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भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल आयात अनुबंध

  • 05 Apr 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने तेल उत्पादन में कटौती को लेकर सऊदी अरब के साथ तनाव के मद्देनज़र अपनी रिफाइनरियों (IOC, BPCL और HPCL) को मध्य-पूर्व क्षेत्र (Middle East Region) के बाहर से तेल की आपूर्ति की संभावनाओं पर विचार करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • सऊदी अरब के साथ तनाव:

    • वर्ष 2021 की शुरुआत में जब तेल की कीमतें बढ़ने लगी थी तो भारत चाहता था कि सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए, लेकिन उसने भारत की बातों को नज़रअंदाज कर दिया।
    • इसके चलते भारत सरकार ने तेल के आयात पर अपनी निर्भरता का विकेंद्रीकरण करने पर विचार किया।
    • भारत के लिये सऊदी अरब और अन्य ओपेक (OPEC- पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) देश कच्चे तेल के मुख्य आपूर्तिकर्त्ता हैं। इन देशों की शर्तें अक्सर खरीदार देशों को प्रभावित करती हैं।
      • ओपेक तेल निर्यात करने वाले 13 विकासशील देशों का एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है जो अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करता है।
      • सदस्य देश: ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, काँगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला।
  • ओपेक देशों के साथ अनुबंध के मुद्दे:

    • भारतीय कंपनियाँ अपने तेल खरीद का दो-तिहाई हिस्सा एक निश्चित वार्षिक अनुबंध पर खरीदती हैं।
      • कंपनियों को इस अनुबंध से तेल की एक सुनिश्चित मात्रा की आपूर्ति की जाती है लेकिन तेल का मूल्य निर्धारण और अन्य शर्तें केवल आपूर्तिकर्त्ता के पक्ष में होती हैं।
    • इस वार्षिक अनुबंध से खरीदार किसी भी महीने बाहर हो सकता है लेकिन इसके लिये उसे छः माह पहले बताना होगा और आपूर्तिकर्त्ता द्वारा घोषित औसत आधिकारिक मूल्य का भुगतान करना होगा।
      • तेल खरीदारों के लिये अनुबंधित शर्तों को मानने की बाध्यता है, जबकि सऊदी अरब और अन्य तेल ओपेक देशों के पास यह विकल्प है कि यदि ओपेक देश तेल की कीमत को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के लिये तेल का उत्पादन कम करने का निर्णय लेता है तो वे ऐसा कर सकते हैं।
  • भारत के पास विकल्प:

    • भारत में जब तेल का उत्पादन किसी कारण से गिरता है तब इसके मूल्य निर्धारण में लचीलेपन के साथ-साथ आपूर्ति की निश्चितता की भी ज़रूरत होती है।
      • इसके अलावा आपूर्ति समय और मात्रा के लचीलेपन के विकल्प (कम करने या बढ़ाने की क्षमता) पर भारत को विचार करना चाहिये।
    • भारतीय रिफाइनरी खरीदे जाने वाले तेल की मात्रा को अवधि अनुबंध के माध्यम से कम करने या स्पॉट बाज़ार (Spot Market) या वर्तमान बाज़ार से अधिक खरीदने पर विचार कर सकती हैं।
    • भारत को स्पॉट बाज़ार से खरीदारी करने पर दिन-प्रतिदिन तेल की कीमतों में होने वाली गिरावट से लाभ मिल सकता है।
      • यह शेयर बाज़ार की तरह है जहाँ किसी दिन या समय में कीमतें कम होने पर शेयर खरीदे जा सकते हैं।
    • राज्य के स्वामित्व वाली रिफाइनरियों को भी खरीदारी में समन्वय करने और निजी रिफाइनरियों जैसे- रिलायंस इंडस्ट्रीज़, नायरा एनर्जी आदि के साथ संयुक्त रणनीति बनाने के लिये कहा गया है।

भारत का तेल आयात

  • भारत विश्व में तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • भारत अपनी कुल तेल ज़रूरतों का 85% आयात करता है, जिससे वह अक्सर तेल के वैश्विक आपूर्ति तथा कीमतों के उतार-चढ़ाव की चपेट में रहता है।
  • भारत, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे अन्य बड़े आपूर्तिकर्त्ता ब्लॉकों की जगह अपने कुल तेल आयात का 60% मध्य-पूर्व के देशों से खरीदता है।
    • हाल के महीनों में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और गुयाना जैसे नए स्रोतों से अधिक तेल खरीदा है, जहाँ एक बड़ा भारतीय प्रवासी वर्ग रहता है।
    • हालाँकि भारत को इन देशों की तुलना में मध्य-पूर्व से भौगोलिक निकटता के कारण कम समय में और कम माल ढुलाई लागत पर तेल की आपूर्ति होती है।

स्रोत: द हिंदू

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