भारत-अमेरिका परमाणु समझौता
प्रिलिम्स के लिये:ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, इसका महत्त्व और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने अपनी पुस्तक में दावा किया है कि भारत में वामपंथी दल भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध करने के अपने निर्णय के मामले में चीन से प्रभावित थे।
- हालाँकि भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के साथ भारत को एक विशेष परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) से छूट मिली जबकि ग्रीनफील्ड परियोजनाओं की प्रगति धीमी है।
ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ:
- ग्रीनफील्ड परियोजना’ का तात्पर्य ऐसी परियोजना से है, जिसमें किसी पूर्व कार्य/परियोजना का अनुसरण नहीं किया जाता है।
- अवसंरचना में अप्रयुक्त भूमि पर तैयार की जाने वाली परियोजनाएँ जिनमें मौजूदा संरचना को फिर से तैयार करने या ध्वस्त करने की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें ‘ग्रीन फील्ड परियोजना’ कहा जाता है।
परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG):
- यह परमाणु आपूर्तिकर्त्ता देशों का एक समूह है जो परमाणु निर्यात और परमाणु संबंधित निर्यात के लिये दिशा-निर्देशों के दो सेटों के कार्यान्वयन के माध्यम से परमाणु हथियारों के अप्रसार में योगदान करना चाहता है।
- यह वर्ष 1974 में एक गैर-परमाणु-हथियार राज्य (भारत) द्वारा परमाणु उपकरण के विस्फोट के बाद बनाया गया था, जिसने प्रदर्शित किया कि शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये हस्तांतरित परमाणु तकनीक का दुरुपयोग किया जा सकता है।
- समूह में 48 प्रतिभागी सरकारें शामिल हैं और NSG दिशा-निर्देश प्रत्येक सदस्य द्वारा अपने राष्ट्रीय कानूनों तथा प्रथाओं के अनुसार लागू किये जाते हैं। NSG सर्वसम्मति से निर्णय लेता है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- अमेरिका लंबे समय से भारत को गुटनिरपेक्ष खेमे (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) का नेता मानता रहा और यह मानता था कि वह USSR की ओर तथा बाद में रूस की ओर रुख कर रहा है।
- भारत ने अपने अधिकांश हथियार रूस से खरीदे और उसके पास छद्म-समाजवादी आर्थिक शासन था।
- शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद के वर्षों में अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर रहा।
- हालाँकि चीन के उदय के बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन (US) ने भारत को पश्चिम के खेमे में शामिल करने और चीन को नियंत्रित करने में मदद के लिये इसे आकर्षित करने का फैसला किया।
- इसलिये अमेरिका ने भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और यूरेनियम तक पहुँच की पेशकश की, वह ईंधन जो उसके परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के लिये आवश्यक था।
- भारत सरकार 123 समझौते (या यू.एस.-भारत असैनिक परमाणु समझौते) पर हस्ताक्षर करने के लिये सहमत हुई।
- वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा दिया, जो तब से मज़बूती से आगे बढ़ रहे हैं।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता:
- NSG छूट: भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख पहलू यह था कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) ने भारत को एक विशेष छूट दी, जिसने उसे एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया।
- अलग कार्यक्रम: इसने भारत को अपने नागरिक और सैन्य कार्यक्रमों को अलग करने में सक्षम बनाया तथा अपनी असैनिक परमाणु सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों के तहत रखा।
- प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण: यह भारत को उन राज्यों के संवर्द्धन और उन्हें पुनर्संसाधन प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण से रोकता है जो कि उनके पास नहीं हैं तथा भारत को उनके प्रसार को सीमित करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का भी समर्थन करना चाहिये।
सौदे का महत्त्व:
- अन्य देशों के साथ सौदे:
- छूट के बाद भारत ने अमेरिका, फ्रांँस, रूस, कनाडा, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, वियतनाम, बांग्लादेश, कज़ाखस्तान और कोरिया के साथ शांतिपूर्ण उपयोग के लिये परमाणु सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
- इसके बाद फ्रांँस, कज़ाखस्तान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और रूस से यूरेनियम के आयात के लिये विशिष्ट समझौते हुए हैं।
- भारत को मान्यता:
- इसने भारत को मज़बूत अप्रसार साख के साथ एक ज़िम्मेदार परमाणु हथियार राज्य होने की मान्यता दी।
- भारत-अमेरिका संबंधों में मज़बूती:
- इसने दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा दिया।
- इसने सैन्य सहयोग को भी बढ़ावा दिया जिससे रक्षा व्यापार का विस्तार हुआ; इसमें वर्ष 2014 के बाद से नवीकरणीय प्रौद्योगिकी सहित ऊर्जा सहयोग में वृद्धि शामिल है।
- तकनीकी विकास:
- भारत ने दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर’ (Pressurized Heavy Water Reactor- PHWR) विकसित किये, जो वर्तमान में भारतीय परमाणु ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ हैं।
- PHWR एक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर है, जो आमतौर पर अपने ईंधन के रूप में गैर-समृद्ध प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग करता है। यह अपने शीतलक और मॉडरेटर के रूप में भारी पानी (ड्यूटेरियम ऑक्साइड D2O) का उपयोग करता है।
- यूरेनियम आयात में वृद्धि:
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने भारत को विभिन्न देशों से यूरेनियम आयात करने में सक्षम बनाया।
मुद्दे:
- दायित्व:
- वेस्टिंगहाउस को वर्ष 2008-09 में वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
- इसके बीच वेस्टिंगहाउस के नए खरीदारों ने पहले ही भारत में व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया है।
- वे भारत में परमाणु ऊर्जा परियोजना का निर्माण नहीं करेंगे और केवल रिएक्टरों तथा घटकों की आपूर्ति करेंगे, जिसके कारण भारत में एक रिएक्टर के निर्माण में लगभग 10 वर्ष लगेंगे।
- इसे देखते हुए भारत में फुकुशिमा-प्रकार (Fukushima-Type) की परमाणु दुर्घटना के मामले में अमेरिकी कंपनियाँ जो दायित्व वहन करेंगी, वह अत्यधिक अनिश्चित है।
- भारत की आवश्यकताएँ:
- भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते से भारत की आवश्यकताओं में काफी बदलाव आया है।
- साथ ही भारत को रूस के एटमस्ट्रॉयएक्सपोर्ट (Russia’s Atomstroyexport) के साथ अपने मौजूदा समझौते से भी काफी राहत मिली है।
- लागत:
- एक अन्य मुद्दा उस लागत से संबंधित है जिसे भारत विदेशी सहयोग के माध्यम से परमाणु ऊर्जा के लिये भुगतान करने हेतु तैयार है।
- महाराष्ट्र के जैतापुर में 1,650 मेगावाट के छह यूरोपीय दबाव रिएक्टर्स (European Pressurised Reactors- EPR) के लिये भारत-फ्राँस वार्ता परमाणु ऊर्जा विभाग और EDF के बीच मतभेदों के कारण विलंबित है जो प्रति यूनिट लागत से संबंधित है।
वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2008 के समझौते के बाद से अमेरिका द्वारा भारत को परमाणु रिएक्टरों की बिक्री पर चर्चा की जा रही है, इसके बाद के दो समझौतों पर केवल वर्ष 2016 और वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कंपनी (WEC) के सहयोग से छह रिएक्टर स्थापित करने के लिये एक परियोजना प्रस्ताव की घोषणा की गई है, लेकिन अभी काम शुरू होना बाकी है।
- फ्राँसीसी राज्य के स्वामित्व वाली ऑपरेटर अरेवा (Areva) से जुड़ी एक अन्य बड़ी परियोजना, जिसे बाद में फ्राँसीसी बिजली उपयोगिता EDF ने अधिग्रहण कर लिया था, में भी देरी हो रही है।
- इसने जैतापुर, महाराष्ट्र में छह रिएक्टरों के निर्माण हेतु इंजीनियरिंग अध्ययन और उपकरणों की आपूर्ति के लिये न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
आगे की राह
- ऐतिहासिक परमाणु समझौते (2008) के बावजूद असैन्य परमाणु सहयोग आगे नहीं बढ़ा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी शत्रु केवल स्थायी हित होते हैं। ऐसे में भारत को रणनीतिक हेजिंग की अपनी विदेश नीति को जारी रखना चाहिये।
- 21वीं सदी में विश्व व्यवस्था को आकार देने के लिये भारत-अमेरिका संबंध महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों सरकारों को अब अधूरे समझौतों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये और व्यापक रणनीतिक वैश्विक साझेदारी के लिये पाठ्यक्रम निर्धारित करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना: चरण II
प्रिलिम्स के लियेबाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना: चरण- I, चरण- II, चरण- III मेन्स के लियेचरण- II की प्रमुख विशेषता और इसका महत्त्व, बाँध सुरक्षा और पुनर्वास संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने ‘बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना’ के दूसरे चरण के लिये विश्व बैंक (WB) के साथ 250 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
चरण-I
- भारत सरकार ने विश्व बैंक की वित्तीय सहायता से अप्रैल 2012 में ‘बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना’ की शुरुआत की थी।
- इसका उद्देश्य पूरे देश के कुछ चयनित बाँधों की सुरक्षा और परिचालन में सुधार तथा व्यापक प्रणाली प्रबंधन दृष्टिकोण के साथ संस्थागत सुदृढ़ीकरण करना है।
- यह राज्य क्षेत्रक योजना थी, जिसमें एक केंद्रीय घटक भी शामिल था। इसमें 10 कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ सात राज्यों (झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और उत्तराखंड) में स्थित 223 बाँधों के पुनर्वास का प्रावधान किया गया था।
- ‘केंद्रीय जल आयोग’ (CWC) को समग्र समन्वय और पर्यवेक्षण का कार्य सौंपा गया है।
- सभी बाँधों के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्राप्त करने और पुनर्वास प्रोटोकॉल की उचित निगरानी एवं विकास के लिये ‘बाँध स्वास्थ्य एवं पुनर्वास निगरानी एप्लीकेशन’ (धर्म) नामक एक वेब-आधारित उपकरण विकसित किया गया है।
- यह मौजूदा जल संपत्तियों का स्मार्ट प्रबंधन करने के लिये बाँध सुरक्षा के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के अनुप्रयोग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- इस योजना को मार्च 2021 में बंद कर दिया गया था।
चरण-II और चरण-III
- ‘बाँध पुनर्वास और सुधार परियोजना’ के पहले चरण की सफलता के आधार पर जल शक्ति मंत्रालय ने बाह्य रूप से वित्तपोषित योजना के चरण-II और चरण-III की शुरुआत की है।
- इस योजना को अक्तूबर 2020 में मंज़ूरी दी गई थी।
- इसमें 19 राज्यों और 3 केंद्रीय एजेंसियों की भागीदारी है। यह योजना 10 वर्ष की अवधि की है और दो चरणों में लागू की जाएगी, प्रत्येक छह साल की अवधि में, जिसमें दो वर्ष की ओवरलैप अवधि भी शामिल है।
- 736 बाँधों के पुनर्वास प्रावधान के साथ बजट परिव्यय तकरीबन 10,211 करोड़ रुपए (चरण-II: 5107 करोड़ रुपए; चरण III: 5104 करोड़ रुपए) है।
ड्रिप फेज-2:
- वित्तपोषण ढाँचा/पैटर्न:
- योजना के दूसरे चरण को दो बहुपक्षीय वित्तपोषण एजेंसियों - विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) द्वारा सह-वित्तपोषित किया जा रहा है, जिसमें प्रत्येक द्वारा 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्तपोषण किया जा रहा है।
- योजना के वित्तपोषण पैटर्न में केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी 80:20 (विशेष श्रेणी के राज्य), 70:30 (सामान्य श्रेणी के राज्य) और 50:50 (केंद्रीय एजेंसियाँ) है।
- उद्देश्य:
- चयनित मौजूदा बाँधों और संबद्ध उपकरणों की सुरक्षा व प्रदर्शन में स्थायी रूप से सुधार करना।
- भाग लेने वाले राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर बाँध सुरक्षा संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत करना।
- बाँधों के सतत् संचालन और रखरखाव हेतु आकस्मिक राजस्व उत्पन्न करने के लिये कुछ चुनिंदा बाँधों पर वैकल्पिक साधनों का पता लगाना।
- अन्य विशेषताएंँ:
- यह नई योजना सुरक्षा एवं परिचालन निष्पादन में सुधार, विभिन्न उपायों के माध्यम से संस्थागत सुदृढ़ीकरण, बाँधों के चिरस्थायी संचालन एवं रखरखाव के लिये आकस्मिक राजस्व की व्यवस्था आदि विभिन्न समस्याओं का समाधान कर चयनित बाँधों का भौतिक पुनर्वास करते हुए भारत सरकार द्वारा अपनाई गई बाँध सुरक्षा पहल को मज़बूती प्रदान करेगी।
- यह बाँध परिसंपत्ति प्रबंधन हेतु एक जोखिम-आधारित दृष्टिकोण पेश करेगा जो प्राथमिकता वाली बाँध सुरक्षा ज़रूरतों के लिये वित्तीय संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करने में मदद करेगा।
- ड्रिप-2 द्वारा समर्थित अन्य महत्त्वपूर्ण उपायों में शामिल हैं:
- बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली और एकीकृत जलाशय संचालन जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होंगे।
- बंधों के नीचे रहने वाले समुदायों को जलवायु परिवर्तन के संभावित जोखिमों और जलवायु परिवर्तन के प्रति तैयार करने हेतु आपातकालीन कार्य योजनाओं का कार्यान्वयन करना।
- फ्लोटिंग सोलर पैनल जैसी पूरक राजस्व सृजन योजनाओं का संचालन।
- कार्यान्वयन:
- इसे छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में तथा केंद्रीय जल आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 120 बाँधों में लागू किया जाएगा।
महत्त्व:
- देश में बाँधों की संख्या:
- भारत 5334 बड़े बांधों के संचालन के साथ चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। इसके अलावा वर्तमान में देश में लगभग 411 बाँध निर्माणाधीन हैं। कई हजार और भी छोटे बाँध हैं।
- ये बाँध देश की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय बाँध और जलाशय सालाना लगभग 300 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी का भंडारण करके देश के आर्थिक और कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में मिलेगी मदद:
- यह सिंचित कृषि पर निर्भर लाखों भारतीयों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखते हुए तथा किसानों को भूजल आधारित कृषि से बाहर निकलने में सक्षम बनाएगा, जिससे ऊर्जा की खपत व ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी।
- बाढ़ शमन:
- भारत में बाढ़ की औसत वार्षिक लागत 7.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, कई बाँध बाढ़ को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी विफलता निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिये गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है।
- बाँधों का पुराना होना:
- संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट "एजिंग वॉटर इन्फ्रास्ट्रक्चर: एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्क" के अनुसार, भारत में 1,000 से अधिक बड़े बाँध वर्ष 2025 में लगभग 50 वर्ष पुराने हो जाएंगे और दुनिया भर में इस तरह के पुराने तटबंध बढ़ते खतरे का कारण बनते हैं।
- यह योजना विशेष रूप से बाँधों के जोखिम को कम करने और लोगों की सुरक्षा, नदी पारिस्थितिकी तथा चयनित बाँधों पर स्थित संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- देश में बाँध सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ाना:
- यह भारतीय बाँध मालिकों को प्रस्तावित बाँध सुरक्षा कानून में परिकल्पित कई महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को व्यापक रूप से संभालने के लिये अपने मानव संसाधनों को तैयार करने हेतु सक्षम बनाएगा।
- रोज़गार सृजन:
- इससे अकुशल श्रमिकों के लिये लगभग 10,00,000 व्यक्ति दिवस और कामकाजी पेशेवरों के लिये 2,50,000 व्यक्ति दिवसों के बराबर रोज़गार के अवसर पैदा होने की संभावना है।
बाँध सुरक्षा कानून
- बाँध सुरक्षा विधेयक, 2019 देश भर में निर्दिष्ट बाँधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव के लिये एक संस्थागत तंत्र स्थापित करने का प्रयास करता है।
- विशेषताएँ:
- राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति का गठन किया जाएगा और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय जल आयोग का अध्यक्ष करेगा।
- विधेयक में एक राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना की भी परिकल्पना की गई है, जिसकी अध्यक्षता केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जाएगी।
- प्रस्तावित कानून में एक राज्य बाँध सुरक्षा संगठन के गठन की भी परिकल्पना की गई है, जिसका कार्य सतत् निगरानी, निरीक्षण, बाँधों का संचालन और रखरखाव की निगरानी करना, सभी बाँधों का डेटाबेस रखना एवं बाँधों के मालिकों को सुरक्षा उपायों की सिफारिश करना होगा।
- विधेयक दो प्रकार के अपराधों का प्रावधान करता है - किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के निर्वहन में बाधा डालना और प्रस्तावित कानून के तहत जारी निर्देशों का पालन करने से इनकार करना।
स्रोत-पी.आई.बी.
फेसलेस असेसमेंट स्कीम: इनकम टैक्स
प्रिलिम्स के लियेफेसलेस असेसमेंट स्कीम: इनकम टैक्स, 'पारदर्शी कराधान - ईमानदार का सम्मान मेन्स के लियेफेसलेस असेसमेंट स्कीम: इनकम टैक्स का महत्त्व |
चर्चा में क्यों
हाल ही में आयकर (IT) विभाग ने फेसलेस या ई-असेसमेंट स्कीम (Faceless or e-Assessment Scheme) के तहत शिकायतों को दर्ज करने के लिये तीन आधिकारिक ईमेल आईडी अधिसूचित किये हैं।
- अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री ने 'पारदर्शी कराधान - ईमानदार का सम्मान' मंच के तहत तीन प्रमुख संरचनात्मक कर सुधारों की घोषणा की- कर विवादों को कम करने के लिये फेसलेस मूल्यांकन, फेसलेस अपील और करदाताओं के चार्टर।
प्रमुख बिंदु
फेसलेस या ई-असेसमेंट स्कीम:
- परिचय:
- फेसलेस असेसमेंट सिस्टम के तहत करदाता या कर निर्धारिती को आयकर विभाग के कार्यालय में जाने या आयकर से संबंधित मामलों के लिये विभाग के अधिकारी से मिलने की आवश्यकता नहीं है।
- प्रारंभ:
- फेसलेस असेसमेंट स्कीम को वर्ष 2019 में शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य एक कुशल तथा प्रभावी कर प्रशासन को बढ़ावा देना, भौतिक इंटरफेस को कम करना, जवाबदेही बढ़ाना और टीम आधारित आकलन की शुरुआत करना है।
- तंत्र:
- फेसलेस मूल्यांकन, कर विभाग के भीतर अलग-अलग इकाइयों के माध्यम से प्रशासित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक की प्रक्रिया में एक विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जैसे मूल्यांकन इकाइयाँ, सत्यापन इकाइयाँ, तकनीकी इकाइयाँ और समीक्षा इकाइयाँ। ये सभी इकाइयाँ राष्ट्रीय ई-मूल्यांकन केंद्र (NeAC) व क्षेत्रीय ई-मूल्यांकन केंद्र (ReAC) के साथ मिलकर काम करती हैं।
- लाभ
- यह योजना करदाताओं और कर अधिकारियों के समक्ष प्रतिनिधित्व करने वाले पेशेवरों को अधिक लचीलापन प्रदान करती है। इसके परिणामस्वरूप कर कार्यालय में उपस्थित होने और प्रतीक्षा में लगने वाले समय आदि में कमी के कारण पर्याप्त समय की बचत होती है।
संबंधित हालिया पहल:
- विवाद समाधान समिति:
- बजट 2021 में वित्त मंत्री ने कर विवादों में करदाताओं को त्वरित राहत प्रदान करने हेतु एक विवाद समाधान समिति (DRC) के गठन का प्रस्ताव दिया है।
- DRC 50 लाख रुपए तक की कर योग्य आय और 10 लाख रुपए तक की विवादित आय वाले छोटे करदाताओं के मामले देखती है।
- विवाद से विश्वास योजना:
- योजना विवादित कर, विवादित ब्याज, विवादित जुर्माना या विवादित शुल्क के संबंध में विवादित कर के 100% और विवादित जुर्माना या ब्याज या शुल्क के 25% के भुगतान पर एक मूल्यांकन या पुनर्मूल्यांकन आदेश के तहत निपटान का प्रावधान करती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत छोड़ो आंदोलन
प्रिलिम्स के लिये:भारत छोड़ो आंदोलन मेन्स के लिये:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
8 अगस्त, 2021 को भारत ने भारत छोड़ो आंदोलन के 79 वर्ष पूरे किये, जिसे अगस्त क्रांति भी कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काँन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
- गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में "करो या मरो" का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।
- स्वतंत्रता आंदोलन की 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में लोकप्रिय अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।
- 'भारत छोड़ो' का नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था।
- मेहरअली ने "साइमन गो बैक" का नारा भी गढ़ा था।
कारण:
- क्रिप्स मिशन की विफलता: आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था।
- संदर्भ: इस मिशन को स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारत में एक नए संविधान एवं स्वशासन के निर्माण से संबंधित प्रश्न को हल करने के लिये भेजा गया था।
- क्रिप्स मिशन के पीछे कारण: दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान की बढ़ती आक्रामकता, युद्ध में भारत की पूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये ब्रिटिश सरकार की उत्सुकता, ब्रिटेन पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ते दबाव के कारण ब्रिटेन की सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा मार्च 1942 में भारत में क्रिप्स मिशन भेजा गया।
- पतन का कारण: यह मिशन विफल हो गया क्योंकि इसने भारत के लिये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की।
- नेताओं के साथ पूर्व परामर्श के बिना द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भागीदारी:
- द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार का बिना शर्त समर्थन करने की भारत की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।
- ब्रिटिश विरोधी भावना का प्रसार:
- ब्रिटिश-विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।
- कई छोटे आंदोलनों का केंद्रीकरण:
- अखिल भारतीय किसान सभा, फारवर्ड ब्लाक आदि जैसे काँन्ग्रेस से संबद्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्त्व में दो दशक से चल रहे जन आंदोलनों ने इस आंदोलन के लिये पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।
- देश में कई स्थानों पर उग्रवादी विस्फोट हो रहे थे जो भारत छोड़ो आंदोलन के साथ जुड़ गए।
- आवश्यक वस्तुओं की कमी:
- द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था भी बिखर गई थी।
मांगें :
- फासीवाद के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग पाने के लिये भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की मांग की गई।
- भारत से अंग्रेज़ों के जाने के बाद एक अंतरिम सरकार बनाने की मांग।
चरण: आंदोलन के तीन चरण थे:
- पहला चरण- शहरी विद्रोह, हड़ताल, बहिष्कार और धरने के रूप में चिह्नित, जिसे जल्दी दबा दिया गया था।
- पूरे देश में हड़तालें तथा प्रदर्शन हुए और श्रमिकों ने कारखानों में काम न करके समर्थन प्रदान किया।
- गांधीजी को पुणे के आगा खान पैलेस (Aga Khan Palace) में कैद कर दिया गया और लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- आंदोलन के दूसरे चरण में ध्यान ग्रामीण इलाकों में स्थानांतरित किया गया जिसमें एक प्रमुख किसान विद्रोह देखा गया, इसमें संचार प्रणालियों को बाधित करना मुख्य उद्देश्य था, जैसे कि रेलवे ट्रैक और स्टेशन, टेलीग्राफ तार व पोल, सरकारी भवनों पर हमले या औपनिवेशिक सत्ता का कोई अन्य दृश्य प्रतीक।
- अंतिम चरण में अलग-अलग इलाकों (बलिया, तमलुक, सतारा आदि) में राष्ट्रीय सरकारों या समानांतर सरकारों का गठन किया गया।
आंदोलन की सफलता
भविष्य के नेताओं का उदय:
- राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को अंजाम दिया जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे।
महिलाओं की भागीदारी:
- आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिससे आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा हुई।
राष्ट्रवाद का उदय:
- भारत छोड़ो आंदोलन के कारण देश में एकता और भाईचारे की एक विशिष्ट भावना पैदा हुई। कई छात्रों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये और लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी।
स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त:
- यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेज़ों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी, किंतु इस आंदोलन और द्वितीय विश्व युद्ध के बोझ के कारण ब्रिटिश प्रशासन को यह अहसास हो गया कि भारत को लंबे समय तक नियंत्रित करना संभव नहीं था।
- इस आंदोलन के कारण अंग्रेज़ों के साथ भारत की राजनीतिक वार्ता की प्रकृति ही बदल गई और अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
आंदोलन की असफलता
क्रूर दमन:
- आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई, जो कि पूर्व नियोजित नहीं थी।
- आंदोलन को अंग्रेज़ों द्वारा हिंसक रूप से दबा दिया गया, लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं, लाठीचार्ज किया गया, गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।
- इस तरह सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया और 1,00,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
समर्थन का अभाव
- मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। भारतीय नौकरशाही ने भी इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया।
- मुस्लिम लीग, बँटवारे से पूर्व अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के पक्ष में नहीं थी।
- कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया, क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे।
- हिंदू महासभा ने खुले तौर पर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और इस आशंका के तहत आधिकारिक तौर पर इसका बहिष्कार किया कि यह आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा और युद्ध के दौरान आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
- इस बीच सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ और ‘आज़ाद हिंद सरकार’ को संगठित किया।
- सी. राजगोपालाचारी जैसे कई काॅन्ग्रेस सदस्यों ने प्रांतीय विधायिका से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे महात्मा गांधी के विचार का समर्थन नहीं करते थे।
स्रोत: पी.आई.बी.
सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY)
प्रिलिम्स के लिये:सांसद आदर्श ग्राम योजना, जय प्रकाश नारायण, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना मेन्स के लिये:सांसद आदर्श ग्राम योजना एवं ग्रामीण विकास में इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री ने राज्यसभा में सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY) के कार्यान्वयन के लिये सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों की जानकारी दी है।
प्रमुख बिंदु:
SAGY:
- परिचय:
- यह योजना वर्ष 2014 में जय प्रकाश नारायण की जयंती पर शुरू की गई थी।
- इस योजना के तहत संसद सदस्य (सांसद) वर्ष 2019 तक तीन गाँवों और वर्ष 2024 तक कुल आठ गाँवों के सामाजिक-आर्थिक एवं भौतिक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- पहला आदर्श ग्राम वर्ष 2016 तक और दो अन्य को वर्ष 2019 तक विकसित किया जाना था।
- वर्ष 2019 से 2024 तक प्रत्येक सांसद द्वारा हर वर्ष पाँच और आदर्श ग्राम विकसित किये जाने चाहिये।
- सांसद आदर्श ग्राम के विकास के लिये उपयुक्त ग्राम पंचायत (अपने स्वयं के गांव या अपने पति या पत्नी के गाँव के अलावा) की पहचान करने के लिये स्वतंत्र होंगे।
- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने SAGY के तहत 127 केंद्रीय एवं केंद्र प्रायोजित और 1806 राज्य योजनाओं का संकलन किया है।
- प्रकिया:
- ग्राम पंचायत (GP): विकास के लिये बुनियादी इकाई।
- लोकसभा सांसद: अपने निर्वाचन क्षेत्र के भीतर एक ग्राम पंचायत का चयन करते हैं।
- राज्यसभा सांसद: अपने राज्य में किसी विशिष्ट ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र से एक ग्राम पंचायत का चयन करते हैं।
- मनोनीत सांसद: देश के किसी भी ज़िले के ग्रामीण क्षेत्र से एक ग्राम पंचायत का चयन करते हैं।
- सांसद, समुदाय के साथ जुड़ते हैं, ग्राम विकास योजना को सुगम बनाते हैं और आवश्यक संसाधन जुटाते हैं, विशेष रूप से ‘कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व’ (CSR) के माध्यम से।
- तमाम सांसद, ‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MPLADS) की निधि का उपयोग कर अवसंरचना अंतराल को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अपेक्षित परिणाम:
- आजीविका/रोज़गार के अवसरों में वृद्धि।
- संकटग्रस्त प्रवास में कमी।
- बंधुआ मज़दूरी, बाल श्रम और हाथ से मैला ढोने की प्रथा से मुक्ति।
- मृत्यु और जन्म का शत-प्रतिशत पंजीकरण।
- समुदाय के सभी वर्गों के लिये स्वीकार्य वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली का विकास।
- शांति और समन्वय।
- अन्य ग्राम पंचायतों के लिये उदाहरण।
मुद्दे:
- पंचायतों का कम चयन:
- इस कार्यक्रम के तहत अब तक केवल 2,111 ग्राम पंचायतों की पहचान की गई है और उनमें से 1,618 ने अपनी विकास योजनाएँ तैयार की हैं।
- इन गाँवों के लिये कुल 79,316 गतिविधियों की योजना बनाई गई है, जिनमें से 49,756 को पूरा किया जा चुका है।
- ब्याज और धन की कमी:
- कई ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ (Sansad Adarsh Gram Yojana- SAGY) गाँवों में सांसदों ने MPLADS के तहत प्राप्त महत्त्वपूर्ण (Significant) धनराशि आवंटित नहीं की।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी:
- जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण SAGY की अवधारणा क्षेत्रीय अधिकारियों तक नहीं पहुँच पाई है।
- घोषणा के साथ मुद्दे:
- यहाँ तक कि कुछ ज़िलों में आदर्श ग्राम घोषित गाँव खुले में शौच से मुक्त पाए गए हैं।
- सीमित प्रभाव:
- कुछ मामलों में जहाँ सांसद सक्रिय रहे हैं कुछ बुनियादी ढाँचे का विकास हुआ है, लेकिन इस योजना का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा है।
- MPLAD के साथ मनरेगा का कम अभिसरण:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का एमपीलैड के साथ अभिसरण कुछ गाँवों में कम देखा गया।
- ग्रामीण सड़कें:
- राज्य सरकारों की योजनाओं के तहत निर्मित सड़कों की गुणवत्ता और केंद्रीय प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर भी चिंता जताई गई है।
आगे की राह
- सांसद आदर्श ग्राम योजना का उद्देश्य विभिन्न योजनाओं के सामंजस्य और अभिसरण को सुनिश्चित कर तथा उनके पूर्ण क्रियान्वन को प्राथमिकता देकर आदर्श (Model) गाँवों का निर्माण करना था। हालाँकि योजना के आदर्श वाक्य की पूर्ति के लिये जिस गंभीरता की आवश्यकता थी उसमें कमी देखी गई है। संसद सदस्यों को योजना के प्रति अधिक ज़िम्मेदार होने की आवश्यकता है।
- SAGY सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान देती है और गाँव, समुदाय के सामाजिक संघटन (Mobilization) गाँव में अन्य विकास गतिविधियों की एक शृंखला को गति प्रदान कर सकते हैं।
स्रोत: पीआईबी
सुरक्षित हिंद महासागर
प्रिलिम्स के लिये:बाब अल मंदेब जलडमरूमध्य, लाल सागर होर्मुज़ जलडमरूमध्य, आसियान, मलक्का जलडमरूमध्य, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मेन्स के लिये:समुद्री सुरक्षा हेतु भारत की पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक ओपन डिबेट बुलाने (Open Debate) का प्रस्ताव रखा है।
- इस बहस का उद्देश्य समुद्री सुरक्षा के लिये प्राकृतिक और मानव निर्मित खतरों का समग्र रूप से जवाब देने हेतु प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सहयोग को मज़बूत करना है।
- यह एक समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत के अंतर्राष्ट्रीय को भी दर्शाता है।
प्रमुख बिंदु
भारत के लिये हिंद महासागर का महत्त्व:
- लंबी समुद्री सीमा: 7,500 किमी. से अधिक लंबी की तटरेखा के साथ, समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने में भारत की स्वाभाविक रुचि है।
- संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: हिंद महासागर में तीन प्रमुख समुद्री संचार मार्ग (SLOCS) ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
- SLOC बाब अल मंदेब जलडमरूमध्य के माध्यम से लाल सागर को हिंद महासागर से जोड़ने वाला समुद्री मार्ग है। (यह यूरोप और अमेरिका में अपने प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ एशिया के अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करता है)।
- SLOC होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से फारस की खाड़ी को हिंद महासागर से जोड़ता है (भारत, आसियान और पूर्वी एशिया जैसे प्रमुख आयात स्थलों के लिये ऊर्जा निर्यात का बड़ा हिस्सा इसी रूट से होता है)।
- SLOC मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से भारतीय और प्रशांत महासागरों को जोड़ता है (आसियान, पूर्वी एशिया, रूस के सुदूर पूर्व और अमेरिका के साथ व्यापार के सुचारू प्रवाह का अभिन्न अंग)।
- हिंद महासागर क्षेत्र से विश्व के समुद्री व्यापार का 75% और दैनिक वैश्विक तेल खपत के 50% का परिवहन होता है।
भारत की समुद्री पहलें:
- आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 की सुनामी, जिसने मानव और प्राकृतिक संसाधनों पर भारी प्रभाव डाला था, के कारण वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली’ का निर्माण किया गया था।
- इसके माध्यम से एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क द्वारा ऐसी गंभीर आपदा की पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है।
- एंटी-पाइरेसी ऑपरेशन्स: वर्ष 2007 से सोमालिया के तट से शुरू होने वाली समुद्री डकैती के कारण पश्चिमी हिंद महासागर में शिपिंग के बढ़ते खतरे का सामना करने के लिये भारतीय नौसेना ने सोमालिया के समुद्र तट से समुद्री डकैती पर UNSC द्वारा अनिवार्य ‘60-कंट्री कांटेक्ट ग्रुप’ की गतिविधियों में मज़बूती से हिस्सा लिया है।
- ‘सागर’ पहल: भारत की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) नीति एक एकीकृत क्षेत्रीय ढाँचा है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मार्च 2015 में मॉरीशस की यात्रा के दौरान किया गया था। ‘सागर’ पहल के प्रमुख स्तंभ हैं:
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका।
- भारत ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ में मित्र देशों की समुद्री सुरक्षा क्षमताओं और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ावा देना जारी रखेगा।
- ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ के भविष्य पर अधिक एकीकृत और सहयोगात्मक फोकस, जो इस क्षेत्र के सभी देशों के सतत् विकास की संभावनाओं को बढ़ाएगा।
- ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ में शांति, स्थिरता और समृद्धि स्थापित करने का प्राथमिक दायित्व उनका है, जो ‘इस क्षेत्र में निवास करते हैं।’
- अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन: भारत ने ‘भारत-बांग्लादेश’ के बीच समुद्री सीमा मध्यस्थता पर ‘यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन फॉर द लॉ ऑफ द सी’ (UNCLOS) न्यायाधिकरण के निर्णय को स्वीकार कर लिया था।
- इसके तहत बिम्सटेक देशों के बीच प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की परिकल्पना की गई है।
- डेटा साझा करना: वाणिज्यिक नौवहन के खतरों पर डेटा साझा करना समुद्री सुरक्षा बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- इस संदर्भ में भारत ने वर्ष 2018 में गुरुग्राम में हिंद महासागर क्षेत्र के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संलयन केंद्र (IFC) की स्थापना की।
- IFC को संयुक्त रूप से भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- IFC सुरक्षा और सुरक्षा मुद्दों पर समुद्री डोमेन जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से कार्य करता है।
आगे की राह
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बनाए रखने हेतु नीति और परिचालन क्षेत्रों में दो सहायक ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- नियम-कानून आधारित दृष्टिकोण: UNCLOS की परिचालन प्रभावशीलता की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
- विशेष रूप से नौवहन की स्वतंत्रता, समुद्री संसाधनों के सतत् दोहन और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर इसके प्रावधानों को लागू करने के संबंध में।
- संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना: समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने हेतु महासागरों को पार करने वाले SLOC को सुरक्षित करना केंद्र के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इस प्रकार वैश्विक वार्ता के माध्यम से मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीकों से हल करते हुए राज्यों द्वारा SLOC तक समान और अप्रतिबंधित पहुँच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- नियम-कानून आधारित दृष्टिकोण: UNCLOS की परिचालन प्रभावशीलता की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
- निजी क्षेत्र को शामिल करना: समुद्री क्षेत्र में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका की आवश्यकता है, चाहे वह शिपिंग हो या नीली अर्थव्यवस्था के माध्यम से सतत् विकास।
- इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाले महत्त्वपूर्ण पनडुब्बी फाइबर-ऑप्टिक केबल प्रदान करने के लिये समुद्री डोमेन के उपयोग का लाभ उठाया जा सकता है।
- समुद्री सुरक्षा बढ़ाने हेतु बहु-हितधारक दृष्टिकोण का समर्थन कर बहस द्वारा समाधान पाने के लिये UNSC की क्षमता एक महत्त्वपूर्ण परिणाम प्रदान कर सकती है, जो 21वीं सदी में "बहु-आयामी" सुरक्षा को बनाए रखकर एक प्रतिमान स्थापित करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
‘कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी’ में देरी
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय स्थायी समिति, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी मेन्स के लिये:दिवाला और दिवालियापन संहिता, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 के तहत ‘कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी’ प्रक्रिया में देरी पर ध्यान आकर्षित किया गया है।
- इसके तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLTs) में लगातार हो रही रिक्तियों के बारे में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) को सूचित किया गया है।
- इससे पहले सरकार ने लोकसभा में दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन विधेयक), 2021 पेश किया, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये एक वैकल्पिक दिवाला समाधान प्रक्रिया पेश करता है जिसे प्री-पैकेज़्ड दिवाला समाधान प्रक्रिया (PIRP) कहा जाता है।
दिवाला और दिवालियापन संहिता:
- इसे वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करती है।
- यह दिवालियापन की समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों को एक समान मंच प्रदान करने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को मज़बूत करती है।
नोट
- इन्सॉल्वेंसी: यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होती है।
- बैंकरप्सी: यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति या संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और न्यायालय द्वारा इसका समाधान करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश दिया गया हो। यह किसी कंपनी अथवा व्यक्ति द्वारा ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख चिताएंँ:
- NCLT में रिक्तियांँ:
- देश भर में NCLT की ब्रांचों में सदस्यों की स्वीकृत संख्या कुल 63 है जिनमें वर्तमान में केवल 29 सदस्य हैं।
- स्वीकृति में देरी:
- समिति ने कहा कि NCLT द्वारा इन्सॉल्वेंसी/दिवाला मामलों को स्वीकार करने में हुई देरी और समाधान योजनाओं की मंज़ूरी, IBC के तहत समयसीमा का पालन न करने के प्रमुख कारण थे।
- NCLT की ओर से मामलों को स्वीकार करने में हुई देरी में चूक से मालिकों को फंड डायवर्ट करने और परिसंपत्तियों को स्थानांतरित करने का अवसर मिला।
- निर्णयों को चुनौती दी गई:
- IBC के तहत कई हाई प्रोफाइल मामलों में हितधारकों द्वारा कई निर्णयों को चुनौती दी गई। इनमें से कई अपील दिवालिया कार्यवाही को धीमा करने के लिये की गई हैं।
- विलंबित योजनाएँ:
- जिन मामलों में लेनदारों ने निर्दिष्ट समयसीमा के बाद प्रस्तुत समाधान योजनाओं का मूल्यांकन किया है, वे बोलीदाताओं को निर्धारित समयसीमा के भीतर बोली लगाने में हतोत्साहित करेंगे और ऐसी योजनाएँ देरी और मूल्यह्वास को भी बढ़ावा देती हैं।
सिफारिशें:
- समय पर कार्रवाई:
- NCLT द्वारा एक डिफॉल्ट कंपनी को दिवाला कार्यवाही में शामिल करने और 30 दिनों के भीतर इसके नियंत्रण को एक समाधान पेशेवर को सौंपने की आवश्यकता है।
- मंत्रालय को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये:
- नोडल मंत्रालय के रूप में MCA को एनसीएलटी/नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल में परिचालन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने हेतु अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये, जबकि समाधान, वसूली, समय आदि के संबंध में कार्य की गति, निपटान और परिणामों की लगातार निगरानी एवं विश्लेषण किया जाना चाहिये।
- IBC में संशोधन:
- मौजूदा आर्थिक माहौल में एमएसएमई, जो कि IBC के तहत परिचालन लेनदार हैं, को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये आईबीसी में संशोधन किया गया है।
- वित्तीय लेनदार वे हैं जिनका इकाई के साथ संबंध एक शुद्ध वित्तीय अनुबंध है, जैसे कि ऋण या ऋण सुरक्षा।
- परिचालन लेनदार वे हैं जिनका दायित्व इकाई संचालन को लेकर लेन-देन से है।
- मौजूदा आर्थिक माहौल में एमएसएमई, जो कि IBC के तहत परिचालन लेनदार हैं, को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये आईबीसी में संशोधन किया गया है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण
परिचय
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) का गठन किया था।
- यह भारत में पंजीकृत कंपनियों को नियंत्रित करने हेतु एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है और इसने ‘कंपनी लॉ बोर्ड’ का स्थान लिया है।
- इसके पास भारत में पंजीकृत कंपनियों को नियंत्रित करने हेतु समग्र शक्तियाँ मौजूद हैं।
- NCLT और NCLAT की स्थापना के साथ कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत गठित ‘कंपनी लॉ बोर्ड’ भंग कर दिया गया था।
- यह नागरिक प्रक्रिया संहिता में निर्धारित नियमों से बाध्य है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है, साथ ही यह अधिनियम के अन्य प्रावधानों और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी नियम के अधीन है।
- ट्रिब्यूनल और अपीलीय ट्रिब्यूनल को अपनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की शक्ति है।
अपील
- ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध NCLAT में अपील की जा सकती है। NCLT के आदेश या निर्णय से व्यथित कोई भी अपीलकर्त्ता आदेश या ट्रिब्यूनल के निर्णय की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों की अवधि के भीतर अपील कर सकता है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)
परिचय
- NCLAT का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के तहत ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण’ (NCLT) के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिये किया गया था।
- यह दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 61 के तहत पारित आदेश तथा दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 202 और 211 के तहत ‘भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड’ (IBBI) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ भी एक अपीलीय अधिकरण है।
अपील
- NCLAT के किसी भी आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सर्पदंश विष
प्रिलिम्स के लिये:इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, विश्व स्वास्थ्य संगठन, उष्णकटिबंधीय रोग, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग मेन्स के लिये:सर्पदंश विष के लिये WHO का रोडमैप |
चर्चा में क्यों?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक नए अध्ययन के अनुसार, विश्व में सर्पदंश के सबसे अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं, जो वैश्विक सर्पदंश से होने वाली मौतों का लगभग 50% है।
- सर्पदंश विष (SE) को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा उच्च प्राथमिकता वाले उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
प्रमुख बिंदु
सर्पदंश विष के बारे में:
- SE जीवन के लिये एक संभावित खतरनाक बीमारी है जो आमतौर पर एक विषैले सांँप के काटने के बाद विभिन्न विषाक्त पदार्थों (जहर) के मिश्रण के परिणामस्वरूप होती है और सांँपों की कुछ प्रजातियों द्वारा जहर छिड़कने के लक्षण के कारण आंँखों में भी जहर फैलने की घटनाएँ देखी जाती हैं।
- यह अफ्रीका, मध्य-पूर्व, एशिया, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका में स्थित उष्णकटिबंधीय व उपोष्णकटिबंधीय देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से एक महत्त्वपूर्ण पूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
- इन क्षेत्रों में सर्पदंश का खतरा दैनिक चिंता का विषय है, विशेष रूप से ग्रामीण और उपनगरीय समुदायों के लिये जहांँ लाखों लोग जीवित रहने के लिये कृषि या निर्वाह हेतु शिकार पर निर्भर हैं।
प्रभाव:
- कई सर्पदंश से पीड़ित, ज़्यादातर लोग विकासशील देशों में विकृति, विच्छेदन, दृश्य हानि, गुर्दे की जटिलता और मनोवैज्ञानिक संकट जैसी दीर्घकालिक जटिलताओं से पीड़ित हैं।
सर्पदंश विष के कारण होने वाली मौतें:
- वैश्विक
- दुनिया भर में सांँपों के काटने की प्रतिवर्ष लगभग 5.4 मिलियन घटनाएँ दर्ज की जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप विष के 1.8 से 2.7 मिलियन मामले सामने आते हैं।
- सर्पदंश के कारण प्रतिवर्ष 81,410 से 1,37,880 तक लोगों की मृत्यु होती है और लगभग तीन गुना अधिक लोग स्थायी अक्षमताओं से ग्रसित हो जाते हैं।
- भारत
- भारत में वर्ष 2000 से वर्ष 2019 तक सर्पदंश के कारण अनुमानित 1.2 मिलियन मौतें हुई हैं, जो प्रतिवर्ष औसतन 58,000 है।
सर्पदंश विष के लिये WHO का रोडमैप
- ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने वर्ष 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मृत्यु और विकलांगता के मामलों को आधा करने के उद्देश्य से अपना रोडमैप लॉन्च किया है।
- एंटीवेनम के लिये एक स्थायी बाज़ार बनाने हेतु वर्ष 2030 तक सक्षम निर्माताओं की संख्या में 25% की वृद्धि की आवश्यकता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक एंटीवेनम स्टॉकपाइल बनाने के लिये एक पायलट प्रोजेक्ट की योजना बनाई है।
- स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षित समुदायों के बेहतर प्रशिक्षण सहित प्रभावित देशों में सर्पदंश उपचार और राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं में प्रतिक्रिया को एकीकृत करना।
भारतीय पहलें
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के रोडमैप से पूर्व ही ICMR के शोधकर्त्ताओं ने सामुदायिक जागरूकता और स्वास्थ्य प्रणाली क्षमता निर्माण शुरू कर दिया था।
- वह सर्पदंश पर राष्ट्रीय कार्यबल द्वारा वित्तपोषित एक राष्ट्रीय अध्ययन के माध्यम से अपना काम जारी रखे हुए है।
चिंताएँ:
- समुदायों के बीच जागरूकता की कमी:
- जागरूकता की कमी, सर्पदंश की रोकथाम के बारे में अपर्याप्त ज्ञान और समुदाय के साथ-साथ परिधीय स्वास्थ्यकर्मियों के बीच प्राथमिक उपचार दक्षता की कमी, जीवन रक्षक उपचार प्राप्त करने में देरी और सर्पदंश के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारियों की अनुपलब्धता के कारण अधिक संख्या में मौतें होती हैं।
- नाग देवता में विश्वास करने वाले कुछ अंधविश्वासों का मानना है कि इमली के बीज या चुंबक में जहर के प्रभाव को कम करने की क्षमता होती है।
- विषैले और गैर-विषैले सांँपों के बारे में कोई जानकारी नहीं:
- सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में विषैले और गैर-विषैले सांँपों की पहचान करने के लिये कोई ‘IEC’ (सूचना, शिक्षा और संचार) सामग्री उपलब्ध नहीं है।
सिफारिशें:
- सर्पदंश प्रबंधन पर पाठ्यक्रम:
- अध्ययन में भारत में राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों के प्रशिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में सर्पदंश प्रबंधन को शामिल करने, चिकित्सा स्नातकों को उनकी इंटर्नशिप के दौरान अनिवार्य अल्पकालिक प्रशिक्षण और भारत में राज्य स्वास्थ्य सेवाओं में प्रेरण प्रशिक्षण को एक भाग के रूप में शामिल करने की सिफारिश की गई है।
- बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
- सामुदायिक जागरूकता द्वारा बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण के माध्यम से भारत में सर्पदंश के विष के कारण मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने हेतु स्वास्थ्य सुविधाओं का क्षमता निर्माण करना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
पुलिस हिरासत में हिंसा मानवाधिकारों के लिये खतरा
प्रिलिम्स के लियेभारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो मेन्स के लियेपुलिस हिरासत में हिंसा और संबंधित प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि संवैधानिक गारंटी के बावजूद हिरासत में यातना/हिंसा और पुलिस अत्याचारों को जारी रख पुलिस स्टेशन मानवाधिकारों एवं गरिमा पर सबसे बड़ा संकट उत्पन्न कर रहे हैं।
- उन्होंने एक कानूनी सेवा मोबाइल एप्लीकेशन एवं ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) की कानूनी सेवाओं के विज़न एवं मिशन स्टेटमेंट के शुभारंभ पर यह बयान दिया।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
- इसका गठन कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया था, जो समाज के संवेदनशील वर्गों को मुफ्त एवं सक्षम कानूनी सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक राष्ट्रव्यापी यूनिफार्म नेटवर्क स्थापित करने के उद्देश्य से नवंबर 1995 में लागू हुआ था।
- सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश इसका मुख्य संरक्षक होता है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश प्राधिकरण का कार्यकारी अध्यक्ष होता है।
- संविधान का अनुच्छेद-39A समाज के गरीब एवं संवेदनशील वर्गों को समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने हेतु मुफ्त कानूनी सहायता का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 22(1), राज्य को कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करते हैं।
- गौरतलब है कि नालसा और उसके नेटवर्क द्वारा निभाई गई भूमिका सतत् विकास लक्ष्य-16 को प्राप्त करने हेतु काफी प्रासंगिक है, जिसका लक्ष्य सतत् विकास हेतु शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना, सभी के लिये न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना और प्रभावी, जवाबदेह एवं सभी स्तरों पर समावेशी संस्थान का निर्माण सुनिश्चित करना है।
प्रमुख बिंदु
विज़न और मिशन स्टेटमेंट
- यह एक समावेशी कानूनी प्रणाली को बढ़ावा देने और हाशिये पर और वंचित क्षेत्र के लिये निष्पक्ष एवं सार्थक न्याय सुनिश्चित करने हेतु नालसा के दृष्टिकोण को समाहित करती है।
- यह कानूनी रूप से उपलब्ध लाभों और लाभार्थियों के बीच की खाई को कम करने के लिये प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व, कानूनी साक्षरता और जागरूकता प्रदान करके समाज के हाशिये पर और बहिष्कृत समूहों को कानूनी रूप से सशक्त बनाने के लिये नालसा के मिशन को बढ़ावा देती है।
कानूनी सेवाएँ मोबाइल एप्लीकेशन:
- इसमें कानूनी सहायता, कानूनी सलाह और अन्य शिकायतों के पंजीकरण आदि की सुविधा होगी।
- एप्लीकेशन ट्रैकिंग सुविधाएँ और स्पष्टीकरण की मांग जैसी कुछ अतिरिक्त सुविधाएँ भी हैं, जो कानूनी सहायता के लाभार्थियों और कानूनी सेवा प्राधिकरणों दोनों के लिये उपलब्ध हैं।
- लाभार्थी एप के माध्यम से पूर्व-संस्थान मध्यस्थता के लिये आवेदन कर सकते हैं। पीड़ित एप के माध्यम से मुआवज़े के लिये भी आवेदन कर सकते हैं।
हिरासत में हिंसा
संबंधित डेटा:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 और वर्ष 2018 के मध्य भारत में 1,727 ऐसी मौतें दर्ज़ होने के बावज़ूद केवल 26 पुलिसकर्मियों को हिरासत में हिंसा का दोषी ठहराया गया था।
- वर्ष 2018 में 70 मौतों में से केवल 4.3% में पुलिस द्वारा शारीरिक हमले के कारण हिरासत के दौरान चोटों के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा को छोड़कर पूरे देश में इस तरह की मौतों के लिये किसी भी पुलिसकर्मी को दोषी नहीं ठहराया गया था।
- हिरासत में हुई मौतों के अलावा वर्ष 2000 और वर्ष 2018 के मध्य पुलिस के खिलाफ 2,000 से अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी दर्ज किये गए थे और उन मामलों में केवल 344 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था।
प्रमुख कारण:
- कानूनी प्रतिनिधित्व का अभाव:
- पुलिस थानों में प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व के अभाव के कारण गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को बड़ा नुकसान सहना पड़ता है। गिरफ्तारी या नज़रबंदी के पहले घंटे अक्सर आरोपी के मामले के भाग्य का फैसला करते हैं।
- लंबी न्यायिक प्रक्रियाएंँ:
- न्यायालयों द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी, महंँगी औपचारिक प्रक्रियाएंँ गरीबों और कमज़ोरों को हतोत्साहित करती हैं।
- मज़बूत कानून का अभाव:
- भारत में अत्याचार विरोधी कानून नहीं है और अभी तक हिरासत में हिंसा को अपराध घोषित नहीं किया गया है, जबकि दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भ्रामक है।
- संस्थागत चुनौतियांँ:
- पूरी जेल प्रणाली प्रक्रिया में स्वाभाविक रूप से अपारदर्शी है तथा इसमें पारदर्शिता का अभाव है।
- भारत कारागारों में वांछित सुधार लाने में भी विफल रहता है और जेलें खराब परिस्थितियों, भीड़भाड़, अधिक लोगों का दबाव एवं जेलों में होने वाले नुकसान के खिलाफ न्यूनतम सुरक्षा उपायों से नही प्रभावित होती रहती हैं।
- अधिक दबाव:
- हाशिये के समुदायों को लक्षित करने के लिये यातना सहित अत्यधिक बल का उपयोग और आंदोलनों में भाग लेने वाले लोगों को नियंत्रित करना या विचारधाराओं का प्रचार करना, जिसे राज्य अपने अधिकार के विपरीत मानता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन न करना:
- हालांँकि भारत ने वर्ष 1997 में अत्याचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये थे, लेकिन इसके अनुसमर्थन का मुद्दा अभी भी बना हुआ है।
- जबकि हस्ताक्षर केवल संधि में निर्धारित दायित्वों को पूरा करने के लिये देश के इरादे को इंगित करता है, दूसरी ओर अनुसमर्थन, प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये कानूनों और तंत्रों के निर्माण पर ज़ोर देता है।
संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत यातना से सुरक्षा एक मौलिक अधिकार है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत सलाह का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code -CrPC) की धारा 41 को वर्ष 2009 में 41ए, 41बी, 41सी और 41डी के तहत सुरक्षा उपायों को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया था, ताकि पूछताछ के लिये गिरफ्तारी और हिरासत में उचित आधार तथा दस्तावेज़ी प्रक्रिया सुनिश्चित हो, गिरफ्तारी को परिवार, दोस्तों और जनता के लिये पारदर्शी बनाया जा सके एवं कानूनी प्रतिनिधित्व के माध्यम से सुरक्षा प्राप्त हो।
आगे की राह:
- पुलिस की ज़्यादतियों पर अंकुश लगाने के लिये कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार करना आवश्यक है।
- हर थाने/जेल में डिस्प्ले बोर्ड और आउटडोर होर्डिंग लगाना इसी दिशा में एक कदम है।
- यदि भारत कानून के शासन द्वारा शासित समाज के रूप में बना रहना चाहता है, तो न्यायपालिका के लिये अनिवार्य है कि वह अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त और सबसे कमज़ोर लोगों के बीच न्याय तक पहुँच के अंतर को पाट दे।
- भारत में न्याय प्राप्त करना केवल एक आकांक्षी लक्ष्य नहीं है। न्यायपालिका को इसे व्यावहारिक रूप देने के लिये सरकार के विभिन्न अंगों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।