पूर्ववर्ती पेंशन योजना को बहाल करने की मांग
प्रिलिम्स के लिये:नई पेंशन योजना, पूर्ववर्ती पेंशन योजना, PFRDA मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
कई राज्य पूर्ववर्ती पेंशन योजना को बहाल करने और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
- राजस्थान ने कहा है कि वह अगले वित्तीय वर्ष से राज्य में पूर्ववर्ती पेंशन योजना को वापस लाएगा और साथ ही छत्तीसगढ़ भी इस नीति का पालन कर सकता है।
- केरल, आंध्र प्रदेश और असम की सरकारों ने भी पूर्ववर्ती पेंशन योजना के संबंध में समितियों का गठन किया है।
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली क्या है?
- परिचय:
- इस प्रणाली की शुरुआत केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 में (सशस्त्र बलों को छोड़कर) की थी।
- वर्ष 2018 में इसको सुव्यवस्थित करने तथा और अधिक आकर्षक बनाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसके अंतर्गत आने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लाभ पहुँचाने हेतु योजना में बदलाव को मंज़ूरी दी।
- राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) को सरकार के लिये पेंशन देनदारियों से छुटकारा पाने के तरीके के रूप में लॉन्च किया गया था।
- 2000 के दशक की शुरुआत में आयोजित एक अनुसंधान का हवाला देते हुए एक समाचार रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत का पेंशन ऋण अत्यधिक बढ़ता जा रहा था।
- NPS की शुरुआत पर केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 में संशोधन किया गया था।
- NPS ग्राहकों (सरकारी कर्मचारियों) को यह तय करने की अनुमति देता है कि वे अपने पूरे कॅरियर में पेंशन खाते में नियमित रूप से योगदान कर अपना पैसा किस प्रकार निवेश करना चाहते हैं।
- सेवानिवृत्ति के बाद वे पेंशन राशि का एक हिस्सा एकमुश्त निकाल सकते हैं और बाकी का उपयोग नियमित आय हेतु ‘वार्षिकी’ (Annuity) खरीदने के लिये कर सकते हैं।
- इस प्रणाली की शुरुआत केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 में (सशस्त्र बलों को छोड़कर) की थी।
- कार्यान्वयन:
- NPS को देश में PFRDA (पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी) द्वारा कार्यान्वित एवं विनियमित किया जा रहा है।
- PFRDA द्वारा स्थापित ‘नेशनल पेंशन सिस्टम ट्रस्ट’ (NPST) NPS के तहत सभी संपत्तियों का पंजीकृत मालिक है।
- विशेषताएँ:
- NPS का ‘ऑल सिटीज़न मॉडल’ भारत के सभी नागरिकों (NRIs सहित) को 18 से 70 वर्ष की आयु के बीच NPS में शामिल होने की अनुमति देता है।
- यह एक सहभागी योजना है, जहाँ कर्मचारी सरकार के समान योगदान के साथ वेतन से अपने पेंशन कोष में योगदान करते हैं। इसके बाद निधियों को पेंशन निधि प्रबंधकों के माध्यम से निर्धारित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है।
- वर्ष 2019 में वित्त मंत्रालय ने कहा था कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के पास पेंशन फंड (PF) और निवेश पैटर्न का चयन करने का विकल्प है।
- सेवानिवृत्ति के समय वे कुल राशि का 60% निकाल सकते हैं, जो कर-मुक्त है और शेष 40% वार्षिकी में निवेश किया जाता है, जिस पर कर लगता है।
- यहाँ तक कि निजी व्यक्ति भी इस योजना का विकल्प चुन सकते हैं।
पूर्ववर्ती पेंशन योजना या परिभाषित पेंशन लाभ योजना क्या है?
- परिचय:
- यह योजना सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन आय का आश्वासन देती है।
- आमतौर पर सुनिश्चित राशि अंतिम आहरित वेतन के 50% के बराबर होती है।
- पेंशन पर होने वाले खर्च को सरकार वहन करती है। वर्ष 2004 में इस योजना को बंद कर दिया गया था।
- मुद्दे:
- अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मुद्दा लंबी उम्र यानी अधिक पेंशन भुगतान है।
- उदाहरण के लिये 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने वाले तथा लगभग 80 वर्ष या उससे अधिक की औसत आयु वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद दो दशकों से अधिक का भुगतान करना पड़ता है।
- इसके अलावा पेंशनभोगी की मृत्यु की स्थिति में पति या पत्नी OPS के तहत पेंशन के एक हिस्से के हकदार हैं। इससे केंद्र और राज्य सरकारों पर पेंशन का भारी बोझ पड़ता है।
- अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मुद्दा लंबी उम्र यानी अधिक पेंशन भुगतान है।
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली से संबंधित मुद्दे:
- पुरानी योजना (OPS) के तहत कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित फार्मूले के अनुसार पेंशन मिलती थी जो अंतिम आहरित वेतन का आधा होता है तथा उन्हें वर्ष में दो बार महँगाई राहत (Dearness Relief) में संशोधन का भी लाभ मिलता था। भुगतान निर्धारित था और वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी। इसके अलावा OPS के तहत सामान्य भविष्य निधि (General Provident Fund-GPF) का भी प्रावधान था।
- हालाँकि NPS में कर्मचारियों को मूल वेतन का 10% महँगाई भत्ते के साथ जमा करने की आवश्यकता होती है, यह कोई जीपीएफ लाभ नहीं है और न ही इसमें पेंशन की राशि तय है। इस योजना के साथ प्रमुख मुद्दा यह है कि यह रिटर्न-आधारित तथा बाज़ार से जुड़ा हुआ है। सरल शब्दों कह सकते है कि इसमें भुगतान अनिश्चित है।
पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण:
- परिचय:
- यह राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के व्यवस्थित विनियमन, इसे बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के लिये संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक प्राधिकरण है।
- यह वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (Department of Financial Service) के अंतर्गत कार्य करता है।
- कार्य:
- यह विभिन्न मध्यवर्ती एजेंसियों जैसे- पेंशन फंड मैनेज़र (Pension Fund Manager), सेंट्रल रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी (Central Record Keeping Agency) आदि की नियुक्ति का कार्य करता है।
- यह NPS के तहत पेंशन उद्योग के विकास, इसे बढ़ावा देने और नियंत्रण का कार्य करता है तथा अटल पेंशन योजना का प्रबंधन भी करता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में सम्मिलित हो सकता है? (a) केवल निवासी भारतीय नागरिक। उत्तर: (c) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अंटार्कटिक विधेयक मसौदा 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंटार्कटिक विधेयक मसौदा-2022, समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs), अंटार्कटिका संधि, अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण हेतु आयोग। मेन्स के लिये:अंटार्कटिक क्षेत्र में भारत के हित, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने लोकसभा में 'अंटार्कटिक विधेयक' पेश किया, जिसमें अंटार्कटिक की यात्राओं एवं गतिविधियों के साथ-साथ महाद्वीप पर मौजूद लोगों के बीच उत्पन्न होने वाले संभावित विवादों को विनियमित करने हेतु प्रावधानों की परिकल्पना की गई है।
- यह विधेयक भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों पर भी लागू होता है।
- अक्तूबर 2021 में भारत ने अंटार्कटिक पर्यावरण की रक्षा और पूर्वी अंटार्कटिक एवं वेडेल सागर को समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) के रूप में नामित करने हेतु यूरोपीय संघ द्वारा सह-प्रायोजित प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया था।
- इससे पहले अंटार्कटिक में 100 किलोमीटर लंबे हिमशैल, जो तीव्रता से पिघल रहा है, को औपचारिक रूप से ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद ‘ग्लासगो’ नाम दिया गया था।
विधेयक के तहत प्रावधान:
- यात्राओं का विनियमन:
- इस विधेयक के तहत सख्त दिशा-निर्देश और परमिट की एक प्रणाली सूचीबद्ध है, जो सरकार द्वारा नियुक्त समिति के माध्यम से जारी की जाएगी, जिसके बिना किसी भी अभियान या व्यक्ति को अंटार्कटिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- विधेयक के तहत प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, उत्सर्जन मानकों एवं सुरक्षा नियमों की निगरानी, कार्यान्वयन तथा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये ‘अंटार्कटिक शासन एवं पर्यावरण संरक्षण समिति’ स्थापित करने का प्रावधान है।
- इस विधेयक के तहत सख्त दिशा-निर्देश और परमिट की एक प्रणाली सूचीबद्ध है, जो सरकार द्वारा नियुक्त समिति के माध्यम से जारी की जाएगी, जिसके बिना किसी भी अभियान या व्यक्ति को अंटार्कटिका में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- खनिज संसाधनों की रक्षा करना:
- यह विधेयक ड्रिलिंग, ड्रेजिंग, उत्खनन या खनिज संसाधनों के संग्रह या यहाँ तक कि खनिज भंडार की पहचान करने संबंधी गतिविधियों पर भी रोक लगाता है।
- यहाँ केवल परमिट के साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान की अनुमति दी जाएगी।
- यह विधेयक ड्रिलिंग, ड्रेजिंग, उत्खनन या खनिज संसाधनों के संग्रह या यहाँ तक कि खनिज भंडार की पहचान करने संबंधी गतिविधियों पर भी रोक लगाता है।
- स्थानिक पौधों की रक्षा करना:
- इसे तहत स्थानिक पौधों को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों पर सख्त रोक रहेगी, जिसमें हेलीकॉप्टर उड़ना या उतारना; पक्षियों को परेशान करने वाले आग्नेयास्त्रों का उपयोग करना; अंटार्कटिक की स्थानिक मृदा या किसी भी जैविक सामग्री को हटाना और ऐसी किसी अन्य गतिविधि में संलग्न होना शामिल है, जो कि पक्षियों एवं जानवरों के आवास को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
- अंटार्कटिक के स्थानिक पक्षियों के अलावा अन्य किसी भी प्रजाति को पेश करने पर प्रतिबंध:
- ऐसे जानवर, पक्षी, पौधे या सूक्ष्म जीव, जो अंटार्कटिका के स्थानिक नहीं हैं, को पेश करना भी प्रतिबंधित है।
- नियमों का उल्लंघन करने वालों को कारावास के साथ-साथ दंड का भी सामना करना पड़ सकता है।
- ऐसे जानवर, पक्षी, पौधे या सूक्ष्म जीव, जो अंटार्कटिका के स्थानिक नहीं हैं, को पेश करना भी प्रतिबंधित है।
- भारतीय टूर ऑपरेटरों से संबंधित प्रावधान:
- यह विधेयक भारतीय टूर ऑपरेटर्स को परमिट प्राप्त करने के बाद ही अंटार्कटिक में काम करने में सक्षम होने का भी प्रावधान करता है।
- अंटार्कटिक में कुल 40 स्थायी अनुसंधान केंद्र हैं, जिनमें भारत के ‘मैत्री’ और ‘भारती’ भी शामिल हैं।
विधेयक का उद्देश्य:
- एक सुस्थापित कानूनी तंत्र के माध्यम से भारत की अंटार्कटिक गतिविधियों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण नीतिगत ढाँचा प्रदान करना; अंटार्कटिक पर्यटन के प्रबंधन और मत्स्यपालन के सतत् विकास सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम की गतिविधियों को सुविधाजनक बनाना।
ऐसे कानून की आवश्यकता क्यों?
- अंटार्कटिक संधि के प्रावधानों को पूरा करने हेतु:
- भारत वर्ष 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है तथा इसने भारत को महाद्वीप के उन हिस्सों के नियंत्रण के लिये कानूनों के एक समूह को निर्दिष्ट करने हेतु बाध्य किया जहाँ इसके अनुसंधान स्टेशन थे।
- संधि ने 54 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के लिये उन क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को निर्दिष्ट करना अनिवार्य कर दिया, जिन क्षेत्रों पर उनके स्टेशन स्थित हैं।
- भारत वर्ष 1983 से अंटार्कटिक संधि का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है तथा इसने भारत को महाद्वीप के उन हिस्सों के नियंत्रण के लिये कानूनों के एक समूह को निर्दिष्ट करने हेतु बाध्य किया जहाँ इसके अनुसंधान स्टेशन थे।
- महाद्वीप की प्राचीन प्रकृति का संरक्षण:
- भारत अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग जैसी संधियों का भी हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- दोनों सम्मेलन भारत को महाद्वीप की प्राचीन प्रकृति के संरक्षण में मदद का आश्वासन देते हैं।
- भारत अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन और अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिये आयोग जैसी संधियों का भी हस्ताक्षरकर्त्ता है।
अंटार्कटिक की प्रमुख विशेषताएँ:
- वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये भारत सहित कई देशों द्वारा स्थापित लगभग 40 स्थायी स्टेशनों को छोड़कर अंटार्कटिक निर्जन है।
- अंटार्कटिक महाद्वीप पर भारत के दो अनुसंधान केंद्र हैं- 'मैत्री' (1989 में स्थापित) शिरमाकर हिल्स में तथा 'भारती' (2012 में स्थापित) लारसेमैन हिल्स में।
- भारत द्वारा अंटार्कटिक कार्यक्रम के तहत अब तक यहाँ 40 वैज्ञानिक अभियान पूरे किये जा चुके हैं। आर्कटिक सर्कल के ऊपर स्वालबार्ड में 'हिमाद्री' स्टेशन के साथ भारत ध्रुवीय क्षेत्रों में शोध करने वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल है।
- अंटार्कटिका पृथ्वी का सबसे दक्षिणतम महाद्वीप है। इसमें भौगोलिक रूप से दक्षिणी ध्रुव शामिल है और यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र में स्थित है।
- 14,0 लाख वर्ग किलोमीटर (5,4 लाख वर्ग मील) में विस्तृत यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है।
- भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम एक बहु-अनुशासनात्मक, बहु-संस्थागत कार्यक्रम है, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ‘नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशियन रिसर्च’ (National Centre for Antarctic and Ocean Research) के नियंत्रण में है।
- भारत ने आधिकारिक रूप से अगस्त 1983 में अंटार्कटिक संधि प्रणाली को स्वीकार किया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चंडीगढ़ संबंधी प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लिये:चंडीगढ़ पर संकल्प, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966, आनंदपुर साहिब 1973 का संकल्प, राजीव-लोंगोवाल समझौता, केंद्रशासित प्रदेश, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 मेन्स के लिये:केंद्रशासित प्रदेशों, संघवाद, केंद्र-राज्य संबंधों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें चंडीगढ़ को तुरंत पंजाब में हस्तांतरित करने की मांग की गई।
- चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद तब और बढ़ गया जब केंद्र ने केंद्रशासित प्रदेश में कर्मचारियों के लिये पंजाब सर्विस रूल्स की जगह सेंट्रल सर्विस रूल्स अधिसूचित किया।
- पंजाब का पुनर्गठन पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के माध्यम से किया गया था, जिसमें पंजाब राज्य को हरियाणा तथा केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ (पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी भी) और पंजाब के कुछ हिस्सों को तत्कालीन केंद्रशासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया था।
चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी कब और कैसे बनी?
- भारत के विभाजन के बाद भारत सरकार लाहौर की तरह भारत में पंजाब के लिये खूबसूरत और मॉडर्न राजधानी चाहती थी। इसी समय चंडीगढ़ के विचार की कल्पना की गई।
- वर्ष 1966 में राज्य को पंजाब और हरियाणा में विभाजित कर दिया गया, जिसके कुछ हिस्से हिमाचल प्रदेश के अंतर्गत आते थे।
- हरियाणा राज्य के गठन तक चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी बना रहा।
- पंजाब के पुनर्गठन के दौरान केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि हरियाणा राज्य को अपनी राजधानी मिलेगी।
- वर्ष 1970 में केंद्र ने घोषणा की कि "चंडीगढ़ राजधानी परियोजना क्षेत्र, समग्र रूप से पंजाब में जाना चाहिये"।
- हरियाणा से कहा गया था कि वह पाँच साल तक चंडीगढ़ में कार्यालय और आवासीय आवासों का उपयोग तब तक करे जब तक कि वह अपनी राजधानी नहीं बना लेता।
- हालाँकि चंडीगढ़ एक केंद्रशासित प्रदेश बना रहा क्योंकि हरियाणा द्वारा अपनी राजधानी नहीं बनाई गई।
- पंजाब की राजधानी (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1952 के अनुसार, चंडीगढ़ में संपत्तियों को पंजाब व चंडीगढ़ के बीच 60:40 के अनुपात में विभाजित किया जाना था।
चंडीगढ़ पर बाद में क्या दावे किये गए?
- अगस्त 1982 में अकाली दल (राजनीतिक दल) ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम पर असंतोष व्यक्त करते हुए वर्ष 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के लक्ष्यों को साकार करने के उद्देश्य से विरोध प्रदर्शन शुरू किया। अकाली दल द्वारा वर्ष 1973 में अपनाए गए आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में मांग की गई थी कि केंद्र के अधिकार क्षेत्र को केवल रक्षा, विदेशी मामलों, संचार और मुद्रा तक ही सीमित रखा जाना चाहिये तथा सभी अवशिष्ट शक्तियाँ राज्यों में निहित होनी चाहिये।
- अन्य मांगों के अलावा इसने चंडीगढ़ को पंजाब में हस्तांतरित करने को कहा।
- वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच राजीव-लोंगोवाल समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- अन्य बातों के अलावा केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को पंजाब में हस्तांतरित करने पर सहमति व्यक्त की तथा 26 जनवरी, 1986 को वास्तविक हस्तांतरण की तारीख तय की गई।
- हालाँकि समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने से भी कम समय के बाद लोंगोवाल की आतंकवादियों द्वारा हत्या कर दी गई।
केंद्रशासित प्रदेश क्या हैं और ये राज्यों से किस प्रकार अलग हैं?
- केंद्रशासित प्रदेश (UT) प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार द्वारा शासित होते हैं।
- संविधान का भाग VIII केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन से संबंधित है।
- भारत का राष्ट्रपति प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश के लिये एक प्रशासक या उप-राज्यपाल की नियुक्ति करता है। व्यवहार में इसका अर्थ है कि केंद्रशासित प्रदेश केंद्र सरकार की इच्छा का पालन करते हैं।
- केंद्रशासित प्रदेशों की अवधारणा संविधान के मूल संस्करण में नहीं थी, बल्कि यह संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा जोड़ी गई थी।
- केंद्रशासित प्रदेशों का शासन अलग-अलग तरीकों से किया जाता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उनके पास विधानसभा है अथवा नहीं।
- छोटे केंद्रशासित प्रदेशों को प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित किया जाता है, उदाहरण के लिये चंडीगढ़, दमन एवं दीव और दादरा एवं नगर हवेली बिना किसी निर्वाचित विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेश हैं।
- दूसरी ओर, पुद्दुचेरी और जम्मू-कश्मीर में एक उपराज्यपाल के साथ एक विधानसभा और निर्वाचित सरकार है। नई दिल्ली की स्थिति पूर्णतः अलग है और यह केंद्रशासित प्रदेश और राज्य के बीच मौजूद है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-3 के अनुसार, भारत में नए राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बनाने की संवैधानिक शक्ति पूरी तरह से भारत की संसद के पास है।
- संसद नए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की घोषणा करके मौजूदा राज्य से किसी क्षेत्र विशिष्ट को अलग करके या दो या अधिक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों या उनके कुछ हिस्सों का विलय करके ऐसा कर सकती है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
|
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो
प्रिलिम्स के लिये:भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI), केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI), दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं लोकपाल। मेन्स के लिये:CBI से संबद्ध चुनौतियाँ, कानून प्रवर्तन में सुधार, पुलिस सुधार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना ने कहा कि केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) गंभीर सार्वजनिक जाँच के दायरे में आ गया है। इसके कार्यों एवं निष्क्रियता ने इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों में सुधार के प्रयास के रूप में मुख्य न्यायाधीश ने एक अम्ब्रेला, स्वतंत्र एवं स्वायत्त जाँच एजेंसी का प्रस्ताव रखा है।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI):
- केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
- अब CBI कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आती है।
- CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से जाँच संबंधी शक्ति प्राप्त होती है।
- भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संथानम समिति (1962-1964) द्वारा CBI की स्थापना की सिफारिश की गई थी।
- CBI केंद्र सरकार की प्रमुख जाँच एजेंसी है।
- यह केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं लोकपाल को भी सहायता प्रदान करती है।
- यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।
CBI से संबद्ध चुनौतियाँ:
- राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने CBI के कार्यकलापों में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप किये जाने के कारण इसकी आलोचना की थी और इसे "अपने स्वामी की आवाज़ में बोलने वाला पिंजराबंद तोता" कहा था।
- इसका दुरुपयोग प्रायः निवर्तमान सरकार द्वारा अपने गलत कार्यों को छुपाने, गठबंधन के सहयोगियों पर दबाव बनाने और राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न के लिये किया जाता रहा है।
- अतिव्यापी एजेंसियाँ: मौजूदा समय में एक ही घटना की कई एजेंसियों द्वारा जाँच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमज़ोर पड़ जाते हैं, बयानों में विरोधाभास होता है और बेगुनाहों को लंबे समय तक जेल में रखा जाता है।
- कर्मियों की भारी कमी: इसका एक मुख्य कारण सीबीआई के कार्यबल का सरकार द्वारा कुप्रबंधन है, जो अक्षम और बेवजह पक्षपाती भर्ती नीतियों के माध्यम से होता है, जिसका इस्तेमाल इच्छित अधिकारियों को लाने के लिये किया जाता है, जो कि संगठन की कार्य क्षमता को प्रभावित करता है।
- सीमित शक्तियाँ: जाँच हेतु CBI के सदस्यों की शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र राज्य सरकार की सहमति के अधीन हैं, इस प्रकार CBI द्वारा जाँच की सीमा को सीमित किया जाता है।
- प्रतिबंधित पहुँच: केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव और उससे उच्च स्तर के कर्मचारियों पर जाँच या जाँच करने के लिये केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति नौकरशाही के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में एक बड़ी बाधा है।
कानून प्रवर्तन को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?
- स्वतंत्र अंब्रेला इंस्टीट्यूशन का निर्माण: CJI ने CBI, प्रवर्तन निदेशालय और गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय जैसी विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों को एक छत के नीचे लाने का प्रस्ताव रखा है।
- उसके संगठन का नेतृत्त्व किसी एक समिति द्वारा नियुक्त स्वतंत्र और निष्पक्ष प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिये, जिसके द्वारा CBI निदेशक को नियुक्त किया जाना चाहिये।
- CJI ने कहा कि पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये अभियोजन और जाँच हेतु अलग एवं स्वायत्त विंग रखना एक अतिरिक्त अंतर्निहित सुरक्षा है।
- नियुक्ति समिति द्वारा संस्थान के प्रदर्शन की वार्षिक लेखा परीक्षा के लिये प्रस्तावित कानून में एक उचित जाँच और संतुलन का प्रावधान होगा।
- राज्यों और केंद्र के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध: राज्य सूची के तहत पुलिस तथा सार्वजनिक व्यवस्था एवं जाँच का बोझ मुख्य रूप से राज्य पुलिस पर है।
- जाँच के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य एजेंसियों को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- अम्ब्रेला जाँच निकाय हेतु प्रस्तावित केंद्रीय कानून को राज्यों द्वारा उपयुक्त रूप से दोहराया जा सकता है।
- लैंगिक समानता लाना: आपराधिक न्याय प्रणाली में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
- सामाजिक वैधता समय की मांग है ताकि सामाजिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास को पुनः प्राप्त किया जा सके एवं इसे हासिल करने के लिये पहला कदम राजनीतिक कार्यपालिका के साथ गठजोड़ को तोड़ना है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: लंबे समय से लंबित पुलिस सुधारों को लागू करने और लंबित मामलों से निपटने की आवश्यकता है।