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डेली न्यूज़

  • 02 Nov, 2019
  • 42 min read
सामाजिक न्याय

फेफड़ों के स्वास्थ्य पर यूनियन विश्व सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

50वें यूनियन विश्व सम्मेलन, टीबी, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

टीबी से संबंधित मुद्दे, विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्रियाविधि

चर्चा में क्यों?

30 अक्तूबर से 2 नवंबर, 2019 तक हैदराबाद में फेफड़ों के स्वास्थ्य पर 50वें यूनियन विश्व सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इस सम्मेलन का विषय (Theme) ‘एंडिंग द इमरजेंसी: साइंस, लीडरशिप, एक्शन’ (Ending the Emergency: Science, Leadership, Action) है।
    • इस सम्मेलन के माध्यम से प्रतिबद्धताओं को लेकर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये आवश्यकताओं और जीवन रक्षक लक्ष्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • सम्मेलन के विषय का उद्देश्य टीबी के उन्मूलन हेतु दृढ़ता से प्रतिबद्धता है। इसके अतिरिक्त यह फेफड़ों के स्वास्थ्य से संबंधित जागरूकता पर भी ध्यान केंद्रित करता है। यह अनेक आपात स्थितियों जैसे- वायु प्रदूषण एवं तंबाकू सेवन से संबंधित खतरों से निपटने पर ज़ोर देता है।
  • फेफड़ों की बीमारी से संबंधित हितधारकों का यह विश्व का सबसे बड़ा सम्मेलन है। यह सम्मेलन विशेष रूप से निम्न और निम्न-मध्यम आय वाली जनसंख्या के सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वर्ष 1920 से इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लुसोसिस (International Union Against Tuberculosis- IUAT) इस सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।
  • भारत टीबी के उन्मूलन हेतु दृढ़ता से प्रयत्नशील है और इसने वर्ष 2025 तक टीबी के पूर्णतः उन्मूलन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • भारत ने रिफ़ापेंटाइन (Rifapentine) का मूल्य कम करने के लिये एक समझौता भी किया गया। रिफ़ापेंटाइन एक महत्त्वपूर्ण दवा है जिसका उपयोग टीबी की रोकथाम के लिये किया जाता है।

तपेदिक (TB)

  • यह एक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Bacterium Mycobacterium Tuberculosis) जीवाणु के कारण होता है।
  • इसका प्रसार पीड़ित व्यक्ति से हवा के माध्यम से हो सकता है। सामान्यतः एक वर्ष में एक रोगी दस या अधिक लोगों को संक्रमित करता है।
  • टीबी भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। वैश्विक स्तर पर दर्ज किये गए टीबी के सभी मामलों में से 26% मामले भारत में दर्ज हैं।
  • वर्ष 2011 में अनुमानित 8.8 मिलियन वैश्विक टीबी के मामलों में से लगभग 2.3 मिलियन मामले भारत से संबंधित थे।
  • टीबी के लिये प्रयोग की जाने वाली बेसिलस कैलमेट-गुएरिन (Bacillus Calmette– Guérin- BCG) वैक्सीन को अल्बर्ट कैलमेट और केमिली गुरेन ने वर्ष 1921 में विकसित किया था।

इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लुसोसिस

  • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1920 में पेरिस में इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरकुलोसिस की स्थापना की गई।
  • वर्ष 1940 में यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त पहला गैर- आधिकारिक संगठन बना।
  • यह टीबी के इलाज में नए साधनों के उपयोग हेतु सर्वोत्तम तरीकों को निर्धारित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक परीक्षणों में केंद्रीय भूमिका निभाता है इसके अतिरिक्त यह टीबी निगरानी अनुसंधान इकाई (TB Surveillance Research Unit) का सह-संस्थापक भी है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

द एडवोकेट्स एक्ट, 1961

प्रीलिम्स के लिये:

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961, बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया

मेन्स के लिये:

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के विभिन्न प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (Bar Council of Delhi) ने फेसबुक, व्हाट्सएप तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन देने वाले अधिवक्ताओं को कदाचार संबंधी नोटिस जारी किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • बार काउंसिल ऑफ़ दिल्ली द्वारा जारी किये गए नोटिस में यह भी कहा गया है कि बार काउंसिल के नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिवक्ता पर ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (The Advocates Act, 1961) के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी।

भारत में अधिवक्ताओं को विज्ञापन की अनुमति प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान:

  • ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 49 की उपधारा 1(c), ‘बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया’ को अधिवक्ता के पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों पर नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
  • बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (Bar Council of India) द्वारा निर्धारित किये गए ‘अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार मानक’ के खंड 4 की धारा 36 के अनुसार अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण संबंधी निम्नलिखित नियम बनाए गए हैं-
    • एक अधिवक्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विज्ञापन और व्यवसाय को लुभाने वाले कार्य नहीं करेगा चाहे उसका माध्यम सर्क्युलर, विज्ञापन, दलाल, व्यक्तिगत संचार ही क्यों न हो। कोई भी अधिवक्ता किसी अख़बार की ऐसी टिप्पणियों तथा फोटोग्राफ का उपयोग नहीं करेगा, जिनका संबंध उस अधिवक्ता से जुड़े किसी मामले से हो।
    • किसी भी अधिवक्ता के साइन-बोर्ड या नेमप्लेट उचित आकर की होनी चाहिए तथा साइन-बोर्ड, नेमप्लेट और लेखन सामग्री से यह संकेत नहीं मिलना चाहिये कि वह किसी बार काउंसिल या किसी एसोसिएशन का अध्यक्ष या सदस्य है या वह किसी व्यक्ति तथा संस्था से किसी विशेष कारण के बिना जुड़ा हुआ है या वह कभी जज या महाधिवक्ता रहा है।
    • अगर कोई अधिवक्ता इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उस अधिवक्ता पर द एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 35 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। इस धारा के अनुसार, किसी भी राज्य की बार काउंसिल को यह अधिकार है कि वह किसी शिकायत को ख़ारिज कर सकती है। साथ ही अधिवक्ता को फटकार लगाने के साथ-साथ उसे सीमित समय के लिये प्रैक्टिस से वंचित कर सकती है तथा उसका नाम राज्य की अधिवक्ता सूची से बाहर भी कर सकती है।

अन्य देशों में प्रावधान:

  • यूनाइटेड किंगडम में सॉलीसिटर्स ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ 2007 (Solicitors’ Code of Conduct 2007) के प्रावधानों के अनुसार, अधिवक्ताओं को अपनी फर्म तथा प्रैक्टिस का विज्ञापन करने की अनुमति है।
  • सिंगापुर के लीगल प्रोफेशन एक्ट ( Legal Profession Act), यूरोपियन यूनियन (European Union) के ‘काउंसिल ऑफ बार एंड लॉ सोसायटीज़ ऑफ़ यूरोप’ के अनुसार, अधिवक्ताओं को अपनी फर्म तथा प्रैक्टिस का विज्ञापन करने की अनुमति है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1977 के बेट्स बनाम स्टेट बार ऑफ एरिज़ोना (Bates vs State Bar of Arizona) ऐतिहासिक मामले में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का विज्ञापन करने के अधिकार को बरकरार रखा तथा कहा कि इस तरह के विज्ञापनों के लिये अलग -अलग राज्यों के बार एसोशिएसन नियम तय करेंगे।
  • ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ प्रतिबंधों के साथ अधिवक्ताओं को विज्ञापन करने का अधिकार है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया:

(Bar Council of India)

  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया भारतीय वकालत को विनियमित तथा प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बनाया गया एक सांविधिक निकाय है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के लिये पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को तय करती है तथा अपने अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके विनियमन करती है।
  • यह संस्था कानूनी शिक्षा के मानक तय करती है तथा ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करती है जिनके द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्य होती है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और उनके हितों की रक्षा करती है तथा उनके लिये प्रारंभ की गई कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये कोष का सृजन करती है।

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961:

  • ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट वर्ष 1961 में अधिनियमित हुआ था।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिल की परिभाषा, स्थापना तथा उनके कार्यों तथा उनसे जुड़े अन्य प्रावधानों के बारे में चर्चा की गई है।
  • इस अधिनियम में अधिवक्ता की परिभाषा तथा उसके विभिन्न स्तरों के बारे में चर्चा की गई है। यह अधिनियम अधिवक्ताओं के आचरण और योग्यताओं तथा निर्योग्यताओं के बारे में प्रावधान करता है।
  • यह अधिनियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल की सूची में नामांकन की विधि, एक सूची से दूसरी सूची में स्थानांतरण की विधि के बारे में चर्चा करता है।

स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

अनैच्छिक गर्भधारण से खतरा

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

अनैच्छिक गर्भधारण के कारण एवं प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 36 देशों में किये गए एक नए अध्ययन में कहा गया है कि अनैच्छिक गर्भधारण (Unintended Pregnancy) बच्चे और माँ दोनों के स्वास्थ्य जोखिमों की व्यापकता को बढ़ा देता है। अध्ययन के अनुसार, अनैच्छिक गर्भधारण की उच्च दर का संबंध परिवार नियोजन सेवाओं में विद्यमान कमियों से है।

प्रमुख बिंदु:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के अनुसार, अध्ययन में शामिल दो-तिहाई महिलाओं ने स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे और दुष्प्रभावों के डर तथा गर्भाधान की संभावना को कम आँकते हुए गर्भनिरोधक का उपयोग बंद कर दिया। इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक 4 गर्भधारण में से 1 अनैच्छिक था।

अनैच्छिक गर्भधारण क्या है?

  • अनैच्छिक गर्भधारण से तात्पर्य- असमय (Mistimed), अनियोजित (Unplanned) या अनचाहे (Unwanted) गर्भधारण से है।
  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाली 74 मिलियन महिलाएँ प्रत्येक वर्ष अनैच्छिक गर्भधारण करती हैं। इस अनैच्छिक गर्भधारण के कारण प्रत्येक वर्ष 25 मिलियन असुरक्षित गर्भपात और साथ ही 47,000 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।
  • अध्ययन से पता चलता है कि गर्भनिरोधक का उपयोग बंद करने वाली 85% महिलाएँ पहले वर्ष के दौरान ही गर्भवती हो गईं।
  • जिन महिलाओं ने अनैच्छिक गर्भधारण के कारण गर्भपात कराया है, उनमें से आधी महिलाओं ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं, दुष्प्रभावों या उपयोग में असुविधा जैसे मुद्दों के कारण अपने गर्भनिरोधक तरीकों को बंद कर दिया था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी 4794 महिलाओं का अध्ययन किया, जिनका गर्भनिरोधक का उपयोग बंद करने के बाद अनैच्छिक गर्भधारण हुआ था। इसमें से 56% गर्भवती महिलाओं ने पिछले 5 वर्षों से गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं किया था। अनैच्छिक गर्भधारण वाली 9.9% महिलाओं ने गर्भधारण को रोकने के लिये पारंपरिक विधियों {जैसे- प्रत्याहार (Withdrawal) या कैलेंडर-आधारित विधि}, 31.2% ने लघुकालिक आधुनिक विधि (जैसे जन्म नियंत्रण हेतु गोलियाँ एवं कंडोम) और 2.6% ने दीर्घकालिक गर्भनिरोधक तरीके {जैसे अंतर्गर्भाशयी उपकरण (Intrauterine Device- IUD) तथा प्रत्यारोपण (Implants)} का इस्तेमाल किया}।
  • अध्ययन के अनुसार, भारत में गर्भपात की दर 15-49 वर्ष की आयु समूह में प्रति 1,000 महिलाओं पर 47 थी। 3.4 मिलियन गर्भपात (22%) स्वास्थ्य सुविधाओं (Health Facility) में किये गए, 11.5 मिलियन (73%) गर्भपात स्वास्थ्य सुविधाओं के बाहर दवाओं (Medication Abortion) के माध्यम से और 0.8 मिलियन (5%) गर्भपात में अन्य तरीकों का उपयोग किया गया। भारत में, सभी गर्भधारण में से लगभग एक-तिहाई गर्भपात के रूप में परिणत होते हैं और लगभग आधे गर्भधारण अनैच्छिक होते हैं।
  • WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनैच्छिक गर्भधारण को रोकने में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • उच्च गुणवत्तायुक्त परिवार नियोजन से न केवल मातृ और बाल स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ साथ शिक्षा एवं महिला सशक्तीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • WHO के अनुसार कानूनी, नीतिगत, सामाजिक, सांस्कृतिक और संरचनात्मक बाधाओं को दूर किये जाने से अधिक लोगों को प्रभावी गर्भनिरोधक सेवाओं का लाभ मिलेगा।

अनैच्छिक गर्भधारण के दुष्प्रभाव:

  1. कुपोषण और बीमारी।
  2. दुर्व्यवहार और उपेक्षा।
  3. बच्चे या माँ की मृत्यु।
  4. उच्च प्रजनन दर के फलस्वरूप तीव्र जनसंख्या वृद्धि।
  5. शिक्षा और रोज़गार की संभावनाओं को कम करता है।
  6. गरीबी ।

परिवार नियोजन के अंतर्गत गर्भनिरोधक सेवाओं को प्रभावी बनाने के लिये WHO द्वारा की गई अनुशंसाएँ:

  • गर्भनिरोधक के प्रभावी तरीकों के चयन और उपयोग के लिये एक साझा निर्णय प्रक्रिया को अपनाना, जिससे उपयोगकर्त्ता की आवश्यकताओं और वरीयताओं की पूर्ति हो सके।
  • महिलाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली गर्भनिरोधक विधि से संबंधित मुद्दों की अतिशीघ्र पहचान करना।
  • महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों तथा गरिमा का सम्मान करने के साथ-साथ प्रभावी परामर्श (Effective Counselling) उपलब्ध कराना एवं आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों को अपनाने के लिये उन्हें सक्षम बनाना।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारत में व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा

प्रीलिम्स के लिये:

व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014

मेन्स के लिये:

व्हिसलब्लोअर सुरक्षा कानून की विशेषताएँ, कमियाँ तथा कमियों को दूर करने के उपाय, वित्तीयन से संबंधित नैतिक मुद्दे, निजी

चर्चा में क्यों ?

इंफोसिस कंपनी में अनियमित लेखांकन से संबंधित गतिविधियों की व्हिसलब्लोइंग के बाद व्हिसलब्लोअर (Whistle Blowers) और इनकी सुरक्षा से संबंधी मुद्दे प्रकाश में आ गए।

भारत में व्हिसलब्लोइंग की परिभाषा

  • कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार- व्हिसलब्लोइंग (Whistleblowing) एक ऐसी कार्रवाई है जिसका उद्देश्य किसी संगठन में अनैतिक प्रथाओं (जैसे कि अनियमित लेखांकन) के लिये हितधारकों का ध्यान आकर्षित करना हैं। केंद्रीय कानून के तहत, यह लोकसेवको के विरुद्ध कथित भ्रष्टाचार या शक्ति या स्वविवेक के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतों को प्राप्त करने का एक तंत्र है। व्हिसलब्लोअर कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो गलत प्रथाओं को उजागर करता है। ये संगठन के भीतर या बाहर से हो सकते हैं, जैसे- वर्तमान और पूर्व कर्मचारी, शेयरधारक, बाहरी लेखा परीक्षक और अधिवक्ता।

व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा के प्रावधान

  • भारत में व्हिसलब्लोअर को व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 (WhistleBlowers Protection Act, 2014) द्वारा संरक्षित किया जाता है। कानून में उनकी पहचान की सुरक्षा के साथ-साथ उत्पीड़न को रोकने के लिये कठोर मानदंडों को शामिल किया गया है।
  • व्हिसलब्लोअर लगाये गए आरोपों की जाँच लंबित रहने तक उसके खिलाफ संगठन द्वारा कोई भी कार्यवाही शुरू नहीं कर सकती है।
  • कंपनी अधिनियम तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के गवर्नेंस मानदंडों द्वारा इन प्रावधानों को अपनाया गया है।
  • यह अधिनियम सभी सूचीबद्ध और सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों से व्हिसलब्लोअर नीति की अपेक्षा रखता है, जो शिकायतकर्त्ताओं के लिये प्रक्रियाओं को रेखांकित करती हो और उनका मार्गदर्शन करती हो।

व्हिसलब्लोइंग से संबंधित मुद्दे:

  • व्हिसलब्लोइंग का उपयोग कभी-कभी व्यक्तिगत प्रतिशोध या शेयर बाज़ार में हेर-फेर करने के लिये किया जा सकता है।
  • इन गतिविधियों को रोकने के लिये ऑडिट समिति शिकायतों की जाँच करती है। यदि कोई शिकायत गलत साबित होती है, तो शिकायतकर्त्ता के लिये दो वर्ष की जेल और 30000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के प्रावधान

  • इनसाइडर ट्रेडिंग से निपटने के मामले में भारत का रिकॉर्ड खराब रहा है। हाल ही में सफलता दर में सुधार के लिये, सेबी (SEBI- Securities and Exchange Board of India) ने टिपिंग प्रणाली (यह इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित सूचना देने वालों को पुरुस्कृत करने अर्थात् टिप देने की प्रणाली है) की शुरुआत की है।
  • सेबी द्वारा इनसाइडर ट्रेडर्स के खिलाफ सफल कार्यवाही की जाएगी साथ ही इससे संबंधित सूचना देने पर 1 करोड़ रुपए तक का पुरस्कार दिया जाएगा।
  • सेबी द्वारा एक ‘सहयोग और गोपनीयता’ तंत्र भी बनाया गया है। इसका अर्थ है कि यदि कोई प्रतिभूति कानून के उल्लंघन करने का दोषी है और जाँच में सहायता करने के लिये तैयार है तो व्यक्ति को दंडात्मक कार्रवाई से छूट दी जाएगी तथा उसकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी।

व्हिसलब्लोअर सुरक्षा कानून की सीमाएँ:

  • अभी तक व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 को क्रियान्वित नहीं किया गया है, जो कि गंभीर चिंता का विषय है।
  • इसके साथ ही 2015 का संशोधन विधेयक भ्रष्टाचार के साथ-साथ व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा के साथ भी समझौता करता है।
  • 2014 के अधिनियम में व्हिसलब्लोअर के साथ होने वाले अत्याचार (Victimization) को परिभाषित नहीं किया गया है जो इससे व्हिसलब्लोअर के खिलाफ हेरफेर की संवेदनशीलता बनी रहती है।
  • यद्यपि भारत में व्हिसलब्लोअर को कानून के तहत संरक्षित किया गया है, लेकिन यह अमेरिका की तरह प्रभावी नहीं है, जहाँ एक अलग इकाई इस तरह की घटनाओं का निपटारा करती है।

आगे की राह

  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 को जल्द-से-जल्द क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
  • 2015 के संशोधन विधेयक को पारित करने से पूर्व व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिये।
  • व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अमेरिका जैसे देशों की तर्ज़ पर संस्थागत उपाय किये जाने की आवश्यकता है।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 के तहत अत्याचार को परिभाषित किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त व्हिसलब्लोअर के लिये वित्तीय प्रोत्साहन के प्रावधान के साथ-साथ पहचान रहित शिकायतों को स्वीकार कर इसे व्यापक बनाया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

स्वास्थ्य आपातकाल

प्रीलिम्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, AQI

मेन्स के लिये:

प्रदूषण से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की गई है क्योंकि 1 नवंबर, 2019 को प्रदूषण का स्तर अत्यंत गंभीर (Severe Plus) श्रेणी का पाया गया।

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 1 नवंबर, 2019 को दिल्ली का समग्र AQI (Air quality Index) स्कोर 504 के स्तर पर पहुँच गया था।
  • इसके अतिरिक्त 1 नवंबर, 2019 को दिल्ली का औसत AQI स्कोर (24 घंटों में 32 निगरानी स्टेशनों से प्राप्त आँकड़ों के औसत के अनुसार) 484 अत्यंत गंभीर श्रेणी का पाया गया।
  • नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम में क्रमशः 499, 496, 479, 496 और 469 AQI स्कोर था जो अत्यंत गंभीर श्रेणी को प्रदर्शित करता है।

प्रभाव:

  • इस प्रकार के प्रदूषण से आँख और साँस संबंधित समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
  • लोग गले में जलन, सूखी त्वचा और त्वचा की एलर्जी जैसे प्रदूषण से जुड़े लक्षणों का सामना कर रहे हैं।
  • इसके कारण दमा रोगियों, बुजुर्गों और बच्चों को ज़्यादा परेशानी हो रही है।

कारण:

  • दीपावली के पटाखे।
  • दिल्ली में प्रदूषण के लिये का सबसे अधिक ज़िम्मेदार पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली को माना जा रहा है।
  • प्रतिकूल मौसम परिस्थितियाँ।
  • वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण ‘सफर’ के अनुसार, दिल्ली में वायु गुणवत्ता में गिरावट का यह सर्वाधिक निम्न स्तर है।

आगे की राह:

  • लोगों को इस अवधि के दौरान घर से बाहर केवल ज़रूरी होने पर ही निकलने का परामर्श जारी किया गया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

(Central Pollution Control Board- CPCB)

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम सुप्रीमेसी

प्रीलिम्स के लिये:

क्वांटम सुप्रीमेसी

मेन्स के लिये:

क्वांटम सुप्रीमेसी की उपयोगिता एवं सीमाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गूगल ने घोषणा की है कि उसने संगणना (Computing) के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है जिसे क्वांटम सुप्रीमेसी (Quantum Supremacy) कहा गया।

क्वांटम सुप्रीमेसी क्या है?

  • इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कैलिफ़ोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जॉन प्रेस्किल द्वारा 2012 में किया गया था। उनके अनुसार क्वांटम कंप्यूटर किसी भी ऐसी गणना को कर सकता है जिसे आधुनिक सुपर कंप्यूटर करने में सक्षम नहीं है।
  • गूगल ने साइकामोर नामक एक क्वांटम प्रोसेसर (Cycamore Quantum Processor) की सहायता से एक गणना को 200 सेकंड में हल कर दिया जिसे आधुनिक समय के एक सुपर कंप्यूटर से हल करने में 10,000 वर्ष का समय लगता।

क्वांटम सिद्धांत:

  • यह आधुनिक भौतिकी का सिद्धांत है जिसके अंतर्गत किसी पदार्थ की प्रकृति तथा व्यवहार का अध्ययन उसके परमाण्विक स्तर पर किया जाता है।

क्वांटम कंप्यूटर क्या है?

  • क्वांटम कंप्यूटर भौतिक विज्ञान के क्वांटम सिद्धांत पर कार्य करता है। इसके विपरीत आधुनिक कंप्यूटर भौतिकी के विद्युत् प्रवाह के नियमों पर कार्य करता है।
  • एक सामान्य कंप्यूटर अपनी सूचनाओं को बिट में संग्रहीत करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर में सूचना ‘क्वांटम बिट’ या ‘क्यूबिट’ में संग्रहीत होती है।
  • सामान्य कंप्यूटर, प्रोसेसिंग के दौरान बाइनरी इनपुट (0 या 1) में से किसी एक को ही एक बार ऑपरेट कर सकते हैं वहीं क्वांटम कंप्यूटर दोनों बाइनरी इनपुट को एक साथ ऑपरेट कर सकते हैं।
  • किसी 100 क्युबिट से कम की क्षमता रखने वाला क्वांटम कंप्यूटर किसी बहुत अधिक आँकड़े वाली उन समस्याओं को भी हल कर सकता है जो किसी आधुनिक कंप्यूटर की क्षमता से बाहर है।
  • क्वांटम कंप्यूटर को किसी बड़े वातानुकूलित सर्वर रूम में रखा जाता है जहाँ कई सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को स्टैक में रखा जाता है।

क्वांटम कंप्यूटर का महत्त्व:

  • वर्तमान समय में किसी बहुत अधिक आँकड़ों के समूह में से कम समय में कुछ आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करना एक बड़ी समस्या है तथा इस कार्य को क्वांटम कंप्यूटर बहुत ही आसानी से कर सकता है।
  • उदाहरण के लिये यदि हमें 10 लाख सोशल मीडिया प्रोफाइल में से किसी एक व्यक्ति की जानकारी प्राप्त करनी है तो एक पारंपरिक कंप्यूटर उन सभी प्रोफाइल को स्कैन करेगा जिसमें उसे 10 लाख चरणों से गुज़रना होगा। जबकि क्वांटम कंप्यूटर उसे एक हज़ार चरणों में संपन्न कर सकता है।
  • इसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी रफ्तार है। यह कई पारंपरिक कंप्यूटर द्वारा एक समय में समानांतर तौर पर किए जाने वाले कार्य को अकेले ही कर सकता है।
  • बैंकिंग तथा सुरक्षा अनुप्रयोगों में उपयोग किये जाने हेतु कई एनक्रिप्शन सिस्टम का उपयोग इन कंप्यूटरों में किया जाता है जो गणितीय समस्याओं को सुलझाने में एक सीमा के बाद असमर्थ है। क्वांटम कंप्यूटर इन कमियों को दूर कर सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त यह वैज्ञानिक अनुसंधानों, खगोलीय अंतरिक्ष मिशनों, डेटा संरक्षण, AI आदि के लिये उपयोगी हो सकते हैं।

संभावित चुनौतियाँ

  • क्वांटम कंप्यूटर अभी अपने प्रायोगिक अवस्था में है जहाँ इसका पहला प्रयोग गूगल द्वारा 53 क्यूबिट क्षमता वाले साइकामोर नामक क्वांटम प्रोसेसर के माध्यम से किया गया, किंतु इसके वास्तविक प्रयोग में कई वर्ष या दशक लग सकते हैं।
  • क्वांटम कंप्यूटर में प्रयोग क्यूबिट को क्रायोजेनिक तापमान पर ही स्थिर रखा जा सकता है, इसलिये इसका रख-रखाव एक बड़ी चुनौती है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इसका प्रयोग केवल सरकारों या बड़ी कंपनियों द्वारा ही किया जा सकता है।
  • क्वांटम कंप्यूटर को तैयार करने में अत्यधिक विकसित तकनीक तथा भारी निवेश की आवश्यकता होगी। क्वांटम कंप्यूटर को लेकर बड़ी चिंता इसके एनक्रिप्शन कोड को हल करने को लेकर है। अभी तक एनक्रिप्शन कोड को डेटा की सुरक्षा के लिहाज़ से विश्वसनीय माना जाता था जो कि क्वांटम कंप्यूटर द्वारा आसान हो जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

इनर लाइन परमिट और मेघालय

प्रीलिम्स के लिये:

इनर लाइन परमिट, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर

मेन्स के लिये:

मेघालय में इनर लाइन परमिट जैसी व्यवस्था लागू करने से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मेघालय मंत्रिमंडल ने ‘मेघालय निवासी संरक्षा और सुरक्षा अधिनियम’ 2016 [Meghalaya Residents Safety and Security Act (MRSSA) 2016] में संशोधन की मंजू़री दी है।

  • इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य मेघालय के मूल निवासियों के हितों की रक्षा करना है।

मुख्य बिंदु :

  • मेघालय निवासी संरक्षा और सुरक्षा अधिनियम’ 2016 में संशोधन से मेघालय में प्रवेश करने वाले अनिवासी आगंतुकों को भी उसी प्रकार पंजीकरण करना होगा जिस प्रकार अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड एवं मिज़ोरम में लागू इनर लाइन प्रणाली (Inner Line Permit-ILP) के तहत पंजीकृत कराना होता है।
  • कोई भी व्यक्ति जो मेघालय का निवासी नहीं है और राज्य में 24 घंटे से अधिक समय के लिये रुकना चाहता है, उसे मेघालय सरकार के समक्ष सभी अनिवार्य दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
  • मेघालय के नागरिक समाज, राजनीतिक दलों के नेताओं तथा मुख्यमंत्री ने भी ILP जैसी व्यवस्था की मांग करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) से बाहर किये गए लोग मेघालय में प्रवेश करने की कोशिश कर सकते हैं।
  • मेघालय सरकार के अनुसार, उपर्युक्त अधिनियम में हुए संशोधनों को जल्द ही अध्यादेश के माध्यम से प्रभाव में लाया जाएगा तथा अगले विधानसभा सत्र में उन्हें अधिनियमित किया जाएगा। इन संशोधनों को सरकार द्वारा राजनीतिक दलों, हितधारकों तथा विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों से सलाह करके मंजू़री दी गई है।
  • मेघालय सरकार के अनुसार, मूल अधिनियम किरायेदारों के पंजीकरण और प्रलेखीकरण पर केंद्रित था परंतु अब इस अधिनियम में अनिवासी आगंतुकों और किरायेदारों को कवर करने के लिये नियमों में विस्तार किया जा सकेगा।
  • मेघालय सरकार जल्द ही एक अधिसूचना जारी करेगी जिसमें आगंतुकों द्वारा जमा किये जाने वाले प्रपत्रों की सूची जारी की जाएगी तथा इस प्रक्रिया को छोटा और सरल बनाया जाएगा।
  • संशोधन के अनुसार, जो भी व्यक्ति अनिवार्य दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रहता है या फिर झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है तो उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत दंडित किया जा सकेगा।

मेघालय निवासी संरक्षा और सुरक्षा अधिनियम, 2016

[Meghalaya Residents Safety and Security Act (MRSSA)], 2016

  • वर्ष 2016 में पारित इस अधिनियम का उद्देश्य किरायेदारों की सुरक्षा के साथ-साथ राज्य के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  • यह राज्य में किराये के मकानों में रहने वाले लोगों के सत्यापन और विनियमन को अनिवार्य बनाता है।
  • इस अधिनियम में नागरिकों की संरक्षा और सुरक्षा के लिये निर्मित विभिन्न कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन के लिये ज़िला टास्क फोर्स और सुविधा केंद्रों की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है।

इनर लाइन परमिट

(Inner Line Permit-ILP):

  • ILP एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है जिसे भारत सरकार द्वारा किसी भारतीय नागरिक को संरक्षित क्षेत्र में सीमित समय के लिये आंतरिक यात्रा की मंजू़री देने हेतु जारी किया जाता है।
  • आगंतुकों को इस संरक्षित क्षेत्र में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं होता है।
  • अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड तथा मिज़ोरम राज्यों के मूल निवासियों की पहचान को बनाए रखने के लिये यहाँ बाहरी व्यक्तियों का ILP के बिना प्रवेश निषिद्ध है।
  • इस दस्तावेज़ को ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन’ एक्ट, 1873 के तहत जारी किया जाता है।
  • इस दस्तावेज़ की सेवा-शर्तें और प्रतिबंध राज्यों की अलग-अलग आवश्यकताओं के अनुसार लागू किये गए हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (02 November)

राज्योत्सव दिवस: राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत केरल का गठन 1 नवंबर 1956, हरियाणा का गठन 1 नवंबर 1966, कर्नाटक का गठन 1 नवंबर 1956, मध्य प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 और छत्तीसगढ़ का गठन 1 नवंबर, 2000 को हुआ।

ले. जन. अनूप बनर्जी: ले. जन. अनूप बनर्जी को सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा का महानिदेशक नियुक्त किया गया है। ले. जन. अनूप बनर्जी को 27 जनवरी, 2019 को राष्ट्रपति का मानद सर्जन बनाया गया था। इस पद को संभालने से पूर्व वे DGMS (सेना) के पद पर कार्यरत थे।

गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जेम): जेम ने इंडियन बैंक और केनरा बैंक के साथ सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके तहत पोर्टल पर एक कैशलेस, पेपरलेस एवं पारदर्शी भुगतान प्रणाली की सुविधा मिलेगी और इसके साथ ही सरकारी निकायों के लिये एक दक्ष खरीद प्रणाली तैयार की जाएगी। इस साझेदारी के ज़रिये दोनों बैंक पोर्टल पर पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं को कई तरह की सेवाएँ मुहैया कराने में समर्थ हो जाएंगे जिनमें जेम पूल खातों (GPA) के माध्यम से धनराशि का अंतरण, परफॉर्मेंस बैंक गारंटी (e-PBG) और पेमेंट गेटवे से जुड़े परामर्श देना भी शामिल हैं।

  • जेम भारत सरकार की एक पहल है जो विभिन्न सरकारी विभागों, संगठनों और सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) के लिये आवश्यक जन उपयोग की वस्तुओं एवं सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा हेतु एकल स्टॉप प्लेटफॉर्म उपलब्‍ध कराता है।

गिरीश चन्द्र मुर्मू: गिरीश चन्द्र मुर्मू को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का पहला उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है।

राधा कृष्ण माथुर: श्री राधा कृष्ण माथुर को केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का पहला उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है।


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