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डेली न्यूज़

  • 02 Apr, 2020
  • 57 min read
भारतीय राजनीति

कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) अध्यादेश, 2020

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, अध्यादेश, पीएम केयर्स फंड

मेंस के लिये: 

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति, कोरोना से निपटने हेतु लोकहित में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा ‘कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) अध्यादेश, 2020’ [Taxation and Other Laws (Relaxation of Certain Provisions) Ordinance, 2020] प्रख्यापित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह अध्यादेश COVID-19 महामारी के मद्देनज़र 24 मार्च, 2020 को घोषित विभिन्न कर अनुपालन संबंधी उपायों को प्रभावी बनाता है।
  • इस अध्यादेश में कराधान और बेनामी अधिनियमों के तहत विभिन्न समय सीमाएँ बढ़ाने के प्रावधान किये गए हैं।
  • अध्यादेश में उन नियमों या अधिसूचना में निहित समय सीमाएं बढ़ाने के भी प्रावधान किये गए हैं जो इन अधिनियमों के तहत निर्दिष्‍ट/जारी किये जाते हैं।
  • इस अध्यादेश के जरिये बढ़ाई गई समय सीमाएँ और कुछ महत्त्वपूर्ण राहत उपाय निम्‍नलिखित हैं:
    • सरकार ने आयकर फाइल करने, राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, सार्वजनिक भविष्य निधि जैसे आयकर लाभ का दावा करने वाले उपकरणों में निवेश आदि करने की अंतिम तिथि बढ़ा दी है।
    • आधार कार्ड और पैन कार्ड (PAN Card) को आपस में जोड़ने की अंतिम तिथि बढ़ाकर 30 जून, 2020 कर दी गई है।  
    • अध्यादेश के तहत आयकर अधिनियम के प्रावधानों में भी संशोधन किया गया है, ताकि ‘पीएम केयर्स फंड’ (PM-CARES Fund) के लिए भी ठीक वही कर राहत मिल सके जो ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ के लिए उपलब्ध है। 
      • अत: पीएम केयर्स फंड (PM-CARES Fund) में किया गया दान आयकर अधिनियम की धारा 80जी (Section 80G of the IT Act) के तहत 100% कटौती का पात्र होगा।
      • इसके अलावा, सकल आय के 10% की कटौती की सीमा भी पीएम केयर्स फंड में किये गए दान पर लागू नहीं होगी। 

अध्यादेश:

  • संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति के पास संसद के सत्र में न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है।
  • अध्यादेश की शक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून के बराबर ही होती है और यह तत्काल लागू हो जाता है।
  • अध्यादेश के अधिसूचित होने के बाद इसे संसद पुनः बैठक के 6 सप्ताह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
  • एक विधेयक की भांति एक अध्यादेश भी पूर्ववर्ती हो सकता है अर्थात इसे पिछली तिथि से प्रभावी किया जा सकता है।
  • संसद या तो इस अध्यादेश को पारित कर सकती है या इसे अस्वीकार कर सकती है अन्यथा 6 सप्ताह की अवधि बीत जाने पर अध्यादेश प्रभावहीन हो जाएगा।
  • चूँकि सदन के दो सत्रों के बीच अधिकतम अंतराल 6 महीने का हो सकता है, इसलिये अध्यादेश का अधिकतम 6 महीने और 6 सप्ताह तक लागू रह सकता है।
  • इसके अलावा राष्ट्रपति कभी भी अध्यादेश को वापस ले सकता है। ( मंत्रिमंडल की सलाह पर)

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

COVID-19 की तीन अर्द्ध उप-प्रजातियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, COVID-19, राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड

मेन्स के लिये:

COVID-19 की तीन अर्द्ध उप प्रजातियों के फैलने एवं रोकने से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) के अनुसार, COVID-19 की तीन अर्द्ध उप प्रजातियाँ भारत में प्रसारित हो रही हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत में COVID-19 के मामले मुख्य रूप से विदेशों से यात्रा कर लौटने वाले लोगों और उनसे तात्कालिक संपर्कों में आने के कारण फैला है जिससे यह स्पष्ट होता है कि  यह वायरस विदेशों से आया है। 
  • अब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि विश्व के अन्य हिस्सों में इस वायरस का व्यवहार कैसा है। 
  • केंद्र सरकार ने COVID-19 के मद्देनज़र वैज्ञानिक एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योगों और नियामक निकायों के बीच समन्वय हेतु एक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी सशक्त समिति का गठन किया है।
  • यह समिति परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाने हेतु अनुसंधान और विकास पर तेज़ी से निर्णय के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और भारतीय विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर काम करेगी। 
  • वर्तमान समय में भारत को किसी दूसरे देशों से तुलना नही करना चाहिये। इस वायरस से होने वाली बीमारी एवं शारीरिक दूरी बनाए रखने के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिये।
  • ICMR के अनुसार, परीक्षण किट की उपलब्धता तथा मास्क का अंधाधुंध उपयोग अभी भी एक मुद्दा है। 
  • हालाँकि, ICMR इस बात की पुष्टि करता है कि भारत में COVID-19 की तीन अर्द्ध उप प्रजातियाँ भारत में प्रसारित हो रही हैं। 

वर्तमान परिदृश्य:

  • COVID-19 की परीक्षण करने हेतु वर्तमान समय में 129 सरकारी एवं 49 निजी प्रयोगशालाओं को अनुमति दी गई है।
  • निजी प्रयोगशालाओं को राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories-NABL) से मान्यता प्राप्त है।
  • भारत में अब तक 42,788 नमूनों का परीक्षण किया गया है।
  • भारत में 61,000 राहत शिविरों में 6 लाख से अधिक प्रवासियों को रखा गया है।
  • भारत एक या दो महीने में इस महामारी से संक्रमित लोगों की जाँच हेतु स्वदेशी परीक्षण किट बना लेगा जिससे परीक्षण की दर बढ़ जाएगी। 

स्वदेशी निर्माण:

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) ने चिकित्सा उपकरणों के निर्माण हेतु एक संघ का गठन किया है।
  • पुणे में एक स्टार्ट-अप द्वारा पहली स्वदेशी परीक्षण किट का निर्माण होगा जो एक सप्ताह में लगभग एक लाख परीक्षण किट किया जायेगा।
  • वेंटिलेटर, परीक्षण किट, इमेजिंग उपकरण, अल्ट्रासाउंड और उच्च अंत रेडियोलॉजी उपकरण का स्वदेशी निर्माण विशाखापत्तनम में होगा जहाँ अप्रैल के पहले सप्ताह में विनिर्माण शुरू हो जाएगा।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Medical Research- ICMR):

  • ICMR जैव चिकित्सा अनुसंधान के समन्वय और प्रचार के लिये दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (Indian Research Fund Association-IRFA) के नाम से हुई थी बाद में वर्ष 1949 में इसका नाम बदलकर ICMR रखा गया। 
  • इसे भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंडोनेशिया के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप

प्रीलिम्स के लिये:

नाइन-डैश लाइन, 

मेन्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर विवाद, भारतीय एक्ट ईस्ट नीति की चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में दक्षिण चीन सागर में स्थित अन्य देशों की समुद्री सीमाओं में चीनी मछुआरों और तटरक्षकों की गतिविधियों में वृद्धि हुई है। चीन का बढ़ता हस्तक्षेप इस क्षेत्र में मछुआरों के साथ-साथ देशों की संप्रभु सरकारों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है। 

Indonesia

मुख्य बिंदु:   

  • पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में विकास के साथ ही चीन ने अपनी सैन्य शक्ति में भी महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है और इसके प्रयोग से वह क्षेत्र में अपनी सीमा के विस्तार के लिये करता रहा है।
  • फरवरी 2020 में चीनी तटरक्षकों के सहयोग से चीन के मछुआरों ने इंडोनेशिया के नातुना सागर क्षेत्र में प्रवेश किया जिसके कारण स्थानीय मछुआरों को पीछे हटना पड़ा।
  • हालाँकि चीन स्वयं नातुना सागर क्षेत्र पर इंडोनेशिया के अधिकार को स्वीकार करता है परंतु चीनी विदेश मंत्रालय इसे ‘ट्रेडिशनल फिशिंग ग्राउंड (Traditional Fishing Ground) बताता है।
  • इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में प्रवेश कर चीन के मछुआरे अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन तो करते ही हैं साथ ही चीनी मछुआरों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले स्टील उपकरण समुद्री जैव प्रणाली को भी नष्ट कर देते हैं।

इंडोनेशिया की प्रतिक्रिया: 

  • जनवरी 2020, में नातुना द्वीपसमूह की यात्रा के दौरान इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने क्षेत्र में अपने अधिकार और इंडोनेशिया की संप्रभुता की बात को दोहराया था।
  • इस दौरान इंडोनेशिया की वायु सेना और नौसेना ने क्षेत्र में अपनी उपस्थिति के माध्यम से चीन को कड़ा संदेश देने का प्रयास किया।
  • स्थानीय लोगों के अनुसार, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति के दौरे के अगले ही दिन चीनी मछुआरे और चीनी तट रक्षक पुनः क्षेत्र में वापस आ गए और वे यहाँ कई दिनों तक रहे।
  • हालाँकि इंडोनेशिया के मत्स्य मंत्री (Fisheries Minister) ने इंडोनेशिया की समुद्री सीमा में किसी भी प्रकार के चीनी हस्तक्षेप से इनकार किया है।         

दक्षिण चीन सागर और इन-डैश लाइन विवाद

(South China Sea and Nine-Dash Line Dispute):

  • एक अनुमान के अनुसार, विश्व के कुल समुद्री व्यापार का 30% दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है।
  • वर्ष 2017 में इस समुद्री मार्ग से प्रतिवर्ष होने वाले व्यापार की कीमत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक बताई गई थी। 
  • मलक्का जलसंधि (Malacca Strait) से होते हुए यह क्षेत्र हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला सबसे संक्षिप्त मार्ग प्रदान करता है।  
  • दक्षिण चीन सागर को समुद्री जैव-विविधता के साथ ही खनिज तेल और प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार के रूप में देखा जाता है।  
  • वर्ष 1949 से ही चीन ‘नाइन-डैश लाइन’ (क्षेत्र के मानचित्र पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखाएँ) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के अधिकांश भाग (लगभग 80%) पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है। 

वैश्विक प्रतिक्रिया:  

  • इंडोनेशिया के अलावा क्षेत्र के अन्य देशों जैसे- वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस आदि ने दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक हस्तक्षेप का विरोध किया है।  
  • वर्ष 2013 में फिलीपींस ने अपने समुद्री क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS), 1982 के तहत स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) में चुनौती दी।
  • PCA ने जुलाई 2016 के अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर में चीन के हस्तक्षेप को गलत बताया।

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय

(Permanent Court of Arbitration- PCA):

  • स्थायी मध्यस्थता न्यायालय एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • इसकी स्थापना प्रथम ‘हेग शांति सम्मेलन’ (Hague Peace Conference) के दौरान वर्ष 1899 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य राष्ट्रों के बीच विवादों के निपटारे के लिये मध्यस्थता व अन्य सेवाएँ प्रदान करना था।
  • वर्तमान में विश्व के 122 देश इस संस्था से जुड़े हुए हैं।
  • भारत वर्ष 1950 में इस संस्था में शामिल हुआ था।  
  • इसका मुख्यालय हेग (Hague), नीदरलैंड में स्थित है।      
  • न्यायालय के अनुसार, फिलीपींस के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन है, साथ ही ऐसी गतिविधियाँ ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के भी खिलाफ हैं।  
  • PCA के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन इन निर्णय का विरोध करता है और वह इस निर्णय के आधार पर किसी भी दावे या कार्रवाई को स्वीकार नहीं करेगा।
  • क्षेत्र के देशों के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य देशों (जैसे-अमेरिका) ने दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक नीति का विरोध किया है।

भारत पर प्रभाव: 

  • हालाँकि भारत अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का समर्थन करता है, परंतु दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन की कार्रवाई का प्रभाव भारत के व्यापारिक एवं सामरिक हितों पर पड़ सकता है।   
  • हाल के वर्षों में भारत ने अपनी एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने का प्रयास तेज़ किया है।  
  • इस पहल के तहत भारत ने क्षेत्र के कई देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया है।
  • उदाहरण के लिये वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर के अपने अधिकार क्षेत्र में भारत को 7 तेल ब्लॉक (Oil Block) देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
  • इसके अतिरिक्त भारत ने ब्रूनेई के साथ भी ऊर्जा संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।

आगे की राह:  

  • दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र (United Nation) और आसियान (ASEAN) जैसे मंचों पर सामूहिक वैश्विक प्रयासों में में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • दक्षिण चीन सागर में चीनी मछुआरों द्वारा प्राकृतिक संपदा का अनियंत्रित दोहन और चीन सरकार द्वारा कृत्रिम द्वीपों के निर्माण आदि से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी क्षति हो रही है, अतः ऐसे मुद्दों को वैश्विक मंचों पर उठाया जाना चाहिये।
  • क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए भारत को क्वाड (QUAD) जैसे बहु-राष्ट्रीय समूहों के माध्यम से निरंतर संयुक्त नौ-सैनिक अभ्यासों का आयोजन करना चाहिये।          

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों को 70 वर्ष

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-चीन व्यापार 

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंध

चर्चा में क्यों?

1 अप्रैल, 2020 को भारत-चीन राजनयिक संबंधों की स्थापना को 70 वर्ष हो गए हैं। 

मुख्य बिंदु:

  • पिछले 70 वर्षों में चीन-भारत संबंधों में कुछ मामूली टकरावों के बावज़ूद लगातार प्रगाढ़ता देखी गई है तथा दोनों देश एक असाधारण विकास पथ से होकर गुज़रे हैं। 
  • 1950 के दशक में, दोनों देशों के नेताओं द्वारा राजनयिक संबंध स्थापित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया तथा संयुक्त रूप से ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों’ (Five Principles of Peaceful Coexistence) की वकालत की।
  • दोनों देश शांति तथा मैत्रीपूर्ण परामर्श के माध्यम से सीमा विवाद के प्रश्न को हल करने तथा द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के पक्षधर हैं।

भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • 1 अप्रैल, 1950 को भारत-चीन के मध्य राजनयिक संबंध स्थापित किये गए। भारत चीन के जनवादी गणराज्य (People's Republic of China- PRC) के साथ संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश था। उस समय “हिंदी-चीनी भाई-भाई” एक तकिया कलाम (Catchphrase) बन गया।
  • वर्ष 1954 में, चीनी प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया। भारत- चीन ने संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किये तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों की संयुक्त रूप से वकालत की। उसी वर्ष, भारतीय प्रधान मंत्री ने चीन का दौरा किया। नेहरू, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद, चीन का दौरा करने वाले प्रथम  गैर-समाजवादी देश की सरकार के प्रमुख थे।
  • वर्ष 1955 में, प्रीमियर झोउ एनलाई (Premier Zhou Enlai) तथा प्रधान मंत्री नेहरू सहित 29 देशों ने एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन बांडुंग, इंडोनेशिया में भाग लिया तथा संयुक्त रूप से एकजुटता, मित्रता और सहयोग के भावना की वकालत की। 
  • वर्ष 1962 में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा तथा उसके बाद वर्ष 1976 मे भारत-चीन राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया। इसके बाद के समय में द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला।
  • वर्ष 1988 में भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए चीन का दौरा किया। दोनों पक्ष सीमा विवाद के प्रश्न के पारस्परिक स्वीकार्य समाधान निकालने तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिये सहमत हुए। वर्ष 1992 में, भारतीय राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन भारत गणराज्य की स्वतंत्रता के बाद से चीन का दौरा करने वाले प्रथम भारतीय राष्ट्रपति थे।
  • वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन का दौरा किया। दोनों पक्षों ने भारत-चीन संबंधों में सिद्धांतों और व्यापक सहयोग पर घोषणा (The Declaration on the Principles and Comprehensive Cooperation in China-India Relations) पर हस्ताक्षर किये। 
  • वर्ष 2008 में भारतीय प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन का दौरा किया। दोनों सरकारों द्वारा '21 वीं सदी के लिये एक साझा विज़न' पर सहमति व्यक्त की।
  • वर्ष 2011 को 'चीन-भारत विनिमय वर्ष' तथा वर्ष 2012 को 'चीन-भारत मैत्री एवं  सहयोग का वर्ष' के रूप में मनाया गया। दोनों पक्षों ने पीपल-टू-पीपल संपर्क तथा सांस्कृतिक विनिमय गतिविधियों की एक श्रृंखला आयोजित की तथा 'भारत-चीन सांस्कृतिक संपर्क विश्वकोश' के संयुक्त संकलन के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा किया इसके बाद चीन ने भारतीय आधिकारिक तीर्थयात्रियों के लिये नाथू ला दर्रा खोलने का फैसला किया। भारत ने चीन में भारत पर्यटन वर्ष मनाया।
  • वर्ष 2018 में चीन के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वुहान में ‘भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। उनके बीच गहन विचार-विमर्श हुआ और वैश्विक और द्विपक्षीय रणनीतिक मुद्दों के साथ-साथ घरेलू और विदेशी नीतियों के लिये उनके संबंधित दृष्टिकोणों पर व्यापक सहमति बनी। अनौपचारिक बैठक ने दो नेताओं के बीच आदान-प्रदान का एक नया मॉडल स्थापित किया और द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गया। 
  • वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति बीच चेन्नई में ‘दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन’ आयोजित किया गया। इस बैठक में, 'प्रथम अनौपचारिक सम्मेलन' में बनी आम सहमति को और अधिक दृढ़ किया गया।
  • वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ है तथा भारत-चीन सांस्कृतिक तथा पीपल-टू-पीपल संपर्क का वर्ष भी है।

भारत-चीन सहयोग

  • राजनैतिक तथा राजनयिक संबंध:
    • भारत तथा चीन के शीर्ष नेताओं द्वारा दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किये गए तथा वैश्विक एवं क्षेत्रीय महत्त्व के मुद्दों पर गहन विचारों का आदान-प्रदान किया।
    • दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं का लगातार आदान-प्रदान, अंतर-संसदीय मैत्री समूह स्थापना, सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक आदि का आयोजन समय-समय पर किया जाता रहा है।
    • भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं के विभिन्न विषयों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये लगभग 50 संवाद तंत्र हैं।
  • अर्थव्यवस्था एवं व्यापार:
    • दोनों देश स्थायी एवं उच्च-गुणवत्ता युक्त आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, वैश्विक बहुपक्षीय व्यापार तंत्र की सुरक्षा करने, वैश्विक शासन प्रणाली के सुधार को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं  वित्तीय जोखिमों से सुरक्षा करने की दिशा में कार्य कर रहें हैं।
    • 21 वीं सदी के प्रारंभ से अब तक भारत और चीन के बीच होने वाला व्यापार 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर लगभग 100 बिलियन डॉलर (32 गुना) हो गया है। वर्ष 2019 में भारत तथा चीन के बीच होने वाला व्यापार की मात्रा 92.68 बिलियन डॉलर थी।
    • भारत में औद्योगिक पार्कों, ई- कॉमर्स तथा अन्य क्षेत्रों में 1,000 से अधिक चीनी कंपनियों ने अपना निवेश किया है। कंपनियाँ भी चीन के बाज़ार में सक्रिय रूप से विस्तार कर रही हैं। चीन में निवेश करने वाली दो-तिहाई से अधिक भारतीय कंपनियाँ लगातार मुनाफा कमा रही हैं।
    • 2.7 बिलियन से अधिक लोगों के संयुक्त बाज़ार तथा दुनिया के 20% के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत तथा चीन के लिये आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग में व्यापक संभावनाएँ  हैं। भारत में चीनी कंपनियों का संचयी निवेश 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: 
    • भारतीय कंपनियों ने चीन में तीन सूचना प्रौद्योगिकी कॉरिडोर स्थापित किये हैं, जो सूचना प्रौद्योगिकी तथा उच्च प्रौद्योगिकी में भारत-चीन सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • रक्षा क्षेत्र:
    • भारत तथा चीन के बीच हैंड-इन-हैंड (Hand-in-Hand) संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास के अब तक 8 दौर आयोजित किये जा चुके हैं।
  • पीपुल-टू-पीपुल एक्सचेंज:
    • दोनों देशों ने कला, प्रकाशन, मीडिया, फिल्म और टेलीविज़न, संग्रहालय, खेल, युवा, पर्यटन, स्थानीयता, पारंपरिक चिकित्सा, योग, शिक्षा और थिंक टैंक के क्षेत्र में आदान-प्रदान तथा सहयोग पर बहुत अधिक प्रगति की है।
    • दोनों देशों ने सिस्टर नगरों (Sister Cities) तथा प्रांतों के 14 जोड़े स्थापित किये हैं।  फ़ुज़ियान प्रांत और तमिलनाडु को सिस्टर प्रांतों के रूप में जबकि चिनझोऊ (Quanzhou) एवं चेन्नई नगर की सिस्टर नगरों  के रूप में विकसित किया जाएगा।
    • भाषा सीखना भारत में एक लोकप्रिय प्रवृत्ति बनती जा रही है अत: दोनों देशों के भाषा संस्थानों के मध्य लगातार सहयोग बढ़ रहा है।

अंतर्निहित विवादित मुद्दे:

  • कुछ बुनियादी मुद्दों पर दोनों देशों के संबंधों के मध्य बढ़ा अंतराल देखने को मिलता है: 
    सीमा/क्षेत्रीय विवाद, जैसे- पोंगोंग त्सो मोरीरी झील का विवाद , 2019, डोकलाम गतिरोध, 2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद। 
  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख। 
  • बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative) संबंधी विवाद, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) विवाद।
  • सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन।
  • चीन ने हिंद- प्रशांत महसागरीय क्षेत्र में भारत (QUAD का सदस्य) की भूमिका पर भी असंतोष जाहिर किया है।

विवाद समाधान रणनीति:

  • हम अतीत से कुछ प्रेरणा और अनुभव सीख सकते हैं तथा निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं-
    • पहला, नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का पालन करें। 
    • दूसरा, मैत्रीपूर्ण सहयोग की सामान्य प्रवृत्ति को समझें। 
    • तीसरा, पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की गति का विस्तार करें। 
    • चौथा, अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिये।
    • पाँचवाँ, आपसी मतभेदों का उचित प्रबंधन करना होगा।

आगे की राह:

  • विकासशील देशों में केवल चीन तथा भारत ऐसे देश है जिनकी जनसंख्या एक अरब से अधिक है तथा ये दोनों देश राष्ट्रीय कायाकल्प (National Rejuvenation) के ऐतिहासिक मिशन के साथ ही  विकासशील देशों के सामूहिक उत्थान प्रक्रिया को गति देने में महत्त्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका निभा सकते हैं।
  • वर्तमान समय में 70 वर्ष पुराने राजनयिक संबंध स्थापित के पीछे की मूल आकांक्षा को फिर से जागृत करने तथा अच्छे पड़ोसी व दोस्ती, एकता और सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम' तथा चीनी दर्शन 'सार्वभौमिक शांति' तथा 'सार्वभौमिक प्रेम' की अवधारणा एक दूसरे की पूरक हैं। ये प्राचीन प्राच्य ज्ञान आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 
  • ‘ड्रैगन-एलीफेंट टैंगो’ (Dragon-Elephant Tango) अगले 70 वर्षों में बेहतर भविष्य तथा मानव जाति के साझा भविष्य के निर्माण में एक नया अध्याय लिखने की दिशा में आगे बढ़ रहें हैं। 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

COVID-19 के कारण वैश्विक खाद्य संकट की स्थिति

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19 

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा, COVID-19 के वैश्विक प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई वैश्विक संगठनों के प्रमुखों ने चेतावनी दी है कि यदि विश्व के देश COVID-19 की चुनौती से निपटने में असफल रहते हैं तो आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर खाद्य संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

मुख्य बिंदु:   

  • 3 मार्च, 2020 को संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के सर्वोच्च अधिकारियों द्वारा साझा बयान में आने वाले दिनों में वैश्विक बाज़ार में खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के संदर्भ में चिंता व्यक्त की गई है।   
  • COVID-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये विश्व के विभिन्न देशों ने लॉकडाउन के तहत लगभग सभी गतिविधियों (यातायात, व्यापार आदि) पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है।
  • वैश्विक स्तर पर अधिकांश देशों में लॉकडाउन के होने से वैश्विक व्यापार और खाद्य आपूर्ति शृंखला (Food Supply Chain) प्रभावित हुई है। लॉकडाउन से पहले लोगों द्वारा भयवश अत्यधिक खरीद या पैनिक बाईंग (Panic Buying) के परिणामस्वरूप बाज़ारों में खाद्य पदार्थों की कमी, खाद्य आपूर्ति शृंखला की संवेदनशीलता को दर्शाता है। 

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन

(Food and Agriculture Organization- FAO):

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी। 
  • इसका मुख्यालय रोम (Rome), इटली में स्थित है।
  • FAO वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा के लिये काम करता है, इस संस्था का लक्ष्य पोषण सुधार, कृषि उत्पादकता में वृद्धि और ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान देना है।  
  • वर्तमान में इस संस्था में 194 सक्रिय सदस्य हैं। 
  • साझा बयान के अनुसार, खाद्य उपलब्धता के संदर्भ में अनिश्चितता से एक साथ कई देश खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, जिससे वैश्विक बाजार में इनकी भारी कमी उत्पन्न हो सकती है।
  • ध्यातव्य है कि COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये विश्व के कई देशों ने अपने देश के अंदर तथा अन्य देशों के बीच आवाजाही पर रोक लगा दी है। इसी के तहत भारत में 24 मार्च, 2020 को देश में अगले 21 दिनों के लिये संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की गई थी।

आयात पर निर्भरता:   

  • वर्तमान में विश्व के अनेक विकासशील देश अपनी खाद्य ज़रूरतों के लिये अन्य देशों से होने वाले आयात पर निर्भर रहते हैं। 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2013 में विश्व के लगभग 13 देश अपनी खाद्य ज़रूरतों के लिये पूर्ण रूप से अन्य देशों से होने वाले आयात पर निर्भर थे। 
  • वर्ल्डवाच इंस्टीट्यूट (Worldwatch Institute) के एक शोधकर्त्ता के अनुसार, वर्ष 1961-2015 के बीच विश्व भर में खाद्य आयात में 57% की वृद्धि हुई है।    

COVID-19 के वैश्विक प्रभाव:

  • वर्तमान में चीन से शुरू हुई COVID-19 की महामारी विकासशील देशों के साथ-साथ यूरोप के देशों और अमेरिका के लिये भी एक बड़ी समस्या बन गई है।
  • 3 मार्च, 2020 के आँकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में एक दिन में COVID-19 से मरने वालों की संख्या 563 बताई गई थी।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में अब तक COVID-19 से मरने वालों की संख्या लगभग 2,352 तक पहुँच गई है।
  • COVID-19 से संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और स्वस्थाकर्मियों का नियमित परीक्षण करना एक बड़ी चुनौती बन गया है।
  • अमेरिका में COVID-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति ने देश की जनता को आने वाले कठिन दिनों के लिये तैयार रहने को कहा है।
  • व्हाइट हाउस के ‘COVID-19 रिस्पाँस कोऑर्डिनेटर’ (Response Coordinator) के अनुसार, वर्तमान COVID-19 के नियंत्रण के लिये किये जा रहे प्रयासों के बाद भी आने वाले दिनों में  अमेरिका में इस बीमारी से मरने वाले लोगों की संख्या 1 लाख से भी अधिक हो सकती है। 

वैश्विक खाद्य संकट से निपटने के समाधान: 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि गतिविधियों में बाधा और सीमाओं पर खाद्य सामग्रियों को लंबे समय तक रोकने पर बड़ी मात्रा में फसलों और अनाज का नुकसान होगा। ऐसे में खाद्य आपूर्ति जैसी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विशेष प्रयास किये जाने चाहिये। 
  • WTO, WHO और FAO द्वारा जारी साझा बयान के अनुसार, खाद्य आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिये खाद्य उत्पादन तथा प्रसंस्करण में लगे कर्मचारियों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • इस बयान में कहा गया कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि COVID-19 के कारण आवश्यक वस्तुओं की अनपेक्षित कमी न हो, वर्तमान परिस्थिति में वैश्विक सहयोग में वृद्धि अतिआवश्यक है।  

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल कर और टेक कंपनियाँ

प्रीलिम्स के लिये

डिजिटल कर

मेन्स के लिये 

डिजिटल कर से संबंधित निर्णय का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

गूगल और फेसबुक जैसी दिग्गज अमेरिकी टेक कंपनियाँ भारत के नए डिजिटल कर (Digital Tax) को कुछ समय के लिये टालने की मांग कर रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • बीते सप्ताह आयोजित कॉन्फ्रेंस वार्ता में शीर्ष प्रौद्योगिकी कंपनियों के अधिकारियों ने सरकार से कम-से-कम छह महीने तक यह कर लागू न करने की मांग करने का निर्णय लिया था।
  • ध्यातव्य है कि बीते दिनों भारत सरकार ने घोषणा की थी कि 1 अप्रैल, 2020 से देश में प्रदान की जाने वाली डिजिटल सेवाओं के लिये सभी विदेशी बिलों पर 2 प्रतिशत कर लगाया जाएगा।
    • यहाँ विदेशी बिलों से अभिप्राय उन बिलों से है जिनमें कंपनियाँ भारत में ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की भुगतान राशि विदेश में प्राप्त करती हैं।
  • यह कर ई-कॉमर्स सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों पर भी देय होगा। 
  • साथ ही यह कर उन कंपनियों पर भी लागू होगा जो ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से भारतीय ग्राहकों को लक्षित करती हैं।
    • उल्लेखनीय है कि यह नया कर वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किये गए बजट का हिस्सा नहीं था, इसे कुछ समय पूर्व बजट 2020-21 में संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था।
    • विशेषज्ञों के अनुसार, नए कर की शुरुआत महामारी के समय राजस्व संग्रहीत करने के एक उपाय के रूप में प्रतीत हो रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व फ्रांँस ने भी बड़ी टेक कंपनियों पर कर लागू करने की योजना बनाई थी, किंतु गूगल ने फ्रांँस के इस निर्णय का विरोध किया था।
    • हालाँकि गूगल के विरोध और अमेरिकी सरकार के हस्तक्षेप के पश्चात् फ्रांँस ने इस कर को कुछ समय तक टालने का निर्णय लिया है।

क्यों आवश्यक है कर को टालना?

  • भारत की डिजिटल कर योजना ऐसे समय में आई है जब गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ भारत में अपने व्यवसाय के विस्तार की योजना बना रही हैं, क्योंकि भारत दुनिया के तेज़ी से बढ़ते क्लाउड कंप्यूटिंग बाज़ारों में से एक है।
  • क्लाउड कंप्यूटिंग के अलावा गूगल का भारत के डिजिटल भुगतान बाज़ार में भी एक विशेष स्थान है। कंपनी ने भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए ‘तेज़’ (Tez) नाम से एक विशिष्ट डिजिटल भुगतान एप भी लॉन्च किया था, कुछ समय पश्चात् इस मोबाइल एप का नाम परिवर्तित कर ‘गूगल पे’ (Google Pay) कर दिया गया है।
    • अनुमानानुसार, भारत का मोबाइल भुगतान बाज़ार वर्ष 2023 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो कि वर्ष 2018 में 200 बिलियन डॉलर था।
  • भारत का नया डिजिटल कर गूगल जैसी बड़ी कंपनियों की विस्तार परियोजनाओं के समक्ष एक बड़ी बाधा बन सकता है। यह कर ऐसे समय में आया है, जब विश्व की लगभग सभी कंपनियाँ COVID-19 महामारी के कारण संकट का सामना कर रही हैं।

आगे की राह

  • भारत द्वारा शुरू किया गया यह नया कर भले ही कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये एक उपाय हो, किंतु यह कर भारत के समक्ष कई चुनौतियाँ उत्पन्न करेगा।
  • भारत और अमेरिकी के मध्य बीते कई वर्षों से कर व्यवस्था को लेकर तनाव बना हुआ है और इस नए कर के कारण दोनों देशों के संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा।
  • आवश्यक है कि इस विषय को लेकर सभी हितधारकों से वार्ता की जाए और यथासंभव संतुलित उपाय खोजने का प्रयास किया जाए।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इलेक्ट्रोनिक्स विनिर्माण हेतु योजनाएँ

प्रीलिम्स के लिये

इलेक्ट्रोनिक्स विनिर्माण के विकास हेतु शुरू की गई परियोजनाएँ 

मेन्स के लिये

आर्थिक विकास में इलेक्ट्रोनिक्स विनिर्माण क्षेत्र की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक घटक और सेमीकंडक्टर (Semiconductor) विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 48,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि की तीन नई योजनाओं को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • पहली योजना- 
    • सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बड़े पैमाने पर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण के लिये ‘उत्‍पादन से संबद्ध प्रोत्‍साहन (production-linked incentive-PLI)’ योजना को स्‍वीकृति दी है। 
    • इस योजना में उत्‍पादन से संबद्ध प्रोत्‍साहन देने का प्रस्‍ताव किया गया है, ताकि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा एसेंबली, परीक्षण, मार्किंग एवं पैकेजिंग सहित विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्‍यापक निवेश आकर्षित किया जा सके।
    • इस योजना के तहत भारत में निर्मित वस्‍तुओं की वृद्धिशील बिक्री (Incremental Sales) पर पात्र कंपनियों को आधार वर्ष के बाद के पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 4 से 6 प्रतिशत प्रोत्‍साहन राशि दी जाएगी।
    • प्रस्‍तावित योजना से मोबाइल फोन के विनिर्माण और विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को काफी लाभ प्राप्त होगा जिससे देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन संभव हो सकेगा।
    • सरकार ने इस योजना पर लगभग 41000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव किया है।

पृष्ठभूमि:

इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जे इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण के लिये काफी आवश्यक हैं। भारतीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स उद्योग संघ के अनुसार, भारत में इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों का बाज़ार वित्त वर्ष 2018-19 में 1,31,832 करोड़ रुपए डॉलर का था।

  • दूसरी योजना-
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंज़ूर की गई दूसरी योजना देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टरों को प्रोत्साहन देने से संबंधित है।
    • इसका योजना का उद्देश्‍य इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण क्‍लस्‍टरों के माध्यम से विश्‍वस्‍तरीय अवसंरचना के साथ-साथ साझा सुविधाओं को विकसित करना है। 
    • इस योजना के तहत मैदानी इलाकों में न्यूनतम 200 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स और पहाड़ियों एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों में न्यूनतम 100 एकड़ में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स को 70 करोड़ रुपए प्रति 100 एकड़ की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
    • इसके अलावा इस योजना में साझा सुविधा केंद्र (Common Facility Centre) के लिये उनकी परियोजना लागत का 75 प्रतिशत तक वित्त पोषण करने का प्रावधान है, जो कि 75 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा।
    • इस योजना का कुल परिव्‍यय 8 वर्ष की अवधि के दौरान 3762.25 करोड़ रुपए है।

पृष्ठभूमि

भारत में इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स उत्पादन वित्त वर्ष 2014-15 के 1,90,356 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 में 4,58,006 करोड़ रुपए पर पहुँच गया है। वैश्विक इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण में भारत की हिस्‍सेदारी 1.3 प्रतिशत (वर्ष 2012) से बढ़कर 3.0 प्रतिशत (वर्ष 2018) हो गई। वर्तमान में भारत की GDP में इसका योगदान 2.3 प्रतिशत है।

  • तीसरी योजना-
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन योजना के तहत इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद की आपूर्ति श्रृंखला का गठन करने वाली वस्तुओं के विनिर्माण हेतु पूंजीगत व्यय का 25 प्रतिशत वित्तीय प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
    • इस योजना से इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों की घरेलू विनिर्माण के लिये अक्षमता को दूर करने के अलावा देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पारिस्थितिकी को मज़बूत बनाने में भी मदद मिलेगी।
    • इस योजना की कुल लागत लगभग 3,285 करोड़ रुपए है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 अप्रैल, 2020

नवरत्नालु पेदलंदरिकी इलू कार्यक्रम

आंध्र प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के आधार पर नवरत्नालु पेदलंदरिकी इलू कार्यक्रम (Navaratnalu-Pedalandariki Illu Programme) के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है।  ‘नवरत्नालु पेदलंदरिकी इलू’ का हिंदी में अर्थ है ‘सभी गरीबों के लिये घर’। इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को मात्र 1 रुपए में आवास स्थल का आवंटन किया जाएगा। आवास स्थल आवंटन के लिये राज्य सरकार लोगों से केवल 20 रुपए लेगी, जिसमें 10 रुपए स्टांप पेपर शुल्क के लिये और 10 रुपए लैमिनेशन शुल्क के लिये हैं। लाभार्थी आवंटित आवास स्थल का उपयोग केवल घर बनाने के लिये ही कर सकेंगे, वे इस स्थल को बेच नहीं सकेंगे। हालाँकि, नियमों के अनुसार कम-से-कम पाँच वर्ष तक आवास स्थल का उपयोग कर इसे बेचा जा सकेगा। इस योजना के तहत आंध्र प्रदेश सरकार 25 मार्च को लाभार्थियों को आवास स्थल आवंटित करने वाली थी, किंतु कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण इस कार्यक्रम को टाल दिया गया है और नए कार्यक्रम के अनुसार, लाभार्थियों को 14 अप्रैल को आवास आवंटित किये जाएंगे।

आरोग्य सेतु 

कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसे ट्रैक करने के लिये आरोग्य सेतु (Aarogya Setu) नाम का एक एप लॉन्च किया है। सरकार इस एप के जरिये संक्रमित लोगों की लोकेशन को ट्रैक कर सकेगी। इस एप के निर्माण का मुख्य उद्देश्य उपयोगकर्त्ताओं की मदद करना है ताकि वे यह जान सकें कि वे किसी कोरोनावायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में हैं या नहीं। यह एप उपयोगकर्त्ताओं के लोकेशन और ब्लूटूथ के इस्तेमाल से आवश्यक डेटा संग्रहित करेगा। सरकार द्वारा लॉन्च किये गए इस एप में कई अन्य विशेषताएँ भी हैं, जैसे कि इसमें दिये गए चैटबॉक्स की सहायता से उपयोगकर्त्ता कोरोनावायरस (COVID-19) के लक्षणों के बारे में जान सकते हैं। इसके अलावा इस एप में स्वास्थ्य मंत्रालय के अपडेटस और भारत के प्रत्येक राज्य के कोरोनावायरस हेल्प लाइन नंबर की सूची भी दी गई है। इस एप में कोरोनावायरस से बचाव के लिये टिप्स भी दिये गए हैं। इस वायरस  के संदर्भ में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारत में इसके कारण 50 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लगभग 1900 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं। वैश्विक स्तर पर इससे संक्रमित लोगों की संख्या 10 लाख के पार पहुँच गई है। 

सनराइज़ मिशन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने सन रेडियो इंटरफेरोमीटर स्पेस एक्सपेरिमेंट मिशन अर्थात् सनराइज़ मिशन (Sunrise Mission) की घोषणा की है। नासा के इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के विशालकाय सौर कण तूफान का अध्ययन करना और  सौर प्रणाली के कार्य को समझना है। यह अध्ययन भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों को मंगल ग्रह की यात्रा करने और सौर तूफानों से बचाने में मदद करेगा। इस मिशन के तहत सूर्य के स्पेक्ट्रम का अध्ययन किया जाएगा, ध्यातव्य है कि आयनमंडल के कारण पृथ्वी से सूर्य के स्पेक्ट्रम का अध्ययन करना संभव नहीं हो पाता है। इस मिशन के तहत 6 सौर ऊर्जा संचालित क्यूबसैट (CubeSats) को जियोसिंक्रोनस-ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। ये क्यूबसैट सूर्य से उत्सर्जित कम आवृत्ति उत्सर्जन के रेडियो चित्र लेने के लिये रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करेंगे। इन चित्रों को डीप स्पेस नेटवर्क के जरिये धरती पर नासा के पास भेजा जाएगा। नासा (NASA) संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सरकार की कार्यकारी शाखा की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ-साथ वैमानिकी और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये उत्तरदायी है। इसे वर्ष 1958 में स्थापित किया गया था।

उत्कल दिवस

1 अप्रैल, 2020 को ओडिशा में उत्कल दिवस अथवा ओडिशा दिवस का आयोजन किया गया। ध्यातव्य है कि 1 अप्रैल, 1936 को ओडिशा अस्तित्त्व में आया था। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् ओडिशा तथा  आस-पास की रियासतों ने नवगठित भारत सरकार को अपनी सत्ता सौंप दी थी। राज्य को एक अलग ब्रिटिश भारत प्रांत के रूप में स्थापित किया गया था और उसी के स्मरण में तथा राज्य के सभी नागरिकों के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिये इस दिवस का आयोजन किया जाता है। उल्लेखनीय है कि आदिवासियों की जनसंख्या के मामले में ओडिशा भारत का तीसरा राज्य है। प्राचीन भारत में उड़ीसा कलिंग साम्राज्य का हिस्सा था, 250 ईसा पूर्व में अशोक द्वारा इसे जीत लिया गया, जिसके पश्चात्  लगभग एक सदी तक यहाँ मौर्य वंश के शासन रहा।


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