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डेली न्यूज़

  • 06 Feb, 2020
  • 40 min read
भूगोल

जेबेल अली: एक नया प्राकृतिक गैस क्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये:

जेबेल अली प्राकृतिक गैस क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापारिक संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates- UAE) ने एक नया प्राकृतिक गैस क्षेत्र खोजे जाने की घोषणा की है।

मुख्य बिंदु:

  • इस प्राकृतिक गैस क्षेत्र की अनुमानित क्षमता 80 ट्रिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक फीट (Trillion Standard Cubic Feet) है।
  • यह एक सतही गैस स्रोत है।

अवस्थिति:

  • ‘जेबेल अली’ (Jebel Ali) नाम का जलाशय, दुबई और अबू धाबी अमीरात के बीच स्थित है।

अमीरात:

  • अमीरात एक ऐसे राजनैतिक क्षेत्र को कहते हैं जिस पर अमीर की उपाधि रखने वाला वंशानुगत तानाशाह शासन करता है।
  • अबू धाबी, अजमान, दुबई, फुजैराह, रास अल खैमाह, शारजाह और उम्म अल क्वाइन, नामक सात अमीरातों के महासंघ से संयुक्त अरब अमीरात का निर्माण हुआ है।
  • UAE द्वारा जारी आधिकारिक जानकारी के अनुसार, यह लगभग 5,000 वर्ग किलोमीटरके क्षेत्र में फैला है।

पिछले 15 वर्षों में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र:

  • ब्लूमबर्ग (Bloomberg) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘जेबेल अली’ (Jebel Ali) प्राकृतिक गैस क्षेत्र, वर्ष 2005 में खोजे गए तुर्कमेनिस्तान के गाल्किनिश (Galkynysh) क्षेत्र के बाद सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र है।
  • 80 ट्रिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक फीट अनुमानित क्षमता वाला यह जलाशय आकार के संदर्भ में मध्य-पूर्व का चौथा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र होगा।
  • मध्य-पूर्व में इससे बड़े तीन प्राकृतिक गैस क्षेत्र क्रमशः कतर स्थित उत्तरी मैदान (North Field) क्षेत्र, ईरान में दक्षिणी पारस (South Pars) और अबूधाबी में बाब क्षेत्र (Bab field) हैं।
  • कतरी और ईरानी क्षेत्र में भी प्राकृतिक गैस के क्षेत्र पाए जाते हैं।

विकास कार्ययोजना:

  • अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (The Abu Dhabi National Oil Company-ADNOC) और दुबई सप्लाई अथॉरिटी (Dubai Supply Authority-DUSUP) मिलकर इस सतही गैस परियोजना का विकास और निष्कर्षण करेंगे।
  • इस क्षेत्र से उत्पादित गैस की आपूर्ति DUSUP को दुबई की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये की जाएगी।

अन्य देशों पर निर्भरता में कमी:

  • इस खोज से UAE की कतर से बिजली के लिये गैस आपूर्ति पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है, कतर के साथ वर्ष 2017 से UAE के संबंधों में कड़वाहट देखी जा रही है।
  • वर्ष 2017 के बाद UAE उन चार देशों में से एक था जिसने कतर के साथ संबंध तोड़ लिये।
  • कतर पर आरोप था कि वह क्षेत्रीय आतंकी समूहों तथा ईरान की सहायता कर रहा है। इन्हीं कारणों को आधार बनाते हुए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (U.A.E), मिस्र तथा बहरीन ने कतर से सभी प्रकार के भौतिक व राजनीतिक संबंध तोड़ लिये।
  • संबंधों में कड़वाहट के बावजूद कतर ने डॉल्फिन पाइपलाइन के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात को गैस की आपूर्ति जारी रखी है

भारत-संयुक्त अरब अमीरात व्यापारिक संबंध:

  • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच पारंपरिक व्यापार मोती और मत्स्य के क्षेत्र में होता था परंतु संयुक्त अरब अमीरात में तेल की खोज के बाद व्यापारिक क्षेत्र में तेज़ी से बदलाव आया।
  • वर्ष 1962 में पहली बार भारत और अबू धाबी के बीच तेल व्यापार शुरू हुआ।
  • वर्ष 1971 में संयुक्त अरब अमीरात के एकीकृत इकाई के रूप में उभरने के साथ ही भारत के लिये निर्यात भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
  • 1970 के दशक में भारत-UAE व्यापार लगभग 180 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष था जो कि वर्तमान में लगभग 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष के आस-पास पहुँच गया है।
  • भारत ने वर्ष 2018-19 में संयुक्त अरब अमीरात से 17.49 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल का आयात किया।

भारत को लाभ:

  • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के सामरिक हित एक-दूसरे से जुड़े हैं, जिसका असर उनके रिश्तों पर दिख रहा है। ऐसी परियोजनाओं के विकास से UAE और भारत के बीच प्राकृतिक गैस के व्यापार में बढ़ोतरी होगी।
  • UAE भारत में विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ा रहा है और वैश्विक मुद्दों पर भी दोनों देशों के विचारों में समानता आ रही है।
  • इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन से UAE भारत के लिये प्राकृतिक गैस के आयातक देश के विकल्प के रूप में उभर कर सामने आएगा जिससे भारत की प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में रूस जैसे देशों पर निर्भरता कम हो सकेगी।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राम मंदिर के निर्माण के लिये ट्रस्ट

प्रीलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र

मेन्स के लिये:

ट्रस्ट के गठन से संबंधित मुद्दे, अनुच्छेद 142 और सर्वोच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राम मंदिर के निर्माण के लिये एक 15 सदस्यीय ट्रस्ट के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • राम मंदिर के निर्माण के लिये ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नाम से ट्रस्ट का गठन किया जाएगा।
  • केंद्र सरकार द्वारा इस ट्रस्ट में 15 सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है जिसमें एक ट्रस्टी अनिवार्य रूप से दलित जाति से होगा।
  • ध्यातव्य है कि 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में निर्णय देते हुए सरकार को मंदिर निर्माण हेतु ट्रस्ट के गठन का आदेश दिया था।

ट्रस्ट से संबंधित मुख्य बातें

  • आधिकारिक सूचना के अनुसार, मंदिर निर्माण के लिये लगभग 67 एकड़ भूमि ट्रस्‍ट को हस्‍तांतरित की जाएगी। साथ ही अयोध्‍या मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्देश के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड को 5 एकड़ भूमि दी जाएगी।
  • केंद्र सरकार ने मंदिर निर्माण के लिये ट्रस्ट को 1 रुपए का सांकेतिक अनुदान दिया है।
  • ट्रस्ट को राम मंदिर निर्माण और उसके रखरखाव के लिये धन जुटाने की पूरी छूट प्राप्त होगी तथा इसके गठन के बाद सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी।
  • ट्रस्ट को अपने क्रियाकलापों एवं उद्देश्यों में परिवर्तन संबंधी लगभग सभी अधिकार प्राप्त हैं किंतु ट्रस्ट की मौजूदा संरचना में बदलाव का अधिकार नहीं होगा।
  • इसके अतिरिक्त ट्रस्ट को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की गई है किंतु इसे अचल संपत्ति को बेचने का अधिकार नहीं होगा।

सदस्यों की नियुक्ति

  • ट्रस्ट के 9 सदस्यों के नाम ट्रस्ट के गठन के साथ ही निर्धारित कर दिये गए हैं, जबकि अन्य सदस्यों में एक-एक सदस्य को केंद्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा तथा अन्य दो सदस्यों को ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा चुना जाएगा।
  • अयोध्या के ज़िला मजिस्ट्रेट इस ट्रस्ट के पदेन सदस्य होंगे जो अन्य दो सदस्यों के चुनाव में भाग नहीं लेंगे।
  • एक अन्य पदेन सदस्य ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर कॉम्प्लेक्स के विकास व प्रशासनिक देखरेख के लिये बनने वाली कमेटी का अध्यक्ष होगा।
  • केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्य एक आईएएस अधिकारी होगा जो जॉइंट सेक्रेटरी से नीचे की रैंक का अधिकारी नहीं होना चाहिये। यह अधिकारी केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत होना चाहिये।
  • राज्य सरकार द्वारा नामित सदस्य भी आईएएस अधिकारी होगा और राज्य सरकार के तहत कार्यरत होगा। इसकी रैंक सेक्रेटरी से नीचे की नहीं होनी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार इस ट्रस्ट में एक सदस्य निर्मोही अखाड़ा से अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
  • अन्य सदस्यों का चयन ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा ही किया जाएगा।

track-temple

नियुक्ति के लिये अनिवार्य शर्त

  • ट्रस्ट के सभी सदस्यों का हिंदू धर्मावलंबी होना अनिवार्य है।

सदस्यता खत्म करने की शर्तें

  • सदस्यों को ट्रस्ट से केवल निम्नलिखित शर्तों के आधार पर ही बाहर किया जा सकता है:
    • सदस्य की मृत्यु हो जाने पर
    • इस्तीफा देने पर
    • पागल, दिवालिया, अपराधी या अयोग्य घोषित होने पर उसकी सदस्यता खत्म की जा सकती है।
    • किंतु ट्रस्ट में शामिल के परासरन को हटाने का अधिकार अन्य सदस्यों को नहीं होगा वे जीवनपर्यंत इस ट्रस्ट के सदस्य बने रहेंगे।
  • ट्रस्ट के हित में किसी सदस्य को हटाने का फैसला मतदान द्वारा दो-तिहाई बहुमत के आधार पर होगा।

ट्रस्ट के गठन का उद्देश्य

  • ट्रस्ट के गठन का मुख्य उद्देश्य मंदिर निर्माण एवं निर्माण के पश्चात् मंदिर की देखरेख करना है।

इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में केंद्र सरकार को अयोध्या अधिनियम, 1993 के अंतर्गत कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण के तहत मंदिर के निर्माण के अधिकार के साथ ट्रस्टियों के साथ-साथ ट्रस्ट या किसी अन्य उपयुक्त निकाय की स्थापना केलिये निर्देशित किया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 में निहित शक्तियों के आधार पर ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा के एक सदस्य की अनिवार्यता को निर्धारित किया है।
  • न्यायालय ने केंद्र सरकार को ट्रस्ट की संरचना, प्रबंधन, ट्रस्टियों की शक्तियाँ, मंदिर निर्माण एवं अन्य सभी आवश्यक, आकस्मिक और पूरक मामलों के संदर्भ में अनिवार्य प्रावधान करने का निर्देश दिया था।
  • इस ट्रस्ट को अन्य अधिग्रहीत भूमि के साथ-साथ आंतरिक और बाहरी प्रांगणों पर कब्ज़ा मिलेगा जिसे श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र द्वारा प्रबंधित और विकसित किया जाएगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गठबंधन

चर्चा में क्यों?

5 फरवरी, 2020 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने 27 राष्ट्रों के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गठबंधन (International Religious Freedom Alliance) के शुभारंभ की घोषणा की है, यह गठबंधन दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा और संरक्षण में एक सामूहिक दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयास करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • यह "समान विचारधारा वाले साझीदारों का एक गठबंधन है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता को सहेजते है और उसके लिये संघर्ष करते हैं।
  • इस गठबंधन में शामिल होने वाले प्रमुख देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, यूनाइटेड किंगडम, इज़रायल, यूक्रेन, नीदरलैंड और ग्रीस प्रमुख हैं।
  • सभी लोगों को उनके जीवन को उनके विवेकानुसार जीने का अधिकार देना, इसकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।
  • महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह सभी व्यक्तियों के विश्वास योग्य अधिकारों की रक्षा करेगा, जिसमें उन्हें विश्वास करने या नहीं करने की जो वह चाहें उसकी स्वतंत्रता प्रदान करेगा।
  • इस गठबंधन की लॉन्चिंग के दौरान भागीदार देशों को प्रौद्योगिकी और धार्मिक उत्पीड़न, निंदा और धर्म त्याग कानून, आदि जैसे मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिये।
  • हालाँकि अपने बाहरी रूप में यह एक रूढ़िवादी निकाय (Consensual Body) प्रतीत हो रहा है। परंतु अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस गठबंधन में शामिल होना किसी भी देश के लिये बाध्यकारी नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

मेन्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिये गए आदेश के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने 6 राज्यों के 14 थर्मल पावर प्लांटस (Thermal Power Plants) को बंद करने की चेतावनी दी है।

मुख्य बिंदु:

  • CPCB ने इन 14 थर्मल पॉवर प्लांट को यह चेतावनी सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 31 दिसंबर, 2019 की समयसीमा तक सीमित नहीं करने के संदर्भ में दी है।
  • इन थर्मल पॉवर प्लांट में हरियाणा के 5, पंजाब के 3, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के दो-दो संयत्र और तमिलनाडु का 1 संयत्र शामिल है।
  • इन 14 थर्मल पॉवर प्लांटस की कुल क्षमता लगभग 15 गीगावाट है।
  • थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा नियमों का अनुपालन नहीं करने के संबंध में अप्रैल 2017 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण में एक याचिका दायर की गई थी।

पृष्ठभूमि:

  • केंद्र सरकार ने देश के 166,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने वाले 440 थर्मल प्लांट्स से पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को सीमित करने के लिये दिसंबर 2022 तक का समय निर्धारित किया है।
  • दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित 11 प्लांट्स को 31 दिसंबर, 2019 तक उत्सर्जन को कम करने के लिये निर्देशों का पालन करना था क्योंकि इन संयत्रों के कारण न केवल दिल्ली शहर बल्कि गंगा के मैदानी क्षेत्र भी खराब वायु गुणवत्ता के शिकार हो रहे हैं।

CPCB का आदेश:

  • CPCB ने इन 14 प्लांट्स को इस महीने के अंत तक इस संबंध में जवाब देने के लिये कहा है कि उन्होंने मानदंडों का अनुपालन क्यों नहीं किया और उनके ऊपर कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिये?
  • CPCB द्वारा दिये गए आदेश के जवाब में इन थर्मल प्लांट्स के प्रबंधन ने फ्लू-गैस डिसल्फराइजे़शन तकनीक (Flu-Gas Desulphurisation Technology) अपनाने को दावा किया था हालाँकि कुछ प्लांट्स के प्रबंधन का कहना था कि अभी उन्हें इस तकनीक को अपनाने के लिये टैंडर जारी करवाने हैं।
  • इनमें से केवल एक ही थर्मल प्लांट वास्तव में SO2 उत्सर्जन को सीमित करने के लिये प्रौद्योगिकी को लागू कर पाया है।

अन्य बिंदु:

  • CPCB को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act, 1986) के प्रावधानों के तहत कठोर जुर्माना लगाने या इकाई को बंद करने की शक्ति है।
  • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (Centre for Science and Environment-CSE) के अनुमान के अनुसार, प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों से संबंधित मानदंडों को लागू करके वर्ष 2026-27 तक PM उत्सर्जन में लगभग 35%, NOx उत्सर्जन में लगभग 70% और SO2 उत्सर्जन को 85% से अधिक घटाया जा सकता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:

(Central Pollution Control Board):

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

आगे की राह:

CPCB द्वारा उठाए गए इस कदम के साथ-साथ भारत में वायु प्रदूषण सहित अन्य सभी प्रकार के प्रदूषणों से स्थायी तौर पर राहत प्रदान करने वाले वाले उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम केवल सरकार पर न छोड़कर इसमें प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सहयोग देना होगा क्योंकि बिना जन-सहयोग के इसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं है।

स्रोत- द हिंदू


कृषि

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

प्रीलिम्स के लिये:

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

मेन्स के लिये

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के उद्देश्य एवं लाभ तथा मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की उपयोगिता

चर्चा में क्यों?

PIB द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, उर्वरकों के उपयोग से मृदा में उपस्थित पोषक तत्त्वों में होने वाली कमी दूर करने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में शुरू की गई 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' (Soil Health Card scheme) के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • योजना के दूसरे चरण में बीते दो वर्षों में कृषि मंत्रालय ने किसानों को 11.69 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये हैं।
  • केंद्र सरकार द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण के पहले चरण (वर्ष 2015 से 2017) में 10.74 करोड़ कार्ड और दुसरे चरण (वर्ष 2017-2019) में 11.69 करोड़ कार्ड वितरित किये गए हैं।
  • इन कार्डों की सहायता से किसान अपने खेतों की मृदा के बेहतर स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिये पोषक तत्त्वों का उचित मात्रा में उपयोग करने के साथ ही मृदा की पोषक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
  • राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (National Productivity Council- NPC) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर सिफारिशों के तहत रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 8 से 10 प्रतिशत तक की कमी आई है, साथ ही उपज में 5-6 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है।
  • मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना हेतु इस योजना के तहत राज्यों के लिये अब तक 429 नई स्टेटिक लैब (Static Labs), 102 नई मोबाइल लैब (Mobile Labs), 8752 मिनी लैब (Mini Labs), 1562 ग्रामस्तरीय प्रयोगशालाओं की स्थापना और 800 मौजूदा प्रयोगशालाओं के सुदृढ़ीकरण को मंज़ूरी दी गई हैं।

योजना के बारे में

  • 19 फरवरी, 2015 को राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले के सूरतगढ़ में राष्ट्रव्यापी ‘राष्ट्रीय मृदा सेहत कार्ड’ योजना का शुभारंभ किया गया।
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश भर के किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किये जाने में राज्यों का सहयोग करना है।
  • इस योजना की थीम है: स्वस्थ धरा, खेत हरा।
  • इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण युवा एवं किसान जिनकी आयु 40 वर्ष तक है, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना एवं नमूना परीक्षण कर सकते हैं।
  • प्रयोगशाला स्थापित करने में 5 लाख रूपए तक का खर्च आता हैं, जिसका 75 प्रतिशत केंद्र एवं राज्य सरकार वहन करती है। स्वयं सहायता समूह, कृषक सहकारी समितियाँ, कृषक समूह या कृषक उत्पादक संगठनों के लिये भी यहीं प्रावधान है।
  • योजना के तहत मृदा की स्थिति का आकलन नियमित रूप से राज्य सरकारों द्वारा हर 2 वर्ष में किया जाता है, ताकि पोषक तत्त्वों की कमी की पहचान के साथ ही सुधार लागू हो सकें।

इस योजना के लक्ष्य और उद्देश्य निम्नानुसार हैं :

  • देश के सभी किसानों को प्रत्येक 3 वर्ष में मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना, ताकि उर्वरकों के इस्तेमाल में पोषक तत्त्वों की कमियों को पूरा करने का आधार प्राप्त हो सके।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के संपर्क में क्षमता निर्माण, कृषि विज्ञान के छात्रों को शामिल करके मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के क्रियाकलाप को सशक्त बनाना।
  • राज्यों में मृदा नमूनों को एकीकृत करने के लिये मानकीकृत प्रक्रियाओं के साथ मृदा उर्वरता संबंधी बाधाओं का पता लगाना और विश्लेषण करना तथा विभिन्न ज़िलों में तालुका/प्रखंड स्तरीय उर्वरक संबंधी सुझाव तैयार करना।
  • पोषक तत्त्वों का प्रभावकारी इस्तेमाल बढ़ाने के लिये विभिन्न ज़िलों में पोषण प्रबंधन आधारित मृदा परीक्षण सुविधा विकसित करना और उन्हें बढ़ावा देना।
  • पोषक प्रबंधन परंपराओं को बढ़ावा देने के लिये ज़िला और राज्यस्तरीय कर्मचारियों के साथ-साथ प्रगतिशील किसानों का क्षमता निर्माण करना।

आदर्श गाँवों का विकास नामक पायलेट प्रोजेक्ट

  • चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आदर्श गाँवों का विकास नामक पायलेट प्रोजेक्ट के अंतर्गत किसानों की सहभागिता से कृषि जोत आधारित मिट्टी के नमूनों के संग्रहण और परीक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन हेतु प्रत्येक कृषि जोत पर मिट्टी के नमूनों के एकत्रीकरण एवं विश्लेषण हेतु प्रत्येक ब्लॉक में एक-एक आदर्श गाँव का चयन किया गया है। इसके अंतर्गत किसानों को वर्ष 2019-20 में अब तक 13.53 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जा चुके हैं।

निष्कर्ष:

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना जहाँ एक ओर किसानों के लिये वरदान साबित हो रही है, वहीं ग्रामीण युवाओं के लिये यह रोज़गार का माध्यम भी बनी है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में उर्वरकों की फसलवार सिफारिशें मुहैया कराई जाती हैं और इसके साथ ही किसानों को यह भी बताया जाता है कि कृषि‍ भूमि की उर्वरा क्षमता को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है। इससे किसानों को अपनी भूमि की सेहत जानने तथा उर्वरकों के विवेकपूर्ण चयन में मदद मिलती है। मृदा यानि कृषि भूमि की सेहत और खाद के बारे में पर्याप्त जानकारी न होने के चलते किसान आम तौर पर नाइट्रोजन का अत्यधिक प्रयोग करते हैं, जो न सिर्फ कृषि उत्पादों की गुणवत्ता के लिये खतरनाक है बल्कि इससे भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा भी बढ़ जाती है। इससे पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के ज़रिये इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

स्रोत: PIB


आंतरिक सुरक्षा

सैन्य उपकरणों पर CAG की रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

CAG, भारतीय संसद

मेन्स के लिये:

CAG की रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे, सैन्य अनुसंधान एवं विकास से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद के समक्ष प्रस्तुत नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) की रिपोर्ट से पता चला है कि सियाचिन या अन्य ऊँचे क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को प्रदान किये जाने वाले उपकरण कम गुणवत्ता के हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • CAG की रिपोर्ट बजट सत्र के दौरान 3 फरवरी, 2020 को संसद के समक्ष प्रस्तुत की गई।
  • CAG की रिपोर्ट के अनुसार, सियाचिन सहित उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों के लिये विशेष कपड़े, राशन और आवास की गुणवत्ता में कमी पाई गई।

इस संदर्भ में CAG की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2017-18 की अवधि के दौरान खरीद के प्रावधान और प्रदर्शन पर CAG की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार,
    • अधिक ऊँचाई क्षेत्रों हेतु कपड़ों और उपकरणों की खरीद में देरी के कारण वर्तमान समय में आवश्यक कपड़ों और उपकरणों की भारी कमी दर्ज की गई है।
    • बर्फ में उपयोग होने वाले चश्मे की आपूर्ति में लगभग 62% से 98% की कमी देखी गई है।
    • सैनिकों को नवंबर 2015 से सितंबर 2016 तक बर्फीले क्षेत्रों में उपयोग होने वाले जूते उपलब्ध नहीं कराए गए थे और जिसके कारण उन्हें उपलब्ध जूतों की रीसाइक्लिंग का सहारा लेना पड़ा।
    • इसके अलावा फेस मास्क, जैकेट और स्लीपिंग बैग के पुराने मॉडल खरीदे जाने के कारण सैनिकों को बेहतर उत्पाद प्रदान नहीं किये जा सके।
    • सियाचिन या अन्य ऊँचे क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों को उनकी कैलोरी की मात्रा पूरी करने के लिये विशेष भोजन दिया जाता है किंतु विशेष भोजन की सप्लाई में कमी की वजह से जवानों को लगभग 82% तक कम कैलोरी वाला भोजन दिया जाता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा प्रयोगशाला (Defence Laboratory) द्वारा किये जाने वाले अनुसंधान और विकास के अभाव में आयात पर निरंतर निर्भरता बढ़ी है।
  • उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सैनिकों की रहने की स्थिति में सुधार के उद्देश्य से हाउसिंग प्रोजेक्ट को एक तदर्थ तरीके से निष्पादित किया गया था। इस संदर्भ में एक पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था जो कि असफल रहा।
  • CAG ने सरकार से भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (Indian National Defence University- INDU) की स्थापना में देरी किये जाने पर भी सवाल किया है, ध्यातव्य है कि वर्ष 1999 में कारगिल समीक्षा समिति ने इस विश्वविद्यालय की सिफारिश की थी। इसके निर्माण में देरी के कारण इसकी लागत लगभग 914% बढ़ चुकी है, गौरतलब है कि मई 2010 में इस प्रोजेक्ट की लागत 395 करोड़ रुपए थी जो संशोधित होकर दिसंबर 2017 में बढ़कर 4007.22 करोड़ रुपए हो गई है।

CAG की रिपोर्ट के मायने

  • चूँकि CAG सरकार के व्यय का लेखा परीक्षण करता है, इसलिये उसके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट सरकार की नीतियों की सफलता एवं विफलता की मुख्य संकेतक होती है।
  • सियाचीन एवं अन्य ऊँचे क्षेत्रों में सैनिकों को प्रदान की जाने वाली सामग्री और उपकरणों की मात्रा एवं गुणवत्ता में कमी इस क्षेत्र में सरकार की विफलता को प्रदर्शित करती है।

इस संदर्भ में सरकार के तर्क

  • थल सेना प्रमुख ने CAG की रिपोर्ट के संदर्भ में कहा है कि यह रिपोर्ट 2015-16 से 2017-18 की अवधि की है जिससे यह वर्तमान समय में सेना की स्थितियों का सही मूल्यांकन नहीं करती है, वर्तमान समय में सेना को प्रदान किये जाने वाले उपकरण बेहतर गुणवत्ता वाले हैं।
  • इसके अतिरिक्त सरकार ने इस संदर्भ में तर्क दिया है कि वर्ष 2017 में बर्फीले इलाकों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों और सामान की मांग में वृद्धि हुई है जिसके कारण इन क्षेत्रों में सैन्य उपकरणों में कमी दर्ज की गई।
  • इसके अतिरिक्त सरकार ने बजट में रक्षा व्यय में कमी को भी बर्फीले एवं ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सैन्य सामग्री एवं उपकरणों में कमी कारण माना है।

आगे की राह

  • सरकार को CAG की रिपोर्ट को ध्यान रखकर सैन्य सामग्रियों की मात्रा एवं गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिये।
  • भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय का निर्माण अतिशीघ्र किया जाना चाहिये ताकि सैन्य क्षेत्र में व्यापक अनुसंधानात्मक एवं विकासात्मक गतिविधियाँ सुनिश्चित की जा सकें।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 फरवरी, 2020

जयपुर को विश्व धरोहर स्थल का प्रमाणपत्र

हाल ही में यूनेस्‍को (UNESCO) की महानिदेशक ऑड्रे अज़ाउले ने ऐतिहासिक एलबर्ट हॉल में आयोजित एक समारोह में राजस्थान के शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल को जयपुर के लिये 'विश्व धरोहर स्थल' का प्रमाणपत्र प्रदान किया। ज्ञात हो कि अपनी प्रतिष्ठित स्थापत्य विरासत और जीवंत संस्कृति के लिये प्रसिद्ध जयपुर को बीते वर्ष (2019) जुलाई में विश्‍व धरोहर स्‍थल घोषित किया गया था। सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों को विश्व धरोहर या विरासत कहा जाता है। ये स्थल ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज़ से भी काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनके अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व को देखते हुए इनके सरंक्षण हेतु विशेष प्रयास किये जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्‍को ऐसे स्थलों को आधिकारिक तौर पर विश्व धरोहर स्थल की मान्यता प्रदान करती है। जुलाई 2019 में जयपुर को एक सांस्कृतिक स्थल के रूप में शामिल करने के साथ ही यूनेस्को के विश्‍व धरोहर स्थलों में भारत के स्थलों की कुल संख्या 38 हो गई थी। इसमें 30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक तथा 1 मिश्रित स्थल हैं। जयपुर को वर्ष 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय के संरक्षण में स्थापित किया गया था। वर्तमान में यह राजस्थान की राजधानी है।

राष्ट्रीय बागवानी मेला-2020

बंगलुरू स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान परिषद द्वारा 5 फरवरी से 8 फरवरी, 2020 तक राष्ट्रीय बागवानी मेला-2020 का आयोजन किया जा रहा है। इस मेले का उद्देश्य प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन तथा अन्य प्रदर्शनियों के माध्यम से बागवानी के नवाचारों के संदर्भ में जानकारी का आदान-प्रदान करना है। साथ ही इस मेले का उद्देश्य किसानों से परिचर्चा के लिये बागवानी क्षेत्र के विभिन्न सेवादाताओं जैसे- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विभिन्न संस्थान, राज्य कृषि विश्वविद्यालय, विकास विभाग, निजी उद्योग, वित्तीय संस्थाएं, गैर-सरकारी संगठन, कृषक उत्पादक संगठन और बाज़ार पदाधिकारियों को एक मंच पर लाना भी है। वर्ष 2020 का यह मेला ‘बागवानी : कृषि को उद्यम बनाती हुई’ थीम पर आधारित है। भारतीय बागवानी अनुसंधान परिषद (बंगलूरू) की स्थापना वर्ष 1967 में की गई थी। वर्तमान में यहाँ 54 प्रकार की बागवानी फसलों पर कार्य किया जा रहा है, जिसमें 13 फल, 26 सब्जियां, 10 पुष्प और 5 औषधीय फसलें शामिल हैं।

किर्क डगलस

हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता किर्क डगलस (Kirk Douglas) का 103 वर्ष की उम्र में कैलीफोर्निया में निधन हो गया। किर्क डगलस की प्रसिद्धि का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्होंने वर्ष 1940 से वर्ष 2000 के मध्य 6 दशक तक 90 से अधिक फिल्मों में काम किया था। किर्क डगलस को मुख्य रूप से ‘स्पार्टाक्स’ (Spartacus) नामक फिल्म में उनकी यादगार भूमिका के लिये जाना जाता है। डगलस का जन्म वर्ष 1916 में न्यूयार्क में हुआ था। डगलस ने हॉलिवुड के स्वर्ण युग में ख्याति प्राप्त की और 4 ऑस्कर पुरस्कार भी जीते।

अंतर्राष्ट्रीय गांधी पुरस्‍कार

राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 6 फरवरी 2020 को कुष्‍ठ रोग के खिलाफ किये गए प्रयासों के लिये डॉ एन.एस धर्मशक्‍तु को व्‍यक्तिगत श्रेणी तथा कुष्‍ठ रोग मिशन ट्रस्‍ट को संस्‍थागत श्रेणी में अंतर्राष्ट्रीय गांधी पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया है। कुष्ठ रोग दीर्घकालिक संक्रामक रोग है, जो मुख्यतः माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) के कारण होता है। संक्रमण के बाद औसतन पाँच साल की लंबी अवधि के पश्चात् रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि माइकोबैक्टेरियम लेप्री धीरे-धीरे बढ़ता है। यह मुख्यत: मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आँखों और शरीर के कुछ अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है। यह पुरस्कार महात्मा गांधी द्वारा कुष्ठ रोग से लड़ने में किये गए योगदान को देखते हुए उनके नाम पर दिया जाता है।


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