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डेली न्यूज़

  • 10 Apr, 2020
  • 51 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल पेटेंट रेस में शीर्ष स्थान पर चीन

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन, पेटेंट सहयोग संधि

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) के अनुसार, वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट हेतु आवेदन करने में चीन प्रथम स्थान पर था।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट हेतु आवेदन करने में प्रथम स्थान पर चीन, जबकि द्वितीय स्थान पर अमेरिका था।
    • जापान आवेदन की रैंकिंग में तीसरे स्थान पर, इसके बाद जर्मनी और दक्षिण कोरिया थे। 
  • वर्ष 2019 में चीन ने पेटेंट हेतु 58,990 आवेदन किये थे, जबकि अमेरिका ने 57,840 आवेदन किये थे। 
    • केवल 20 वर्षों में चीन के आँकड़ों में 200 गुना की वृद्धि हुई है। 
    • एशिया से लगभग 52.4% पेटेंट हेतु आवेदन किये गए हैं।  
  • वर्ष 1970 में पेटेंट सहयोग संधि प्रणाली (Patent Cooperation Treaty system) की स्थापना के बाद से अमेरिका प्रत्येक वर्ष सबसे अधिक आवेदन करने वाला देश था। 

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

(World Intellectual Property Organization -WIPO):

  • WIPO बौद्धिक संपदा सेवाओं, नीति, सूचना और सहयोग के लिये एक वैश्विक मंच है। यह संगठन 191 सदस्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र की एक स्व-वित्तपोषित एजेंसी है।
  • इसका उद्देश्य एक संतुलित एवं प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रणाली के विकास हेतु करना है जो सभी के लाभ के लिये नवाचार और रचनात्मकता को सक्षम बनाता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1967 में की गई थी एवं इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विटज़रलैंड में है।

WIPO

पेटेंट सहयोग संधि

(Patent Cooperation Treaty-PCT):

  • पेटेंट सहयोग संधि वर्ष 1970 में संपन्न एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कानून संधि है, जिसमें 150 से अधिक देश शामिल हैं।
  • यह प्रत्येक अनुबंधित देशों में आविष्कारों की रक्षा के लिये पेटेंट आवेदनों को दाखिल करने हेतु एक एकीकृत प्रक्रिया प्रदान करती है।
  • PCT के तहत दायर पेटेंट आवेदन को अंतर्राष्ट्रीय आवेदन या PCT आवेदन कहा जाता है। 
  • पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग:
    • विश्व के प्रमुख निगमों, शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा की गई खोजों पर एकाधिकार हेतु पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग किया जाता है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम तथा व्यक्तिगत आविष्कार के संरक्षण हेतु पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन

प्रीलिम्स के लिये

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन

मेन्स के लिये 

केंद्र सरकार की योजनाओं का कार्यान्वयन एवं उनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation-EPFO) ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के मद्देनज़र EPFO के संदर्भ में सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के तहत अब तक लगभग 1.37 लाख के दावों का निपटान किया है और तकरीबन 279.65 करोड़ रुपए वितरित किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि सरकार ने COVID-19 महामारी के मद्देनज़र कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों में संशोधन कर ‘महामारी’ को भी उन कारणों में शामिल कर दिया है जिसे ध्‍यान में रखते हुए कर्मचारियों को अपने खातों से कुल राशि के 75 प्रतिशत का गैर-वापसी योग्य अग्रिम या तीन माह का पारिश्रमिक, इनमें से जो भी कम हो, प्राप्‍त करने की अनुमति दी गई है। 
    • सरकार के इस निर्णय से EPF के तहत पंजीकृत तकरीबन 4 करोड़ कामगारों के परिवार इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
  • इसके अलावा EPFO ने केवाईसी (Know Your Customer-KYC) के अनुपालन में आसानी के लिये जन्म तिथि में सुधार मानदंडों की प्रक्रिया में भी ढील दी है।
    • अब EPFO ग्राहक के आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि को PF रिकॉर्ड में दर्ज जन्म तिथि  को सुधारने के प्रमाण के रूप में स्वीकार कर रहा है।
    • साथ ही जन्म तिथि में तीन वर्ष तक की भिन्नता वाले सभी मामलों को भी EPFO द्वारा स्वीकार किया जा रहा है।
  • बीते महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप का मुकाबला करने के लिये सरकार के वित्तीय पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें आगामी तीन महीनों के लिये नियोक्ता और कर्मचारी (12 प्रतिशत प्रत्येक) के योगदान का भुगतान करना था, यदि संगठन में 100 कर्मचारी हैं और उनमें से 90 प्रतिशत कर्मचारी 15000/- रुपए प्रतिमाह से कम कमाते हैं।
    • विश्लेषकों के अनुसर, सरकार का यह निर्णय विभिन्न छोटे संगठनों को वित्तीय रूप से लाभान्वित करेगा और पेरोल पर कर्मचारियों की निरंतरता बनाए रखने में मदद करेगा।

चुनौतियाँ 

  • ध्यातव्य है कि कई EPFO ग्राहकों ने दावों के निपटान में देरी का मुद्दा उठाया था, जिसकी जाँच संगठन के अधिकारियों द्वारा की जा रही है।
  • EPFO के अनुसार, KYC के मापदंडों का अनुपालन करने वाले सभी आवेदनों का निपटान स्वतः ही हो जाता है, किंतु शेष आवेदनों की जाँच अधिकारियों द्वारा की जा रही है, जिसके कारण कुछ अधिक समय लग रहा है।

आगे की राह

  • EPFO के संदर्भ में सरकार द्वारा लिया गया निर्णय कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के समय में नियोक्ताओं और कर्मचारियों को राहत प्रदान करने हेतु लिया गया महत्त्वपूर्ण निर्णय है।
  • हालाँकि ग्राहकों को इस योजना का लाभ उठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, इसके अलावा कई लोगों ऐसे भी हैं जो इस योजना के पात्र है, किंतु उन्हें इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है।
  • आवश्यक है कि नीति निर्माताओं द्वारा इस मुद्दों पर विचार किया जाए और इन्हें जल्द-से-जल्द सुलझाने का प्रयास किया जाए, ताकि आम लोगों को वित्तीय समस्याओं का सामना न करना पड़े।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन 

(Employees’ Provident Fund Organisation-EPFO)

  • यह एक सरकारी संगठन है जो सदस्य कर्मचारियों की भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है तथा कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 (Employee Provident Fund and Miscellanious Provisions Act, 1952) को लागू करता है।
  • कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये भविष्य निधि संस्थान (Provident Fund Institution) के रूप में काम करता है।
  • यह संगठन श्रम और रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रशासित है। सदस्यों और वित्तीय लेन-देन के मामले में यह विश्व का सबसे बड़ा संगठन है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

केरल में लॉकडाउन से चरणबद्ध तरीके से राहत

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19

मेन्स के लिये:

भारत में COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल राज्य में बनी एक विशेषज्ञ समिति ने COVID-19 संक्रमण के हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित 7 ज़िलों के अतिरिक्त राज्य के अन्य हिस्सों में वायरस के प्रसार को रोकने हेतु 15 अप्रैल के बाद लॉकडाउन में चरणबद्ध तरीके से राहत देने का सुझाव दिया है।  

मुख्य बिंदु: 

  • केरल राज्य में COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये राज्य के पूर्व मुख्य सचिव के. एम. अब्राहम (K.M. Abraham) की अध्यक्षता में बनी एक 17 सदस्यीय समिति ने 6 अप्रैल, 2020 को मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
  • इसके तहत कमेटी ने 14 अप्रैल के बाद राज्य में COVID-19 के संक्रमण की स्थिति के आधार पर तीन चरणों में लॉकडाउन में ढील देने का सुझाव किया है।  
  • इन तीनों चरणों में लोगों की आवाजाही में सीमित छूट देने से पहले राज्य में COVID-19 के संक्रमणों के नए मामलों की विस्तृत समीक्षा की जाएगी।
  • हालाँकि कमेटी के अनुसार, इस तरह की चरणबद्ध छूट तभी सफल होगी यदि संक्रमण के मामलों में स्थिर सुधार हो और COVID-19 के नए मामलों में गिरावट के परिणामस्वरूप इंफेक्शन कर्व (Infection Curve) सपाट और धीरे-धीरे संक्रमण के नए मामलों की संख्या शून्य तक पहुँच जाए।
  • समिति ने सरकार द्वारा जनता को यह भी सुझाव देने को कहा है कि संक्रमण के नए मामलों में वृद्धि होने की स्थिति में जनता को पुनः कड़े लॉकडाउन के लिये तैयार रहना चाहिये।

समिति ने 14 अप्रैल के बाद निम्नलिखित तीन चरणों में लॉकडाउन में चरणबद्ध तरीके से राहत देने का सुझाव दिया है। 

पहला चरण (Phase-I):

  • इस चरण के तहत लॉकडाउन में छूट के लिये उन ज़िलों को शामिल किया जाएगा जिनमें 14 अप्रैल की समीक्षा के दौरान पिछले एक सप्ताह में COVID-19 के संक्रमण के एक से अधिक नए मामले न पाए गए हों।
  • साथ ही पिछले एक सप्ताह में घरों पर निगरानी में रखे व्यक्तियों की संख्या में 10% से अधिक की बढ़ोतरी न हुई हो और ज़िले में स्वास्थ्य विभाग द्वारा परिभाषित एक भी COVID-19 हॉटस्पॉट न हो।   

पहले चरण के तहत छूट:

  • घर से बाहर निकलने के लिये मास्क (Mask) पहनना अनिवार्य। 
  • घर से बाहर निकलने के लिये पहचान-पत्र रखना और यात्रा का उद्देश्य बताना अनिवार्य। 
  • आवश्यक वस्तुएँ लाने के लिये एक घर से एक ही व्यक्ति को बाहर जाने की अनुमति (केवल तीन घंटों के लिये)  
  • सहरुग्णता (Comorbidity) की समस्या वाले 65 वर्ष से अधिक के लोगों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध।
  • निजी वाहनों के लिये ऑड-इवेन (Odd-Even) प्रणाली का पालन और रविवार को वाहनों की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबंध। 
  • हवाई जहाज और ट्रेन यात्रा पर पूर्ण प्रतिबंध।
  • सरकारी कार्यालय और बैंक खोले जा सकते हैं परंतु केवल 50% कर्मचारियों की उपस्थिति की अनुमति दी जाएगी,आदि। 

दूसरा चरण (Phase-II):

  • इस चरण के तहत लॉकडाउन में छूट के लिये राज्य के उन ज़िलों को शामिल किया जाएगा जिनमें समीक्षा की तिथि से दो सप्ताह पूर्व COVID-19 के संक्रमण के एक से अधिक नए मामले न पाए गए हों।
  • पहले चरण की समीक्षा से वर्तमान/नई समीक्षा के समय तक घरों पर निगरानी में रखे व्यक्तियों की संख्या में  5% से अधिक की बढ़ोतरी न हुई हो।
  • साथ ही दोनों समीक्षाओं के बीच ज़िले में कोई नया COVID-19 हॉटस्पॉट केंद्र न पाया गया हो।

दूसरे चरण के तहत छूट:

  • ऑटो (केवल 1 यात्री) और टैक्सी (केवल 3 यात्री) चलाए जाने की अनुमति दी जा सकती है।
  • बसों को एक सीट पर एक व्यक्ति के बैठने की अनुमति से साथ सीमित दूरी के लिये शहर या कस्बे की सीमा के अंदर चलाने की छूट दी जा सकती है।
  • मनरेगा, सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) चलाए जा सकते हैं। 
  • विवाह या शोक सभाओं में 20 से अधिक लोगों की अनुमति नहीं। 
  • कार्यक्षेत्रों में 20 या कुल क्षमता का 25% कर्मचारियों (जो भी अधिक हो) की अनुमति दी जा सकती है।

तीसरा चरण (Phase-III):  

  • कमेटी के सुझाव के अनुसार, तीसरे चरण के तहत लॉकडाउन में छूट के लिये राज्य के उन ज़िलों को चुना जाएगा जिनमें समीक्षा की तिथि से दो सप्ताह पूर्व COVID-19 के संक्रमण के एक भी नए मामले न पाए गए हों।
  • दूसरे और तीसरे चरण की समीक्षा के बीच घरों पर निगरानी में रखे व्यक्तियों की संख्या में  5% से अधिक की बढ़ोतरी न हुई हो और दोनों समीक्षाओं के बीच ज़िले में कोई भी क्षेत्र COVID-19 हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित न किया गया हो।

तीसरे चरण के तहत छूट:

  • महत्वपूर्ण यात्रियों (स्वास्थ्यकर्मी,मरीज़ आदि) के लिये स्थानीय उड़ानों की अनुमति।
  • अंतर-ज़िला बस सेवाओं को कुल क्षमता के दो-तिहाई (2/3) यात्रियों के साथ अनुमति।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) की कंपनियों के सीमित सञ्चालन की अनुमति।
  • स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों को परीक्षा के लिये खोलने की अनुमति। 
  • किसी बड़े धार्मिक, राजनीतिक या वैवाहिक समारोह की अनुमति नहीं। 
  • राज्य में प्रवेश के लिये 14 दिनों का क्वारंटीन (quarantine) अनिवार्य। 

इसके अतिरिक्त समिति ने लॉकडाउन को समाप्त करने, COVID-19 हॉटस्पॉट क्षेत्रों और सुभेद्य (Vulnerable) जनसंख्या के प्रबंधन के लिये कुछ अन्य स्वास्थ्य और गैर-स्वास्थ्य के मुद्दों के संदर्भ में भी अपनी रणनीति साझा की है।  

स्रोत:  द हिंदू 


शासन व्यवस्था

COVID- 19 फंड के तहत राज्यों को 15,000 करोड़ रुपए

प्रीलिम्स के लिये: 

COVID- 19 आपातकालीन निधि 

मेन्स के लिये:

महामारी प्रबंधन के लिये रणनीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘भारत COVID-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया तथा स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारी पैकेज’ (India COVID-19 Emergency Response and Health System Preparedness Package) नामक प्रोज़ेक्ट के तहत राज्यों के लिये 15,000 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • यह राशि ‘मिशन मोड दृष्टिकोण’ (Mission Mode Approach) के तहत 100% केंद्र पोषित योजना के तहत प्रदान की जाएगी।
  • इस राशि में से 7774 करोड़ रुपए COVID- 19 महामारी के प्रति तत्काल आपातकालीन अनुक्रिया के लिये तथा शेष राशि मध्यम अवधि की सहायता (1-4 वर्ष) के रूप में दी जाएगी।

‘मिशन मोड दृष्टिकोण’ (Mission Mode Approach- ):

  • मिशन मोड परियोजनाओं का तात्पर्य ऐसी परियोजनाओं से होता है जिनमें स्पष्ट रूप से परिभाषित उद्देश्य, लक्ष्य होते हैं।  
  • इस परियोजनाओं को एक तय समय सीमा में पूरा करना होता है तथा प्राप्त किये गए लक्ष्यों के परिणामों के मापन के स्पष्ट मानक होते हैं।

प्रोज़ेक्ट के चरण: 

  • प्रोज़ेक्ट तीन चरणों में लागू किया जाएगा:
    • प्रथम चरण, जनवरी 202O से जून 2020 तक
    • द्वितीय चरण, जुलाई 2020 से मार्च 2021 तक  
    • तृतीय चरण, अप्रैल 2021 से मार्च 2024 तक 

पैकेज के उद्देश्य:

  • डायग्नोस्टिक्स तथा समर्पित उपचार सुविधाओं के विकास के माध्यम से भारत में COVID-19 महामारी के प्रसार को धीमा तथा सीमित करना।
  • संक्रमित रोगियों के उपचार के लिये आवश्यक चिकित्सा उपकरणों तथा दवाओं खरीद में इस धन का उपयोग करना। 
  • भविष्य के लिये ऐसी महामारियों की रोकथाम तथा तैयारियों की दिशा में स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करना।
  • जैव-सुरक्षा तैयारी, महामारी अनुसंधान तथा संचार गतिविधियों को मज़बूत करना। 
  • परिस्थितियों के अनुसार पैकेज से संबंधित विभिन्न घटक इकाइयों तथा कार्यान्वयन एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करना।

पैकेज के लाभ:

  • COVID- 19 महामारी के चिकित्सकीय प्रबंधन के लिये आवश्यक, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE), आइसोलेशन बेड, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर आदि उपकरण खरीदने में मदद मिलेगी।
  • व्यय की प्रमुख हिस्सेदारी का उपयोग मज़बूत आपातकालीन अनुक्रिया को बढ़ाने, महामारी अनुसंधान को मज़बूत करने, सामुदायिक सहभागिता और जोखिम संचार एवं कार्यान्वयन, प्रबंधन, क्षमता निर्माण, निगरानी और मूल्यांकन घटक के लिये किया जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

लॉकडाउन के पश्चात् बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी

प्रीलिम्स के लिये

CMIE, CMIE के आँकड़े 

मेन्स के लिये

भारत से बढ़ती बेरोज़गारी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy-CMIE) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 में रोज़गार दर (Employment Rate) 38.2% के साथ सबसे निचले स्तर पर आ गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • मार्च 2019 में श्रम भागीदारी दर (Labour Participation Rate-LPR) 42.7% थी। CMIE के अनुसार, मार्च 2020 में LPR 41.9% पर पहुँच गई थी, यह पहली बार है जब किसी माह में LPR 42% से भी नीचे आ गया है।
    • जनवरी से मार्च 2020 के बीच LPR में तकरीबन 1% की गिरावट आई है, जनवरी 2020 में LPR 42.96% था, जो कि मार्च 2020 में 41.9% पर पहुँच गया। 
  • मार्च 2020 में बेरोज़गारी दर 8.7% पर पहुँच गई थी, जो कि बीते 43 महीनों अथवा सितंबर 2016 से सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि यह दर जनवरी 2020 में 7.16% थी।
  • विश्लेषकों के अनुसार, जुलाई 2017 में 3.4% के न्यूनतम बिंदु के पश्चात् से बेरोज़गारी दर लगातार बढ़ रही है, किंतु मार्च 2020 में पिछले महीने की तुलना में 98 आधार अंकों की वृद्धि, अब तक दर्ज की गई सबसे अधिक मासिक वृद्धि है।
  • CMIE द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, जैसे-जैसे हम लॉकडाउन की अवधि की ओर बढ़ रहे हैं, रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित समस्याएँ और अधिक गंभीर होती जा रही हैं।
  • CMIE के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, मार्च के अंतिम सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह में देश में बेरोज़गारी दर में 23% से भी अधिक हो गई है। ध्यातव्य है कि विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भी CMIE के आँकड़ों की पुष्टि की है।
  • वहीं इस दौरान (मार्च के अंतिम सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह) श्रम भागीदारी दर 39% पर पहुँच गई और रोज़गार दर केवल 30% पर आई गई है।

रोज़गार दर (Employment Rate)

रोज़गार दर किसी क्षेत्र विशिष्ट में कार्यशील आयु के लोगों की संख्या को दर्शाता है जिनके पास रोज़गार है। इसकी गणना कार्यशील आबादी और कुल आबादी के अनुपात के रूप में की जाती है।

बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate)

जब किसी देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने के लिये राजी होते हुए भी लोगों को प्रचलित मज़दूरी पर कार्य नहीं मिलता, तो ऐसी अवस्था को बेरोज़गारी की संज्ञा दी जाती है। बेरोज़गारी का होना या न होना श्रम की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है। बेरोज़गारी दर अभिप्राय उन लोगों की संख्या से है जो रोज़गार की तलाश में हैं।

आँकड़ों के निहितार्थ

  • मार्च माह के अंतिम सप्ताह और अप्रैल माह के पहले सप्ताह में बेरोज़गारी दर में हुई बढ़ोतरी का मुख्य कारण सरकार द्वारा घोषित 21-दिवसीय लॉकडाउन को माना जा रहा है, इस लॉकडाउन अवधि के कारण देश में सभी उद्योगों में आर्थिक गतिविधियाँ पूर्ण रूप से रुक गई हैं।
  • जिसके प्रभावस्वरूप सभी क्षेत्रों में लोगों की छंटनी शुरू हो गई है।
  • हालाँकि ध्यान देने योग्य यह भी है कि बेरोज़गारी दर में वृद्धि लॉकडाउन की अवधि से पूर्व ही शुरू हो गई थी।
  • कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि आँकड़ों के विपरीत भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और अधिक खराब हो सकती है।
  • RBI द्वारा मार्च के अंत में किये गए सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि लॉकडाउन के पश्चात् विनिर्माण क्षेत्र के लिये मांग काफी प्रभावित होगी।
  • इसी प्रकार ‘फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलरशिप एसोसिएशंस’ (Federation of Automobile Dealership Associations-FADA) के अनुसार, ऑटो सेक्टर में कोरोनवायरस (COVID-19) महामारी के पश्चात् खुदरा बिक्री में 60-70% की गिरावट देखी गई है।

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी

(Center For Monitoring Indian Economy-CMIE)

  • सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की स्थापना एक स्वतंत्र थिंक-टैंक के रूप में वर्ष 1976 में की गई।
  • CMIE प्राथमिक डेटा संग्रहण, विश्लेषण और पूर्वानुमानों द्वारा सरकारों, शिक्षाविदों, वित्तीय बाज़ारों, व्यावसायिक उद्यमों, पेशेवरों और मीडिया सहित व्यापार सूचना उपभोक्ताओं के पूरे स्पेक्ट्रम को सेवाएँ प्रदान करता है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट

प्रीलिम्स के लिये

ICRA द्वारा जारी आँकड़े 

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘आईसीआरए लिमिटेड’ (ICRA Limited) द्वारा जारी अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020 की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.5% की तीव्र गिरावट देखी जा सकती है। 

मुख्य बिंदु:

  • COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन को देखते हुए ICRA ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में कमी का अनुमान लगाया है।
  • ICRA के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020 की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में अनुमानतः 4.5% की तीव्र गिरावट देखी जा सकती है। 
  • हालाँकि इसमें धीरे-धीरे सुधार की उम्मीदें हैं परंतु अर्थव्यवस्था में इस तीव्र गिरावट के परिणामस्वरूप वित्तीय वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) की वृद्धि दर मात्र 2% रहने का अनुमान है। 

अर्थव्यवस्था में तीव्र गिरावट के कारण:  

  • COVID-19 के कारण चीन से होने वाले आयात के प्रभावित होने से स्थानीय और बाहरी आपूर्ति शृंखला के संदर्भ में चिंताएँ बढ़ी हैं।
  • सरकार द्वारा COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन और सोशल डिसटेंसिंग (Social Distancing) जैसे प्रयासों से औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हुआ है।
  • लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी बढ़ी है, जिससे सार्वजनिक खर्च में भारी कटौती हुई है।
  • लॉकडाउन के कारण कच्चे माल की उपलब्धता, उत्पादन और तैयार उत्पादों के वितरण की शृंखला प्रभावित हुई है, जिसे पुनः शुरू करने में कुछ समय लग सकता है। 
  • उदाहरण के लिये उत्पादन स्थगित होने के कारण मज़दूरों का पलायन बढ़ा है, ऐसे में कंपनियों के लिये पुनः कुशल मज़दूरों की नियुक्ति कर पूरी क्षमता के साथ उत्पादन शुरू करना एक बड़ी चुनौती होगी। जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था की धीमी प्रगति के रूप में देखा जा सकता है  
  • खनन और उत्पादन जैसे अन्य प्राथमिक या द्वितीयक क्षेत्रों में गिरावट का प्रभाव सेवा क्षेत्र की कंपनियों पर भी पड़ा है।

विभिन्न क्षेत्रों पर COVID-19 का प्रभाव:    

  • ICRA के अनुसार, जिन क्षेत्रों में इस लॉकडाउन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से सबसे अधिक होगा उनमें विमानन कंपनियाँ, होटल और पर्यटन, ऑटो डीलरशिप, रत्न और आभूषण, खुदरा, नौ-परिवहन (Shipping), बंदरगाह सेवाओं, समुद्री भोजन (Seafood) तथा पोल्ट्री (Poultry) एवं माइक्रोफाइनेंस संस्थान आदि प्रमुख हैं।
  • ऑटोमोबाइल, ऑटो पुर्जे, निर्माण सामग्री, विनिर्माण, रसायन, आवासीय संपत्ति, उपभोक्ता सामान, फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals), रसद, बैंकिंग, खनन, परामर्श (Consulting), लौह धातु, कांच, प्लास्टिक, बिजली आदि क्षेत्रों में लॉकडाउन का सीमित/मध्यम प्रभाव देखने को मिल सकता है।    
  • ICRA के अनुमान के अनुसार शिक्षा, डेयरी उत्पाद, उर्वरक और बीज, स्वास्थ्य सेवा, खाद्य और खाद्य उत्पाद, बीमा, दूरसंचार, चीनी, चाय, कॉफी और कृषि उपज आदि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ लॉकडाउन का प्रभाव सबसे कम होगा। 
  • ICRA के अनुसार, विस्तारित मांग व्यवधान (Demand Disruption) से लंबे भुगतान चक्र को बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि किसी भी कंपनी/इकाई की तरलता की स्थिति उसके मज़बूत क्रेडिट प्रोफाइल के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है, ऐसे में कई कंपनियाँ अधिक-अधिक से नगदी बचाने का प्रयास करेंगी। 
  • इसके लिये कंपनियाँ जहाँ तक संभव हो भुगतान में विलंब करने या कंपनियाँ फोर्स मेजर जैसे प्रावधानों का प्रयोग कर भुगतान स्थगित करने का प्रयास करेंगी।   

ICRA:

  • आईसीआरए लिमिटेड (ICRA Limited) की स्थापना वर्ष 1991 में एक स्वतंत्र और पेशेवर निवेश सूचना और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के रूप में की गई थी। 
  • वर्ष 2007 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange- BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange- NSE) में सूचीबद्ध होने के साथ इसे सार्वजनिक कंपनी के रूप में बदल दिया गया। 
  • ICRA संस्थागत और व्यक्तिगत निवेशकों /लेनदारों को जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करती है। 
  • साथ ही यह वित्तीय बाजार में पारदर्शिता को बढ़ावा देने में नियामकों की सहयोग करती है।    

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव पैनल का आभासी सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड 

मेन्स के लिये:

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड' (National Board for Wildlife- NBWL) की स्थायी समिति द्वारा पहली बार वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की गई। 

मुख्य बिंदु:

  • बैठक में NBWL ने 11 राज्यों से जुड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को मंज़ूरी दी। 
  • वनों या संरक्षित रिज़र्व क्षेत्रों में आने वाली परियोजनाओं को सरकार की 'पर्यावरणीय मंज़ूरी प्रक्रिया' (Environmental Clearance Process- ECP) के एक भाग के रूप में NBWL के अनुमोदन की आवश्यकता होती है।

आभासी सम्मेलन तथा पर्यावरणीय मंज़ूरी:

  • सम्मेलन से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, अधिकाँश परियोजनाओं सम्मेलन के माध्यम से स्वीकृति प्रदान की गई, यद्यपि आभासी सम्मेलनों के साथ कुछ समस्याएँ भी जुड़ी होती हैं:
    • आभासी सम्मेलन में प्रस्तावित परियोजनाओं की अवस्थिति को दर्शाने वाले मानचित्रों की जाँच करना मुश्किल होता है, क्योंकि बैठक के कुछ औपचारिक मिनटों में परियोजना का विस्तृत रूप से अवलोकन करना संभव नहीं है। 

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया (ECP):

  • एक परियोजना के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये एक पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) रिपोर्ट तैयार की जाती है।
  • किसी परियोजना के लिये राज्य नियामकों की मंज़ूरी अथवा अनापत्ति प्रमाण पत्र (No Objection Certificate- NOC) जारी करने से पहले 'जन सुनवाई’ आयोजित की जाती है तथा प्रस्तावित परियोजना क्षेत्र में रहने वाले लोगों की चिंताओं को सुना जाता है।
  • परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिये एक आवेदन पत्र को EIA रिपोर्ट के साथ (EIA रिपोर्ट जन सुनवाई संबंधी जानकारी तथा NOC शामिल हो) आगे केंद्र या राज्य सरकार को प्रस्तुत किया जाता है। 
  • अगर परियोजना A श्रेणी की है तो इसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) को प्रस्तुत किया जाता है।  
  • अगर परियोजना B श्रेणी की है तो इसे राज्य सरकार को प्रस्तुत की जाती है।
  • A और B श्रेणी की परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिये जमा किये गए दस्तावेज़ों का विश्लेषण केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के नियंत्रण में विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee- EAC) या संबंधित राज्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (State Environmental Impact Assessment Authorities- SEIAAs) के द्वारा किया जाता है। 
  • समिति की सिफारिशों को अंतिम अनुमोदन या अस्वीकृति के लिये MoEFCC को भेजा जाता है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड

(National Board for Wildlife- NBWL): 

  • वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम’, 1972 (Wild Life Protection Act, 1972) के तहत वर्ष 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था। 
  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड वन्य पारस्थितिकी से संबंधित मामलों में सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है। यह निकाय वन्य जीवन से जुड़े मामलों तथा राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आस-पास निर्माण या अन्य परियोजनाओं की समीक्षा करता है।
  • NBWL की स्थायी समिति (Standing Committee) की अध्यक्षता पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा की जाती है। 
    • स्थायी समिति, संरक्षित वन्यजीव क्षेत्रों या इस क्षेत्रों के आसपास के 10 किमी के भीतर आने वाली सभी परियोजनाओं को मंज़ूरी देती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

आगामी वित्तीय वर्ष में मुद्रास्फीति में कमी: RBI

प्रीलिम्स के लिये:

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, कोर मुद्रास्फीति

मेन्स के लिये:

मुद्रास्फीति में कमी के कारण

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट (MPR) में कहा है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) आधारित मुद्रास्फीति, जो पिछले कुछ महीनों में बढ़ गई थी, के वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कम रहने की उम्मीद है। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • RBI के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फ़ीति का वित्तीय वर्ष 2020- 21 में पहली तिमाही में 4.8%, दूसरी तिमाही में 4.4%, तीसरी तिमाही में 2.7% तथा चौथी तिमाही में 2.4% तक कम होने का अनुमान है।
  • यह मौद्रिक समीक्षा रिपोर्ट मार्च के अंत में हुई अनिर्धारित बैठक में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न आर्थिक अनिश्चितताओं पर की गई चर्चा पर आधारित है।
  • लॉकडाउन को देखते हुए मार्च तथा आगामी कुछ महीनों के लिये राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI ) का संकलन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। 
  • COVID-19 के द्वारा वृहद आर्थिक प्रभाव डालने के कारण वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह से फरवरी-मार्च 2020 तक भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ सकता है। 

Low-expectations

मुद्रास्फीति में कमी के प्रमुख कारण 

  • COVID-19 के तीव्र प्रसार तथा मौजूदा लॉकडाउन के समय उच्च अनिश्चितता की स्थिति वर्तमान प्रत्याशित मांग तथा ‘कोर मुद्रास्फीति’ में कमी ला सकती है।  
  • प्रत्याशित मांग में कमी के प्रमुख कारण बेरोज़गारी तथा वेतन में कटौती, ऋण भार में वृद्धि, सार्वजनिक व्यय में कमी की वजह से बाजार में तरलता का अभाव है।   
  • लॉकडाउन के समय ‘समाजिक दूरी’ के परिणामस्वरूप सेवा क्षेत्र में परिवहन, मनोरंजन तथा संचार के प्रभावित होने के कारण कोर मुद्रास्फीति में कमी हो सकती है।  

कोर मुद्रास्फीति (Core  Inflation) 

  • कोर मुद्रास्फीति ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं को छोड़कर सभी वस्तुओं और सेवाओं के दामों में बढ़ोतरी दिखाती है। सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2000-01 में इसका पहली  बार उपयोग किया गया।  
  • यह देश की महँगाई दर को बेहतर ढंग से परिभाषित नहीं करती, क्योंकि इसमें महँगाई में मुख्य रूप से शामिल ऊर्जा और खाद्य सामग्रियों की गणना नहीं की जाती।   
  • वर्ष 2015 -2016 से सरकार ने इसके एक नए प्रारूप ‘कोर- कोर मुद्रास्फ़ीति’ (Core -Core Inflation) का उपयोग प्रारंभ किया, जिसके अंतर्गत मुद्रास्फीति की गणना खाद्य सामग्रियों, ईंधन एवं प्रकाश, परिवहन एवं संचार जैसी मदों को बाहर करके की जाती है।   

कुछ मामलों में मुद्रास्फीति वृद्धि के संकेत 

  • वित्तीय वर्ष 2021-22 में अगर मानसून सामान्य रहे और अगर कोई बहिर्जात या नीतिगत झटका नहीं हो तो संरचनात्मक मॉडल के अनुसार, मुद्रास्फीति 3.6-3.8% तक बढ़ सकती है।  
  • RBI द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 75 आधार अंकों से घटाकर 4.4% करने तथा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 100 आधार अंकों से घटाकर 3% करने से भी बाज़ार में मौद्रिक प्रवाह में वृद्धि होने की संभावना है।  
  • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में निरंतर तीव्र कमी से देश की व्यापारिक स्थिति में सुधार हो सकता है, लेकिन इस चैनल द्वारा होने वाले लाभ से अभी नुकसान की भरपाई की उम्मीद नहीं है। 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 

  • CPI भारत में उपभोक्ताओं की खपत और क्रय शक्ति आदि में व्यापक अंतर की गणना करता है। 
  • CPI मुद्रास्फ़ीति के  माइक्रो लेवल विश्लेषण के लिये इस्तेमाल की जाती है। 
  • उपभोक्ताओं के मध्य सामाजिक-आर्थिक अंतरों को ध्यान में रखते हुए भारत में CPI  के चार प्रकार हैं:     
    • औद्योगिक मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) 
    • शहरी गैर मैनुअल कर्मचारियों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI -UNME)
    • खेतिहर मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL)
    • ग्रामीण क्षेत्र के मज़दूरों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-RL)

आगे की राह 

  • COVID-19 से उत्पन्न स्थिति को जल्दी से सामान्य करना चाहिये, जिससे मजबूत पूंजी प्रवाह को पुनर्जीवित किया जा सके। 
  • RBI के अनुसार, रुपए  में 5% की वृद्धि से मुद्रास्फीति में 20 आधार अंकों तथा सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15 आधार अंकों की आधारभूत वृद्धि दर्ज की जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 अप्रैल, 2020

शौर्य दिवस

प्रत्येक वर्ष 9 अप्रैल को देश में केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (Central Reserve Police Force-CRPF) का शौर्य दिवस मनाया जाता है, किंतु इस कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण इस वर्ष शौर्य दिवस का आयोजन नहीं किया गया। उल्लेखनीय है कि 9 अप्रैल, 1965 को CRPF की एक छोटी टुकड़ी ने पाकिस्तान ब्रिगेड के आक्रमण को विफल कर दिया था, इस दौरान कच्छ (गुजरात) के रण में CRPF ने पाकिस्तान के हमले को नाकाम करते हुए  34 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था वहीं इस लड़ाई में CRPF के 6 जवान शहीद हुए थे। CRPF के जवानों की बहादुरी को हमेशा याद करने के लिये ही 9 अप्रैल के दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (CRPF) भारत का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है। CRPF की स्थापना क्राउन रिप्रेजेंटटिव्स पुलिस (Crown Representative Police) के रूप में 27 जुलाई 1939 को की गई थी। 28 दिसंबर, 1949 को CRPF अधिनियम के माध्यम से केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल का निर्माण किया गया था। केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल के प्रमुख कार्य क्षेत्र हैं-  भीड़ पर नियंत्रण, दंगा नियंत्रण, उग्रवाद का विरोध, विद्रोह को रोकने के उपाय, वामपंथी उग्रवाद से निपटना, युद्ध की स्थिति में दुश्मन से लड़ना, सरकार की नीति के अनुसार संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भाग लेना आदि।

ऑपरेशन शील्ड (Operation SHIELD)

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘ऑपरेशन शील्ड’ (Operation SHIELD) की घोषणा की है। शील्ड (SHIELD) का अर्थ है- सीलिंग (Sealing), होम क्वारंटाइन (Home Quarantine), आइसोलेशन एंड ट्रेसिंग (Isolation and Tracing), एसेंशियल सप्लाई (Essential supply), लोकल सैनिटेशन (Local Sanitation) और डोर-टू-डोर चेक्स (Door-to-door Checks)। इस ऑपरेशन को राजधानी के 21 नियंत्रण क्षेत्रों में लागू किया जायेगा। इस ऑपरेशन के तहत सभी 21 क्षेत्रों तथा इसके  आसपास के क्षेत्र को सील किया जाएगा, इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को होम क्वारंटाइन किया जाएगा, लोगों के प्राथमिक और द्वितीय संपर्क का पता लगाया और उन्हें आइसोलेट किया जाएगा, सरकार ने वस्तुओं की आवश्यक आपूर्ति का आश्वासन दिया है, स्थानीय अधिकारियों द्वारा क्षेत्रों को सैनीटाइज़ किया जाएगा, इन क्षेत्रों में डोर-टू-डोर स्वास्थ्य जाँच की जाएगी। ध्यातव्य है कि दिल्ली सरकार ने इससे पूर्व कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से मुकाबला करने के लिये 5T योजना लागू की थी। 5T योजना में परीक्षण (Testing), ट्रेसिंग (Tracing), टीमवर्क (Team Work), उपचार (Treatment) और ट्रैकिंग (Tracking) शामिल हैं। 

‘सेफ प्लस’ ऋण 

हाल ही में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ‘सेफ प्लस’ नाम से एक आपातकालीन ऋण प्रदान करने की घोषणा की है। इसके तहत कोरोनावायरस (COVID-19) से संबंधित चिकित्सा उपकरणों और उत्पादों के निर्माण में कार्यरत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को 1 करोड़ रुपए तक की कार्यशील पूंजी प्रदान की जाएगी। भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) की स्थापना 2 अप्रैल, 1990 को संसद के एक अधिनियम के तहत, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्तपोषण और विकास के लिये एवं इसी प्रकार की गतिविधियों में संलग्न संस्थाओं के कार्यों का समन्वय करने हेतु प्रमुख वित्तीय संस्था के रूप में की गई। SIDBI का गठन MSME के लिये ऋण प्रवाह को सुगम एवं सुदृढ़ बनाना तथा MSME पारितंत्र के वित्तीय एवं विकासपरक, दोनों प्रकार के अंतरालों की पूर्ति करने के उद्देश्य से किया गया था।

भारतीय खाद्य निगम

हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) को निर्देश दिया है कि वह ओपन मार्केट सेल स्कीम (Open Market Sale Scheme-OMSS) के तहत ज़रूरतमंदों को पका हुआ भोजन देने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और धर्मार्थ संगठनों को खाद्यान्न उपलब्ध कराए। FCI को दिये गए निर्देशों के अनुसार, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और धर्मार्थ संगठन ई-नीलामी के बिना FCI गोदामों से गेहूँ और चावल खरीद सकते हैं। चावल के लिये OMSS आरक्षित मूल्य 2,250 रुपए प्रति क्विंटल है और गेहूँ के लिये 2,135 रुपए प्रति क्विंटल है। भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) ‘उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत शामिल सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। इसकी स्थापना एक सांविधिक निकाय के रूप में भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना है।


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