डेली न्यूज़ (05 Jan, 2021)



कोविशील्ड और कोवैक्सीन के सीमित उपयोग की मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने देश में कोरोना वायरस के विरुद्ध वैक्सीन के सीमित उपयोग के लिये कोविशील्ड (Covishield) और कोवैक्सीन (Covaxin) को मंज़ूरी दे दी है।

  • कोविशील्ड, कोवैक्सीन और BNT162b2 ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के समक्ष आपातकालीन उपयोग हेतु मंज़ूरी के लिये आवेदन किया था।

प्रमुख बिंदु

वैक्सीन की मंज़ूरी का अर्थ

  • आपात्कालिक स्थिति में दोनों टीकों के सीमित उपयोग की मंज़ूरी मिली है। 
  • इसका अर्थ है कि कंपनियों द्वारा नैदानिक परीक्षण पूरा नहीं किये जाने के बावजूद टीकों के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी गई है।
  • हालाँकि मंज़ूरी पाने वाली कंपनियों के लिये परीक्षणों के दौरान सुरक्षा, प्रभावकारिता और प्रतिरक्षाजनकता (Immunogenicity) से संबंधित डेटा को नियमित रूप से प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
    • किसी टीके की प्रतिरक्षाजनकता (Immunogenicity) का आशय उसकी प्रतिरक्षा अनुक्रिया शुरू करने की प्रक्रिया से है।
    • टीके की प्रभावकारिता से आशय कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों को कम करने की उसकी क्षमता से है।

आपात्कालिक मंज़ूरी का कारण

  • महामारी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सरकार जल्द-से-जल्द उपयोग के लिये टीका चाहती थी ताकि संक्रमण के बढ़ते मामलों पर काबू पाया जा सके।
  • एक और बढ़ती चिंता ब्रिटेन जैसे देशों में SARS-CoV-2 वायरस का उत्परिवर्तन है, जो कि अब भारत समेत विश्व के अन्य हिस्सों में फैलने लगा है।

कोविशील्ड (Covishield): यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोरोना वायरस वैक्सीन को दिया गया नाम है, जिसे तकनीकी रूप से AZD1222 या ChAdOx 1 nCoV-19 कहा जाता है।

विकास

  • यह स्वीडिश-ब्रिटिश दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राज़ेनेका के सहयोग से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित टीके का एक संस्करण है।
  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) भारत में इस टीके का विनिर्माण भागीदार है।

कार्यप्रणाली

  • यह एक सामान्य कोल्ड वायरस या एडेनोवायरस के कमज़ोर संस्करण पर आधारित है जो चिंपांज़ी में पाया जाता है।
  • इस वायरल वेक्टर में वायरस की बाहरी सतह पर मौजूद SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन (प्रोट्रूशियंस) का आनुवंशिक पदार्थ शामिल होता है, जो इसे मानव कोशिका के साथ आबद्ध करने में सहायता करता है।
  • शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इस प्रोटीन को एक खतरे के रूप में पहचानती है और इसके विरुद्ध एंटीबॉडी का निर्माण करती है।

 महत्त्व 

  • ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन ने कोरोना वायरस के विरुद्ध प्रतिरक्षा अनुक्रिया शुरू करने में कामयाबी हासिल की थी और इसे संक्रमण के विरुद्ध सबसे अग्रणी टीकों में से एक माना जाता है।

कोवैक्सीन (Covaxin): यह भारत की एकमात्र स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है।

विकास

  • भारत बायोटेक कंपनी द्वारा इस वैक्सीन को ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (ICMR) तथा ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’ (NIV) के सहयोग से विकसित किया गया है।

कार्यपद्धति

  • यह एक निष्क्रिय टीका (Inactivated Vaccine) है, जिसे रोग पैदा करने वाले जीवित सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय कर विकसित किया जाता है।
  • इस टीके को विकसित करने के दौरान रोगजनक अथवा सूक्ष्मजीवों की स्वयं की प्रतिकृति बनाने की क्षमता को समाप्त कर दिया जाता है, हालाँकि उसे जीवित रखा जाता है, ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली उसकी पहचान कर सके और उसके विरुद्ध प्रतिरक्षा अनुक्रिया उत्पन्न कर सके।
  • इसका उद्देश्य न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन (वायरस के आनुवंशिक पदार्थ का आवरण) के विरुद्ध प्रतिरक्षा अनुक्रिया विकसित करना है।

महत्त्व

  • भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन (Covaxin) के ब्रिटेन में उत्परिवर्तित वायरस समेत कई अन्य नए प्रकारों के विरुद्ध प्रभावी होने की संभावना है, क्योंकि इसमें स्पाइक प्रोटीन के अलावा अन्य जीनों के इम्‍युनोजेन्स (Immunogens) भी शामिल हैं।
    • इम्‍युनोजेन एक उत्प्रेरक है जो तरल प्रतिरक्षा (Humoral Immune) तथा कोशिका-माध्यित प्रतिरक्षा (Cell-Mediated Immune) अनुक्रिया उत्पन्न करता है।
  • कोवैक्सीन (Covaxin) को मिली मंज़ूरी यह सुनिश्चित करती है कि भारत के पास एक अतिरिक्त वैक्सीन सुरक्षा मौजूद है, जो विशेष रूप से महामारी की गतिशील स्थिति में संभावित उत्परिवर्ती उपभेदों के विरुद्ध हमारी रक्षा करेगा।

Covaxin

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकर से क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत वर्ष 2017 में अधिसूचित नियमों को वापस लेने या संशोधित करने के लिये कहा है।

प्रमुख बिंदु:

वर्ष 2017 के नियम:

  • पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (संपत्ति व जानवरों की देखभाल और रखरखाव) नियम, 2017 को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत स्थापित किया गया है।
  • अधिनियम के तहत ये नियम न्यायाधीश को मुकदमे का सामना कर रहे किसी व्यक्ति के मवेशियों को जब्त करने की अनुमति देते हैं।
    • इसके बाद जानवरों को पशु चिकित्सालय (Infirmaries), पशु आश्रयों इत्यादि में भेज दिया जाता है। 
    • ऐसे जानवरों को अधिकारियों द्वारा गोद भी दिया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:

  • ये नियम स्पष्ट रूप से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 29 के विपरीत हैं, जिसके तहत  क्रूरता का दोषी पाया गया व्यक्ति केवल अपने जानवरों को खो सकता है।
  • सरकार से कहा गया है कि या तो वह इन नियमों में बदलाव करे या न्यायालय से स्टे ले ले।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के बारे में: 

  • इस अधिनियम का विधायी उद्देश्य ‘अनावश्यक सज़ा या जानवरों के उत्पीड़न की प्रवृत्ति’ को रोकना है।
  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India- AWBI) की स्थापना वर्ष 1962 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी।
  • इस अधिनियम में अनावश्यक क्रूरता और जानवरों का उत्पीड़न करने पर सज़ा का प्रावधान है। यह अधिनियम जानवरों और जानवरों के विभिन्न प्रकारों को परिभाषित करता है।
  • अधिनियम जानवरों के साथ हुए क्रूरता और हत्या के विभिन्न रूपों की चर्चा करता है, अगर जानवरों के साथ किसी भी प्रकार की क्रूरता की घटना घटित होती है, तो यह अधिनियम राहत प्रदान करता है।
  • वैज्ञानिक उद्देश्य हेतु जानवरों के इस्तेमाल करने से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करना।
  • इस अधिनियम के तहत प्रदर्शनी में हिस्सा लेने वाले जानवरों और उनके विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों से संबंधित प्रावधानों को शामिल किया गया है।
  • अधिनियम के तहत दायर मुकदमे की समयावधि 3 माह की होती है, इस अवधि के बाद वादी/अभियोजक पर किसी भी प्रकार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वर्ष 2020 में भारत की जलवायु

चर्चा में क्यों?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) द्वारा वर्ष 2020 में भारत की जलवायु स्थिति के संदर्भ में जारी वक्तव्य के अनुसार, वर्ष 1901 में जलवायु संबंधी रिकॉर्ड रखे जाने की शुरुआत के समय से अब तक की अवधि में वर्ष 2020 आठवाँ सबसे गर्म वर्ष था।

  • IMD द्वारा वार्षिक रूप से जारी इस वक्तव्य में प्रत्येक वर्ष के दौरान तापमान और वर्षा के रुझान को प्रदर्शित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

वर्ष 2020 आठवाँ सबसे गर्म वर्ष:

  • औसत तापमान: 
    • वर्ष के दौरान देश में वार्षिक औसत तापमान सामान्य (वर्ष 1981 से 2010 तक 21 वर्षो का औसत) से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
    • हालाँकि वर्ष 2016 की तुलना में यह वर्ष कम गर्म था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में औसत वार्षिक तापमान सामान्य से 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक था और वर्ष 1901 के बाद से यह देश में सबसे गर्म वर्ष बना हुआ है।
    • ला-नीना के शीतलन प्रभाव के बावजूद तापमान में इस तरह के रुझान दर्ज किये गए हैं। ला-नीना एक वैश्विक मौसम पैटर्न है जो वर्ष 2020 में प्रबल रहा और सर्दियों के दौरान तापमान के सामान्य से काफी नीचे चले जाने से भी जुड़ा हुआ है।
      • आमतौर पर ला-नीना के कारण वैश्विक तापमान कम हो जाता है, लेकिन वैश्विक तापन/ग्लोबल वार्मिंग ने अब इसे प्रति संतुलित कर दिया है। परिणामतः ला-नीना के प्रभाव वाले वर्ष अब अतीत के अल-नीनो प्रभावित वर्षों की तुलना में गर्म हैं।
      • अल-नीनो एवं ला-नीना अल-नीनो दक्षिणी दोलन (El Niño–Southern Oscillation-ENSO) चक्र के चरम प्रभाव वाले चरण हैं।
      • ENSO समुद्री सतह के तापमान और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर पर वायुमंडलीय दाब के कारण होने वाला आवधिक उतार-चढ़ाव है। मौसम तथा जलवायु पैटर्न पर इसका व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। जैसे- भारी बारिश, बाढ़ और सूखे की स्थिति आदि।
      • जहाँ अल-नीनो के कारण वैश्विक तापमान बढ़ जाता है, वहीं ला-नीना का प्रभाव इसके विपरीत होता है।
  • वैश्विक औसत तापमान से तुलना:

भारत में अब तक सबसे गर्म वर्ष:

  • भारत में अब तक दर्ज किये गए सबसे गर्म आठ वर्ष  थे: वर्ष 2016 (+ 0.71 डिग्री सेल्सियस)> 2009 (+0.55 डिग्री सेल्सियस)> 2017 (+0.541 डिग्री सेल्सियस)> 2010 (+0.539 डिग्री सेल्सियस)> 2015 (+0.42 डिग्री सेल्सियस)> 2018 (+0.41 डिग्री सेल्सियस)> 2019 (+0.36 डिग्री सेल्सियस)> 2020 (+0.29 डिग्री सेल्सियस)।
  • पिछले दशक (वर्ष 2011 से 2020) को अब तक का सबसे गर्म दशक दर्ज किया गया है।

चरम मौसमी घटनाएँ:

  • अत्यधिक वर्षा, बाढ़, शीत लहर और तड़ितझंझा (Thunderstorm) के कारण जान और माल की काफी हानि हुई।
  • गत वर्ष शीत लहर, आकाशीय बिजली और तड़ित के कारण सर्वाधिक जनहानि उत्तर प्रदेश तथा बिहार में दर्ज की गई थी।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात पर डेटा:

  • विश्व स्तर पर अटलांटिक महासागर में 30 से अधिक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति दर्ज की गई।
  • अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में कुल पाँच चक्रवातों- अम्फान, निसर्ग, गति, निवार और बुरेवी की उत्पत्ति हुई।
    • इनमें निसर्ग और गति की उत्पत्ति अरब सागर में हुई थी, जबकि शेष 3 की उत्पत्ति बंगाल की खाड़ी में हुई।

वर्षा पर डेटा:

  • वर्ष 2020 के दौरान देश में कुल वार्षिक वर्षा 1961 से 2010 की अवधि के लिये आकलित लंबी अवधि के औसत (Long Period Average- LPA) का 109% थी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD)

  • IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी।
  • यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Science- MoES) की एक एजेंसी है।
  • यह मौसम संबंधी अवलोकन, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ईरान द्वारा यूरेनियम संवर्द्धन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान ने वर्ष 2015 के परमाणु समझौते का उल्लंघन करते हुए एक भूमिगत इकाई में 20 प्रतिशत तक यूरेनियम का संवर्द्धन शुरू कर दिया है, साथ ही महत्त्वपूर्ण होर्मुज़ जलडमरूमध्य के पास एक दक्षिण कोरियाई-ध्वज वाले टैंकर को भी अपने कब्ज़े में ले लिया है।

  • इस बीच अमेरिका ने ईरान से बढ़ते सुरक्षा खतरों को ध्यान में रखते हुए खाड़ी क्षेत्र में अपने परमाणु ऊर्जा संचालित विमानवाहक पोत निमित्ज़ (Nimitz) को तैनात करने का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु 

यूरेनियम संवर्द्धन:

  • प्राकृतिक यूरेनियम में दो अलग-अलग समस्थानिक विद्यमान होते हैं जिसमें लगभग 99%, U-238 तथा 0.7%, U-235 की मात्रा पाई जाती है ।
    • U-235 एक विखंडनीय सामग्री (Fissile Material) है जो परमाणु रिएक्टर में शृंखला अभिक्रिया को संचालित करने में सहायक है।
  • यूरेनियम संवर्द्धन में आइसोटोप सेपरेशन (Isotope Separation) प्रक्रिया के माध्यम से यूरेनियम U-235 की मात्रा को बढाया जाता है (U-238 को U-235 से अलग किया जाता है)।
  • परमाणु हथियारों के निर्माण में 90% या उससे अधिक तक यूरेनियम संवर्द्धन की आवश्यकता होती है जिसे अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम/हथियार-ग्रेड यूरेनियम (Highly Enriched Uranium/Weapons-Grade Uranium) के रूप में जाना जाता है।
  • परमाणु रिएक्टरों के लिये 3-4% तक यूरेनियम संवर्द्धन की आवश्यकता होती है जिसे निम्न संवर्द्धित यूरेनियम/रिएक्टर-ग्रेड यूरेनियम (Low Enriched Uranium/Reactor-Grade Uranium) के रूप में जाना जाता है।

वर्ष 2015 का परमाणु समझौता:

  • वर्ष 2015 में वैश्विक शक्तियों (P5 + 1) के समूह जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी शामिल हैं, के साथ ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रम के लिये दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की गई।
    • इस समझौते को ‘संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) तथा आम बोल-चाल की भाषा में ईरान परमाणु समझौते ( Iran Nuclear Deal) के रूप में में नामित किया गया था।
    • इस समझौते के तहत ईरान द्वारा वैश्विक व्यापार में अपनी पहुँच सुनिश्चित करने हेतु अपने परमाणु कार्यक्रमों की गतिविधि पर अंकुश लगाने पर सहमति व्यक्त की गई।
    • समझौते के तहत ईरान को अपने शोध कार्यों के संचालन हेतु थोड़ी मात्रा में यूरेनियम जमा करने की अनुमति दी गई परंतु उसके द्वारा यूरेनियम संवर्द्धन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिसका उपयोग रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने के लिये किया जाता है।
    • ईरान को एक भारी जल-रिएक्टर (Heavy-Water Reactor) के निर्माण की भी आवश्यकता थी, जिसमें ईंधन के रूप में प्रयोग करने हेतु भारी मात्रा में प्लूटोनियम (Plutonium) की आवश्यकता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति देना भी आवश्यक है।
  • मई 2018 में यूएसए द्वारा इस समझौते की आलोचना की गई तथा इसे दोषपूर्ण मानते हुए कुछ परिवर्तनों के साथ इसके प्रतिबंधों को और अधिक कड़ा कर दिया गया।
  • प्रतिबंधों के और अधिक सख्त होने के बाद ईरान ने कुछ राहत पाने हेतु समझौते के हस्ताक्षरकर्त्ता देशों पर दबाव बनाने के साथ ही कुछ प्रतिबद्धताओं एवं नियमों का लगातार उल्लंघन किया है।

शामिल मुद्दे:

  • ईरान और अमेरिका के मध्य और अधिक तनाव बढ़ने की घटनाएँ सामने आईं।
  • ईरान द्वारा परमाणु बम विकसित करने के यूरेनियम संवर्द्धन की समयावधि को कम/छोटा किया जा सकता है।
  • इज़राइल द्वारा ईरान के यूरेनियम संवर्द्धन के निर्णय की आलोचना की गई है। 
    • एक दशक पहले ईरान द्वारा 20 प्रतिशत यूरेनियम संवर्द्धन का निर्णय लिये जाने के बाद इज़राइल और ईरान के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। दोनों देशों के बीच यह तनाव वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के बाद ही कम हो सका था। 
    • 20 प्रतिशत यूरेनियम का संवर्द्धन शुरू किये जाने से एक बार फिर अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है क्योंकि वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के तहत ईरान केवल 4% यूरेनियम का संवर्द्धन कर सकता है।
    • इतनी शुद्धता के यूरेनियम का इस्तेमाल विद्युत उत्पादन के लिये किया जाता है, जबकि परमाणु हथियारों के लिये 90% शुद्धता वाले यूरेनियम की आवश्यकता होती।
  • इससे पूर्व अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने चार महीने से अधिक समय तक यूरेनियम संवर्द्धन के दो संदिग्ध स्थानों के निरीक्षणों को लेकर ईरान द्वारा लगाई गई रोक पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी।

होर्मुज़ जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz)

Strait-of-Hormuz

भौगौलिक अवस्थिति

  • यह ईरान और ओमान को अलग करने वाला जलमार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है।
  • इसके उत्तर में ईरान और दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात तथा मुसंडम (ओमान का एक एन्क्लेव) स्थित हैं।
  • होर्मुज़ जलडमरूमध्य अपने सबसे संकीर्ण बिंदु पर 21 मील चौड़ा है, लेकिन इसमें शिपिंग लेन दोनों दिशाओं में सिर्फ दो मील चौड़ी है।

महत्त्व 

  • होर्मुज़ जलडमरूमध्य, विश्व में रणनीतिक रूप से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बिंदुओं में से एक है।
  • लगभग दो-तिहाई तेल और तकरीबन 50 प्रतिशत तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का भारतीय आयात ईरान और ओमान के बीच जलडमरूमध्य के माध्यम से होता है।
  • प्रतिदिन 18 मिलियन बैरल तेल होर्मुज़ जलडमरूमध्य होकर गुज़रता है, जो कि वैश्विक तेल व्यापार का तकरीबन 18 प्रतिशत है।
  • विश्व का एक-तिहाई LNG व्यापार भी होर्मुज़ जलडमरूमध्य से ही होता है।

संबंधित समस्याएँ

  • होर्मुज़ जलडमरूमध्य इस स्थिति में महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक भूमिका निभाता है क्योंकि यहाँ पर जलडमरूमध्य की रक्षा  के  लिये यूएस फिफ्थ फ्लीट जल पोत तैनात है।
  • हाल के कुछ वर्षों के दौरान ईरान ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य में तेल टैंकरों के सुरक्षित आवागमन के लिये खतरा उत्पन्न किया है।

आगे की राह

  • वर्ष 2015 के समझौते में शामिल सभी देशों को रचनात्मक दिशा में कार्य करने हेतु संलग्न होना चाहिये और सभी मुद्दों को शांति तथा वार्ता के माध्यम से हल करने का प्रयास करना चाहिये।
  • अमेरिका और ईरान दोनों को रणनीतिक संयम के साथ काम करना चाहिये, क्योंकि पश्चिम एशिया में कोई भी संकट न केवल इस क्षेत्र को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक मामलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

स्रोत: द हिंदू


नेशनल मेट्रोलॉजी कॉन्क्लेव 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राष्ट्रीय मेट्रोलॉजी कॉन्क्लेव 2021 (National Metrology Conclave 2021) का उद्घाटन किया और राष्ट्रीय पर्यावरण मानक प्रयोगशाला (National Environmental Standards Laboratory) की आधारशिला भी रखी।

  • इस कॉन्क्लेव का आयोजन काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल फिज़िकल लेबोरेटरी (CSIR-NPL), नई दिल्ली द्वारा अपनी स्थापना के 75वें वर्ष के अवसर पर किया गया था।
  • इस अवसर पर नेशनल एटॉमिक टाइम स्केल (National Atomic Time Scale) और भारतीय निर्देशक द्रव्य प्रणाली (Bharatiya Nirdeshak Dravya Pranali) को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
  • मेट्रोलॉजी को इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स (BIPM) द्वारा परिभाषित किया गया है- “माप विज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में अनिश्चितता के किसी भी स्तर पर दोनों के प्रयोगात्मक और सैद्धांतिक निर्धारण को अपनाता है”।

प्रमुख बिंदु:

नेशनल एटॉमिक टाइम स्केल (National Atomic Time Scale):

  • नेशनल एटॉमिक टाइम स्केल भारतीय मानक समय को 2.8 नैनो सेकंड की सटीकता प्रदान करता है।
    • 82° 30'E के देशांतर को भारत के' मानक मध्याह्न 'के रूप में चुना गया है, जिसके अनुसार भारतीय मानक समय निर्धारित है।
  • अब भारतीय मानक समय 3 नैनो सेकंड से भी कम सटीक स्‍तर के साथ अंतर्राष्ट्रीय मानक समय के अनुरूप हो गया है। 
  • CSIR-NPL भारत का राष्ट्रीय मापन संस्थान है और भारतीय मानक समय (IST) को स्पष्ट करने तथा इसे बनाए रखने के लिये अधिकृत (संसद के एक अधिनियम द्वारा) है।
  • IST को राष्ट्रीय प्राथमिक समय के पैमाने के माध्यम से CSIR-NPL में स्पष्ट किया जाता है जिसमें अल्ट्रा-स्टेबल एटोमिक क्लॉक ( Ultra Stable Atomic Clock) का एक समूह होता है।
  • CSIR-NPL डिज़िटल बुनियादी ढाँचे को सुरक्षित करने और साइबर अपराध को कम करने के लिये राष्ट्र में सभी क्लोक्स को IST के साथ सिंक्रनाइज़ करने के मिशन पर अग्रसर है।
  • CSIR-NPL भारत के राष्ट्रीय समय के बुनियादी ढाँचे को मजबूत कर रहा है, जो अनुमानतः GDP के 10% से अधिक के आर्थिक स्तर को प्रभावित कर सकता है।
  • लाभ:
    • यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जैसी उन संस्थाओं के लिये एक बड़ी मदद होगी जो अत्याधुनिक तकनीक के साथ काम कर रहे हैं। बैंकिंग, रेलवे, रक्षा, स्वास्थ्य, दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन, उद्योग 4.0 और इसी तरह के कई क्षेत्रों को इस उपलब्धि से लाभ मिलेगा।
    • हालाँकि भारत पर्यावरण के क्षेत्र में शीर्ष स्थिति की ओर बढ़ रहा है लेकिन वायु की गुणवत्ता और उत्सर्जन को मापने के लिये अभी भी आवश्‍यक प्रौद्योगिकी एवं उपकरणों के लिये दूसरे देशों पर निर्भर है। 
      • इस उपलब्धि से इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और प्रदूषण नियंत्रण के लिये अधिक प्रभावी तथा सस्ते उपकरणों के निर्माण को भी बढ़ावा मिलेगा। 
      • इससे वायु गुणवत्ता और उत्सर्जन प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रौद्योगिकियों के लिये वैश्विक बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी भी बढ़ेगी।

भारतीय निर्देशक द्रव्य प्राणाली (Bhartiya Nirdeshak Dravya Pranali- BND):

  • ये CSIR-NPL द्वारा विकसित भारतीय संदर्भ सामग्री है। SI ट्रेसेबल माप और मेट्रोलॉजी के माध्यम से नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान कर विनिर्माण और उपभोक्ता क्षेत्र में उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • SI प्रणाली का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (फ्रेंच से 'सिस्टेम इंटरनेशनल') में माप की इकाइयों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
  • संदर्भ सामग्री (RM) SI इकाइयों के लिये ट्रेसेबल माप के साथ परीक्षण और मापांकन के माध्यम से किसी भी अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता के बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने में  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
    • हाल ही में NPLI ने सोने की शुद्धता और बिटुमिनस कोयले के लिये भारतीय निर्देशक द्रव्य (BNDs) के रूप में दो बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित RM जारी किये हैं
  • हाल ही में भारत सरकार ने आयुष, सामग्री, नैनो, चिकित्सा, खाद्य और कृषि तथा जीव विज्ञान के क्षेत्र में BNDs विकसित करके अपने BND कार्यक्रम को मज़बूत करने के लिये NPLI का समर्थन किया है।
  • ट्रेसेबल SI BND की उपलब्धता "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम को बढ़ावा देने और देश के गुणवत्तायुक्त बुनियादी ढाँचे में सामंजस्य बनाए रखने हेतु आवश्यक है।

स्रोत: PIB


सागरमाला सीप्‍लेन सेवा

चर्चा में क्यों?

बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय (Ministry of Ports, Shipping and Waterways) संभावित एअर लाइन परिचालकों के ज़रिये सागरमाला सीप्‍लेन सेवा (Sagarmala Seaplane Services- SSS) शुरू करने की योजना बना रही है। 

  • सीप्लेन स्थिर पंखों वाला हवाई जहाज़ है जो पानी में उतरने में सक्षम होता है।

प्रमुख बिंदु

तंत्र:

  • इस परियोजना को भावी एयरलाइन ऑपरेटरों के माध्यम से एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) ढाँचे के तहत शुरू किया जा रहा है।
  • SPV विशेष रूप से परिभाषित उद्देश्य के लिये गठित एक विधिक प्रयोजन है।

परियोजना कार्यान्वयन:

  • इस परियोजना को सागरमाला विकास कंपनी लिमिटेड (Sagarmala Development Company Ltd- SDCL) के माध्यम लागू किया जाएगा जोकि बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
  • SDCL के साथ SPV का निर्माण करने हेतु एयरलाइन ऑपरेटरों को आमंत्रित किया जाएगा।
  • मार्गों को सरकार की सब्सिडी वाले ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (UDAN) योजना के तहत संचालित किया जा सकता है।

अवस्थिति: सीप्लेन संचालन के लिये कई स्थलों की परिकल्पना की गई है:

Proposed-Locations

लाभ और महत्त्व:

  • सीप्लेन सेवा एक गेम-चेंज़र साबित होगी जो पूरे देश में तेज़ और आरामदायक परिवहन का एक पूरक साधन प्रदान करेगी।
  • विभिन्न दूरस्थ धार्मिक/पर्यटन स्थानों को हवाई संपर्क प्रदान करने के अलावा, यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हॉलिडे निर्माताओं (ट्रैवल एजेंसियों) के लिये पर्यटन को बढ़ावा देगा।
  • यह यात्रा के समय को कम करेगा और विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में या नदियों/झीलों आदि में स्थानबद्ध छोटी दूरी की यात्रा को प्रोत्साहित करेगा।
  • यह संचालन के स्थानों पर बुनियादी ढाँचे में वृद्धि करेगा।
  • यह रोज़गार के अवसर प्रदान करेगा।

पूर्व के प्रोजेक्ट:

  • इस तरह की एक सीप्लेन सेवा गुजरात के नर्मदा ज़िले में केवडिया के पास स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट के मध्य पहले से चल रही है, जिसकी शुरुआत अक्तूबर 2020 में की गई थी।

सागरमाला परियोजना

  • सागरमाला कार्यक्रम को वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था जिसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
  • इस बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास ढाँचे के तहत सरकार अपने कार्गो यातायात को तीन गुना बढ़ाने की उम्मीद करती है।
  • इसमें बंदरगाह टर्मिनलों के साथ रेल/सड़क संपर्क की स्थापना भी शामिल है, जैसे- बंदरगाहों को अंतिम-मील कनेक्टिविटी प्रदान करना, नए क्षेत्रों के साथ संपर्क का विकास, रेल, अंतर्देशीय जलमार्गों, तटीय एवं सड़क सेवाओं सहित मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी में वृद्धि करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


स्कूल बैग नीति, 2020

चर्चा में क्यों?

शिक्षा निदेशालय ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा जारी नई ‘स्कूल बैग नीति, 2020’ (School Bag Policy 2020) का पालन करने के लिये सभी स्कूलों को एक परिपत्र जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

परिपत्र

  • परिपत्र के मुताबिक, शिक्षकों के लिये यह अनिवार्य है कि वे छात्रों को पहले से ही यह सूचित करें कि किसी विशिष्ट दिवस पर कौन-सी किताबें और नोटबुक स्कूल में लानी हैं, साथ ही शिक्षक समय-समय पर यह भी जाँच करेंगे कि छात्र अनावश्यक किताबें या नोटबुक तो नहीं ला रहे हैं।
  • विद्यालय प्रबंधन का यह कर्त्तव्य और दायित्त्व है कि वे सभी छात्रों को पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण पीने योग्य पानी उपलब्ध कराएँ, ताकि छात्रों को अपने घर से पानी की बोतल लाने की आवश्यकता न हो।

स्कूल बैग नीति, 2020

  • इस नीति में कक्षा- I से XII तक के छात्रों के होमवर्क और उनके बैग के वज़न से संबंधित दिशा-निर्देश शामिल किये गए हैं।
    • नीति के मुताबिक, कक्षा I से X तक के छात्रों का स्कूल बैग उनके शरीर के वज़न के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिये, साथ ही पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों के लिये स्कूल बैग होना ही नहीं चाहिये।
    • कक्षा II तक के छात्रों को कोई भी होमवर्क नहीं दिया जाना चाहिये, जबकि कक्षा III से V तक के छात्रों को प्रति सप्ताह अधिकतम दो घंटे, कक्षा VI से VIII तक के छात्रों को प्रति दिन अधिकतम एक घंटे और कक्षा IX तथा उससे अधिक के छात्रों को प्रतिदिन अधिकतम दो घंटे का ही होमवर्क दिया जाना चाहिये।
  • इस नीति में विद्यालयों के लिये अवसंरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है, क्योंकि छात्र प्रतिदिन कई सारी पुस्तकें साथ ले जाने में सक्षम नहीं हैं।
    • स्कूलों को प्री-स्कूल से सीनियर सेकेंडरी तक के छात्रों को लॉकर उपलब्ध कराने चाहिये, ताकि वे कुछ किताबें विद्यालय में ही छोड़ सकें और आवश्यकतानुसार घर ले जा सकें।
  • इसमें कहा गया है कि शिक्षकों को प्रत्येक तीन महीने पर छात्रों के स्कूल बैग के वज़न की जाँच करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये और माता-पिता को भारी बैग के बारे में जानकारी देनी चाहिये।
    • इसके अनुसार, भारी भरकम किताबों की तुलना में हल्की और कम वज़न वाली किताबों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

भारी स्कूल बैग की समस्या:

  • भारी स्कूल बैग के कारण बच्चों शरीर पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो उनके कशेरुक स्तंभ (Vertebral Column) और घुटनों (Knees) को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • भारी स्कूल बैग के कारण गर्दन की मांसपेशियों में खिचाव आ सकता है जो सिरदर्द, कंधे के दर्द, पीठ के निचले हिस्से में दर्द और गर्दन तथा हाथ के दर्द का कारण बन सकता है।
  • शरीर मुद्रा (Body Posture) भी काफी हद तक प्रभावित हो सकती है तथा लंबे समय तक यह स्थिति रहने से शारीरिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित हो सकता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT)

  • यह शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education- MoE) के तहत एक स्वायत्त संगठन है जो निम्नलिखित कार्यों को सुनिश्चित करने हेतु समर्पित संस्थान है:
    • स्कूली शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना।
    • मॉडल पाठ्यपुस्तक, पूरक सामग्री तैयार करना और उनका प्रकाशन करना।
  • नवीन शैक्षिक तकनीकों का विकास और उनका प्रसार करना।
  • सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।

स्रोत: द हिंदू