अंतर्राष्ट्रीय संबंध
जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होता चाय उत्पादन
- 25 Jan 2018
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चर्चा में क्यों?
जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित भारतीय चाय उद्योग द्वारा इस समस्या से लड़ने के लिये केंद्र सरकार से समर्थन की मांग की गई है। भारत की कुल फसल में बड़े चाय उत्पादकों के साथ-साथ छोटे चाय उत्पादकों की बढ़ती हिस्सेदारी इस बात का द्योतक है कि इस संबंध में केंद्र द्वारा एक कृषि केंद्रित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है ताकि छोटे चाय उत्पादकों को एक एकड़ से भी कम भूमि में अधिक-से-अधिक चाय का उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।
- इससे जहाँ एक ओर इन छोटे चाय उत्पादकों को आगे बढ़ने हेतु बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर देश के कुल फसल उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अनियमित जलवायु परिस्थितियाँ चाय उत्पादन को प्रभावित करती हैं इसलिये पिछले कुछ समय से चाय उद्योग द्वारा सिंचाई सुविधाओं को विकसित करने तथा चाय की पुरानी झाड़ियों को दोबारा लगाने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- देश का लगभग 38% क्षेत्र ऐसा है जिसमें मौजूद चाय की झाड़ियाँ 50 वर्ष से अधिक पुरानी हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 9 से 10% क्षेत्र ऐसा है जो 11 से 49 वर्ष की श्रेणी में आता है, जबकि 26% क्षेत्र 10 वर्ष पुरानी चाय की झाड़ियों का है।
- यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि चाय की झाड़ियों की उम्र का सीधा संबंध उपज से होता है।
- साथ ही इसी आधार पर चाय उद्योग को आयकर कटौती के ज़रिये निवेश हेतु समर्थन प्राप्त होता है।
समस्याएँ एवं समाधान
- छोटे चाय किसानों को भारी बारिश, ठंड, तूफान और सूखे जैसी आवर्ती घटनाओं के कारण भारी फसल नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- इसका एक अन्य कारण यह है कि किसानों के नुकसान की भरपाई के लिये किसी भी प्रकार की प्रणाली की अनुपस्थिति इस संकट को और अधिक प्रभावी बना देती है।
- इस समस्या के समाधान के रूप में सरकार द्वारा चाय की फसल के संबंध में फसल बीमा योजनाओं को लागू किया जाना चाहिये।
- साथ ही उन उपायों के संदर्भ में भी विचार-विर्मश करते हुए निवेश किया जाना चाहिये जिन्हें प्रभावी रूप से क्रियान्वित किये जाने से जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना किया जा सके।
- इसके अतिरिक्त सरकार को छोटे चाय उत्पादकों द्वारा उत्पादित हरी चाय की पत्तियों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की दिशा में भी प्रयास करने चाहिये।
वास्तविक स्थिति
- चाय बोर्ड के मुताबिक, छोटे चाय उत्पादकों द्वारा वर्ष 2016-17 में 1250.5 मिलियन किलोग्राम (कुल चाय का 44% हिस्सा) चाय का उत्पादन किया गया।
- संगठित चाय उद्योग जो कि स्वयं को सामाजिक खर्चों (बागान श्रम कानून के तहत प्रबंधित तथा आवास, चिकित्सा, पेयजल और सब्सिडी वाले राशन जैसे क्षेत्रों को कवर करने संबंधी खर्च) के संबंध में कमज़ोर अथवा पिछड़ा हुआ महसूस करता है, इन खर्चों के संबंध में कुछ आईटी राहत मिलने की भी उम्मीद करता है।
- जीएसटी के संबंध में, चाय उद्योग द्वारा निर्यातकों को प्रभावित करने वाली कुछ विसंगतियों को हटाने और कुछ नियमों का सरलीकरण करने की मांग की गई है।
- इसके अतिरिक्त चाय उद्योग द्वारा आयकर कानूनों को भी सिंक्रनाइज़ करने यानी समकालीन बनाने की अपील की गई है।
निष्कर्ष
अब ऐसी स्थिती में देखना यह होगा कि आने वाले बजट में चाय उद्योग को कितनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है साथ ही देश में चाय के उत्पादन में वृद्धि करने की दिशा में क्या महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाते है? आँकड़ों के अनुसार, 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012 -2017) के दौरान चाय उद्योग की सहायता हेतु स्वीकृत 1425 करोड़ रुपए में से मार्च 2017 तक मात्र 705 करोड़ रुपए की ही सहायता राशि प्रदान की गई। वर्तमान में मूल्यवर्धित निर्यात (चाय बैग) के संदर्भ में चाय उद्योग द्वारा फिल्टर पेपर, मल्टीवाल पेपर और नायलॉन कपड़ों (चाय बैग बनाने के लिये आवश्यक पदार्थ) पर रियायती शुल्क मिलने की उम्मीद की जा रही है। आने वाला बजट इस उम्मीद पर खरा उतरेगा या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।