‘संकल्प से सिद्धि’ मुहिम
चर्चा में क्यों?
जनजातीय मामले मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) के तहत भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ- ट्राइफेड (Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India- TRIFED) ने संकल्प से सिद्धि- गाँव एवं डिजिटल कनेक्ट मुहिम (Sankalp se Siddhi - Village and Digital Connect Drive) लॉन्च की है।
- इस मुहिम/अभियान/ड्राइव का मुख्य उद्देश्य इन गाँवों में वन धन विकास केंद्रों (VDVKs) को सक्रिय बनाना है।
प्रमुख बिंदु
संकल्प से सिद्धि मुहिम के विषय में:
- 100 दिनों (1 अप्रैल, 2021 से आरंभ) की इस मुहिम से 150 टीमें (ट्राइफेड एवं राज्य कार्यान्वयनकारी एजेंसियों/मेंटरिंग एजेंसियों/पाटनर्स से प्रत्येक क्षेत्र में 10) जुड़ेंगी। प्रत्येक टीम द्वारा 10 गाँवों का दौरा किया जाएगा।
- इस प्रकार अगले 100 दिनों में प्रत्येक क्षेत्र में 100 गाँवों तथा देश भर में 1500 गाँवों को कवर किया जाएगा।
- दौरा करने वाली टीमें स्थानों की भी पहचान करेंगी तथा वृहद् उद्यमों के रुप में ट्राइफूड (TRIFOOD) एवं स्फूर्ति (SFURTI) इकाइयों की क्लस्टरिंग हेतु संभावित वन धन विकास केंद्रों का चयन करेंगी।
- पारंपरिक उद्योगों के उन्नयन एवं पुनर्निर्माण के लिये कोष की योजना- स्फूर्ति (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries- SFURTI) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की एक योजना है।
- इस पहल के परिणामस्वरूप 1500 गाँवों में वन धन विकास केंद्रों के सक्रिय हो जाने के बाद अगले 12 महीनों के दौरान 200 करोड़ रुपए की बिक्री का लक्ष्य रखा गया है।
- टीमों द्वारा जनजातीय कारीगरों तथा अन्य समूहों की भी पहचान की जाएगी और उन्हें आपूर्तिकर्त्ता के रूप में पैनल में शामिल किया जाएगा, इसके परिणामस्वरूप ट्राइब्स इंडिया नेटवर्क (भौतिक विक्रय केंद्रों एवं tribesIndia.com दोनों) के ज़रिये बड़े बाज़ारों तक उनकी पहुँच सुलभ हो सकेगी।
TRIFED की अन्य सहभागिताएँ:
- गाँव एवं डिजिटल कनेक्ट पहल:
- इस पहल की शुरुआत यह सुनिश्चित करने के लिये की गई थी कि मौजूदा योजनाएँ और पहल आदिवासियों तक पहुँचती हैं अथवा नहीं। इसके तहत देश भर के क्षेत्रीय अधिकारियों ने उल्लेखनीय जनजातीय आबादी वाले चिह्नित गाँवों का दौरा किया तथा विभिन्न कार्यक्रमों एवं पहलों के कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण किया।
- आदिवासियों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करने हेतु योजनाएँ:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के ज़रिये गौण वन उपज (Minor Forest Produce- MFP) की मार्केटिंग हेतु तंत्र तथा MFP के लिये मूल्य शृंखला का विकास जैसी योजनाएँ वनोपज संग्रहकर्त्ताओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध कराती हैं।
- ये योजनाएँ जनजातियों के समक्ष आने वाली विभिन्न समस्याएँ जैसे- उपज के शीघ्र नष्ट होने की प्रकृति, धारण क्षमता की कमी, विपणन अवसंरचना का अभाव, बिचौलियों द्वारा शोषण आदि का समाधान करते हुए संसाधन आधार की निरंतरता सुनिश्चित करती हैं।
- टेक फॉर ट्राइबल्स:
- टेक फॉर ट्राइबल्स अर्थात् आदिवासियों हेतु तकनीक कार्यक्रम का उद्देश्य प्रधानमंत्री वन धन योजना (Pradhan Mantri Van Dhan Yojana- PMVDY) के तहत नामांकित वनोपज संग्रहकर्त्ताओं के क्षमता निर्माण एवं उद्यमिता कौशल संवर्द्धन के माध्यम से 5 करोड़ जनजातीय उद्यमियों को लाभ पहुँचाना है।
- वन धन विकास योजना जनजातीय मामले मंत्रालय तथा ट्राइफेड की एक पहल है। इसकी शुरुआत जनजातीय उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन के माध्यम से जनजातियों की आय में वृद्धि करने हेतु की गई है।
- यह कार्यक्रम जनजातीय उद्यमियों को गुणवत्ता प्रमाणपत्र युक्त विपणन उत्पादों के साथ अपना व्यवसाय चलाने हेतु सक्षम और सशक्त बनाएगा जिससे उनकी सफलता की उच्च दर सुनिश्चित होगी।
- टेक फॉर ट्राइबल्स अर्थात् आदिवासियों हेतु तकनीक कार्यक्रम का उद्देश्य प्रधानमंत्री वन धन योजना (Pradhan Mantri Van Dhan Yojana- PMVDY) के तहत नामांकित वनोपज संग्रहकर्त्ताओं के क्षमता निर्माण एवं उद्यमिता कौशल संवर्द्धन के माध्यम से 5 करोड़ जनजातीय उद्यमियों को लाभ पहुँचाना है।
- वन धन विकास केंद्र:
- वन धन विकास योजना के तहत ही वन धन विकास केंद्र उपलब्ध कराए गए हैं।
- वन धन विकास केंद्रों (VDVK) का उद्देश्य आदिवासियों को कौशल उन्नयन एवं क्षमता निर्माण हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना तथा प्राथमिक प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन सुविधाओं की स्थापना करना है।
- यहाँ आदिवासियों को प्रशिक्षित किया जाता है और फिर उन्हें वनों से एकत्रित उत्पादों में गुणों के संवर्द्धन हेतु कार्यशील पूंजी प्रदान की जाती है।
- ट्राइफूड (TRIFOOD) योजना:
- यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, जनजातीय मामलों के मंत्रालय और ट्राइफेड की एक संयुक्त पहल है। इस योजना के तहत गौण वन उपजों के गुणवत्ता संवर्द्धन हेतु प्रोत्साहन दिया जाता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
ला पेरॉस: बहुपक्षीय समुद्री अभ्यास
चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना के जहाज़ आईएनएस सतपुड़ा (INS Satpura) तथा पी 8I लॉन्ग रेंज मेरीटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट (P8I Long Range Maritime Patrol Aircraft) के साथ आईएनएस किल्तान (INS Kiltan) पहली बार बहुपक्षीय सामुद्रिक अभ्यास ला पेरॉस (La Perouse) में भाग ले रहे हैं, जिसका संचालन 5 से 7 अप्रैल, 2021 तक पूर्वी हिंद महासागर में किया जा रहा है।
- ला पेरॉस अभ्यास के बाद भारत-फ्राँस के नौसैनिक अभ्यास "वरुण" का आयोजन पश्चिमी हिंद महासागर में किया जाना निर्धारित है, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भी भाग लेगा।
प्रमुख बिंदु
ला पेरॉस के विषय में:
- इस संयुक्त अभ्यास की शुरुआत फ्राँस द्वारा वर्ष 2019 में की गई थी, जिसके प्रथम संस्करण में ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के जहाज़ शामिल हुए थे।
- इस अभ्यास का नाम 18वीं शताब्दी के फ्राँस नौसेना के एक खोजकर्त्ता के नाम पर रखा गया है।
- इस अभ्यास में भारत की भागीदारी ने फ्रांसीसी नेतृत्व वाले नौसैनिक अभ्यास में क्वाड (QUAD) देशों के प्रतिनिधित्व को पूरा कर दिया।
- क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है, जिसका उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के हितों की रक्षा करना तथा वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
- ला पेरॉस अभ्यास में सर्फेस वॉरफेयर, एंटी-एयर वॉरफेयर और एयर डिफेंस एक्सरसाइज़ेज़, वीपन फायरिंग एक्सरसाइज़ेज़, क्रॉस डेक फ्लाइंग ऑपरेशंस, सामरिक युद्धाभ्यास तथा समुद्र में ईंधन भरने जैसे जटिल एवं उन्नत कलात्मक नौसेना अभ्यास देखने को मिलेगा।
- यह अभ्यास इसमें शामिल पाँचों देशों को उच्च-स्तरीय नौसैनिक बलों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने, उनके कौशल को बढ़ाने और स्वतंत्र तथा खुले भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने का समान अवसर प्रदान करेगा।
भारत-प्रशांत क्षेत्र का नौसैनिक महत्त्व:
- यह क्षेत्र धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से स्वतंत्र, खुले, समावेशी और एक नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना के लिये बहुराष्ट्रीय गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा है, जो नौचालन की स्वतंत्रता तथा शांतिपूर्ण सहकारी उपयोग के समर्थन पर आधारित है।
- इसका लक्ष्य क्षेत्रीय समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान हेतु संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान तथा पालन करना है।
- क्वाड नौसेना ने हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) में लाइव फायर ड्रिल, खोज और बचाव (SAR) आदि के संचालन जैसे नौसैनिक अभ्यासों के माध्यम से यह दर्शाया है कि वह बहु-राष्ट्रीय नौसेना की शक्तियों के साथ मिलकर प्रभावी रूप में काम करने में सक्षम है।
- क्वाड सदस्य देशों की नौसेना ने नवंबर 2020 में मालाबार युद्धाभ्यास (Malabar Exercise) में भाग लिया था।
- दूसरी ओर चीन इन क्षेत्रों में समुद्री कानूनों का उल्लंघन करते हुए अपने समुद्रों (पीला सागर, पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर) के चारों ओर एक रक्षात्मक परिधि बनाने का प्रयास कर रहा है।
क्वाड+फ्राँस की प्रशांत महासागर संबंधी चिंताएँ:
- प्रशांत में द्वीपों का क्षेत्र उत्तर में हवाई से लेकर दक्षिण में टोंगा तक और पूर्व में ईस्टर द्वीप से लेकर पश्चिम में न्यू कैलेडोनिया तक फैला हुआ है।
- भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी हित को उसका इस क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा एकीकृत यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड (US Indo-Pacific Command) अच्छी तरह से चित्रित करता है।
- फ्राँस की न्यू कैलेडोनिया, फ्रेंच पोलिनेशिया, वालिस और फ्यूचूना में सीधी रणनीतिक तथा आर्थिक हिस्सेदारी है। फ्राँस प्रशांत समुदाय और प्रशांत क्षेत्रीय पर्यावरण कार्यक्रम (Pacific Community and the Secretariat of the Pacific Regional Environment Programme- SPREP) के सचिवालय का सदस्य है।
- जापान का यद्यपि चीन के साथ व्यापार संबंध है लेकिन सैन्य शक्ति के रूप में चीन के विकास पर हमेशा संदेह रहा है। जापानी जल और हवाई क्षेत्र के करीब चीन की मुखरता जापान के लिये चिंता का विषय है।
- भारतीय नौसेना समुद्र के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित नियमों (Rules of the Road) के अनुपालन को सुनिश्चित करने हेतु IOR पर हमेशा से एक सामरिक बढ़त बनाए हुए है।
- विश्व ने इसका सम्मान (जैसे कि भारत को IOR से गुज़रने वाले युद्धपोतों की सूचना देकर) किया है, लेकिन भारतीय नौसेना ने इस क्षेत्र में कई बार चीनी जहाज़ों और पनडुब्बियों को देखने एवं उनकी संदिग्ध गतिविधियों का दावा किया है।
भारत-फ्राँस के बीच होने वाले संयुक्त अभ्यास
- डेज़र्ट नाइट-21 और गरुड़ (वायु सेना अभ्यास)
- वरुण (नौसेना अभ्यास)
- शक्ति (सेना अभ्यास)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राष्ट्रीय समुद्री दिवस-2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में (5 अप्रैल को) पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा 58वांँ राष्ट्रीय समुद्री दिवस (National Maritime Day) मनाया गया।
- इस अवसर पर मेरीटाइम इंडिया विज़न-2030 (Maritime India Vision-2030) पर भी चर्चा की गई।
प्रमुख बिंदु:
5 अप्रैल, 1919 को मुंबई से लंदन की यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय फ्लैग मर्चेंट पोत (एम/एस सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी के स्वामित्व वाली) ‘एस. एस. लॉयल्टी’ (S.S LOYALTY) की पहली यात्रा की स्मृति में 58वाँ राष्ट्रीय समुद्री दिवस मनाया गया।
- राष्ट्रीय समुद्री दिवस के बारे में:
राष्ट्रीय समुद्री दिवस-2021:
- ‘कोविड-19 से आगे सतत् नौपरिवहन’ (Sustainable Shipping beyond Covid-19) थी।
महत्त्व:
- इसका आयोजन भारत के शिपिंग उद्योग को प्रोत्साहित करने हेतु किया जाता है। शिपिंग उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- वर्तमान में भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वॉल्यूम के संदर्भ में 90% और मूल्य के संदर्भ में 77% समुद्र के माध्यम से किया जाता है।
अन्य पहलें:
- सागरमाला पहल:
- सागरमाला कार्यक्रम (Sagarmala Programme) को वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था जिसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कंप्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
- प्रोजेक्ट उन्नति:
- वर्ष 2014 में जलमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रोजेक्ट उन्नति को शुरू किया गया जिसके तहत उपकरणों की दक्षता का अध्ययन और हर गतिविधि की जांँच की गई ताकि गलतियों की पहचान की जा सके।
- नीली अर्थव्यवस्था की नीति:
- नीति दस्तावेज़ राष्ट्रीय विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) पर प्रकाश डालता है जो भारत की अर्थव्यवस्था के समग्र विकास हेतु कई प्रमुख क्षेत्रों में नीतियों के निर्माण पर ज़ोर देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन में शामिल:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का भी सदस्य है।
- IMO संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है। यह एक वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
- राष्ट्रीय जलमार्ग:
- राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के अनुसार, 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग (National Waterways- NW) घोषित किया गया है।
- सागर-मंथन:
- राष्ट्रीय समुद्री डोमेन जागरूकता (NDMA) केंद्र’ की स्थापना की गई है।
- यह समुद्री सुरक्षा, खोज और बचाव क्षमताओं तथा सुरक्षा एवं समुद्री पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु एक सूचना प्रणाली है।
- शिप रिपेयर क्लस्टर:
- इन्हें वर्ष 2022 तक दोनों समुद्री तटों के साथ विकसित किया जाएगा।
- जहाज़ का पुनर्चक्रण:
- 'वेल्थ फ्रॉम वेस्ट' (Wealth from Waste) के सृजन हेतु घरेलू जहाज़ रिसाइक्लिंग उद्योग (Ship Recycling Industry) को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
- भारत ने जहाज़ रिसाइक्लिंग अधिनियम, 2019 (Recycling of Ships Act, 2019) को लागू किया है और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन पर सहमति व्यक्त की है।
- 'वेल्थ फ्रॉम वेस्ट' (Wealth from Waste) के सृजन हेतु घरेलू जहाज़ रिसाइक्लिंग उद्योग (Ship Recycling Industry) को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
मेरीटाइम इंडिया विज़न-2030
मेरीटाइम इंडिया विज़न-2030 के बारे में
- यह भारत के समुद्री क्षेत्र हेतु अगले दशक का व्यापक दृष्टिकोण है जिसे भारत के प्रधानमंत्री द्वारा मैरीटाइम इंडिया शिखर सम्मेलन 2021 (Maritime India Summit 2021) में जारी किया गया।
- यह सागरमाला पहल को आगे बढ़ाएगा और जलमार्ग को बढ़ावा देकर जहाज़ निर्माण उद्योग को गति प्रदान करेगा तथा भारत में क्रूज़ पर्यटन (Cruise Tourism) को प्रोत्साहित करेगा।
नीतिगत पहल और विकास परियोजनाएंँ:
- समुद्री विकास निधि:
- समुद्री क्षेत्र हेतु 25,000 करोड़ रुपए की निधि जिसमें केंद्र द्वारा 2,500 करोड़ रुपए की सहायता भी शामिल होगी, निम्न दर पर सात वर्ष के लिये उपलब्ध कराई जाएगी।
- पोर्ट नियामक प्राधिकरण:
- प्रमुख बड़े एवं छोटे बंदरगाहों की निगरानी हेतु नए भारतीय बंदरगाह अधिनियम के तहत (पुराने भारतीय बंदरगाह अधिनियम 1908 को बदलने के लिये) एक अखिल भारतीय बंदरगाह प्राधिकरण (Pan-India Port Authority) की स्थापना की जाएगी। इस प्राधिकरण द्वारा बंदरगाहों हेतु संस्थागत कवरेज में वृद्धि और निवेशकों का विश्वास बढ़ाने हेतु बंदरगाह क्षेत्र में संरचात्मक वृद्धि की जाएगी।
- पूर्वी जलमार्ग संपर्क परिवहन ग्रिड परियोजना:
- इस परियोजना का उद्देश्य बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्याँमार के साथ क्षेत्रीय संपर्क स्थापित करना है।
- तटीय विकास कोष:
- यह तटीय विकास निधि (RDF) के समर्थन से अंतर्देशीय जहाज़ों हेतु कम लागत वाले तथा दीर्घावधिक वित्तपोषण को बढ़ाने एवं टन भार टैक्स योजना (Tonnage Tax Scheme) जो कि महासागरों में उतरने वाले जहाज़ों और निकर्षण पोतों पर लागू है, को अंतर्देशीय जहाज़ों तक विस्तारित करने का आह्वान करती है ताकि ऐसे जहाज़ों की उपलब्धता में वृद्धि की जा सके।
- बंदरगाह शुल्कों का युक्तिकरण:
- शिप लाइनर (Ship Liners) द्वारा अधिरोपित सभी हिडन चार्जेज़ (Hidden Charges) को समाप्त करने में अधिक पारदर्शिता के साथ यह उन्हें अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाएगा।
- जल परिवहन को बढ़ावा देना:
- शहरी क्षेत्रों में विखंडन/विंसकुलन तथा शहरी परिवहन के वैकल्पिक साधन के रूप में जलमार्गों को विकसित करना।
स्रोत: पी.आई.बी.
वनाग्नि: एक गंभीर चिंता
चर्चा में क्यों?
भारत के कई राज्यों और वन्यजीव अभयारण्यों में वर्ष 2021 के आगमन के बाद से ही वनाग्नि की घटनाएँ देखी जा रही है।
प्रमुख बिंदु
वनाग्नि:
- इसे बुशफायर (Bushfire) या जंगल की आग भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।
- वनाग्नि को कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना जैसी मानवीय गतिविधियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।
- उच्च तापमान, हवा की गति और दिशा तथा मिट्टी एवं वातावरण में नमी आदि कारक वनाग्नि को और अधिक भीषण रूप धारण करने में मदद करते हैं।
वर्ष 2021 में वनाग्नि के उदाहरण:
- जनवरी में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू घाटी) और नगालैंड-मणिपुर सीमा (जुकू घाटी) क्षेत्र में लंबे समय तक वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।
- ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क में फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत के दौरान आग की एक बड़ी घटना घटित हुई।
- हाल ही में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिज़र्व और गुजरात में एशियाई शेरों तथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अभयारण्यों में भी वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।
भारत के जंगलों की वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता:
- भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI), देहरादून द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report), 2019 के अनुसार, वर्ष 2019 तक देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 21.67% (7,12,249 वर्ग किमी.) भाग की वन के रूप में पहचान की गई है।
- इसमें वनस्पति कवरेज कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.89% (95,027 वर्ग किमी.) है।
- पिछली आग की घटनाओं और रिकॉर्डों के आधार पर यह पाया गया कि पूर्वोत्तर तथा मध्य भारत के जंगल वनाग्नि के प्रति ज़्यादा सुभेद्य हैं।
- वनाग्नि से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जंगलों के रूप में असम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जंगलों की पहचान गई।
- अत्यधिक प्रवण श्रेणी के अंतर्गत बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
- MoEFCC की वर्ष 2020-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य ओडिशा के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़ और तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के वन क्षेत्र अत्यंत संभावित ’वन फायर हॉटस्पॉट’ में बदल रहे हैं।
- अत्यधिक प्रवण ’और‘ मध्यम प्रवण ’श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र कुल वन क्षेत्र का लगभग 26.2% हैं जो 1,72,374 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
वनाग्नि के कारण:
- वन की आग के कई प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन भारत में इसका प्रमुख कारण मानव गतिविधियाँ हैं।
- कई अध्ययन विश्व स्तर पर आग के बढ़ते मामलों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं, विशेष रूप से ब्राज़ील (अमेज़न) और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग को।
- वनाग्नि की लंबी अवधि, बढ़ती तीव्रता, उच्च आवृत्ति आदि को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।
- भारत में मार्च और अप्रैल के दौरान वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ घटित होती हैं क्योंकि यहाँ के जंगलों में इस समय सूखी लकडियाँ, पत्तियाँ, घास और खरपतवार जैसे आग को बढ़ावा देने वाले पदार्थ मौजूद होते हैं।
- इसके लिये उत्तराखंड में मिट्टी की नमी में कमी भी एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा रहा है। लगातार दो मॉनसून सीज़न ( वर्ष 2019 और 2020) में क्रमशः 18% और 20% तक औसत से कम वर्षा हुई है।
- वनों की अधिकांश आग मानव निर्मित होती हैं, कभी-कभी तो जान-बूझकर भी आग लगाई जाती है। उदाहरण के लिये ओडिशा में सिमलीपाल के जंगल में पिछले महीने भीषण आग की घटना देखी गई थी, जिसका कारण यह था कि यहाँ के स्थानीय लोगों ने महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिये ज़मीन साफ करने हेतु सूखी पत्तियों में आग लगा दी और यह आग जंगल में फैल गई।
वनाग्नि का प्रभाव:
- वनाग्नि से वन आवरण, मिट्टी की उर्वरता, पौधों के विकास, जीवों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
- आग कई हेक्टेयर जंगल को नष्ट कर देती है और राख को पीछे छोड़ देती है, जिससे यह क्षेत्र वनस्पति विकास के लिये प्रतिकूल हो जाता है।
- आग जानवरों के आवास को नष्ट कर देती है।
- मिट्टी की संरचना में परिवर्तन के साथ इसकी गुणवत्ता घट जाती है।
- मिट्टी की नमी और उर्वरता भी प्रभावित होती है।
- वनों का आकार सिकुड़ सकता है।
- आग से बचे हुए पेड़ अक्सर अस्त-व्यस्त रहते हैं और इनका विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।
वनों का महत्त्व:
- वन जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वन कार्बन सिंक के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
- एक पूर्ण विकसित वन किसी भी अन्य स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र की तुलना में अधिक कार्बन का संचय करता है।
- भारत में वनों के निकट बसे लगभग 1.70 लाख गाँवों (वर्ष 2011 की जनगणना) में कई करोड़ लोगों की आजीविका ईंधन, बाँस, चारा आदि के लिये इन पर निर्भर है।
वनाग्नि को कम करने के प्रयास:
- FSI ने वर्ष 2004 के बाद से सही समय पर जंगल की आग की निगरानी के लिये फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम (Forest Fire Alert System) विकसित किया।
- इस सिस्टम का जनवरी 2019 में उन्नत संस्करण लॉन्च किया गया जो अब नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारियों का उपयोग करता है।
- वनाग्नि को कम करने के प्रयासों में शामिल अन्य योजनाएँ हैं- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018 और वनाग्नि निवारण तथा प्रबंधन योजना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बाबू जगजीवन राम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की 113वीं जयंती मनाई गई।
- जगजीवन राम, जिन्हें बाबूजी के नाम से जाना जाता है, एक राष्ट्रीय नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय हेतु लड़ाई लड़ने वाले योद्धा, वंचित वर्गों के हिमायती तथा एक उत्कृष्ट सांसद थे।
प्रमुख बिंदु:
जन्म:
- जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को चंदवा, बिहार के एक दलित परिवार में हुआ था।
आरंभिक जीवन और शिक्षा:
- उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा आरा शहर से प्राप्त की जहाँ उन्होंने पहली बार भेदभाव का सामना किया।
- उन्हें ‘अछूत’ (Untouchable) माना जाता था जिसके चलते उन्हें एक अलग बर्तन से पानी पीना पड़ता था। जगजीवन राम ने उस घड़े/बर्तन को तोड़कर इसका विरोध किया। इसके बाद प्रधानाचार्य को स्कूल में अछूतों के लिये अलग से रखे गए पानी पीने के बर्तन को हटाना पड़ा।
- वर्ष 1925 में जगजीवन राम पंडित मदन मोहन मालवीय से मिले तथा उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुए। बाद में मालवीय जी के आमंत्रण पर वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) गए।
- विश्वविद्यालय में जगजीवन राम को भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस घटना ने उन्हें समाज के एक वर्ग के साथ इस प्रकार के सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ विरोध करने के लिये प्रेरित किया।
- इस तरह के अन्याय के विरोध में उन्होंने अनुसूचित जातियों को संगठित किया।
- BHU में कार्यकाल पूर्ण होने के बाद उन्होंने वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. की डिग्री हासिल की।
- जगजीवन राम ने कई बार रविदास सम्मेलन को आयोजित कर कलकत्ता (कोलकाता) के विभिन्न क्षेत्रों में गुरु रविदास जयंती मनाई थी।
स्वतंत्रता पूर्व योगदान
- वर्ष 1931 में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (कॉन्ग्रेस पार्टी) के सदस्य बन गए।
- उन्होंने वर्ष 1934-35 में अखिल भारतीय शोषित वर्ग लीग (All India Depressed Classes League) की नींव रखने में अहम योगदान दिया था। यह संगठन अछूतों को समानता का अधिकार दिलाने हेतु समर्पित था।
- वह सामाजिक समानता और शोषित वर्गों के लिये समान अधिकारों के प्रणेता थे।
- वर्ष 1935 में उन्होंने हिंदू महासभा के एक सत्र में प्रस्ताव रखा कि पीने के पानी के कुएँ और मंदिर अछूतों के लिये खुले रखे जाएँ।
- वर्ष 1935 में बाबूजी राँची में हैमोंड आयोग के समक्ष भी उपस्थित हुए और पहली बार दलितों के लिये मतदान के अधिकार की मांग की ।
- उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और इससे जुड़ी राजनीतिक गतिविधियों के लिये 1940 के दशक में उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा।
स्वतंत्रता पश्चात् योगदान:
- बाबू जगजीवन राम वर्ष 1946 में जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे युवा मंत्री बने।
- वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री थे जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
- स्वतंत्रता के बाद उन्होंने 1952 तक श्रम विभाग का संचालन किया। इसके बाद उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में संचार विभाग (1952–56), परिवहन और रेलवे (1956–62) तथा परिवहन और संचार (1962–63) मंत्री के पदों पर कार्य किया ।
- उन्होंने 1967-70 के मध्य खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया तथा 1970 में उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया।
- हालाँकि उन्होंने आपातकाल के दौरान (1975-77) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समर्थन किया किंतु वर्ष 1977 में कॉन्ग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी (नई पार्टी) में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने जनता पार्टी सरकार में भारत के उप प्रधानमंत्री (1977-79) के रूप में कार्य किया।
- वर्ष 1936-1986 (40 वर्ष) तक संसद में उनका निर्बाध प्रतिनिधित्व एक विश्व रिकॉर्ड है।
- उनके पास भारत में सबसे लंबे समय तक सेवारत कैबिनेट मंत्री (30 वर्ष) होने का भी रिकॉर्ड है।
मृत्यु :
- 6 जुलाई, 1986 को नई दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई।
- उनके दाह संस्कार स्थान को समता स्थल (समानता का स्थान) का नाम दिया गया और उनकी जयंती को समरस दिवस (समानता दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
स्रोत: पीआईबी
अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है।
- यह दिवस जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध एकजुटता का आह्वान करता है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- अक्तूबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
- 21 मार्च, 1960 को पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा नस्लभेदी कानून के खिलाफ किये जा रहे एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान आग लगा दी और 69 लोगों को मार डाला।
- रंगभेद
- यह एक नीति थी जिसने दक्षिण अफ्रीका के ‘श्वेत’ अल्पसंख्यकों और ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के बीच संबंधों को नियंत्रित किया।
- इस नीति ने ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के विरुद्ध नस्लीय अलगाव तथा राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव को मंज़ूरी दी।
- वर्ष 1966 में की गई इस दिवस की घोषणा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को समाप्त करने हेतु किये गए संघर्ष का प्रतीक है।
वर्ष 2021 की थीम
- ‘यूथ स्टैंडिंग अप अगेंस्ट रेसिज़्म’
महत्त्व
- मानवाधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त इस नस्लीय भेदभाव का मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है तथा यह सामाजिक सामंजस्य में बाधा उत्पन्न करता है।
नस्लवाद
परिचय
- नस्लवाद का आशय ऐसी धारणा से है, जिसमें यह माना जाता है कि मनुष्यों को ‘नस्ल’ नामक अलग और विशिष्ट जैविक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है; इस धारणा के मुताबिक, विरासत में मिली भौतिक विशेषताओं और व्यक्तित्व, बुद्धि, नैतिकता तथा अन्य सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक विशेषताओं के लक्षणों के बीच संबंध होता है और कुछ विशिष्ट ‘नस्लें’ अन्य की तुलना में बेहतर होती हैं।
- यह शब्द राजनीतिक, आर्थिक या कानूनी संस्थानों और प्रणालियों पर भी लागू होता है, जो ‘नस्ल’ के आधार पर भेदभाव करते हैं अथवा धन एवं आय, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, नागरिक अधिकारों तथा अन्य क्षेत्रों में नस्लीय असमानताओं को बढ़ावा देते हैं।
नोट
- प्रायः ज़ेनोफोबिया और नस्लवाद को एक समान माना जाता हैं, किंतु इनमें सबसे बड़ा अंतर यह है कि नस्लवाद में शारीरिक विशेषताओं के आधार पर भेदभाव किया जाता है, जबकि ज़ेनोफोबिया में इस धारणा के आधार पर भेदभाव किया जाता है कि कोई विदेशी है अथवा किसी अन्य समुदाय या राष्ट्र में उत्पन्न हुआ है।
- ‘ज़ेनोफोबिया’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘ज़ेनो’ से हुई है।
वर्तमान स्थिति
- इंटरनेट की एनोनिमिटी/गुमनामी ने नस्लवादी रूढ़ियों और गलत सूचनाओं के ऑनलाइन प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
- आँकड़ों की मानें तो महामारी के बाद से एशियाई लोगों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाली वेबसाइट्स पर जाने वाले लोगों की संख्या में 200 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- भारत और श्रीलंका में सोशल मीडिया ग्रुप और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने के लिये किया जा रहा है तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर वायरस फैलाने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है।
- नस्लीय भेदभाव का संरचनात्मक स्वरूप, जिसमें सूक्ष्म-आक्रामकता और अपमान आदि शामिल हैं, व्यापक स्तर पर हमारे समाज में प्रचलित है।
- नई तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग ने ‘टेक-नस्लवाद’ की अवधारणा को जन्म दिया है, क्योंकि इस प्रकार की तकनीक के माध्यम से किसी एक नस्लीय समुदाय के लोगों की पहचान कर उन्हें अनुचित रूप से लक्षित करने की संभावना काफी बढ़ गई है।
- पक्षपातपूर्ण व्यवहार और भेदभावपूर्ण कार्य, समाज में मौजूद असमानता को बढ़ाते हैं।
- ‘द लांसेट’ द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कोरोना वायरस महामारी के सामाजिक आयामों और उससे प्रभावित जातीय अल्पसंख्यकों की सुभेद्यता की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है।
नस्लवाद के विरुद्ध अन्य पहलें
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से नस्लवाद के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई इस संबंध में एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- यूनेस्को द्वारा गठित ‘समावेशी एवं सतत् शहरों का अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन’ शहरी स्तर पर नस्लवाद के विरुद्ध लड़ाई को और मज़बूत करने और इस संबंध में बेहतर प्रथाओं को अपनाने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- पेरिस स्थित यूनेस्को के मुख्यालय में कोरिया गणराज्य के साथ साझेदारी के माध्यम से 22 मार्च, 2021 को ‘ग्लोबल फोरम अगेंस्ट रेसिज़्म एंड डिस्क्रिमिनेशन’ की मेजबानी की गई थी।
- इस फोरम के दौरान नस्लवाद के विरुद्ध एक नई बहु-हितधारक भागीदारी शुरू करने के लिये शिक्षाविदों और शैक्षणिक भागीदारों समेत तमाम हितधारक एकत्रित हुए थे।
- जनवरी 2021 में विश्व आर्थिक मंच ने कार्यस्थल में नस्लीय और जातीय न्याय की व्यवस्था में सुधार के लिये प्रतिबद्ध संगठनों का एक गठबंधन शुरू किया था।
- ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन ने न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका बल्कि संपूर्ण विश्व में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध आक्रोश को जन्म दिया है। वैश्विक स्तर पर तमाम तरह के लोग नस्लीय भेदभाव की व्यापकता के विरुद्ध एकजुट हुए हैं।
भारत में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 29 ‘नस्ल’, ‘धर्म’ तथा ‘जाति’ के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A भी ’नस्ल’ को संदर्भित करती है।
- भारत ने वर्ष 1968 में ‘नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन’ (ICERD) की पुष्टि की थी।
आगे की राह
- अंतर-सांस्कृतिक संवाद का नवीनतम दृष्टिकोण युवाओं को किसी वर्ग विशिष्ट से संबंधित रूढ़ियों को समाप्त करने और उनमें सहिष्णुता बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
- नस्लवाद और जातिवाद से संबंधित भेदभाव की हालिया घटनाएँ संपूर्ण समाज को समानता के संबंध में विभिन्न पहलुओं को नए सिरे से सोचने पर मज़बूर करती हैं। नस्लवाद की समस्या को केवल सद्भाव अथवा सद्भावना के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिये नस्लवाद-विरोधी कार्रवाई की भी आवश्यकता होगी।
- इसके लिये सहिष्णुता, समानता के साथ ही भेदभाव विरोधी एक वैश्विक संस्कृति का निर्माण किया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के समक्ष चुनौतियाँ
चर्चा में क्यों?
बीते दिनों कुछ मामलों में यह देखा गया कि कई व्यक्तियों को न्यायिक हिरासत से रिहा होने से रोकने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act- NSA), 1980 का प्रयोग किया गया, यद्यपि न्यायालय द्वारा उन आरोपियों को ज़मानत दे दी गई थी।
- NSA, सरकार को किसी व्यक्ति विशिष्ट को फॉर्मल चार्ज (Formal Charge) और बिना सुनवाई के हिरासत में लेने का अधिकार प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु:
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के बारे में:
- NSA एक निवारक निरोध कानून है।
- निवारक निरोध के तहत भविष्य में किसी व्यक्ति को अपराध करने या अभियोजन से बचने से रोकने के लिये हिरासत में लिया जाना शामिल है।
- संविधान का अनुच्छेद 22 (3) (ब) राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था की स्थापना हेतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निवारक निरोध और प्रतिबंध की अनुमति प्रदान करता है।
- इसके अलावा अनुच्छेद 22 (4) में कहा गया है कि निवारक निरोध के तहत हिरासत में लिये जाने का प्रावधान करने वाले किसी भी कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखने का अधिकार नहीं दिया जाएगा:
- एक सलाहकार बोर्ड द्वारा विस्तारित निरोध हेतु पर्याप्त कारणों के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
- ऐसे व्यक्ति को संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिया जा सकता है।
- सरकार की शक्तियाँ:
- NSA किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करने से रोकने हेतु केंद्र या राज्य सरकार को उस व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार देता है।
- सरकार किसी व्यक्ति को आवश्यक आपूर्ति एवं सेवाओं के रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने के लिये उस पर NSA के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती है।
- कारावास की अवधि: किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने हिरासत में रखा जा सकता है लेकिन सरकार को मामले से संबंधित नवीन सबूत मिलने पर इस समयसीमा को बढ़ाया जा सकता है।
अधिनियम से संबंधित मुद्दे:
- यह एक प्रशासनिक आदेश है जो या तो डिविज़नल कमिश्नर या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) द्वारा पारित किया जाता है। यह विशिष्ट आरोपों के आधार पर या किसी विशेष कानून के उल्लंघन हेतु पुलिस द्वारा दिया गया निरोध आदेश (Detention Ordered) नहीं है।
- NSA को लागू करने वाली परिस्थितियाँ:
- अगर कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है, तो भी डीएम उसके खिलाफ NSA लागू कर सकता है।
- यदि किसी व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत दी गई है, तो उसे तुरंत NSA के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
- यदि व्यक्ति अदालत से बरी हो गया है, तो उस व्यक्ति को NSA के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
- संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-22 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिये जाने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना अनिवार्य है, जबकि NSA के तहत इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है, जो कि एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
- हिरासत में लिये गए व्यक्ति को आपराधिक न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
- आदेश पारित करने संबंधी सुरक्षा: निरोध संबंधी आदेश पारित करने वाले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के तहत किसी भी कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान की गई है, अधिनियम के मुताबिक, आदेश पारित करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी अभियोजन अथवा कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- न्यायालय ने माना है कि सामाजिक सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के मध्य एक नाजुक संतुलन के साथ NSA के तहत निवारक नज़रबंदी को सख्ती से बनाए रखना होगा।
- न्यायालय ने यह भी माना कि "इस संभावित खतरनाक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने हेतु निवारक निरोध के कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये" तथा इसके लिये "प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के साथ सावधानीपूर्वक अनुपालन" सुनिश्चित करना होगा।
अधिनियम के विरुद्ध सुरक्षा उपाय:
- NSA के तहत अनुच्छेद 22 (5) के तहत प्रक्रियात्मक सुरक्षा दी गई है, जिसके तहत हिरासत में लिये गए सभी व्यक्तियों को एक स्वतंत्र सलाहकार बोर्ड के समक्ष प्रभावी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दिया गया है।
- इस सलाहकार बोर्ड में तीन सदस्य होते हैं जिसमें बोर्ड का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
- हेबियस कार्पस (Habeas Corpus) की रिट भी NSA के तहत लोगों को हिरासत में लेने की अनियंत्रित राज्य शक्ति के खिलाफ संविधान के तहत गारंटीकृत सुरक्षा प्रदान करती है।