अंतर्राष्ट्रीय संबंध
H-4 वीज़ा और H1-B वीज़ा धारकों की चिंताएँ
- 27 Apr 2018
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा H-4 वीज़ा धारकों को जारी किये गए वर्क परमिट वापस लेने की योजना पर विचार किया जा रहा है, जो H1-B वीज़ा धारकों को प्रभावित करेगा। ध्यातव्य है कि इस कदम से अधिकतर भारतीय प्रभावित होंगे और उनमें भी सर्वाधिक प्रभाव भारतीय महिलाओं पर पड़ेगा।
H1-B वीज़ा क्या है ?
- गौरतलब है कि अमेरिका में रोज़गार के इच्छुक लोगों को H1-B वीज़ा प्राप्त करना होता है।
- H1-B वीज़ा वस्तुतः ‘इमीग्रेशन एण्ड नेशनलिटी एक्ट’ (Immigration and Nationality Act) की धारा 101(a) और 15(h) के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका में रोज़गार के इच्छुक गैर-अप्रवासी (Non-immigrants) नागरिकों को दिया जाने वाला वीज़ा है।
- यह अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेषज्ञतापूर्ण व्यवसायों में अस्थायी तौर पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
- H1-B वीज़ा ऐसे विदेशी पेशेवरों के लिये जारी किया जाता है जो किसी 'खास' कार्य में कुशल होते हैं।
- उल्लेखनीय है कि कंपनी को ही नौकरी करने वाले की तरफ से H1-B वीज़ा के लिये इमिग्रेशन विभाग में आवेदन करना होता है।
- H1-B वीज़ा से भारतीय आईटी दिग्गज टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसे प्रमुख संस्थानों में कार्यरत हैं, क्योंकि वे हर साल विशेष कौशल वाले हज़ारों भारतीय कर्मचारियों को अपने संस्थानों में लेने के लिये भरोसा देते हैं।
- हर साल लगभग 85,000 H1-B वीज़ा ज़ारी किये जाते हैं और इन आवेदकों का एक बड़ा हिस्सा भारतीय है।
H-4 वीज़ा क्या है?
- H1-B वीज़ा धारकों के आश्रित परिवार के सदस्यों (पति/पत्नी) को एक H-4 वीज़ा जारी किया जाता है जो कि H1-B वीज़ा धारक के साथ उनके प्रवास के दौरान अमेरिका में ही रहना चाहते हैं।
- H-4 वीज़ा के तहत मुख्य आवेदक हमेशा H1-B वीज़ा धारक होता है।
- H-4 वीज़ा के लिये परिवार के सदस्य जैसे पति/पत्नी, 21 वर्ष से कम आयु के बच्चे अर्हता प्राप्त कर सकते हैं और अपने देश के ही अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में आवेदन कर सकते हैं।
भारत के लिये चिंता का विषय क्यों?
- यदि ओबामा युग का यह कानून (H-4 वीज़ा ) समाप्त हो गया है, तो लगभग 71,000 H-4 वीज़ा धारकों के कार्य खोने का खतरा है।
- माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के हालिया अध्ययन के अनुसार, लगभग 94 प्रतिशत H-4 वीज़ा धारक महिलाएँ हैं और उनमें भी लगभग 93 प्रतिशत भारत से हैं, जबकि चार प्रतिशत चीन से हैं।
- इसका आशय यह है कि इस प्रावधान के प्रमुख लाभार्थी भारतीय-अमेरिकी हैं।
- H1-B की अनुपस्थिति उच्च कुशल कर्मचारियों के पति/पत्नी को कानूनी रूप से काम करने में असमर्थ बनाएगा।
- इसके अलावा वे अपने घरों और समुदायों के लिये आर्थिक रूप से योगदान भी नहीं दे पाएंगे।
- साथ ही वे अपने वेतन पर तब तक करों का भुगतान नहीं करेंगे, जब तक कि उनके पास कार्य प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध कराए गए वैकल्पिक आप्रवासन नहीं होंगे।
आगे की राह
- शायद अमेरिका इस बात को समझने में असमर्थ है कि उसके इस कदम से उसका भी नुकसान हो सकता है। अमेरिका में H1-B वीज़ा पर काम करने वाले अधिकांशतः पेशेवरों के साथ उनका परिवार भी अमेरिका में ही रहने आ जाता है।
- चूँकि उनका यह परिवार किसी न किसी व्यवसाय से जुड़ा होता है इसलिये अमेरिका की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है।
- वीज़ा नियमों के माध्यम से अमेरिका न केवल विदेशों पेशवरों को रोक रहा है बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था की प्रगति पर भी विराम लगा रहा है।
- एक दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि अमेरिका में ऐसे पेशेवरों की कमी है जिन्हें विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों में लगाया जा सके।
- अतः ऐसी संभावना भी है कि यह कदम मात्र राजनीति से प्रेरित है और शायद ऐसे कदम आगे चलकर न उठाए जाएँ।
- इस पूरे घटनाक्रम का एक पक्ष यह भी हो सकता है कि अमेरिका में रोज़गार न मिलने की स्थिति में कुछ कुशल भारतीय आईटी पेशेवर जो कि अच्छे वेतन और सुविधाओं के लालच में भारत में काम करना पसंद नहीं करते थे, वे अब भारतीय कंपनियों में ही कार्य करें।
- इससे भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को मज़बूती मिलेगी।