शासन व्यवस्था
RTI कानून में संशोधन के निहितार्थ
- 27 Jul 2019
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संदर्भ
विपक्ष के इस विरोध के बावजूद कि सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों से सूचना का अधिकार कानून (Right to Information-RTI Act) की आत्मा ही मर जाएगी, संसद ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। इस विधेयक के ज़रिये सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन किये गए हैं। राज्यसभा में विपक्षी दलों ने इसे प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की थी, लेकिन इस पर हुए मत विभाजन में विधेयक के समर्थन में 117 और विरोध में 75 वोट पड़े।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनता ही सरकार चुनती है और जनता के द्वारा टैक्स के रूप में दिये गए पैसों से सरकार शासन व्यवस्था और देश चलाती है। ऐसे में जनता को यह जानने का अधिकार है कि सरकार उसके लिये कैसे, कहाँ और क्या काम कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि सरकार के कामकाज से संबंधित सूचनाओं तक पहुँच अभिव्यक्ति और अभिभाषण की स्वतंत्रता के अधिकार का अनिवार्य अंग है।
हमारे देश में आज़ादी के बाद एक लंबे समय तक सूचना का अधिकार नागरिकों को प्राप्त नहीं था। इसके चलते आम नागरिक सरकार के कामकाजों को जानने से वंचित रह जाते थे। वर्ष 2005 में भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुआ, जिसने भ्रष्टाचार को रोकने और उसे समाप्त करने में प्रभावी भूमिका निभाई। वर्तमान सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में सूचना के अधिकार को और मज़बूत बनाने तथा वर्ष 2005 के कानून में मौजूद कुछ विसंगतियों को दूर करने के लिये सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया।
क्या है सूचना का अधिकार?
अरस्तू ने कहा है...‘‘जैसा कि कुछ लोग समझते हैं कि आज़ादी और समानता मुख्यत: प्रजातंत्र में पाई जाती है तो वह तभी प्राप्त की जा सकती है, जब सभी लोग समान रूप से सरकार में अधिकतम हिस्सा लें।’’
प्रजातंत्र को सुदृढ़ करने और लोक केंद्रित अधिशासन की शुरुआत करने की राह में सूचना के अधिकार को एक कुंजी के रूप में देखा जाता है। सूचना की सुलभता निर्धन और समाज के कमज़ोर वर्गों को सरकारी नीतियों एवं कार्रवाई के विषय में सूचना की मांग करने तथा उसे प्राप्त करने के लिये सशक्त बना सकती है जिससे उनको लाभ हो सकता है।
- उत्तम शासन के बिना नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार नहीं हो सकता। उत्तम शासन के चार घटक हैं- 1. पारदर्शिता, 2. जवाबदेही, 3. पूर्वानुमान, 4. भागीदारी
- सूचना के अधिकार का अर्थ सरकार के अभिलेखों (Documents) को सार्वजनिक संवीक्षा (Public Scrutiny) के लिये खोलना है, जिससे नागरिकों को यह जानने का एक मज़बूत साधन मिल सके कि सरकार क्या कार्य करती है तथा कितने प्रभावी ढंग से करती है। इससे सरकार को अधिक जवाबदेह बनाया जा सकता है।
- सरकारी संगठनों में पारदर्शिता उन्हें और अधिक उद्देश्यपरक ढंग से काम करने के लिये बाध्य करती है, जिससे कि पूर्वानुमान में बढ़ोतरी हो सके। सरकार के कामकाज के बारे में सूचना नागरिकों को प्रभावी ढंग से शासन प्रक्रिया में भाग लेने में भी समर्थ बनाती है। यह एक मूलभूत भावना है, सूचना का अधिकार उत्तम शासन की एक बुनियादी ज़रूरत है।
- सार्वजनिक मामलों में पारदर्शिता की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2005 में ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ (RTI Act) अधिनियमित किया। यह एक महत्त्वपूर्ण विधान है, जो लोगों को सशक्त बनाता है और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। अब इसी विधेयक में आवश्यक संशोधन किये गए हैं।
प्रमुख संशोधन
इस संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार तय करेगी। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि RTI अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है। इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी। इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा ।
विदित हो कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन तथा भत्ते एवं सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान हैं। वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है। ऐसे में इनकी सेवा शर्तों को सुव्यवस्थित करने की जरूरत थी।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।
प्रमुख प्रावधान
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है।
- यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
- सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
- प्राप्त सूचना की विषय-वस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
- केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।
- यह जम्मू और कश्मीर (यहाँ जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है।
- इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं।
इन मामलों में किया जा सकता है इनकार: राष्ट्र की संप्रभुता, एकता-अखण्डता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ प्रकट करने की बाध्यता से छूट प्रदान की गई है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- सूचना का अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने से सबसे बड़ा खतरा RTI कार्यकर्त्ताओं को हुआ है। इन्हें कई तरीकों से उत्पीड़ित एवं प्रताडि़त किया जाता है।
- औपनिवेशिक हितों के अनुरूप बनाया गया वर्ष 1923 का सरकारी गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) RTI की राह में प्रमुख बाधा है।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reform Commission) ने इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश की है, जिस पर पारदर्शिता के लिहाज़ से अमल करना आवश्यक है।
कुछ अन्य चुनौतियाँ
- अभिलेखों को रखने व उनके संरक्षण की व्यवस्था बहुत लचर है।
- सूचना आयोगों के संचालन के लिये पर्याप्त अवसंरचना और कर्मियों/स्टाफ का अभाव है।
- सूचना का अधिकार कानून के पूरक कानूनों, जैसे- व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम (Whistle Blowers Protection Act) का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।
31 जुलाई, 2012 को केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 27 के तहत RTI नियमों को अधिसूचित किया था। इन नियमों में प्रावधान है कि RTI का आवेदन सामान्य रूप से 500 शब्दों (अपवाद को छोड़कर) से बड़ा नहीं होगा और प्रत्येक आवेदक से मामूली शुल्क लिया जाएगा। लेकिन किसी भी आवेदन को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा कि उसमें 500 से अधिक शब्द हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) की संरचना
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अध्याय-3 में केंद्रीय सूचना आयोग तथा अध्याय-4 में राज्य सूचना आयोगों के गठन का प्रावधान है।
- इस कानून की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन, धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवा शर्ते तथा धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
- केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्तों का प्रावधान है और इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति की अनुशंसा पर की जाती हैं, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री बतौर सदस्य होते हैं।
DoPT है इसका नोडल मंत्रालय
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel & Training-DoPT) सूचना का अधिकार और केंद्रीय सूचना आयोग का नोडल विभाग है।
- अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों और प्राधिकरणों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है।
- केंद्र सरकार के 2200 सरकारी कार्यालयों और उपक्रमों में ऑनलाइन RTI दाखिल करने और उसका जवाब देने की व्यवस्था है। ऐसा इन संस्थानों के कामकाज में अधिकतम पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
- आधुनिक तकनीक के उपयोग से RTI दाखिल करने के लिये अब एक पोर्टल और एप भी उपलब्ध है, जिसकी सहायता से कोई भी नागरिक अपने मोबाइल फोन से किसी भी समय, किसी भी स्थान से RTI के लिये आवेदन कर सकता है।
- राज्य सरकारों को भी RTI पोर्टल शुरू करने की व्यावहारिकता पर विचार करने को कहा गया है। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre-NIC) को ऑनलाइन RTI पोर्टल बनाने में राज्य सरकारों की सहायता करने को कहा गया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम इसलिये लागू किया गया ताकि सरकारी विभागों और सरकार के पास उपलब्ध सूचनाओं तक जनता की पहुँच हो सके तथा विभिन्न विभागों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व में वृद्धि की जा सके। सूचना आयोग ने सूचना प्रदान करने के लिये कुछ बुनियादी सिद्धांत तय किये हैं। लेकिन आयोग के सामने कई अपीलें/शिकायतें लंबित हैं, जिससे पता चलता है कि सूचनाओं के स्वैच्छिक खुलासे की गुणवत्ता बढ़ाने की ज़रूरत है। ऐसे में यह आवश्यक है कि देश के सभी सार्वजनिक विभाग सभी सूचनाएँ लोगों को उपलब्ध कराने की सरल प्रणाली विकसित करें। कोई भी सूचना या जानकारी के लिये आवेदन करते समय इस बात का भी एहसास होना चाहिये कि पारदर्शिता और लोकतंत्र के प्रति जागरूकता होने के साथ-साथ निजता का अधिकार भी होता है। सार्वजनिकता और निजता के बीच एक बेहद महीन विभाजक रेखा मौजूद होती है। सूचना का अधिकार अधिनियम में ऐसे मुद्दों से निपटने के लिये प्रावधान किये गए हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में और स्पष्टता की आवश्यकता है। इसलिये इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिये जो लोगों की निजता की रक्षा करे ताकि गलत तरीके से उनकी निजता भंग न हो सके।
व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम-2014
इसे सूचना का अधिकार कानून का पूरक माना जाता है। व्हिसल ब्लोअर संरक्षण विधेयक-2014 भष्टाचार को नियंत्रित करने के लिये बनाया गया कानून है।
प्रमुख प्रावधान
- इसमें व्हिसल ब्लोअर (सूचना प्रदाता या भ्रष्टाचार उजागर करने वाला) की व्यापक परिभाषा प्रदान की गई है। इसके अंतर्गत सरकारी अधिकारी के साथ-साथ कोई व्यक्ति या गैर-सरकारी संगठन भी व्हिसल ब्लोअर हो सकता है।
- भ्रष्टाचार का खुलासा करने वालों पर सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 भी लागू है अर्थात् यह गोपनीय सूचनाओं के खुलासे की अनुमति को प्रतिबंधित करता है।
- इस अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। वह जाँच के लिये CBI, पुलिस अधिकारी आदि की सहायता ले सकता है।
- इसके तहत भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले लोगों की सुरक्षा का पर्याप्त प्रावधान किया गया है तथा साथ ही गलत या फ़र्ज़ी शिकायत करने वालों के लिये दंड की भी व्यवस्था है।
- भ्रष्टाचार उजागर करने वाले लोगों यानी व्सिहल ब्लोअर्स की पहचान गुप्त रखी जाती है।
- कोई व्यक्ति किसी सक्षम प्राधिकार के समक्ष भ्रष्टाचार के मामले में जनहित में जानकारी सार्वजनिक कर सकता है।
वस्तुतः देश में व्हिसल ब्लोअर को धमकाए जाने, उसके उत्पीड़न एवं हत्या के कई मामलों को देखते हुए इस तरह के कानून की आवश्यकता महसूस की गई। व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम-2014 ने भ्रष्टाचार पर नियत्रंण के लिये सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने में सहायता की है तथा इससे गलत कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोग प्रोत्साहित होंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। यह कानून जनता को मंत्रियों और लोकसेवकों द्वारा अधिकारों का जानबूझकर दुरुपयोग करने के बारे में या भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
अभ्यास प्रश्न: किसी भी कानून और उसके पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिसे सरकारें समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधित करती रहती हैं। RTI कानून के संदर्भ में विश्लेषण कीजिये।