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डेली न्यूज़

  • 03 Jun, 2019
  • 46 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिकी वीज़ा प्रक्रिया में बड़ा बदलाव

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने अपने वीज़ा नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए वीज़ा आवेदन हेतु लोगों को अपने विवरण में सोशल मीडिया का विवरण देने का प्रावधान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • नए नियमों के तहत अब आवेदकों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट का नाम और उसके पाँच सालों के रिकॉर्ड की जानकारी जमा करवानी होगी। साथ ही उसे अपना ईमेल अड्रेस और फोन नंबर भी देना होगा। अमेरिकी ग्रह मंत्रालय द्वारा इन नियमों को लाने का मुख्य उद्देश्य आतंकवादियों और अन्य खतरनाक लोगों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना है।
  • अमेरिका में पढ़ाई करने और नौकरी के लिये वीज़ा का आवेदन करने वाले लोगों को नए नियमों के तहत ये सभी सारी जानकारी मुहैया करानी होगी। हालाँकि आधिकारिक और राजनयिक वीज़ा के लिये किये जाने आवेदनों को इन नियमों में शामिल नहींं किया जाएगा।
  • सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने वाले आवेदकों के पास यह विकल्प उपलब्ध होगा, जिसमें वे यह बता सकें कि वे इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
  • इन नियमों के तहत अस्थायी आगंतुकों समेत सभी वीज़ा आवेदकों को अन्य जानकारियों के साथ-साथ एक ड्रॉप डाउन मेनू (Drop-Down Menu) में अपने सोशल मीडिया पहचानकर्त्ताओं को भी सूचीबद्ध करना होगा। अभी तक इस ड्राप डाउन मेनू में केवल बड़ी सोशल मीडिया वेबसाइटों की जानकारी शामिल थी, लेकिन अब इसमें आवेदकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी वेबसाइटों की जानकारी देने की सुविधा दी जाएगी।
    • हालाँकि गलत जानकारी दिये जाने के संबंध में गंभीर आव्रजन परिणाम (Serious Immigration Consequences) भी भुगतने पड़ सकते है।

इन नए नियमों के अनुपालन से सालाना करीब 15 मिलियन लोगों के प्रभावित होने की आशंका है।उल्लेखनीय है कि इससे पहले यह नियम केवल उन लोगों पर लागू होता था जो आतंकवादी संगठनों से प्रभावित क्षेत्रों से अमेरिका जाना चाहते थे। जैसा की हम सभी जानते हैं कि आतंकवादी विचारों और गतिविधियों के प्रचार-प्रसार के लिये सोशल मीडिया एक प्रभावी साधन है। ऐसे में अमेरिका का यह कदम सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

उद्देश्य

  • इस परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य अमेरिका में प्रवेश करने की मांग करने वाले लोगों की निगरानी को बढ़ाना है, सुरक्षा दृष्टिकोण से यह निर्णय लिया गया है।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2016 में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आप्रवासन (Immigration) के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए चुनाव जीतने के बाद अवैध प्रवासियों को शरण नहींं देने की बात कही थी।
    साथ ही आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों पर निगरानी व्यवस्था को और अधिक सख्त बनाने पर भी बल दिया गया था। स्पष्ट रूप से सोशल मीडिया के विवरण की मांग इसी का परिणाम है।

भारत पर प्रभाव

  • प्रत्येक वर्ष भारत से बड़ी संख्या में लोग शिक्षा एवं नौकरी की तलाश में अमेरिका जाते हैं, नए नियमों से लगभग 10 से 12 लाख भारतीय नागरिकों के प्रभावित होने की संभावना हैं।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिका ने वापस लिये भारत के GSP लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने सामान्‍य प्राथमिकता प्रणाली (Generalized System of Preferences- GSP) के तहत भारतीय उत्पादों को शुल्क में मिलने वाली छूट आगे और जारी न रखने का एलान किया है। गौरतलब है कि यह छूट 5 जून, 2019 से समाप्त हो जाएगी।

भारत का रुख

  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के अनुसार, विशेष रूप से आर्थिक संबंधों के क्षेत्र में ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें समय-समय पर आपस में ही हल कर लिया जाता है। भारत इस मुद्दे को नियमित प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में ही देखता है और वह अमेरिका के साथ आर्थिक तथा जनसंबंध दोनों ही क्षेत्रों में मज़बूत संबंध बनाने का प्रयास भी जारी रखेगा।

क्या है GSP?

    • GSP विकसित देशों (प्राथमिकता देने वाले या दाता देश) द्वारा विकासशील देशों (प्राथमिकता प्राप्तकर्त्ता या लाभार्थी देश) के लिये विस्तारित एक अधिमान्य प्रणाली है।
    • वर्ष 1974 के ट्रेड एक्ट (Trade Act) के तहत वर्ष 1976 में शुरू की गई GSP व्यवस्था के अंतर्गत विकासशील देशों को अमेरिका को निर्यात की गई कुछ सूचीबद्ध वस्तुओं पर करों से छूट मिलती है।
    • GSP अमेरिका की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी व्यापार तरजीही (Business preferential) योजना है, जिसका उद्देश्य हज़ारों उत्पादों को आयात शुल्क में छूट देकर विकासशील देशों को आर्थिक विकास में मदद करना है।
    • इस प्रणाली के तहत विकासशील देशों को विकसित देशों के बाज़ार में कुछ शर्तों के साथ न्यूनतम शुल्क या शुल्क मुक्त प्रवेश मिलता है।
    • विकसित देश इसके ज़रिये विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं।
    • नामित लाभार्थी विकासशील देशों के लगभग 30-40 प्रतिशत उत्पादों के लिये वरीयता शुल्क मुक्त व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। भारत भी एक लाभार्थी विकासशील देश है।
    • ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, कनाडा, यूरोपीय संघ, आइसलैंड, जापान, कज़ाखस्तान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की और अमेरिका GSP को प्राथमिकता देने वाले देशों में प्रमुख हैं।
  • GSP को 1 जनवरी, 1976 को अमेरिका के ट्रेड एक्ट-1974 के तहत शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दुनियाभर के विकासशील देशों के बाज़ारों को सहारा देना था। इस कार्यक्रम में शामिल देशों को अमेरिका में अपने उत्पाद बेचने पर किसी तरह का आयात शुल्क नहीं देना होता है। इस कार्यक्रम में भारत सहित 121 देशों को शामिल किया गया है।
  • सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका कुछ देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर ड्यूटी नहीं लगाता है अर्थात् जिन देशों को GSP की सुविधा मिलती है, वे बिना किसी शुल्क के अपनी कुछ वस्तुएँ अमेरिकी बाज़ार में पहुँचा सकते हैं। इसे व्यापार की भाषा में कहें तो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में जब कोई देश किसी अन्य देश को कुछ सामान बेचता है तो उसे ड्यूटी अदा करनी पड़ती है। ऐसे में सामान की कीमत बढ़ जाती है और जब ड्यूटी नहीं लगती तो कीमत कम रहती है एवं वह वस्तु अधिक बिकती है। इससे मुनाफा तो बढ़ता ही है, व्यापार में भी वृद्धि होती है।

भारत और GSP

  • भारत GSP का सबसे बड़ा लाभार्थी है, जिसे वर्ष 2017-18 में 19 करोड़ डॉलर का फायदा हुआ था।
  • GSP के तहत भारत ने 5.6 अरब डॉलर का निर्यात किया था, जो कुल निर्यात का 11% है।
  • GSP के तहत 3700 उत्पादों को छूट मिली हुई है, परंतु भारत केवल 1900 उत्पादों का निर्यात करता है।

अमेरिका की चिंताएँ

  • भारत को होने वाले GSP लाभों के तहत अमेरिका प्रतिवर्ष 190 मिलियन डॉलर की कर छूट दे रहा था। लेकिन भारत को अपने यहाँ से निर्यात होने वाले स्टेंट जैसे कुछ मेडिकल उपकरणों को लेकर वह समय-समय पर चिंताएँ जाहिर करता रहा है। भारत सैद्धांतिक रूप से मेडिकल उपकरणों के बारे में अमेरिका की चिंताओं को हल करने के लिये तैयार था।
  • इसी प्रकार दुग्‍ध उत्‍पादों की बाज़ार पहुँच से जुड़े मुद्दों पर भारत ने स्‍पष्‍ट किया कि इनके लिये यह प्रमाणित होना आवश्यक है कि स्रोत पशुधन को अन्‍य पशुधन से प्राप्‍त रक्‍ताहार कभी नहीं दिया गया है। यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को ध्‍यान में रखते हुए है और इसके बारे में कोई वार्ता संभव नहीं है।
  • अल्फाफा, चैरी और पोर्क जैसे उत्‍पादों के बारे में अमेरिकी बाज़ार पहुँच के अनुरोधों की स्‍वीकार्यता से अवगत कराया गया था। भारत ने स्‍पष्‍टत: अमेरिका के हितों से जुड़ी विशेष वस्तुओं पर कर में रियायत देने की इच्‍छा से अवगत कराया।
  • गौरतलब है कि तेल और प्राकृतिक गैस तथा कोयला जैसे सामानों की खरीद बढ़ने से भारत के साथ अमेरिकी व्‍यापार घाटे में वर्ष 2017 और वर्ष 2018 में काफी कमी हुई है। वर्ष 2018 में 4 बिलियन डॉलर से अधिक कमी का अनुमान है।
  • भारत में ऊर्जा और विमानों की बढ़ती मांग जैसे घटकों के परिणामस्‍वरूप भविष्‍य में इसमें और भी कमी होने का अनुमान है। अरबों डॉल्रर के राजस्‍व वाली अमेरिकी सेवाओं और एमेज़न/अमेज़न, उबर, गूगल तथा फेसबुक आदि जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये भी भारत एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार है।

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GSP छूट वापस

स्रोत- पीआईबी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने द्विविमीय फिल्म (Dimensional Film) पर गोल्ड के नैनोकणों (Nanoparticles) की ड्राप-कास्टिंग करके टंगस्टन डाईसेलेनाइड (Tungsten Diselenide- WSe2) के ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक गुणों (ऑप्टिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स का संयोजन) में लगभग 30 गुना तक वृद्धि करने के उपाय की खोज की है।

एक सरल प्रक्रिया में एक अधःस्तर (substrate) पर किसी विलयन को बूंद-बूंद करके टकराने/गिराने की प्रक्रिया को ड्रॉप कास्टिंग कहा जाता है।

  • उल्लेखनीय है कि इस अध्ययन का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू कमरे के तापमान पर 100 केल्विन तक इन पदार्थों का नियंत्रित फोटोलुमिनेसेंस (Photoluminescence) माप करना था।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं द्वारा किया गया यह शोध एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स (Appलियेd Physics Letters) नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
  • टंगस्टन डाईसेलेनाइड (WSe2) और मोलिब्डेनम डाईसेलेनाइड (MoSe2) जैसे पदार्थों का उनके ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक गुणों (Opto-Electronic Properties) के विश्लेषण के लिये गहन अध्ययन किया जा रहा है।
  • इन पदार्थों का एक प्रमुख गुण प्रकाश संदीप्ति/फोटोलुमिनेसेंस (Photoluminescence-PL) है, जिसमें पदार्थ प्रकाश को अवशोषित करता है और इसे स्पेक्ट्रम के रूप में फिर से उत्सर्जित करता है।

द्विविमीय पदार्थ (Two-dimensional Material)

परमाणुओं की वास्तविक रूप में एक परत से मिलकर बनने वाले पदार्थ की संरचना दो आयामी/द्विविमीय (Two-dimensional) होती हैं।

  • फोटोलुमिनेसेंस गुणों का उपयोग विभिन्न उपकरणों जैसे कि क्वांटम LED तथा उपयोग संचार और अभिकलन (Computation) में किया जा सकता है।
  • अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉन ऊर्जा बैंड के रूप में जुड़े रहते हैं जिसे संयोजकता बैंड (Valance Band) कहा जाता है और ये इलेक्ट्रॉन के चालन में योगदान करते हैं। परंतु, जैसे ही इनमें बाहर से कुछ ऊर्जा संचालित/अपवाहित की जाती है जिसे चालन बैंड (Conduction Band) कहा जाता है, तो ये अर्द्धचालक अस्थाई हो सकते हैं और चारों तरफ से चालन में योगदान कर सकते हैं।

एक्साइटॉन (Exciton)

  • जब एक इलेक्ट्रॉन चालन/संवहन बैंड के तहत संयोजकता से निकलता है, तो यह पीछे एक प्रतिछाया छोड़ जाता है जिसे ‘होल’ (Hole) कहते हैं। चालन बैंड के इलेक्ट्रॉन और संयोजकता बैंड के होल एक साथ मिलकर एक बैंड बना सकते हैं, जिससे एक संघटित वस्तु (Composite Object) या छद्मकण (Pseudoparticle) का निर्माण होता है जिसे एक्साइटॉन के रूप में जाना जाता है। टंगस्टन सेलेनाइड में फोटोलुमिनेसेंस ऐसे ही एक्साइटॉन्स का एक परिणाम है।
  • एक्साइटॉन का निर्माण दो तरीकों से हो सकता है। पहला जब किसी घटक में इलेक्ट्रॉन और होल का चक्रण (Spin) एक-दूसरे के विपरीत दिशा में हो और दूसरा जब वे एक ही दिशा में संरेखित हों। पहली स्थिति में बनने वाले एक्साइटॉन ब्राइट एक्साइटॉन (Bright Exciton) और दूसरी स्थिति में बनने वाले एक्साइटॉन को डार्क एक्साइटॉन (Dark Exciton) कहा जाता है।
  • चूँकि ब्राइट एक्साइटॉन बनाने वाले इलेक्ट्रॉन और होल एक दूसरे-की विपरीत दिशा में चक्रण करते हैं, अतः ये पुनः संयोजित होकर काफी मात्रा में प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। लेकिन पुनर्संयोजन का यह तरीका डार्क एक्साइटॉन के लिये उपलब्ध नहीं है।
  • चूँकि इलेक्ट्रॉन और होल के चक्रण एक-दूसरे समानांतर होते हैं, उनके पुनर्संयोजन को कोणीय संवेग संरक्षण के नियम (Rule of Conservation of Angular Momentum) से हतोत्साहित किया जाता है। इसलिये डार्क एक्साइटॉन, ब्राइट एक्साइटॉन की तुलना में लंबे समय तक बने रहते हैं।
  • डार्क एक्साइटॉन को पुनर्संयोजन में मदद करने के लिये बाह्य प्रभाव की आवश्यकता होती है। IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने इन्ही बाह्य प्रभावों का पता लगाने का प्रयास किया है।

गोल्ड की क्षमता

  • जब शोधकर्त्ताओं निष्कर्ष निकाला है कि जब गोल्ड के नैनोकणों को एकल स्तरीय टंगस्टन डाईसेलेनाइड की सतह पर ड्राप कास्ट किया जाता है तो सतह पर पर डार्क एक्साइटॉन्स के युग्म की उत्पत्ति होती है जो प्रकाश उत्सर्जित करने के लिये पुनर्संयोजित होते हैं। इस प्रकार गोल्ड के नैनोकणों की मदद से डार्क एक्साइटॉन्स को ब्राइट एक्साइटॉन्स में बदल जाते हैं।
  • गोल्ड के नैनोकणों के कारण उत्पन्न प्लास्मोनिक प्रभाव (Plasmonic effect) एक प्रसिद्ध अवधारणा है। लेकिन, द्विविमीय प्रणाली के लिये इसका उपयोग अभी नया है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार यदि एकल स्तरीय (Monolayer) टंगस्टन डाईसेलेनाइड पर गोल्ड के नैनोकणों को ड्राप-कास्ट किया जाएगा तो यह प्लास्मोनिक प्रभाव के कारण समतलीय विदुतीय क्षेत्र उत्पन्न करेगा जो चालन बैंड के इलेक्ट्रॉनों के चक्रण को उसी स्थिति में बनाए रखने में मदद कर सकता है, इससे डार्क एक्साइटॉन, ब्राइट एक्साइटॉन में परिवर्तित हो जाते हैं।

स्रोत- द हिंदू


विविध

जीन एडिटिंग और अंतर्राष्ट्रीय विवाद

चर्चा में क्यों?

चीन के एक शोधकर्त्ता ने जीन एडिटिंग उपकरण (Gene Editing Tool), CRISPR-CAS9 का प्रयोग ऐसे जीन को संशोधित/परिवर्तित करने के लिये किया जो कि एचआईवी (HIV) से संक्रमित था। CRISPR-CAS9 नामक इस जीन एडिटिंग का प्रयोग एक गर्भवती महिला के भ्रूण पर भी किया, यह गर्भवती महिला अगस्त में जुड़वाँ बच्चियों को जन्म देने वाली है। जीन एडिटिंग प्रक्रिया द्वारा बच्चियों के जन्म लेने की घोषणा ने चिकित्सकीय शोध के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय विवाद को जन्म दे दिया है।

क्या है विवाद?

  • हालाँकि चीन ने अभी तक इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये हैं परंतु वैज्ञानिकों एवं नैतिक समुदायों में एक आम सहमति है कि CRISPR-Cas9 जीन-एडिटिंग तकनीक का प्रयोग भ्रूण में नहीं किया जाना चाहिये।
  • इस विचार के संदर्भ में भी आम सहमति व्याप्त है कि जीन एडिटिंग तकनीक का प्रयोग केवल गंभीर बिमारियों के निदान के लिये किया जाना चाहिये। हालाँकि एचआईवी एक गंभीर और लाईलाज बीमारी है लेकिन औषधियों के प्रयोग द्वारा इसके वायरस को नियंत्रण में रखा जा सकता है। ऐसे में यह मुद्दा विवाद का विषय बना गया है।
  • सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि जीन एडिटिंग द्वारा जीन को निष्क्रिय कर एचआईवी संक्रमण को पूरे तरीके से खत्म किया जा सकता है। ऐसे किसी कार्य का परीक्षण करने के लिये विश्व भर में क्लिनिकल ट्रायल की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।
  • इस प्रकार के जीन एडिटिंग के निश्चित तौर पर कुछ साइड-इफेक्ट भी होंगे, उनसे निपटने के लिये हमारे पास किसी भी प्रकार की सुविधा मौजूद नहीं है।
  • एचआईवी संक्रमण से बचाव के लिये किये जाने वाले इस एडिटिंग की प्रक्रिया को बगैर किसी क्लिनिकल ट्रायल डाटा और सहमति के प्रयोग में लाना एवं किसी बच्चे/भ्रूण पर इसका प्रयोग अनैतिकता के दायरे में आता है।
  • नेचर पत्रिका के अनुसार, जिस संभावित अस्पताल ने डॉ. हे को गर्भवती महिलाओं पर तकनीक का इस्तेमाल करने की नैतिक स्वीकृति दी थी, ने एक प्रेस बयान जारी कर इस बात से इनकार किया है। उक्त अस्पताल ने इस शोध हेतु प्रयोग में लाए गए सहमति-प्रपत्र पर भी सवाल उठाते हुए यह बयान जारी किया है कि कथित शोध के संबंध में किसी भी प्रकार की प्रक्रियागत बैठक नहीं हुई थी।
  • सहमति-प्रपत्र में दी गई जानकारी से पता चलता है कि जिन माता-पिता ने इस प्रयोग में भाग लिया था, उन्हें जीन को निष्क्रिय करने की समस्याओं के बारे में नहीं बताया गया था। जिस दिन इस खबर को प्रेस में छपा गया उसी दिन चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने ग्वांगग्डोंग स्वास्थ्य आयोग ( Guangdong Health Commission) जाँच के आदेश जारी कर दिये थे।
  • इस जाँच में यह पाया गया कि कथित शोधकर्त्ता चिकित्सक ने प्रजनन उद्देश्यों के लिये जीन-संपादन का उपयोग कर राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया था। जाँच वैज्ञानिकों के अनुसार, डॉ. हे द्वारा किया गया यह अनुप्रयोग वर्ष 2003 के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है जो स्पष्ट रूप से, प्रजनन उद्देश्य को पूरा करने के लिये भ्रूण के जीन से छेड़-छाड़ को प्रतिबंधित करता है।
  • 26 फरवरी को चीन ने एक मसौदा पेश किया, जिसमें शोधकर्त्ताओं को क्लिनिकल ट्रायल करने से पूर्व सरकार से अनुमति लेने को आवश्यक बनाया गया। कथित नियमों के उल्लंघन में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाएगा और संबंधित शोध को आजीवन प्रतिबंधित किये जाने का भी प्रावधान है।

जीन एडिटिंग (CRISPR Cas-9)

  • CRISPR Cas-9 तकनीक की खोज वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2012 में की गई थी यह तकनीक प्रतिरक्षा प्रणाली ( Immune Systemका एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
  • जीन एडिटिंग वह तकनीक है जिसका उपयोग किसी जीव के जीनों में परिवर्तन करने या उसके आनुवंशिक गठन में फेरबदल करने में किया जा सकता है।
  • CRISPR तकनीक के माध्यम से संपूर्ण आनुवंशिक कोड में से लक्षित हिस्सों (विशिष्ट हिस्सों) या विशेष स्थान पर DNA की एडिटिंग की जा सकती है।
  • CRISPR-CAS9 तकनीक आनुवंशिक सूचना धारण करने वाले DNA के सिरा (Strands) या कुंडलित धागे को हटाने और चिपकाने (Cut and Paste) की क्रियाविधि की भाँति कार्य करती है।
  • DNA सिरा के जिस विशिष्ट स्थान पर आनुवंशिक कोड को बदलने या एडिट करने की आवश्यकता होती है, सबसे पहले उसकी पहचान की जाती है।
  • इसके पश्चात् CAS-9 के प्रयोग से (CAS-9 कैंची की तरह कार्य करता है) उस विशिष्ट हिस्से को हटाया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि DNA सिरा के जिस विशिष्ट भाग को काटा या हटाया जाता है उसमें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्माण, मरम्मत, या बनने की प्रवृति होती है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा स्वत: मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ही हस्तक्षेप किया जाता है और आनुवंशिक कोड में वांछित अनुक्रम या परिवर्तन की क्रिया पूरी की जाती है, जो अंततः टूटे हुए DNA सिरा पर स्थापित हो जाता है।
  • कथित घटना में चिकित्सक शोधकर्त्ता ने जुड़वाँ बहनों में उपस्थित CCR5 नामक जीन को निष्क्रिय करने हेतु CRISPR CAS-9 जीन एडिटिंग का प्रयोग किया। इस जीन एडिटिंग में एक प्रोटीन को एनकोड कराया जाता है ताकि एचआईवी कोशिका में प्रवेश कर उसे संक्रमित कर सके।

CCR5 जीन और HIV

  • एचआईवी के कुछ अन्य उपभेद कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिये एक और प्रोटीन (CXCR4) का उपयोग करते हैं।
  • यहाँ तक ​​कि जो लोग CCR5 जीन की दो प्रतियों के साथ पैदा होते हैं लेकिन इनकी CCR5 जीन की दोनों प्रतियाँ क्रियाशील नहीं होती है वे एचआईवी संक्रमण के खिलाफ पूरी तरह से संरक्षित या प्रतिरोधी नहीं होते हैं।
  • यह भी संभावना है कि जीन एडिटिंग टूल के प्रयोग द्वारा जीनोम के अन्य भागों में अनपेक्षित रूप से म्युटेशन हो सकता है जिससे संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँच सकता है।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दवाओं, ऑपरेशन के माध्यम से बच्चे के जन्म और बिना माँ के दूध के सेवन से भ्रूण में माँ से होने वाले वर्टीकल वायरल संचरण (Vertical Viral Transmission) को रोका जा सकता है। एचआईवी से पीड़ित महिलाओं से भ्रूण के संक्रमित होने संभावना अधिक होती है, कथित घटना में माँ एचआईवी-मुक्त थी, जबकि पिता एचआईवी संक्रमित थे।

CCR5 जीन के फायदे

  • वेस्ट नील वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।
  • नेचर पत्रिका के अनुसार, CCR5 जीन फेफड़े (LUNG),गुर्दे ( LIVER), और दिमाग (BRAIN) में होने वाले गंभीर किस्म के संक्रमण एवं बिमारियों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
  • फेफड़ों में होने वाले इन्फ्लुएंजा के संक्रमण से लड़ने के लिये प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है।
  • इस जीन की अनुपस्थिति में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कार्य करना बंद कर देगी।
  • इस जीन की अनुपस्थिति से मल्टीपल स्केलेरोसिस नामक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों की जल्द मृत्यु होने की संभावना दोगुनी हो जाएगी।

भारतीय विरासत और संस्कृति

रॉक आर्ट/शैल चित्र का विनाश

चर्चा में क्यों?

नीलगिरि के जंगलों में किल कोटागिरी (Kil Kotagir) के करिकियूर (Karikiyoor) में 40 प्रतिशत रॉक पेंटिंग्स (शैल चित्रकला) मानवीय हस्तक्षेप के कारण नष्ट हो रही है।

  • इरुला आदिवासी समुदाय (Irula Tribal Community), जो नीलगिरी वन के रॉक आर्ट साइट के उत्तराधिकारी हैं, अवैध ट्रेकर्स द्वारा इन चित्रकलाओं को पहुँच रही क्षति के कारण बेहद नाराज़ है।
  • करिकियूर में शैल चित्रों पर पाई जाने वाली लिपियों के चित्र उत्तरी भारत के सिंधु सभ्यता स्थलों में पाई गई लिपि से मिलते जुलते हैं।

इरुला आदिवासी/जनजाति (Irula Tribal Community)

  • इरुला जनजाति तमिलनाडु के उत्तरी ज़िलों तिरुवलुर जनपद (बड़ी संख्या में), चेंगलपट्टू, कांचीपुरम, तिरुवान्नामलाई आदि तथा केरल के वायनाड, इद्दुक्की, पलक्कड़ आदि ज़िलों में बड़ी संख्या में निवास करती हैं।
  • इस जनजाति समूह की उत्पत्ति दक्षिण पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया के जातीय समूहों से हुई है।
  • ये इरुला भाषा बोलते हैं जो कन्नड़ और तमिल की तरह द्रविड़ भाषा से संबंधित है।
  • इरुला विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) में से एक हैं।

Tamil Nadu

विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह

(Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs)

  • विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह भारत की अनुसूचित जनजातियों के हाशिये पर रहने वाले वर्ग हैं, जो शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हैं तथा मूलभूत सुविधाओं की पहुँच से बहुत दूर रहते हैं।
  • यह समूह संवैधानिक श्रेणी में नहीं हैं तथा न ही इन्हें संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।
  • भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 75 जनजातीय समूहों को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • ये समूह 18 राज्यों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह संघ राज्य-क्षेत्र में रहते हैं।
  • जिसका प्रमुख उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका तथा कौशल विकास, कृषि विकास, आवास तथा अधिवास, संस्कृति का संरक्षण आदि क्षेत्रों में समुदायों की स्थितियों में सुधार करना एवं उन्हें सक्षम बनाना है।

रॉक आर्ट/शैल चित्र

  • यह मानव द्वारा निर्मित प्राकृतिक पत्थर पर अंकित छाप हैं।
  • इसे सामान्यतः तीन रूपों में विभाजित किया जाता है:
  • शैलोत्कीर्ण (Petroglyphs): जो चट्टान की सतह पर खुदे हुए हैं।
  • चित्रलिपि (Pictographs): जिन्हें सतह पर चित्रित किया गया है।
  • अल्पना/रंगोली/अर्थ फीगर्स (Earth Figures): जो ज़मीन पर बने हुए हैं।
  • भारत में शैल चित्र मुख्य रूप से निम्नलिखित गुफाओं में पाए जाते हैं:
    • भीमबेटका गुफाएँ (Bhimbetka caves): ये होशंगाबाद तथा भोपाल के बीच स्थित हैं।
    • बाघ गुफाएँ (Bagh caves): मध्य प्रदेश के धार ज़िले में बाघनी नदी के तट पर स्थित है।
    • जोगीमारा गुफाएँ (Jogimara caves): यहाँ बने चित्र अजंता और बाग की गुफाओं के शैल चित्रों से भी पुराने हैं और इनका संबंध बुद्ध (Buddha) से पूर्व की गुफाओं से हैं। ये गुफाएँ छतीसगढ़ के सरगुज़ा ज़िले में नर्मदा के उद्गम स्थल के निकट अमरनाथ में स्थित हैं।
    • अरमामलाई गुफाएँ (Armamalai caves): तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में स्थित अरमामलाई के गुफा चित्र, प्राचीन चित्रों, शैल उत्तकीर्णों (Petroglyphs) और शैल चित्रों के साथ एक जैन मंदिर के लिये जानी जाती हैं।

महत्त्व

  • रॉक पेंटिंग/शैल चित्रकला, शिकार की विधि एवं स्थानीय समुदायों के जीवन जीने के तरीकों का एक ‘ऐतिहासिक रिकॉर्ड’ के रूप में विवरण प्रस्तुत करती है।
  • स्थानीय निवासियों द्वारा रॉक कला का उपयोग अनुष्ठानिक उद्देश्य के लिये किया जाता था।
  • आदिवासी समुदाय के लोग शैलों पर उत्कीर्ण चित्रों का अनुकरण कर अपने रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

गूगल, अमेज़ॅन और एंटीट्रस्ट स्क्रूटनी

चर्चा में क्यों?

गूगल और अमेज़ॅन (Google and Amazon) उपभोक्ता गोपनीयता, श्रम की स्थिति और सार्वजनिक चर्चा को प्रभावित करने तथा साख विरोधी कानून के उल्लंघन के आरोपों के तहत जाँच के दायरे में हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिकी सरकार की एंटी ट्रस्ट प्रवर्तन एजेंसियाँ, संघीय व्यापार आयोग (Trade Commission) और न्याय विभाग (Department of Justice) क्रमशः अमेज़ॅन और गूगल के खिलाफ एंटीट्रस्ट जाँच कर रहे हैं।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2018 में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने भी अनुचित व्यापार व्यवहारों और भारत में साख विरोधी आचरण का उल्लंघन करने के आरोप में गूगल पर 1 करोड़ 36 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।

गूगल और अमेज़ॅन का मुद्दा

  • अमेज़ॅन: के मार्केटप्लेस प्लेटफ़ॉर्म पर एकतरफा अनुबंध, विज्ञापन नीतियों और क्रूर प्रतिस्पर्द्धात्मक वातावरण का आरोप लगाया जाता है।
    • अमेज़ॅन की निरंतर वृद्धि भी इसे क्रेता एकाधिकार जैसी शक्ति प्रदान कर सकती है।
  • गूगल: पर कुछ विज्ञापनों और ऑनलाइन सर्च के प्रति पक्षपात करते हुए ऑनलाइन सर्च मार्केट के प्रभुत्व का दुरुपयोग करने का आरोप है।
    • वर्ष 2017 में यूरोपीय नियामकों ने भी विज्ञापनों से संबंधित एक मामले में गूगल पर 1.7 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया था।

साख विरोधी कानून

  • साख विरोधी कानून (Antitrust Law) को प्रतिस्पर्द्धा कानूनों के रूप में भी जाना जाता है, जिसका उद्देश्य व्यापार और वाणिज्य को अनुचित प्रतिबंधों, एकाधिकार और मूल्य निर्धारण से सुरक्षित रखन है।
    • साख विरोधी कानून यह सुनिश्चित करते हैं कि खुले बाज़ार की अर्थव्यवस्था में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा मौजूद है।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 भारत का साख विरोधी कानून (Antitrust Law) है जिसने एकाधिकार और अवरोधक व्‍यापार व्‍यवहार अधिनियम, 1969 (Monopolistic and Restrictive Trade Practices Act of 1969) को निरस्‍त किया एवं प्रतिस्पर्द्धा संरक्षण की आधुनिक संरचना की व्‍यवस्‍था की।

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002

  • 3 प्रतिस्पर्द्धा विरोधी समझौतों का निषेध
  • प्रभुत्व के दुरुपयोग की रोकथाम
  • संयोजनों (विलय और अधिग्रहण) का विनियमन

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

  • अर्थव्यवस्था में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के सृजन और इस संदर्भ में ‘सबको समान अवसर प्रदान’ करने के लिये संसद द्वारा 13 जनवरी, 2003 को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 को लागू किया गया था।
  • 14 अक्तूबर, 2003 से केंद्र सरकार द्वारा भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) की स्थापना की गई थी। इसके बाद प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
  • 20 मई, 2009 को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौते और प्रमुख स्थितियों के दुरुपयोग से संबंधित अधिनियम के प्रावधानों को अधिसूचित किया गया।
  • यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर के अलावा संपूर्ण भारत में लागू होता है।
  • एक अध्यक्ष और छह सदस्यों के साथ भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग पूरी तरह से कार्यात्मक है।
  • आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं :-
    • व्यापार से संबंधित प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव करने वाले कारकों को रोकना।
    • बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना।
    • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
    • व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।

स्रोत- टाइम्स ऑफ इंडिया


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (03 June)

  • इसरो के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन के अध्यक्षता में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिये गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को सौंप दी। समिति में के. कस्तूरीरंगन के अलावा आठ सदस्य थे। इस रिपोर्ट में पाठ्यक्रम में भारतीय शिक्षा प्रणाली को शामिल करने, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन और निजी स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने पर रोक लगाने जैसी सिफारिशें की हैं। इस समिति ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया। इस नीति के प्रारूप में कहा गया है कि ज्ञान में भारतीय योगदान और ऐतिहासिक संदर्भ को जहां भी प्रासंगिक होगा, उनको मौजूदा स्कूली पाठ्यक्रम और पाठ्य-पुस्तकों में शामिल किया जाएगा। इसके तहत गणित, खगोल शास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, योग, वास्तुकला, औषधि के साथ ही शासन, शासन विधि, समाज में भारत का योगदान को शामिल किया जाए। निरंतर और नियमित आधार पर देश में शिक्षा के दृष्टिकोण को विकसित करने, मूल्यांकन करने और संशोधन करने के लिये एक नई शीर्ष संस्था राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया जाए। शिक्षा और पठन-पाठन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय किया जाना चाहिये । निजी स्कूलों को अपने शुल्क को तय करने के लिये मुक्त किया जाए, लेकिन वे इसमें मनमाने तरीके से इजाफा नहीं कर सकें, इसके लिये कई सुझाव दिये गये हैं। गौरतलब है कि वर्तमान में चल रही शिक्षा नीति 1986 में तैयार हुई थी और 1992 में इसमें संशोधन किया गया था।
  • नई सरकार ने देश में पहली बार जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है। जल संसाधन, नदी विकास, पेयजल एवं स्वच्छता तथा गंगा संरक्षण मंत्रालयों को मिलाकर बनाए गए इस नए मंत्रालय का कैबिनेट प्रभार जोधपुर के सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को सौंपा गया है। रतन लाल कटारिया को इस नवगठित मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। इस मंत्रालय के गठन के बाद अब जल संबंधी सभी कार्य एक ही मंत्रालय में निहित होंगे। देश के अधिकांश हिस्सों में पेयजल संकट की समस्या है, ऐसे में इस मंत्रालय की अहमियत बढ़ जाती है। इस मंत्रालय के सामने सबसे अहम चुनौती पाकिस्तान बहकर जा रहे भारत के हिस्से के पानी को रोकने की परियोजना पर काम करने की है, ताकि इस पानी का देश में ही उपयोग किया जा सके। अलग-अलग राज्यों के बीच पानी को लेकर चल रहे टकरावों को सुलझाने के अलावा नदी-जोड़ो परियोजना पर भी इस मंत्रालय को अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। 
  • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) के नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि देश में आने वाले FDI में पिछले छह वर्षों में पहली बार 2018-19 में गिरावट दर्ज की गई है। दूरसंचार, फार्मा और अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश में गिरावट से कुल FDI 1% गिरकर 44.37 अरब डॉलर रहा। 2017-18 में यह आँकड़ा 44.85 अरब डॉलर था। 2018-19 में दूरसंचार क्षेत्र में FDI 2.67 अरब डॉलर रहा, जो 2017-18 में 6.21 अरब डॉलर था। इसी अवधि में निर्माण विकास में FDI 54 करोड़ डॉलर से घटकर 21.3 करोड़ डॉलर, फार्मास्यूटिकल्स में एक अरब डॉलर से घटकर 26.6 करोड़ डॉलर और ऊर्जा क्षेत्र में 1.62 अरब डॉलर से घटकर 1.1 अरब डॉलर रह गया। इस अवधि में जिन प्रमुख क्षेत्रों में FDI में वृद्धि दर्ज की गई, उनमें सेवा क्षेत्र (9.15 अरब डॉलर), कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर (6.41 अरब डॉलर), ट्रेडिंग (4.46 अरब डॉलर) और वाहन क्षेत्र (2.62 अरब डॉलर) शामिल हैं। 
    Falling outइसके अलावा 2018-19 में भारत में FDI करने वाले देशों में सिंगापुर ने मॉरीशस को पीछे छोड़ दिया, इसमें सिंगापुर की हिस्सेदारी 16.22 अरब डॉलर रही, जबकि मॉरीशस से आठ अरब डॉलर आए। अन्य प्रमुख देशों में जापान, नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, साइप्रस, संयुक्त अरब अमीरात और फ्राँस शामिल हैं। 
  • 3 जून को दुनियाभर में विश्व साइकिल दिवस का आयोजन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल ही 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के तौर पर घोषित किया था। दुनियाभर की सरकारें और पर्यावरण की चिंता करने वाले लोग शहरी पर्यावरण की सुरक्षा के लिये साइकिल सवारी को बढ़ावा देने में जुटे हैं। फ्रांस ने अपनी राजधानी पेरिस को वर्ष 2020 तक दुनियाभर की साइकिलिंग राजधानी बनाने के लिये 1.5 करोड़ यूरो की योजना बनाई है। देश की राजधानी नई दिल्ली में विश्व साइकिल दिवस के मौके पर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने नई दिल्ली नगर पालिका परिषद की जन साइकिल भागीदारी योजना के एक स्मार्ट साइकिल स्टेशन का भी उद्घाटन किया। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद क्षेत्र में इस तरह के 50 स्मार्ट साइकिल स्टेशन बनाने की योजना है। इस वर्ष विश्व साइकिल दिवस की थीम Less Cycling Affecting Health & Environment रखी गई है।
  • वायुसेना प्रमुख बीरेंद्र सिंह धनोआ को चीफ ऑफ स्टॉफ कमेटी (COSC) का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। वह नौसेना प्रमुख सुनील लांबा का स्थान लेंगे, जो 1 जून को सेवानिवृत्त हो गए। ज्ञातव्य है कि करमबीर सिंह नौसेना के नए प्रमुख बनाए गए हैं। चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी में सेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख होते हैं और वरिष्ठतम सदस्य को इसका चेयरमैन नियुक्त किया जाता है। चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन के पास तीनों सेनाओं के बीच तालमेल सुनिश्चित करने और देश के सामने मौजूद बाहरी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये सामान्य रणनीति तैयार करने की ज़िम्मेदारी होती है।

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