ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण की कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया है।
प्रमुख बिंदु
- ऊर्ध्वाधर आरक्षण:
- ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण को संदर्भित करता है।
- यह कानून के तहत निर्दिष्ट प्रत्येक समूहों के लिये अलग से लागू होता है।
- उदाहरण: अनुच्छेद 16 (4) ऊर्ध्वाधर आरक्षण की परिकल्पना करता है।
- क्षैतिज आरक्षण:
- क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) के तहत ऊर्ध्वाधर श्रेणियों से एक विशेष वर्ग जैसे- महिलाओं, बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर समुदाय और विकलांग व्यक्तियों आदि को निकालकर आरक्षण दिया जाता है।
- उदाहरण: अनुच्छेद 15 (3) क्षैतिज आरक्षण की परिकल्पना करता है।
- आरक्षण का अनुप्रयोग:
- क्षैतिज कोटा (Quota) को ऊर्ध्वाधर श्रेणी से अलग लागू किया जाता है।
- उदाहरण के लिये यदि महिलाओं के पास 50% क्षैतिज कोटा है तो चयनित उम्मीदवारों (Candidates) में से आधे को ऊर्ध्वाधर कोटा श्रेणी जैसे- अनुसूचित जाति, अनारक्षित वर्ग इत्यादि की महिला होना चाहिये।
- संबंधित मामले
- वर्ष 2020 में सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य वाद में कांस्टेबलों के पदों की चयन प्रक्रिया में आरक्षण को लागू करने से उत्पन्न मुद्दे का समाधान किया गया।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा उच्च ग्रेड हासिल करने के बाद भी उन्हें अपनी श्रेणियों तक सीमित रखने की नीति का अनुसरण किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि ऊर्ध्वाधर- क्षैतिज दोनों ही आरक्षित श्रेणियों के तहत आने वाला कोई व्यक्ति ऊर्ध्वाधर आरक्षण के बिना ही अर्हता के लिये पर्याप्त अंक हासिल कर लेता है तो उस व्यक्ति को ऊर्ध्वाधर आरक्षण के बिना अर्हता प्राप्त के रूप में गिना जाएगा और उसे सामान्य श्रेणी में क्षैतिज कोटा से बाहर नहीं किया जाएगा।
- न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के तर्क का अर्थ है कि सामान्य वर्ग केवल उच्च जातियों के लिये 'आरक्षित' था।
- महत्त्व:
- न्यायालय का यह निर्णय आरक्षण को लेकर स्पष्टता प्रदान करेगा और सरकारों के लिये आरक्षण को लागू करना आसान बना देगा।
- यदि उच्च स्कोरिंग उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी के तहत भर्ती किया जाएगा तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के अधिक ज़रूरतमंद उम्मीदवारों को लाभ मिलेगा।
आरक्षण
- आरक्षण सकारात्मक विभेद का एक रूप है, जो हाशिये के वर्गों के बीच समानता को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है, ताकि उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से बचाया जा सके।
- सामान्यतः इसका अभिप्राय रोज़गार और शिक्षा में समाज के हाशिये पर मौजूद वर्गों को वरीयता देने से है।
- इस अवधारणा का मूल उद्देश्य वर्षों से भेदभाव का सामना कर रहे वंचित समूहों को बढ़ावा देना और उनका विकास सुनिश्चित करना है।
- ज्ञात हो कि भारत में एक वर्ग विशेष को जातीयता के आधार पर ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ा है।
भारत में आरक्षण से संबंधित प्रावधान
- संविधान का अनुच्छेद 15(3) महिलाओं के पक्ष में सुरक्षात्मक विभेद की अनुमति देता है।
- संविधान के अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 16 (4) राज्य और केंद्र सरकारों को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाते हैं।
- वर्ष 1995 में संविधान में 77वाँ संविधान संशोधन किया गया और अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) शामिल किया गया, जो सरकार को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने एक आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है।
- वर्ष 2001 में 85वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 16 के खंड (4A) को संशोधित किया गया और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये ‘परिणामी वरिष्ठता’ का प्रावधान किया।
- वर्ष 2000 में 81वाँ संविधान संशोधन किया गया, जिसने राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित बीते वर्षों की शेष रिक्तियों को अगले वर्ष हस्तांतरित करने की अनुमति दी, जिससे उस वर्ष की कुल रिक्तियों पर 50 प्रतिशत के आरक्षण की सीमा का नियम शून्य हो जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 क्रमशः संसद एवं राज्य विधानसभाओं में SC और ST समुदायों के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं।
- अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में SC और ST के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- साथ ही यह उपलब्ध सीटों की कुल संख्या में से एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करने का भी प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगरपालिका में SC और ST के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 335 के अनुसार, प्रशासन की दक्षता बनाए रखने हेतु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का ध्यान रखा जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
COVID-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 संक्रमण से स्वस्थ हुए लोगों में कई महीनों और शायद वर्षों तक कोरोनोवायरस के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा बनी रह सकती है। यह रिपोर्ट 188 मरीज़ों के रक्त नमूनों के विश्लेषण पर आधारित है।
प्रमुख बिंदु:
- पृष्ठभूमि:
- COVID-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा की अवधि इस पूरी महामारी के दौरान शोध का एक प्रमुख विषय रहा है और अभी तक हुए अध्ययनों में कई परिणाम देखने को मिले हैं।
- इससे पहले जुलाई 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया था कि यह प्रतिरक्षा कुछ ही महीनों में समाप्त/नष्ट हो सकती है, जो कि पुनः संक्रमण के लिये अतिसंवेदनशील बनाती है।
- अध्ययन के परिणाम:
- यह अध्ययन बताता है कि प्रारंभिक संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत के बाद से कोरोनोवायरस के खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कम-से-कम आठ महीने तक बनी रह सकती है।
- साथ ही यह बताता है कि COVID -19 संक्रमण से स्वस्थ हुए लगभग सभी व्यक्तियों में पुन: संक्रमण से लड़ने के लिये आवश्यक प्रतिरक्षा कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
- इस अध्ययन के तहत एक ही समय में एंटीबॉडी, स्मृति बी कोशिकाओं, सहायक टी कोशिकाओं और मारक टी कोशिकाओं को मापा गया है।
- यह अन्य प्रयोगशालाओं से प्राप्त COVID-19 डेटा से उत्पन्न चिंताओं को संबोधित करता है, जिसमें समय के साथ COVID-विशिष्ट एंटीबॉडी में एक नाटकीय गिरावट देखने को मिली थी।
- प्रतिरक्षा:
- प्रतिरक्षा (Immunity) से आशय शरीर द्वारा रोगकारक जीवों से स्वयं की रक्षा करने की क्षमता से है।
- प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है: (i) सहज प्रतिरक्षा और (ii) उपार्जित प्रतिरक्षा।
- सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity):
- यह एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है जो हमारे शरीर में जन्म के समय से ही मौजूद होती है।
- उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity):
- यह रोगजनक विशिष्ट होती है। इसका अभिलक्षण स्मृति है। इसका मतलब यह है कि हमारा शरीर जब पहली बार एक रोगजनक का सामना करता है, तो यह एक अनुक्रिया करता है, जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते हैं।
- बाद में उसी रोगजनक से सामना होने पर बहुत ही तीव्रता की द्वितीयक या पूर्ववृत्तीय अनुक्रिया ( Anamnestic Response) होती है, इसका कारण यह है कि हमारे शरीर में प्रथम अनुक्रिया की स्मृति बनी रहती है। .
- एंटीबॉडी (Antibody):
- एक एंटीबॉडी, जिसे इम्युनोग्लोबुलिन के रूप में भी जाना जाता है, वाई (Y) के आकार का प्रोटीन है, जिसका उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा रोगजनक बैक्टीरिया और वायरस जैसे विदेशी पदार्थों/वस्तुओं की पहचान करने और उन्हें बेअसर करने के लिये किया जाता है।
- टी कोशिकाएँ और बी कोशिकाएँ अनुकूली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के प्रमुख कोशिकीय घटक हैं। टी कोशिकाएँ कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा में शामिल होती हैं, जबकि बी कोशिकाएँ मुख्य रूप से त्रिदोषन प्रतिरोधक क्षमता (Humoral immunity) के लिये ज़िम्मेदार होती हैं।
- बी स्मृति कोशिकाएँ:
- ये बी कोशिका के उप प्रकार हैं जो प्राथमिक संक्रमण के बाद जर्मिनल (Germinal ) केंद्रों के भीतर बनती हैं। MBC दशकों तक जीवित रह सकते हैं और बार-बार पुन: संक्रमण (जिसे द्वितीयक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के रूप में भी जाना जाता है) के मामले में एक त्वरित तथा मज़बूत एंटीबॉडी उत्पन्न करते हैं।
- टी सहायक कोशिकाएँ:
- ये प्रतिरक्षा (Immunity) के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कोशिकाएँ हैं क्योंकि लगभग सभी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं हेतु इनकी आवश्यकता होती है। ये बी कोशिकाओं, एंटीबॉडी और मैक्रोफेज (रोगाणुओं को नष्ट करने हेतु) तथा मारक टी कोशिकाओं (Killer T cells) को (संक्रमित टी कोशिकाओं को मारने के लिये) सक्रिय करने में भी मदद करती हैं।
- मारक टी कोशिकाएँ:
- यह एक टी लिम्फोसाइट (Lymphocyte- श्वेत रक्त कोशिका का एक प्रकार) है जो कैंसर, संक्रमित (विशेषकर वायरस से संक्रमित) या अन्य तरीकों से क्षतिग्रस्त होने वाली कोशिकाओं को मारता है
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत और मंगोलिया संबंध
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और मंगोलिया ने हाइड्रोकार्बन तथा इस्पात क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की है।
प्रमुख बिंदु
- भारत ने ‘मंगोलियाई रिफाइनरी परियोजना’ को समय पर पूरा करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की ताकि मंगोलिया की पहली तेल रिफाइनरी स्थापित की जा सके।
- विदित हो कि मंगोलिया की ‘ग्रीनफील्ड मंगोल रिफाइनरी’ का निर्माण भारत सरकार की क्रेडिट लाइन के तहत किया जा रहां है।
- इस पहली रिफाइनरी से मंगोलिया की ईंधन आयात पर निर्भरता में कमी आएगी।
- यह परियोजना ऐसे समय में शुरू हुई है जब मंगोलिया, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है, ज्ञात हो कि मंगोलिया के पास बड़े यूरेनियम भंडार मौजूद है और इसने भारत के साथ वर्ष 2009 में असैन्य परमाणु सहयोग समझौता भी किया था।
- भारत सदैव से ही चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), जिसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका आदि में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर तकरीबन 8 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करना है, का विरोध करता रहा है, क्योंकि भारत का मत है कि चीन की यह पहल इसमें शामिल देशों को कर्ज के जाल में फँसाती है और उनकी संप्रभुता का सम्मान नहीं करती, साथ ही इस पहल में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को भी संबोधित नहीं किया गया है।
- भारत ने भारतीय इस्पात उद्योग को कोकिंग कोल की आपूर्ति में मंगोलियाई कंपनियों की उत्सुकता का स्वागत किया है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2025 तक कोकिंग कोल के सबसे बड़े आयातक के रूप में चीन से भी आगे निकल जाएगा।
- इसके अलावा भारत खनिज, कोयला और इस्पात के क्षेत्र में मंगोलियाई कंपनियों के साथ और अधिक भागीदारी बढ़ाने पर विचार कर रहा है।
- भारत ने मंगोलिया की विकासात्मक प्राथमिकताओं के अनुरूप क्षमता निर्माण सहित तेल एवं गैस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता को साझा करने की इच्छा व्यक्त की है।
भारत-मंगोलिया संबंध
- ऐतिहासिक संबंध
- भारत और मंगोलिया अपनी साझा बौद्ध विरासत के कारण आध्यात्मिक रुप से जुड़े हुए हैं।
- राजनयिक संबंध
- भारत ने वर्ष 1955 में मंगोलिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये क्योंकि मंगोलिया ने भारत को ‘आध्यात्मिक पड़ोसी’ और रणनीतिक साझेदार घोषित किया था, इस तरह भारत, सोवियत ब्लॉक के बाहर उन शुरुआती देशों में से एक था, जिन्होंने मंगोलिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये थे।
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत वर्ष 2015 में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री मंगोलिया गए थे।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- मंगोलिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सीट के लिये भारत की सदस्यता हेतु अपने समर्थन को एक बार फिर दोहराया है।
- चीन के कड़े विरोध के बावजूद भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) समेत प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंचों में मंगोलिया को सदस्यता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में मंगोलिया को शामिल करने का भी समर्थन किया।
- मंगोलिया ने भारत और भूटान के साथ बांग्लादेश की मान्यता के लिये वर्ष 1972 के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था।
- अन्य फोरम जिनमें दोनों देश सदस्य हैं: एशिया-यूरोप मीटिंग (ASEM) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) आदि।
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत एक सदस्य देश है, जबकि मंगोलिया एक पर्यवेक्षक देश है।
- आर्थिक संबंध
- भारत और मंगोलिया के बीच वर्ष 2019 में 38.3 मिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, जबकि वर्ष 2018 में यह 52.6 मिलियन डॉलर था।
- रक्षा सहयोग
- दोनों देशों के बीच ‘नोमाडिक एलीफैंट’ नाम से संयुक्त अभ्यास का आयोजन किया जाता है। इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद विरोधी और काउंटर टेररिज़्म ऑपरेशन हेतु सैनिकों को प्रशिक्षित करना है।
- मंगोलिया द्वारा आयोजित ‘खान क्वेस्ट’ (Khaan Quest) नामक एक वार्षिक संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास में भारत भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेता है।
- पर्यावरणीय मुद्दों पर सहयोग
- दोनों देश बिश्केक घोषणा (Bishkek Declaration) का हिस्सा हैं।
- सांस्कृतिक संबंध
- संस्कृति मंत्रालय (भारत) ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के तहत मंगोलियाई कंजूर के 108 संस्करणों को फिर से बनाने की परियोजना शुरू की है।
- केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय मार्च 2022 तक ‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ (NMM) के तहत ‘मंगोलियाई कंजूर’ के 108 संस्करणों के पुनर्मुद्रण की परियोजना शुरू की है।
- सहयोग के अन्य क्षेत्र
- भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है, ऐसे में दोनों देशों द्वारा सौर ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग किया जा सकता है।
- मंगोलिया के खनन क्षेत्र विशेषकर कॉपर और यूरेनियम आदि में भी दोनों देशों के बीच सहयोग की काफी संभावनाएँ हैं।
- भारत, मंगोलिया के असंगठित और व्यापक पैमाने पर बिखरे हुए किसानों एवं दूध विक्रेताओं के लिये सहकारी समितियों के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकता है।
आगे की राह
- मध्य एशिया, पूर्वोत्तर एशिया, सुदूर पूर्व चीन और रूस के क्रॉस जंक्शन पर स्थित मंगोलिया की रणनीतिक अवस्थिति विश्व की प्रमुख शक्तियों को इसकी ओर आकर्षित करती है।
- भारत-मंगोलियाई संस्कृति की साझी विरासत को संरक्षित करना और बढ़ावा देना ज़रूरी है। यह भविष्य में दोनों देशों के हितों को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
जापान द्वारा भारत को आधिकारिक विकास सहायता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और जापान द्वारा 50 बिलियन येन (लगभग 3,550 करोड़ रुपए) के ऋण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इसका उद्देश्य COVID-19 से प्रभावित गरीब और सुभेद्य लोगों के लिये भारत सरकार द्वारा संचालित आर्थिक सहयोग कार्यक्रमों को समर्थन प्रदान करना है।
प्रमुख बिंदु:
- ऋण की विशेषताएँ:
- यह जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण का हिस्सा है।
- ODA को ऐसी सरकारी सहायता के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे विकासशील देशों के आर्थिक विकास और कल्याण को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- सैन्य उद्देश्यों के लिये दिये जाने वाले ऋण और क्रेडिट को ODA से बाहर रखा गया है।
- इस ऋण पर 0.65% की ब्याज दर लागू होगी और इसे चुकाने की अवधि 15 वर्ष की होगी, पाँच वर्ष की ग्रेस (Grace) या छूट अवधि सहित।
- वित्तीय सहायता का उद्देश्य भारत सरकार द्वारा संचालित 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना' (PMJKY) जैसे कार्यक्रमों को समर्थन प्रदान करना है, जिनका उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को कम करना और सामाजिक-आर्थिक संस्थानों को मज़बूत करना है।
- इसके तहत गरीब और कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिये खाद्यान्न वितरण की योजनाएँ, निर्माण श्रमिकों को समर्थन और सहायता का प्रावधान तथा COVID-19 के प्रसार को रोकने में लगे स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिये विशेष बीमा का प्रावधान भी शामिल है।
- यह भारत सरकार की स्वास्थ्य और चिकित्सा नीति के कार्यान्वयन के लिये है और इससे आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाइयों), संक्रमण रोकथाम तथा प्रबंधन सुविधाओं से लैस अस्पतालों के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- इसके द्वारा देश भर के कई गाँवों में डिजिटल तकनीक के उपयोग से टेलीमेडिसिन (Telemedicine) के संवर्द्धन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- यह जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण का हिस्सा है।
- पूर्व के समर्थन:
- जापान ने इससे पहले COVID-19 संकट का मुकाबला करने हेतु भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन करने के लिये 50 अरब येन का बजट समर्थन और एक अरब येन की अनुदान सहायता प्रदान की थी।
- जापान द्वारा भारत को अब दी गई कुल सहायता राशि लगभग 5,800 करोड़ रुपए है।
- भारत-जापान संबंध:
- भारत और जापान के बीच वर्ष 1958 से द्विपक्षीय सहयोग का लंबा और सकारात्मक इतिहास रहा है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत और जापान के बीच आर्थिक सहयोग मज़बूत हुआ है तथा यह प्रगति रणनीतिक साझेदारी में बदल गई है।
- वित्तीय वर्ष 2019 में भारत के लिये जापान चौथा सबसे बड़ा निवेशक देश था।
- भारत पिछले दशकों में जापानी ODA ऋण का सबसे बड़ा लाभार्थी/प्राप्तकर्त्ता रहा है। दिल्ली मेट्रो ODA के उपयोग के माध्यम से जापानी सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
- इसके अलावा जापान 'एक्ट ईस्ट नीति' और 'पार्टनरशिप फॉर क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर’ के बीच तालमेल के माध्यम से दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने में रणनीतिक कनेक्टिविटी का समर्थन जारी रखेगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
असम में स्वायत्तता की मांग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अनुच्छेद 244A (Article 244A) को असम के भीतर एक स्वायत्त राज्य के निर्माण के लिये लागू करने की मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) क्षेत्र के लिये एक स्वायत्त राज्य के निर्माण हेतु केंद्र सरकार से अपील की गई है।
- इस क्षेत्र के लिये अलग राज्य की मांग वर्ष 1986 से की जा रही है।
- वर्तमान में यह क्षेत्र दो स्वायत्त परिषदों (कार्बी आंगलोंग और उत्तरी कछार पहाड़ी) द्वारा शासित है।
- कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) क्षेत्र के लिये एक स्वायत्त राज्य के निर्माण हेतु केंद्र सरकार से अपील की गई है।
-
अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र:
- आदिवासियों द्वारा बसाए गए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र कहा जाता है।
- अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन:
- भारतीय संविधान की दो अनिसूचियाँ (5वीं और 6वीं) अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के नियंत्रण तथा प्रबंधन के विषय में विस्तृत विवरण प्रदान करती हैं।
- भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची:
- इस अनुसूची में चार राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों के अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन एवं नियंत्रण के प्रावधानों का उल्लेख है।
- वर्तमान में पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) के क्षेत्र आते हैं।
- भारतीय संविधान की छठी अनुसूची:
- इस अनुसूची में चार राज्यों यथा- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं नियंत्रण के प्रावधान हैं।
- अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों को दो अनुच्छेदों में शामिल किया गया है:
- अनुच्छेद 244:
- इस अनुच्छेद में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबंध किये गए हैं।
- इन क्षेत्रों को राष्ट्रपति द्वारा परिभाषित किया जाता है जिनका उल्लेख संविधान की पाँचवीं अनुसूची में किया गया है।
- अनुच्छेद 244A:
- असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक स्वायत्त राज्य का गठन और उसके लिये स्थानीय विधायिका या मंत्रिपरिषद अथवा दोनों का निर्माण करना।
- अनुच्छेद 244:
स्रोत: द हिंदू
WTO में भारत की सातवीं व्यापार नीति समीक्षा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जिनेवा स्थित विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) द्वारा भारत की सातवीं व्यापार नीति समीक्षा की गई है।
व्यापार नीति की समीक्षा WTO की निगरानी प्रणाली के तहत एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत WTO द्वारा किसी नीति में सुधार की आवश्यकता तथा इस बात की समीक्षा की जाती है कि इसके नियमों का पालन किया जा रहा है अथवा नहीं।
- इससे पहले भारत की व्यापार नीति की समीक्षा वर्ष 2015 में की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- विश्व व्यापार संगठन ने निम्नलिखित बिंदुओं पर भारत की सराहना की:
- वर्ष 2016 में भारत द्वारा प्रस्तुत वस्तु एवं सेवा कर (Goods & Services Tax) के मामले में।
- विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुविधा समझौते (Trade Facilitation Agreement) के कार्यान्वयन हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदमों के मामले में।
- व्यापार सुविधा समझौते (TFA) का उद्देश्य सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में तेज़ी लाना तथा व्यापार को सरल, तीव्र एवं सुगम बनाना है।
- देश में व्यापार सुगमता की दिशा में किये गए प्रयासों के मामले में।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट के तहत ‘ट्रेडिंग अक्रॉस बॉर्डर्स’ यानी सीमा पार व्यापार संकेतक में भारत की बेहतर रैंकिंग के मामले में।
- भारत द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) नीति और राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (National Intellectual Property Rights Policy), 2016 को उदार बनाए जाने के लिये उठाए गए कदमों के मामले में।
- भारत की चिंता:
- पिछली समीक्षा के बाद से अब तक भारत की व्यापार नीति काफी हद तक अपरिवर्तित रही है।
- WTO के अनुसार, व्यापार नीति के साधनों जैसे- टैरिफ, निर्यात कर, न्यूनतम आयात मूल्य, आयात तथा निर्यात प्रतिबंध और लाइसेंसिंग पर भारत की निर्भरता बनी हुई है।
- इन साधनों का उपयोग घरेलू मांग तथा आपूर्ति संबंधी आवश्यकताओं को प्रबंधित करने, घरेलू मूल्य में व्यापक उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था को बचाने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं उनका समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
- इनके परिणामस्वरूप टैरिफ दरों और व्यापार नीति के अन्य साधनों में लगातार बदलाव होते रहते हैं जिसके कारण व्यापारियों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- खाद्य तथा जीविका की सुरक्षा:
- वर्तमान में व्याप्त महामारी ने एक बार फिर लोगों के लिये खाद्य तथा जीविका की सुरक्षा के महत्त्व को दर्शाया है तथा खाद्य सुरक्षा के स्थायी समाधान के लिये पब्लिक स्टॉक होल्डिंग (PSH) का मार्ग अपनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
पब्लिक स्टॉक होल्डिंग (PSH):
- यह एक नीतिगत उपकरण है जिसका उपयोग सरकारों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण और वितरण के लिये किया जाता है।
- वर्तमान में विकासशील देशों के सार्वजनिक वितरण कार्यक्रमों को विश्व व्यापार संगठन के ‘ट्रेड-डिसटॉर्टिंग अंबर बॉक्स’ (Trade-Distorting Amber Box) उपायों के तहत शामिल किया गया है, जिन पर WTO की कटौती संबंधी प्रतिबद्धताएँ लागू होती हैं।
- अन्य विकासशील देशों के साथ भारत भी यह मांग कर रहा है कि खाद्य सुरक्षा से संबंधित कार्यक्रमों को WTO की सब्सिडी कटौती प्रतिबद्धताओं से मुक्त किया जाना चाहिये।
- भारत ने सार्वजनिक स्टॉक होल्डिंग संबंधी मुद्दों के लिये एक स्थायी समाधान की मांग की है।
व्यापार नीति समीक्षा तंत्र:
- व्यापार नीति समीक्षा तंत्र (Trade Policy Review Mechanism-TPRM) उरुग्वे राउंड (Uruguay Round) का शुरुआती परिणाम था।
- यह सदस्य देशों की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के सामूहिक मूल्यांकन की प्रक्रिया हेतु एक अवसर प्रदान करता है।
- उद्देश्य:
- सदस्य देशों की व्यापार नीति की पारदर्शिता को बढ़ाकर बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के सुचारु कामकाज में सहायता करना।
- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर एक सदस्य देश की व्यापार नीतियों और प्रथाओं के प्रभाव की जाँच करना।
- प्रक्रिया:
- यह समीक्षा WTO के व्यापार नीति समीक्षा निकाय द्वारा की जाती है, जो कि विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद का एक अनुषंगी निकाय है।
- कार्यविधि:
- व्यापार नीति समीक्षा द्वारा सभी सदस्य देशों को उनकी समग्र व्यापार तथा आर्थिक नीतियों के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को जानने का अवसर मिलता है।
- विकासशील देशों की व्यापार नीतियों की समीक्षा प्रत्येक चार वर्ष में की जाती है, जबकि विकसित देशों की व्यापार नीति की समीक्षा प्रत्येक दो वर्ष में की जाती है।
- सेवाओं के व्यापार और बौद्धिक संपदा को कवर करने के लिये TPRM को विस्तृत किया गया था।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सभी सदस्य TPRM के तहत समीक्षा के अधीन हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.