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डेली न्यूज़

  • 08 Jun, 2019
  • 44 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का पहला अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास

चर्चा में क्यों?

मार्च 2019 में एंटी-सैटेलाइट (Anti-Satellite/A-Sat) मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण और हाल ही में ‘ट्राई सर्विस डिफेंस स्पेस एजेंसी’ (Tri-Service Defence Space Agency) की शुरुआत करने के पश्चात् भारत पहली बार सिमुलेटेड (कृत्रिम/बनावटी) अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास (Simulated Space Warfare Exercise) की योजना बना रहा है, जिसे 'IndSpaceEx' नाम दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • यह अभ्यास मूल रूप से एक ‘टेबल-टॉप वॉर-गेम’ (‘Table-Top War-Game’) होगा, जिसमें सैन्य और वैज्ञानिक समुदाय के लोग हिस्सा लेंगे। किंतु टेबल-टॉप वॉर-गेम होने के बावजूद यह अभ्यास उस गंभीरता को रेखांकित करता है जिसके तहत चीन जैसे देशो से भारत अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की रक्षा और संभावित खतरों से मुकाबला करने की आवश्यकता पर विचार कर रहा है।

Table top war game

उद्देश्य

  • अंतरिक्ष का सैन्यीकरण होने के साथ-साथ इसमें विवादास्पद और प्रतिस्पर्द्धात्मक गतिविधियाँ भी हो रही हैं।
  • इन गतिविधियों के मद्देनज़र भारत द्वारा अंतरिक्ष युद्धाभ्यास को शुरू करने का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष में अपनी स्थिति को और मज़बूत बनाना है।
  • जुलाई 2019 के अंतिम सप्ताह में आयोजित होने वाले इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक अंतरिक्ष और काउंटर-स्पेस क्षमताओं का आकलन करना है।

एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT)

  • एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का लक्ष्य किसी देश के सामरिक सैन्य उद्देश्यों के उपग्रहों को निष्क्रिय करने या नष्ट करने पर लक्षित होता है।
  • वैसे आज तक किसी भी युद्ध में इस तरह की मिसाइल का उपयोग नहीं किया गया है। लेकिन कई देश अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने और अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्बाध गति से जारी रखने के लिये इस तरह के मिसाइल सिस्टम की मौजूदगी को ज़रूरी मानते हैं।

‘IndSpaceEx’ योजना

  • इस युद्ध अभ्यास के तहत भारत अंतरिक्ष में अपने विरोधियों पर निगरानी रखने, संचार, मिसाइल की पूर्व चेतावनी और सटीक लक्ष्य साधने तथा अपने उपग्रहों की सुरक्षा जैसी आवश्यकताओं पर बल देगा।
  • इसके साथ ही अंतरिक्ष में रणनीतिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता प्राप्त होगी जिनकी वर्तमान परिवेश में अत्यंत आवश्यकता है।
  • चीन जनवरी 2007 में ‘A-Sat’ मिसाइल की सहायता से एक मौसम उपग्रह को नष्ट कर अंतरिक्ष में अपनी सैन्य क्षमताओं का पहले ही विकास कर चुका है।
  • ध्यातव्य है कि चीन ने हाल ही में अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका के वर्चस्व को खतरे में डालने वाले अपने महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम को लॉन्च किया है। इस कार्यक्रम के तहत चीन ने समुद्र में तैरते एक प्लेटफॉर्म से अंतरिक्ष रॉकेट लॉन्च करने की क्षमता का विकास किया है।

अंतरिक्ष में भारत की स्थिति

  • भारत ने लंबे समय से अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए अंतरिक्ष में अपनी स्थिति मज़बूत बनाई है फिर भी वह चीन के समकक्ष नही आ सका है।
  • भारत ने संचार, नेविगेशन, पृथ्वी अवलोकन और अन्य उपग्रहों को मिलाकर 100 से अधिक अंतरिक्षयान मिशन संचालित किये हैं।
  • साथ ही भारतीय सशस्त्र बल दो समर्पित सैन्य उपग्रहों के अलावा, निगरानी, नेविगेशन और संचार उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर दोहरे उपयोग वाले रिमोट सेंसिंग उपग्रह का भी उपयोग करते हैं।
  • भारत ने मिशन शक्ति को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए काउंटर-स्पेस क्षमता विकसित करने की दिशा में पहला कदम तब उठाया जब उसने कम वज़न वाली पृथ्वी की कक्षा में 283 किमी. की ऊँचाई पर स्थित 740 किलोग्राम के माइक्रोसैट-R उपग्रह को नष्ट करने के लिये 19 टन की इंटरसेप्टर मिसाइल लॉन्च की।

‘मिशन शक्ति’

  • मार्च 2019 में भारत ने मिशन शक्ति को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से तीन मिनट में एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया।
  • अंतरिक्ष में 300 किमी. दूर पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में घूम रहा यह लाइव सैटेलाइट एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था।
  • अब तक रूस, अमेरिका एवं चीन के पास ही यह क्षमता थी और इसे हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है।
  • ‘मिशन शक्ति’ का मूल उद्देश्य भारत की सुरक्षा, आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति को दर्शाना है।

माइक्रोसैट –R

  • माइक्रोसैट-R एक सैन्य इमेजिंग उपग्रह था, जिसका वज़न 130 किलोग्राम था और इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organization-DRDO) द्वारा बनाया गया था।
  • इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया था। ऐसा पहली बार था जब भारतीय उपग्रह को ISRO द्वारा 274 किमी. से कम ऊँचाई में रखा गया हो।
  • मिशन शक्ति के तहत मार्च 2019 में इसे नष्ट कर दिया गया।
  • भारत अन्य काउंटर-स्पेस क्षमताओं जैसे कि निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons- DEWs), लेज़र, ईएमपी (Electromagnetic Pulse) और सह-कक्षीय मारकों (Co-orbital Killers) के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक या प्राकृतिक हमलों से स्वयं के उपग्रहों की रक्षा करने की क्षमता को विकसित करने के लिये काम कर रहा है।

स्रोत- टाइम्स ऑफ़ इंडिया


शासन व्यवस्था

विश्‍व खाद्य सुरक्षा दिवस

चर्चा में क्यों?

7 जून, 2019 को पहली बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (World Food Safety Day) मनाया गया। इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 2018 में खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से अपनाया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • 2019 के विश्‍व खाद्य सुरक्षा दिवस की थीम 'खाद्य सुरक्षा सभी का सरोकार' (Food Safety, Everyone’s Business) है।

food safety

  • इस दिवस को मनाने का उद्देश्य सुरक्षित खाद्य मानकों को बनाए रखने के में जागरूकता पैदा करना और खाद्य जनित बीमारियों के कारण होने वाली मौतों को कम करना है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने अपनी दो एजेंसियों - खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये नामित किया है।
  • ‘खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है और इसे कैसे हासिल किया जा सकता है?’ इस पर चर्चा करने के लिये संयुक्त राष्ट्र ने दिशा-निर्देश विकसित किये हैं। इसके पाँच मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-
  • सरकारों को सभी के लिये सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना चाहिये।
  • कृषि और खाद्य उत्पादन में अच्छी प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है।
  • व्यापार करने वालों लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि खाद्य पदार्थ सुरक्षित है।
  • सभी उपभोक्ताओं को सुरक्षित, स्वस्थ और पौष्टिक भोजन प्राप्त करने का अधिकार है।
  • खाद्य सुरक्षा एक साझा ज़िम्मेदारी है।
  • ‘सुरक्षित, पौष्टिक और पर्याप्त भोजन’ अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के साथ ही भूख जैसी समस्या को समाप्त कर सकता है।

सरकारी पहलें

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) ने राज्यों द्वारा सुरक्षित खाद्य उपलब्ध कराए जाने के प्रयासों के संदर्भ में पहला राज्य खाद्य सुरक्षा इंडेक्स (State Food Safety Index-SFSI) विकसित किया है।
  • इस इंडेक्स के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के पाँच मानदंडों पर राज्यों का प्रदर्शन आँका जाएगा। इन श्रेणियों में निम्नलिखित मानदंड शामिल हैं-
    • मानव संसाधन और संस्थागत प्रबंधन
    • कार्यान्वयन, खाद्य जाँच-अवसंरचना और निगरानी
    • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण
    • उपभोक्ता सशक्तीकरण
  • एक अभिनव और बैट्री से चलने वाले ‘रमन 1.0’ नामक उपकरण का शुभारंभ भी किया है। यह उपकरण खाद्य तेलों, वसा और घी में की गई मिलावट का एक मिनट से भी कम समय में पता लगाने में सक्षम है।
  • स्कूलों तक खाद्य सुरक्षा का मुद्दा ले जाने के लिये ‘फूड सेफ्टी मैजिक बॉक्स’ नामक नवाचारी समाधान की भी शुरुआत की गई है।
  • स्वयं ही खाने में मिलावट की जाँच करने वाले इस किट में एक मैनुअल और एक उपकरण लगा है।
  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने विश्वविद्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों, कार्यस्थलों, रक्षा/अर्द्ध सैनिक प्रतिष्ठानों, अस्पतालों और जेलों जैसे 7 परिसरों को ‘ईट राइट कैंपस’ के रूप में घोषित किया है।
  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) ने खाद्य कंपनियों और व्यक्तियों के योगदान को पहचान प्रदान करने के लिये ‘ईट राइट अवार्ड’ की स्थापना की है, ताकि नागरिकों को सुरक्षित और स्वास्थ्यकर खाद्य विकल्प चुनने में सशक्त बनाया जा सके।

स्रोत- पीआईबी


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (National Testing Agency-NTA) ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा का परिणाम घोषित किया है। यह एजेंसी नीट (National Eligibility Cum Entrance Test-NEET), जेईई, कैट यूजीसी नेट, जी-पैट जैसी प्रतियोगी परीक्षाएँ संपन्न कराती है।

National Tasting Agency

स्थापना

  • राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की स्थापना भारतीय संस्था पंजीकरण अधिनियम- 1860 के तहत की गई थी।
  • यह एक स्वायत्त संस्था है जो देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश एवं छात्रवृत्ति हेतु प्रवेश परीक्षाएँ आयोजित कराती है।

उद्देश्य

  • इस एजेंसी का उद्देश्य प्रवेश और भर्ती हेतु उम्मीदवारों की योग्यता का आकलन करने के लिये कुशल, पारदर्शी और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर परीक्षण करना है।

कार्य

  • यह ऑनलाइन माध्यम में परीक्षा आयोजित करवाता है जिसके लिये इसे ऐसे विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों का चयन करना होता है जहाँ पर सभी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों और परीक्षा के आयोजन से उनके शैक्षणिक दिनचर्या पर कोई प्रभाव न पड़े।
  • अत्याधुनिक तकनीकी की सहायता से सभी विषयों का प्रश्न-पत्र बनाना।
  • एक मज़बूत अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति के साथ-साथ परीक्षण हेतु विषय विशेषज्ञों का एक पैनल तैयार करना।
  • भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में समय-समय पर प्रशिक्षण प्रदान करना और सलाहकार सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  • एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विसेज़ (Educational Testing Services) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करना।
  • विभिन्न मंत्रालयों एवं केंद्र सरकार के विभागों तथा राज्य सरकारों द्वारा किसी परीक्षा के आयोजन का दायित्व सौंपे जाने कि स्थिति में उसका संचालन करना।
  • स्कूलों, बोर्ड तथा अन्य निकायों में प्रशिक्षण के साथ-साथ सुधार सुनिश्चित करना एवं प्रवेश परीक्षाओं के परीक्षण संबंधी मानकों की समय-समय पर जाँच करना।

प्रशासन

  • NTA का अध्यक्ष एक प्रख्यात शिक्षाविद् होता है एवं इसकी नियुक्ति मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा की जाती है।
  • इसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer-CEO) एक महानिदेशक होता है जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
  • इसमें एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर होगा जिसमें परीक्षा आयोजित करवाने वाले संस्थानों के सदस्य भी शामिल होंगे।

महत्त्व

  • NTA जैसी विशिष्ट परीक्षण एजेंसी की स्थापना से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education-CBSE), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India For Technical Education-AICTE) जैसी संस्थाओं से परीक्षा आयोजित कराने का बोझ कम हुआ है।
  • NTA प्रत्येक वर्ष ऑनलाइन माध्यम से कम-से-कम दो बार परीक्षाओं का आयोजन करता है जिससे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिये प्रवेश के अवसर बढ़ जाते हैं।
  • NTA ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच बढ़ाने के लिये तथा अभ्यर्थियों की सुविधा हेतु ज़िला स्तर एवं उप-जिला स्तर पर अपने केंद्र स्थापित कर रहा है।
  • राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने एक मोबाइल एप प्रारंभ करने के साथ ही अभ्यास परीक्षण केंद्रों की स्थापना की है जिसकी सहायता से अभ्यर्थी अपने स्मार्टफोन पर भी मॉक टेस्ट (Mock Test) देकर अपना परीक्षा पूर्व मूल्यांकन कर सकते हैं।

स्रोत : आधिकारिक वेबसाइट


भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्माण-परिचालन-हस्तातंरण

चर्चा में क्यों?

ढाँचागत क्षेत्र (Infrastructure Sector) में बढ़ते व्यय को देखते हुए सरकार ने राजमार्ग परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु BOT मॉडल (Build-Operate-Transfer Model) को पुनः अपनाने का फैसला किया है। इस मॉडल के अंतर्गत बनने वाली परियोजनाओं में सरकार को अपने खजाने से पूंजी नहीं लगानी होती है। वर्ष 2015 में सरकार ने राजमार्ग परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु हाइब्रिड-एन्यूटी-मॉडल (Hybrid-Annuity Model- HAM) को अपनाया था परंतु बैंकों ने इस परियोजना में पूंजी लगाने में उदासीनता दिखाई जिसके कारण इसकी महत्ता में कमी आई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • BOT मॉडल के तहत निजी निवेश में वृद्धि होगी।
  • BOT ढाँचे के तहत बनने वाली परियोजनाओं में सरकार को अपने खजाने से पूंजी लगाने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अब तक अपनाए गए HAM मॉडल के तहत केंद्र सरकार राजमार्ग परियोजना लागत का 40 प्रतिशत स्वयं वहन करती थी, जबकि 60 प्रतिशत राशि की व्यवस्था डेवलपर द्वारा की जाती थी।
  • वर्ष 2015 में ढाँचागत क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से HAM मॉडल को लाया गया था। बैंकों द्वारा दिये जा रहे ऋण के कारण यह मॉडल सफल रहा परंतु ऋण अदा करने में कोताही बरतने के साथ ही इसका महत्त्व कम हो गया।
  • बैंकों द्वारा ऐसी परियोजनाओं को ऋण प्रदान करना आरक्षण के दायरे में आता था। परंतु मामला तब विपरीत हो गया जब बैंकों को इस बात का पता चला कि बगैर इक्विटी के ये निजी कंपनियाँ अपने संपूर्ण 60 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिये ऋण की मांग कर रही हैं। कंपनी के इस रवैये के विरुद्ध बैंकों ने ऋण जारी करने पर आपत्ति शुरू कर दी।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले साल त्वरित सुधार कार्रवाई के तहत 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बुनियादी ढाँचा परियोजना हेतु ऋण प्राप्त करने के लिये अधिकृत किया था।
  • बाद में गैर निष्पादित परिसंपत्ति की स्थिति को देखते हुए उनके ऋण देने के अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालाँकि उनमें से कुछ बैंकों को PCA सूची से बाहर कर दिया गया था।
  • BOT के तहत निजी निवेशक परिसंपत्ति को सरकार को वापस करने से पूर्व निश्चित अवधि हेतु  सड़क का निर्माण, संचालन और रखरखाव करते हैं।
  • राजमार्ग परियोजना में निजी कंपनियों ने काफी रुचि दिखाई है जिसके कारण सरकार BOT मॉडल के लिये लगने वाली बोलियों (Bid) के प्रति बेहद आशान्वित है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार सरकार ने विगत चार वर्षों में बुनियादी ढाँचे में निवेश के मामले में भारी फेर-बदल की है इसलिये अब बुनियादी ढाँचे के लिये निजी निवेश प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण होगा।

BOT मॉडल के पुनर्जीवन से निजी निवेश में वृद्धि होगी जिससे बाज़ार की अनिश्चितता और जोखिम में कमी आएगी।

BOT मॉडल

  • BOT निजी-सार्वजनिक भागीदारी (Public Private Partnership) मॉडल है जिसके अंतर्गत निजी साझेदार के पास अनुबंधित अवधि के दौरान ढांचागत परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण एवं परिचालन की पूरी ज़िम्मेदारी होती है।
  • BOT अनुबंध के तहत, आमतौर पर एक सरकारी इकाई, निजी कंपनी को ढाँचागत परियोजना के निर्माण का उत्तरदायित्व सौंपती है।
  • एक निजी कंपनी को इस परियोजना के वित्तपोषण, निर्माण और संचालन हेतु कुछ रियायत प्रदान की जाती है।
  • कंपनी को परियोजना में किये गए निवेश को  पुनः प्राप्त करने हेतु एक निश्चित अवधि जैसे-20 या 30 वर्ष का समय दिया जाता है।
  • परियोजना के पूर्ण होने के बाद पुनः इसे सरकार को सौंप दिया जाता है।

HAM मॉडल

  • HAM मॉडल BOT और EPC (Engineering, Procurement and Construction) का मिश्रित रूप है।
  • EPC मॉडल के तहत NHAI निजी कंपनी को सड़क बनाने का कार्य सौंपती है।
  • BOT के विपरीत सड़क का रखरखाव, टोल संग्रह या  स्वामित्व निजी कंपनी के पास न होकर सरकार के पास होता है।
  • BOT मॉडल में जहाँ संपूर्ण वित्त-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी निजी कंपनियों की होती है वहीं HAM मॉडल में सरकार से टोल राजस्व या वार्षिक शुल्क एकत्र किया जाता है।
  • HAM मॉडल के तहत केंद्र सरकार राजमार्ग परियोजना लागत का 40 प्रतिशत स्वयं वहन करती है, जबकि 60 प्रतिशत राशि की व्यवस्था डेवलपर द्वारा की जाती है।

PPP मॉडल के तहत संचालित होने वाले कुछ अन्य मॉडल:

  • Build-Own-Operate (BOO)
  • Build-Operate-Lease-Transfer (BOLT)
  • Design-Build-Operate-Transfer (DBFOT)
  • Lease-Develop-Operate (LDO)

निजी-सार्वजनिक सहयोग से चलने वाले ये मॉडल निवेश, स्वामित्त्व, जोखिम प्रबंधन के मामले में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं-

  • BOO (Build-Own-Operate): इस मॉडल के अंतर्गत निर्मित नई सुविधाओं का स्वामित्त्व निजी साझेदार के पास होता है। प्रस्तावित परियोजना के अंतर्गत निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की खरीद निर्धारित नियमों एवं शर्तों के आधार पर की जाती है।
  • BOLT (Build-Operate-Lease-Transfer): इस मॉडल में सरकार एक निजी साझेदार को सार्वजनिक हित की सुविधाओं के निर्माण हेतु कुछ रियायतें देती है, साथ ही इसके डिज़ाइन, स्वामित्त्व, सार्वजनिक क्षेत्र के  पट्टे का अधिकार भी देती है।
  • DBFOT (Design-Build-Operate-Transfer): इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिजाईन, उसके विनिर्माण, वित्त और परिचालन का उत्तरदायित्त्व निजी साझीदार पर होता है।  
  • LDO (Lease-Develop-Operate): इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व होता है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड


भूगोल

गोदावरी पेन्ना इंटरलिंकिंग परियोजना बाधित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने आंध्र प्रदेश सरकार की नदी जोड़ो परियोजना पर पर्यावरणीय मंज़ूरी के अभाव का हवाला देते हुए रोक लगा दी है।

प्रमुख बिंदु

  • यह प्राधिकरण आंध्र प्रदेश के पूर्व मंत्री वट्टी वसंत कुमार द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रहा था जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार ने केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission) और पर्यावरण एवं  वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests) की मंज़ूरी लिये बिना ही गोदावरी-कृष्णा-पेन्ना नदियों को जोड़ने की परियोजना प्रारंभ की है।
  • NGT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल ने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगाते हुए कहा कि बोर्ड कानूनी तौर पर अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह में असफल रहा है।
  • प्राधिकरण ने अपने आदेश में कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार की इस परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी नहीं प्राप्त है एवं वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 [Air (Prevention and Control of Pollution) Act 1981] और जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974 [Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974]  के तहत भी इस परियोजना को लागू करने की सहमति नहीं है, इसलिये इस परियोजना पर रोक लगाई गई है।  
  • चेन्नई स्थित पर्यावरण और वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests-MoEF) का क्षेत्रीय कार्यालय एवं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board) साथ मिलकर इस परियोजना का निरीक्षण करेंगे और एक महीने के अंदर इस मामले में एक तथ्यात्मक रिपोर्ट ई-मेल के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक नोडल एजेंसी की भूमिका में कार्य करेगा।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण  (National Green Tribunal)

  • पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे हेतु  राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं जैसे पर्यावरणीय विवादों के निपटान के लिये आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है।
  • यह अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।

जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974

  • जल प्रदूषण के नियंत्रण और रोकथाम तथा देश में पानी की उच्च गुणवत्ता  बनाए रखने हेतु इसे वर्ष 1974 में अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम वर्ष 1988 में संशोधित किया गया था। जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम कुछ औद्योगिक गतिविधियों के व्यक्तियों द्वारा पानी की खपत पर उपकर लगाने के लिये 1977 में अधिनियमित किया गया था।
  • यह उपकर जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत जल प्रदूषण के नियंत्रण और हस्तक्षेप के लिये गठित केंद्रीय बोर्ड के संसाधनों और राज्य सरकार के विकास की दृष्टि से इकट्ठा किया जाता है। इस  अधिनियम में अंतिम बार वर्ष 2003 में संशोधन किया गया था।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन सितंबर, 1974 में किया गया था।
  • इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 के अधीन भी शक्तियाँ और कार्य सौंपे गए।
  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक फील्ड संगठन का काम करता है तथा मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के बारे में तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
  • जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 में निर्धारित दायित्वों के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्य हैं-
  • (i) जल प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण तथा न्यूनीकरण द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों और कुओं की स्वच्छता को बढ़ावा देना।
  • (ii) देश की वायु गुणवत्ता में सुधार करना तथा वायु प्रदूषण का निवारण, नियंत्रण और न्यूनीकरण करना।

वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 [Air (Prevention and Control of Pollution) Act)]

  • वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन के उद्देश्य से वर्ष 1981 में संसद द्वारा वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम लागू किया गया।
  • अधिनियम में शीर्ष स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) की स्थापना और राज्य स्तर पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Boards-SPCB) को वायु गुणवत्ता में सुधार, नियंत्रण एवं वायु प्रदूषण के उन्मूलन से संबंधित किसी भी मामले पर सरकार को सलाह देने का प्रावधान किया गया है।
  • CPCB वायु की गुणवत्ता के लिये मानक भी तय करता है तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड्स


भारतीय राजनीति

नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (NPP)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में निर्वाचन आयोग (Election Commission) द्वारा मेघालय के मुख्यमंत्री ‘कॉनराड के संगमा’ (Conrad K Sangma) के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (National People’s Party- NPP) को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।

  • इसके साथ ही नेशनल पीपुल्स पार्टी पूर्वोत्तर क्षेत्र से पहली पार्टी बन गई, जिसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई है।
  • उल्लेखनीय है कि नेशनल पीपुल्स पार्टी ने हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव और अरुणाचल प्रदेश के राज्य विधानसभा चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी के लिये निर्धारित पात्रता मानदंड को पूरा किया है।

नेशनल पीपुल्स पार्टी (National People’s Party- NPP)

  • मेघालय के मुख्यमंत्री के पिता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष, दिवंगत पूर्णो अगितोक संगमा (Purno Agitok Sangma) द्वारा इस पार्टी का गठन 2013 में किया गया था।
  • हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में संपन्न विधानसभा चुनाव के दौरान इस पार्टी ने 5 सीटों पर विजय प्राप्त की जिसके फलस्वरूप इसे अरुणाचल प्रदेश में भी राज्य पार्टी का दर्जा प्रदान किया गया।
  • नेशनल पीपुल्स पार्टी का चुनाव चिह्न किताब’ है, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाने के बाद देश में किसी भी अन्य राजनीतिक दल या प्रत्याशी को नेशनल पीपुल्स पार्टी का ‘किताब’ वाला चुनाव चिह्न आवंटित नहीं किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय राजनीतिक दल को दिल्ली में पार्टी कार्यालय और राजनीतिक गतिविधियों के लिये जमीन आवंटन सरकार की तरफ से किया जाता है।

चुनाव आयोग की समीक्षा 2019

  • पार्टी ने 14.55% वैध मत प्राप्त किये हैं।
  • पार्टी ने विधानसभा की साठ सीटों में से पाँच सीटें हासिल की हैं।
  • अपने प्रदर्शन के फलस्वरूप ही इसने अरुणाचल प्रदेश में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त की।
  • पार्टी पहले से ही मणिपुर, मेघालय और नगालैंड राज्यों में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी थी।
  • अरुणाचल प्रदेश में राज्य पार्टी के रूप में अपनी पहचान के बाद अब यह चार राज्यों यानी मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी बन गई है।
  • इस प्रकार पार्टी ने कम-से-कम चार राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करते हुए राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिये निर्देशित पात्रता शर्त को पूरा कर लिया।
  • परिणामस्वरूप चुनाव आयोग ने 'नेशनल पीपुल्स पार्टी' को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्रदान की है।

भारत निर्वाचन आयोग

Election Commission

  • भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिये ज़िम्मेदार है।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, यह आयोग भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का चुनाव आयोजित करता है।
  • वर्तमान में सुनील अरोड़ा मुख्य चुनाव आयुक्त हैं।

निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ और कार्य

  • संसद, राज्य के विधानमंडल, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपतियों के निर्वाचन के संदर्भ में इसकी शक्तियाँ एवं कार्य निम्नलिखित हैं-
    • प्रशासनिक
    • सलाहकारी
    • अर्द्ध- न्यायिक
  • निर्वाचन की तिथि और समय सारिणी निर्धारित करने एवं नामांकन पत्रों के परीक्षण के अलावा इसका प्रमुख कार्य राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना तथा उन्हें निर्वाचन चिह्न आवंटित करना है।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और चुनाव चिह्न संबंधी विवाद के समाधान के मामले में इसे न्यायालय के समान ही शक्ति प्राप्त है।

स्रोत- टाइम्स ऑफ इंडिया


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (8 June)

  • देश में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा 7 जून को पहली बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया गया। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अनाज की बर्बादी को रोकना तथा अपने स्तर पर और अपने संस्थानों में खाद्य सुरक्षा में योगदान देना है। नए भारत के विज़न में स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और पोषण भी शामिल है। FSSAI ने राज्यों द्वारा सुरक्षित खाद्य उपलब्ध कराने के प्रयासों के संदर्भ में पहला राज्य खाद्य सुरक्षा इंडेक्स (SFSI) विकसित किया है। इस इंडेक्स के माध्यम से खाद्य सुरक्षा के पाँच मानदंडों पर राज्यों का प्रदर्शन आँका जाएगा, इनमें मानव संसाधन और संस्थागत प्रबंधन, कार्यान्वयन, खाद्य जाँच-अवसंरचना और निगरानी, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण तथा उपभोक्ता सशक्तीकरण शामिल हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाले FSSAI की स्थापना अगस्त 2011 में हुई थी और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय वयोश्री योजना का देशभर में विस्तार करने का फैसला किया है और अब यह देश के सभी जिलों में लागू की जाएगी। फिलहाल यह योजना देश के 325 ज़िलों में ही लागू है। इस योजना की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को चश्मा, बैसाखी, हियरिंग ऐड, छड़ी, कृत्रिम दांत आदि शिविरों के माध्यम से वितरित किये जाते हैं। वरिष्ठ नागरिकों को शारीरिक सहायता एवं जीवन यापन के लिये आवश्यक उपकरण प्रदान करने की इस योजना की घोषणा 2015-16 के बजट में की गई थी और 2017 में इसकी शुरुआत की गई थी।
  • 6 से 8 जून तक अर्जेटीना के ब्यूनस आयर्स में द्वितीय ग्लोबल डिसबिलिटी समिट का आयोजन किया गया। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य दुनियाभर में दिव्यांगजनों के अधिकारिता एवं समावेशन से संबंधित मुद्दों पर विचार करना तथा स्वतंत्र और सम्मानित जीवन जीने में उन्हें सक्षम बनाने के लिये एक तंत्र की रूपरेखा तैयार करना था। प्रथम ग्लोबल डिसबिलिटी समिट का आयोजन पिछले वर्ष जुलाई में लंदन में किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र में नाइजीरिया के प्रतिनिधि तिजानी मोहम्मद बंदे को सितंबर से शुरू हो रही महासभा के 74वें सत्र के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया है। महासभा के इस सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये वार्ता प्रक्रिया शुरू होने वाली है। सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य होते हैं, जिनमें पाँच स्थायी और 10 अल्पकालिक सदस्य हैं। भारत के साथ ब्राजील, जर्मनी और जापान लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग करते रहे हैं। इन देशों का कहना है कि वे संयुक्त राष्ट्र की इस महत्त्वपूर्ण संस्था में स्थायी सदस्य के तौर पर आने के हकदार हैं। तिजानी मोहम्मद बंदे, मारिया फर्नांडा एसपिनोसा की जगह लेंगे। तिजानी मोहम्मद बंदे ने कहा कि उनके कार्यकाल में शांति और सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, भुखमरी खत्म करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पर्यावरण आदि पर फोकस रहेगा। 
  • देश की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को मेक्सिको द्वारा विदेशी नागरिकों को दिये जाने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ द एज़टेक ईगल ( Order of the Aztec Eagle) से नवाज़ा गया है। भारत में मेक्सिको की राजदूत मेल्बा प्रिआ ने पूर्व राष्ट्रपति को यह पुरस्कार प्रदान किया। प्रतिभा पाटिल यह पुरस्कार पाने वाली भारत की दूसरी राष्ट्र प्रमुख हैं। उनसे पहले दिवंगत राष्ट्रपति एस. राधाकृष्ण को यह सम्मान मिला था। यह पुरस्कार मानवता के लिये अच्छे कार्य, मेक्सिको और अन्य देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के लिये किये गए अहम योगदान के लिये दिया जाता है।
  • देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग-CAG) राजीव महर्षि को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में बाहरी लेखा-परीक्षक के तौर पर चुना गया है। उनका कार्यकाल 2020 से 2023 तक रहेगा। राजीव महर्षि को पिछले महीने जिनेवा में हुई 72वीं विश्व स्वास्थ्य महासभा में बहुमत से चुना गया था। भारत के अलावा इस पद के लिये कांगो, फ्राँस, घाना, ट्यूनिशिया, ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड भी दावेदार थे। राजीव महर्षि मौजूदा बाहरी लेखा-परीक्षक फिलीपींस के सुप्रीम ऑडिट इंस्टीट्यूशन का स्थान लेंगे। यह कैग के लिये इस साल का दूसरा बड़ा अंतर्राष्ट्रीय लेखा परीक्षण का काम है। इससे पहले मार्च 2019 में राजीव महर्षि को रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन का बाहरी लेखा परीक्षक चुना गया था।

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