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डेली न्यूज़

  • 06 Mar, 2023
  • 20 min read
भारतीय राजनीति

अनुच्छेद 142

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 142, सर्वोच्च न्यायालय, उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2020, 'शक्तियों के पृथक्करण' का सिद्धांत।

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 142।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत फैसला सुनाया कि 10 वर्ष के अनुभव वाले वकील और पेशेवर राज्य उपभोक्ता आयोग एवं ज़िला मंचों के अध्यक्ष तथा सदस्य के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 101 के तहत उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2020 के प्रावधानों को रद्द करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें राज्य उपभोक्ता आयोगों एवं ज़िला मंचों के सदस्यों हेतु क्रमशः 20 वर्ष और 15 वर्ष का न्यूनतम पेशेवर अनुभव निर्धारित किया गया है।

न्यायालय का फैसला:

  • केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को उपभोक्ता संरक्षण (नियुक्ति हेतु योग्यता, भर्ती की विधि, नियुक्ति की प्रक्रिया, पद की अवधि, राज्य आयोग और ज़िला आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का इस्तीफा तथा हटाने) नियम, 2020 में संशोधन करना होगा ताकि राज्य आयोग और ज़िला मंचों के अध्यक्ष एवं सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिये क्रमशः 20 वर्ष और 15 वर्ष के बजाय 10 वर्ष के अनुभव का प्रावधान किया जा सके।
  • उपर्युक्त संशोधन किये जाने तक स्नातक की डिग्री वाले वकील और पेशेवर जिनके पास उपभोक्ता मामलों, कानून, सार्वजनिक मामलों, प्रशासन, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, उद्योग, वित्त, प्रबंधन, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य या चिकित्सा में 10 वर्षों का अनुभव है, राज्य उपभोक्ता आयोग और ज़िला मंचों के अध्यक्ष एवं सदस्य के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे।
  • न्यायालय ने उम्मीदवारों की पात्रता की जाँच करने के लिये लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा (Viva Voce) का सुझाव भी दिया।

अनुच्छेद 142 क्या है?

  • परिचय:
    • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है क्योंकि इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामलों में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हो।
  • रचनात्मक अनुप्रयोग:
    • अनुच्छेद 142 के विकास के शुरुआती वर्षों में आम जनता और वकीलों दोनों ने समाज के विभिन्न वंचित वर्गों को पूर्ण न्याय दिलाने या पर्यावरण की रक्षा करने के प्रयासों के लिये सर्वोच्च न्यायालय की सराहना की।
    • ताजमहल की सफाई और अनेक विचाराधीन कैदियों को न्याय दिलाने में इस अनुच्छेद का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • न्यायिक अतिरेक के मामले: Cases of Judicial Overreach:
    • हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णय हुए हैं जिनमें यह उन क्षेत्रों में प्रवेश कर रहा है जो लंबे समय से न्यायपालिका के लिये 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांत के कारण वर्जित थे, जो कि “संविधान का मूल संरचना” का हिस्सा है। ऐसा ही एक उदाहरण है:
      • राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के किनारे शराब बिक्री पर प्रतिबंध: केंद्र सरकार की अधिसूचना में राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की दुकान खोलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए इस प्रतिबंध को 500 मीटर की दूरी तक सीमित दिया है।
      • इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी राज्य सरकार की इस तरह की अधिसूचना के अभाव में न्यायालय ने प्रतिबंध को राज्य राजमार्गों तक बढ़ा दिया।
      • अनुच्छेद 142 को लागू करने के इस तरह के फैसलों ने न्यायालयों में निहित विवेकाधिकार की शक्ति को लेकर अनिश्चितता पैदा कर दी है, जहाँ व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की अनदेखी की जा रही है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निबंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक इसका अर्थ हो सकता है? (2019)

(a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
(b) भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता ।
(c) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपात घोषित कर सकता है।
(d) कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल, संघ विधानमंडल की सहमति के बिना विधि निर्मित नहीं कर सकते।

उत्तर: (b)

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


शासन व्यवस्था

वन प्रमाणन

प्रिलिम्स के लिये:

वन प्रमाणन, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, वन प्रबंधन परिषद।

मेन्स के लिये:

वन प्रमाणन और मानक।

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के साथ वनों की कटाई विश्व स्तर पर एक गंभीर रूप से संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जिससे वन-आधारित उत्पादों के प्रवेश और बिक्री को विनियमित करने हेतु वन प्रमाणन अनिवार्य हो गया है।

वन प्रमाणन:

  • आवश्यकता:
    • ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण हेतु वन बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं जो विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से उत्सर्जित होती है।
    • विश्व के अनेक देश ऐसे किसी भी उत्पाद के उपभोग से बचना चाहते हैं जो वनों की कटाई या अवैध कटाई का परिणाम हो।
    • नतीजतन, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने संबंधित बाज़ारों में वन-आधारित उत्पादों के प्रवेश और बिक्री को नियंत्रित करने वाले कानून पारित किये हैं, जिसके लिये वन प्रमाणन की आवश्यकता है।
  • वन स्वीकृति:
    • यह वन की निगरानी, लकड़ी और लुगदी उत्पादों तथा गैर-इमारती वन उत्पादों को पहचानने एवं चिह्नित करने का एक तंत्र है।
    • यह विभिन्न प्रकार के उचित मानदंडों के विपरीत सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से पर्यावरण प्रबंधन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने की एक प्रक्रिया है।
    • वनों और उन पर आधारित उत्पादों के सतत् प्रबंधन के लिये दो प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं:
      • फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) द्वारा विकसित
      • वन प्रमाणन समर्थन कार्यक्रम (PEFC) द्वारा विकसित
    • FSC प्रमाणीकरण अधिक महँगा होने के साथ-साथ लोकप्रिय भी है।
  • दो प्रकार के प्रमाणपत्र:
    • वन प्रबंधन (Forest management-FM) एवं अभिरक्षा की शृंखला (Chain of Custody- CoC)
      • CoC प्रमाणन का अभिप्राय प्रारंभिक दौर से लेकर बाज़ार आपूर्ति तक संपूर्ण शृंखला में लकड़ी, जैसे- वन उत्पाद की ट्रेसबिलिटी की गारंटी देना है।

fm-certification

  • भारत में वन प्रमाणन:
    • भारत में वन प्रमाणन उद्योग पिछले 15 वर्षों से कार्यरत है।
    • वर्तमान में केवल उत्तर प्रदेश में वन प्रमाणित हैं।
      • उत्तर प्रदेश वन निगम (UP Forest Corporation- UPFC) के 41 डिवीज़न वन प्रमाणन समर्थन कार्यक्रम (Programme for the Endorsement of Forest Certification-PEFC) द्वारा प्रमाणित हैं, जिसका अर्थ है कि PEFC द्वारा समर्थित मानकों के अनुसार उनका प्रबंधन किया जा रहा है।
      • कुछ अन्य राज्यों ने भी प्रमाणपत्र प्राप्त किये, लेकिन बाद में उन सभी ने सदस्यता वापस ले ली।
    • भारत में वन प्रमाणन अभी भी प्रारंभिक चरण में है, इसलिये देश वन प्रमाणन के लाभों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हो पाया है।

भारत के विशिष्ट मानक क्या हैं?

  • भारत केवल प्रसंस्कृत लकड़ी के निर्यात की अनुमति देता है, प्रकाष्ठ (Timber) की नहीं। वास्तव में भारतीय वनों से काटी गई लकड़ी आवास, फर्नीचर और अन्य उत्पादों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • भारत के वन प्रत्येक वर्ष लगभग 50 लाख क्यूबिक मीटर लकड़ी का योगदान करते हैं। लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों की लगभग 85% मांग वन क्षेत्र के बाहर के पेड़ों (Outside Forests- ToF) से पूरी होती है, जबकि लगभग 10% का आयात किया जाता है।
  • भारत की लकड़ी आयात लागत प्रतिवर्ष 50,000-60,000 करोड़ रुपए है।
  • चूँकि ToF इतना महत्त्वपूर्ण है कि उनके स्थायी प्रबंधन हेतु नए प्रमाणन मानक विकसित किये जा रहे हैं।
  • PEFC के पास पहले से ही TOF प्रमाणन/सर्टिफिकेशन है और वर्ष 2022 में FSC ने भारत-विशिष्ट मानकों को जारी किया जिसमें ToF प्रमाणन शामिल था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

सोशल प्रोटेक्शन फॉर चिल्ड्रेन: ILO-UNICEF

प्रिलिम्स के लिये:

सोशल प्रोटेक्शन फॉर चिल्ड्रेन, ILO, UNICEF, कोविड-19, गरीबी, SDG, बच्चों के लिये PM CARES।

मेन्स के लिये:

सोशल प्रोटेक्शन फॉर चिल्ड्रेन: ILO-UNICEF।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक है- “More than a billion reasons: The urgent need to build universal social protection for children”, जिसके अनुसार, 4 में से सिर्फ 1 बच्चा सामाजिक सुरक्षा द्वारा परिरक्षित है, जबकि शेष अन्य बच्चे गरीबी, बहिष्करण और बहुआयामी अभाव के शिकार हो जाते हैं।

सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता:

  • सामाजिक सुरक्षा एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है और गरीबी से मुक्त दुनिया हेतु एक पूर्व शर्त है।
  • यह दुनिया के सबसे कमज़ोर बच्चों को क्षमता प्राप्त करने में मदद देने का एक महत्त्वपूर्ण आधार भी है।
  • सामाजिक सुरक्षा भोजन, पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बढ़ाने में मदद करती है।
  • यह बाल श्रम और बाल विवाह को रोकने में भी मदद कर सकती है एवं लैंगिक असमानता तथा बहिष्कार में अंतर्निहित कारणों को भी दूर कर सकती है।
  • यह घरेलू आजीविका का समर्थन करते हुए तनाव और यहाँ तक कि घरेलू हिंसा को भी कम कर सकती है।
  • यह आर्थिक गरीबी को खत्म कर उस कलंक और बहिष्करण को भी कम कर सकती है जिसका सामना कई गरीब बच्चे करते हैं, साथ ही बचपन में महसूस की गई वंचना को "कम-से-कम" करने में मदद कर सकती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • समग्र परिदृश्य:
    • 0-18 वर्ष की आयु के 1.77 बिलियन बच्चों के लिये पारिवारिक नकद लाभ उपलब्ध नहीं है जो सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का एक मौलिक स्तंभ है।
    • वयस्कों की तुलना में बच्चों के अत्यधिक गरीबी में रहने की संभावना दोगुनी होती है।
      • लगभग 800 मिलियन बच्चे 3.20 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं और 1 बिलियन बच्चे बहु-आयामी गरीबी का सामना कर रहे हैं।
      • 0-15 वर्ष की आयु के केवल 26.4% बच्चों को सामाजिक सुरक्षा द्वारा परिरक्षित किया जा सका है, शेष 73.6% बच्चे गरीबी, बहिष्करण (Exclusion) एवं बहुआयामी अभावों में जी रहे हैं।
      • विश्व स्तर पर सभी 2.4 बिलियन बच्चों को स्वस्थ और खुश रहने के लिये सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज:
    • वर्ष 2016 से 2020 के मध्य विश्व के हर क्षेत्र में बाल और परिवार सामाजिक सुरक्षा कवरेज दर गिर गई या फिर स्थिर हो गई, जिससे कोई भी देश वर्ष 2030 तक पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा कवरेज के तहत सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता।
      • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में कवरेज लगभग 51% से घट कर 42% हो गया है।
      • कई अन्य क्षेत्रों में कवरेज या तो स्थिर है या इसमें कमी आई है।
  • प्रभाव:
    • अत्यधिक संकट के कारण बड़ी संख्या में बच्चों के गरीबी में होने की आशंका है, जिस वजह से सामाजिक सुरक्षा उपायों में तत्काल वृद्धि किये जाने की आवश्यकता होगी।
    • बच्चों के लिये सामाजिक सुरक्षा की कमी के तत्काल और दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं, इससे बाल श्रम एवं बाल विवाह जैसे अधिकारों के उल्लंघन की व्यापकता बढ़ जाती है, जिससे बच्चों की आकांक्षाओं तथा अवसरों में भी कमी आती है।
    • इसके अतिरिक्त इस अवास्तविक मानव क्षमता का सामान्य रूप से समुदाय, समाज और अर्थव्यवस्था पर अपरिहार्य प्रतिकूल तथा दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
  • सामजिक सुरक्षा का महत्त्व:
    • कोविड-19 महामारी से पूर्व वयस्कों की तुलना में बच्चों के अत्यधिक गरीबी में रहने की संभावना दोगुनी से अधिक थी।
    • एक अरब बच्चे गरीबी के कई रूपों का अनुभव करते हैं जिनकी भोजन, पानी, स्वच्छता, आवास, स्वास्थ्य देखभाल, स्कूली शिक्षा और अन्य आवश्यकताओं तक पहुँच की कमी है।
    • कोविड-19 महामारी ने संकट के समय में सामाजिक सुरक्षा के महत्त्व को प्रदर्शित किया।
    • विश्व की लगभग प्रत्येक सरकार ने बच्चों और परिवारों की मदद करने के लिए या तो मौजूदा कार्यक्रमों का तेज़ी से अनुकूलन किया या नई सामाजिक सुरक्षा पहल की शुरुआत की।
      • अनाथों तथा बच्चों की बाल सहायता अनुदान (सीएसजी) राशि बढ़ाने के लिये दक्षिण अफ्रीका ने वर्ष 2022 में एक कल्याणकारी योजना बाल सहायता अनुदान (सीएसजी) टॉप-अप कार्यक्रम की शुरुआत की।
      • राष्ट्रीय "पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन" योजना 10,793 पूर्ण अनाथों और 151,322 अर्द्ध-अनाथों के लिये उपायों का पैकेज है, जिसे 31 भारतीय राज्यों में अधिनियमित किया गया था। अब तक 4,302 बच्चे इस कार्यक्रम से लाभान्वित हुए हैं।

सुझाव:

  • सभी बच्चों के लिये सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की दिशा में कार्रवाई करना नीति निर्माताओं हेतु सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये, जिन्हें उन कार्यक्रमों में भी शामिल किया जाना चाहिये जो बाल गरीबी की समस्या के समाधान की गारंटी प्रदान करते हैं।
  • अधिकारियों को राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों के माध्यम से बाल लाभ प्रदान करने की भी सलाह दी जाती है जो परिवारों को महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं से जोड़ती हैं, जैसे गुणवत्ता वाली मुफ्त या सस्ती बाल-देखभाल।
  • घरेलू संसाधनों को जुटाकर बच्चों के लिये बजट आवंटन बढ़ाकर, माता-पिता एवं अभिभावकों हेतु सामाजिक सुरक्षा को मज़बूत करके और अच्छे काम एवं पर्याप्त कर्मचारी लाभ की गारंटी देकर योजनाओं के लिये स्थायी वित्तपोषण हासिल करने की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न.अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सम्मलेन 138 और 182 (2018) से संबंधित हैं:

(a) बाल श्रम
(b) वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिये कृषि प्रथाओं की अनुकूलता
(c) खाद्य कीमतों और खाद्य सुरक्षा का विनियमन
(d) कार्यस्थल पर लिंग समानता

उत्तर: (a)

स्रोत : डाउन टू अर्थ


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