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भारत का ‘मिशन शक्ति’ और वैश्विक अंतरिक्ष नियमन प्रणाली

  • 02 Apr 2019
  • 13 min read

संदर्भ

27 मार्च को जब भारत ने आकाश में 300 किमी. की ऊँचाई पर विचरण कर रहे अपने निष्प्रयोज्य उपग्रह को एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से तीन मिनट में नष्ट कर दिया, तो निस्संदेह यह एक बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन इसके बाद वैश्विक महाशक्तियों ने जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी, उससे यह स्पष्ट हुआ कि एक वैश्विक अंतरिक्ष नियमन प्रणाली बनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

अमेरिका की प्रतिक्रिया
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अमेरिका ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, उसे मालूम था कि भारत ऐसा करने जा रहा है, लेकिन उसने भारत की कोई निगरानी नहीं की। अंतरिक्ष मलबे के मामले पर चिंता जताते हुए अमेरिका ने कहा कि भारत के साथ मजबूत सामरिक साझीदारी के तौर पर हम अंतरिक्ष एवं विज्ञान में साझे हितों के लिये काम करते रहेंगे और अंतरिक्ष में सुरक्षा को लेकर गठजोड़ सहित तकनीकी सहयोग जारी रहेगा। लेकिन साथ ही अमेरिका भारत के इस दावे का अध्ययन कर रहा है कि उसके परीक्षण ने अंतरिक्ष में मलबा नहीं छोड़ा है।

भारत के इस परीक्षण के बाद एक वरिष्ठ अमेरिकी सैन्याधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल डेविड डी. थॉम्पसन ने अमेरिकी सीनेट की आर्म्ड सर्विस कमेटी को बताया कि उसे पता था कि ऐसा हो सकता है और कोलाराडो स्थित एक बेस में इसे ट्रैक किया गया। अब अमेरिका की विभिन्न प्रणालियाँ भारत के इस परीक्षण के बाद उत्पन्न हुए अंतरिक्षीय मलबे के लगभग 250-270 टुकड़ों पर नज़र रखे हुए हैं। यदि किसी प्रकार का कोई खतरा दिखाई दिया तो तुरंत उसकी जानकारी सैटेलाइट ऑपरेटर्स को दी जाएगी। साथ ही यह भी कहा गया कि इस मलबे से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (ISS) को कोई खतरा नहीं है, जो 350 किमी. की ऊँचाई पर काम कर रहा है।

नासा ने अंतरिक्ष यात्रियों के लिये खतरा बताया

लेकिन इसके कुछ ही समय बाद 2 अप्रैल को जारी एक वक्तव्य में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा कि इस प्रकार की गतिविधियाँ ISS के लिये ठीक नहीं हैं। नासा ने इसे ‘भयानक और अस्वीकार्य’ बताते हुए कहा कि भारत द्वारा अपना निष्प्रयोज्य माइक्रोसैटेलाइट नष्ट कर देने के बाद 400 से अधिक टुकड़े अंतरिक्ष में फैल गए हैं, जिनमें से 24 टुकड़े ISS के एपोजी मोटर के ऊपर चले गए हैं। भारत के इस परीक्षण से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिये खतरा 44% बढ़ गया है।

केवल चार देशों के पास है यह क्षमता

अब अमेरिका, रूस और चीन के साथ भारत चौथा ऐसा देश बन गया है जिसके पास यह क्षमता है। माना जाता है कि फ्राँस और इज़राइल के पास भी ऐसी क्षमता है। भारत ने कहा कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संधि का उल्लंघन किये बिना उसने अंतरिक्ष में अपने साज़ो-सामान की सुरक्षा करने की क्षमता जाँचने के लिये यह परीक्षण किया और यह किसी देश को निशाना बनाकर नहीं किया गया।

सामान्यतया A-SAT क्षमता को बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) प्रोग्राम का एक हिस्सा माना जाता है। लेकिन BMD आने वाली शत्रु मिसाइल को निशाना बनता है, जबकि A-SAT इंटरसेप्टर का काम शत्रु उपग्रह या निष्प्रयोज्य उपग्रह को नष्ट करना है। निचली कक्षा में चूँकि उपग्रह एक सटीक कक्षा में संचरण करता है, इसलिये इसे ट्रैक करना आसान होता है और लक्ष्य साधने के लिये समय भी अधिक मिलता है। हालाँकि उच्च कक्षाओं में उपग्रहों को नष्ट करने वाली मिसाइल के लिये चुनौतियाँ अधिक होती हैं।

अंतरिक्ष में कम नहीं है ट्रैफिक

  • 4 अक्तूबर, 1957 को पृथ्वी से पहली मानव-निर्मित वस्तु- रूसी उपग्रह स्पुतनिक अंतरिक्ष में छोड़ा गया। 84 किलोग्राम वज़नी स्पुतनिक को पृथ्वी की निचली कक्षा मे स्थापित किया गया था।
  • तब से लेकर आज तक लगभग 8000 से अधिक उपग्रहों/परिक्रमा करने वाली मानव निर्मित वस्तुओं को लॉन्च किया गया है, जिनमें से लगभग 5000 कक्षा में मौज़ूद हैं, लेकिन इनमें आधे से अधिक निष्प्रयोज्य (Non-Functional) हैं।
  • वर्तमान में 50 से अधिक देशों के लगभग 2000 सक्रिय उपग्रह विभिन्न कक्षाओं में काम कर रहे हैं। अकेले अमेरिका के ही 800 उपग्रह अंतरिक्ष में विचरण कर रहे हैं। इसके बाद चीन के 280, रूस के 150 उपग्रह अंतरिक्ष में हैं, भारत के लगभग 50 सक्रिय उपग्रह हैं।
  • इन 2000 सक्रिय उपग्रहों में से 300 से अधिक उपग्रह केवल सैन्य कार्यों के लिये तैनात किये गए हैं। यहाँ भी अमेरिका के सबसे अधिक लगभग 140 सैन्य उपग्रह हैं और उसके बाद रूस (90) और चीन (40) का स्थान है।
  • भारत के ऐसे केवल 2 उपग्रह हैं- एक भारतीय नौसेना के लिये और दूसरा भारतीय वायुसेना के लिये है। वैसे भारतीय रक्षा बल संचार, रिमोट सेंसिंग, स्थान सटीकता और मौसम विज्ञान के लिये सरकारी उपग्रहों का बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं।
  • अंतरिक्ष में मलबे की बढ़ती मात्रा से उपग्रहों और अंतरिक्ष यानों के लिये जोखिम बढ़ जाता है। इस समय अंतरिक्ष के मलबे में गोल्फ की गेंदों के आकार की 20 हज़ार से अधिक वस्तुएँ हैं, जबकि छोटे आकार का मलबा सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में है और इनका कुल वज़न लगभग 6 हज़ार टन है।
  • अमेरिकी रक्षा विभाग अंतरिक्ष में मौज़ूद अपनी संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नियमित रूप से 23 हज़ार मानव निर्मित वस्तुओं को ट्रैक करता है।
  • यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने 2007 में किये गए एक ऐसे ही चीनी परीक्षण का विरोध किया था, क्योंकि इसमें लगभग 3000 टुकड़े मलबे के रूप में अंतरिक्ष में फैल गए थे...और यह परीक्षण अधिक ऊँचाई (800 किमी.) पर किया गया था, जहाँ से इसका मलबा हटने में कई दशक लग जाएंगे।
  • इसकी तुलना में भारतीय परीक्षण से जो मलबा बना है, वह अपेक्षाकृत जल्दी साफ हो जाएगा क्योंकि यह कम ऊँचाई (300 किमी.) पर किया गया परीक्षण था।

नया नहीं है अंतरिक्ष मलबे का मुद्दा

अंतरिक्ष में मलबे की समस्या विज्ञान की प्रगति से जुड़ी हुई है। सभी देश तरक्की कर रहे हैं और अपनी ज़रूरतों के अनुसार अंतरिक्ष में उपग्रह तैनात कर रहे हैं। ऐसे में वहाँ भीड़ बढ़ना स्वाभाविक है और इससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ेगा।

अंतरिक्ष में मलबा चिंता का एक पुराना विषय है। अमेरिकी वैज्ञानिक 2011 में चेतावनी दे चुके हैं कि अंतरिक्ष में मलबा खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। अमेरिका की नेशनल रिसर्च काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, बेकार हुए बूस्टर और पुराने उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में पृथ्वी के आसपास चक्कर लगा रहे हैं। इनसे अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह नष्ट हो सकते है। इसलिये कोई भीषण दुर्घटना होने से पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को इन्हें हटाने का काम करना चाहिये। नेशनल रिसर्च काउंसिल ने तभी अंतरिक्ष में जमा हुए मलबे को सीमित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय नियम बनाने की बात कही थी।

इस संकट का समाधान करने के लिये अमेरिका ने अंतरिक्ष में कचरे को नियंत्रित करने के लिये चुंबकीय जाली (Magnetic Net) या विशालकाय छतरी के उपयोग की संभावना पर शोध की ज़रूरत पहले ही बताई थी। पृथ्वी की कक्षा में मलबे के ये टुकड़े लगभग 18 हज़ार मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलते हैं।

हालाँकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इन बातों का ख्याल रखते हुए उसने ‘मिशन शक्ति’ का परीक्षण कम ऊँचाई पर किया है, ताकि मलबा अंतरिक्ष में न रहे और तत्काल पृथ्वी पर गिर जाए। हालाँकि, कुछ विशेषज्ञों ने भारत के इस दावे पर संदेह जताया है। उनका कहना है कि अंतरिक्ष में मलबे को नियंत्रित नहीं किया जा सकता और वह किस ओर जाएगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

कोई सर्वमान्य अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण प्रणाली नहीं

  • रक्षा प्रणालियों में अंतरिक्ष के महत्त्व का पता इस बात से चल जाता है कि अमेरिका, रूस और चीन ने अपनी-अपनी ‘स्पेस कमांड्स’ बना रखी हैं।
  • इसने अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को रोकने की चर्चाओं को जन्म दिया है ताकि इसे ‘मानव जाति की सामान्य विरासत के रूप में’ संरक्षित किया जा सके।
  • इस दिशा में पहले 1967 में बाहरी अंतरिक्ष संधि हुई और उसके बाद 1979 में मून ट्रीटी अस्तित्व में आई।
  • इन दोनों संधियों ने अंतरिक्ष में वैधानिक नियमन की शुरुआत की और वहाँ विनाशकारी हथियारों को प्रतिबंधित किया तथा चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों पर सैन्य गतिविधियों पर रोक लगाई। लेकिन ये संधियाँ तब अस्तित्व में आई थीं, जब तकनीक अपनी शैशवावस्था में थी।
  • उपग्रहों का पंजीकरण 1970 के दशक में शुरू हुआ, लेकिन इस पर पूरी तरह अमल हो नहीं पाया। अमेरिका ने हर उस संधि का खुल्लमखुला उल्लंघन किया, जो अंतरिक्ष के सैन्यीकरण को प्रतिबंधित करती थी।

नियमन के अन्य प्रयास

2008 में रूस और चीन ने Treaty on the Prevention of the Placement of Weapons in Outer Space तथा Threat or Use of Force Against Outer Space Objects के लिये संधि पर बातचीत का एक मसौदा प्रस्ताव रखा था, लेकिन पश्चिमी देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी देशों से इस राजनीतिक प्रतिबद्धता की घोषणा करने के लिये कहा था कि वे अंतरिक्ष में हथियार रखने की पहल नहीं करेंगे। लेकिन राजनीतिक सर्वसम्मति के अभाव में यह पहल भी धरी-की-धरी रह गई।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि अंतरिक्ष में प्रक्षेपास्त्र छोड़ कर अपने उपग्रह को मार गिराना और यह क्षमता हासिल करना भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन भारत की इस उपलब्धि के बाद अंतरिक्ष में मलबे का एक नया विवाद शुरू हो गया। लेकिन तमाम दावों-प्रतिदावों के बावजूद A-SAT के सफल परीक्षण के बाद भारत अब दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिनके पास यह क्षमता है।

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