशेष रूप से गरीबों, वंचितों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
- यह असंगठित क्षेत्र के लोगों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने और भविष्य की ज़रूरतों को कवर करने के लिये सरकार की एक पहल है।
- प्रशासित: इस योजना को एनपीएस के माध्यम से ‘पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण’ द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- योग्यता: इस योजना में 18-40 वर्ष के बीच की आयु वाला भारत का कोई भी नागरिक शामिल हो सकता है। इस योजना में देर से शामिल होने वाले ग्राहक की योगदान राशि ज़्यादा और जल्दी शामिल होने वाले ग्राहक की योगदान राशि कम होती है।
- लाभ: यह अभिदाताओं को उनके योगदान के अनुसार 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 1000 रुपए से 5000 रुपए तक की न्यूनतम गारंटीड पेंशन प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार द्वारा योगदान: सरकार द्वारा न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी जाएगी, अर्थात यदि योगदान के आधार पर संचित कोष निवेश पर अनुमानित रिटर्न से कम अर्जित करता है और न्यूनतम गारंटीकृत पेंशन प्रदान करने के लिये अपर्याप्त है, तो केंद्र सरकार ऐसी अपर्याप्तता को निधि देगी।
- वैकल्पिक रूप से यदि निवेश पर प्रतिफल अधिक है तो अभिदाताओं को बढ़े हुए पेंशन लाभ प्राप्त होंगे।
- भुगतान आवृत्ति: अभिदाता मासिक/तिमाही/अर्द्धवार्षिक आधार पर अटल पेंशन योजना में अंशदान कर सकते हैं।
- उपलब्धि: अब तक 4 करोड़ से अधिक व्यक्तियों ने इस योजना की सदस्यता ली है।
पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA):
- यह राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के व्यवस्थित विकास को विनियमित करने, बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के लिये संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक प्राधिकरण है।
- यह वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Service) के अंतर्गत काम करता है।
योजनाओं का महत्त्व:
- ये तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाएंँ नागरिकों के कल्याण के लिये समर्पित हैं जो अप्रत्याशित जोखिमों/नुकसानों और वित्तीय अनिश्चितताओं से मानव जीवन को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- PMJJBY और PMSBY लोगों को कम लागत वाले जीवन/दुर्घटना बीमा कवर तक पहुंँच प्रदान करते हैं, जबकि APY वर्तमान बचत को बढ़ावा देकर बुढ़ापे में नियमित पेंशन प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
- इन योजनाओं में पिछले सात वर्षों से लाभान्वित और नामांकित लोगों की संख्या इसकी सफलता का प्रमाण है।
- ये कम लागत वाली बीमा योजनाएंँ और गारंटीड पेंशन योजना यह सुनिश्चित करती है कि वित्तीय सुरक्षा जो पहले कुछ चुनिंदा लोगों के लिये उपलब्ध थी, अब समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंँच रही है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न . 'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C |
गोपाल कृष्ण गोखले
प्रिलिम्स के लिये:गोपाल कृष्ण गोखले, भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस। मेन्स के लिये:आधुनिक भारतीय इतिहास, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व। |
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने गोपाल कृष्ण गोखले को उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
- गोपाल कृष्ण गोखले एक महान समाज सुधारक और शिक्षाविद थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अनुकरणीय नेतृत्त्व प्रदान किया।
गोपाल कृष्ण गोखले:
- जन्म: इनका जन्म 9 मई, 1866 को वर्तमान महाराष्ट्र (तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा) के कोटलुक गाँव में हुआ था।
विचारधारा:
- गोखले ने सामाजिक सशक्तीकरण, शिक्षा के विस्तार और तीन दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कार्य किया तथा प्रतिक्रियावादी या क्रांतिकारी तरीकों के इस्तेमाल को खारिज किया।
औपनिवेशिक विधानमंडलों में भूमिका:
- वर्ष 1899 से 1902 के बीच वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे और वर्ष 1902 से 1915 तक उन्होंने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम किया।
- इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम करने के दौरान गोखले ने वर्ष 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में भूमिका:
- वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) के नरम दल से जुड़े थे (वर्ष1889 में शामिल)।
- बनारस अधिवेशन 1905 में वह INC के अध्यक्ष बने।
- यह वह समय था जब ‘नरम दल’ और लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा अन्य के नेतृत्त्व वाले ‘गरम दल’ के बीच व्यापक मतभेद पैदा हो गए थे। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में ये दोनों गुट अलग हो गए।
- वैचारिक मतभेद के बावजूद वर्ष 1907 में उन्होंने लाला लाजपत राय की रिहाई के लिये अभियान चलाया, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा म्याँमार की मांडले जेल में कैद किया गया था।
संबंधित सोसाइटी तथा अन्य कार्य:
- भारतीय शिक्षा के विस्तार के लिये वर्ष 1905 में उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (Servants of India Society) की स्थापना की।
- वह महादेव गोविंद रानाडे द्वारा शुरू की गई 'सार्वजनिक सभा पत्रिका' से भी जुड़े थे।
- वर्ष 1908 में गोखले ने रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की।
- उन्होंने अंग्रेज़ी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘द हितवाद’ की शुरुआत की।
गांधी के गुरु के रूप में:
- एक उदार राष्ट्रवादी के रूप में महात्मा गांधी ने उन्हें राजनीतिक गुरु माना था।
- महात्मा गांधी ने गुजराती भाषा में गोपाल कृष्ण गोखले को समर्पित एक पुस्तक 'धर्मात्मा गोखले' लिखी।
मॉर्ले-मिंटो सुधार 1909:
- इसके द्वारा भारत सचिव की परिषद, वायसराय की कार्यकारी परिषद तथा बंबई और मद्रास की कार्यकारी परिषदों में भारतीयों को शामिल गया। विधानपरिषदों में मुस्लिमों हेतु अलग निर्वाचक मंडल की बात की गई।
- भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा इन सुधारों को अत्यधिक एहतियाती माना गया तथा मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचक मंडल के प्रावधान से हिंदू नाराज़ थे।
- केंद्रीय और प्रांतीय विधानपरिषदों के आकार में वृद्धि की गई।
- इस अधिनियम ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी।
- केंद्र और प्रांतों में विधानपरिषदों के सदस्यों की चार श्रेणियाँ थीं जो इस प्रकार हैं:
- पदेन सदस्य: गवर्नर-जनरल और कार्यकारी परिषद के सदस्य।
- मनोनीत सरकारी सदस्य: सरकारी अधिकारी जिन्हें गवर्नर-जनरल द्वारा नामित किया गया था।
- मनोनीत गैर-सरकारी सदस्य: ये गवर्नर-जनरल द्वारा नामित थे लेकिन सरकारी अधिकारी नहीं थे।
- निर्वाचित सदस्य: विभिन्न वर्गों से चुने हुए भारतीय।
- निर्वाचित सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाना था।
- भारतीयों को पहली बार इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल (Imperial Legislative Council) की सदस्यता प्रदान की गई।
- मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचक मंडल की बात की गई।
- कुछ निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिमों हेतु निश्चित किये गए जहाँ केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही अपने प्रतिनिधियों के लिये मतदान कर सकते थे।
- सत्येंद्र पी. सिन्हा वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय सदस्य थे।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसने नाइटहुड की उपाधि को अस्वीकार और भारत के लिये राज्य सचिव की परिषद में पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया? (2008) (A) मोतीलाल नेहरू उत्तर: (C) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय रुपए का अवमूल्यन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रुपए का अवमूल्यन, मुद्रा अवमूल्यन, मुद्रास्फीति, मूल्यह्रास बनाम अवमूल्यन, अभिमूल्यन और अवमूल्यन मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था पर भारतीय रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 77.44 के अब तक के सबसे निम्न स्तर पर आ गया है।
प्रमुख बिंदु
अवमूल्यन:
- अवमूल्यन के बारे में:
- मुद्रा का मूल्यह्रास/अवमूल्यन का आशय अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट से है।
- रुपए के मूल्यह्रास का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का कमज़ोर होना।
- इसका मतलब है कि रुपया अब पहले की तुलना में कमज़ोर है।
- उदाहरण के लिये पहले एक अमेरिकी डाॅलर 70 रुपए के बराबर हुआ करता था। अब एक अमेरिकी डाॅलर 77 रुपए के बराबर है जिसका अर्थ है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हुआ है यानी एक डॉलर को खरीदने में अधिक रुपए लगते हैं।
- भारतीय रुपए के अवमूल्यन का प्रभाव:
- रुपए में गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये एक दोधारी तलवार (नकारात्मक एवं सकारात्मक) की भांँति होती है।
- सकारात्मक प्रभाव:
- सैद्धांतिक रूप से कमजोर रुपए को भारत के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिये, लेकिन अनिश्चितता और कमजोर वैश्विक मांग के माहौल में रुपए के बाहरी मूल्य में गिरावट उच्च निर्यात में परिवर्तित नहीं हो सकती है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है।
- भारत अपनी घरेलू तेल आवश्यकता के दो-तिहाई से अधिक की पूर्ति आयात के माध्यम से करता है।
- भारत खाद्य तेलों के शीर्ष आयातक देशों में से एक है। एक कमज़ोर मुद्रा आयातित खाद्य तेल की कीमतों को और अधिक बढ़ाएगी तथा उच्च खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगी।
- सकारात्मक प्रभाव:
- रुपए में गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये एक दोधारी तलवार (नकारात्मक एवं सकारात्मक) की भांँति होती है।
मुद्रा का अभिमूल्यन और अवमूल्यन:
- लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
- मुद्रा अभिमूल्यन: यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।
- सरकार की नीति, ब्याज दरों, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
- मुद्रा अभिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।
अवमूल्यन और मूल्यह्रास:
- यदि प्रशासनिक कार्रवाई से भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट आती है, तो यह अवमूल्यन है।
- मूल्यह्रास और अवमूल्यन के लिये प्रक्रिया अलग है, प्रभाव के संदर्भ में कोई अंतर नहीं है।
- भारत वर्ष 1993 तक विनिमय की प्रशासित या निश्चित दर का पालन करता था, जब वह बाज़ार-निर्धारित प्रक्रिया या अस्थायी विनिमय दर आधारित था।
- चीन अभी भी पूर्व नीति का पालन करता है।
भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण:
- इक्विटी की बिक्री:
- वैश्विक इक्विटी बाज़ारों में सरकारी विक्रय, जो अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (केंद्रीय बैंक) द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि, यूरोप में युद्ध, चीन में कोविड-19 उछाल के कारण विकास संबंधी चिंताओं की वजह बना, के चलते रुपए का मूल्यह्रास हुआ।
- डॉलर का बहिर्वाह:
- डॉलर का बहिर्वाह कच्चे तेल की उच्च कीमतों का परिणाम है और इक्विटी बाज़ारों में सुधार भी डॉलर के प्रतिकूल प्रवाह का कारण बन रहा है।
- मौद्रिक नीति का सख्त होना:
- बढ़ती मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिये मौद्रिक नीति को सख्त करने के लिये आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों से भी मूल्यह्रास हुआ है।
रुपए के मूल्यह्रास का समग्र अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- रुपए के कमज़ोर होने से चालू खाता घाटे का बढ़ना, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी जैसी स्थिति सामने आती है।
- अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से कच्चे तेल की ऊंँची कीमतों और अन्य महत्वपूर्ण आयातों के कारण लागत-जन्य मुद्रास्फीति की ओर बढ़ रही है।
- लागत-जन्य मुद्रास्फीति (जिसे वेज-पुश इन्फ्लेशन के रूप में भी जाना जाता है) तब होती है जब मजदूरी और कच्चे माल की लागत में वृद्धि के कारण समग्र कीमतों में वृद्धि (मुद्रास्फीति) होती है।
- कंपनियों को उच्च लागत का बोझ पूरी तरह से उपभोक्ताओं पर डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि इससे सरकारी लाभांश आय प्रभावित होने के साथ बजटीय राजकोषीय घाटे पर सवाल उठते हैं।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019) (A) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना। उत्तर: (D)
अतः विकल्प (D) सही है। प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (A)
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स्रोत: द हिंदू
इथेनॉल सम्मिश्रण
प्रिलिम्स के लिये:इथेनॉल सम्मिश्रण, जैव ईंधन, कच्चा तेल, जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018 मेन्स के लिये:इथेनॉल सम्मिश्रण और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत में पेट्रोल में एथेनॉल सम्मिश्रण का स्तर 9.99% तक पहुंँच गया है।
इथेनॉल सम्मिश्रण:
- यह प्रमुख जैव ईंधनों में से एक है, जो प्रकृतिक रूप से खमीर अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से शर्करा के किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है।
- इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP): इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना और किसानों की आय को बढ़ाना है।
- सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से परिवर्तित कर वर्ष 2025 तक कर दिया है।
इथेनॉल सम्मिश्रण का महत्त्व:
- पेट्रोलियम पर कम निर्भरता:
- इथेनॉल को गैसोलीन में मिलाकर यह कार चलाने के लिये आवश्यक पेट्रोल की मात्रा को कम कर सकता है जिससे आयातित महंँगे और प्रदूषणकारी पेट्रोलियम पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
- आज भारत अपनी ज़रूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है।
- इथेनॉल को गैसोलीन में मिलाकर यह कार चलाने के लिये आवश्यक पेट्रोल की मात्रा को कम कर सकता है जिससे आयातित महंँगे और प्रदूषणकारी पेट्रोलियम पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
- पैसे की बचत/लागत में कमी:
- भारत का शुद्ध पेट्रोलियम आयात 2020-21 में 185 मिलियन टन था जिसकी लागत 551 बिलियन अमेरिकी डाॅलर थी।
- अधिकांश पेट्रोलियम उत्पादों का उपयोग परिवहन में किया जाता है, अतः E20 कार्यक्रम देश के लिये सालाना 4 बिलियन अमेरिकी डाॅलर बचा सकता है।
- कम प्रदूषण:
- इथेनॉल कम प्रदूषणकारी ईंधन है और पेट्रोल की तुलना में कम लागत पर समान दक्षता प्रदान करता है।
- अधिक कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता, खाद्यान्न और गन्ने के बढ़ते उत्पादन के कारण अधिशेष, संयंत्र-आधारित स्रोतों से इथेनॉल का उत्पादन करने के लिये प्रौद्योगिकी की उपलब्धता तथा इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) के अनुरूप वाहनों को बनाने की व्यवहार्यता रोडमैप में उपयोग किये जाने वाले कुछ सहायक कारक हैं। E20 लक्ष्य "न केवल एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है, बल्कि इसे एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक आवश्यकता" के रूप में संदर्भित किया गया है।
- इथेनॉल कम प्रदूषणकारी ईंधन है और पेट्रोल की तुलना में कम लागत पर समान दक्षता प्रदान करता है।
संबंधित मुद्दे:
- जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति:
- नया इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य मुख्य रूप से अनाज के अधिशेष और प्रौद्योगिकियों की व्यापक उपलब्धता के आलोक में खाद्य-आधारित कच्चे माल पर केंद्रित है।
- जैव ईंधन पर 2018 की राष्ट्रीय नीति का ब्लूप्रिंट इस क्रम में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसमें जैव ईंधन के उत्पादन के लिये घास ,शैवाल व खोई, खेत और वानिकी के अवशेष जैसी सेल्यूलोसिक सामग्री एवं चावल, गेहूँ और मकई से निकले भूसे जैसी वस्तुओं को प्राथमिकता दी गई थी।
- नया इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य मुख्य रूप से अनाज के अधिशेष और प्रौद्योगिकियों की व्यापक उपलब्धता के आलोक में खाद्य-आधारित कच्चे माल पर केंद्रित है।
- भुखमरी का खतरा:
- गरीबों के लिये दिया जाने वाला खाद्यान्न, आसवनियों(Distilleries) को उन कीमतों पर बेचा जा रहा है जिस कीमत पर राज्य अपने सार्वजनिक वितरण नेटवर्क के लिये भुगतान करते हैं।
- सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिये आसवनियों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बीच प्रतिस्पर्द्धा ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों हेतु प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न कर सकती है और उनके बीच भुखमरी के जोखिम को बढ़ा सकती है।
- विश्व भूख सूचकांक 2021 में भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर है।
- गरीबों के लिये दिया जाने वाला खाद्यान्न, आसवनियों(Distilleries) को उन कीमतों पर बेचा जा रहा है जिस कीमत पर राज्य अपने सार्वजनिक वितरण नेटवर्क के लिये भुगतान करते हैं।
- लागत:
- जैव ईंधन के उत्पादन के लिये भूमि की आवश्यकता होती है, इससे जैव ईंधन की लागत के साथ-साथ खाद्य फसलों की लागत भी प्रभावित होती है।
- जल उपयोग:
- जैव ईंधन फसलों की उचित सिंचाई के साथ-साथ ईंधन के निर्माण के लिये भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, जो स्थानीय और क्षेत्रीय जल संसाधनों को प्रभावित कर सकता है।
- दक्षता:
- जीवाश्म ईंधन कुछ जैव ईंधन की तुलना में अधिक ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिये 1 गैलन इथेनॉल (जीवाश्म ईंधन), 1 गैलन गैसोलीन (जीवाश्म ईंधन) की तुलना में कम ऊर्जा पैदा करता है।
आगे की राह
- अपशिष्ट से इथेनॉल: भारत के पास टिकाऊ जैव ईंधन नीति में वैश्विक नेता बनने का एक वास्तविक अवसर है यदि वह अपशिष्ट से बने इथेनॉल पर फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
- यह मज़बूत जलवायु और वायु गुणवत्ता दोनों में लाभ प्रदान करेगा क्योंकि वर्तमान में इन अपशिष्ट को अक्सर जलाया जाता है, जो स्मॉग का कारण बनता है।
- जल संकट: नई इथेनॉल नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह किसानों को जल-गहन फसलों की ओर न ले जाए और देश के ऐसे क्षेत्रों में जल संकट पैदा न हो जहाँ इसकी पहले से ही गंभीर कमी है।
- गेहूँ के साथ-साथ चावल और गन्ने में भारत के सिंचाई जल का लगभग 80% का उपयोग होता है।
- फसल उत्पादन को प्राथमिकता देना: हमारे घटते भूजल संसाधनों, कृषि योग्य भूमि की कमी, अनिश्चित मानसून और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार में गिरावट के साथ ईंधन के लिये फसलों पर खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- वैकल्पिक तंत्र:
- मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उत्सर्जन में कमी, वैकल्पिक तंत्र, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाना, अतिरिक्त नवीकरणीय उत्पादन क्षमता की स्थापना, शून्य-उत्सर्जन रिचार्जिंग की अनुमति देना आदि का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
प्रिलिम्स के लिये:सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना, केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ। मेन्स के लिये:एमपीलैड योजना का महत्त्व और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के नियमों में संशोधन किया है, जहाँ पर मिलने वाले ब्याज को भारत की संचित निधि में जमा किया जाएगा।
- अब तक इस फंड पर मिलने वाले ब्याज को MPLADS खाते में जोड़ा जाता था और विकास परियोजनाओं के लिये इस्तेमाल किया जा सकता था।
भारत की संचित निधि:
- संविधान के अनुच्छेद 266(1) के अनुसार, सरकार को मिलने वाले सभी राजस्वों, जैसे- सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, आयकर, संपदा शुल्क, अन्य कर एवं शुल्क और सरकार द्वारा दिये गए ऋणों की वसूली से जो धन प्राप्त होता है, वे सभी संचित निधि में जमा किये जाते हैं।
- इसी प्रकार सरकार द्वारा सार्वजनिक अधिसूचना, ट्रेज़री बिल (आंतरिक ऋण) और विदेशी सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (बाहरी ऋण) के माध्यम से केंद्र द्वारा लिये गए सभी ऋणों को इस कोष में जमा किया जाता है।
- सभी सरकारी व्यय इसी निधि से पूरे किये जाते हैं (असाधारण मदों को छोड़कर जो लोक लेखा निधि या सार्वजनिक निधि से संबंधित हैं) और संसद के प्राधिकरण के बिना निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती।
एमपीलैड (MPLAD) योजना:
- MPLAD के बारे में:
- MPLAD एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी।
- उद्देश्य:
- मुख्य रूप से अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों आदि के क्षेत्र में टिकाऊ सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर ज़ोर देते हुए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने हेतु सांसदों को सक्षम बनाना।
- जून 2016 से MPLAD फंड का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan), सुगम्य भारत अभियान (Sugamya Bharat Abhiyan), वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और संसद आदर्श ग्राम योजना (Sansad Aadarsh Gram Yojana) आदि योजनाओं के कार्यान्वयन में भी किया जाता है।
- मुख्य रूप से अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों आदि के क्षेत्र में टिकाऊ सामुदायिक संपत्ति के निर्माण पर ज़ोर देते हुए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने हेतु सांसदों को सक्षम बनाना।
- कार्यान्वयन:
- MPLADS की प्रक्रिया संसद सदस्यों द्वारा नोडल ज़िला प्राधिकरण को कार्यों की सिफारिश करने के साथ शुरू होती है।
- संबंधित नोडल ज़िला, संसद सदस्यों द्वारा अनुशंसित कार्यों को लागू करने तथा योजना के तहत निष्पादित कार्यों और खर्च की गई राशि के विवरण हेतु ज़िम्मेदार है।
- कार्य पद्धति:
- MPLADS के तहत संसद सदस्यों (Member of Parliaments- MPs) को प्रत्येक वर्ष 2.5 करोड़ रुपए की दो किश्तों में 5 करोड़ रुपए की राशि वितरित की जाती है। MPLADS के तहत आवंटित राशि नॉन-लैप्सेबल (Non-Lapsable) होती है।
- लोकसभा सांसदों से इस राशि को अपने लोकसभा क्षेत्रों में ज़िला प्राधिकरण परियोजनाओं (District Authorities Projects) में व्यय करने की सिफारिश की जाती है, जबकि राज्यसभा संसदों द्वारा इस राशि का उपयोग उस राज्य क्षेत्र में किया जाता है जहाँ से वे चुने गए हैं।
- राज्यसभा और लोकसभा के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्य करने की सिफारिश कर सकते हैं।
MPLADS संबंधी मुद्दे:
- कार्यान्वयन चूक: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने वित्तीय कुप्रबंधन एवं खर्च की गई राशि की कृत्रिम मुद्रास्फीति संबंधी मुद्दों को उठाया है।
- कोई वैधानिक समर्थन नहीं: यह योजना किसी भी वैधानिक कानून द्वारा शासित नहीं है और यह उस समय की सरकार की मर्जी व कल्पनाओं के अधीन प्रारंभ की गई थी।
- निगरानी और विनियमन: यह योजना विकास भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई थी लेकिन भागीदारी के स्तर को मापने हेतु कोई संकेतक उपलब्ध नहीं है।
- संघवाद का उल्लंघन: MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है तथा इस प्रकार संविधान के भाग IX और IX-A का उल्लंघन करता है।
- शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के साथ संघर्ष: सांसद कार्यकारी कार्यों में शामिल हो रहे हैं।
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
मार्तण्ड सूर्य मंदिर
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल, कार्कोट राजवंश। मेन्स के लिये:ललितादित्य मुक्तापीड, मार्तंड सूर्य मंदिर। |
चर्चा में क्यों?
जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के तहत संरक्षित स्मारक, 8 वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहर में आयोजित एक धार्मिक समारोह में भाग लिया। इस मंदिर को "राष्ट्रीय महत्त्व के स्थलों " के रूप में मान्यता दी गई है।
मार्तंड सूर्य मंदिर:
- मार्तंड सूर्य मंदिर जिसे पांडौ लैदान के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू मंदिर है जो सूर्य (हिंदू धर्म में प्रमुख सौर देवता) को समर्पित है और 8वीं शताब्दी ईसवी के दौरान बनाया गया था। मार्तंड का एक और संस्कृत पर्याय सूर्य है।
- इसका निर्माण कार्कोट राजवंश के तीसरे शासक ललितादित्य मुक्तापीड ने करवाया था।
- यह अब खंडहर के रूप में है, क्योंकि इसे मुस्लिम शासक सिकंदर शाह मिरी के आदेश से नष्ट कर दिया गया था।
- यह मंदिर भारतीय केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में अनंतनाग से पाँच मील की दूरी पर स्थित है।
- खंडहरों और संबंधित पुरातात्विक निष्कर्षों से यह कहा जा सकता है कि यह कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था, जिसने गंधार, गुप्त और चीनी वास्तुकला के रूपों को मिश्रित किया था।
- मंदिर केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों की सूची में मार्तंड (सूर्य मंदिर) के रूप में है।
ललितादित्य मुक्तापीड:
- ललितादित्य का जन्म 699 ईस्वी में कश्मीर के दुर्लाभाक-प्रतापदित्य के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ था।
- वह कश्मीर के नागवंशी कार्कोट कायस्थ वंश से थे।
- कार्कोट कायस्थ परिवार मुख्य रूप से दशकों से कश्मीर के राजाओं की सेना में सेवारत थे। वे युद्ध के मैदान में अपने उल्लेखनीय साहस के लिये जाने जाते थे।
- कश्मीर के राजाओं ने उनके अपार योगदान के लिये उन्हें सखासेना की उपाधि दी थी।
- ललितादित्य का बचपन का नाम मुक्तापीड था और उनके बड़े भाई चंद्रपीड और तारापीड थे।
- मुक्तापीड ने 724 ई. में कश्मीर राज्य पर अधिकार कर लिया।
- इस दौरान भारत में पश्चिमी आक्रमण शुरू हो गया था जिसमें अरबों ने स्वात, मुल्तान, पेशावर और सिंध के राज्य पर पहले ही कब्ज़ा कर लिया था।
- अरब शासक मोहम्मद बिन कासिम पहले से ही कश्मीर और मध्य भारत पर कब्ज़ा करने की धमकी दे रहा था।
- उसने लद्दाख के दरदास, कभोज और भट्टों से लड़ाई लड़ी जो तिब्बती शासन के अधीन थे।
- ललितादित्य ने स्वयं सभी राजाओं को हराकर युद्ध में सेना का नेतृत्व किया और लद्दाख के क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
- ललितादित्य और यशोवर्मन के गठबंधन ने अरबों को हराकर उन्हें कश्मीर में प्रवेश करने से रोक दिया।
- उन्होंने बाद में काबुल के रास्ते तुर्केस्तान पर आक्रमण किया। ललितादित्य ने भारत के पश्चिम और दक्षिण में अधिकांश स्थानों पर जो महाराष्ट्र में राष्ट्रकूट, दक्षिणी भाग में पल्लव और कलिंग से शुरू हुआ, का अधिग्रहण किया।
- उसने चीनियों को हराने के बाद अपने राज्य का विस्तार मध्य चीन तक कर दिया जिसके बाद उसकी तुलना सिकंदर महान से की गई।
- कश्मीर के इस साम्राज्य को इससे भारी धन प्राप्त हुआ और ललितादित्य ने कश्मीर में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये धन का उपयोग किया, मंदिरों का निर्माण किया गया तथा कश्मीर ने ललितादित्य के शासन के तहत व्यापक विकास देखा।
- ललितादित्य बहुत उदार राजा थे। हालाँकि वे हिंदू परंपरा के प्रबल अनुयायी थे, लेकिन सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्हें बहुत दयालु शासक कहा जाता है। वे जनता की समस्याओं को सुनते थे।
- वर्ष 760 ई. में उनकी आकस्मिक मृत्यु से ललितादित्य युग का अंत हो गया।
कार्कोट साम्राज्य:
- कार्कोट साम्राज्य ने कश्मीर (7वीं शताब्दी की शुरुआत में) में अपनी शक्ति स्थापित की और यह मध्य एशिया और उत्तरी भारत में एक शक्ति के रूप में उभरा।
- दुर्लभवर्धन कार्कोट वंश का संस्थापक था।
- कार्कोट शासक हिंदू थे और उन्होंने परिहासपुर (राजधानी) में शानदार हिंदू मंदिरों का निर्माण किया।
- उन्होंने बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया क्योंकि उनकी राजधानी के खंडहरों में कुछ स्तूप, चैत्य और विहार पाए गए हैं।