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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अनुच्छेद 142 और न्यायिक संयम की आवश्यकता

  • 18 May 2017
  • 9 min read

संदर्भ
पिछले कुछ समय से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए कई न्यायिक निर्णयों के पश्चात् पुनः अनुच्छेद 142 की सार्थकता का मुद्दा उभर आया है| 

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय का वह साधन है जिसके माध्यम से वह ऐसी महत्त्वपूर्ण नीतियों में परिवर्तन कर सकता है जो जनता को प्रभावित करती हैं|
  • दरअसल, जब अनुछेद 142 को संविधान में शामिल किया गया था तो इसे इसलिये वरीयता दी गई थी क्योंकि सभी का यह मानना था कि इससे देश के विभिन्न वंचित वर्गों अथवा पर्यावरण का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी|
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड मामले को भी अनुच्छेद 142 से संबंधित बताया था| यह मामला भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से जुड़ा हुआ है| इस मामले में न्यायालय ने यह महसूस किया कि गैस के रिसाव से पीड़ित हज़ारों लोगों के लिये मौज़ूदा कानून से अलग निर्णय देना होगा| इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर का मुआवज़ा दिलाए जाने के साथ न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि अभी पूर्ण न्याय नहीं हुआ है|
  • न्यायालय के अनुसार, सामान्य कानूनों में शामिल की गई सीमाएँ अथवा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत संवैधानिक शक्तियों के प्रतिबंध और सीमाओं के रूप में कार्य करते हैं| अपने इस कथन से सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं को संसद अथवा विधायिका द्वारा बनाए गए कानून से सर्वोपरि माना था|
  • संयोग से इसी तथ्य को बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ’ मामले में भी दोहराया गया| इस मामले में यह कहा गया कि इस अनुच्छेद का उपयोग मौज़ूदा कानून को प्रतिस्थापित करने के लिये नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर किया जा सकता है|
  • हालाँकि, हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने कई ऐसे निर्णय दिये हैं जिनमें यह अनुच्छेद उन क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप करता है जिन्हें न्यायालय द्वारा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के माध्यम से भुला दिया गया है| उल्लेखनीय है कि ‘शक्तियों के पृथक्करण’ का सिद्धांत भारतीय संविधान के मूल ढाँचे का एक भाग है|
  • वस्तुतः इन सभी न्यायिक निर्णयों ने अनुच्छेद 142 के विषय में एक अलग ही विचार दिया| इन मामलों में व्यक्तियों के मूल अधिकारों को नज़रंदाज़ किया गया था| दरअसल, यह पाया गया है कि न्यायालय किसी निश्चित मामले में केवल अपना निर्णय सुनाता है परन्तु वह उस निर्णय के दीर्घावधिक परिणामों से अनजान रहता है जिनके चलते उस व्यक्ति के मूल अधिकारों का भी उल्लंघन हो जाता है जो उस वक्त न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है|
  • यह सत्य है कि अनुच्छेद 142 को संविधान में इस उद्देश्य से शामिल किया गया था कि इससे जनसंख्या के एक बड़े हिस्से तथा वास्तव में राष्ट्र को लाभ प्राप्त होगा| इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना था कि इससे सभी वंचित वर्गों के दुःख दूर हो जाएंगे; परन्तु यह उचित समय है कि इस अनुच्छेद के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों पर भी गौर किया जाए| 

राज्य राजमार्गों के पास शराब की बिक्री पर प्रतिबंध

  • केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना में सरकार ने केवल राष्ट्रीय राजमार्गों से लगे हुए शराब के ठेकों को प्रतिबंधित कर दिया है| इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का ज़िक्र करते हुए राजमार्गों से 500 मीटर की दूरी तक स्थित शराब की दुकानों पर प्रतिबंध लगा दिया है| इसके अतिरिक्त, किसी भी राज्य की सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के आधार पर न्यायालय ने इस प्रतिबंध  का विस्तार राज्य के राजमार्गों तक भी कर दिया है| 
  • न्यायालय के इस आदेश के परिणामस्वरूप हज़ारों होटल, रेस्टोरेंट और शराब के ठेकों को बलपूर्वक बंद करवा दिया गया है या उनके द्वारा शराब बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है| अतः कई लोग रोज़गारविहीन हो गए हैं| यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में शराब पीकर गाड़ी चलाने से कई दुर्घटनाएँ होती हैं| 
  • न्यायालय के अनुसार, वर्ष 2015 में केवल 4.2% दुर्घटनाएँ शराब पीकर गाड़ी चलाने की वजह से हुई थीं, जबकि 44.2% दुर्घटनाओं का कारण वाहनों की तेज़ गति थी| सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शिक्षा का अधिकार एक मूल अधिकार है| हालाँकि अपने दिये गए आदेश (जिसमें न्यायालय ने राज्य राजमार्गों से लगी शराब की सभी दुकानों पर प्रतिबंध लगा दिया है) में उसने लाखों लोगों के रोज़गारों के छिन जाने की बात को नहीं माना है|

बाबरी मस्जिद विध्वंश मामला

  • सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एक आदेश पारित किया था जो कि इससे पूर्व तीन सदस्यों की खंडपीठ द्वारा दिये गए निर्णय के विपरीत था| बड़ी खंडपीठ के निर्णय के पश्चात भी न्यायालय ने दो सदस्यीय खंडपीठ के निर्णय को ही प्राथमिकता दी और इस सन्दर्भ में अनुच्छेद 142 का उल्लेख किया| वस्तुतः इसके तहत यह निर्देश दिया गया है कि यह परीक्षण अब बरेली की बजाय लखनऊ में किया जाएगा| 
  • हालाँकि, यह निर्णय इस कानून को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन चूँकि न्यायालय ने तीन सदस्यों की खंडपीठ का निर्णय मानने से इनकार कर दिया था अतः इस पर सवाल उठने शुरू हो गए| 

क्या है न्यायिक संयम?
न्यायिक संयम, न्यायिक हस्तक्षेप की एक संकल्पना है जो न्यायाधीशों को उनकी स्वयं की शक्ति को सीमित करने के लिये प्रेरित करती है| यह सुनिश्चित करती है कि न्यायाधीशों को तब तक नियमों में बदलाव नहीं करना चाहिये जब तक वे असंवैधानिक प्रतीत न हो क्योंकि असंवैधानिक कानून स्वयं ही विवाद का विषय बन जाते हैं|

क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 142?

  • जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि|
  • अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश सम्पूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है|
  • संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को सम्पूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं|

निष्कर्ष
अब समय आ चुका है जब सर्वोच्च न्यायालय को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि अनुच्छेद 142 का उपयोग वह किस प्रकार के मामलों में कर सकता है| इसके लिये दिशा-निर्देशों का विनियमन आवश्यक है| न्यायाधीश बेंजामिन कारडोजो के शब्दों में न्यायाधीश कोई आदर्श नहीं है कि उसके द्वारा लिये गए सभी निर्णयों को कानूनी प्रावधानों से भी सर्वोपरि माना जाए|

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