शासन व्यवस्था
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति की दूसरी वर्षगाँठ
- 06 Aug 2021
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प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद 370, 35A एवं अन्य संबंधित प्रावधान मेन्स के लियेजम्मू-कश्मीर में उग्रवाद के कारण और इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
‘जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार फोरम’ (FHRJK) ने केंद्र शासितप्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर (J&K) के दो वर्ष पूरे होने से एक दिन पूर्व अपनी रिपोर्ट जारी की है।
- इस रिपोर्ट में आतंकवाद को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई है, जो कि जम्मू-कश्मीर में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- ‘जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार फोरम’ सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर और कश्मीर के पूर्व वार्ताकार राधा कुमार की सह-अध्यक्षता वाली एक स्वतंत्र संस्था है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- 5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 के तहत तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य की विशेष संवैधानिक स्थिति को समाप्त कर दिया था और अनुच्छेद 35A को निरस्त कर दिया गया था।
- अनुच्छेद 35A के तहत जम्मू-कश्मीर को अपने 'स्थायी निवासी' परिभाषित करने और उनसे जुड़े अधिकारों एवं विशेषाधिकारों को निर्धारित करने की अनुमति दी गई थी।
- इस पूर्ववर्ती राज्य को केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख (बिना विधायिका के) और जम्मू-कश्मीर (विधायिका के साथ) में विभाजित किया गया था।
- समवर्ती रूप से भारत सरकार ने इस क्षेत्र में लगभग पूर्ण कम्युनिकेशन लॉकडाउन लागू किया था, साथ ही राजनेताओं और असंतुष्ट लोगों को हिरासत में लिया गया तथा हिंसक अशांति को रोकने के लिये इस क्षेत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 144 लागू की गई।
रिपोर्ट के निष्कर्ष
- रिपोर्टों के तहत जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन, मनमानी निवारक निरोध, विधानसभा पर प्रतिबंध और स्थानीय मीडिया सेंसरशिप को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई है।
- सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं लेकिन वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहे हैं।
- रिपोर्ट में माना गया है कि प्रदेश में अभी भी सार्वजनिक, नागरिक और मानव सुरक्षा संबंधी मुद्दों के बजाय आतंकवाद विरोधी विषयों को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है।
जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद का कारण:
- चूँकि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर (J&K) की विशेष संवैधानिक स्थिति समाप्त हो गई थी तथा इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था, जम्मू-कश्मीर में लोगों का एक वर्ग इस फैसले का विरोध कर रहा है।
- इसके अलावा भारतीय नागरिकों को बिना अधिवास के जम्मू और कश्मीर (J & K) में ज़मीन खरीदने की अनुमति देने से स्थानीय लोगों ने नाराज़गी व्यक्त की।
- इसके बाद जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से सहायता प्राप्त उग्रवाद ने इस क्षेत्र को प्रभावित करना जारी रखा है।
- यह सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानून के दुरुपयोग के साथ जुड़ा हुआ है।
- इसके अतिरिक्त इस बात की आशंका बढ़ रही है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किये जाने से सुरक्षा स्थिति और खराब होने की संभावना है।
सरकार और न्यायपालिका द्वारा उठाए गए कदम:
- औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना: हाल ही में उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग ने जम्मू और कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिये नई केंद्रीय क्षेत्र योजना को अधिसूचित किया है।
- यह योजना चार प्रोत्साहन प्रदान करती है अर्थात्:
- पूंजी निवेश प्रोत्साहन।
- पूंजीगत ब्याज सबवेंशन।
- गुड्स एंड सर्विस टैक्स लिंक्ड इंसेंटिव।
- कार्यशील पूंजी ब्याज सबवेंशन।
- यह योजना क्षेत्र में अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करने और पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
- यह योजना चार प्रोत्साहन प्रदान करती है अर्थात्:
- पीएम-जेएवाई योजना : यह योजना निशुल्क बीमा कवर प्रदान करती है। यह केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सभी निवासियों को फ्लोटर के आधार पर प्रति परिवार 5 लाख रुपए तक का वित्तीय कवर प्रदान करता है।
- युद्धविराम समझौता: भारतीय और पाकिस्तानी डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस’ (DGsMO) सशस्त्र समूहों द्वारा प्रतिबंधित घुसपैठ के लिये सहमत हुए और उम्मीद व्यक्त की जा रही है कि एक व्यापक शांति प्रक्रिया का पालन हो सकता है।
- जम्मू-कश्मीर में चुनाव: केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की मांग की।
- हालाँकि सरकार ने माना कि चुनाव UT विधानसभा के लिये होंगे। इसके विपरीत क्षेत्रीय दलों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद वे चुनाव में भाग लेंगे।
- इंटरनेट बंद होने पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: सर्वोच्च न्यायालय ने दायर याचिकाओं के जवाब में फैसला सुनाया जिसमें इंटरनेट बंद करने और जम्मू-कश्मीर में अन्य नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का तर्क दिया गया था।
- न्यायालय ने माना कि निलंबन केवल अस्थायी अवधि के लिये किया जा सकता है और यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिये विशेष पैकेज।
आगे की राह:
- मानवाधिकार मंच ने सभी शेष राजनीतिक बंदियों (Political Detainees) की रिहाई और PSA तथा अन्य निवारक निरोध कानूनों को निरस्त करने की सिफारिश की।
- इसने कश्मीरी पंडितों की वापसी की सुविधा में स्थानीय समुदायों की भागीदारी का भी आह्वान किया।
- कश्मीर समाधान के लिये भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेयी) के दृष्टिकोण- कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद और लोकतंत्र) को लागू करके जम्मू-कश्मीर में शांति ढाँचा स्थापित किया जा सकता है।