न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 10 Jan, 2020
  • 50 min read
भूगोल

प्रतिपूरक वनीकरण

प्रीलिम्स के लिये:

वन सलाहकार समिति

मेन्स के लिये:

वन सलाहकार समिति द्वारा प्रारंभ की गई प्रतिपूरक वनीकरण संबंधी योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee) ने गैर-सरकारी एजेंसियों की प्रतिपूरक वनीकरण के लिये वृक्षारोपण करने की ज़िम्मेदारी को कमोडिटी (Commodity) के रूप में पूर्ण करने संबंधी एक योजना प्रारंभ करने की अनुशंसा की है।

मुख्य बिंदु:

  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 [Forest (Conservation) Act, 1980] के प्रावधानों के तहत जब भी खनन या अवसंरचना विकास जैसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये वन भूमि का उपयोग किया जाता है तो बदले में उस भूमि के बराबर गैर-वन भूमि अथवा निम्नीकृत भूमि के दोगुने के बराबर भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण करना होता है।
  • परंतु वन सलाहकार समिति द्वारा प्रतिपूरक वनीकरण को कमोडिटी के रूप में अनुमति प्रदान किये जाने से यह हरित कार्यकर्त्ताओं (Green Activists) के बीच चिंता का विषय बन गया है।
  • वन सलाहकार समिति द्वारा 19 दिसंबर, 2019 को एक बैठक के दौरान ‘ग्रीन क्रेडिट योजना’ (Green Credit Scheme) पर चर्चा की गई तथा इसको प्रारंभ करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • इसे पहली बार गुजरात सरकार द्वारा विकसित किया गया था परंतु वर्ष 2013 से इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) से अनुमति नहीं मिली है।

ग्रीन क्रेडिट स्कीम:

  • प्रस्तावित योजना निजी कंपनियों और ग्रामीण वन समुदायों को भूमि की पहचान करने तथा वृक्षारोपण की अनुमति देती है।
  • यदि वृक्षारोपण में वन विभाग के मानदंडों को पूरा किया जाता है तो तीन वर्षों के बाद उस वन भूमि को प्रतिपूरक वनीकरण के रूप में माना जाएगा।
  • ऐसे उद्योग जिन्हें प्रतिपूरक वनीकरण के लिये वन भूमि कीआवश्यकता है, उन्हें वृक्षारोपण करने वालीं इन निजी कंपनियों से संपर्क करना होगा, तथा उन्हें इसका भुगतान करना होगा।
  • उसके बाद इस भूमि को वन विभाग को हस्तांतरित किया जाएगा और इसे वन भूमि के रूप में दर्ज किया जाएगा।
  • इन वन भूमियों को तैयार करने वाली कंपनियाँ अपनी परिसंपत्तियों का व्यापार करने के लिये स्वतंत्र होंगी।
  • वर्ष 2015 में भी निम्नीकृत भूमि के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से एक ग्रीन क्रेडिट योजना प्रारंभ करने की अनुशंसा की गई थी, परंतु इसे भी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से स्वीकृति नहीं मिल सकी।

ग्रीन क्रेडिट योजना के संभावित लाभ:

  • इस योजना के माध्यम से पारंपरिक वन क्षेत्र में रह रहे लोगों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों को भी वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहन मिलेगा।
  • यह योजना ‘सतत विकास लक्ष्यों’ (Sustainable Development Goals) और ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान’ (Nationally Determined Contributions) जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता करेगी।

ग्रीन क्रेडिट योजना से संबंधित समस्याएँ:

  • यह बहु उपयोगी वन क्षेत्रों के निजीकरण की समस्या उत्पन्न करती है।
  • वन भूमि के निजीकरण से एकल स्वामित्त्व वाले वन भूखंडों का निर्माण होगा जबकि वन संपदाओं पर सभी समान रूप से आश्रित हैं।
  • इस योजना में वनों का सामाजिक एवं पारिस्थितिक महत्त्व न मानते हुए उन्हें एक वस्तु के रूप में माना गया है।

भारत द्वारा वनीकरण के लिये किये गए अन्य प्रयास:

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

GOCO मॉडल

प्रीलिम्स के लिये:

GOCO Model, आर्मी बेस वर्कशॉप, केंद्रीय आयुध डिपो

मेन्स के लिये:

GOCO Model और इसके निहितार्थ, रक्षा क्षेत्र का निजीकरण किये जाने संबंधित मुद्दा

चर्चा में क्यों?

भारतीय सेना द्वारा परिचालन क्षमता में सुधार लाने के उद्देश्य से अपने आधार कार्यशालाओं और आयुध डिपो के लिये सरकारी स्वामित्व वाले संविदाकारक (Government Owned Contractor Operated- GOCO) मॉडल को लागू करने हेतु संभावित उद्योग भागीदारों की पहचान करने की प्रक्रिया को शुरू किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • सेना द्वारा केंद्रीय आयुध डिपो (Central Ordnance Depot- COD), कानपुर के लिये वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स और सप्लाई-चेन मैनेजमेंट के क्षेत्र में अनुभव रखने वाले सेवा प्रदाताओं को शॉर्टलिस्ट करने हेतु उनसे जानकारी प्रदान करने के लिये अनुरोध (Request for Information- RFI) किया गया है।
  • सेना ने आर्मी बेस वर्कशॉप (Army Base Workshop- ABW) की उच्च परिचालन क्षमता लिये GOCO मॉडल के मूल्यांकन का कार्य शुरू कर दिया है।
  • इन कार्यशालाओं (Workshops) में किये जाने वाले कार्यों में डिपो स्तर पर मरम्मत तथा T-72 और T-90, बंदूक, मोर्टार एवं छोटे हथियार, वाहन, संचार प्रणाली, रडार, वायु रक्षा प्रणाली, बख्तरबंद कर्मियों के वाहन तथा पुर्जों का निर्माण एवं विमानन क्षेत्र के उपकरणों की मरम्मत करना शामिल हैं।

GOCO मॉडल से संबंधित तथ्य

  • GOCO मॉडल की सिफारिश युद्धक क्षमता बढ़ाने और रक्षा व्यय को फिर से संतुलित करने से संबंधित लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेखटकर (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली समिति ने किया था।
  • सिफारिशों के आधार पर सरकार ने दो अग्रिम आधार कार्यशालाओं, एक स्थैतिक कार्यशाला और चार आयुध डिपो को बंद करने का फैसला किया है, साथ ही आठ ABWs का GOCO मॉडल के आधार पर निगमीकरण (Corporatised) करने की सिफारिश की गई है।
  • चिंहित आठ ABW दिल्ली, जबलपुर (मध्य प्रदेश), काकिनारा (पश्चिम बंगाल), इलाहाबाद, आगरा और मेरठ (उत्तर प्रदेश), पुणे के पास किरकी और बंगलूरु में स्थित हैं।
  • 19 दिसंबर, 2019 को सूचना के लिये किये गए अनुरोध का उद्देश्य वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन मैनेजमेंट में अनुभवी सेवा प्रदाता को शॉर्टलिस्ट करना है।
  • गौरतलब है कि इस संदर्भ में प्रतिक्रियाएँ प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि अनुरोध को पोस्ट करने की तिथि से छह सप्ताह होगी।
  • ध्यातव्य है कि सेवा प्रदाताओं द्वारा COD कानपुर को अधिकार में लेने के बाद संपूर्ण अवसंरचना के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी सेवा प्रदाता की होगी।
  • इस मॉडल के अंतर्गत चयनित सेवा प्रदाता द्वारा मौजूदा श्रमशक्ति/कार्यबल को नियोजित करना आवश्यक होगा।
  • गौरतलब है कि GOCO मॉडल के तहत आउटसोर्सिंग के लिये परिकल्पित COD कानपुर के कार्यों में भंडारण का संचालन, भंडारों का परिवहन और क्षेत्र का रख-रखाव शामिल है।
  • सेवा प्रदाता एक पंजीकृत भारतीय कंपनी होनी चाहिये, जिसके पास संबंधित डोमेन में कम-से-कम 10 वर्ष का कार्य अनुभव हो और पिछले तीन वित्तीय वर्षों में उसका औसत वार्षिक कारोबार 50 करोड़ रुपए का हो।
  • COD कानपुर की सूची की कुल सीमा लगभग 4045 वस्तुएँ हैं और यहाँ किसी भी समय औसतन लगभग 70,000 टन भंडार होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के कपड़े, जूते, टोपी या हेल्मेट और तंबू का सामान, कैम्पिंग आइटम, रसोई की सामग्री इत्यादि उपकरण शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परस्‍पर वैधानिक सहायता के लिये संशोधित दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये:

परस्‍पर वैधानिक सहायता

मेन्स के लिये:

संशोधित दिशा-निर्देशों का उद्देश्य व महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने अपराध के प्रति ‘शून्‍य सहनशीलता’ (Zero Tolerance) की नीति को आगे बढ़ाते हुए शीघ्र न्‍याय दिलाने के प्रयास के अंतर्गत, आपराधिक मामलों में अंतर्राष्‍ट्रीय स्तर पर परस्‍पर वैधानिक सहायता (Mutual Legal Assistance-MLA) प्रक्रिया में तेजी लाने तथा उसे सुसंगत बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं।

संशोधित दिशा-निर्देश:

  • सामान्यतः एक देश से दूसरे देश में किये जाने वाले अपराधों और डिजिटल प्रसार के कारण आपराधिक गतिविधियों के लिये भौगोलिक सीमाएँ समाप्त हो गई हैं। विभिन्न देशों के सार्वभौमिक क्षेत्राधिकार के बाहर साक्ष्‍य एवं अपराधियों की मौजूदगी के कारण पारंपरिक जांच की संभावना एवं प्रकृति में बदलाव की अनिवार्यता आवश्यक हो गई है।
  • अधिकांश मध्यस्थ और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल, याहू, ट्विटर और यूट्यूब आदि के सर्वर भारत के बाहर हैं। इस प्रकार भारतीय जाँच एजेंसियों को इन प्लेटफार्मों से डेटा तक पहुँचने के लिये एक विशेष प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता होती है ।
  • संशोधित मानदंड हाल ही में संसद में पेश किये गए व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 की पृष्ठभूमि में आए हैं ।

संशोधित मानदंड:

  • संशोधित दिशा-निर्देशों में अनुरोध पत्र के प्रारूपण और प्रसंस्करण, परस्पर कानूनी सहायता अनुरोध और सेवा से संबंधित समन, नोटिस तथा अन्य न्यायिक दस्तावेजों को जारी करने की प्रक्रिया भी शामिल है।
  • इसके अंतर्गत विभिन्‍न वैधानिक एवं प्रौद्योगिकीय बदलावों को लागू किया गया है और दस्‍तावेज़ो को संक्षिप्‍त एवं केंद्रित किये जाने के साथ-साथ अंतर्राष्‍ट्रीय आवश्‍यकताओं के अनुकूल बनाने का लक्ष्‍य रखा गया है।
  • संशोधित दिशा-निर्देश विदेश में रहने वाले लोगों के बारे में दस्‍तावेज़ संबंधी सेवाओं में शीघ्र एवं समयानुसार प्रत्‍युत्‍तर हेतु विभिन्‍न न्‍यायालयों द्वारा व्‍यक्त की गई चिंताओं को भी संबोधित करता है।
  • इसके अंतर्गत जाँचकर्त्ताओं, अभियोजन पक्ष तथा न्‍यायिक अधिकारियों के लिये आपराधिक मामलों में परस्‍पर वैधानिक सहायता के क्षेत्र में प्रशिक्षण को भी शामिल किया गया है।
  • भारत ने 42 देशों के साथ परस्‍पर वैधानिक सहायता संधि/समझौते किये हैं ।
  • सामान्‍य तौर पर, विदेश में रहने वाले लोगों के बारे में परस्‍पर वैधानिक सहायता अनुरोध/साक्ष्‍य हेतु प्रार्थना पत्र और सूचना सेवा/सूचनाओं/न्‍यायिक दस्‍तावेजों के रूप में सहायता मांगी जाती है तथा प्राप्‍त की जाती है।
  • इस प्रकार की गतिविधियों के लिये गृह मंत्रालय को नोडल मंत्रालय और केंद्रीय प्राधिकरण का दर्ज़ा दिया गया है।

स्रोत: पीआईबी


सामाजिक न्याय

क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2018

प्रीलिम्स के लिये :

रिपोर्ट में महत्त्वपूर्ण बिंदु , NCRB

मेन्स के लिये :

NCRB द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के माध्यम से SC,SC एवं महिलाओं की वास्तविक स्तिथि का मूल्यांकन

चर्चा में क्यों :

वार्षिक अपराधों के संदर्भ में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (The National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा क्राइम इन इंडिया रिपोर्ट 2018 प्रकाशित की गई है ।

  • वर्ष 201 8 की रिपोर्ट का प्रकाशन अस्थायी डेटा (Provisional Data) के साथ किया गया क्योंकि NCRB के बार-बार कहने के बावजूद पाँच राज्यों- पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और सिक्किम द्वारा डेटा संबंधी स्पष्टीकरण नहीं भेजा गया ।
  • वर्ष 2017 की वार्षिक अपराध रिपोर्ट पिछले साल 21 अक्तूबर को दो साल की देरी के बाद प्रकाशित हुई थी।

रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु:

महिलाओं के संदर्भ में-

Unsafe space

  • रिपोर्ट 2018 के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ देश में अपराध के कुल 3,78,277 मामले दर्ज किये गए हैं , जबकि वर्ष 2017 में यह आँकड़ा 3,59,849 था।
  • महिला अपराध में शीर्ष तीन राज्य क्रमशः उत्तर प्रदेश (59,445 ), महाराष्ट्र (35,497), पश्चिम बंगाल (30,394) हैं ।
  • बलात्कार से संबंधित मामलों में सज़ा की दर 27.2% थी, जबकि बलात्कार के मामलों में चार्जशीट दाखिल करने की दर 85.3% थी।
  • पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिलाओं के खिलाफ क्रूरता की दर 31.9% रही, हमले या क्रूरता के प्रति महिलाओं द्वारा अपना बचाव करने के प्रति खिलाफ/विरोध की दर 27.6% रही।
  • 2018 में कुल 50,74,634 संज्ञेय अपराधों में से 31,32,954 को भारतीय दंड संहिता (IPC) में और 19,41,680 अपराधों को विशेष और स्थानीय कानून (SLL) में दर्ज किया गया जो वर्ष 2017 की तुलना में 1.3% अधिक है (50,07,044 मामले)।
  • प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर वर्ष 2017 के 388.6 से घटकर 2018 में 383.5 पर आ गई।

आत्महत्या के संदर्भ में :

  • NCRB द्वारा आत्महत्या के आकँड़ों पर एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड इन इंडिया 2018 रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,349 लोगों ने अपना जीवन समाप्त किया (किसानों की आत्महत्या पर NCRB की रिपोर्ट) जो देश में आत्महत्याओं की कुल संख्या का 7.7% है।
  • आत्महत्या करने वालो में 5,763 किसान और 4,586 खेतिहर मज़दूर शामिल हैं ।
  • वर्ष 2018 में आत्महत्या करने वाले लोगों की कुल संख्या 1,34,516 थी, जो 2017 (1,29,887 मामले ) की तुलना में 3.6% अधिक है।
  • आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र (17,972), तमिलनाडु (13,896), पश्चिम बंगाल (13,255) शीर्ष पर रहे।

हत्या के संदर्भ में :

  • अनुसूचित जाति (SC)और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित अधिनियमों के तहत दर्ज की गई हत्या की घटनाओं में वर्ष 2018 की रिपोर्ट में गिरावट देखी गई । वर्ष 2017 में जहाँ हत्या से संबंधित 6729 मामले प्रकाशित हुए, वहीं वर्ष 2018 में यह संख्या 4816 रही।
  • वर्ष 2018 में हत्या के कुल 29,017 मामले दर्ज किये गये , जिसमें वर्ष 2017 (28,653 मामले) के मुकाबले 1.3% की वृद्धि हुई।
  • वर्ष 2018 में साइबर अपराध के 27,248 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2017 में इस तरह 21796 मामले दर्ज किये गए।
  • वर्ष 2018 में सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराधों के कुल 76,851 मामले दर्ज किये गए, जिनमें, 57,828 मामले दंगों से संबंधित थे जोकि, कुल मामलों के 75.2% थे।

NCRB :

  • NCRB की स्थापना 1986 में अपराध और अपराधियों की सूचनाओं के भंडार के रूप में कार्य करने के लिये की गई थी ताकि टंडन समिति की सिफारिशों के आधार पर अपराधियों को राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) में जोड़ने में मदद मिल सके।
  • वर्ष 2009 में NCRB को अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) की निगरानी, ​​समन्वय और कार्यान्वयन के लिए ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
  • 21 अगस्त 2017 को, NCRB ने राष्ट्रीय डिजिटल पुलिस पोर्टल लॉन्च किया जो नागरिकों को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के अलावा CCTNS डेटाबेस पर अपराधी/संदिग्ध की खोज करने में मदद करता है साथ ही ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने किरायेदारों, घरेलू मददगारों, ड्राइवरों आदि का सत्यापन करने की अनुमति देता है
  • NCRB भारत में नेशनल क्राइम स्टैटिस्टिक्स यानी क्राइम, एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स और प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स का संकलन एवं प्रकाशन भी करता है। इन प्रकाशन भारत और विदेशों दोनों में नीति निर्माताओं, पुलिस, अपराधियों, शोधकर्ताओं और मीडिया द्वारा प्रमुख संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
  • NCRB के तहत सेंट्रल फिंगर प्रिंट ब्यूरो, देश में सभी लोगों की उंगलियों के निशान का एक राष्ट्रीय भंडार है जो फ़िंगर प्रिंट विश्लेषण और आपराधिक निगरानी प्रणाली (FACTS) पर खोज सुविधा प्रदान करता है।
  • NCRB का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है ।
  • इसके वर्तमान निदेशक रामफल पवार (IPS) हैं ।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नई एवं उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियाँ- नेस्ट

प्रीलिम्स के लिये:

नई एवं उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियाँ- नेस्ट

मेन्स के लिये:

विदेश नीति में नई प्रौद्योगिकियों की भूमिका व महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्रालय ने 5G और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) जैसी नई तकनीकों के कारण उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों से निपटने हेतु एक नए प्रभाग- नई एवं उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियाँ (New and Emerging Strategic Technologies- NEST) की स्थापना की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस नए प्रभाग का उद्देश्य विभिन्न भारतीय राज्यों में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना तथा उनके बीच समन्वय स्थापित करना है।
  • यह नया प्रभाग नई और उभरती प्रौद्योगिकी से संबंधित मामलों में केंद्रीय विदेश मंत्रालय के नोडल कार्यालय की तरह काम करेगा। इसका उद्देश्य अन्य देशों की सरकारों और भारतीय मंत्रालयों एवं विभागों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान एवं समन्वय को बढ़ावा देना है।
  • यह प्रभाग नई प्रौद्योगिकियों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एवं इनके प्रभाव को देखते हुए विदेश नीति के आकलन में सहायता प्रदान करेगा।
  • नया प्रभाग बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय मंचों जैसे-संयुक्त राष्ट्र संघ, G20 आदि में भारत के हितों की रक्षा हेतु वार्ताओं और समझौतों में भी विदेश मंत्रालय को सलाहकारी निकाय रूप से सहयोग प्रदान करेगा।
  • मंत्रालय के अनुसार, जल्दी ही इस प्रभाग के लिये अधिकारियों एवं सदस्यों की नियुक्ति का कार्य संपन्न कर लिया जाएगा।

उभरती प्रौद्योगिकियों का देश की नीतियों पर प्रभाव:

  • कई विशेषज्ञों ने AI और 5G जैसी तकनीकों को 5वीं औद्योगिक क्रांति का महत्त्वपूर्ण घटक बताया है। भविष्य में कौन से देश आगे होंगे इसका निर्धारण इन्हीं प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करेगा।
  • जिन देशों में ये प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध होंगी वे सेवा प्रदाता के रूप में और जिनके पास ऐसी प्रौद्योगिकियाँ नहीं होंगी वे उपभोक्ता के रूप में उभरेंगे।
  • अत: पहली स्थिति के देश मज़बूत एवं दूसरी स्थिति के देश कमज़ोर अवस्था में होंगे।
  • AI और 5G जैसी प्रणालियाँ पूर्णरूप से डेटा पर आधारित होती हैं, ये अन्य देशों के नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी (Personal Data) उपलब्ध कराकर सामरिक बढ़त भी प्रदान करती हैं।
  • वर्तमान में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। ज्ञातव्य है कि देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 665.31 मिलियन है। देश में इस क्षेत्र में अप्रैल 2000 से जून 2019 तक विदेशी निवेश 37.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था, इन आँकड़ों से इस क्षेत्र में भारतीय बाज़ार की क्षमता और भविष्य में उत्पन्न होने वाले अवसरों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
  • दिन-प्रतिदिन तकनीकी विकास के साथ इंटरनेट मात्र एक संचार माध्यम नहीं रहा बल्कि आज यह यातायात, सुरक्षा, न्याय जैसे अन्य कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। अत: उपरोक्त क्षेत्रों के लिये नीतियों के निर्माण में तकनीक की भूमिका की समीक्षा करना आवश्यक हो गया है।

आगे की राह:

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार, दूर-संचार के क्षेत्र में वर्ष 2022 तक भारत में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विदेशी निवेश का अनुमान है। अतः इस क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति देश के लिये आर्थिक तथा सामरिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण होगी।

स्रोत: लाइव मिंट


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जलवायु परिवर्तन समस्या और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

प्रीलिम्स के लिये:

सतत विकास लक्ष्य, वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, UN Climate Action Summit, आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दा,जलवायु परिवर्तन से निपटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का योगदान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा आधुनिक विश्व

चर्चा में क्यों?

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) विश्व के समक्ष एक जटिल चुनौती है, विभिन्न देशों द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science and Technology- S&T) के क्षेत्र में सहयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्तमान समय में प्रमुख मुद्दों और विकासात्मक चुनौतियों का सामना करने वाले राष्ट्रों के समक्ष महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम सृजित हुए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार (Innovation) इन बहुमुखी चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को प्राप्त करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचारों का अत्यधिक महत्त्व है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत सहित विश्व के अन्य देश प्रतिबद्ध हैं जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में सीमा पार से सहयोग के लिए एक नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
  • भारत जैसे विविधता वाले देश में यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से वहाँ के लोग सशक्त होंगे और उनकी जीवन शैली आसान बनेगी तथा S&T अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस प्रकार वैश्विक राजनीति में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत आयाम है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित बहुत से नवाचार हुए हैं जो मानव जीवन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौरतलब है कि इन्हीं नवाचारों से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ पर्यावरण को हानि भी पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिये फ्रिज, AC इत्यादि उपकरणों का प्रयोग एक तरफ मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाते है और दूसरी ओर वातावरण में तापमान की वृद्धि के अहम कारक हैं।
  • साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से ही पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले वस्तुओं/तत्वों के विकल्पों की तलाश करना संभव है। अतः यह कहा जा सकता है कि विज्ञान के उन्नयन से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का निवारण विज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

वैज्ञानिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक स्तर उठाए गए कदम

  • कुछ वर्ष पहले ही भारत ने वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन (Global Innovation Technology Alliance- GITA) लॉन्च किया था जो फ्रंटलाइन तकनीकी-आर्थिक गठजोड़ के लिये एक सक्षम मंच प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारत के उद्यम कनाडा, फिनलैंड, इटली, स्वीडन, स्पेन और यूके सहित अन्य देशों के अपने समकक्षों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं तथा विश्व स्तर पर मौजूद चुनौतियों से निपटने की दिशा में प्रयासरत हैं।
  • भारत के नेतृत्व वाले और सौर उर्जा संपन्न 79 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों तथा लगभग 121 सहभागी देशों वाला अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) आधुनिक समय में वैज्ञानिक कूटनीति का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। ध्यातव्य है कि ISA का उद्देश्य सौर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करना है। इस तरह का मंच सदस्य देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को सुरक्षित, सस्ती, न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से पूरा कर सौर ऊर्जा के उपयोग के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक योगदान दे सकता है।
  • हाल ही में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्यवाही शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में भारत के प्रधानमंत्री ने आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) की घोषणा की।
    • गौरतलब है कि CDRI 35 देशों के परामर्श से भारत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का एक और उदाहरण है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने के लिये आवश्यक जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु विकसित और विकासशील देशों को सहयोग प्रदान करेगा। CDRI सदस्य देशों को तकनीकी सहायता और क्षमता विकास, अनुसंधान एवं ज्ञान प्रबंधन तथा वकालत व साझेदारी प्रदान करेगा। इसका उद्देश्य जोखिम की पहचान, उसका निवारण तथा आपदा जोखिम प्रबंधन करना है।
    • गठबंधन का उद्देश्य दो-तीन वर्षों के भीतर सदस्य देशों के नीतिगत ढाँचे, भविष्य के बुनियादी ढाँचे के निवेश और क्षेत्रों में जलवायु से संबंधित घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने संबंधी योजनाओं पर तीन गुना सकारात्मक प्रभाव डालना है।
    • इस गठबंधन के माध्यम से किफायती आवास, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से बचाने के लिये आवश्यक मज़बूत मानकों के अनुरूप बनाना इत्यादि बातों को सुनिश्चित करके भूकंप, सुनामी, बाढ़ और तूफान के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

आगे की राह

  • यह स्पष्ट है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महज दिखावा नहीं है बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता है। गौरतलब है कि किसी भी राष्ट्र के पास बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन की वह क्षमता नहीं हैं, जिससे पृथ्वी और मानव जाति के समक्ष मौजूद विशाल चुनौतियों से निपटा जा सके। इसलिये, यह अपरिहार्य है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार को ध्यान में रखकर भारत एवं अन्य देशों द्वारा एक आंतरिक कूटनीतिक उपकरण (Intrinsic Diplomatic Tool) बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव के लिए प्रभावी उपकरणों को डिज़ाइन करने एवं उन्हें विकसित करने हेतु हितधारकों के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय के सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं की खोज कर एवं उन तक आसान पहुँच प्रदान कर ही पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय कोबरा के जीनोम का अनुक्रमण

प्रीलिम्स के लिये:

जीनोम का अनुक्रमण

मेन्स के लिये:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से संबंधित शोध से जुड़े तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों सहित वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारत के सबसे विषैले साँपों में से एक ‘भारतीय कोबरा’ (Indian Cobra) के जीनोम (Genome) को अनुक्रमित (Sequenced) किया है।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:

  • भारतीय कोबरा के जीनोम को अनुक्रमित करने के लिये किये गए इस अध्ययन में कोबरा के 14 विभिन्न ऊतकों से लिये गए जीनोम और जीन संबंधी डेटा का प्रयोग किया गया।
  • वैज्ञानिकों ने विष ग्रंथि संबंधी जीनों की व्याख्या की गई तथा विष ग्रंथि की कार्य प्रक्रिया में शामिल विषाक्त प्रोटीनों को समझते हुए इसके जीनोमिक संगठन का विश्लेषण किया।
  • इस अध्ययन के दौरान विष ग्रंथि में 19 विषाक्त जीनों का विश्लेषण किया गया और इनमें से 16 जीनों में प्रोटीन की उपस्थिति पाई गई।
  • इन 19 विशिष्ट विषाक्त जीनों को लक्षित कर तथा कृत्रिम मानव प्रतिरोधी का प्रयोग करके भारतीय कोबरा के काटने पर इलाज के लिये एक सुरक्षित और प्रभावी विष-प्रतिरोधी का निर्माण हो सकेगा।

जीनोम के अनुक्रमण से लाभ:

भारतीय कोबरा के जीनोम के अनुक्रमण से उसके विष के रासायनिक घटकों को समझने में मदद मिलेगी और एक नए विष प्रतिरोधी उपचारों के विकास हो सकेगा क्योंकि वर्तमान विष प्रतिरोधी एक सदी से अधिक समय तक व्यावहारिक रूप से अपरिवर्तित हैं।

विषैले साँपों के उच्च-गुणवत्ता वाले जीनोम के अनुक्रमण से विष ग्रंथियों से संबंधित विशिष्ट विषाक्त जीनों की व्यापक सूची प्राप्त होगी, जिसका प्रयोग परिभाषित संरचना वाले कृत्रिम विष प्रतिरोधी का विकास करने में किया जाएगा।

Genome

विष-प्रतिरोधी बनाने का तरीका:

  • वर्तमान में विष-प्रतिरोधी के निर्माण के लिये साँप के विष को घोड़ों (किसी अन्य पालतू जानवर) के जीन के साथ प्रतिरक्षित किया जाता है और यह 100 साल से अधिक समय की प्रक्रिया द्वारा विकसित है।
  • यह प्रक्रिया श्रमसाध्य है और निरंतरता की कमी के कारण अलग-अलग प्रभावकारिता और गंभीर दुष्प्रभावों से ग्रस्त है।

भारत में सर्पदंश की स्थिति:

  • भारत में प्रत्येक वर्ष ‘बिग-4’ (Big-4) साँपों के सर्पदंश से लगभग 46000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 1,40,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।

बिग-4:

  • इस समूह में निम्नलिखित चार प्रकार के साँपों को सम्मिलित किया जाता है-
    • भारतीय कोबरा (Indian Cobra)
    • कॉमन करैत (Common Krait)
    • रसेल वाइपर (Russell’s Viper)
    • सॉ स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled Viper)
  • वहीं पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच मिलियन व्यक्ति सर्पदंश से प्रभावित होते हैं, जिसमें से लगभग 1,00,000 व्यक्तियों की मौत हो जाती है तथा लगभग 4,00,000 व्यक्ति नि:शक्त हो जाते हैं।
  • हालाँकि भारत में साँपों की 270 प्रजातियों में से 60 प्रजातियों के सर्पदंश से मृत्यु और अपंगता जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है परंतु अभी उपलब्ध विष प्रतिरोधी दवा केवल बिग-4 साँपों के खिलाफ ही प्रभावी है।
  • हालाँकि साँपों की बिग-4 प्रजातियाँ उत्तर-पूर्वी भारत में नहीं पाई जाती हैं, लेकिन इस क्षेत्र में सर्पदंश के मामलों की संख्या काफी अधिक है।
  • पश्चिमी भारत का ‘सिंद करैत’ (Sind Krait) साँप का विष कोबरा साँप की तुलना में 40 गुना अधिक प्रभावी होता है परंतु दुर्भाग्य से पॉलीवलेंट (Polyvalent) विष प्रतिरोधी इस प्रजाति के साँप के विष को प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी करने में विफल रहता है।

भारतीय कोबरा:

  • इसका वैज्ञानिक नाम ‘नाजा नाजा’ (Naja naja) है।
  • यह 4 से 7 फीट लंबा होता है।
  • यह भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान एवं दक्षिण में मलेशिया तक पाया जाता है।
  • यह साँप आमतौर पर खुले जंगल के किनारों, खेतों और गाँवों के आसपास के क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


नीतिशास्त्र

एथिकल वीगनिज़्म : एक दार्शनिक विश्वास

मेन्स के लिये:

एथिकल वीगनिज़्म , प्रकार, एथिकल वेजीटेरियनिज़्म

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) के एक रोज़गार न्यायाधिकरण (Employment Tribunal) द्वारा जोर्डी कासमिटजाना (Jordi Casamitjana) की याचिका पर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) के संदर्भ में फैसला सुनाया गया।

हालिया संदर्भ:

  • जोर्डी कासमिटजाना नाम के एक व्यक्ति द्वारा रोज़गार न्यायाधिकरण में याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि लीग अगेंस्ट क्रुअल स्पोर्ट्स (The League Against Cruel Sports) नामक एक पशु कल्याण संस्था ने उसे नौकरी से इसलिये निकाल दिया क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि इस संस्था का पैसा ऐसी कंपनियों में लगाया जाता है जो पशुओं का परीक्षण करती हैं।
  • दूसरी तरफ पशु कल्याण संस्था का कहना था कि उसे अशिष्ट बर्ताव के चलते निकाला गया था। साथ ही वह ब्रिटेन में लोमड़ी के शिकार और अन्य प्रकार के मनोरंजक शिकार पर प्रतिबंध आरोपित करने के पक्ष में भी था।
  • इसी संदर्भ में न्यायाधिकरण को यह निर्धारित करना था कि एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) धार्मिक या दार्शनिक विश्वास जो समानता अधिनियम, 2010 में वर्णित है उन मानदंडों के अनुकूल है या नहीं।
  • रोज़गार न्यायाधिकरण के न्यायाधीश रॉबिन पोस्ले ने निर्धारित किया कि ब्रिटेन के कानून में समानता अधिनियम, 2010 (The Equality Act, 2010) द्वारा जिन दार्शनिक विश्वासों के प्रति भेदभाव न करने की सुरक्षा दी गई है उनमें एथिकल वीगनिज़्म (Ethical veganism) भी शामिल है अर्थात् किसी भी दार्शनिक विश्वास के लिये जो मानदंड निर्धारित हैं वे सभी एथिकल वीगनिज्म में भी देखे जाते हैं।

एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism):

  • ऑक्सफोर्ड हैंडबुक ऑफ फूड एथिक्स में 'द एथिकल केस फॉर वेजनिज्म' के अनुसार, एथिकल वीगनिज़्म शाकाहारी जीवन-शैली (Vegan-Lifestyle) के लिये एक सकारात्मक नैतिक मूल्यांकन प्रदान करता है।
  • एथिकल वीगनिज़्म में पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पादों के साथ- साथ दूध का बहिष्कार करना भी शामिल है।

एथिकल वेजीटेरियनिज़्म ओर एथिकल वीगनिज़्म में अंतर

  • एथिकल वेजीटेरियननिज़्म और एथिकल वीगनिज़्म जानवरों से बने उत्पाद एवं जानवरों के द्वारा बनाये गए उत्पादों के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं।
  • एथिकल वेजीटेरियनिज़्म (Ethical Vegetarianism) में पशुओं से बनने वाले उत्पादों का विरोध होता है, अर्थात् कोई भी ऐसा उत्पाद जिसे जीव हत्या के बाद प्राप्त किया गया हो जैसे- मांस , चमड़े के पर्स, बेल्ट इत्यादि वहीं दूसरी ओर एथिकल वीगनिज़्म (Ethical Veganism) में पशुओं (बिना जीव हत्या के) से प्राप्त होने वाले उत्पादों का बहिष्कार शामिल है जैसे- दूध,अंडे पनीर इत्यादि।

एथिकल वीगनिज़्म के दो मुख्य प्रकार हैं:

  • व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म (Broad Absolutist Veganism)
  • विनम्र नैतिक वीगनिज़्म (Modest Ethical Veganism).

व्यापक निरपेक्षवादी वीगनिज़्म में पशुओं द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित होता है, जबकि विनम्र एथिकल वीगनिज़्म में कुछ पशुओं के द्वारा निर्मित उत्पादों (बिल्ली,कुत्ता,गाय, सूअर आदि) के प्रयोग पर ही पाबंदी होती है।

क्या है ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010:

  • ब्रिटेन समानता अधिनियम, 2010 कार्य स्थल और समाज में लोगों को व्यापक भेदभाव किये जाने से बचाता है। सेवाओं और सार्वजनिक कार्यों में नागरिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव एवं उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • वेतन संबंधी गोपनीयता कानूनों को लागू करने योग्य बनाना, रोज़गार न्यायाधिकरणों को व्यापक कार्यबल को लाभान्वित करने वाली सिफ़ारिशें करने की शक्ति देना और धर्म या विश्वास को संरक्षण प्रदान करने की शक्ति प्रदान करना अधिनियम की विशेषताओं में शामिल है।
  • अधिनियम में किसी भी विश्वास को धार्मिक या दार्शनिक विश्वास के रूप में परिभाषित किया गया है। चूँकि रोज़गार न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया है कि नैतिकतावाद एक दार्शनिक विश्वास है, अत: उपरोक्त नायधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय, एथिकल वीगनिज़्म को भी संरक्षण प्रदान करता है।
  • धर्म या विश्वास समानता अधिनियम, 2010 द्वारा प्रदत्त नौ ‘संरक्षित विशेषताओं’ में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जनवरी, 2020

भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर प्रतिबंध

महिला भारोत्तोलक सरबजीत कौर पर राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) ने डोपिंग के कारण 4 वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है। राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी के अनुसार, डोपिंग रोधी अनुशासन समिति ने सरबजीत कौर को डोपिंग के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व भी सरबजीत कौर को प्रतिबंधित पदार्थ के सेवन का दोषी पाया गया था। NADA की स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश भर में खेलों में ड्रग्स और प्रबंधित पदार्थों के बढ़ते चलन को रोकना है। यह एक गैर-सरकारी संस्था है जिसका गठन वर्ष 2005 में किया गया था।

जम्मू-कश्मीर से जल्द हटेंगे प्रतिबंध

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पश्चात् केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा है कि इस सभी प्रतिबंधों की आगामी 7 दिनों के भीतर समीक्षा की जानी चाहिये। उल्लेखनीय है कि इन प्रतिबंधों में नेताओं के आवागमन पर रोक और इंटरनेट शटडाउन आदि शामिल हैं। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इंटरनेट का प्रयोग अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा है और इससे अनिश्चित काल के लिये बंद नहीं किया जा सकता। साथ ही न्यायालय ने कहा है कि धारा-144 का प्रयोग किसी विचार को दबाने के लिये हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।

सामिया नसीम

भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक सामिया नसीम को अमेरिका के अटॉर्नी जनरल विलियम बर ने शिकागो के जज के पद पर नियुक्त किया है। इससे पूर्व सामिया नसीम ने न्यूयॉर्क और शिकागो में इमीग्रेशन एवं सीमा शुल्क परिवर्तन विभाग तथा होमलैंड सुरक्षा विभाग के सहायक मुख्य वकील के तौर पर कार्य किया है। सामिया नसीम न्यूयॉर्क के स्टेट बार की भी सदस्य हैं।

विश्व हिंदी दिवस

10 जनवरी को विश्व भर में हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। आधिकारिक तौर पर हिंदी दिवस की शुरुआत वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा की गई थी। विश्व हिन्दी दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व भर में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना था। गौरतलब है कि विश्व भर के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती है। हिंदी भाषा को लेकर हिंदी के प्रसिद्ध स्तंभकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की निम्न पंक्तियाँ कालजयी है-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2