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डेली न्यूज़

  • 05 Mar, 2020
  • 57 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत का मत

प्रीलिम्स के लिये:

इज़राइल-फिलिस्तीन की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये:

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद को लेकर अपने रुख पर कायम रहते हुए संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के पक्ष में मतदान किया।

मुख्य बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के समाधान के लिये भारत को बड़ी भूमिका निभाने का आह्वान किया।
  • भारत ने इस मुद्दे पर अपना पारंपरिक रुख दोहराया है।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष की पृष्ठभूमि:

  • इज़राइल और फिलिस्तीन के मध्य संघर्ष का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1917 में उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिये ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया।
  • अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) के विचारार्थ प्रस्तुत किया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्यों की स्थापना करने के लिये एक विभाजन योजना (Partition Plan) प्रस्तुत की जिसे फिलिस्तीन में रह रहे अधिकांश यहूदियों ने स्वीकार कर लिया किंतु अरबों ने इस पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की।
  • वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इज़राइल की घोषणा कर दी और इज़राइल एक देश बन गया, इसके परिणामस्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध की समाप्ति पर इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • इसके पश्चात् दोनों देशों के मध्य संघर्ष और तेज़ होने लगा तथा वर्ष 1967 में प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ (Six-Day War) हुआ, जिसमें इज़राइली सेना ने गोलन हाइट्स, वेस्ट बैंक तथा पूर्वी येरुशलम को भी अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
  • वर्ष 1987 में मुस्लिम भाईचारे की मांग हेतु फिलिस्तीन में ‘हमास’ नाम से एक हिंसक संगठन का गठन किया गया। इसका गठन हिंसक जिहाद के माध्यम से फिलिस्तीन के प्रत्येक भाग पर मुस्लिम धर्म का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • समय के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के अधिगृहीत क्षेत्रों में तनाव व्याप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1987 में प्रथम इंतिफादा (Intifida) अथवा फिलिस्तीन विद्रोह हुआ, जो कि फिलिस्तीनी सैनिकों और इज़राइली सेना के मध्य एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत:

  • भारत ने आज़ादी के पश्चात् लंबे समय तक इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं रखे, जिससे यह स्पष्ट था कि भारत, फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता है, किंतु वर्ष 1992 में इज़राइल से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने और अब यह रणनीतिक संबंध में परिवर्तित हो गए हैं तथा अपने उच्च स्तर पर हैं।
  • दूसरी ओर भारत-फिलिस्तीन संबंध प्रारंभ से ही काफी घनिष्ठ रहे हैं तथा फिलिस्तीन की समस्याओं के प्रति भारत काफी संवेदनशील रहा है। फिलिस्तीन मुद्दे के साथ भारत की सहानुभूति और फिलिस्तीनियों के साथ मित्रता बनी रहे, यह सदैव ही भारतीय विदेश नीति का अभिन्न अंग रहा है।
  • ज्ञात हो कि वर्ष 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के विरुद्ध मतदान किया था।
  • भारत पहला गैर-अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलिस्तीनी जनता के एकमात्र और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता प्रदान की थी। साथ ही भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में शामिल था।
  • भारत ने फिलिस्तीन से संबंधित कई प्रस्तावों का समर्थन किया है, जिनमें सितंबर 2015 में सदस्य राज्यों के ध्वज की तरह अन्य प्रेक्षक राज्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र परिसर में फिलिस्तीनी ध्वज लगाने का भारत का समर्थन प्रमुख है।
  • फिलिस्तीन का समर्थन करने के अलावा भारत ने इज़राइल का भी काफी समर्थन किया है और दोनों देशों के साथ अपनी संतुलित नीति बरकरार रखी है।

आगे की राह:

इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिये वैश्विक समाज को एक साथ आने की ज़रूरत है किंतु इस मुद्दे के प्रति विभिन्न हितधारकों की अनिच्छा ने इसे और अधिक जटिल बना दिया है। आवश्यक है कि सभी हितधारक एक मंच पर उपस्थित होकर समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करें।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

गुजरात उच्च न्यायालय का नियम 151

प्रीलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार तथा न्यायिक दस्तावेज़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा दिये गए एक निर्णय के अनुसार, न्यायिक दस्तावेज़ जैसे कि निर्णय की कॉपी और याचिकाओं को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:

  • जस्टिस भानुमती, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने मुख्य सूचना आयुक्त बनाम गुजरात उच्च न्यायालय व अन्य के मामले में कहा कि न्यायालय के दस्तावेज़ों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के लिये न्यायालय के नियमों के तहत आवेदन किया जाना चाहिये।
  • पीठ ने नवंबर वर्ष 2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय के फैसले को आधार नहीं बनाया बल्कि उसने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2017 के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें अदालत ने एक याचिकाकर्त्ता को इस बात की जानकारी देने से इनकार कर दिया था कि उसकी याचिका क्यों खारिज की गई।
  • पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के नियम 151 की वैधता को बरकरार रखा।
  • इस नियम के अनुसार, निर्धारित कोर्ट फीस के साथ आवेदन दाखिल करने पर वादी को दस्तावेज़ों/निर्णयों आदि की प्रतियाँ प्राप्त करने का अधिकार है।
  • तृतीय पक्षों को सहायक रजिस्ट्रार के आदेश के बिना निर्णय तथा अन्य दस्तावेज़ों की प्रतियाँ नहीं दी जाएंगी एवं दस्तावेज़ों की मांग के उचित कारण से संतुष्ट होने पर प्रतियाँ प्राप्त करने की अनुमति दी जाएगी।
  • बॉम्बे, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और मद्रास उच्च न्यायालय में तीसरे पक्ष के लिये सूचना या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के समान प्रावधान हैं।

गुजरात उच्च न्यायालय का नियम 151:

  • यह नियम केवल न्यायालय के एक अधिकारी के आदेश के तहत किसी तीसरे पक्ष को या जो किसी मामले में पक्षकार नहीं है, के निर्णयों, आदेशों और वादों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने की अनुमति देता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005:

  • सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय:

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India-CJI) का कार्यालय सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है।
  • गोपनीयता का अधिकार एक महत्त्वपूर्ण पहलू है और भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय से जानकारी देने का निर्णय पारदर्शिता के साथ संतुलित होना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्चुअल करेंसी पर प्रतिबंध समाप्त

प्रीलिम्स के लिये

वर्चुअल करेंसी, न्यायालय का निर्देश

मेन्स के लिये:

वर्चुअल करेंसी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में वर्चुअल करेंसी (Virtual Currencies-VC) के व्यापार पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया है, जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अप्रैल 2018 में एक आदेश के माध्यम से अधिरोपित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय ने अपने आदेश में वर्चुअल करेंसी (VC) पर लगे प्रतिबंध को असंगत बताते हुए कहा कि RBI ने स्वयं वर्चुअल करेंसी (VC) के व्यापार के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव या नुकसान को स्पष्ट नहीं किया है।
  • ध्यातव्य है कि अप्रैल 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक परिपत्र जारी किया था, जिसके माध्यम से सभी बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर वर्चुअल करेंसी (जिसमें क्रिप्टोकरेंसी भी शामिल है) से संबंधित व्यापार सुविधाएँ प्रदान करने पर रोक लगा दी गई थीं।
  • RBI ने अपने आदेश के माध्यम से भारत में सभी वर्चुअल करेंसी के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके पश्चात् इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) ने RBI के इस आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी।

क्या था RBI का आदेश?

  • RBI ने 2018 के अपने आदेश में कहा था कि रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी इकाइयाँ वर्चुअल करेंसी में लेन-देन नहीं करेंगी तथा किसी व्यक्ति या इकाई को वर्चुअल करेंसी में लेन-देन के लिये भी सुविधा प्रदान नहीं करेंगी।
  • RBI ने आदेश में कहा था कि वर्चुअल करेंसी के व्यापार में शामिल सभी विनियमित संस्थाओं को परिपत्र की तारीख से तीन महीने के भीतर सभी कार्य समाप्त करने होंगे।

निर्णय के निहितार्थ

  • वर्चुअल करेंसी से संबंधित विशेषज्ञों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत किया है। हालाँकि यह विषय अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है, क्योंकि अभी विधायी कार्यवाही शेष है।
  • विदित हो कि सरकार ने बीते वर्ष क्रिप्टोकरेंसी प्रतिबंध एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा नियमन विधेयक, 2019 का मसौदा तैयार किया था। यह विधेयक क्रिप्टोकरेंसी के व्यापार को पूर्णतः प्रतिबंधित करता है।
  • जब तक क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंध करने वाले मसौदे को इसके मौजूदा स्वरूप से नहीं बदला जाएगा तब तक देश में क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से व्यापार को शुरू नहीं किया जा सकेगा।

वर्चुअल करेंसी का अर्थ

  • साधारण शब्दों में कहें तो वर्चुअल करेंसी एक प्रकार की डिजिटल मुद्रा होती है। ध्यातव्य है कि वर्चुअल करेंसी एक वैध मुद्रा नहीं होती है, जिसका अर्थ है कि यह देश के केंद्रीय बैंक (भारत की स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा समर्थित नहीं होती है।
  • क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) वर्चुअल करेंसी का एक रूप है जो क्रिप्टोग्राफी द्वारा संरक्षित है। क्रिप्टोग्राफी मूल रूप से एक ग्रीक शब्द है, जो 'गुप्त' और 'लिखावट' का मिला-जुला अर्थ रूप है। यह एक प्रकार का कूट-लेखन (Encode) है, जिसमें भेजे गए संदेश या जानकारी को सांकेतिक शब्दों में बदल दिया जाता है। इसे भेजने वाला या पाने वाला ही पढ़ सकता या खोल सकता है।
    • क्रिप्टोग्राफी का संबंध डेटा की सुरक्षा और उससे संबंधित विषयों, विशेषकर एनक्रिप्शन से होता है।
  • बिटकॉइन और एथेरम जैसी डिजिटल करेंसी ब्लॉकचेन तकनीक पर निर्भर करती हैं।

ब्लॉकचेन तकनीक

  • जिस प्रकार हज़ारों-लाखों कंप्यूटरों को आपस में जोड़कर इंटरनेट का आविष्कार हुआ, ठीक उसी प्रकार डेटा ब्लॉकों (आँकड़ों) की लंबी श्रृंखला को जोड़कर उसे ब्लॉकचेन नाम दिया गया है।
  • ब्लॉकचेन तकनीक में तीन अलग-अलग तकनीकों का समायोजन है, जिसमें इंटरनेट, पर्सनल 'की' (निजी कुंजी) की क्रिप्टोग्राफी अर्थात् जानकारी को गुप्त रखना और प्रोटोकॉल पर नियंत्रण रखना शामिल है।
  • ब्लॉकचेन एक ऐसी तकनीक है जिससे बिटकॉइन तथा अन्य क्रिप्टो-करेंसियों का संचालन होता है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक डिजिटल ‘सार्वजनिक बही-खाता’ (Public Ledger) है, जिसमें प्रत्येक लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज़ होता है।
  • ब्लॉकचेन में एक बार किसी भी लेन-देन के दर्ज होने पर इसे न तो वहाँ से हटाया जा सकता है और न ही इसमें संशोधन किया जा सकता है।
  • ब्लॉकचेन के कारण लेन-देन के लिये एक विश्वसनीय तीसरी पार्टी जैसे-बैंक की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • नेटवर्क से जुड़े उपकरणों (मुख्यतः कंप्यूटर की श्रृंखलाओं, जिन्हें नोड्स कहा जाता है) द्वारा सत्यापित होने के बाद इसके अंतर्गत किया गया प्रत्येक लेन-देन का विवरण बही-खाते में रिकॉर्ड होता है।

क्रिप्टोकरेंसी के लाभ

  • क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिये लेन-देन के दौरान छद्म नाम (Pseudonym) एवं पहचान बताई जाती है। ऐसे में अपनी निजता को लेकर अत्यधिक संवेदनशील व्यक्तियों को यह माध्यम सर्वाधिक उपयुक्त जान पड़ता है।
  • क्रिप्टोकरेंसी में लेन-देन संबंधी लागत अत्यंत ही कम होती है। घरेलू हो या अंतर्राष्ट्रीय किसी भी लेन-देन की लागत एक समान ही होती है।
  • क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिये होने वाले लेन-देन में ‘थर्ड-पार्टी सर्टिफिकेशन’ (Third Party Certification) की आवश्यकता नहीं होती। अतः धन एवं समय दोनों की बचत होती है।

क्रिप्टोकरेंसी के नुकसान

  • क्रिप्टोकरेंसी की संपूर्ण व्यवस्था ऑनलाइन होने के कारण इसकी सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है और इसके हैक होने का खतरा बना रहता है।
  • क्रिप्टोकरेंसी की सबसे बड़ी समस्या है इसका ऑनलाइन होना और यही कारण है कि क्रिप्टोकरेंसी को एक असुरक्षित मुद्रा माना जा रहा है।
  • गौरतलब है कि प्रत्येक बिटकॉइन लेन-देन के लिये लगभग 237 किलोवाट बिजली की खपत होती है और इससे प्रतिघंटा लगभग 92 किलो कार्बन उत्सर्जन होता है।

निष्कर्ष

मुद्रा के आविष्कार से पूर्व वस्तु विनिमय प्रणाली के ज़रिये वस्तुओं का लेन-देन किया जाता था किंतु जैसे-जैसे तकनीक उन्नत होती गई व्यापार के तरीकों में भी बदलाव आता गया। वर्चुअल करेंसी का लगातार बढ़ रहा प्रचलन 21वीं सदी के सबसे महत्त्वपूर्ण बदलावों में से एक है। न्यायालय के हालिया निर्देश से भारत ने भी इस ओर एक कदम बढ़ा दिया है। हालाँकि डिजिटल मुद्रा को लेकर अभी भी कई चिंताएँ मौजूद हैं, जिनका समाधान जल्द-से-जल्द किया जाया जाना आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रौद्योगिकी

एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया

प्रीलिम्स के लिये:

एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया,

मेन्स के लिये:

भारत में चाय का उत्पादन

चर्चा में क्यों?

प्रसिद्ध वैज्ञान पत्रिका ‘फ्रंटियर्स’ के एक लेख के अनुसार, चाय के पौधे से जुड़े एंडोफाइटिकैक्टिनो (Endophyticactino) बैक्टीरिया चाय के पौधों के विकास तथा कवकनाशी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया सामान्यत: स्वतंत्र रूप से अपना जीवन बिताते है, परंतु 46 विलगित बैक्टीरिया पर वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन में इन बैक्टीरियों को बिल्कुल अलग वातावरण में उपस्थित पाया गया। ये बैक्टीरिया चाय के पौधों में रोग उत्पन्न नहीं करते हैं तथा अपने जीवन-चक्र के लिये इन पौधों पर कम-से-कम निर्भर रहते है।
  • 46 विलगित बैक्टीरियों में से 21 ने कवक फाइटोपैथोजेन (Phytopathogens- पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले) के विकास को बाधित किया तथा कवक के विकास को रोकने में प्रभावी भूमिका प्रदर्शित की।
  • अधिकांश एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया ने कवकनाशी के रूप में कार्य किया जो चिटिनास (Chitinases) की उपस्थिति को दर्शाते हैं। चिटिनास विशेष प्रकार के एंजाइम हैं जो चिटिन के ग्लाइकोसिडिक बॉन्ड को तोड़ते हैं। चिटिन कवक की कोशिका भित्ति का एक घटक है।

शोध का महत्त्व:

  • एंडोफाइटिक एक्टिनोबैक्टीरिया का अनुप्रयोग चाय बागान में रासायनिक आगतों में कमी ला सकता है।
  • भविष्य में वाणिज्यिक चाय उत्पादन के विकास को बढ़ावा देने के लिये एंडोफाइटिक एक्टिनोबैक्टीरियल का परीक्षण किया जा सकता है।
  • यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि एंडोफाइटिकैक्टिनो बैक्टीरिया में बहु-वृद्धिकारक गुणों जैसे- IAA उत्पादन, (Indole Acetic Acid- राइजोस्फीयर बैक्टीरिया का कार्य) फॉस्फेट घुलनशीलता, सिड़ेरोफर उत्पादन (Siderophore- सूक्ष्मजीवों में आयरन को स्थानांतरण का कार्य) प्रदर्शित करने की क्षमता है। अत: इस बैक्टीरिया का उपयोग चाय के उत्पादन को बढ़ाने तथा सतत् प्रबंधन में किया जा सकता है।
  • यह शोध कार्य ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ (Institute of Advanced Study in Science and Technology- IASST) गुवाहाटी, द्वारा किया गया।
  • यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत स्थापित एक स्वायत्त संस्थान है।

भारत में चाय का उत्पादन:

  • चाय एक रोपण कृषि है जो पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग की जाती है। काली चाय की पत्तियाँ किण्वित होती हैं जबकि चाय की हरी पत्तियाँ अकिण्वित होती हैं। चाय की पत्तियों में कैफीन तथा टैनिन की प्रचुरता पाई जाती है।
  • यह उत्तरी चीन में पहाड़ी क्षेत्रों की देशज फसल है। यह उष्ण आर्द्र तथा उपोष्ण आर्द्र कटिबंधीय जलवायु वाले तरंगित (हलकी ढाल वाले) भागों पर अच्छे अपवाह वाली मिट्टी में बोई जाती है।
  • भारत में चाय की खेती वर्ष 1840 में असम की ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में प्रारंभ हुई जो आज भी देश का प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र है। बाद में इसकी कृषि पश्चिमी बंगाल के उपहिमालयी भागों; दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार में प्रारंभ की गई।
  • दक्षिण में चाय की खेती पश्चिमी घाट की नीलगिरि तथा इलायची की पहाड़ियों के निचले ढालों पर की जाती है।
  • भारत में असम तथा पश्चिम बंगाल चाय के अग्रणी उत्पादक राज्य हैं।

स्रोत: पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नए ग्रहों की खोज

प्रीलिम्स के लिये:

प्रकाश वर्ष, केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन

मेन्स के लिये:

गोल्डीलॉक ज़ोन के बारे में

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के खगोलविदों द्वारा 17 नए ग्रहों की खोज की गई है, जिनमें से एक पृथ्वी के समान रहने योग्य दुर्लभ ग्रह ‘KIC-7340288b’ भी शामिल हैI

मुख्य बिंदु:

  • इन ग्रहों की खोज राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration-NASA) की सेवानिवृत्त केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन (Kepler Space Telescope) के द्वारा की गई हैI
  • नासा के चार वर्षीय केप्लर मिशन द्वारा पारगमन विधि (Transit Method) के प्रयोग से लगभग दो लाख तारों का अध्ययन किया गया हैI
  • इन नए ग्रहों की खोज गोल्डीलॉक ज़ोन (Goldilock Zone) में की गई है जहाँ ग्रहों की चट्टानी सतह पर पानी की मौजूदगी का अनुमान भी लगाया जा रहा हैI
  • सबसे छोटा ग्रह पृथ्वी के आकार का दो- तिहाई है जो केप्लर द्वारा ज्ञात ग्रहों में अब तक का सबसे छोटा ग्रह भी हैI
  • अन्य ग्रहों का आकार पृथ्वी के आकार की तुलना में लगभग आठ गुना तक अधिक हैI

केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन-

  • नासा द्वारा इस दूरबीन को वर्ष 2008 में लाॅन्च किया गया थाI
  • इसका प्रयोग पृथ्वी के आकार के ग्रहों की खोज करने के उद्देश्य से किया गया I
  • केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन का नाम खगोलविद जोहान्स केपलर के नाम पर रखा गयाI
  • नासा द्वारा केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन को वर्ष 2009 में प्रयोग में लाया गया तथा अक्टूबर 2018 में इसे सेवानिवृत्त कर दिया गया हैI

पारगमन विधि-

  • एक तारे और पृथ्वी के बीच एक ग्रह के गुजरने को पारगमन (Transit) कहा जाता है।

प्रकाश वर्ष-

  • यह एक खगोलीय माप हैI
  • इसका प्रयोग अंतरिक्ष में तारों और ग्रहों के बीच की दूरी का आकलन करने के लिये किया जाता है।

KIC-7340288b:

  • खोजे गए ग्रहों में KIC-7340288b एक अत्यंत दुर्लभ ग्रह हैI
  • यह ग्रह पृथ्वी के आकार का लगभग डेढ गुना है जो सौर प्रणाली के अन्य ग्रहों की तरह ही छोटी-छोटी चट्टानों से मिलकर बना हैI
  • यह ग्रह पृथ्वी से एक हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित हैI
  • इस ग्रह का एक वर्ष की अवधि 143.3 दिनों के बराबर होती हैI
  • यह ग्रह 0.444 खगोलीय इकाइयों (Astronomical Units) में अपने तारे की परिक्रमा करता है।
  • सौर मंडल में इस ग्रह की कक्षा (Orbit) बुध ग्रह की कक्षा से बड़ी है।
  • पृथ्वी के समान ही यह सूर्य से लगभग एक तिहाई प्रकाश प्राप्त करता है।

स्रोत: द इकॉनोमिक टाइम


जैव विविधता और पर्यावरण

उर्वरकों द्वारा प्रदूषण

प्रीलिम्स के लिये:

फाॅस्फेटिक उर्वरक, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन

मेन्स के लिये:

उर्वरकों से पर्यावरण एवं मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

फॉस्फेटिक उर्वरकों (Phosphatic Fertilizers) के अत्यधिक प्रयोग से पंजाब के मालवा प्रांत में कैंसर से लोगों की मृत्यु का मामला सामने आया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2013 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre-BARC) ने मालवा क्षेत्र से उर्वरक और मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया था तथा भारी मात्रा में यूरेनियम की सांद्रता पाई गई।
  • आलू एवं धान के लिये फाॅस्फेटिक उर्वरकों की राष्ट्रीय औसत खपत क्रमशः 15-20 किलोग्राम प्रति एकड़ और 10 किलोग्राम प्रति एकड़ है वही पंजाब में आलू एवं धान के लिये इनकी खपत क्रमशः 200 किलोग्राम प्रति एकड़ और 75-100 किलोग्राम प्रति एकड़ है।

फाॅस्फेटिक उर्वरक:

  • फाॅस्फेटिक उर्वरकों को फॉस्फोरस पेंटाॅक्साइड (Phosphorus Pentoxide) (P2O5) के प्रतिशत के संदर्भ में व्यक्त किया जाता है तथा ये फाॅस्फोरस के मुख्य स्रोत हैं।
  • फाॅस्फोरस की गतिशीलता बहुत धीमी होती है।
  • उर्वरकों में भी विशेषतः फाॅस्फेटिक उर्वरक (DAP or Diammonium Phosphate) में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई।
  • BARC की रिपोर्ट के अनुसार, DAP में यूरेनियम की सांद्रता 91.77 प्रति मिलियन (ppm) के आसपास थी जो निर्धारित मानक से काफी ऊपर है।
  • कुल उर्वरक खपत 27 मिलियन टन है जिसमें से लगभग 20-25 प्रतिशत फॉस्फोरस और नाइट्रोजन आधारित पोषक तत्व अमेरिका, जॉर्डन, ईरान, ओमान, चीन, मोरक्को, इज़राइल, लिथौनिया और मिस्र के आयात पर निर्भर हैं।

यूरेनियम संबंधित मुद्दे:

  • ‘द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन’ (The United Nations Scientific Committee on the Effects of Atomic Radiation-UNSCEAR) के अनुसार, मिट्टी में सामान्य सांद्रता 300 mg/kg से 11.7mg/kg के बीच होनी चाहिये।
  • कुछ प्रकार की मिट्टी और चट्टानों में यूरेनियम की उच्च सान्द्रता मौजूद है, खासकर ग्रेनाइट में। यूरेनियम के सभी तीन समस्थानिकों (U-234, U-235, U-238) का अर्द्ध-जीवन काल 0.25 मिलियन वर्ष से 4.47 बिलियन वर्ष के बीच है जो उनकी सापेक्ष स्थिरता को भी दर्शाता है।
  • भारत में उर्वरक उद्योगों में यूरेनियम से संबंधित आयातित फॉस्फेटिक रॉक के परिशोधन हेतु सभी आवश्यक प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉल का पालन नहीं होता है वहीं दूसरी ओर अमेरिका और इज़राइल में उर्वरक उद्योग से संबंधित कच्चा माल को उपयोग से पहले पूरी तरह परिशोधित करते हैं। अतः इससे स्पष्ट है कि प्रक्रिया के महंगी होने के कारण उर्वरक उधोगों में इसका पालन नही किया जाता है।
  • वर्ष 2000 की शुरुआत से ही पंजाब के भू-जल में यूरेनियम का सम्मिश्रण एवं उपजाऊ मालवा क्षेत्र में औद्योगिक अपशिष्टों के साथ पाए जाने वाले यूरेनियम का उच्च स्तर एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है, क्योंकि यह भू-जल को प्रदूषित करता है।

द यूनाइटेड नेशंस साइंटिफिक कमेटी ऑन द इफेक्ट ऑफ एटॉमिक रेडिएशन (UNSCEAR):

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1955 में UNSCEAR की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में इसका मुख्य कार्य आयनीकरण विकिरण के संपर्क के स्तर और प्रभावों का आकलन करके रिपोर्ट तैयार करना है। दुनिया भर की सरकारें और संगठन विकिरण जोखिम का मूल्यांकन तथा सुरक्षात्मक उपायों हेतु वैज्ञानिक आधार के रूप में इस समिति के अनुमानों पर भरोसा करते हैं।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र:

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत की प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है एवं इसकी स्थापना 19 दिसंबर,1945 को की गई थी।
  • यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान केंद्र है जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिये व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के माध्यम से विदयुत उत्पादन करना है।
  • 15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया तथा 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई।

आगे की राह:

  • भारत में उत्पादित उर्वरकों में यूरेनियम की मात्रा के बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा दिशा-निर्देश या स्वीकार्य मानक स्थापित करने चाहिये एवं भू-जल में यूरेनियम की स्वीकार्य सीमा को निर्धारित करना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण

प्रीलिम्स के लिये

ई-कचरा

मेन्स के लिये:

ई-कचरा और उसके पुनर्नवीनीकरण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

राज्यसभा में दिये गए विवरण के अनुसार, वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में पुनर्नवीनीकृत इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) की मात्रा दोगुने से भी अधिक हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • वित्तीय वर्ष 2017-2018 में 244 उत्पादकों के बिक्री आँकड़ों के आधार पर बिजली एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के ई-कचरे (E-Waste) की अनुमानित मात्रा 7,08,445 टन थी जिसमें से 69,414 टन का पुनर्नवीनीकरण किया गया था।
  • जबकि वित्तीय वर्ष 2018-2019 में 1,168 कंपनियों के बिक्री आँकड़ों के आधार पर लगभग 7,71,215 टन ई-कचरे का उत्पादन हुआ, जिसमें से 1,64,663 टन ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण किया गया।
  • इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2017-2018 में ई-कचरे की पुनर्नवीनीकरण दर 10 प्रतिशत थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में इसकी पुनर्नवीनीकरण दर 20 प्रतिशत थी।

क्या है ई-कचरा?

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, CFL जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम दैनिक रूप से प्रयोग में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके निष्क्रिय हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, इसके साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।

भारत में ई-कचरा

  • सरकार द्वारा उपलब्ध किये गए आँकड़ों के अनुसार भारत में उत्पादित ई-कचरा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान से काफी कम है।
  • ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन टन ई-कचरे का उत्पन्न करता है तथा अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में यह 5वें स्थान पर है।
  • भारत के अधिकांश ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण देश के अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में ई-कचरे के पुनर्नवीनीकरण की स्थिति बिल्कुल अच्छी नहीं है।

आगे की राह

  • भारत में ई-कचरे के संबंध में कई नियम कानून लागू किये गए हैं, जिनका स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल रहा है। किंतु ई-कचरे के पुनर्नवीनीकरण को लेकर अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
  • आवश्यक है कि इस संबंध में निर्मित विभिन्न कानूनों को सही ढंग से लागू किया जाए, ताकि ई-कचरे के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को समाप्त किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इंडिया फार्मा एंड इंडिया मेडिकल डिवाइस, 2020 सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

इंडिया फार्मा, 2020 सम्मेलन, इंडिया मेडिकल डिवाइस, 2020 सम्मेलन, FICCI

मेन्स के लिये:

फार्मास्यूटिकल उद्योग से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का औषध विभाग, भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (The Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) के साथ मिलकर गुजरात के गांधी नगर में 5 मार्च से 7 मार्च, 2020 तक ‘इंडिया फार्मा 2020’ एवं ‘इंडिया मेडिकल डिवाइस 2020’ सम्मेलन और प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • यह सम्मेलन 5वाँ संस्करण है तथा गुजरात राज्य में इस सम्मेलन का आयोजन पहली बार किया जा रहा है।

फिक्की (FICCI):

  • भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ, फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) भारत के व्यापारिक संगठनों का संघ है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1927 में महात्मा गांधी की सलाह पर घनश्याम दास बिड़ला एवं पुरुषोत्तम ठक्कर द्वारा की गई थी।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

कार्यक्रम की विषय:

  • इस कार्यक्रम का विषय है "इंडिया फार्मा: वहनीय एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तथा भारत में चिकित्सीय उपकरण की चुनौतियाँ: सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये वहनीय ज़िम्मेदार तथा गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा उपकरणों को बढ़ावा देना है।"

लक्ष्य (Aims):

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की लागत में कमी लाने के लिये नवाचारों को प्रोत्साहित करना तथा चिकित्सा उपकरण क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों (केंद्र एवं राज्य सरकारें, प्रमुख व्यापारिक नेतृत्वकर्त्ता, उद्योग के शीर्ष अधिकारी, शिक्षाविद, आदि) को साथ लाने के लिये एक मंच प्रदान करना है।

उद्देश्य (Objective):

  • इस सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़, हेल्थ डायग्नोस्टिक्स, हॉस्पिटल और सर्जिकल उपकरणों आदि के विनिर्माण में उपभोक्ता केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
  • इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी का विकास एवं विनिर्माण क्षेत्र के आधार को सशक्त बनाने वाली पारिस्थितिकी निर्माण की दिशा में विचार-विमर्श करना।

भारतीय फार्मा क्षेत्र:

  • वर्ष 2017 मेंफार्मास्यूटिकल क्षेत्र का मूल्य 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • जैव फार्मास्यूटिकल्स, जैव सेवा, जैव कृषि, जैव उद्योग और जैव सूचना विज्ञान से युक्त भारत का जैव प्रौद्योगिकी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 30% की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच सकता है।
  • वित्त वर्ष 2018 में भारत का दवा निर्यात 17.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 19.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।

समस्याएँ और चुनौतियाँ:

  • शोध का अभाव:
    • वर्ष 2018 में भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश कंपनियों के सकल राजस्व का 8.5% हो गया है जो वित्त वर्ष 2012 में 5.3% के सापेक्ष अधिक है, लेकिन यह अमेरिकी फार्मा कंपनियों की तुलना में अभी भी कम है क्योंकि अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में 15–20% तक निवेश करती हैं।
  • नीतिगत समर्थन का अभाव:
    • भारत में सस्ती दरों पर जेनेरिक दवाओं के निर्माण तथा कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार करने हेतु देश के सभी राज्यों में छोटे पैमाने पर कच्चे माल की विनिर्माण इकाइयों/इनक्यूबेटरों की स्थापना, इनकी स्थापना को बढ़ावा देने के लिये अवसंरचना और स्वदेशी रूप से उत्पादित अच्छी गुणवत्ता के कच्चे माल का अभाव है।
  • कुशल श्रम का अभाव:
    • फार्मास्यूटिकल कंपनियों में कुशल श्रमशक्ति की कमी है।
  • चीन पर निर्भरता:
    • जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिये कच्चे माल की आपूर्ति हेतु भारतीय फार्मा उद्योग चीन पर निर्भर है।
  • नैदानिक परीक्षणों में अनैतिकता:
    • भ्रष्टाचार, परीक्षण की अल्प लागत, और दवा कंपनियों व चिकित्सकों की मिली भगत ने भारत में अनैतिक दवा परीक्षणों को अवसर दिया है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण क्षेत्र में 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिये फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में संशोधन को कैबिनेट ने मंज़ूरी प्रदान कर दी है।
  • मार्च 2018 में ‘ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drugs Controller General of India- DCGI) ने सहमति, अनुमोदन और अन्य जानकारी प्रदान करने के लिये एकल-खिड़की सुविधा शुरू करने की योजना की घोषणा की थी।

आगे की राह:

  • दवा नियामक प्रणाली को युक्तिसंगत बनाने, औषध क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने जैसी पहलों, उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के प्रावधानों, को लागू किया जाना चाहिये।
  • मानकों का उल्लंघन करने वाली फार्मास्यूटिकल कंपनियों पर अर्थदंड लगाने के साथ ही इनका लाइसेंस रद्द कर देना चाहिये तथा विनियमन कानूनों को सुदृढ़ कर विनियामक निकायों को प्रभावी बनाना चाहिये।

स्रोत: पीआईबी


आंतरिक सुरक्षा

इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड: 2019 रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड, ड्रग्स एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय, ट्रामाडोल औषधि, निर्यात पूर्व सूचना प्रणाली

मेन्स के लिये:

औषधि एवं संगठित अंतर्राष्ट्रीय अपराध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ (The United Nations Office of Drugs and Crime- UNODC) ने ‘इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड’ (International Narcotics Control Board- INCS) की वर्ष 2019 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।

मुख्य बिंदु:

  • UNODC में भारत ने लाइसेंस प्राप्त दवा एवं संबंधित कच्चे माल के विनिर्माण, आयात, तथा निर्यात संबंधी सांख्यिकीय रिपोर्ट को तय समय-सीमा में प्रस्तुत नहीं किया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत अवैध और लाइसेंस प्राप्त दवाओं के शीर्ष निर्माता होने के साथ ही इन दवाओं की तस्करी करने वाले शीर्ष देशों में से एक है।

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC):

  • UNODP संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक कार्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल ड्रग्स कंट्रोल प्रोग्राम (UNDCP) तथा संयुक्त राष्ट्र में अपराध निवारण और आपराधिक न्याय विभाग (Crime Prevention and Criminal Justice Division- CPCJD) के संयोजन में की गई थी।
  • इसकी स्थापना दवा नियंत्रण और अपराध निवारण कार्यालय (Office for Drug Control and Crime Prevention) के रूप में की गई थी। वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) कर दिया गया।
  • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।

इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (INCS):

  • इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (INCB) संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दवा नियंत्रण अभिसमयों के कार्यान्वयन के लिये स्वतंत्र एवं अर्द्ध-न्यायिक निगरानी निकाय है।
  • इसकी स्थापना नारकोटिक ड्रग्स कन्वेंशन, वर्ष 1961 के अनुसार वर्ष 1968 में की गई थी।
  • इसका सचिवालय ऑस्ट्रिया के वियना में स्थित है।

वैश्विक परिदृश्य:

  • फार्मास्यूटिकल ड्रग्स की बढ़ती तस्करी:
    • ड्रग ट्रैफिकर्स द्वारा अवैध दवाओं के बजाय फार्मास्यूटिकल दवाओं की तस्करी की जाती है, यथा- गांजा (Hashish), हेरोइन आदि, क्योंकि नियंत्रित फार्मास्यूटिकल दवाओं की तस्करी पर देशों द्वारा कम दंड लगाया जाता है।
  • फेनोबार्बिटल ड्रग (Phenobarbital Drug):
    • यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक व्यापार की जाने वाली वैधानिक मनःप्रभावी (Psychotropic) पदार्थों में से एक है, वर्ष 2018 में 161 से अधिक देशों में इसका आयात किया गया।
    • यह मिर्गी (Epilepsy- एक न्यूरोलॉजिकल विकार) के इलाज के लिये आवश्यक दवाओं की WHO की मॉडल सूची में शामिल है।
    • चीन फेनोबार्बिटल का अग्रणी विनिर्माता देश है, जिसके बाद क्रमशः भारत और हंगरी का स्थान हैं।
  • निर्यात पूर्व सूचना (Pre-Export Notification- PEN) का सीमित उपयोग:
    • यह देखा गया कि चीन, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने PEN ऑनलाइन प्रणाली का पालन नहीं किया।

PEN ऑनलाइन सिस्टम:

  • PEN प्रणाली को UNODC/INCB द्वारा विकसित किया गया है।
  • इसका उपयोग INCB सदस्य देशों द्वारा निर्यात-आयात की पूर्व सूचना देने तथा राष्ट्रीय स्तर पर सक्षम अधिकारियों को रसायन के बारे में सचेत करने के लिये किया जाता है।
  • यह सदस्य राज्यों के बीच अवैध रसायनों के शिपमेंट (निर्यात और आयात) संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये उन्हें सक्षम बनाता है।

राष्ट्रीय परिदृश्य:

  • फार्मास्यूटिकल ड्रग्स का डायवर्ज़न:
    • भारत में नियमित फार्मास्यूटिकल दवाओं यथा- इफेड्रिन (Ephedrine) और स्यूडोएफेड्रिन (Pseudoephedrine) आदि के वैध से अवैध मार्ग की ओर डायवर्ज़न में वृद्धि हुई है। इन दोनों दवाओं को भारत में 'नियंत्रित पदार्थ' (Controlled Substance) के रूप में अधिसूचित किया गया है।
    • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances- NDPS) अधिनियम, 1985 केंद्र सरकार को किसी भी पदार्थ को ‘नियंत्रित पदार्थ’ घोषित करने का अधिकार देता है।
  • ट्रामाडोल औषधि (Tramadol Drug):
    • विश्व स्तर पर वर्ष 2013-2017 के बीच ज़ब्त अधिकांश ट्रामाडोल औषधियों का उत्पादन भारत में हुआ था।
    • ट्रामाडोल, जिसे ‘अल्ट्राम’ (Ultram) ब्रांड नाम से जाना जाता है, का इस्तेमाल मध्यम से तीव्र दर्द निवारक के रूप में किया जाता है।

भारत और मादक पदार्थों की तस्करी का मुद्दा:

  • भारत की अवस्थिति:
    • भारत दुनिया के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों अर्थात् पश्चिम में ‘स्वर्णिम अर्द्धचंद्र’ (Golden Crescent- अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान) और पूर्व में ‘स्वर्णिम त्रिभुज’ (Golden Triangle- म्याँमार, लाओस और थाईलैंड) के बीच अवस्थित है।

Growing-areas

  • सामाजिक मुद्दा:
    • नशीली दवाओं का दुरुपयोग न केवल नशा करने वाले के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उनके समुदायों व उनके परिवारों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।

आगे की राह:

  • भारत को न केवल अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये अपितु नशीली दवाओं संबंधी घरेलू नियमों को भी कठोर बनाना चाहिये।
  • भारत को पड़ोसी देशों के साथ मिलकर इस समस्या के समाधान हेतु कार्य करना चाहिये, साथ ही व्यापक सीमा सुरक्षा प्रबंधन के उपायों को अपनाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 मार्च, 2020

गूगल क्लाउड क्षेत्र

गूगल ने वर्ष 2021 तक दिल्ली में भारत का अगला क्लाउड क्षेत्र खोलने की घोषणा की है। ध्यातव्य है कि यह भारत में गूगल का दूसरा क्लाउड क्षेत्र होगा, इससे पूर्व गूगल ने अपना पहला क्लाउड क्षेत्र वर्ष 2017 में मुंबई में खोला था। वर्तमान में एशिया प्रशांत क्षेत्र में गूगल के कुल 22 क्लाउड क्षेत्र हैं। गूगल क्लाउड सेवाएँ दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, एशिया, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में उपलब्ध हैं। गूगल क्लाउड क्षेत्रों में डाटा संग्रहीत किया जाता है। ये डेटा स्टोरेज क्षेत्र कई कंपनियों को अपना डेटा स्टोर करने और सुरक्षित रखने में मदद करते हैं। भारत में 5 करोड़ से अधिक छोटे और मझोले उद्योग (SMB) हैं, जो भारत को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाता है। अतः भारत में गूगल के लिये अच्छा बाज़ार मौजूद है।

शुद्धानंद महात्रो

बंग्लादेश बौद्ध क्रिस्‍टी प्रचार संघ के प्रमुख संघनायक शुद्धानंद महात्रो का 88 वर्ष की उम्र में ढाका में निधन हो गया है। शुद्धानंद महात्रो बंग्लादेश में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के प्रमुख थे। वे अनेक सामाजिक उत्‍थान कार्यक्रमों और अपने अनाथालय धर्मराजिका बौद्ध मठ के माध्‍यम से 350 से अधिक बच्‍चों का पालन-पोषण कर रहे थे। बंग्लादेश सरकार ने वर्ष 2012 में उन्‍हें एकुशे पदक से सम्‍मानित किया। 2011 की जनसंख्‍या के आँकड़ों के अनुसार, बंग्लादेश में बौद्ध अनुयायियों की संख्‍या कुल जनसंख्‍या का 0.6 प्रतिशत है। बंग्लादेश में अधिकांश बौद्ध अनुयायी चटगाँव और उसके आसपास रहते हैं।

सुनील जोशी

भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (BCCI) की क्रिकेट सलाहकार समिति ने सुनील जोशी को भारतीय क्रिकेट टीम का नया चीफ सेलेक्टर नियुक्त किया है। जोशी चयन समिति में एम. एस. के. प्रसाद का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल इसी वर्ष जनवरी में समाप्त हुआ। एम. एस. के. प्रसाद चार वर्ष तक चीफ सेलेक्टर के पद पर रहे। सुनील जोशी का जन्म 6 जून, 1970 को कर्नाटक के गदग ज़िले में हुआ। सुनील जोशी एक ऑलराउंडर हैं, जो बाएँ हाथ के धीमी गति के गेंदबाज़ थे और बाएँ हाथ से बल्लेबाज़ी करते थे। सुनील जोशी ने भारत की ओर से कुल 15 टेस्ट मैच और 69 एक दिवसीय मैच खेले। सुनील जोशी ने 21 जून, 2012 को प्रथम श्रेणी क्रिकेट से अपने रिटायरमेंट की औपचारिक घोषणा की थी।

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण की शुरुआत की है। इसका कुल परिव्यय 1,40,881 करोड़ रुपए है। स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) के दूसरे चरण में शौचालय तक पहुँच और उपयोग के संदर्भ में पिछले पाँच वर्षों में कार्यक्रम के पहले चरण में हासिल की गई उपलब्धियों को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करना है । अभियान के दूसरे चरण में सुनिश्चित किया जाएगा कि देश के प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रभावी ठोस और तरल कचरा प्रबंधन की व्यवस्था की जाए।


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