भारतीय अर्थव्यवस्था
ग्लोबल इकनाॅमिक प्राॅसपेक्ट्स: विश्व बैंक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने “ग्लोबल इकनाॅमिक प्राॅसपेक्ट्स: हाईटेन टेंशन, सबड्यूडेड इन्वेस्टमेंट”(Global Economic Prospects: Heightened Tensions, Subdued Investment) रिपोर्ट जारी किया है।
प्रमुख बिंदु
- ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स एक द्वैमासिक रिपोर्ट है। इससे पहले यह जनवरी, 2019 में प्रकाशित हुई थी।
- विश्व बैंक ने 2019-20 के लिये वैश्विक विकास की संभावनाओं को 0.3% घटाकर 2.6% कर दिया है।
- इसका कारण वर्ष 2019 की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश अपेक्षित मात्रा से बेहद कम होना है।
- हालाँकि, विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इसके पश्चात् वृद्धि दर बढ़ेगी एवं वर्ष 2021 तक 2.8% तक पहुँच सकती है।
- वैश्विक वृद्धि के कम होने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिरोधों के बढ़ने की संभावना है साथ ही, सरकारों के ऊपर ऋण के बढ़ने एवं कई मुख्य क्षेत्रों में मंदी की भी संभावना है।
- अमेरिका में वर्ष 2018 में अनुमानित वृद्धि दर, 2.9% से गिरकर इस वर्ष 2.5% तक रहने की उम्मीद है एवं वर्ष 2020 और 2021 में क्रमशः 1.7% और 1.6% तक रहने की उम्मीद है।
- अमेरिकी नीतियों में अनिश्चितता विकास और निवेश को नुकसान पहुँचा सकती है क्योंकि संरक्षणवादी उपाय वैश्विक व्यापार एवं उद्योगों को प्रभावित करते हैं।
- ब्रेक्ज़िट (Brexit) के मुद्दे को लेकर ब्रिटेन और इसके यूरोपीय व्यापारिक भागीदारों पर गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है।
भारत के संदर्भ में
- विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-20 तथा इसके बाद के वर्ष के लिये भारत की वृद्धि दर को 7.5 % पर बनाए रखा है।
- हालाँकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत-पाकिस्तान के बीच फरवरी, 2019 के हालिया तनाव फिर से बढ़ने के कारण क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ सकती है एवं निवेश पर प्रभाव पड़ सकता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के लक्ष्य के नीचे मुद्रास्फीति होने के साथ उपभोग बढ़ाने एवं ऋण में वृद्धि को मज़बूत करने से निजी खपत और निवेश को फायदा होगा।
- रिपोर्ट के अनुसार, वस्तु एवं सेवा कर (GST) अभी भी पूरी तरह से स्थापित होने की प्रक्रिया में है जिससे सरकारी राजस्व के अनुमानों के बारे में अनिश्चितता पैदा होती है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
दो नई कैबिनेट समितियाँ
चर्चा में क्यों?
देश की अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी और बढ़ती बेरोज़गारी पर नई सरकार बराबर नज़र रखे हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में सुधार तथा बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से निपटने के लिये दो विशेष कैबिनेट समितियों का गठन किया है।
दो नई कैबिनेट समितियाँ
1. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित पाँच सदस्यीय कैबिनेट कमेटी ऑन इन्वेस्टमेंट एंड ग्रोथ अर्थव्यवस्था को फिर से रफ्तार देने के विकल्पों पर विचार करेगी। कैबिनेट की यह विशेष समिति अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक और निजी निवेश बढ़ाने के लिये जरूरी विकल्पों पर भी अपने सुझाव देगी। इस कमेटी के सदस्यों में गृहमंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शामिल हैं।
2. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली दूसरी समिति कैबिनेट कमेटी ऑन एम्प्लॉयमेंट एंड स्किल डेवलपमेंट बढ़ती बेरोज़गारी से निपटने के विकल्पों पर विचार करेगी। इसमें कुल 10 सदस्य होंगे जिनमें गृहमंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल शामिल हैं।
6 समितियों का पुनर्गठन
- इसके अलावा 6 अन्य प्रमुख समितियों का पुनर्गठन किया गया है। इनमें मंत्रिमंडल की नियुक्ति, आवास, आर्थिक मामलों, संसदीय मामलों, राजनीतिक मामलों, सुरक्षा, निवेश और विकास तथा रोज़गार और कौशल विकास समितियाँ शामिल हैं।
- सुरक्षा मामलों की समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे और राजनाथ सिंह, अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और निर्मला सीतारमण इसके सदस्य होंगे। यह समिति राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेश मामलों से संबंधित मुद्दों को देखेगी।
- मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की अध्यक्षता भी प्रधानमंत्री करेंगे और अमित शाह के अलावा नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल इसके सदस्य होंगे।
- आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे और इसके सदस्यों के तौर पर राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, सदानंद गौड़ा, निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर, रविशंकर प्रसाद तथा हरसिमरत कौर बादल शामिल होंगी। इसके अलावा एस. जयशंकर, पीयूष गोयल एवं धर्मेंद्र प्रधान भी इसमें शामिल होंगे।
- संसदीय मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की अध्यक्षता अमित शाह करेंगे और निर्मला सीतारमण, रामविलास पासवान, नरेंद्र सिंह तोमर, रविशंकर प्रसाद, थावर चंद गहलोत, प्रकाश जावड़ेकर और प्रहलाद जोशी इसके सदस्य होंगे। यह समिति संसद का सत्र बुलाने के लिये तारीखों की सिफारिश करती है। अर्जुनराम मेघवाल और वी. मुरलीधरन इसके विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।
- महत्त्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर सरकार की मदद करने वाली राजनीतिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे। अमित शाह, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, रामविलास पासवान, नरेंद्र सिंह तोमर, रविशंकर प्रसाद, हरसिमरत कौर बादल, हर्षवर्धन, अरविंद सावंत और प्रह्लाद जोशी इसके सदस्य होंगे।
- प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह और आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री एवं नागर विमानन मंत्री हरदीप पुरी आवास समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे।
- इनके अलावा कौशल विकास की मंत्रिमंडलीय समिति तथा विकास मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति का भी पुनर्गठन किया गया।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जब इन समितियों का पुनर्गठन हुआ तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को केवल दो समितियों (सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति और आर्थिक मामलों की समिति) का सदस्य बनाया गया था, लेकिन इसके बाद हुए एक घटनाक्रम में राजनाथ सिंह को चार और समितियों में शामिल किया गया। वह संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के अध्यक्ष तथा राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति, निवेश एवं विकास मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के साथ-साथ रोज़गार एवं कौशल विकास मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के सदस्य भी बनाए गए हैं।
क्यों किया जाता है पुनर्गठन?
- गौरतलब है कि मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन या पुनर्गठन तब किया जाता है जब नई सरकार काम-काज संभालती है या मंत्रिमंडल में फेरबदल होते हैं। इन समितियों के माध्यम से मंत्रिमंडल को अपना काम करने में सुविधा होती है। ये समितियाँ संविधानेतर हैं अर्थात् संविधान में इनका कोई उल्लेख नहीं है, तथापि इनकी स्थापना हेतु कार्य संचालन संबंधी नियमावली का प्रावधान है।
दो प्रकार की होती हैं समितियाँ
- मंत्रिमंडलीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समिति और तदर्थ समिति। स्थायी समिति अपने नाम के अनुरूप होती है तथा तदर्थ समिति अस्थायी प्रकृति की होती है।
- कुछ विशेष समस्याओं से निपटने के लिये समय-समय पर तदर्थ समितियाँ गठित की जाती हैं तथा कार्य समाप्त होने के बाद इनका अस्तित्व नहीं रहता है।
- मंत्रिमंडल समितियों का गठन प्रधानमंत्री द्वारा समय और परिस्थिति के अनुसार किया जाता है, इसलिये इनकी संख्या, इनके नाम और रचना समय-समय पर भिन्न होती है।
- इन समितियों में प्रायः कैबिनेट स्तर के मंत्री या स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री शामिल होते हैं। केवल संबद्ध विषय से संबंधित प्रभारी मंत्री ही नहीं, बल्कि अन्य वरिष्ठ मंत्री भी इनमें शामिल होते हैं।
- इन समितियों की अध्यक्षता प्रायः प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है, लेकिन कभी-कभी गृह मंत्री तथा वित्त मंत्री भी इन समितियों की अध्यक्षता करते हैं, किंतु प्रधानमंत्री यदि समिति का सदस्य है तो उसकी अध्यक्षता वही करता है।
- ये समितियाँ केवल मामलों का निपटान ही नहीं करतीं, बल्कि मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्ताव भी तैयार करती हैं और निर्णय भी लेती हैं।
- मंत्रिमंडल इन समितियों द्वारा लिये गए निर्णय की समीक्षा कर सकता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
5 G तकनीक
चर्चा में क्यों?
वैश्विक दूरसंचार उद्योग निकाय ग्लोबल कम्युनिकेशंस फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस (Global System for Mobile Communications- GSMA) के एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 920 मिलियन हो जाने की संभावना है, जिसमें लगभग 88 मिलियन उपभोक्ता 5G कनेक्शन वाले हो सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि यदि यह अनुमान सही साबित होता है तो भारत 5 जी कनेक्शन के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा।
- 5G शब्द का उपयोग लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution- LTE) की अगली पीढ़ी का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- 5G तकनीक के अनुप्रयोग: यह दूरसंचार/टेलीकॉम तकनीक का मिश्रण है, जो बहुत कम ऊर्जा का उपयोग करने के साथ ही विकिरण भी बहुत कम उत्पन्न करता है और व्यापक कनेक्टिविटी के माध्यम से बहुत अधिक डेटा गति/स्पीड प्रदान करता है।
- इसे इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT) के लिये एक नेटवर्क के रूप में भी बनाया गया है।
- इससे न केवल लोग बल्कि यूटिलिटी मशीन, औद्योगिक उपकरण, ऑटोमोबाइल, शहर की आधारिक संरचना, सार्वजनिक सुरक्षा आदि भी एक-दूसरे से संबद्ध होंगे।
- उपयोग की जाने वाली तकनीक: बड़ी संख्या में उपकरणों को एक साथ संचालित करने, जिनमें से कई को लंबे समय तक बैटरी लाइफ की आवश्यकता होती है, के लिये 5G नेटवर्क LTE के उन्नत प्लेटफॉर्म (LTE Advanced Pro platform) का निर्माण करेगा।
- इसमें दो नैरोबैंड (Narrowband) तकनीकी प्लेटफार्मों का उपयोग किया जाएगा-
- उन्नत मशीन प्रकार संचार (Enhanced Machine-Type Communication- EMTC)
- नैरोबैंड इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Narrowband Internet of Things: NB-IoT)
अनुकूल परिस्थिति
5G नेटवर्क की गति डाउनलिंक के लिये 20 गीगाबाइट प्रति सेकेंड (Gb/s) और अपलिंक के लिये 10 गीगाबाइट प्रति सेकेंड (Gb/s) की अधिकतम डेटा दर होनी चाहिये।
LTE
- यह लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution) का संक्षिप्त रूप है।
- LTE, 3rd जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3rd Generation Partnership Project- 3GPP) द्वारा विकसित एक 4G वायरलेस कम्युनिकेशन स्टैंडर्ड (4G Wireless Communications Standard) है जिसे मोबाइल डिवाइस जैसे- स्मार्टफोन, टैबलेट, नोटबुक और वायरलेस हॉटस्पॉट को 3G की तुलना में 10 गुना स्पीड प्रदान करने के लिये विकसित किया गया है।
VoLTE
- यह वॉयस-ओवर लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Voice over Long Term Evolution- VoLTE) का संक्षिप्त रूप है।
- यह एक डिजिटल पैकेट वॉयस सेवा है जिसमें IMS तकनीक का उपयोग करते हुए LTE एक्सेस नेटवर्क के माध्यम से इंटरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol- IP) पर वितरित किया जाता है।
लेटेंसी (Latency)
- यह नेटवर्किंग से संबंधित एक शब्द है। एक नोड से दूसरे नोड तक जाने में किसी डेटा पैकेट द्वारा लिये गए कुल समय को लेटेंसी कहते हैं।
- लेटेंसी समय अंतराल या देरी को संदर्भित करता है।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT)
स्रोत- प्रेस रीडर, इकोनॉमिक टाइम्स
शासन व्यवस्था
त्रि-भाषा फॉर्मूला
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिक डॉ. कस्तूरीरंगन (Dr. Kasturirangan) की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (Draft National Education Policy), 2019 के मसौदे में त्रि-भाषा के फार्मूले (Three-Language Formula) को अपनाने की सिफारिश की गई है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में प्राथमिक स्तर पर इस फॉर्मूले को अपनाने की सिफारिश की गई है।
त्रि-भाषाई फॉर्मूला
- पहली भाषा: यह मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी।
- दूसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेज़ी होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेज़ी होगी।
- तीसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेज़ी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेज़ी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
त्रि-भाषाई सूत्र की आवश्यकता क्यों है?
- समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भाषा सीखना बच्चे के संज्ञानात्मक विकास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसका प्राथमिक उद्देश्य बहुउद्देश्यीयता (Multilingualism)और राष्ट्रीय सद्भाव (National Harmony) को बढ़ावा देना है।
इसके कार्यान्वयन में आने वाली समस्याएँ
- तमिलनाडु, पुडुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य अपने स्कूलों में हिंदी सिखाने के लिये तैयार नहीं हैं। और न ही किसी हिंदी भाषी राज्य ने अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा को शामिल किया है।
- इतना ही नहीं बल्कि अक्सर राज्य सरकारों के पास त्रि-स्तरीय भाषाई फॉर्मूले को लागू करने के लिये पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं होते हैं। संसाधनों की अपर्याप्तता संभवतः इस संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है।
संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। अनुच्छेद में कहा गया है कि नागरिकों के किसी भी वर्ग "जिसकी स्वयं की विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति है" को उसका संरक्षण करने का अधिकार होगा।"
- अनुच्छेद 343 भारत संघ की आधिकारिक भाषा से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अनुसार, हिंदी देवनागरी लिपि में होनी चाहिये और अंकों के संदर्भ में भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का अनुसरण किया जाना चाहिये। इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान को अपनाए जाने के शुरुआती 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी का आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग जारी रहेगा।
- अनुच्छेद 346 राज्यों और संघ एवं राज्य के बीच संचार हेतु आधिकारिक भाषा के विषय में प्रबंध करता है। अनुच्छेद के अनुसार, उक्त कार्य के लिये "अधिकृत" भाषा का उपयोग किया जाएगा। हालाँकि यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि उनके मध्य संचार की भाषा हिंदी होगी, तो आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 347: किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में एक भाषा को चुनने की शक्ति प्रदान करता है, यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
- अनुच्छेद 350A प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 350B भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। विशेष अधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगी, यह भाषाई अल्पसंख्यकों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा तथा सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपेगा। तत्पश्चात् राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है या उसे संबंधित राज्य/राज्यों की सरकारों को भेज सकता है।
- अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स
सामाजिक न्याय
‘विकलांगता शिखर सम्मेलन, 2019’
चर्चा में क्यों?
‘विकलांगता शिखर सम्मेलन 2019’ (Disability Summit, 2019) के द्वितीय संस्करण का आयोजन 6-8 जून, 2019 के बीच अर्जेंटीना गणराज्य के ब्यूनस आयर्स शहर में किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- इस सम्मेलन में अर्जेंटीना सरकार (Government of Argentina), इंटरनेशनल डिसएबिलिटी अलायंस ( International Disability Alliance- IDA) और विकलांगों के गैर-सरकारी संगठनों के लैटिन अमेरिकी नेटवर्क तथा उनके परिवारों (Latin American Network of Non-Governmental Organizations of Persons with Disabilities and their Families-RIADIS) ने संयुक्त रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है।
- वर्ष 2018 में प्रथम ‘वैश्विक विकलांगता शिखर सम्मेलन’ का आयोजन लंदन में किया गया था।
- इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य विकलांग लोगों के पूर्ण समावेशन को सुनिश्चित करना और उनके अधिकारों, स्वतंत्रता एवं मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिये लैटिन अमेरिका और विश्व की प्रतिबद्धता को मज़बूती प्रदान करना है।
- इस शिखर सम्मेलन के माध्यम से सरकारों, विकलांग लोगों के संगठनों, नागरिक समाज संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसियों, शिक्षा और निजी क्षेत्र को एक साथ लाया जाएगा, ताकि विकलांग लोगों के लिये वास्तविक रूप में परिवर्तन पर कार्य किया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता गठबंधन
International Disability Alliance (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता गठबंधन (IDA) विकलांग व्यक्तियों के आठ वैश्विक और छह क्षेत्रीय संगठनों का एक संघ है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी।
- यह संयुक्त राष्ट्र में विकलांग लोगों और उनसे संबंधित संगठनों के लिये अधिक समावेशी वैश्विक वातावरण का समर्थन करता है।
- विश्व स्तर पर IDA अपने सदस्य संगठनों के साथ मिलकर दुनिया भर में अनुमानित एक अरब विकलांग लोगों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय
(United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities-UNCRPD)
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCRPD) एक स्वैच्छिक संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल है। इसे 13 दिसंबर, 2006 को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया।
- इस वैश्विक अभिसमय का मुख्य उद्देश्य विकलांगों के अधिकारों और उन्नति को बढ़ावा देना है, जो अन्य प्रासंगिक मानवाधिकारों एवं विकास साधनों के रूप में विश्व कार्यक्रम (1982), मानक नियम (1994) और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (2006) के साथ-साथ एक व्यापक जनादेश के अंतर्गत आते हैं।
- भारत ने भी विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCRPD) पर हस्ताक्षर किये हैं, 1 अक्तूबर, 2007 को भारत ने इसकी पुष्टि की। फलस्वरूप यह अभिसमय 3 मई, 2008 को प्रभावी हुआ।
- भारत में ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार विधेयक, 2016’ (The Rights of Persons with Disabilities Bill, 2016) पारित किया गया है।
- विकलांग व्यक्तियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस ‘3 दिसंबर’ को मनाया जाता है।
स्रोत- IDA, UNCRPD की आधिकारिक वेबसाइट
शासन व्यवस्था
‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2020’
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने आधिकारिक तौर पर नई दिल्ली में शहरी भारत के वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण के पाँचवें संस्करण ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2020’ (Swachh Survekshan 2020) की शुरुआत की।
- उल्लेखनीय है कि इस सर्वेक्षण में गंदे पानी की सफाई तथा इसके पुन: उपयोग और मल गाद प्रबंधन से संबंधित मानकों पर विशेष फोकस किया जाना सुनिश्चित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- मंत्रालय के अनुसार, देश में शहरों और नगरों की स्वच्छता का तिमाही मूल्यांकन किया जाएगा; अप्रैल-जून 2019, जुलाई-सितंबर 2019 तथा अक्तूबर-दिसंबर 2019। प्रत्येक तिमाही का भारांक 2000 होगा।
- इसका मूल्यांकन एसबीएम-यू (Server Message Block-U) की ऑनलाइन मासिक नवीनतम जानकारी (Management Information System-MIS) तथा 12 सेवा स्तर प्रगति सूचकों के नागरिक सत्यापन के आधार पर किया जाएगा।
- एक साथ दोनों मानक शहरों की तिमाही रैंकिंग का निर्धारण करेंगे, जिसकी रैंकिंग दो श्रेणियों में की जाएगी। पहली श्रेणी एक लाख और उससे ऊपर की आबादी वाले शहरों की तथा दूसरी श्रेणी एक लाख से कम आबादी वाले नगरों की होगी।
पृष्ठभूमि
- शहरों में बेहतर स्वच्छता सुनिश्चित करने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने की दिशा में कदम उठाते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने पहली बार जनवरी 2016 में ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2016’ आयोजित किया था। इसके अंतर्गत 73 शहरों की रैंकिंग की गई थी।
- इसके बाद जनवरी-फरवरी 2017 के दौरान ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2017’ कराया गया था जिसके तहत 434 शहरों की रैंकिंग की गई।
- सर्वेक्षण के तीसरे चरण अर्थात् ‘स्वच्छ सर्वेक्षण-2018’ का बड़े पैमाने पर आयोजन किया गया। इसके तहत 4203 शहरों एवं कस्बों में सर्वेक्षण कराया गया जिसे 66 दिनों की रिकॉर्ड अवधि में पूरा किया गया।
- इसके साथ ही यह विश्व में अब तक का सबसे व्यापक स्वच्छता सर्वेक्षण बन गया जिसके दायरे में लगभग 40 करोड़ लोग आते हैं।
‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2019’ के संदर्भ में
- इस सर्वेक्षण को ऑनलाइन एमआईएस (Management Information System-MIS) के ज़रिये पूरी तरह से डिजिटल रूप प्रदान किया गया है।
- 4 बड़े स्रोतों जैसे कि ‘सेवा स्तर पर प्रगति, प्रत्यक्ष अवलोकन, नागरिकों से मिली प्रतिक्रिया और प्रमाणन’ के आधार पर आँकड़ों का संग्रह किया गया।
- ‘सेवा स्तर पर प्रगति’ के तहत विभिन्न अवयवों को संशोधित भारांक (वेटेज) दिया गया। इसके अलावा एक नया अवयव ‘उप नियम’ भी जोड़ा गया।
- प्रमाणन (कचरा मुक्त शहरों और खुले में शौच मुक्त प्रोटोकॉल की स्टार रेटिंग): आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरों के ‘प्रमाणन’ का एक महत्त्वपूर्ण अवयव शुरू किया है।
स्रोत- PIB
शासन व्यवस्था
नीति आयोग का पुनर्गठन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने नीति आयोग (National Institution for Transforming India- NITI Aayog) के पुनर्गठन को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार ने नीति आयोग का पुनर्गठन निम्नलिखित रूप में करने को मंज़ूरी दी है-
अध्यक्ष |
प्रधानमंत्री |
उपाध्यक्ष |
राजीव कुमार |
पूर्णकालिक सदस्य |
|
पदेन सदस्य (Ex-officio Members) |
|
विशेष आमंत्रित सदस्य |
|
नीति आयोग
- 1 जनवरी, 2015 को थिंक टैंक के रूप में अस्तित्व में आए नीति आयोग (National Institution for Transforming India-NITI) का मुख्य कार्य न्यू इंडिया के निर्माण का विज़न एवं इसके लिये रणनीतिक मसौदा बनाना तथा कार्य योजनाएँ तैयार करना है।
- केंद्र सरकार की नीति निर्धारण संस्था के रूप में नीति आयोग देशभर से सुझाव आमंत्रित करके जन-भागीदारी एवं राज्य सरकारों की भागीदारी से नीतियाँ बनाने का काम करता है।
- अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री ने योजना आयोग को भंग करने की घोषणा की थी और उसके बाद योजना आयोग के भंग होने के साथ ही पंचवर्षीय योजना का युग भी समाप्त हो गया।
- नीति आयोग की स्थापना के बाद योजना के अंतर्गत व्यय और गैर-योजनांतर्गत व्यय का अंतर समाप्त हो चुका है। अब केंद्र सरकार से राज्य सरकारों को धनराशि का हस्तांतरण केवल केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर होता है।
- उल्लेखनीय है कि नीति आयोग योजना आयोग की भाँति भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सृजित एक निकाय है। इस प्रकार यह न तो संवैधानिक और न ही वैधानिक निकाय है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक संविधानेत्तर निकाय होने के साथ ही एक गैर-वैधानिक (जो संसद के किसी अधिनियम द्वारा अधिनियमित न हो) निकाय भी है।
- नीति आयोग के कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत:
- अंत्योदय (पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय विचारों पर आधारित)
- समावेशिता
- ग्राम (विकास प्रक्रिया से गाँवों को जोड़ना)
- जनसहभागिता इत्यादि।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
स्पाइस बम-2000
चर्चा में क्यों?
नव-निर्वाचित केंद्र सरकार ने 6 जून, 2019 को पहला सामरिक समझौता किया जो इज़राइल (Israel) के साथ संपन्न हुआ। इसके अंतर्गत भारत इज़राइल से उच्च विस्फोटक क्षमता वाले स्पाइस बमों की खरीद करेगा जिससे भारतीय वायु सेना की सामरिक स्थिति को मज़बूती मिलेगी।
प्रमुख बिंदु
- यह स्पाइस-2000 बमों (Spice bombs) का नवीनीकृत प्रसंस्करण है जो दुश्मनों के बंकरों और उनके ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम है। हाल ही में स्पाइस-2000 बमों का प्रयोग पाक अधिकृत कश्मीर के बालाकोट में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कैंपों पर एयर स्ट्राइक में किया गया था।
- मार्क-84 वॉरहेड के साथ इन स्पाइस बमों की खरीद की जाएगी एवं इज़राइल द्वारा 3 माह में भारत को इनकी आपूर्ति की जाएगी।
- एयर स्ट्राइक के समय प्रयुक्त इन बमों की विशेषता यह है कि यदि इन बमों को लड़ाकू विमान द्वारा किसी इमारत पर गिराया जाता है तो यह इमारत की छत में छेद कर अंदर घुसता है तथा एक घातक विस्फोट करता है।
- स्पाइस बमों की मारक क्षमता सटीक होने साथ ही यह लक्ष्य को 60 किलोमीटर/घंटा की गति से भेध सकता है।
स्पाइस बम (SPICE bomb) क्या हैं?
- स्पाइस बम जिसका पूरा नाम स्मार्ट, प्रीसाइज़ इम्पैक्ट, कॉस्ट इफेक्टिव (Smart, Precise Impact, Cost-Effective-SPICE) है, की स्टैंड ऑफ या तटस्थ क्षमता 60 किमी. है। यह एयर-टू-ग्राउंड ऑपरेशन के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले हथियारों से सुसज्जित होता है। भारत वर्ष 2015 से फ्राँस द्वारा विकसित लड़ाकू विमान, मिराज- 2000 पर SPICE-2000 बम का उपयोग कर रहा है।
स्पाइस-2000:
- भारतीय वायुसेना ने मज़बूत और भूमिगत कमांड सेंटरों के खिलाफ उपयोग के लिये सटीकता और पैठ वाले सटीक-निर्देशित बमों का अधिग्रहण किया है। रक्षा मंत्रालय के वर्ष 2015 के एक नोट के अनुसार, इस हथियार का परीक्षण किया गया है और इसकी क्षमताओं को भारतीय वायुसेना (IAF) के फायरिंग रेंज में मान्य किया गया है।
- स्पाइस बम के किट में अचूक सटीकता के लिये जड़त्वीय नेविगेशन, उपग्रह मार्गदर्शन और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर शामिल हैं।
- इनमें हथियारों के लिये एक और अतिरिक्त किट को जोड़ा गया है- MKH-84, APW, RAP-2000 और BLU-109।
- रडार पर इन परिष्कृत बमों का पता लगा पाना मुश्किल होता है।
- छोटे आकार के कारण इन बमों का उपयोग स्टैंड-ऑफ रेंज से परे किसी लक्ष्य को नष्ट करने के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा, बहुत अधिक बादल या खराब मौसम का असर उनके परिणाम पर बहुत कम पड़ता है।
स्रोत: द टाइम्स ऑफ़ इंडिया
जैव विविधता और पर्यावरण
रामसर स्थल के टैग हेतु धनौरी का समर्थन
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment Forest and Climate Change) ने उत्तर प्रदेश के वन विभाग से ग्रेटर नोएडा स्थित धनौरी (Dhanauri) को रामसर कन्वेंशन (Ramsar convention) के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में प्रस्तावित करने के लिये कहा है।
- रामसर कन्वेंशन द्वारा यदि इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो धनौरी को भूमि उपयोग परिवर्तन के माध्यम से कानूनी संरक्षण प्राप्त होगा।
रामसर स्थल के रूप में धनौरी
- धनौरी सुभेद्य श्रेणी में आने वाले सारस क्रेन (Sarus Cranes) की एक बड़ी आबादी को आवास प्रदान करता है।
- यह आर्द्र्भूमि, रामसर स्थल/साइट घोषित किये जाने के लिये आवश्यक नौ मानदंडों में से दो को पूरा करता है, ये दोनों मानदंड हैं:
1. यहाँ पाए जाने वाले सारस क्रेन की जैव-भौगोलिक आबादी 1% से अधिक है।
2. इस क्षेत्र में 20,000 से अधिक जलपक्षी और अन्य प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
रामसर स्थल के रूप में नामित किये जाने के लिये मानदंड
किसी आर्द्र्भूमि को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्र्भूमि का दर्ज़ा दिया जाना चाहिये यदि-
1. यह एक उचित भौगोलिक क्षेत्र के भीतर पाए जाने वाले प्राकृतिक या निकट-प्राकृतिक प्रकार की आर्द्रभूमि का प्रतिनिधिक, दुर्लभ या अद्वितीय उदाहरण हो।
2. यह सुभेद्य (Vulnerable), लुप्तप्राय (Endangered) या गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) प्रजातियों या संकटापन्न पारिस्थितिक समुदायों का समर्थन करता हो।
3. यह किसी विशेष जैव-भौगोलिक क्षेत्र की जैव-विविधता को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण पौधों और/या पशु प्रजातियों की आबादी को अनुकूल परिस्थिति प्रदान करता है।
4. यह पौधों और जानवरों की प्रजातियों को उनके जीवन चक्र में एक महत्त्वपूर्ण स्तर पर समर्थन करता है या प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें आश्रय प्रदान करता है।
5. यह नियमित रूप से 20,000 या अधिक जलपक्षियों (Waterbirds) को आश्रय प्रदान करता है।
6. यह नियमित रूप से जलपक्षियों की एक प्रजाति या उप-प्रजाति की आबादी के 1% से अधिक को संपोषित करता हो।
7. यह देशी मछलियों की उप-प्रजातियों, प्रजातियों या जातियों, जीवन-इतिहास के चरणों, प्रजातियों के बीच अंतर्संबंधों और/या आबादी के महत्त्वपूर्ण अनुपात का समर्थन करता है जो आर्द्र्भूमियों के लाभों और/या मूल्यों के प्रतिनिधिक हैं और इस प्रकार यह वैश्विक जैव-विविधता में योगदान करता हो।
8. यह ऐसी आर्द्र्भूमि हो जहाँ मछलियों के भोजन हेतु महत्त्वपूर्ण स्रोत, प्रजनन के लिये उपयुक्त स्थान, संवर्द्धन स्थल, आर्द्र्भूमि के भीतर या किसी और स्थान पर मछलियों के प्रजनन हेतु आवश्यक या उपयुक्त प्रवास पथ हों।
9. यह किसी प्रजाति की आबादी के 1% हिस्से या आर्द्रभूमि पर निर्भर गैर-पक्षी वर्ग की किसी एक प्रजाति या उप-प्रजाति को नियमित रूप से आश्रय प्रदान करता हो।
स्रोत : हिंदुस्तान टाइम्स
जैव विविधता और पर्यावरण
असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests-MoEF) ने गुरुग्राम और फरीदाबाद में असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य (Asola-Bhatti Wildlife Sanctuary) के आस-पास के 1 किमी. क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र/इको सेंसिटिव ज़ोन (Eco-sensitive zone-ESZ) घोषित किया है।
- इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किये जाने के बाद इन क्षेत्रों में वाणिज्यिक खनन, उद्योगों की स्थापना और प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना जैसी गतिविधियाँ प्रतिबंधित हो जाएंगी।
असोला भाटी वन्यजीव अभ्यारण्य को इको सेंसिटिव ज़ोन का टैग क्यों?
असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य में वनस्पति तथा जैव दोनों प्रकार की विविधता विद्यमान है:
1. यहाँ विभिन्न प्रकार के वृक्ष, झाड़ियाँ, जड़ी-बूटियाँ और घास पाए जाते हैं।
2. यहाँ बड़ी संख्या में स्तनधारी, सरीसृप, उभयचर, तितलियाँ और ड्रैगनफ्लाई पाए जाते हैं।
- इस अभयारण्य में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियाँ पाई जाती है।
- अभयारण्य के अंदर वन्यजीव आवास दिल्ली, फरीदाबाद और गुरुग्राम के लिये जल पुनर्भरण क्षेत्र (Water Recharge Zone) के रूप में कार्य करते हैं।
नियंत्रित गतिविधियाँ
- होटल और रिसॉर्ट: संरक्षित क्षेत्र की सीमा के 1 किमी. के भीतर या इको-सेंसिटिव ज़ोन की सीमा तक (जो भी पास हो) इनके निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- निर्माण कार्य: इको-पर्यटन गतिविधियों के लिये केवल "छोटे अस्थायी ढाँचे" का निर्माण।
- छोटे स्तर के गैर-प्रदूषणकारी उद्योग
- वृक्षों की कटाई
- नगरीय बुनियादी ढाँचा
प्रतिबंधित गतिविधियाँ:
- वाणिज्यिक खनन (Commercial mining)
- पत्थर खनन (Stone quarrying)
- औद्योगिक और प्रदूषणकारी उद्योग (Industrial and polluting industries)
- आरा मशीन और ईंट-भट्टे (Saw mills brick kilns)
अनुमत गतिविधियाँ
- बारिश के पानी का संग्रहण (Rain water harvesting)
- जैविक खेती (Organic farming)
- कुटीर उद्योग (Cottage industries)
- कृषि वानिकी (Agroforestry)
असोला-भाटी वन्यजीव अभयारण्य (Asola-Bhatti Wildlife Sanctuary) 32.7 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है और महत्त्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे की सीमा पर स्थित है जो राजस्थान के अलवर में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान से शुरू होता है तथा हरियाणा के मेवात, फरीदाबाद एवं गुरुग्राम ज़िलों से गुजरता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (7 June)
- भारत सरकार और मार्शल द्वीप समूह की सरकार के बीच करों के संबंध में सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक अनुबंध पर मार्शल द्वीप समूह के माजूरो में 18 मार्च, 2016 को हस्ताक्षर किये गए थे। लेकिन यह समझौता 21 मई, 2019 से अस्तित्व में आया है। यह समझौता कर उद्देश्यों के लिये दोनों देशों के बीच बैंकिंग और स्वामित्व जानकारी सहित सूचना के आदान-प्रदान की सुविधा देता है। यह समझौता कर पारदर्शिता और सूचना के आदान-प्रदान के अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित है, जो अनुरोध करने पर सूचना को साझा करने की सुविधा देता है। इस समझौते में एक देश के प्रतिनिधियों को दूसरे देश में कर संबंधी जाँच-पड़ताल करने का प्रावधान भी शामिल है। इस समझौते से भारत और मार्शल द्वीप समूह के बीच कर चोरी और कर वंचना को रोकने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि केवल 6200 जनसंख्या वाला मार्शल द्वीप समूह प्रशांत महासागर के बीच स्थित एक माइक्रोनेशियाई देश है, जिसके उत्तर में किरिबाती और नॉरू तथा पूर्व में माइक्रोनेशिया स्थित है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैये का सामना करने के लिये भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका एक साथ आए हैं। हाल ही में इन चार देशों के अधिकारियों की बैंकॉक में एक बैठक हुई, जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था को बनाए रखने और इसे बढ़ावा देने के लिये सामूहिक रूप से एक मज़बूत आसियान नीत तंत्र बनाने का समर्थन किया गया। इस बैठक में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन और पैसिफिक आइलैंड फोरम सहित अन्य क्षेत्रीय संस्थानों को बल प्रदान करने पर ज़ोर दिया गया। ध्यातव्य है कि दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में चीन का कई पड़ोसी देशों से विवाद चल रहा है।
- मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को वहाँ की संसद पीपुल्स मजलिस का अध्यक्ष चुन लिया गया है। उन्हें संसद में 87 में से 67 सासंदों का समर्थन मिला। गौरतलब है कि इसी वर्ष अप्रैल में हुए संसदीय चुनाव में उनकी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी ने तीन-चौथाई बहुमत के साथ जीत हासिल की थी। मोहम्मद नशीद अपने खराब स्वास्थ्य के चलते विदेश में रहे और पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के इब्राहिम सोलिह की जीत के बाद स्वदेश वापस लौटे थे। वह 2008 से 2012 तक मालदीव के राष्ट्रपति रह चुके हैं। देश के एक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सेना के समर्थन के साथ 2012 में उनकी सरकार का तख्तापलट कर दिया था। मोहम्मद नशीद को मालदीव में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने का श्रेय जाता है। 2008 में उन्होंने 30 साल से शासन कर रहे अब्दुल गय्यूम को सत्ता से बाहर कर दिया था।
- अमेरिका की प्रतिष्ठित ‘स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी’ 2019 में भारतीय-अमेरिकियों का बोलबाला बरकरार रहा। इस बार प्रतियोगिता के आठ विजेताओं विद्यार्थियों में सात भारतीय मूल के हैं। इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के 94 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि दो से अधिक सह-विजेता घोषित किये गए। 2007 के बाद यह पहला मौका है जब कोई अमेरिकी छात्र (एरविन होवार्ड) विजेताओं में शामिल है। कैलिफोर्निया के ऋषिक गंधश्री, मैरीलैंड के साकेत सुंदर, न्यू जर्सी की श्रुतिका पद्य, टेक्सास के सोहम सुखतंकर, टेक्सास के रोहन राजा, न्यू जर्सी के क्रिस्टोफर सेराओ और होवार्ड के अलबामा को सह-विजेता घोषित किया गया है। इन सभी की आयु 15 वर्ष से कम है। पिछले साल भारतीय अमेरिकी कार्तिक नेम्मानी ने यह प्रतियोगित जीती थी। इस जीत के साथ वह लगातार 11 वर्ष से प्रतियोगिता जीतने वाले 14वें भारतीय अमेरिकी बने थे। वर्ष 2017 में भारतीय अमेरिकी छात्रा अन्नया विनय ने प्रतियोगिता जीती थी।
- उत्तराखंड में स्थित फूलों की घाटी 1 जून से पर्यटकों के लिये खोल दी गई। चमोली जिले में स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी नंदा देवी नेशनल पार्क के अंतर्गत आती है। इसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण वर्ष 2005 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया था। फूलों की घाटी में 500 से अधिक प्रजातियों के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। 87.5 वर्ग किमी. में फैली फूलों की घाटी में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्म कमल, फैन कमल जैसे फूल शामिल हैं। घाटी में दुर्लभ प्रजातियों के जीव-जंतु, वनस्पतियाँ व जड़ी-बूटियाँ भी पाई जाती हैं।
- देश की एकमात्र ओरांगुटान (वनमानुष) बिन्नी की 41 वर्ष की आयु में ओडिशा के नंदन-कानन जूलॉजिकल पार्क में मृत्यु हो गई। पिछले एक साल से कॉलेज ऑफ वेटिनरी साइंस और एनिमल हसबेंडरी के डॉक्टर ब्रिटेन और सिंगापुर के डॉक्टरों की सलाह पर बिन्नी का इलाज कर रहे थे। गौरतलब है कि बिन्नी को 20 नवंबर 2003 में पुणे के राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क से नंदन कानन लाया गया था। उस समय वह 25 साल की थी। एक ओरांगुटान की औसत आयु 45 वर्ष होती है और मूलतः ये इंडोनेशिया और मलेशिया में पाए जाते हैं। मौजूदा समय में ये केवल बोर्निया और सुमात्रा के घने जंगलों में पाए जाते हैं। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार, वनमानुष की तीन तरह की प्रजातियाँ होती हैं– बोर्नियन, सुमात्रन और तपनौली। बोर्नियन और सुमात्रन वनमानुषों के दिखने और व्यवहार में थोड़ा अंतर होता है।