व्यापक होगा उन्नत भारत अभियान का दायरा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सीएससी के ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड (Common Service Centre’s e-Governance Services India Limited) ने उन्नत भारत अभियान की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये IIT-कानपुर के साथ करार किया है।
प्रमुख बिंदु
- उन्नत भारत अभियान के तहत IIT-कानपुर ने उत्तर प्रदेश के 15 उच्च शिक्षा संस्थानों को एक साथ जोड़ा है।
- इन संस्थानों ने अभियान के तहत गाँवों के विकास के लिये सीएससी (Common Service Centre) के साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की है।
- ये संस्थान ग्राम स्तरीय उद्यमियों (Village Level Entrepreneurs- VLE) को प्रशिक्षित करेंगे जो कि ग्राम विकास योजना के हिस्से के रूप में सीएससी चलाते हैं।
- ग्राम स्तरीय उद्यमियों को IIT-कानपुर के द्वारा सौर ऊर्जा के उपयोग, स्वच्छता और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग के बारे में भी कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा।
- IIT-कानपुर ने समग्र विकास के लिये कानपुर के बाहरी इलाके में स्थित पाँच गाँवों को चुना है।
पृष्ठभूमि
- उन्नत भारत अभियान की अवधारणा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली के समर्पित संकाय सदस्यों के समूह की पहल के साथ तब अस्तित्व में आई जब ये सदस्य लंबे समय से ग्रामीण विकास और उपयुक्त प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे।
- सितंबर 2014 में IIT दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान विभिन्न प्रौद्योगिकी संस्थानों, रूरल टेक्नोलॉजी एक्शन ग्रुप (RuTAG) के समन्वयकों, स्वैच्छिक संगठनों और सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद यह अवधारणा और अधिक परिपक्व हुई।
- इस कार्यशाला को काउंसिल फॉर एडवांसमेंट ऑफ पीपुल्स एक्शन एंड रूरल टेक्नोलॉजी (CAPART), ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित किया गया था।
- कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत 11 नवंबर, 2014 को भारत मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी।
लक्ष्य
- उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच विकास एजेंडे से संबंधित आपसी तालमेल तथा संस्थागत क्षमताओं का विकास करना और राष्ट्र की आवश्यकताओं विशेष रूप से ग्रामीण आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- उच्च शिक्षा के आधार के रूप में क्षेत्रीय स्तर पर कार्य किये जाने की आवश्यकता, हिस्सेदारों के बीच बातचीत तथा सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति पर ज़ोर देना।
- नए व्यवसायों के विकास केंद्र के रूप में सही रिपोर्टिंग और उपयोगी परिणामों पर ज़ोर देना।
- ग्रामीण भारत और क्षेत्रीय एजेंसियों के लिये उच्च शिक्षा संस्थानों के पेशेवरों (विशेष रूप से ऐसे पेशेवर जिन्होंने विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी तथा प्रबंधन के क्षेत्र में शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल की है) तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- इस शोध के फलस्वरूप विकास परिणामों में सुधार लाना, अनुसंधान के परिणामों को बनाए रखने और समाहित करने के लिये नए व्यवसाय और नई प्रक्रियाओं को विकसित करना।
- विज्ञान, समाज और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर बड़े समुदयों के बीच एक नई वार्ता को बढ़ावा देना।
सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड
- सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया है जिसका उद्देश्य सीएससी योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करना है।
- योजना को प्रणालीगत व्यवहार्यता और स्थिरता प्रदान करने के अलावा यह सीएससी के माध्यम से नागरिकों को सेवाओं की डिलीवरी हेतु एक केंद्रीकृत और सहयोगी रूपरेखा भी प्रदान करता है।
स्रोत- बिज़नेस लाइन
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम'
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 'गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम' (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques- PCPNDT) के नियमों और प्रावधानों को कम करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
प्रमुख बिंदु
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार,
- अधिनियम के किसी भी पक्ष के कमज़ोर पड़ने से भ्रूण हत्या को रोकने का इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बालिका के जीवन का अधिकार औपचारिकता मात्र रह जाएगा।
- इस अधिनियम के लागू होने के 24 वर्ष पश्चात् भी 4202 मामलों में से केवल 586 मामलों में सज़ा सुनाई गई है। यह आँकड़ा इस सामाजिक कानून को लागू करने में उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को दर्शाता है।
पृष्ठभूमि
- गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने दायर की थी।
- ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि अधिनियम के तहत कागज़ी कार्यों में लिपिकीय त्रुटियों/गलतियों के कारण इस उदार पेशे के सदस्यों के लाइसेंस निलंबित किये जा रहे हैं।
- उनके अनुसार, यह अधिनियम वास्तविक लिंग निर्धारण के अपराध में तथा रिकॉर्ड के रखरखाव और लिपिकीय त्रुटि के कारण होने वाली गलतियों को वर्गीकृत करने में विफल रहता है।
- ज्ञातव्य है कि सरकार ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि लिंग निर्धारण के संदर्भ में अभिलेखों का रखरखाव उचित ढंग से न करना केवल एक तकनीकी या प्रक्रियात्मक चूक नहीं है बल्कि यह अभियुक्त की पहचान के लिये सबूत का सबसे महत्त्वपूर्ण टुकड़ा है।
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम(PCPNDT), 1994
- गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 ऐसा एक अधिनियम है जो कन्या भ्रूण हत्या और भारत में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिये लागू किया गया था।
- इस अधिनियम ने प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान के बाद भ्रूण के लिंग निर्धारण करने वाली तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग आधारित गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
- यह अधिनियम गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग की जाँच पर रोक लगाने का प्रावधान करता है।
- कोई भी प्रयोगशाला या केंद्र या क्लिनिक भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने के उद्देश्य से अल्ट्रासोनोग्राफी सहित कोई परीक्षण नहीं करेगा।
- गर्भवती महिला या उसके रिश्तेदारों को शब्दों, संकेतों या किसी अन्य विधि से भ्रूण का लिंग नहीं बताया जा सकता।
- कोई भी व्यक्ति जो प्रसव पूर्व गर्भाधान लिंग निर्धारण सुविधाओं के लिये नोटिस, परिपत्र, लेबल, रैपर या किसी भी दस्तावेज के रूप में विज्ञापन देता है, या इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट रूप में आंतरिक या अन्य मीडिया के माध्यम से विज्ञापन करता है या ऐसे किसी भी कार्य में संलग्न होता है तो उसे तीन साल तक की कैद और 10,000 तक का जुर्माना हो सकता है।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध और मानव स्वास्थ्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र अंतर-समन्वय समूह ने ‘No Time To Wait: Securing The Future From Drug-Resistant Infections’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक हर साल दवा-प्रतिरोधी बीमारियों से 10 मिलियन लोगों की मृत्यु की आशंका है।
प्रमुख बिंदु
- एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) एक वैश्विक संकट है जो किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में बाधा उत्पन्न करता है।
- मनुष्यों, जानवरों और पौधों में प्रतिजैविक दवाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण प्रतिजैविक प्रतिरोध के प्रसार में तेज़ी आ रही है।
- इसके मद्देनज़र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है, यदि ऐसा नही होता है तो यह भावी पीढ़ियों के लिये विनाशकारी साबित हो सकता है।
- मौजूदा समय में प्रतिरोधी रोगों के कारण वैश्विक स्तर पर हर साल कम से कम 7,00,000 लोग मारे जाते हैं, जिनमें लगभग 2,30,000 ऐसे लोग शामिल हैं जो बहुऔषधि-प्रतिरोधी तपेदिक (Multidrug-Resistant Tuberculosis) से मरते हैं।
- सही समय पर रोकथाम हेतु प्रयास नहीं किये जाने की स्थिति में यह बीमारी 2030 तक करीब 24 मिलियन लोगों को गरीबी के कगार पर पहुँचा देगी तथा आने वाली पीढ़ियों को अनियंत्रित रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विनाशकारी प्रभावों का सामना करना पड़ेगा।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध के वाहक मनुष्यों, जानवरों, पौधों, भोजन और पर्यावरण में निहित हैं।
- इस प्रकार एक साझा दृष्टिकोण और लक्ष्यों वाले सभी हितधारकों को एकजुट होकर कदम उठाने की आवश्यकता है।
- सभी देशों के लिये ज़रूरी है कि वे ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता दें जिससे उनकी वित्तीय एवं क्षमता निर्माण में वृद्धि हो एवं प्रतिजैविकों के अधिक प्रयोग को रोकने के लिये तथा लोगों को जागरूक करने के लिये पेशेवर लोगों को भी साथ लाना ज़रूरी है।
- सभी देशों द्वारा प्रतिजैविक प्रतिरोध से निपटने हेतु नई प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान और विकास में निवेश करना भी आवश्यक है।
प्रतिजैविक प्रतिरोध पर संयुक्त राष्ट्र अंतर समन्वय समूह (Interagency Coordination Group-IACG)
- IACG की स्थापना 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), खाद्य और कृषि संगठन (Food And Agriculture Organisation) तथा विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (world Organisation For Animal Health- OIE) के परामर्श से की गई थी।
- IACG का उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध को रोकने के लिये व्यावहारिक रूप से मार्गदर्शन प्रदान करना है ताकि इसके प्रसार को रोका जा सके।
IACG की सिफारिशें
- सभी देशों के विकास की गति को बढ़ाना
सदस्य राज्यों हेतु एंटीमाइक्रोबियल्स से निपटने के लिये नए संसाधनों की पहुँच सुनिश्चित करने का प्रयास होना चाहिये। साथ ही एसडीजी के संदर्भ में एक स्वास्थ्य राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध कार्य योजना (One Health National Antimicrobial Resistance Action Plan) के विकास और कार्यान्वयन में तेजी लाना।
- भविष्य को सुरक्षित करने के लिये नवाचार
सरकारी, गैर-सरकारी, लोक हितैषी लोगों को इस क्षेत्र में निवेश करने हेतु आगे आना चाहिये ताकि उच्च गुणवत्ता वाले माइक्रोबियल्स का निर्माण हो सके। उच्च कोटि के नए माइक्रोबियल्स की पहुँच को सरल और सहज बनाने का प्रयास करना आवश्यक है।
- अधिक प्रभावी कार्यवाही को प्रेरित करना
रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रति एक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु नागरिक समूहों और संगठनों के बीच व्यवस्थित रूप से समन्वय आवश्यक है।
- सतत् प्रतिक्रिया के लिये निवेश आकर्षित करना
IACG एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिये ज़्यादा से ज़्यादा निवेश की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जिसमें सभी देशों में घरेलू निवेश शामिल है जो द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वित्तीय विकास संस्थान तथा बैंक एवं निजी निवेशक हो सकते हैं।
- मज़बूत जवाबदेही और वैश्विक शासन
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिये एक स्वास्थ्य वैश्विक नेतृत्व समूह की तत्काल स्थापना करने की आवश्यकता है, जो त्रिपक्षीय एजेंसियों (FAO, OIE, और WHO) द्वारा प्रबंधित एक संयुक्त सचिवालय द्वारा समर्थित हो।
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ कार्रवाई के लिये एक स्वतंत्र पैनल का गठन करने की आवश्यकता है जो इसकी निगरानी करेगा और सदस्य राज्यों को रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित विज्ञान और साक्ष्यों पर नियमित रिपोर्ट प्रदान करेगा।
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल
संदर्भ
हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) ने कहा है कि असम में विदेशियों की नज़रबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी दुर्भाग्यापूर्ण है।
प्रमुख बिंदु
- CHRI ने तर्क दिया है कि जेल में बंद लोग अमानवीय परिस्थितियों में रहते हैं एवं उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
- संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति बिना किसी प्रक्रिया के अपने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं हो सकता है।
पृष्ठभूमि
- ज्ञातव्य है कि असम सरकार ने एक हलफनामे में पाँच साल से अधिक समय तक नज़रबंदी केंद्रों में रहने वाले घोषित विदेशियों की सशर्त रिहाई और निगरानी की बात कही थी।
- इस हलफनामे में रिहाई के लिये 5 लाख की सुरक्षा राशि, पते का सत्यापन और उनके बायोमेट्रिक आँकड़ों को रखने के बात कही गई थी।
- इस पर सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि भारत सरकार और असम राज्य सरकार का रुख विदेशियों को जल्द-से-जल्द निर्वासित करने का होना चाहिये।
- पीठ ने कहा कि असम में लाखों अवैध विदेशियों की पहचान होने के बावजूद केवल 900 बंदी हैं। उनमें से ज़्यादातर पहले से ही स्थानीय आबादी में मिल चुके हैं और देश की राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानून यह कहता है कि निर्वासन केवल मूल देश की सहमति से हो सकता है और भारत का बांग्लादेश के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं है। साथ ही, बांग्लादेश ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसके नागरिक बड़ी संख्या में भारत में आते हैं।
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI)
- राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है इसमें 53 स्वतंत्र और संप्रभु राज्य शामिल हैं।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- यह दुनिया के राज्यों के सबसे पुराने राजनीतिक संगठनों में से एक है इसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य में हैं जब कुछ देशों पर ब्रिटेन द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया गया।
- 1949 में राष्ट्रमंडल अस्तित्व में आया और तब से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र के स्वतंत्र देश राष्ट्रमंडल में शामिल होते गए।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (04 May)
- मिलिट्री डिफेंस सिस्टम को साइबर अटैक से सुरक्षित रखने के लिये संभवतः अगले महीने देश की डिफेंस साइबर एजेंसी (DCA) की शुरुआत होने जा रही है। नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी रियर एडमिरल मोहित गुप्ता इसके पहले प्रमुख होंगे और इसका मुख्यालय दिल्ली में होगा। DCA अन्य देशों, खासकर पाकिस्तान और चीन से होने वाले साइबर अटैक के खतरे से निपटने का काम करेगी। साइबर एजेंसी का दायरा धीरे-धीरे देशभर में बढ़ाया जाएगा, जहाँ यूनिट में साइबर सिक्योरिटी हेड तैनात किये जाएंगे। यह एजेंसी भारतीय सशस्त्र बलों और DRDO के साथ मिलकर हैकर्स को रोकने का काम करेगी। पाकिस्तान या चीन के हैकर हमारे डिफेंस सिस्टम में सेंधमारी की कोशिश करते रहते हैं और अक्सर ऑनलाइन हमला करते रहते हैं। गौरतलब है कि सैन्य बलों में पेन ड्राइव और मैलवेयर राइड हार्डवेयर का उपयोग करने को लेकर सैन्यकर्मियों को पहले से ही चेतावनी जारी की जा चुकी है।
- 1 से 10 मई तक भारतीय और फ्राँसीसी नौसेनाओं के संयुक्त नौसेना अभ्यास का पहला भाग वरुण 19.1, गोवा समुद्र तट के निकट आयोजित किया जा रहा है। इस अभ्यास को दो चरणों में आयोजित किया जाएगा। गोवा में आयोजित हार्बर चरण में दोनों देशों के नौसेना अधिकारियों के दौरे, पेशेवर वार्तालाप एवं विचार-विमर्श तथा खेल आयोजन शामिल होंगे। समुद्री चरण में विभिन्न प्रकार के समुद्री संचालनों से जुड़े अभ्यासों को शामिल किया जाएगा। अभ्यास का दूसरा भाग वरुण 19.2 मई के अंत में जिबूती में आयोजित किया जाएगा। इस द्विपक्षीय नौसैन्य अभ्यास की शुरुआत 1983 में की गई थी। वर्ष 2001 में इसका नाम ‘वरुण’रखा गया। यह भारत और फ्राँस की रणनीतिक साझेदारी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- 2 मई को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने 13वीं शताब्दी के वैष्णव संप्रदाय के प्रख्यात गुरु, दार्शनिक एवं कवि वेदांत देसिकन की 750वीं जयंती के अवसर पर स्मारक डाक टिकट जारी किया। वेदांत देसिकन वैष्णव संप्रदाय के शुरुआती गुरुओं में से हैं। स्मारक डाक टिकट जारी करने का उद्देश्य वेदांत देसिकन को श्रद्धांजलि देने के साथ युवा पीढ़ी को उनके नक्शे-कदम पर चलने के लिये प्रोत्साहित करना है। वेदांत देसिकन सिर्फ आध्यात्मिक गुरु नहीं थे, बल्कि वह बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व थे। वह एक वैज्ञानिक, तर्कसिद्ध, गणितज्ञ, साहित्यकार, भाषा-विज्ञानी और रणनीतिकार थे। 1268 ईस्वी में जन्मे, वेदांत देसिकन वैष्णव दार्शनिक थे और रामानुज के बाद के काल में वैष्णववाद के सबसे प्रखर व्यक्तित्वों में से एक थे। उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं का आधार शांति और मानवता थी।
- अमेरिका के 25 प्रभावशाली सांसदों ने ट्रंप प्रशासन से भारत को व्यापार में दी गई सामान्य तरजीही व्यवस्था (GSP) समाप्त नहीं करने को कहा है। उन्होंने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइज़र से अपील की है कि 3 मई को 60 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत के साथ GSP कार्यक्रम को खत्म नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि इसका अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे वे अमेरिकी कंपनियाँ प्रभावित होंगी जो भारत में अपना निर्यात बढ़ाना चाहती हैं। गौरतलब है कि GSP अमेरिका का सबसे बड़ा और पुराना व्यापार तरजीही कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम चुनिंदा लाभार्थी देशों के हजारों उत्पादों को शुल्क से छूट देकर उनकी आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया था।
- कुछ समय पूर्व हनोई में हुई असफल शिखर वार्ता के बाद उत्तर कोरिया ने अमेरिकी प्रतिबंध की धमकियों को दरकिनार करते हुए 4 मई की सुबह पूर्वी सागर में कम दूरी तक मार करने वाली कई मिसाइलों का परीक्षण किया। दोनों ही पक्षों के बीच प्रतिबंधों और प्योंगयांग के परमाणु आयुधों को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी। दक्षिण कोरिया के जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अनुसार, इन्हें उत्तर कोरिया के पूर्वी तट से लगे होदो प्रायद्वीप के वोनसन के पास से प्रक्षेपित किया गया। उत्तर कोरिया के इन परीक्षण को परमाणु वार्ता में गतिरोध के मद्देनज़र अमेरिका पर दबाव बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इन मिसाइलों ने पूर्वी सागर में 70 से लेकर 100 किलोमीटर तक की दूरी तय की। यह परीक्षण ऐसे समय किया गया है जब अंतरार्ष्ट्रीय समुदाय कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर बातचीत कर रहा है। ज्ञातव्य है कि उत्तर कोरिया ने इससे पहले नवंबर 2017 में मिसाइल का परीक्षण किया था।