डेली न्यूज़ (03 Oct, 2022)



मोहनदास करमचंद गांधी

Gandhiji

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लाल बहादुर शास्त्री

Lal-Bahadur-Shastri

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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)

प्रिलिम्स के लिये:

NDMA, NDRF, सेंडाई फ्रेमवर्क, SAARC, BIMSTEC ।

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का विकास और इसकी कमियाँँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने 28 सितंबर, 2022 को अपना 18वाँ स्थापना दिवस मनाया। 

  • थीम 2022: आपदा प्रबंधन में स्वैच्छिकता।

 राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA):

  • परिचय
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है।
    • इसका औपचारिक रूप से गठन 27 सितंबर, 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष) और नौ अन्य सदस्य होंगे और इनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष पद दिया जाएगा।
    • आपदा प्रबंधन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की होती है। हालाँकि आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति केंद्र, राज्य और ज़िले, सभी के लिये एक सक्षम वातावरण बनाती है।
    • सरकार, देश के 350 ज़िलों में आपदा प्रबंधन स्वयंसेवक (आपदा मित्र) बनाने के कार्यक्रम पर काम कर रही है।
  • आपदा मित्र:
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है जिसे मई 2016 में शुरू किया गया था।
    • NDMA, इस योजना की कार्यान्वयन एजेंसी है।
    • यह आपदा-प्रवण क्षेत्रों में उपयुक्त व्यक्तियों की पहचान करने की एक योजना है, जिसमें आपदाओं की स्थिति में बचाव कार्यों के लिये आपदा मित्र को प्रशिक्षित किया जाना शामिल है।
    • इस योजना का उद्देश्य समुदाय के स्वयंसेवकों को, आपदा के बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति में अपने समुदाय की तत्काल ज़रूरतों को पूरा करने हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करना है जिससे वे अचानक बाढ़ और शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न बाढ़ जैसी आपातकालीन स्थितियों के दौरान बुनियादी राहत एवं बचाव कार्य करने में सक्षम हो सकें। 

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का विकास:

  • आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को राष्ट्रीय प्राथमिकता का महत्त्व देते हुए भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन योजनाओं पर तैयारी की सिफ़ारिश करने तथा प्रभावी शमन उपाय सुझाने हेतु अगस्त 1999 में एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी और वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप के बाद एक राष्ट्रीय कमेटी का गठन किया।
  • दसवीं पंचवर्षीय योजना के अभिलेख में भी प्रथम बार आपदा प्रबंधन पर एक विस्तृत अध्याय को शामिल किया गया है। बारहवें वित्त आयोग को भी आपदा प्रबंधन के लिये वित्तीय प्रबंध की समीक्षा हेतु अधिदेश दिया गया था।
  • 23 दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया जिसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और संबद्ध मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की स्थापना की परिकल्पना भारत में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने तथा उसके प्रति एक समग्र व एकीकृत दृष्टिकोण कार्यान्वित करने हेतु की गई।

राष्ट्रीय  आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्य तथा उत्तरदायित्व:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को स्वीकृति देना।
  • आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ तैयार करना।
  • राष्ट्रीय योजना के अनुसार केंद्र सरकार के मंत्रालयों या विभागों द्वारा बनाई गई योजनाओं को स्वीकृत करना।
  • ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करना जिनका अनुसरण कर राज्य के प्राधिकारी राज्य योजना तैयार कर सकें।
  • ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करना जिनका अनुसरण केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों या विभागों द्वारा आपदा रोकथाम के उपायों को एकीकृत करने या आपदा प्रभावों के शमन हेतु अपनी विकास योजनाओं एवं परियोजनाओं में किया जा सके।
  • आपदा प्रबंधन नीति एवं योजना के प्रवर्तन और कार्यान्वयन हेतु समन्वय करना।
  • शमन के लिये निधियों के प्रावधान की सिफ़ारिशें करना।
  • अन्य ऐसे देशो जो कि बड़ी आपदाओं से प्रभावित होते हैं, को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सहायता प्रदान करना।
  • भयावह आपदा स्थितियों या आपदाओं से निपटने हेतु रोकथाम या शमन या तैयारी और क्षमता निर्माण के ऐसे अन्य उपाय अपनाना जिन्हें वह आवश्यक समझे।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंध संस्थान की कार्यपद्धति हेतु व्यापक नीतियाँ और दिशा-निर्देश तैयार करना।

 कमियाँ और चुनौतियाँ:

  • वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान NDMA की भूमिका पर कई सवाल उठाए गए थे, जहाँ यह अचानक से आई बाढ़ और भूस्खलन के विषय में लोगों को समय पर सूचित करने में विफल रहा था, आपदा के बाद राहत संबंधी प्रतिक्रिया भी उतनी ही खराब थी। विशेषज्ञों ने बाढ़ तथा भूस्खलन शमन के लिये NDMA की अधूरी परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों के तहत परियोजनाओं को पूरा करने में देरी हुई थी।
    • ऐसा पाया गया कि नदी प्रबंधन गतिविधियों और सीमावर्ती क्षेत्रों की परियोजनाओं से संबंधित कार्यों को पूरा करने में ज़्यादा देरी हुई, जो मूलतः असम, उत्तर बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश की बाढ़ की समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान थे।
  • वर्ष 2018 में केरल और वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ के दौरान हुआ विनाश आपदा स्थितियों के संबंध में तैयारी को लेकर संस्थाओं को सजग करने वाला है।
    • वर्ष 2015 की चेन्नई की बाढ़ को CAG की रिपोर्ट ने मानव निर्मित आपदा कहा और इस विनाश के लिये तमिलनाडु सरकार को उत्तरदायी बताया।
  • NDRF कर्मियों के पास संकट की स्थितियों से निपटने हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण, उपकरणों, सुविधाओं और आवासीय सुविधा का अभाव है।
  • निधियों का दुरुपयोग: आपदाओं से निपटने के लिये सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि और राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि की स्थापना की है।
    • इनके लेखा परीक्षणों से पता चला है कि कुछ राज्यों ने उन व्ययों हेतु निधि का दुरुपयोग किया है, जिन्हें आपदा प्रबंधन के लिये स्वीकृत नहीं किया गया था।

आपदा प्रबंधन हेतु भारत के प्रयास:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना:
    • भारत ने सभी प्रकार की आपदाओं के न्यूनीकरण के संदर्भ में तेज़ी से कार्य किया है तथा आपदा प्रतिक्रिया के लिये समर्पित विश्व के सबसे बड़े बल ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ (NDRF) की स्थापना के साथ सभी प्रकार की आपदाओं की स्थिति में तेज़ी से प्रतिक्रिया की है।
  • अन्य देशों को आपदा राहत प्रदान करने में भारत की भूमिका:
    • भारत की विदेशी मानवीय सहायता में इसकी सैन्य शक्ति को भी तेज़ी से शामिल किया गया है जिसके तहत आपदा के समय देशों को राहत प्रदान करने के लिये नौसेना के जहाज़ों या विमानों को तैनात किया जाता है। 
    • "नेबरहुड फर्स्ट" की इसकी कूटनीतिक नीति के अनुरूप, राहत प्राप्तकर्ता देश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के रहे हैं।
  • क्षेत्रीय आपदा तैयारियों में योगदान:
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदा का प्रबंधन:
    • भारत ने DRR, सतत् विकास लक्ष्यों (2015-2030) और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क को अपनाया है, जो सभी DRR, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA) एवं सतत् विकास के बीच संबंधों को स्पष्ट करते हैं।

आगे की राह

  • वृहद स्तर पर नीतिगत दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है जो सभी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन और विकास योजनाओं की तैयारी एवं कार्यान्वयन को सूचित तथा मार्गदर्शन करेंगे।
  • तैयारी और शमन की संस्कृति में निर्माण करना समय की मांग है।
  • आपदा प्रबंधन प्रथाओं के विकास हेतु एकीकरण और आपदाओं की रोकथाम एवं शमन के लिये विशिष्ट विकासात्मक योजनाओं के परिचालन दिशानिर्देश तैयार किये जाने चाहिये।
  • ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रतिक्रिया हेतु योजनाओं के साथ मज़बूत पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
  • आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में समुदाय, गैर-सरकारी संगठनों, CSO और मीडिया को शामिल किया जाना चाहिये।
  • अनुकूलन और शमन के माध्यम से जलवायु जोखिम प्रबंधन को संबोधित किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये. (2016)

प्रश्न. सूखे को इसके स्थानिक विस्तार, अस्थायी अवधि, धीमी शुरुआत और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभाव को देखते हुए एक आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सितंबर 2010 के दिशा-निर्देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में संभावित अल नीनो और ला नीना नतीजों से निपटने के लिये तैयारियों के तंत्र पर चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)

प्रिलिम्स के लिये:

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाएँ (NAL)

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का महत्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने अपना 81वाँ स्थापना दिवस मनाया।

CSIR:

  • विषय: वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास (R&D) संगठन है। CSIR एक अखिल भारतीय संस्थान है जिसमें 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्थ केंद्रों, 3 नवोन्मेषी परिसरों और 5 इकाइयों का एक सक्रिय नेटवर्क शामिल है।
  • स्थापना: सितंबर 1942
  • मुख्यालय: नई दिल्ली
  • CSIR का वित्तपोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा किया जाता है तथा यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में पंजीकृत है।
  • CSIR अपने दायरे में रेडियो एवं अंतरिक्ष भौतिकी (Space Physics), समुद्र विज्ञान (Oceanography), भू-भौतिकी (Geophysics), रसायन, ड्रग्स, जीनोमिक्स (Genomics), जैव प्रौद्योगिकी और नैनोटेक्नोलॉजी से लेकर खनन, वैमानिकी (Aeronautics), उपकरण विज्ञान (Instrumentation), पर्यावरण अभियांत्रिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी तक की एक विस्तृत विषय शृंखला को शामिल करता है।
    • यह सामाजिक प्रयासों के संबंध में कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी हस्तक्षेप प्रदान करता है जिसमें पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, भोजन, आवास, ऊर्जा, कृषि-क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं।
  • संगठनात्मक संरचना:
    • अध्यक्ष: भारत का प्रधानमंत्री (पदेन अध्यक्ष)
    • उपाध्यक्ष: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (पदेन उपाध्यक्ष)
    • शासी निकाय/संचालक मंडल: महानिदेशक (Director General) शासी निकाय का प्रमुख होता है।
      • इसके अतिरिक्त वित्त सचिव (व्यय) इसका पदेन सदस्य होता हैं।
      • अन्य सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
    • CSIR सलाहकार बोर्ड: यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों का 15 सदस्यीय निकाय है। इसका कार्य शासी निकाय को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी सलाह या इनपुट्स प्रदान करना है।
      • इसके सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है।
  • उद्देश्य: परिषद का उद्देश्य राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान (Scientific and Industrial/Applied Research) करना है। ये इस प्रकार हैं:
    • वैज्ञानिक नवाचार से संबंधित संस्थानों और विशिष्ट शोधकर्त्ताओं के वित्तपोषण सहित भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान का सवर्द्धन, मार्गदर्शन तथा समन्वयन करना।
    • शोध हेतु छात्रवृत्ति और फैलोशिप प्रदान करना।
    • परिषद के तत्त्वावधान में किये गए अनुसंधान के परिणामों का उपयोग देश में उद्योगों के विकास के लिये करना।
    • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान में प्रगति के लिये प्रयोगशालाओं, कार्यशालाओं, संस्थानों तथा संगठनों की स्थापना, रखरखाव एवं प्रबंधन करना।
    • वैज्ञानिक अनुसंधानों संबंधी सूचनाओं के संग्रह और प्रसार के साथ-साथ सामान्य रूप से औद्योगिक मामलों के संबंध में भी सूचनाओं का संग्रह एवं प्रसार करना।
    • शोध पत्रों और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास से संबंधित पत्रिका का प्रकाशन करना।

CSIR की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • सामरिक क्षेत्र में:
    • दृष्टि ट्रांसमिसोमीटर (Drishti Transmissometer): यह एक स्वदेशी- नवोन्मेषी – लागत प्रभावी दृश्यता मापन प्रणाली है जो विमान चालकों को सुरक्षित लैंडिंग और टेक-ऑफ के लिये दृश्यता संबंधी जानकारी प्रदान करती है तथा सभी एयरपोर्ट श्रेणियों के उपयोग के लिये उपयुक्त है।
    • हेड-अप-डिस्प्ले (Head-Up-Display- HUD): राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रयोगशाला (CSIR-National Aerospace Laboratories- NAL) ने भारतीय हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिये स्वदेशी हेड-अप-डिस्प्ले (HUD) विकसित कर महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
      • HUD विमान की उड़ान और हथियार लक्ष्यीकरण सहित महत्त्वपूर्ण उड़ान युद्धाभ्यास में विमान चालक की सहायता करता है।
    • स्वदेशी गायरोट्रॉन (Gyrotron): CSIR द्वारा परमाणु संलयन रिएक्टर के लिये स्वदेशी गायरोट्रॉन का निर्माण और विकास किया गया है।
      • गायरोट्रॉन एक वैक्यूम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (Vacuum Electronic Device- VED) है जो उच्च-शक्ति, उच्च-आवृत्ति के THz विकिरण उत्पन्न करने में सक्षम है।
  • ऊर्जा एवं पर्यावरण क्षेत्र में:
    • सोलर ट्री (Solar Tree): इसे CSIR के दुर्गापुर स्थित केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (Central Electrochemical Research Institute- CMERI) प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है। यह स्वच्छ बिजली का उत्पादन करने के लिये न्यूनतम स्थान घेरती है।
    • लिथियम-आयन बैटरी: तमिलनाडु स्थित केंद्रीय विद्युत रसायन अनुसंधान संस्थान (Central Electrochemical Research Institute- CECRI), कराईकुडी ने पहले स्वदेशी लि-आयन (Li-ion) निर्माण प्रतिष्ठान की स्थापना की है जिसका रक्षा, सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण, रेलवे और अन्य उच्च-स्तरीय उपयोगों में अनुप्रयोग होता है।
  • कृषि क्षेत्र में:
    • औषधीय एवं सुगंधित पौधे: देश में औषधीय और सुगंधित पौधों की उन्नत खेती नई किस्मों एवं कृषि-प्रौद्योगिकियों के विकास के माध्यम से ही संभव हुई है।
    • सांबा मसूरी चावल प्रजाति: CSIR ने ICAR के साथ मिलकर एक बेहतर बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी सांबा मसूरी चावल की किस्म विकसित की है।
    • आर्सेनिक दूषित क्षेत्रों के लिये चावल की किस्म (मुक्ताश्री): चावल की एक किस्म विकसित की गई है जो अनुमेय सीमा के भीतर आर्सेनिक ग्रहण को नियंत्रित करती है।
    • सफेद मक्खी (White-fly) प्रतिरोधी कपास प्रजाति: एक ट्रांसजेनिक कपास की किस्म विकसित की गई जो कि सफेद-मक्खी के लिये प्रतिरोधी है।
  • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में:
    • कृषि मवेशियों के लिये जेडी टीका (JD Vaccine): भेड़, बकरी, गाय और भैंस को प्रभावित करने वाले फुराव रोग (Johne’s disease- JD) के लिये टीका विकसित कर इसका वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा है ताकि उन्हें रोगों से बचाते हुए दूध और मांस उत्पादन में वृद्धि की जा सके।
    • समयपूर्व जन्म और सेप्सिस रोग से होने वाली मृत्यु के लिये प्लाज़्मा जेल्सोलिन डायग्नोस्टिक किट (Plasma Gelsolin Diagnostic Kit): इसे समयपूर्व जन्म और सेप्सिस के निदान के लिये विकसित किया गया है।
    • GOMED: CSIR द्वारा GOMED (Genomics and other Omics Technologies for Enabling Medical Decision) नामक एक कार्यक्रम विकसित किया गया है जो नैदानिक समस्याओं को हल करने के लिये रोग जीनोमिक्स हेतु एक मंच प्रदान करता है।
  • खाद्य एवं पोषण के क्षेत्र में:
    • क्षीर-स्कैनर (Ksheer-scanner): यह CSIR के केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (Central Electronics Engineering Research Institute- CEERI) का नवोन्मेषी आविष्कार है जो 10 पैसे की लागत पर 45 सेकंड में दूध के मिलावट स्तर एवं मिलावटी पदार्थ का पता लगा सकता है, जिससे दूध व्यापार में सक्रिय मिलावटकर्त्ताओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
    • डबल फोर्टिफाइड नमक (Double-Fortified Salt): आयोडीन और आयरन के साथ फोर्टिफाइड नमक का विकास किया गया है जो लोगों में एनीमिया रोग को दूर कर सकता है।
    • मोटापा-रोधी डीएजी तेल (Anti-obesity DAG Oil): यह तेल पारंपरिक ट्राईसिलेग्लिसरोल (triacylglycerol-TAG) के बजाय डियासिलग्लिसरोल (Diacylglycerol- DAG) से समृद्ध है जो मोटापा को रोकता है।
  • जल क्षेत्र में:
    • जल अभावग्रस्त क्षेत्रों के जलवाही स्तर का मापन: हेलिबॉर्न ट्रांजिएंट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और सर्फेस मैग्नेटिक तकनीक पर आधारित जलवाही स्तर मापन (Aquifer Mapping) राजस्थान (2), बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के छह अलग-अलग भूवैज्ञानिक स्थलों पर किया गया।
    • गंगाजल के विशेष गुणों को समझना: गंगा की जल गुणवत्ता और तलछट विश्लेषण का अध्ययन उन विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहाँ से गंगा प्रवाहित होती है।
  • अपशिष्ट से धनोपार्जन (Waste to Wealth):
    • एक्स-रे संरक्षण के लिये अविषाक्त विकिरण परिरक्षण सामग्री: लाल कीचड़/रेड मड (एल्युमीनियम उद्योगों से) और फ्लाई ऐश (थर्मल पावर प्लांट से) जैसे औद्योगिक कचरे का उपयोग कर अविषाक्त विकिरण परिरक्षण सामग्री (Non-toxic Radiation Shielding Materials) का विकास किया गया है, जिसे नैदानिक एक्स-रे कक्ष में अनुप्रयोग हेतु परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB) की मान्यता प्राप्त है।
    • अपशिष्ट प्लास्टिक से ईंधन: अपशिष्ट प्लास्टिक को गैसोलीन/डीज़ल या एरोमेटिक्स में परिवर्तित करने की प्रक्रिया विकसित की गई है।
  • अमिट स्याही: चुनावों के दौरान मतदाताओं के नाखूनों में इस्तेमाल की जाने वाली अमिट स्याही भी CSIR द्वारा प्रदत्त एक समय-परीक्षणित उपहार है।
    • 1952 में विकसित इस स्याही का उत्पादन सर्वप्रथम परिसर में ही किया गया था। इसके बाद से औद्योगिक क्षेत्र द्वारा इस स्याही का निर्माण किया जा रहा है। इसका निर्यात श्रीलंका, इंडोनेशिया, तुर्की और अन्य लोकतांत्रिक देशों को भी किया जाता है।
  • कौशल विकास: CSIR अपनी अत्याधुनिक अवसंरचना और मानव संसाधनों का उपयोग करते हुए एक संरचित वृहत कौशल विकास पहल पर कार्य कर रहा है।
    • प्रतिवर्ष 5000 से अधिक अभ्यर्थियों को कौशल प्रदान करने के लिये लगभग 30 उच्च तकनीक कौशल/प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं।
    • कौशल विकास कार्यक्रम के दायरे में निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं: चर्म प्रक्रिया प्रौद्योगिकी; चमड़े के जूते और वस्त्र; जंग से संरक्षण के लिये पेंट तथा कोटिंग्स; इलेक्ट्रोप्लेटिंग एवं धातु परिष्करण; लेड एसिड बैटरी रखरखाव; ग्लास मनके आभूषण / ब्लू पॉटरी; औद्योगिक रखरखाव अभियांत्रिकी; इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT); तथा विनियामक- प्रीक्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी।
  • विमानन: CSIR-राष्ट्रीय अंतरिक्ष (एयरोस्पेस) प्रयोगशालाओं ने 'सारस' (SARAS) नामक एक विमान का डिज़ाइन तैयार किया है।
    • राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं और महिंद्रा एयरोस्पेस द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित भारत के पहले स्वदेशी नागरिक विमान NAL NM5 का वर्ष 2011 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
  • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी: CSIR ने विश्व में पहली बार 'पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी' (Traditional Knowledge Digital Library) की स्थापना की है। यह पाँच अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं (अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और स्पेनिश) में उपलब्ध है।
    • CSIR ने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर घावों को भरने के लिये हल्दी और कीटनाशक के रूप में नीम के उपयोग के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका में पेटेंट प्रदान किये जाने का विरोध करते हुए इसे चुनौती दी।
  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing): CSIR ने 2009 में मानव जीनोम का अनुक्रमण तैयार किया।
  • कम्प्यूटिंग: भारत का पहला समानांतर कंप्यूटर, फ्लोसोल्वर, 1986 में बनाया गया था। फ्लोसोल्वर की सफलता ने देश में अन्य सफल समानांतर कंप्यूटिंग परियोजनाओं जैसे- परम को गति प्रदान की।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है?   (2009)

(a) साहित्य
(b)  निष्पादन  कला   
(c) विज्ञान
(d) समाज सेवा   

उत्तर: C

  • इस पुरस्‍कार का नाम वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के संस्थापक निदेशक स्‍व. डॉ. (सर) शांति स्‍वरूप भटनागर के नाम पर रखा गया है और यह पुरस्‍कार “शांति स्‍वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्‍कार” के नाम से जाना जाता है।  
  • शांति स्‍वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्‍कार प्रत्येक वर्ष निम्नांकित क्षेत्रों में उल्‍लेखनीय एवं उत्‍कृष्‍ट मूल अथवा अनुप्रयुक्‍त अनुसंधान हेतु प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 500000 ूरुपए की राशि प्रदान की जाती है, य क्षेत्र हैं- (i) जैव विज्ञान (ii) रसायन विज्ञान (iii) पृथ्‍वी,वायुमंडल,महासागर एवं ग्रहीय विज्ञान (iv) इंजीनियरी विज्ञान (v) गणित (vi) चिकित्‍सा विज्ञान एवं (vii) भौतिक विज्ञान
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में अनुसंधानरत, कोई भी भारतीय नागरिक, जिसकी आयु पुरस्‍कार वर्ष के पूर्ववर्ती वर्ष में 31 दिसम्‍बर को 45 वर्ष तक हो। भारत के विदेशी नागरिक (OCI) और भारत में काम करने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) भी पात्र है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.


गीता: निस्वार्थ जीवन जीने एवं मरने की कला

मेन्स के लिय:

नैतिकता और मानव इंटरफेस

चर्चा में क्यों?

जीवन और मृत्यु दोनों ही सिद्धांतों में गांधीजी की अटूट आस्था भगवद्गीता के प्रति उनके प्रेम से आकार ग्रहण करती है और हम सभी के अनुसरण हेतु एक आदर्श उदाहरण है।

महात्मा गांधी:

  • मोहनदास करमचंद गांधी (2 अक्तूबर, 1869 - 30 जनवरी, 1948), जिन्हें 'राष्ट्रपिता' के रूप में याद किया जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता थे।
  • उन्हें महात्मा (महान-आत्मा) गांधी की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
  • उनका जीवन गरीबी उन्मूलन, महिलाओं के अधिकारों और अस्पृश्यता की प्रथा के उन्मूलन जैसे कई अन्य महान कार्यों के लिये समर्पित रहा।
  • वह अहिंसा दर्शन के अग्रदूत थे जिसने दुनिया भर में नागरिक अधिकार का नेतृत्त्व करने वालों को प्रेरित किया।
  • उनके जन्मदिन, 2 अक्तूबर को भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सम्मानित किया जाता है।

गांधी के जीवन में भगवद्गीता का महत्त्व:

  • नि:स्वार्थ कर्म का उपदेश:
    • गांधी के अनुसार, गीता हमें बताती है कि अनुशीलन करने योग्य केवल एक ही इच्छा है और वह यह है कि हम महसूस करें कि हम आत्मा (या स्वयं) हैं तथा शाश्वत आनंद प्राप्त करने हेतु उनके (ईश्वर) (अर्थात, उनके सर्वोच्च गुणों के अधिकारी) जैसा बनने की इच्छा रखें। न कि भौतिक वस्तुओं जैसे नाम, धन, दुनियादारी आदि के पीछे भागते रहें।
      • यह आत्म-अनुभूति की प्रक्रिया है, जिसमें यह समझना आवश्यक है कि हम आत्मा हैं (शरीर और मन नहीं) एवं अपने कर्म के कारण जीवन-मृत्यु के अंतहीन चक्र में फँस गए हैं।
      • कर्म का सीधा सा मतलब है कि किसी भी विचार, भाषण या दूसरों पर किये गए कार्यों का हमारे जीवन में एक समान परिणाम होगा।
  • कर्म की भूमिका:
    • गीता स्वीकार करती है कि दुनिया के निरंतर गतिशील रहने के लिये कर्म (चाहे मानसिक या शारीरिक) करने की आवश्यकता होती है।
      • गीता के अनुसार, "फल की इच्छा किये बिना कर्म करते रहो।"
    • कर्मों के फल का त्याग गीता का केंद्रीय संदेश है।
    • त्याग का अर्थ परिणामों के प्रति उदासीनता नहीं है बल्कि त्यागी वह है जो अपने कर्तव्य को हर्ष और संपूर्णता के साथ करता है तथा कर्म के फल की इच्छा रहित रहता है।
  • सत्य और अहिंसा:
    • गांधी का मानना था कि जब कोई जीवन में गीता की शिक्षा का पालन करता है, तो वह अहिंसा और सत्य का पालन करने के लिये बाध्य होता है।
      • गांधी जी के अनुसार, अहिंसा को सभी प्राणियों के विचारों, शब्दों और कार्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाने वाली अवस्था के रूप में वर्णित किया गया है।
    • यह न केवल हिंसक कार्रवाई करने से बचाता है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका भी है।
    • चूँकि यह सभी जीवित जीवों तक व्याप्त है, इसमें शाकाहारी भोजन, स्थायी जीवन शैली और पर्यावरण की सुरक्षा शामिल है।
      • क्योंकि जब फल की इच्छा नहीं होगी, तो जीवं में असत्य या हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा।
      • किसी भी असत्य या हिंसा का कारण अहंकार से भरी हुई इच्छा की पूर्ति में निहित होता है। उदाहरण के लिये हत्या, चोरी आदि पाप बिना आसक्ति के नहीं किये जा सकते।
  • मानवजाति की सेवा के माध्यम से परमेश्वर की सेवा:
    • गीता में संदेश है कि मानव जाति को एक-दूसरे की सेवा भगवान की सेवा के रूप में करनी चाहिये और गांधी ने इस संदेश का दृढ़ता से पालन किया।
    • उन्होंने बताया है कि कैसे आत्मा की स्वाभाविक प्रगति निःस्वार्थता और पवित्रता की ओर ले जाती है।
    • यही कारण है कि भारत के लोगों के जीवन की स्वतंत्रता और बेहतरी के लिये वह अपना पूरा जीवन सहजता से समर्पित करने में सक्षम रहे।
    • उनका मानना था कि अंतिम क्षणों में हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं और ऐसा करके व्यक्ति अगले जन्म में भगवान (या पूज्य गुरुओं) के गुणों एवं प्रकृति को प्राप्त कर सकता है।
    • लेकिन मरने के क्षण में ऐसा होने के लिये, व्यक्ति को आसक्ति और द्वेष से मुक्त जीवन जीना होगा और इसके लिये उसके दिल में सभी के लिये प्यार एवं क्षमा का भाव होना चाहिये। एक बार जब हम इन कौशलों में महारत हासिल कर लेते हैं, तो हमें जो शांति मिलती है उसे साधना में लगाना चाहिये।

स्रोत: लाइवमिंट


मध्याह्न भोजन योजना (पीएम पोषण योजना)

प्रिलिम्स के लिये:

बच्चों से संबंधित मुद्दे, केंद्र प्रायोजित योजना, कुपोषण, सर्व शिक्षा अभियान। 

मेन्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना और संबद्ध चुनौतियाँ। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने मध्याह्न भोजन योजना के तहत प्रति बच्चा खाना पकाने की लागत में 9.6% की बढ़ोतरी को मंज़ूरी दी है। 

  • वर्ष 2020 की शुरुआत में पिछली बढ़ोतरी के बाद से प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा I-V) में खाना पकाने की लागत 4.97 रुपए प्रति बच्चा और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में 7.45 रुपए (कक्षा VI-VIII) रही है। बढ़ोतरी के प्रभावी होने के बाद प्राथमिक स्तर तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर यह लागत क्रमशः 5.45 रुपए एवं 8.17 रुपए होगी। 

मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme) 

  • परिचय: 
    • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी। 
    • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है। 
    • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है। 
    • वर्ष 2021 में इसका नाम बदलकर 'प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण' योजना (पीएम पोषण योजना) कर दिया गया और इसमें पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं के बालवाटिका (3–5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे) के छात्र भी शामिल हैं। 
  • उद्देश्य: 
    • भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना। 
  • गुणवत्ता की जाँच: 
    • एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है। 
  • खाद्य सुरक्षा: 
    • यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी। 
  • विनियमन: 
    • राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है। 
  • पोषण स्तर: 
    • प्राथमिक (I-V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन।  
  • कवरेज़: 
    • सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसे एवं मकतब जो सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं। 

मुद्दे और चुनौतियाँ: 

  • भ्रष्ट आचरण: 
    •  नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं। 
  • जाति पूर्वाग्रह और भेदभाव:  
    • भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है। 
  • कोविड-19:  
    • कोविड -19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। 
    • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने मध्याह्न भोजन (Mid-Day Meals) सहित कई आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बाधित कर दिया है। 
    • हालाँकि इसके बजाय परिवारों को सूखा खाद्यान्न (Dry foodgrains) या नकद हस्तांतरण प्रदान किया जाता है, साथ ही इसका स्कूल परिसर में गर्म पके हुए भोजन के समान प्रभाव नहीं होगा, विशेष रूप से उन लड़कियों के लिये जो घर पर अधिक भेदभाव का सामना करती हैं तथा अधिकांश को स्कूल बंद होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। 
  • कुपोषण का खतरा:  
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है। 
    • भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का केंद्र है। 
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020:  
    •  ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे। 
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (GHI)- 2020:   

आगे की राह 

  • लड़कियों और युवतियों के मां बनने के वर्षों पूर्व  मातृत्त्व सुरक्षा और शिक्षा में आवश्यक सुधार किया जाना चाहिये। 
    • बौनापन (स्टंटिंग) के विरुद्ध लड़ाई अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण को बढ़ावा देने पर केंद्रित होती है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि मातृ स्वास्थ्य और कल्याण उनकी संतानों में बौनापन (स्टंटिंग) को कम करने की कुंजी है। 
  • अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं,  उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस