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डेली न्यूज़

  • 01 Oct, 2020
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

भारत में COVID-19 वैक्सीन उत्पादन में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

गावी कोवैक्स फैसिलिटी, COVID-19 

मेन्स के लिये:

COVID-19 वैक्सीन निर्माण में भारत की भूमिका, COVID-19 से निपटने के वैश्विक प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पुणे स्थित ‘सीरम इंस्स्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ (Serum Institute of India- SII) ने COVID-19 वैक्सीन के उत्पादन को 100 मिलियन खुराक से बढ़ाकर 200 मिलियन खुराक करने की घोषणा की है। 

प्रमुख बिंदु:  

  • SII को COVID-19 वैक्सीन के उत्पादन लिये ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ (Bill and Melinda Gates Foundation ) और वैक्सीन अलायंस गावी (GAVI) से प्राप्त होने वाली फंडिंग को दोगुना कर दिया गया है। 
  • इस समझौते के तहत SII द्वारा COVID-19 वैक्सीन की 200 मिलियन खुराक का उत्पादन किया जाएगा, इससे पहले अगस्त माह में हुए समझौते के तहत 100 मिलियन खुराक के उत्पादन की बात कही गई थी।  
  • गौरतलब है कि वर्तमान में SII द्वारा अमेरिकी वैक्सीन निर्माता नोवाक्स (Novavax) और  ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तथा एस्ट्राज़ेनेका (AstraZeneca) द्वारा विकसित COVID-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये समझौते किये गए हैं।
  • इस समझौते के तहत वैक्सीन की एक खुराक के मूल्य की अधिकतम सीमा 3 अमेरिकी डॉलर निर्धारित की गई है।
  • इसके अतिरिक्त जून माह में एस्ट्राज़ेनेका और ‘गावी’ (GAVI) के बीच एक समझौते की घोषणा की गई थी जिसके तहत ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की 300 खुराक के निर्माण की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।

लाभ:  

  • इस फंडिंग के माध्यम से SII को एस्ट्राज़ेनेका  और नोवाक्स द्वारा लाइसेंस प्राप्त वैक्सीन के निर्माण को तेज़ी से बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • यदि एस्ट्राज़ेनेका और नोवाक्स अपनी वैक्सीन के लिये पूर्ण लाइसेंस तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) से पूर्व अर्हता प्राप्त करने में सफल रहते हैं तो यह  वैक्सीन बाज़ार में उपलब्ध हो सकेगी। 
  • SII को मिलने वाली फंडिंग में वृद्धि के बाद ‘निम्न और मध्यम आय वर्ग’ (Low and Middle Income Countries- LMIC) के कम-से-कम 61 देशों के लिये COVID-19 वैक्सीन की 200 मिलियन खुराक (3 अमेरिकी डॉलर की दर से) की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी। 
  • इस साझेदारी के तहत यदि एस्ट्राज़ेनेका के सभी परीक्षण सफल रहते हैं तो यह वैक्सीन भारत सहित ‘गावी’ की पहल के तहत 61 पात्र देशों (Gavi-Eligible Countries) को उपलब्ध हो सकेगी वहीँ यदि नोवाक्स का परीक्षण सफल होता है, तो यह ‘गावी कोवैक्स एएमसी’ (Gavi COVAX AMC) द्वारा समर्थित सभी 92 देशों के लिये उपलब्ध हो सकेगी। 

कोवैक्स (COVAX):

  • कोवैक्स, ‘एक्सेस टू COVID-19 टूल्स (Access to COVID-19 Tools- ACT) एक्सेलरेटर’ के तीन स्तंभों में से एक है। 
  • इसकी शुरुआत COVID-19 महामारी से निपटने के लिये अप्रैल, 2020 में WHO, यूरोपीय आयोग और फ्राँस के सहयोग से की गई थी। 
  • ‘एसीटी- त्वरक’  (ACT-Accelerator), COVID-19 वैक्सीन के विकास और इसके उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाने तथा COVID-परीक्षण, उपचार और टीके तक सभी की समान पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक सहयोग का एक फ्रेमवर्क है। इसके तीन स्तंभ- वैक्सीन (कोवैक्स), उपचार और निदान हैं। 
  • COVAX का सह-नेतृत्व गावी, WHO और ‘महामारी की तैयारी में नवाचारों हेतु गठबंधन’ (Coalition for Epidemic Preparedness Innovations- CEPI)  द्वारा किया जा रहा है।   
  • COVAX पहल के तहत वैक्सीन के विकास के पश्चात इस पहल में में भाग लेने वाले सभी देशों को इसकी सामान पहुँच सुनिश्चित की जाएगी, इसके तहत वर्ष 2021 के अंत तक 2 बिलियन खुराक के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो अनुमानतः उच्च जोखिम और सुभेद्य लोगों तथा इस महामारी से निपटने के लिये तैनात स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये पर्याप्त होगा।

वैक्सीन उपलब्धता :

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर COVID-19 से निपटने के लगभग 170 अलग-अलग टीकों के विकास पर कार्य किया जा रहा है,  परंतु इनमें से अधिकांश के  सफल होने की उम्मीद बहुत ही कम है।
  • वैक्सीन की सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिये कोवैक्स के तहत इन टीकों का एक  बड़ा और  विविध पोर्टफोलियो बनाया गया है। 
  • इन टीकों की सुरक्षा और प्रभाविकता प्रमाणित होने के बाद कोवैक्स में शामिल देशों ( स्व-वित्तपोषित और वित्त पोषित दोनों) को टीकों के इस पोर्टफोलियो तक पहुँच प्राप्त हो सकेगी। 
  • इसके लिये गावी द्वारा ‘कोवैक्स फैसिलिटी’  (COVAX Facility)  की स्थापना की गई है, जिसके माध्यम से स्व-वित्तपोषित और वित्तपोषित अर्थव्यवस्थाएँ इसमें भाग ले सकेंगी।
  • कोवैक्स फैसिलिटी’ के तहत ही गावी द्वारा ‘गावी कोवैक्स अग्रिम बाज़ार प्रतिबद्धता’ [Gavi COVAX Advance Market Commitment (AMC)] नामक एक अलग फंडिंग तंत्र की स्थापना की गई है, इसके माध्यम से निम्न आय वर्ग वाले देशों को COVID-19 वैक्सीन उपलब्ध  सहायता प्रदान की जाएगी। 

गावी, वैक्सीन एलायंस (Gavi, the Vaccine Alliance):

  • गावी एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, इसकी स्थापना  वर्ष 2000 में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य विश्व के सबसे गरीब देशों में रह रहे बच्चों के लिये नए टीकों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को साथ लाना है।
  • इसके मुख्य भागीदारों में WHO, यूनिसेफ (UNICEF), विश्व बैंक (World Bank) और  बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन आदि शामिल हैं।
  • गावी, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (Primary Health Care- PHC) को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके माध्यम से यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development goals-SDGs)  के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage-UHC) के लक्ष्य को प्रप्त करने में सहायता करता है।
  • जून 2019 में गावी बोर्ड द्वारा ‘टीकाकरण से किसी को न छूटने देने’ (Leave No-One Behind with Immunisation) के दृष्टिकोण और टीकों के न्यायसंगत तथा स्थायी उपयोग को बढ़ाकर लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन की रक्षा के लक्ष्य के साथ  एक  नई पंचवर्षीय रणनीति ‘गावी 5.0’  (Gavi 5.0) को मंज़ूरी दी गई है।

महामारी संबंधी तैयारी के नवाचारों का गठबंधन

(Coalition for Epidemic Preparedness Innovations-CEPI): 

  • CEPI, महामारी के प्रसार के रोकने हेतु वैक्सीन के विकास के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच की गई अभिनव वैश्विक साझेदारी है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 2017 में दावोस (स्विट्ज़रलैंड) में  भारत और नॉर्वे की सरकारों, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, ‘वेलकम ट्रस्ट’ (Wellcome Trust) तथा विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के सहयोग से की गई थी ।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

विश्वास योजना: एक इंटरेस्ट सबवेंशन स्कीम

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वास योजना

मेन्स के लिये:

विश्वास योजना के उद्देश्य एवं लाभ 

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार अनुसूचित जातियों (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय के गरीब परिवार के लोगों के लिये एक ब्याज सबवेंशन योजना शुरू करने के लिये तैयार है।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (The Ministry of Social Justice and Empowerment) स्वयं सहायता समूहों या तीन लाख तक की वार्षिक आय वाले SC और OBC परिवारों के लिये VISVAS (Vanchit Ikai Samooh aur Vargon ki Aarthik Sahayta) योजना की शुरुआत करेगा।

योजना के उद्देश्य:

  • इस योजना का उद्देश्य उत्पादन और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने हेतु वंचित परिवारों के लिये अधिक ऋण सुनिश्चित करना है।
  • इस इंटरेस्ट सबवेंशन स्कीम के तहत बैंकों को भी वंचित वर्गों को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • इस योजना के माध्यम से सरकार वंचित वर्गों पर ब्याज का बोझ कम करना चाहती है।

योजना से संबंधित अन्य बिंदु 

  • केंद्र सरकार ने पहले वर्ष के लिये 3,28,500 लाभार्थियों की पहचान की है। इनमें 1.98 लाख SC और 1.27 लाख OBC लाभार्थी शामिल हैं।
  • इस योजना के तहत, SC और OBC वर्ग से संबंधित स्वयं सहायता समूह 4 लाख रुपए तक का ऋण 5% वार्षिक ब्याज की दर से और SC, OBC वर्ग से संबंधित कोई व्यक्ति 2 लाख रुपए तक का ऋण 5% वार्षिक ब्याज की दर से ले सकता है।
  • उम्मीद है कि केंद्र सरकार इस योजना के तहत 65 करोड़ रुपए का निवेश कर सकती है, जो गरीब SC और OBC वर्ग को दिये गए 5% वार्षिक ब्याज दर के ऋण उपबंध को 1,075 करोड़ तक बढ़ाने में सहायता कर सकता है।

योजना का लाभ:

  • यह योजना तत्काल तरलता प्रदान करने में मदद करेगी क्योंकि इस योजना के माध्यम से व्यक्तियों और SHGs के परिचालन खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से धन जमा होगा।

स्रोत-इकॉनमिक टाइम्स


सामाजिक न्याय

SC और ST समुदाय के विरुद्ध अपराध में बढ़ोतरी

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 1989

मेन्स के लिये

SC और ST समुदाय के विरुद्ध अपराध से संबंधित मामले, भारत में अपराध की समग्र स्थिति

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) द्वारा हाल ही में जारी ‘भारत में अपराध-2019’ (Crime in India-2019) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 की अपेक्षा वर्ष 2019 में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों में क्रमशः 7.3% और 26.5% की बढ़ोतरी देखने को मिली है।

प्रमुख बिंदु

अनुसूचित जाति के संबंध में-

  • ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 45,935 मामले दर्ज किये गए और वर्ष 2018 की अपेक्षा वर्ष 2019 में इस प्रकार के अपराधों में 7.3% की वृद्धि दर्ज हुई।
    • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 42,793 मामले दर्ज किये गए थे।
  • अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (11,829) में दर्ज किये गए, जिसके बाद राजस्थान और बिहार का स्थान है, जहाँ क्रमशः 6,794 और 6,544 मामले सामने आए।
  • अनुसूचित जातियों (SC) से संबंधित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में राजस्थान सबसे शीर्ष स्थान पर रहा और वहाँ ऐसे कुल 554 मामले दर्ज किये गए, इसके बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का स्थान रहा जहाँ क्रमशः 537 और 510 मामले दर्ज किये गए।
  • अनुसूचित जाति की प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध की दर वर्ष 2018 की 21.2 से बढ़कर वर्ष 2019 में 22.8 हो गई है। वर्ष 2019 में अनुसूचित जाति के खिलाफ हुए अपराध के कुल मामलों में से 28.9% मामले (13,273) साधारण चोटों से संबंधित थे। 

अनुसूचित जनजाति के संबंध में-

  • वहीं दूसरी ओर वर्ष 2019 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 8,257 मामले दर्ज किये गए, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 26.5% की बढ़ोतरी है। 
    • वर्ष 2018 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल 6,528  मामले दर्ज किये गए थे। 
  • मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों के सबसे अधिक मामले (1,922) दर्ज किये गए, इसके बाद राजस्थान और ओड़िशा का स्थान है, जहाँ क्रमशः 1,797 और 576 मामले दर्ज किये गए।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध होने वाले अपराधों और अत्याचारों में सबसे बड़ी संख्या साधारण चोटों की थी, जिसके कुल 1,675 मामले दर्ज किये गए, जो कि अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों के कुल मामलों का 20.3 % है।
  • इसके बाद आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 1,110 मामले सामने आए, जो कि कुल मामलों का 10.7 % है, वहीं वर्ष 2019 में महिलाओं पर हमले और मारपीट के 880 मामले दर्ज किये गए, जो कि कुल मामलों का 13.4 % है।
    • आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म की सबसे अधिक 358 घटनाएँ मध्य प्रदेश में दर्ज की गईं, जिसके बाद इसके बाद छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का स्थान था, जहाँ क्रमशः 180 और 114 घटनाएँ दर्ज हुईं।

समग्र अपराध के आँकड़े

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘भारत में अपराध-2019’ रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में कुल 51,56,172 संज्ञेय अपराध के मामले दर्ज किये गए, जिसमें से 32,25,701 मामले भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत थे, जबकि 19,30,471 मामले केंद्र और स्थानीय स्तर के विशेष कानूनों के तहत दर्ज किये गए थे।
    • इस प्रकार वर्ष 2019 में कुल अपराधों के मामले में 1.6 % की वृद्धि हुई है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान हत्या के कुल 28,918 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2018 में हत्या के कुल 29,019 मामले सामने आए थे, इस प्रकार वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की अपेक्षा हत्या के मामलों में 0.3% की मामूली कमी देखने को मिली है।
  • वर्ष 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किये गए। यह संख्या वर्ष 2018 में दर्ज मामलों की संख्या (3,78,236) से 7.3% अधिक थी। प्रति लाख जनसंख्या पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सर्वाधिक दर असम में दर्ज की गई। 
  • रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 में साइबर अपराध में कुल 63.5 % की वृद्धि देखने को मिली है। वर्ष 2019 में 2018 में साइबर अपराध के कुल 44,546 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2018 में इन मामलों की संख्या 27,248 थी। 

संबंधित मुद्दे

  • पुलिस सुधार की वकालत करने वाले समूह राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के संबंध में कहा है कि पुलिस प्रशासन द्वारा अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्रवाई से संबंधित काफी कम मामले दर्ज किये जा रहे हैं, जिससे स्पष्ट है कि SC और ST समुदाय के साथ होने वाला भेदभाव सही ढंग से इन आँकड़ों में नहीं दर्शाया गया है।
  • यह दर्शाता है कि पुलिस प्रशासन द्वारा अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के विरुद्ध होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार को रोकने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का सही ढंग से प्रयोग नहीं किया जा रहा है।

क्या है SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम?

  • अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित लोगों के उत्थान हेतु तमाम सामाजिक-आर्थिक प्रयासों के बावजूद इन वर्गों के लोगों की समस्याओं को सही ढंग से संबोधित कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण हो रहा था।
  • ऐसी स्थिति में संसद ने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया और फिर यह राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ तत्कालीन जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया।
  • यदि गैर-अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जनजाति वर्ग का कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह से किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंध रखने वाले व्यक्ति को प्रताड़ित करता है, तो उस व्यक्ति के विरुद्ध यह कानून कार्य करता है।
  • साथ ही ऐसे मामलों के लिये इस कानून के तहत विशेष न्यायालय बनाए जाते हैं जो ऐसे प्रकरण में तुरंत निर्णय लेते हैं।

आगे की राह

  • यद्यपि स्वतंत्र भारत में विभिन्न सरकारों द्वारा सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने और अत्याचार पर अंकुश लगाने हेतु कई उपाय किये गए हैं, किंतु प्रायः इनके परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं।
  • सरकार द्वारा बनाए गए तमाम तरह के कानून इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि केवल कानून के निर्माण से इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों को समाप्त नहीं किया जा सकता है। 
  • शिक्षा, रोज़गार और अन्य तमाम माध्यमों से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय का सामाजिक-आर्थिक उत्थान कर समाज में उनका सार्थक एकीकरण सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके अलावा कानूनों के सही ढंग से कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, ताकि इन कानूनों का उचित पालन सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

भारतीय संघवाद और उभरती चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994), अंतर्राज्यीय परिषद 

मेन्स के लिये:

भारतीय संघवाद और उभरती चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के कई राज्यों ने भारतीय संघवाद को लेकर बढ़ते संकट के बारे में शिकायत की है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेशों एवं विधेयकों के बारे में तर्क दिया है कि ये अध्यादेश एवं विधेयक उनके कानूनी दायरे का अतिक्रमण करते हैं जो संविधान के संघीय ढाँचे के लिये एक संकट की स्थिति उत्पन्न करते हैं।

प्रमुख बिंदु: 

  • भारतीय राज्यों द्वारा उठाए गए संघीय मुद्दे:

    • वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कम राजस्व की भरपाई के लिये अपनी कानूनी प्रतिबद्धता से केंद्र सरकार द्वारा मना किया जाना।
    • केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि कम राजस्व ‘एक्ट ऑफ गॉड’ का परिणाम है जिसके लिये उसे ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
    • जीएसटी अधिनियम के अनुसार, राज्यों को वर्ष 2022 तक समाप्त होने वाले पहले पाँच वर्षों के लिये 14% वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) से नीचे किसी भी राजस्व कमी के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी जाती है।
      • राज्य सरकार की शक्तियों में केंद्र सरकार द्वारा परिवर्तन: 

        • हालिया कृषि अधिनियमों जो किसानों को कृषि उपज बाज़ार समिति (Agricultural Produce Market Committee- APMC) के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति देते हैं और अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं, ने राज्य सूची का अतिक्रमण किया है। 
        • भारतीय संविधान की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में व्यापार एवं वाणिज्य, उत्पादन, एक उद्योग के घरेलू एवं आयातित उत्पादों की आपूर्ति एवं वितरण, तिलहन एवं तेल सहित खाद्य पदार्थ, पशुओं का चारा, कच्चा कपास एवं जूट का उल्लेख किया गया है।
        • हालाँकि यदि खाद्य पदार्थों को कृषि का पर्याय माना जाता है तो कृषि के संबंध में राज्यों की सभी शक्तियाँ, जो संविधान में विस्तृत रूप से सूचीबद्ध हैं, निरर्थक हो जाएंगी।
        • संसद संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत कृषि उपज एवं बाज़ारों के संबंध में एक कानून नहीं बना सकती है क्योंकि कृषि एवं बाज़ार राज्य के विषय हैं। 
        • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की निगरानी में सहकारी बैंकों को लाकर बैंकिंग नियमों में संशोधन किया जाना। 
        • सहकारी समितियाँ भारतीय संविधान में राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं अर्थात् भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की द्वितीय सूची में।
      • संघवाद से संबंधित प्रावधान:

        • राष्ट्रों को 'संघीय' या 'एकात्मक' के रूप में वर्णित किया जाता है जिसके तहत शासन का क्रियान्वयन किया जाता है।
        • ‘संघवाद’ का अनिवार्य रूप से अर्थ है कि केंद्र एवं राज्यों दोनों को एक दूसरे के साथ समन्वय से अपने आवंटित क्षेत्रों में कार्य करने की स्वतंत्रता है।
        • ‘एकात्मक’ प्रणाली में सरकार की सभी शक्तियाँ केंद्र सरकार में केंद्रीकृत होती हैं।
        • पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ (1962) में उच्चतम न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान संघीय नहीं है।
        • हालाँकि एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) में उच्चतम न्यायालय के 9 न्यायाधीशों की पीठ ने संघवाद को भारतीय संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा माना है।
        • इसमें कहा गया है कि सातवीं अनुसूची में न तो विधायी प्रविष्टियाँ हैं और न ही संघ द्वारा राजकोषीय नियंत्रण जो संविधान के एकात्मक होने का निर्णायक है। राज्यों एवं केंद्र की संबंधित विधायी शक्तियों का अनुच्छेद 245 से 254 तक अनुरेखण किया जा सकता है।
        • उच्चतम न्यायालय ने देखा कि भारतीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका से काफी भिन्न है। भारतीय संसद के पास नए राज्यों के प्रवेश की अनुमति देने (अनुच्छेद 2), नए राज्य बनाने, उनकी सीमाओं एवं उनके नामों में परिवर्तन करने और राज्यों को मिलाने या विभाजित करने की शक्ति है (अनुच्छेद 3)।
        • हाल ही में जम्मू एवं कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित किया गया- जम्मू एवं कश्मीर व लद्दाख।
        • राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के गठन एवं उनके निर्माण के लिये राज्यों की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
        • इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने संविधान के कई प्रावधानों की मौजूदगी पर ध्यान दिया जो केंद्र को राज्यों की शक्तियों को अधिभावी या रद्द करने की अनुमति देते हैं जैसे- समवर्ती सूची के विषय पर कानून बनाना।
        • भले ही राज्य अपने निर्धारित विधायी क्षेत्र में संप्रभु हैं और उनकी कार्यकारी शक्ति उनकी विधायी शक्तियों के साथ सह-व्यापक हैं किंतु यह स्पष्ट है कि राज्यों की शक्तियों का संघ के साथ समन्वय नहीं है। यही कारण है कि भारतीय संविधान को अक्सर 'अर्द्ध-संघीय' रूप में वर्णित किया जाता है।
        • विवाद का समाधान:

          • उच्चतम न्यायालय ने केंद्र एवं राज्यों के बीच सातवीं अनुसूची में प्रवेश सूची को लेकर विवाद को सुलझाने के लिये दो तंत्रों का उपयोग किया है।
            • तत्त्व एवं सार का सिद्धांत (Doctrine of Pith and Substance)
            • छद्म विधान का सिद्धांत (Doctrine of Colourable Legislation)
          • ‘तत्त्व एवं सार के सिद्धांत’ के तहत कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा जाता है यदि यह विस्तारित रूप से एक सूची द्वारा कवर किया जाता है और दूसरी सूची को केवल आकस्मिक रूप से स्पर्श करता है।
          • यह सिद्धांत एक क़ानून की वास्तविक प्रकृति का पता लगाने से संबंधित है।
          • छद्म विधान का सिद्धांत एक अधिनियमित कानून के खिलाफ विधायिका की क्षमता का परीक्षण करता है। यह सिद्धांत इस तथ्य को दर्शाता है कि जो प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है, वह अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता है।
            • यह सिद्धांत विधायिका की शक्ति के भटकाव को एक प्रच्छन्न, गुप्त या अप्रत्यक्ष तरीके से प्रतिबंधित करता है।

            आगे की राह:

            • भारत जैसे विविध एवं बड़े देश को संघवाद के स्तंभों अर्थात् राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण एवं क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है। 
            • अधिकतम राजनीतिक केंद्रीकरण या अव्यवस्थित राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद के कमज़ोर होने का कारण बन सकते हैं।
            • संस्थागत एवं राजनीतिक स्तर पर सुधार भारत में संघवाद की जड़ों को गहरा कर सकते हैं। जैसे-
              • केंद्र सरकार की इच्छा के अनुरूप राज्यों पर दबाव बनाने के लिये राज्यपाल की विवादास्पद भूमिका की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
              • विवादास्पद नीतिगत मुद्दों पर केंद्र एवं राज्यों के बीच राजनीतिक सद्भाव विकसित करने के लिये अंतर्राज्यीय परिषद के संस्थागत तंत्र का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
              • केंद्र की हिस्सेदारी कम किये बिना राज्यों की राजकोषीय क्षमता के क्रमिक विस्तार को कानूनी रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

              स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


              भारतीय अर्थव्यवस्था

              औद्योगिक उत्पादन में गिरावट

              प्रिलिम्स के लिये:

              औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

              मेन्स के लिये:

              औद्योगिक उत्पादन पर COVID-19 का प्रभाव, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के कारण

              चर्चा में क्यों?

              हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अगस्त माह में भारत के 8 प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (Eight Core Sectors) के उत्पादन में 8.5% की गिरावट देखने को मिली है।

              प्रमुख बिंदु:

              • जुलाई, 2020 में भी इन क्षेत्रों में 8% की गिरावट देखने को मिली थी, जुलाई माह में कोयला (3.6%) और उर्वरक (7.3%) को छोड़कर सभी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई थी।
              • गौरतलब है कि पिछले 6 माह के दौरान स्टील, रिफाइंड उत्पादों और सीमेंट उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
              • अगस्त माह में सबसे अधिक गिरावट रिफाइंड उत्पादों (19.1%), सीमेंट (14.6%) और प्राकृतिक गैस (9.5%) में देखी गई।
              • अप्रैल से लेकर अगस्त माह के बीच 8 कोर उद्योगों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 17.8% की गिरावट दर्ज की गई है।
              • अप्रैल 2020 में इन 8 प्रमुख क्षेत्रों के उत्पादन में सबसे अधिक 37.9% की गिरावट दर्ज की गई थी।

              Monthly-growth-rates

              अन्य क्षेत्रों के आँकड़े: 

              • अगस्त 2020 में कच्चे तेल के उत्पादन में 6.3% की गिरावट और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 9.5% की गिरावट (अगस्त 2019 की तुलना में) देखी गई।
              • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में अप्रैल से अगस्त माह के बीच कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के संचयी सूचकांक में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में क्रमशः 6.1% तथा 13.7% गिरावट दर्ज की गई।
              • अगस्त 2020 में विद्युत उत्पादन में 2.7% की गिरावट देखी गई है। 

              गिरावट का कारण:

              • प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के उत्पादन में गिरावट का प्रमुख कारण COVID-19 और लॉकडाउन की वजह से मांग में हुई गिरावट को माना जा रहा है।  
              • इसके साथ ही नई उत्पादन इकाइयों की स्थापना के लिये आवश्यक उपकरणों की अनुपलब्धता के कारण भी  उत्पादन की गति प्रभावित हुई। 

              औद्योगिक उत्पादन सूचकांक

              (Index of Industrial Production- IIP): 

              • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), एक सूचकांक है जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में एक निर्धारित समय के दौरान उत्पादन के आँकड़े प्रस्तुत करता है। 
              • बिजली, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, स्टील, रिफाइनरी उत्पाद, प्राकृतिक गैस, और उर्वरक ऐसे आठ मुख्य उद्योग हैं जिनका भारांश औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में शामिल वस्तुओं का 40% है। 
                •   रिफाइनरी उत्पाद (28.04%), बिजली (19.85%), स्टील (17.92%), कोयला (10.33%), कच्चा तेल (8.98%), प्राकृतिक गैस (6.88%), सीमेंट (5.37%) और उर्वरक (2.63%)। 
              • IIP को प्रति माह केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
              • वर्तमान में IIP की गणना के लिये वर्ष 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में लिया जाता है, गौरतलब है कि वर्ष 2017 में आधार वर्ष को वर्ष 2004-05 से बदलकर वर्ष 2011-12 कर दिया गया था। 

              स्रोत: द हिंदू


              भूगोल

              आर्कटिक क्षेत्र में आग की घटनाओं का बदलता स्वरूप

              प्रिलिम्स के लिये

              टुंड्रा, ज़ॉम्बी फायर, आर्कटिक वृत्त, आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट

              मेन्स के लिये

              आर्कटिक क्षेत्र में आग की घटनाओं का स्वरूप और इसका प्रभाव

              चर्चा में क्यों?

              एक हालिया अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक में आग की घटनाओं के पैटर्न और स्वरूप में तेज़ी से बदलाव आ रहा है और जमे हुए टुंड्रा (Tundra) में लगने वाली आग की घटनाओं के साथ-साथ ‘ज़ॉम्बी फायर’ (Zombie Fire) की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।

              प्रमुख बिंदु

              बदले हुए स्वरूप की विशेषताएँ

              • ज़ॉम्बी फायर की घटनाओं में बढ़ोतरी: प्रायः ‘ज़ॉम्बी फायर’ की शुरुआत बर्फ के नीचे होती है। असल में ‘ज़ॉम्बी फायर’ आग की किसी पिछली घटना का ही हिस्सा होती है जो कि बर्फ के नीचे कार्बन युक्त पीट (Peat) से बनी भूमि पर सक्रिय रहती है।
                • जब उस क्षेत्र में मौसम गर्म होता है, तो वह आग पुनः विकराल रूप ले लेती है।
                • पीट, भू-सतह पर एक प्रकार की कार्बनिक परत होती है जिसमें अधिकांशतः पेड़ पौधों आदि से प्राप्त आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
              • विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि अब आग की घटनाएँ आर्कटिक के उन क्षेत्रों में भी फैल रही है, जहाँ पहले आग लगने की संभावना अपेक्षाकृत कम थी, जैसे टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आदि।
                • टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आर्कटिक में और पहाड़ों की चोटी पर पाए जाने वाला वह क्षेत्र होता है, जहाँ वृक्ष नहीं पाए जाते हैं, प्रायः यहाँ की जलवायु ठंडी होती है और यहाँ वर्षा भी बहुत कम होती है।
              • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में आर्कटिक वृत्त (Arctic Circle) के ऊपर की ओर भी आग का विस्तार हुआ था, जबकि इस क्षेत्र को आमतौर पर वनाग्नि के प्रति अनुकूल नहीं माना जाता है। 

              कारण: 

              • आर्कटिक में आग की घटनाओं के पैटर्न और स्वरूप में तेज़ी से बदलाव का कारण है कि वर्ष 2019-20 के दौरान इस क्षेत्र में सर्दियों और वसंत के मौसम में तापमान सामान्य से अधिक गर्म रहा था।
                • ध्यातव्य है कि वर्ष 2020 में साइबेरिया में तापमान में काफी तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिली है, साथ ही इस क्षेत्र में एक गंभीर ग्रीष्म लहर (Heat Waves) भी दर्ज की गई है।

              प्रभाव:

              • लगातार बढ़ती आग की घटनाओं और तापमान में हो रही वृद्धि के कारण आर्कटिक क्षेत्र कार्बन के प्रमुख स्रोत के रूप में बदल सकता है, जिससे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो सकती है।
                • ध्यातव्य है कि आर्कटिक क्षेत्र में मौजूदा जल निकाय प्राकृतिक तौर पर कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में कार्य करते हैं, और ये प्रति वर्ष औसतन 58 मेगा टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं। 
                • तापमान में बढ़ोतरी के साथ पानी में कार्बन का अवशोषित होना भी कम हो जाएगा।
              • जैसे-जैसे पीटलैंड में आग लगने से कार्बन का उत्सर्जन होगा और ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी होगी, वैसे ही अधिक-से-अधिक पीट का निर्माण होगा और इस प्रकार वनाग्नि की घटनाओं में और अधिक बढ़ोतरी होगी।
                • पीटलैंड वह आर्द्रभूमि होती है जहाँ पूर्ण और आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
              • इसके अलावा आर्कटिक में लगने वाली आग वैश्विक जलवायु को लंबे समय तक प्रभावित करेगी, इस क्षेत्र में आग के कारण उत्सर्जित कार्बन लंबे समय तक वातावरण में मौजूद रहता है।

              आर्कटिक क्षेत्र

              • आर्कटिक क्षेत्र, उत्तरी ध्रुव के चारों ओर फैला एक भौगोलिक क्षेत्र है. जहाँ वर्ष भर मासिक औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रहता है।
              • आर्कटिक में बर्फ के नीचे कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों का विशाल भंडार मौजूद है, और यह क्षेत्र कार्बन सिंक के रूप में भी कार्य करता है।

              Russia

              आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट क्या है?

              • पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) ऐसे स्थान को कहते हैं जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों तक  कम तापमान पर होने के कारण जमा हुआ हो।
              • पर्माफ्रॉस्ट में मृदा, चट्टान और हिम एक साथ पाए जाते हैं। 
              • यह मुख्य तौर पर ध्रुवीय क्षेत्रों और ग्रीनलैंड, अलास्का, रूस, उत्तरी कनाडा और साइबेरिया के कुछ हिस्सों के ऊँचे पहाड़ों वाले क्षेत्रों में पाया जाता है।
              • वैश्विक तापमान में वृद्धि का पर्माफ्रॉस्ट पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो गए हैं। 

              स्रोत: डाउन टू अर्थ


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