डेली न्यूज़ (09 Oct, 2020)



‘पॉवर्टी एंड शेयर प्रॉस्पेरिटी’ रिपोर्ट: विश्व बैंक

प्रिलिम्स के लिये

विश्व बैंक, रिपोर्ट संबंधी मुख्य बिंदु, वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक

मेन्स के लिये

रिपोर्ट के निहितार्थ, भारत में गरीबी की स्थिति, कारण और सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में आगाह किया है कि महामारी के प्रभाव के कारण वर्ष 2021 तक तकरीबन 150 मिलियन लोग ‘अत्यंत गरीबी’ की श्रेणी में आ सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ‘पॉवर्टी एंड शेयर प्रॉस्पेरिटी’ रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 20 वर्षों में यह पहली बार होगा जब वैश्विक गरीबी दर में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा महामारी के कारण शहरी गरीब लोग सबसे अधिक प्रभावित होंगे, साथ ही महामारी का सबसे अधिक प्रभाव अनौपचारिक और विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत लोगों पर अधिक देखने को मिलेगा।

वैश्विक स्तर पर गरीबी में वृद्धि

  • कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव के कारण वर्ष 2020 में 88 मिलियन से 115 मिलियन तक लोग गरीबी के दुश्चक्र में फँस जाएंगे। वहीं वर्ष 2021 तक ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 150 मिलियन पर पहुँच जाएगी।
    • महामारी और उसके कारण उत्पन्न हुई वैश्विक मंदी के परिणामस्वरूप विश्व की लगभग 1.4 प्रतिशत जनसंख्या ‘अत्यंत गरीब’ की श्रेणी में आ सकती है। 
    • विश्व बैंक के अनुसार, प्रतिदिन 1.90 अमेरिकी डॉलर से कम आय स्तर पर जीवन-यापन करने की स्थिति को ‘अत्यंत गरीबी’ के रूप में परिभाषित किया गया है।

विकासशील देशों पर अधिक प्रभाव

  • ‘अत्यंत गरीबी’ की श्रेणी में आने वाले अधिकांश लोग ऐसे क्षेत्रों, जैसे- उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया आदि से होंगे, जहाँ गरीबी का स्तर पहले से ही काफी चिंताजनक है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के कारण अत्यंत गरीबी के दुश्चक्र में फँसने वाले 82 प्रतिशत लोग मध्यम आय वाले देशों (MICs) से होंगे।
  • अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया क्षेत्र के गरीब लोगों पर महामारी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है और इसके कारण 49 मिलियन लोगों का ‘अत्यंत गरीबी’ की श्रेणी में आने का अनुमान है।
  • इसके अलावा महामारी का प्रभाव उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र पर भी देखने को मिलेगा, जहाँ अनुमान के अनुसार तकरीबन 26 - 40 मिलियन लोग ‘अत्यंत गरीबी’ की श्रेणी में आ जाएंगे।
    • ध्यातव्य है कि गरीबी और उसके कारण उत्पन्न होने वाली समस्याएँ पहले से ही इस क्षेत्र को काफी प्रभावित कर रही थीं। विश्व बैंक के आँकड़े बताते हैं कि दुनिया के सबसे अधिक 20 गरीब देशों में से तकरीबन 18 देश उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र से हैं।

निहितार्थ

  • यदि जल्द-से-जल्द कोई नीतिगत कार्रवाई नहीं की गई तो वैश्विक संघर्ष/विवादों और जलवायु परिवर्तन सहित कोरोना वायरस महामारी के दबाव की वजह से वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक गरीबी को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करना काफी मुश्किल हो जाएगा।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के प्रभाव के कारण अधिक-से-अधिक लोग गरीबी के दुश्चक्र में फँस जाएंगे और गरीबी को समाप्त करने के लिये अब तक वैश्विक समुदाय द्वारा किये गए सभी प्रयास कमज़ोर पड़ जाएंगे।
  • चूँकि महामारी के परिणामस्वरूप ‘अत्यंत गरीबी’ के दुश्चक्र का सबसे अधिक प्रभाव दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका पर अधिक देखने को मिला है, इसलिये ये क्षेत्र अब विकास की दृष्टि से अन्य देशों की तुलना में और अधिक पिछड़ जाएंगे।
    • यदि अतिशीघ्र कोई उपाय नहीं किया गया तो इन क्षेत्रों में लंबे समय तक महामारी का प्रभाव देखने को मिलेगा।

सुझाव

  • रिपोर्ट बताती है कि महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर गरीबी के स्वरूप में परिवर्तन आ रहा है और अब ग्रामीण तथा अशिक्षित लोगों के साथ-साथ शहरी और पढ़े-लिखे लोग भी गरीबी के इस दुश्चक्र फँस रहे हैं। 
    • ऐसे में गरीबी उन्मूलन संबंधी नीतिगत उपायों का प्रावधान करने और उनका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु ऐसे लोगों की पहचान करना भी आवश्यक है, जो गरीबी की पारंपरिक परिभाषा में शामिल नहीं होते हैं।
  • इसके अलावा हमें वैश्विक संघर्ष/ विवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी मूलभूत समस्याओं को समाप्त करने की ओर ध्यान देने आवश्यकता है।

भारत में गरीबी 

  • वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)  2019 के अनुसार, भारत ने वर्ष 2006-2016 के बीच 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है।
  • वैश्विक गरीबी सूचकांक के अनुसार, वर्ष 2005-2006 में संपूर्ण भारत में 640 मिलियन से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी की स्थिति में जीवन-यापन कर रहे थे, जबकि वर्ष 2016-2017 ऐसे लोगों की संख्या घटकर 369.55 मिलियन हो गई।
  • अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2016-17 में भारत की 27.9 फीसदी आबादी गरीब थी। अन्य देशों की तरह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी गरीबों की संख्या शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। 

भारत में गरीबी का कारण

  • जनसंख्या विस्फोट: विगत कुछ वर्षों में भारत की जनसंख्या में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है। वर्तमान में भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, किंतु जल्द ही भारत इस मामले में चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत की जनसंख्या वृद्धि देश में गरीबी के स्तर को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर रही है।
  • कम कृषि उत्पादकता: कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता विशेष तौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में गरीबी का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य न मिल पाना भी ग्रामीण इलाकों में गरीबी बढ़ाने में सहायक है।
  • संसाधनों का अप्रभावी उपयोग: जानकार मानते हैं कि भारत के कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी काफी प्रबल मात्रा में मौजूद है, जिसके कारण मानव संसाधन का सही उपयोग संभव नहीं हो पाता है।
  • बेरोज़गारी: बेरोज़गारी भारत में बढ़ती गरीबी का एक अन्य मुख्य कारण है। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण काम मांगने वाले लोगों की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है, जबकि रोज़गार के अवसरों में तुलनात्मक रूप से विस्तार नहीं हो पाया है। इसका परिणाम हमें बेरोज़गारी के रूप में देखने को मिला है।
  • पूंजी की कमी: पूंजी की कमी के चलते अर्थव्यवस्था में निवेश भी काफी कम है, जिसके कारण निजी क्षेत्र में रोज़गार सृजित करना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • सामाजिक कारक: आर्थिक कारकों के अलावा भारत में गरीबी के कुछ सामाजिक कारक जैसे- विरासत संबंधी नियम, जाति प्रथा और रूढ़िवादी परंपराएँ आदि भी हैं, जो गरीबी को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।

गरीबी उन्मूलन हेतु सरकार के हालिया प्रयास

स्रोत: डाउन टू अर्थ


राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना, चक्रवात

मेन्स के लिये

भारत में चक्रवाती मौसम तथा चक्रवात से जुड़ी विभिन्न समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department -IMD) जल्द ही एक गतिशील, प्रभाव-आधारित चक्रवात चेतावनी प्रणाली शुरू करेगा, जिसका उद्देश्य हर वर्ष भारतीय तटों पर आने वाले चक्रवातों के कारण होने वाली आर्थिक हानि और संपत्ति के नुकसान को रोकना है।

प्रमुख बिंदु:

  • IMD के महानिदेशक ने यह घोषणा 06 अक्तूबर, 2020 को ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग’ (Indian Society of Remote Sensing- ISRS) द्वारा आयोजित विश्व अंतरिक्ष सप्ताह समारोह में की।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण  (NDMA) ने राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project) नामक एक परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत NDMA,  IMD और तटीय राज्यों की राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक ‘वेब-आधारित डायनेमिक कंपोज़िट रिस्क एटलस’ (Web-based Dynamic Composite Risk Atlas) विकसित कर रहा है।
  • विश्व अंतरिक्ष सप्ताह समारोह के पहले दिन ही IMD ने डॉ. मृत्युंजय महापात्रा की अध्यक्षता में ऑन-लाइन प्री-साइक्लोन’ (On-line pre-Cyclone) अभ्यास बैठक आयोजित की, इस बैठक में अक्तूबर-दिसंबर, 2020 के चक्रवाती मौसम के लिये योजना बनाने, तैयारियों की समीक्षा करने, आवश्यकताओं का जायजा लेने और IMD द्वारा नई पहल साझा करने के लिये हिस्सेदारी धारकों के साथ चर्चा की गई।

Cyclones

चक्रवात और भारत

  • चक्रवात कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज़ आँधी को कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चलते हैं। 
  • उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।
  • ध्यातव्य है कि भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
  • उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात अपने निम्नदाब के कारण ऊँची सागरीय लहरों का निर्माण करते हैं और इन चक्रवातों का मुख्य प्रभाव तटीय भागों में पाया जाता है।

Oceans

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निर्माण की अनुकूल स्थितियाँ: 

  • बृहत् समुद्री सतह;  
  • समुद्री सतह का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो; 
  • कोरिआलिस बल का उपस्थित होना; 
  • लंबवत पवनों की गति में अंतर कम होना;  
  • कमज़ोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना;  
  • समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।
  • चक्रवातों का निर्माण व समाप्ति:
  • चक्रवातों को ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं। 
  • चक्रवातों के स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं। 

वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का मार्ग:

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा प्रारंभ में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। लेकिन लगभग 20° अक्षांश पर ये चक्रवात कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दाईं ओर विक्षेपित हो जाते हैं तथा लगभग 25° अक्षांश पर इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी ही जाती है। 30° अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं के प्रभाव के कारण इनकी दिशा पूर्व की ओर हो जाती है।

Classification-of-cyclones

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम:

क्षेत्र  चक्रवात नाम 
हिंद महासागर   चक्रवात 
पश्चिमी अटलांटिक तथा पूर्वी प्रशांत महासागर  हरीकेन 
पश्चिमी प्रशांत महासगर और दक्षिणी चीन सागर टाइफून 
ऑस्ट्रेलिया  विली-विली 

हाल के वर्षों में बेहतर प्रौद्योगिकी और उपग्रह-निर्देशित डेटा के उपयोग में वृद्धि के साथ, IMD ने चक्रवातों के पूर्वानुमान और समय पर चेतावनी जारी करने में बेहतर प्रबंधन किया है। 

स्रोत- पीआइबी


प्रदूषण नियंत्रण हेतु EPCA की सख्ती

प्रिलिम्स के लिये:  

‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’, वायु गुणवत्ता सूचकांक 

मेन्स के लिये:

शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की चुनौतियाँ, वायु प्रदूषण से निपटने हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ [Environment Pollution (Prevention & Control) Authority-EPCA] ने दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के अन्य शहरों में ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (Graded Response Action Plan- GRAP) के तहत निर्धारित वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु:  

  • EPCA द्वारा GRAP के तहत निर्धारित प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिये दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किया गया है
  • गौरतलब है कि 8 अक्तूबर, 2020 को लगातार दूसरे दिन दिल्ली में वायु की गुणवत्ता ‘खराब’ (Poor) श्रेणी की रही थी।
  • EPCA ने 15 अक्तूबर के बाद दिल्ली, गाज़ियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम आदि शहरों में डीज़ल जेनरेटर के प्रयोग को प्रतिबंधित (आपातकालीन स्थितियों को छोड़कर) करने का निर्देश दिया है।
    • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने EPCA को सूचित किया था कि वे वर्ष 2020 की सर्दियों तक ऐसे आवश्यक उपाय कर लेंगे जिससे डीज़ल जेनरेटर की आवश्यकता के बिना ग्रिड से ही विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। 

EPCA के निर्देश:  

  • EPCA ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को 15 अक्तूबर के बाद ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (GRAP) के तहत "बहुत खराब" और "गंभीर" श्रेणी के अंतर्गत निर्धारित वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने का निर्देश दिया है।
    • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान, NCR में वायु प्रदूषण से निपटने की योजना है। इसे दिसंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की अलग-अलग श्रेणियों में क्रियान्वित करने के लिये तैयार किया गया था।
    • GRAP को ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ द्वारा जनवरी 2017 में लागू किया गया। इसके तहत वायु गुणवत्ता की चार श्रेणियों (मध्यम से खराब, बहुत खराब, गंभीर, 'गंभीर +' या 'आपातकाल') के तहत  प्रदूषण नियंत्रण उपाय सुझाए गए हैं।
  • EPCA द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के तहत कंपनियों को ‘राजमार्ग’ और ‘मेट्रो’ जैसी अन्य बड़ी निर्माण परियोजनाओं के लिये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को प्रदूषण प्रबंधन के लिये निर्धारित मानदंडों/दिशा-निर्देशों का पालन करने के संबंध में शपथ पत्र देना होगा।
  • EPCA अध्यक्ष के अनुसार, ‘रेड' और ‘ऑरेंज’ श्रेणी के उद्योगों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/प्रदूषण नियंत्रण समिति को एक शपथ पत्र देना होगा कि वे केवल अधिकृत ईंधन का उपयोग करेंगे और पर्याप्त प्रदूषण नियंत्रण उपायों के बिना कार्य नहीं करेंगे।

अन्य प्रयास:   

  • EPCA और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) के नेतृत्त्व में बने एक ‘कार्यबल’ (Task Force) द्वारा NCR में वायु गुणवत्ता की समीक्षा की जाएगी।
  • यदि इस दौरान वातावरण के प्रदूषण में वृद्धि देखी जाती है तो GRAP की अलग-अलग श्रेणियों के तहत निर्धारित प्रदूषण नियंत्रण उपायों के ‘अतिरिक्त कदम’ भी उठाए जा सकते हैं, जिसमें निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध,  वाहन पार्किंग शुल्क में वृद्धि आदि शामिल हैं।
  • इसके साथ ही राज्यों को प्रदूषण नियंत्रण के लिये पूर्व में जारी दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने को भी कहा गया है। इसके तहत सड़कों पर मशीनीकृत सफाई, धूल को नियंत्रित करने के लिये सड़कों पर पानी का छिड़काव, अपशिष्ट जलाने और धूल उत्सर्जन जैसी गतिविधियों की निगरानी करने हेतु रात्रि गश्त,  ठोस अपशिष्ट की डंपिंग के लिये दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं। 

प्रदूषण में वृद्धि का कारण:

  • वायु प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला हानिकारक धुआँ है।  लॉकडाउन में ढील के साथ ही वाहनों की आवाजाही बढ़ी है, जिससे कारण प्रदूषण में भी वृद्धि देखने को मिली है।
  • भवनों और सड़क निर्माण से जुड़ी गतिविधियों के कारण हवा में धूल और प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि होती है।
  • उद्योगों से निकलने वाला धुआँ और कोयला आधारित विद्युत संयंत्र प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारक है।
  • कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) से फसल की कटाई के कारण पौधों का 80% हिस्सा (ठूंठ/पराली) खेत में बचा रह जाता है। अक्तूबर-नवंबर माह के दौरान NCR में प्रदूषण की वृद्धि का एक बड़ा कारण  पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा खेतों में बची हुई पराली को जलाया जाना है।
  • सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथ ही हवा की गति और तापमान में भारी गिरावट देखने को मिलती है, जिसके कारण प्रदूषणकारी कण दूर छिटकने की बजाय धरती के नज़दीक ही बने रहते हैं, जो इस चुनौती को अधिक बढ़ा देता हैं।   

COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियाँ:  

  • EPCA अध्यक्ष के अनुसार, वर्तमान में इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि प्रदूषण COVID-19 के खतरे में वृद्धि कर सकता है, अतः इस अवधि के दौरान वायु प्रदूषण के खिलाफ ‘शून्य सहिष्णुता’ अपनाई जानी चाहिये। 
    • गौरतलब है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पीएम 2.5 (PM 2.5) कणों की मात्रा में मामूली वृद्धि के कारण COVID-19 से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ सकती है। 
  • EPCA ने COVID-19 और लॉकडाउन के कारण आर्थिक क्षेत्र में उत्पन्न हुई दबाव की स्थिति को स्वीकार किया और कहा कि EPCA द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाएगा कि प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में कोई व्यवधान न उत्पन्न हो।
  • EPCA द्वारा आगामी सर्दियों में केंद्र और राज्य के संयुक्त प्रयासों से प्रदूषण को नियंत्रित करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ताकि उसे प्रदूषण नियंत्रण के अतिरिक्त आपातकालीन उपायों का प्रयोग न करना पड़े।   

समाधान:

  • औद्योगिक इकाइयों में केरोसीन या अन्य प्रदूषक ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के साथ ही सार्वजनिक परिवहन तंत्र को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • पराली जलाने से न सिर्फ वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है बल्कि इससे मृदा में उपस्थित पोषक तत्त्वों का भी क्षरण होता है। अतः किसानों को इन समस्याओं के बारे में जागरूक करते हुए उन्हें पराली के निस्तारण हेतु अन्य विकल्पों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • हाल ही में ‘भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान’  (Indian Agriculture Research Institute- IARI) द्वारा पराली की समस्या से निपटने के लिये ‘पूसा अपघटक कैप्सूल’ (PUSA Decomposer Capsule) का विकास किया गया है, जो इस समस्या से निपटने में सहायक हो सकता है। 

‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’

[Environment Pollution (Prevention & Control) Authority-EPCA]:

  • EPCA का गठन केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 1998 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत किया गया था।
  • EPCA के गठन का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण पर नियंत्रण पाने और पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करने में उच्चतम न्यायालय का सहयोग करना था।
  • EPCA को पर्यावरण से जुड़े मामलों में किसी भी व्यक्ति, प्रतिनिधि निकाय या संगठन  की शिकायतों के आधार पर अथवा किसी मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था में संकुचन का अनुमान

प्रिलिम्स के लिये

विश्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये

भारत और दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी का प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक ने कोरोना वायरस महामारी और उसके कारण लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लेख करते हुए अपनी ‘साउथ एशिया इकोनाॅमिक फोकस रिपोर्ट’ में कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में  9.6 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।

प्रमुख बिंदु

भारत की स्थिति

  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व जून माह में विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 3.2 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया था, जिसे अब बढ़ा दिया गया है।
  • विनिर्माण और निर्यात उद्योग को लंबे समय तक तनाव का सामना करना पड़ेगा, वहीं निर्माण उद्योग में विकास की संभावना भी न के बराबर है।
    • इसका मुख्य कारण यह है कि ये उद्योग काफी हद तक प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं और प्रवासी श्रमिक अब तक वापस शहर नहीं लौटे हैं।
  • कारण
    • सर्वप्रथम तो भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत से पूर्व ही काफी धीमी गति से विकास कर रही थी। 
    • राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर गिरकर 4.5 फीसदी पर जा पहुँची थी, जो कि बीती 26 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर था।
    • इसके पश्चात् कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत और इस महामारी की रोकथाम के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों के चलते मांग व आपूर्ति दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
    • महामारी को नियंत्रित करने के लिये जो देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया, उसके प्रभाव से देश में सभी आर्थिक गतिविधियाँ आंशिक अथवा पूर्ण रूप से रुक गईं और उत्पादन बंद हो गया, ऐसे में अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी अधिक खराब हो गई।
    • वर्तमान में भारत सरकार और अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती राजस्व को लेकर है, जहाँ एक ओर आर्थिक गतिविधियों के कम होने के कारण सरकार के राजस्व में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर सरकार से स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक-से-अधिक खर्च करने की उम्मीद की जा रही है, ऐसे में सरकार के समक्ष सीमित संसाधनों के इष्टतम प्रयोग की एक बड़ी चुनौती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति

  • तकरीबन चार माह तक के देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भारत कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर बना हुआ है, किंतु इस महामारी तथा लॉकडाउन के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं, जिससे सरकार को राजस्व के भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
  • हालिया आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया है, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है।
  • भारत का विकास मुख्य तौर पर निजी खपत पर निर्भर करता है। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2008-09 से 2017-18 तक भारतीय अर्थव्यवस्था ने 6.7 प्रतिशत की औसत दर से विकास किया, किंतु इसके बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में कमी आने लगी, वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की GDP वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत थी।
  • अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति के मुख्यतः दो कारण हैं-
  • आँकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले निजी उपभोग में अब तक कुल 27 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है, इसके अलावा अर्थव्यवस्था के दूसरे सबसे बड़े कारक निजी व्यवसाइयों द्वारा किये गए निवेश में कुल 47 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।

दक्षिण एशिया क्षेत्र की स्थिति

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी का गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और ये अर्थव्यवस्थाएँ गंभीर मंदी की चपेट में आ सकती हैं।
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2020 में दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में तकरीबन 7.7 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।
  • दक्षिण एशिया में भी महामारी का सबसे आर्थिक प्रभाव मालदीव पर देखने को मिल सकता है और मालदीव की अर्थव्यवस्था में तकरीबन 19.5 प्रतिशत का संकुचन हो सकता है।
    • कारण: ध्यातव्य है कि पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, किंतु विश्व भर का पर्यटन उद्योग महामारी के कारण काफी अधिक प्रभावित हुआ है और इसके मालदीव की अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान झेलना पड़ा है।
  • जानकर मानते हैं कि दक्षिण एशिया समेत विश्व भर में उत्पन्न हो रही आर्थिक मंदी, पिछली आर्थिक मंदी से काफी अलग है, क्योंकि पूर्व की आर्थिक मंदी मुख्यतः निवेश और निर्यात में कमी से प्रेरित थी, जबकि मौजूदा मंदी निजी खपत में कमी से प्रेरित है।
    • निजी खपत जो कि पारंपरिक रूप से दक्षिण एशिया क्षेत्र के विकास हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है, में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट हो सकती है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ एक ओर भारत, मालदीव और श्रीलंका आदि देशों की अर्थव्यवस्था में संकुचन देखने को मिलेगा, वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में  काफी धीमी गति से वृद्धि होगी। 

आगे की राह

  • विश्व बैंक ने भारत समेत दक्षिण एशिया के तमाम देशों की सरकारों से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ अधिक उत्पादकता, कौशल विकास और मानव पूंजी में बढ़ोतरी करने वाली नीतियों के निर्माण का आग्रह किया।
  • महामारी के गंभीर आर्थिक प्रभावों के बीच दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों ने मौद्रिक नीति, आर्थिक प्रोत्साहन और वित्तीय विनियमन के माध्यम से अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिरता प्रदान करने का प्रयास किया है, किंतु स्थिति अभी भी काफी नाज़ुक बनी हुई है।
  • ऐसे में नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधनों के इष्टतम आवंटन के माध्यम से अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्रों के साथ-साथ अनौपचारिक क्षेत्रों को भी लक्षित करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


फ्लोराइड और लौह संदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

लौह संदूषण, जल प्रदूषण   

मेन्स के लिये:

जल प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव, जल प्रदूषण की समस्या से निपटने हेतु सरकार के प्रयास    

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (CSIR- Central Mechanical Engineering Research Institute or CSIR-CMERI) द्वारा अपनी ‘हाई फ्लो रेट फ्लोराइड एंड आयरन टेक्नोलॉजी’’ (High Flow Rate Fluoride & Iron Removal technology) को हावड़ा (पश्चिम बंगाल) की एक निजी कंपनी को हस्तांतरित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह सामुदायिक स्तर पर  जल शोधन प्रणाली है, जिसकी प्रवाह-दर क्षमता 10,000 लीटर प्रति घंटा है।
  • CSIR-CMER द्वारा इस तकनीकी को हावड़ा  (पश्चिम बंगाल) की मैसर्स ‘कैप्रिकैंस एक्वा प्राइवेट लिमिटेड’ (Capricans Aqua Private Limited) को हस्तांतरित किया गया है।

संरचना और कार्यप्रणाली:

  • इस प्रणाली में आसानी से उपलब्ध होने वाले कच्चे माल जैसे- रेत, बजरी और सोखने वाली सामग्रियों आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • इसके तहत शुद्धीकरण के लिये तीन चरणों वाली प्रक्रिया को अपनाया गया है, जिसके माध्यम से पानी को अनुमेय सीमा (फ्लोराइड और आयरन के लिये क्रमशः 1.5 पीपीएम और 0.3 पीपीएम) के भीतर शुद्ध किया जाता है।
  • इसमें जल के शुद्धीकरण के लिये ऑक्सीकरण (Oxidation), गुरुत्वीय स्थायीकरण (Gravitational Settling) और रसोवशोषण (Chemisorption) प्रक्रिया के संयोजन का उपयोग किया जाता है।

लाभ:

  • इस तकनीक के माध्यम से CSIR-CMERI ने राष्ट्र के सबसे कमज़ोर वर्गों की सेवा के लिये एक किफायती और लागत प्रभावी समाधान प्रदान किया है।
  • प्रभावित स्थानों पर सामुदायिक स्तर की इस प्रणाली की स्थापना से देशभर में लौह संदूषण और फ्लोरोसिस के खतरे को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • इसकी सफलता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे ले जाने में सहायता प्राप्त होगी
  • इस तकनीक के प्रसार से देश के युवाओं के लिये रोज़गार सृजन के अवसरों को बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • कैप्रिकैंस द्वारा इस तकनीक को झारखंड, उत्तर प्रदेश और असम के फ्लोराइड एवं लौह संदूषण की समस्या से प्रभावित क्षेत्रों स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है। 

फ्लोराइड संदूषण और इसके दुष्प्रभाव:

  • फ्लोराइड (F⁻), फ्लोरीन का आयनिक रूप है, यह पृथ्वी की ऊपरी परत में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • फ्लोराइड के सेवन के लाभकारी और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव हो सकते है।
    • उदाहरण के लिये उचित मात्रा में फ्लोराइड का सेवन दंत क्षय को कम करता है परंतु अधिक मात्रा में  फ्लोराइड के सेवन से यह प्रोटियोलिटिक और ग्लाइकोलाइटिक एंजाइम की गतिविधि में हस्तक्षेप से विषाक्त प्रभाव पैदा कर सकता है।
  • अत्यधिक सांद्रता युक्त फ्लोराइड के कारण पेट में दर्द, अत्यधिक लार,  उल्टी, दौरे और मांसपेशियों में ऐंठन भी हो सकती है, साथ ही इससे श्वसन पक्षाघात के कारण मृत्यु भी हो सकती है।
  • वर्ष 2016-17 के एक आँकड़े के अनुसार, देश के 19 राज्यों के 230 ज़िलों में फ्लोराइड संदूषण के मामले देखने को मिले थे।

फ्लोराइड संदूषण के स्रोत:

  • प्राकृतिक गतिविधियाँ जैसे-  ज्वालामुखी उत्सर्जन, खनिजों का अपक्षय और विघटन (विशेष रूप से भूजल और समुद्री एरोसोल में) आदि।   
  • मानवीय गतिविधियाँ जैसे- फॉस्फेट उर्वरकों का उत्पादन और उपयोग, हाइड्रोफ्लोरिक एसिड का निर्माण और उपयोग,एल्युमीनियम, स्टील और तेल का उत्पादन और फ्लोराइड युक्त कोयले का दहन (विशेष रूप से घर के अंदर) आदि।
  • दुनिया के कुछ हिस्सों में  भूजल में प्राकृतिक रूप से उच्च स्तर पर फ्लोराइड पाया जाता है, विश्व के कम-से-कम 25 देशों में पानी में उच्च स्तर पर फ्लोराइड की मात्रा देखी गई है।

Rural-Habitations

भारत में लौह संदूषण:

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में संसद में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, देश की लगभग 3.73% आबादी को उपलब्ध जल की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी।
  • भारत में पेयजल में पाया जाने वाला सबसे आम संदूषक लोहा (18,000 से अधिक ग्रामीण बस्तियों में), लवणता (13,000 ग्रामीण बस्तियों में), आर्सेनिक (12,000 ग्रामीण बस्तियों में), फ्लोराइड (लगभग 8,000  ग्रामीण बस्तियों में) और भारी धातु है।
  • राजस्थान में सबसे अधिक ग्रामीण आबादी जल संदूषण से प्रभावित है। 
  • आर्सेनिक और लौह प्रदूषण के मामले में पश्चिम बंगाल और असम सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं। देश में आर्सेनिक तथा लौह प्रदूषण से प्रभावित कुल बस्तियों में से दो-तिहाई पश्चिम बंगाल और असम में हैं। 
  • लौह संदूषण की अधिकता से लीवर कैंसर, मधुमेह, हृदय और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियाँ, बांझपन आदि हो सकती हैं। 

सरकार के प्रयास:

  • देश में फ्लोरोसिस की समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2008-09 में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान‘राष्ट्रीय फ्लोरोसिस निवारण एवं नियंत्रण कार्यक्रम’ की शुरुआत की गई थी।
  • 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस कार्यक्रम के अंतर्गत पेयजल में फ्लोरिसिस की उच्‍च मात्रा वाले 100 ज़िलों को चरणबद्ध ढंग से शामिल किया गया था।

उद्देश्य: 

  • समुदाय और स्‍कूली बच्‍चों में फ्लोरोसिस की निगरानी करना।
  • फ्लोरोसिस मामलों की रोकथाम, निदान और प्रबंधन के लिये क्षमता निर्माण।
  • चुने गए इलाकों में फ्लोरिसिस का व्यापक प्रबंधन आदि।

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान

(Central Mechanical Engineering Research Institute- CMERI):

  • केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान की स्थापना फरवरी 1958 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में की गई थी।
  • CMERI वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)  के तत्त्वावधान में संचालित मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिये शीर्ष अनुसंधान और विकास संस्थान है।

स्रोत: पीआईबी