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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मृदा की गुणवत्ता का विश्लेषण करने के लिये तकनीक

  • 26 Sep 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ? 

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा खेतों में मृदा की गुणवत्ता का विश्लेषण करने के लिये एक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसके लिये वह आई.आई.टी. बॉम्बे के एक शोध प्रोजेक्ट के साथ इस कार्यक्रम को जोड़ना चाहता है। आई.आई.टी. बॉम्बे इस कार्य के लिये एक परिष्कृत इमेज़िंग तकनीक का प्रयोग करती है और मृदा के नमूने लिये बिना उसमें मौजूद पोषक तत्त्वों का चित्र बना सकती है।   

हाइपर स्पेक्ट्रल इमेज़िंग  

  • इस कार्य के जिस तकनीक का सहारा लिया जा रहा है उसे हाइपर स्पेक्ट्रल इमेज़िंग (Hyper spectral imaging) कहा जा रहा है। 
  • इस तकनीक में नैनोमीटर के स्तर पर किसी वस्तु के अत्यंत विस्तृत प्रतिबिंब का विश्लेषण किया जाता है और फिर इसके घटक तत्त्वों का पुनर्निर्माण किया जाता है।
  • इस कार्य में एल्गोरिदम, उपग्रह से ली गई छवियों, निम्न ऊँचाई से उड़ान भरने वाले विमानों या ड्रोनों से लिये गए चित्रों का उपयोग कर मृदा के तीन मुख्य पोषक तत्त्वों- नाइट्रोजन, पोटैशियम और फास्फोरस- तथा अन्य खनिजों के अनुपात का पता लगाया जा सकता है तथा इसके स्वास्थ्य को मापा जा सकता है।   

मृदा डेटाबेस 

  • वैज्ञानिकों की टीम एक मृदा डेटाबेस (Soil Database) बनाने की योजना पर कार्य कर रही है और अगले ढाई वर्ष में पूरे भारत में मृदा के नमूनों का डेटाबेस बनाने का कार्य पूरा हो जाएगा। परंतु इसके लिये उपग्रह आधारित चित्रों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में किसी भी भारतीय उपग्रह के पास सूक्ष्म स्तर पर रिजोल्यूशनयुक्त चित्र लेने की क्षमता नहीं है।  

मृदा के स्वास्थ्य की जाँच की आवश्यकता ?

  • उल्लेखनीय है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का योगदान लगभग 18 प्रतिशत है तथा हमारी जनसंख्या का बड़ा भाग अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है। 
  • ऐसे में मृदा की गुणवत्ता में गिरावट कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिये चिंता का विषय बन गई है।
  • इसके कारण कृषि संसाधनों का अधिकतम उपयोग नहीं हो पा रहा है। 
  • कृषि में उर्वरकों का असंतुलित उपयोग, जैविक तत्त्वों के इस्तेमाल में कमी के परिणामस्वरूप देश के कुछ भागों की मृदा में पोषक तत्त्वों  की कमी हुई है तथा मृदा की उर्वरता भी घटी है।
  • ‪इसी के मद्देनज़र माननीय प्रधानमंत्री जी‬ द्वारा 19 फरवरी, 2015 को राष्ट्रीय‬ ‪मृदा‬ ‪स्वास्थ्य‬ कार्ड‬ योजना का शुभारम्भ किया गया था। 
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड का इस्तेमाल मृदा की मौजूदा सेहत का आकलन करने में किया जाता है। 
  • फसलों से अधिक उपज लेने के लिये यह जानना आवश्यक हो जाता है कि मृदा में कौन-कौन से पोषक तत्त्व कितनी मात्रा में उपलब्‍ध हैं। इसके अलावा मृदा के स्वास्थ्य की जाँच की आवश्यकता निम्न कारणों से भी है, जैसे-

• फसल के अनुरूप जैविक खाद, उर्वरकों की मात्रा के निर्धारण के लिये।
• खेत की मृदा कौन-कौन सी फसलों के लिये उपयुक्‍त है, इसकी जानकारी के लिये।
• मृदा  की अम्‍लीयता तथा क्षारीयता का स्‍तर जानने के लिये।
• लक्षित उत्‍पादन प्राप्‍त करने एवं उर्वरकों की उपयोगिता क्षमता में वृद्धि के लिये।
• समस्‍याग्रस्‍त, अम्‍लीय, क्षारीय, ऊसर मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के लिये।

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