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डेली न्यूज़

  • 08 Feb, 2021
  • 53 min read
आंतरिक सुरक्षा

तीन नए युद्धक विमान

चर्चा में क्यों?

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2026 तक सेना के पास तीन नए युद्धक विमान (Fighter Jets) होंगे जिनमें से दो को वायु सेना में तथा एक को नौसेना में शामिल किया जाएगा।

  • इसमें वायु सेना में  नए  LCA (Mk-2 संस्करण) तथा  AMCA (उन्नत मध्यम युद्धक विमान) और  नौसेना में TEDBF (ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर)  युद्धक विमान को शामिल किया जाना है।
  • इससे पहले सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति  (Cabinet Committee on Security-CCS) ने भारतीय वायु सेना के लिये  83 तेजस हल्के युद्धक विमानों (Mk-1A and Mk-1 संस्करणों) के अधिग्रहण हेतु  48,000 करोड़ रुपए  के समझौते को सहमति प्रदान की थी। 

प्रमुख बिंदु:

हल्के लड़ाकू विमान (LCA) Mk-2: 

Tejas

  • (LCA) Mk-2 के बारे में:
    • इसमें एक बड़ा इंजन लगाया गया है जो 6.5 टन पेलोड ले जाने में सक्षम है।
    • 1980 के दशक में 'हल्के युद्धक विमान' (LCA) कार्यक्रम  को भारत में पुराने हो चुके मिग-21 लड़ाकू विमानों को बदलने के लिये शुरू किया गया था।
    • यह 4.5 पीढ़ी का विमान है जिसका उपयोग भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाएगा।
    • यह युद्धक विमान की श्रेणी में शामिल मिराज 2000 ( Mirage 2000) को   प्रतिस्थापित करेगा।
    • इस हल्के युद्धक विमान (Light Combat Aircraft- LCA) में  पहले से ही विकसित तकनीक का प्रयोग किया गया है।
  • उत्पादन:
    • इस  योजना को वर्ष 2022 तक लागू किया जाना है, जिसमें वर्ष 2023 में Mk-2 की पहली उड़ान और वर्ष 2026 तक  Mk-2 संस्करण का  उत्पादन करना शामिल है।

उन्नत मध्यम युद्धक विमान (AMCA):

AMCA

  • AMCA के बारे में:
    • यह पाँचवीं पीढ़ी का विमान है जिसे  भारतीय वायु सेना में  शामिल किया जाएगा।
    • यह एक स्टील्थ विमान है, जो  हल्के  युद्धक विमान के विपरीत स्टील्थ तकनीकी पर आधारित एक अधिक तीव्र गति से कार्य करने वाला विमान है।
      • लो रडार क्रॉस-सेक्शन (Low Radar Cross-Section) प्राप्त करने के लिये इसका आकार अद्वितीय है, इस युद्धक विमान को आंतरिक हथियारों से सुसज्जित किया जा सकता है। 
      • बाहरी हथियारों को हटाने के बाद भी  इसमें लगे आंतरिक हथियारों में महत्त्वपूर्ण अभियानों को पूर्ण करने की क्षमता विद्यमान है।
  • रेंज:
    • विभिन्न माध्यमों में इसकी कुल रेंज 1,000 किमी. से लेकर 3,000 किमी. तक  होगी।
  • प्रकार और इंजन:
    • इसके दो प्रकार  (Mk-1 और Mk-2)  हैं।  AMCA Mk-1 में LCA Mk-2 के समान एक आयातित इंजन लगा होगा, वहीँ AMCA Mk-2 में एक स्वदेशी इंजन होगा।
  • उत्पादन:
    • इसकी पहली उड़ान वर्ष 2024-25 में संभावित है, बाद में इसके और परीक्षण किये जाएंगे तथा संपूर्ण उत्पादन कार्य वर्ष 2029 तक पूर्ण होगा।

ट्विन-इंजन डेक-आधारित  युद्धक विमान  (TEDBF):

TEDBF

  • TEDBF के बारे में:
    • इस युद्धक विमान का निर्माण नौसेना के लिये किया जाएगा।
    • यह नौसेना के मिग-29 K का स्थान लेगा।
    • यह भारत में पहला ट्विन इंजन एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट (Twin Engine Aircraft Project) होगा जो वाहक आधारित अभियानों (Carrier Based Operations) के लिये भी समर्पित होगा।
    • इसे  आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) और आगामी स्वदेशी विमान वाहक पोतों से संचालित करना संभव होगा।
  • हथियार/अस्त्र:
    • विमान मुख्य रूप से घरेलू हथियारों से लैस होगा।
  • आकार और क्षमता:
    • इसकी अधिकतम गति 1.6 मैक , 60,000 फीट तक की उड़ान क्षमता, 26 टन की अधिकतम भार वहन क्षमता, 11.2 मीटर की अनफोल्डेड विंग स्पैन, 7.2 फोल्डेड विंग स्पैन और 16.3 मीटर की लंबाई होगी।
  • इंजन:
    • हालांँकि इंजन की संरचना और व्यास का खुलासा नहीं किया गया है, इसमें उसी इंजन का उपयोग किया जाना है जिसका प्रयोग LCA तेजस विमान में किया गया है।
  • अधिष्ठापन:
    • इसे वर्ष 2030 तक नौसेना में शामिल किया जाएगा।

INS विक्रमादित्य:

  • INS विक्रमादित्य देश का सबसे शक्तिशाली विमान वाहक पोत है।
  • इसका निर्माण वर्ष 1987 में किया गया था।
  • भारतीय नौसेना द्वारा इस तोप को वर्ष 2004 में खरीदा गया  जिसे नवंबर 2013 में रूस के सेवरोडविन्स्क में कमीशन किया गया था ।
  • इस पर रूस एवं इज़राइल द्वारा सयुक्त रूप से विकसित इज़राइल की बराक मिसाइल प्रणाली को तैनात किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

स्क्वायर किलोमीटर एरे टेलीस्कोप

चर्चा में क्यों?

स्क्वायर किलोमीटर एरे ऑब्ज़र्वेटरी (Square Kilometre Array Observatory- SKAO) परिषद ने अपनी हालिया बैठक के दौरान विश्व के सबसे बड़े रेडियो टेलीस्कोप/दूरबीन (Radio Telescope) की स्थापना के लिये मंज़ूरी दी। 

  • पिछले वर्ष दिसंबर में प्यूर्टो रिको में स्थित विश्व की सर्वाधिक प्रचलित रेडियो दूरबीन अरेसिबो ( Arecibo) के नष्ट होने या गिरने के बाद इस नए उद्यम/कार्य को महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
  • SKAO एक नया अंतर-सरकारी संगठन है जो रेडियो खगोल विज्ञान (Radio Astronomy) को समर्पित है, इसका मुख्यालय ब्रिटेन में है।
    • वर्तमान में SKAO में दस देशों के संगठन शामिल हैं।
    • इनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, भारत, इटली, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, नीदरलैंड और यू.के. शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु:

रेडियो टेलीस्कोप:

  • रेडियो टेलीस्कोप एक खगोलीय उपकरण है जिसमें एक रेडियो रिसीवर और एंटीना प्रणाली शामिल होती है जिसका उपयोग लगभग 10 मीटर (30 मेगाहर्ट्ज़) के तरंगदैर्ध्य और 1 मिमी. (300 गीगाहर्ट्ज़ के मध्य रेडियो-आवृत्ति विकिरण का पता लगाने हेतु किया जाता है। जैसे-तारे (Stars), आकाशगंगा (Galaxies) और क्वासर (Quasars)।
  • ऑप्टिकल टेलीस्कोप (Optical Telescopes) के विपरीत रेडियो टेलीस्कोप अदृश्य गैस का पता लगाने में भी सक्षम है, इसलिये यह अंतरिक्ष के उन क्षेत्रों को भी दिखा सकता है जो ब्रह्मांडीय धूल (Cosmic Dust) के कारण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं।
    • ब्रह्मांडीय धूल तारों के बीच की जगह में चारों ओर तैरने वाले ठोस पदार्थ के छोटे कण होते हैं।
  • चूंँकि 1930 के दशक में पहले रेडियो संकेतों का पता चला था, इसलिये खगोलविदों द्वारा ब्रह्मांड में विभिन्न वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगों का पता लगाने के लिये रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग किया गया है।
  • राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रेडियो खगोल विज्ञान के क्षेत्र का विकास हुआ जो खगोलीय अवलोकन हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण  उपकरणों में से एक बन गया।

अरेसिबो टेलीस्कोप:

  • प्यूर्टो रिको में स्थित अरेसिबो  टेलीस्कोप, विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सिंगल-डिश रेडियो टेलीस्कोप (Single-Dish Radio Telescope) था जो दिसंबर 2020 में गिर गया।
    • चीन की स्काई आई (Sky Eye) में  विश्व की सबसे बड़ी सिंगल डिश रेडियो टेलीस्कोप स्थित है।
  • इसका निर्माण वर्ष 1963 में हुआ था।
  • अपने शक्तिशाली रडार प्रणाली की वजह से इस टेलीस्कोप को वैज्ञानिकों ने ग्रहों, क्षुद्रग्रहों और आयनमंडल के निरीक्षण के लिये स्थापित किया जिसने कई दशकों तक महत्त्वपूर्ण खोज़ की है, इसमें दूर स्थित आकाशगंगाओं में प्रीबायोटिक अणु, पहला एक्सोप्लैनेट और पहला-मिलीसेकंड पल्सर से संबंधित खोज शामिल है।

स्क्वायर किलोमीटर एरे (SKA) टेलीस्कोप:

  • स्थिति:
    • यह विश्व के सबसे बड़े रेडियो टेलीस्कोप का प्रस्ताव है, जो अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में स्थित होगा।
  • विकास:
    • SKA का विकास ‘ऑस्ट्रेलियाई स्क्वायर किलोमीटर एरे पाथफाइंडर’ (Australian Square Kilometre Array Pathfinder- ASKAP) नामक शक्तिशाली दूरबीन द्वारा किये गए विभिन्न सर्वेक्षणों से प्राप्त परिणामों का उपयोग कर किया जाना है। 
    • ASKAP, ऑस्ट्रेलिया की विज्ञान एजेंसी ‘राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन’ (Commonwealth Scientific and Industrial Research Organisation- CSIRO) द्वारा विकसित और संचालित है।
      • ASKAP टेलीस्कोप, फरवरी 2019 से पूरी तरह से चालू हो गया है।
      • जिसने पिछले साल के अंत में किये गए अपने पहले आकाशीय सर्वेक्षण के दौरान 300 घंटे में रिकॉर्ड तीन मिलियन से अधिक आकाशगंगाओं का मानचित्रण का कार्य किया था।
      • ASKAP सर्वेक्षण को ब्रह्मांडीय संरचना और उसके विकास के मानचित्रण के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो कि आकाशगंगाओं और उनमें विद्यमान हाइड्रोजन गैस का निरीक्षण करता है ।
  • रखरखाव:
    • इसके संचालन, रखरखाव और निर्माण कार्य की देख-रेख SKAO द्वारा की जाएगी।
  • लागत और पूर्णता:
    • इसको पूरा करने में लगभग 1.8 बिलियन पाउंड की लागत तथा एक दशक का समय लगने की संभावना है।
  • महत्त्व:
    • कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका समाधान वैज्ञानिकों द्वारा इस दूरबीन के उपयोग से किये जाने की उम्मीद है।
      • ब्रह्मांड की शुरुआत।
      • पहले तारे का जन्म कैसे और कब हुआ।
      • आकाशगंगा का जीवन-चक्र।
      • हमारी आकाशगंगा में तकनीकी रूप से सक्रिय अन्य सभ्यताओं का पता लगाने की संभावना तलाशना।
      • यह समझना कि गुरुत्वाकर्षण तरंगें (Gravitational Waves) कहाँ से आती हैं।
  • कार्य:
    • नासा के अनुसार, यह टेलीस्कोप ब्रह्मांडीय समय के अनुसार हाइड्रोजन की  तटस्थता को  माप कर आकाशगंगा  में पल्सर से प्राप्त संकेतों की समय पर माप और लाखों आकाशगंगाओं का पता लगाकर उच्च रेडशिफ्ट्स द्वारा अपने वैज्ञानिक लक्ष्यों को पूरा करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

खुदरा निवेशकों की सरकारी प्रतिभूति मार्केट में प्रत्यक्ष पहुँच: आरबीआई

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने खुदरा निवेशकों को बिचौलियों की मदद के बिना सीधे सरकारी प्रतिभूतियों (Government Securit) में निवेश करने के लिये अपने यहाँ खाते खोलने की अनुमति देने का फैसला किया है।

  • खुदरा निवेशक गैर-पेशेवर निवेशक होते हैं जो प्रतिभूतियों या फंडों को खरीदते और बेचते है, इसमें म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Exchange Traded Fund) जैसी प्रतिभूतियों की एक बास्केट होती है।

सरकारी प्रतिभूति

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ वे सर्वोच्च प्रतिभूतियाँ हैं जो भारत सरकार की ओर से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा केंद्र/राज्य सरकार के बाज़ार उधार प्रोग्राम के एक भाग के रूप में नीलाम की जाती हैं। 
  • सरकारी प्रतिभूतियों की एक निश्चित या अस्थायी कूपन दर हो सकती है। इन प्रतिभूतियों की गणना बैंकों द्वारा SLR बनाए रखने के लिये की जाती है।
  • यह सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है। 

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • सरकारी प्रतिभूतियों में संस्थागत निवेशकों जैसे- बैंक, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियों का वर्चस्व है। ये इकाइयाँ 5 करोड़ रुपए या इससे अधिक का व्यापार करती हैं।
  • इसलिये छोटे निवेशकों, जो छोटे आकार में व्यापार करना चाहते हैं, के लिये द्वितीयक बाज़ार में कोई जगह नहीं है ।

प्रस्ताव के विषय में:

  • रिज़र्व बैंक द्वारा खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक और द्वितीयक दोनों ही बाज़ारों में ऑनलाइन माध्यम से सीधे पहुँच प्रदान की  जाएगी।
    • प्राथमिक बाज़ार व्यवस्था पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों से संबंधित है। 
    • द्वितीयक बाज़ार में मौजूदा प्रतिभूतियों को खरीदा और बेचा जाता है। इसे स्टॉक बाज़ार या स्टॉक एक्सचेंज के रूप में भी जाना जाता है।
  • खुदरा निवेशकों को आरबीआई के साथ सीधे गिल्ट इन्वेस्टमेंट अकाउंट (Gilt Investment Account) खोलने की अनुमति होगी। इस खाते को RBI रिटेल डायरेक्ट (RBI Retail Direct) कहा जाएगा।
    • गिल्ट अकाउंट की तुलना बैंक खाते से की जा सकती है, लेकिन इस खाते में पैसे के बजाय ट्रेज़री बिल या सरकारी प्रतिभूतियों का लेन-देन किया जाता है।
  • खुदरा निवेशकों की बोली प्रक्रिया में प्रत्यक्ष भागीदारी को भारतीय रिज़र्व बैंक के मुख्य बैंकिंग समाधान माध्यम ई-कुबेर (E-kuber) द्वारा सक्षम किया जाएगा।

महत्त्व:

  • निवेशकों का विस्तार:
    • सरकारी प्रतिभूतियों में प्रत्यक्ष खुदरा निवेश की अनुमति निवेशकों के आधार को बढ़ाएगी और इससे खुदरा निवेशकों की सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • एशिया में अग्रणी:
    • यह संरचनात्मक सुधार भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देशों की श्रेणी में ला देगा, जिनके पास ऐसी सुविधाएँ पहले से मौजूद हैं।
    • भारत संभवतः एशिया में सरकारी प्रतिभूति में प्रत्यक्ष खुदरा निवेश की अनुमति देने वाला पहला देश होगा।
  • सरकारी उधार की सुविधा:
    • परिपक्व प्रतिभूतियों (परिपक्वता तक खरीदी जाने वाली प्रतिभूतियाँ) में अनिवार्य छूट वर्ष 2021-22 में सरकार के उधार कार्यक्रम (Government Borrowing Programme) को पूरा करने में सहायक होंगी।
  • घरेलू वित्तीय बचत:
    • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति से घरेलू बचत को बढ़ावा मिलेगा जो भारत के निवेश बाज़ार में एक गेम-चेंजर की भूमिका निभा सकता है।

सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेश बढ़ाने को किये गए अन्य उपाय:

  • प्राथमिक नीलामी में गैर-प्रतिस्पर्द्धी (Non-Competitive) नीलामी
    • एक व्यक्ति दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों (Dated Government Security) की गैर-प्रतिस्पर्द्धी नीलामी में मूल्य उद्धृत किये बिना भाग ले सकता है।
  • शेयर बाज़ार खुदरा बोलियों के लिये सेवा समूह (Aggregator) और सहायक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • द्वितीयक बाज़ार में एक विशिष्ट खुदरा क्षेत्र की अनुमति।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

परिवार पहचान-पत्र और निजता संबंधी चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा राज्य द्वारा शुरू की गई परिवार पहचान-पत्र (Parivar Pehchan Patra- PPP) योजना को लेकर निजता से संबंधित कुछ मुद्दे सामने आए हैं।

  • यद्यपि योजना के तहत नामांकन कराना स्वैच्छिक है, लेकिन विभिन्न आवश्यक सेवाओं का लाभ पाने के लिये इस योजना से जुड़े होने की पूर्व शर्त के चलते योजना को लेकर इस प्रकार के मुद्दे सामने आए हैं।

प्रमुख बिंदु

वर्तमान मुद्दा:

  • विवादास्पद स्थिति: भले ही इस योजना के तहत नामांकन कराना स्वैच्छिक है लेकिन यदि कोई नागरिक अथवा परिवार हरियाणा राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही किसी सेवा का लाभ उठाना चाहता है तो उसके लिये परिवार पहचान-पत्र की आवश्यकता होगी। इस प्रकार की शर्त योजना में नामांकन कराने अथवा न कराने के संदर्भ में राज्य के निवासियों को न के बराबर विकल्प प्रदान करती है।
  • डेटा का दुरुपयोग: भारत में गोपनीयता कानूनों की अनुपस्थिति या PPP को तैयार करने हेतु जिन मानक संचालन प्रक्रियाओं का अभ्यास किया जा रहा है उनमें डेटा सुरक्षा से संबंधित निर्देशों की अनुपस्थिति के चलते इस समग्र प्रक्रिया में एकत्रित डेटा के दुरुपयोग की संभावनाएँ प्रबल हो जाती हैं।
    • इसके अलावा इस योजना के लिये जितनी अधिक मात्रा में जानकारी/डेटा की मांग की जा रही है, वह एक विशेष सेवा की उपलब्धता हेतु आवश्यक डेटा से अधिक है।

परिवार पहचान-पत्र (Parivar Pehchan Patra- PPP) योजना:

  • पृष्ठभूमि: राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित योजनाओं, सेवाओं और लाभों की ’पेपरलेस’ और ‘फेसलेस’ उपलब्धता के दृष्टिकोण के साथ हरियाणा सरकार ने जुलाई 2019 में PPP योजना की औपचारिक शुरुआत की थी। 
    • इसके तहत प्रत्येक परिवार को एक इकाई/यूनिट माना जाता है तथा उन्हें 8 अंकों की एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की जाती है जिसे पारिवारिक ID कहा जाता है। 
    • पारिवारिक ID छात्रवृत्ति, सब्सिडी और पेंशन जैसी स्वतंत्र योजनाओं से भी जुड़ी होती है, ताकि स्थिरता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।
    • यह विभिन्न योजनाओं, सब्सिडी और पेंशन के लाभार्थियों के स्वचालित चयन को भी सक्षम बनाता है।
  • उद्देश्य: परिवार पहचान-पत्र (PPP) का प्रमुख उद्देश्य हरियाणा में सभी परिवारों का प्रामाणिक, सत्यापित और विश्वसनीय डेटा तैयार करना है।

PPP के लाभ:

  • परिवार एक इकाई के रूप में: केंद्र सरकार के आधार कार्ड में व्यक्तिगत विवरण होता है और यह पूरे परिवार को एक इकाई के रूप में प्रस्तुत नहीं करता है।
    • हालाँकि राशन कार्ड प्रणाली भी प्रचलन में है लेकिन यह अद्यतन नहीं है और इसमें परिवार के बारे में पर्याप्त जानकारी भी उपलब्ध नहीं होती है।
  • सेवाओं का बाधा रहित वितरण: हरियाणा सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राशन कार्ड और जन्म, मृत्यु, जाति एवं आय प्रमाण-पत्र आदि सरकारी सेवाओं तथा योजनाओं का वितरण PPP के माध्यम से किया जा रहा है।
  • प्रवासी श्रमिकों के लिये उपयोगी: PPP योजना के तहत उन लोगों को भी पंजीकरण ID प्रदान की जाती है जो हरियाणा में रहते हैं लेकिन राज्य के निवासी के रूप में आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
    • यह प्रवासी श्रमिकों के लिये विभिन्न लाभों जैसे- उचित मूल्य की दुकानों से राशन, विभिन्न श्रमिक योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभ, स्ट्रीट वेंडर के सहायतार्थ चलाई जा रही योजनाओं का लाभ आदि प्रदान करने में राज्य सरकार को सक्षम बनाता है।

पीपीपी बनाम आधार

  • आधार एक व्यक्ति को इकाई को रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि PPP एक परिवार को इकाई के रूप में प्रस्तुत करता है। यहाँ PPP आधार से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सरकारों द्वारा चलाई जा रही अधिकाँश योजनाएँ परिवारों को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाती हैं, न कि व्यक्ति को।
    • उदाहरण के लिये राशन कार्ड एक परिवार हेतु उपलब्ध होता है लेकिन परिवार विभिन्न सदस्यों (18 वर्ष से अधिक आयु होने पर) में विभाजित हो सकता है और यह कहा जा सकता है कि वे अलग हैं तथा सभी व्यक्तियों के अधिकार भी अलग-अलग हैं।

आगे की राह

  • PPP को धोखाधड़ी वाले लेन-देन पर रोक लगाने और स्वामित्व को स्पष्ट करने के उद्देश्य से  भूमि और संपत्तियों के सरकारी डेटाबेस रिकार्ड्स से भी जोड़ा जा सकता है।
  • इसके अलावा योजना और इसके लाभों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिये सरकार एक सामूहिक अभियान शुरू कर सकती है।
  • सरकार को परिवार पहचान-पत्र (PPP) योजना के तहत एकत्र किये जा रहे डेटा की सुरक्षा को मज़बूत करने हेतु भी उपाय करने चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI की मौद्रिक नीति 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने कोविड महामारी के प्रभाव के कारण वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर वर्ष 2021-22 में 10.5% रहने का अनुमान लगाया है।

  • आरबीआई ने पहले ही अपनी मौद्रिक नीति (Monetary Policy Report) रिपोर्ट में कोविड-19 प्रेरित आर्थिक संकट से निपटने के लिये कई उपाय पेश किये थे।

प्रमुख बिंदु

जीडीपी का पूर्वानुमान:

  • केंद्रीय बैंक के अनुसार, वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 10.5 प्रतिशत (पहली छमाही में 26.2 से 8.3 प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशत) रहने का अनुमान है।
    • सकल घरेलू उत्पाद में लॉकडाउन और उद्योगों के बंद होने के कारण वर्ष 2020-21 की जून तिमाही में 23.9% की गिरावट और सितंबर तिमाही में 7.5% की गिरावट आई थी।
    • रियल जीडीपी आर्थिक उत्पादन का एक पैमाना है जो मुद्रास्फीति या अपस्फीति के प्रभावों का लेखा-जोखा रखता है।
      • नॉमिनल जीडीपी: यह चालू कीमतों (वर्तमान वर्ष की प्रचलित कीमत) में व्यक्त सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापता है।
      • वास्तविक जीडीपी: नॉमिनल GDP के विपरीत यह किसी आधार वर्ष की कीमतों पर व्यक्त की गई सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को बताता है।

सकारात्मक दृष्टिकोण का कारण:

  • कृषि क्षेत्र की अच्छी संभावनाओं पर ग्रामीण मांग के निर्भर रहने की संभावना है।
  • कोविड-19 के मामलों में गिरावट तथा टीकाकरण के प्रसार से संपर्क-गहन (Contact-Intensive) सेवाओं की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
  • उपभोक्ता के प्रति पुनः विश्वास देखा जा रहा है और विनिर्माण क्षेत्र में सेवाओं तथा बुनियादी ढाँचे को लेकर उम्मीदें अभी भी बरकरार हैं।
  • सार्वजनिक निवेश में आत्मनिर्भर 2.0 और सरकार की 3.0 योजनाओं के तहत राजकोषीय प्रोत्साहन में तेज़ी आएगी।
  • केंद्रीय बजट 2021-22 का उद्देश्य स्वास्थ्य और कल्याण, बुनियादी ढाँचा, नवाचार तथा अनुसंधान आदि जैसे क्षेत्रों पर ज़ोर देने के साथ ही विकास की गति को तेज़ करना है।

अपरिवर्तित नीति दरें:

  • RBI ने रेपो दर (Repo Rate) में चलनिधि समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) के तहत कोई बदलाव नहीं किया है, यह 4% पर बरकरार है।
  • रिवर्स रेपो दर, एलएएफ के तहत 3.35% और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) दर तथा बैंक दर (Bank Rate) 4.25% पर अपरिवर्तित बनी हुई है।

अन्य निर्णय:

  • नकद आरक्षित अनुपात (CRR):
    • RBI ने मई 2021 तक CRR को गैर-विघटनकारी तरीके से दो चरणों में 3% से 4% तक बहाल करने का निर्णय लिया है।
  • सरकारी प्रतिभूतियों में प्रत्यक्ष खुदरा निवेश:
    • आरबीआई ने छोटे निवेशकों को सरकारी प्रतिभूति प्लेटफॉर्म पर सीधे पहुँच प्रदान करने हेतु अनुमति देने का प्रस्ताव पेश किया है।
      •  सरकारी प्रतिभूति, केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला एक पारंपरिक साधन है और इसे निवेश का सबसे सुरक्षित रूप माना जाता है।

उदार रुख:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने भी विकास को पुनर्जीवित और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिये जब तक आवश्यक हो, उदार रुख अपनाने का फैसला लिया है।
  • यह फैसला उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) मुद्रास्‍फीति के 4% के मध्‍यावधिक लक्ष्‍य को +/-2 प्रतिशत के दायरे में हासिल करने के उद्देश्‍य से भी है।
    • सीपीआई खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसी वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिन्हें  भारतीय उपभोक्ता अपने उपयोग के लिये खरीदते हैं।
    • सीपीआई में खाद्य और पेय पदार्थ, ईंधन तथा प्रकाश, आवास एवं कपड़े, बिस्तर व जूते सहित कई उप-समूह हैं।

मौद्रिक नीति समिति

समिति के विषय में:

  • RBI की ‘मौद्रिक नीति समिति’ ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है। यह आर्थिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने हेतु कार्य करती है।

संरचना:

  • मौद्रिक नीति समिति भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था।

अध्यक्ष:

  • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।

सदस्य:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है।

निर्णय:

इस समिति में निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं और समान मतों की स्थिति में रिज़र्व बैंक का गवर्नर अपना निर्णायक मत देता है।

कार्य-प्रणाली:

  • यह महँगाई दर (4%) को प्राप्त करने के लिये रेपो रेट के निर्धारण का कार्य करती है।

प्रमुख शब्द

रेपो और रिवर्स रेपो दर:

  • रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती कर RBI बैंकों को यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिये ऋण की दरों को आसान करना चाहिये।
  • रिवर्स रेपो दर रेपो रेट के ठीक विपरीत होती है अर्थात् बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं जिस पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज देता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

तरलता समायोजन सुविधा:

  • तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के तहत प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौतों, रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से ऋण प्राप्त करने या रिवर्स रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से RBI को ऋण प्रदान करने की अनुमति प्रदान करता है।

बैंक दर:

  • जिस सामान्य ब्याज दर पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को पैसा उधार दिया जाता है, उसे बैंक दर कहते हैं। इसके द्वारा रिज़र्व बैंक साख नियंत्रण (Credit Control) का काम करता है।

सीमांत स्थायी सुविधा:

  • सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के तहत बैंक अंतर-बैंक तरलता (Inter-Bank Liquidity) की कमी को पूरा करने के लिये आपातकालीन स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं।
    • बैंक इंटरबैंक उधार के तहत एक निर्दिष्ट अवधि के लिये एक-दूसरे को धन उधार देते हैं।

नकद आरक्षित अनुपात (CRR):

  • प्रत्येक बैंक को अपने कुल कैश रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है। ऐसा इसलिये किया जाता है जिससे किसी भी समय किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्त्ताओं को यदि रकम निकालने की ज़रूरत महसूस हो तो बैंक को पैसा चुकाने में दिक्कत न आए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

निजता का अधिकार और वैध राजकीय हित

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा है कि यद्यपि निजता के अधिकार को एक अक्षय मौलिक अधिकार माना जाता है, परंतु वैध राजकीय हितों के लिये लोगों को इस अधिकार से वंचित किया जा सकता है।

  • केंद्र सरकार की यह प्रतिक्रिया एक याचिका के जवाब के दौरान आई है जिसमें केंद्र की निगरानी परियोजनाओं- सेंट्रलाइज़्ड मॉनीटरिंग सिस्टम (CMS), नेटवर्क ट्रैफिक एनालिसिस (NETRA) और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) को स्थायी रूप से बंद करने की मांग की गई थी। 

केंद्र की निगरानी परियोजनाएँ

  • केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली (Centralized Monitoring System):
    • सरकार द्वारा मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट ट्रैफिक की निगरानी के लिये एक केंद्रीकृत निगरानी प्रणाली (CMS) की स्थापना की गई है।
  • नेटवर्क ट्रैफिक एनालिसिस (Network Traffic Analysis): 
    • नेत्र (Network Traffic Analysis- NETRA) एक ऐसा ही प्रयास है जो भारत सरकार द्वारा नेटवर्क में भेजे जा रहे संदेशों में से संदेहास्पद शब्दों को फिल्टर करने के लिये संचालित किया जा रहा है।
  • राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (National Intelligence Grid):
    • नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की अवधारणा सबसे पहले वर्ष 2009 में प्रस्तुत की गई थी।
    • इसका उद्देश्य किसी संदिग्ध के टेलीफोन विवरण, बैंकिंग एवं आव्रजन प्रवेश तथा निकास से संबंधित डेटाबेस तक पहुँचने हेतु सुरक्षा और आसूचना एजेंसियों के लिये एकल बिंदु समाधान की स्थापना करना है। 

प्रमुख बिंदु: 

याचिकाकर्त्ता का तर्क:

  • सरकार की निगरानी परियोजनाएँ सरकारी अधिकारियों को गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए टेलीफोन और इंटरनेट संचार डेटा को इंटरसेप्ट, स्टोर, विश्लेषण तथा अपने पास सुरक्षित रखे रहने हेतु सक्षम बनाती हैं।
  • यह प्रणाली सरकार को सभी नागरिकों की व्यापक  (360 डिग्री) निगरानी की अनुमति देती है, जिसमें न्यायाधीश भी शामिल हैं। 
  • इस याचिका में टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत जारी  इंटरसेप्टशन तथा निगरानी आदेशों या वारंटों को अधिकृत करने एवं उनकी समीक्षा हेतु एक स्थायी व स्वतंत्र निरीक्षण प्राधिकरण (न्यायिक या संसदीय) के गठन की मांग की गई है।

सरकार का तर्क:

  • एक कंप्यूटर में संग्रहीत किसी भी संदेश या सूचना के वैध इंटरसेप्टशन, निगरानी या डिक्रिप्शन को प्राधिकृत एजेंसियों द्वारा  प्रत्येक मामले में सक्षम अधिकारी के उचित अनुमोदन के बाद संचालित किया जाता है।
    • इंटरसेप्टशन, निगरानी या डिक्रिप्शन के लिये किसी भी एजेंसी को पूरी तरह से छूट नहीं है; और इसके लिये सक्षम अधिकारी (केंद्रीय गृह सचिव) से अनुमति लेना आवश्यक है।
  • सरकार ने यह तर्क दिया गया कि केंद्र स्तर पर कैबिनेट सचिव और राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति के रूप में निरीक्षण की पर्याप्त व्यवस्था है, जो यह जाँच करती है कि इंटरसेप्टशन व निगरानी की स्वीकृति कानून के अनुसार दी गई है या नहीं।
    • यदि किसी मामले में समीक्षा समिति यह पाती है कि निर्देश निर्धारित प्रावधानों के अनुसार नहीं हैं, तो यह निर्देश को रद्द करते हुए इंटरसेप्ट किये गए संदेश या संदेशों के वर्ग की प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दे सकती है।
  • सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आतंकवाद, कट्टरता, सीमा पार आतंकवाद, साइबर अपराध, संगठित अपराध, ड्रग तस्करों के समूह से देश को होने वाले गंभीर खतरे को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरों से निपटने हेतु डिजिटल इंटेलिजेंस सहित कार्रवाई के साथ आसूचना का समय पर एवं त्वरित संग्रह करने हेतु एक मज़बूत तंत्र का होना बहुत आवश्यक है।

निजता का अधिकार: 

परिचय:

  • आमतौर पर यह समझा जाता है कि गोपनीयता अकेला छोड़ दिये जाने के अधिकार  (Right to Be Left Alone)  का पर्याय है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व को वर्णित किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार,  निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है और इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।  
  • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।

प्रतिबंध (निर्णय में वर्णित):

  • इस अधिकार को केवल राज्य कार्रवाई के तहत तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है, जब वे निम्नलिखित तीन  परीक्षणों को पास करते हों :
    • पहला, ऐसी राजकीय कार्रवाई के लिये एक विधायी जनादेश होना चाहिये;
    • दूसरा, इसे एक वैध राजकीय उद्देश्य का पालन करना चाहिये; 
    • तीसरा, यह यथोचित होनी चाहिये, अर्थात् ऐसी राजकीय कार्रवाई- प्रकृति और सीमा में समानुपाती होनी चाहिये,  एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक होनी चाहिये तथा किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सबसे कम अंतर्वेधी होनी चाहिये।

निजता की सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम

मसौदा व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019:

  • विधेयक भारत और विदेश में सरकार तथा निजी एंटिटीज़ (डेटा फिड्यूशरीज़) द्वारा लोगों के निजी डेटा की प्रोसेसिंग को विनियमित करता है। व्यक्ति की सहमति पर या आपात स्थिति में अथवा सरकार द्वारा लाभ वितरण हेतु प्रोसेसिंग की अनुमति है।

बी.एन. श्रीकृष्ण समिति:

  • डिजिटल दुनिया में व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षित करने के लिये एक फ्रेमवर्क की सिफारिश किये जाने हेतु जुलाई 2017 में न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति की स्थापना की गई थी। इस समिति ने जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम कंप्यूटर सिस्टम के ज़रिये होने वाले कुछ डेटा उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा का प्रावधान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने से संबंधित प्रावधान हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

रोहिणी आयोग और OBC उप-श्रेणीकरण

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-श्रेणीकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये रोहिणी आयोग के कार्यकाल को 31 जुलाई, 2021 तक बढ़ा दिया है। 

  • रोहिणी आयोग का गठन अक्तूबर 2017 में संविधान के अनुच्छेद-340 के तहत किया गया था। उस समय आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये 12 सप्ताह का समय दिया गया था, हालाँकि इसके बाद से कई बार आयोग के कार्यकाल में विस्तार किया जा चुका है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति/गठन कर सकता है।

प्रमुख बिंदु

OBC के उप-श्रेणीकरण के लिये समिति की आवश्यकता:

  • समानता सुनिश्चित करने के लिये:
    • इस आयोग का गठन केंद्रीय OBC सूची में मौजूद 5000 जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने हेतु किया गया था।
      • नियम के मुताबिक, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को केंद्र सरकार के तहत नौकरियों और शिक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है।
      • उप-श्रेणीकरण की आवश्यकता इस धारणा से उत्पन्न होती है कि OBC की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही संपन्न समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।
    • उप-श्रेणीकरण से केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसरों का अधिक समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NBFC) की सिफारिशें:
    • ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) ने OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों जैसी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किये जाने की सिफारिश की थी।
    • OBC आरक्षण के लाभ का अधिकांश हिस्सा प्रायः प्रभावशाली OBC समूहों द्वारा प्राप्त किया जा रहा है, इसलिये OBC के भीतर अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिये उप-कोटे को मान्यता देना अति आवश्यक है।
    • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NBFC) के पास सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की शिकायतों और उनसे संबंधित कल्याणकारी उपायों के क्रियान्वयन की जाँच करने का अधिकार है।

आयोग के विचारार्थ विषय (ToR)

  • असमानता की जाँच करना: केंद्रीय OBC सूची में शामिल जातियों या समुदायों के बीच आरक्षण के लाभों के असमान वितरण तथा उनकी सीमा की जाँच करना।
  • मापदंडों का निर्धारण: OBC के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये वैज्ञानिक तरीके से एक आवश्यक तंत्र और मापदंडों का निर्धारण करना।
  • वर्गीकरण: उप-वर्गीकरण के दायरे में आने वाली जातियों या समुदायों या उप-जातियों की पहचान करना और उन्हें उनकी संबंधित उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करना।
  • मौजूदा त्रुटियों को समाप्त करना: OBC की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी प्रकार की पुनरावृत्ति, अस्पष्टता, विसंगति तथा वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटी में सुधार करने के संदर्भ में सलाह देना।

समिति के समक्ष चुनौतियाँ

  • आँकड़ों की कमी:
    • केंद्र सरकार की नौकरियों और विश्वविद्यालय में प्रवेश में विभिन्न OBC समुदायों के प्रतिनिधित्त्व तथा उन समुदायों की आबादी की तुलना करने के लिये आवश्यक डेटा की उपलब्धता अपर्याप्त है।
  • सर्वेक्षण में देरी:
    • वर्ष 2021 की जनगणना OBC से संबंधित डेटा एकत्र करने को लेकर घोषणा की गई थी, हालाँकि इस संबंध में अभी तक कोई आम सहमति नहीं बन पाई है।

आयोग द्वारा अब तक की गई जाँच

  • वर्ष 2018 में, आयोग ने पिछले पाँच वर्ष में OBC कोटा के तहत दी गई केंद्र सरकार की 1.3 लाख नौकरियों का विश्लेषण किया था।
  • आयोग ने पूर्ववर्ती तीन वर्षों में विश्वविद्यालयों, IIT, NIT, IIM और AIIMS समेत विभिन्न केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में OBC प्रवेशों से संबंधित आँकड़ों का विश्लेषण किया था। आयोग के मुताबिक, 
    • OBC के लिये आरक्षित सभी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों की सीटों का 97 प्रतिशत हिस्सा OBC के रूप में वर्गीकृत सभी उप-श्रेणियों के केवल 25 प्रतिशत हिस्से को प्राप्त हुआ।
    • उपरोक्त नौकरियों और सीटों का 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 OBC समुदायों को प्राप्त हुआ।
    • नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में 983 OBC समुदायों (कुल का 37%) का प्रतिनिधित्व शून्य है।
    • विभिन्न भर्तियों एवं प्रवेश में 994 OBC उप-जातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68% का प्रतिनिधित्व है।
  • वर्ष 2019 के मध्य में आयोग ने यह सूचित किया कि उसकी मसौदा रिपोर्ट (उप-वर्गीकरण पर) तैयार है। व्यापक रूप से यह माना जाता है कि इस रिपोर्ट के वृहद् राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं और इसे न्यायिक समीक्षा का सामना भी करना पड़ सकता है, इसलिये इसे अभी तक जारी नहीं किया गया है।

केंद्र सरकार में OBC भर्ती (वर्ष 2020 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा NCBC को प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर):

  • 42 मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों में OBC का प्रतिनिधित्व इस प्रकार है:
    • केंद्र सरकार की सेवाओं के तहत ग्रुप A में 16.51 % 
    • केंद्र सरकार की सेवाओं के तहत ग्रुप B में 13.38 %
    • ग्रुप C में 21.25 % (सफाई कर्मचारियों को छोड़कर)
    • ग्रुप C 17.72 % (सफाई कर्मचारी)
  • NFS के संबंध में:  
    • NCBC द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, OBC के लिये आरक्षित कई पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों की भर्ती की गई क्योंकि OBC उम्मीदवारों को "NFS" यानी None Found Suitable (कोई भी उपयुक्त नहीं मिला) घोषित किया गया था।
  • क्रीमी लेयर में संशोधन: 
    • OBC के लिये क्रीमी लेयर हेतु आय सीमा में संशोधन भी अभी तक विचाराधीन है।

नोट: 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण हेतु अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण पर भी इसी प्रकार की कानूनी बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है, जिसे आमतौर पर SC और ST के लिये "कोटा के अंतर्गत कोटा" (Quota within Quota) कहा जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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