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डेली न्यूज़

  • 01 Feb, 2019
  • 38 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग की भूमिका का विस्तार

चर्चा में क्यों?


हाल ही में केंद्र सरकार ने उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने हेतु ‘औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग’ (Department of Industrial Policy & Promotion-DIPP) का नाम बदलकर ’उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) करते हुए इसकी भूमिका का विस्तार किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • केंद्र सरकार ने उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के लिये औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग का नाम बदलते हुए इसमें परिवर्तन किया है।
  • केंद्र सरकार द्वारा दी गई अधिसूचना में पुनर्निमाण निकाय के प्रभार की चार नई श्रेणियों को भी शामिल किया गया है,जिसमें शामिल हैं -

♦ आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देना (खुदरा व्यापार सहित)
♦ व्यापारियों और उनके कर्मचारियों का कल्याण
♦ ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की सुविधा से संबंधित मामले
♦ स्टार्ट-अप से संबंधित मामले 

  • इस निर्देश के तहत शामिल निकाय DIPP की सामान्य औद्योगिक नीति, उद्योगों के प्रशासन (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951, औद्योगिक प्रबंधन, उद्योग की उत्पादकता और ई-कॉमर्स से संबंधित मामलों के अतिरिक्त है।
  • इस निकाय का नाम बदलने और इसके अंतर्गत आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने हेतु उत्तरदायित्वों को शामिल करने का कार्य ‘ऑल इंडिया ट्रेडर्स ऑर्गेनाइज़ेशन’ द्वारा किया गया है।
  • अखिल भारतीय व्यापारियों के परिसंघ (Confederation Of All India Traders-CAIT) के अनुसार, सरकार ने DIPP के तहत खुदरा व्यापार क्षेत्र के अंतर्गत लंबे समय से की जा रही मांग को भी स्वीकार किया है।

औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग

  • औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग की स्थापना 1995 में हुई थी तथा औद्योगिक विकास विभाग के विलय के साथ वर्ष 2000 में इसका पुनर्गठन किया गया था।
  • इससे पहले अक्तूबर 1999 में लघु उद्योग तथा कृषि एवं ग्रामीण उद्योग (Small Scale Industries & Agro and Rural Industries -SSI&A&RI) और भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यम (Heavy Industries and Public Enterprises- HI&PE) के लिये अलग-अलग मंत्रालयों की स्थापना की गई थी।

स्रोत – द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह

चर्चा में क्यों?


हाल ही में भारत के परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में प्रवेश को लेकर चीन ने अपना पुराना राग अलापा है। चीन का कहना है कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में प्रवेश लेने के लिये भारत को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करना होगा।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) के स्थायी सदस्यों (जिन्हें P5 देश भी कहा जाता है) चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने परमाणु नि:शस्त्रीकरण, परमाणु अप्रसार तथा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिये बीजिंग में अपनी दो बैठकें संपन्न की हैं।
  • इसी बैठक के निष्कर्ष स्वरूप चीन का यह रुख सामने आया है। परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Supplier Group-NSG) में प्रवेश हेतु भारत के आवेदन पर विचार के संदर्भ में कहा गया कि P5 देश परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty-NPT) तंत्र को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • चीन का कहना है कि परमाणु अप्रसार संधि परमाणु संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अप्रसार प्रणाली की आधारशिला है।
  • भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, इसलिये चीन 48-सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में भारत के प्रवेश का विरोध करता रहा है। हालाँकि भारत के परमाणु अप्रसार रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका और रूस सहित अन्य P5 सदस्यों ने भारत का समर्थन किया है।

क्यों भारत के खिलाफ है चीन ?

  • दरअसल, परमाणु अप्रसार संधि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये जाने का मामला उठाकर चीन, पाकिस्तान के साथ गठजोड़ में निहित अपने हितों का पालन करता है।
  • पिछले कुछ दिनों से परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में भारत के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है क्योंकि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह के सदस्य देशों को नया मसौदा प्रस्ताव दिया गया है, जिससे भारत के इस विशिष्ट समूह का सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

क्या है NSG?

  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) 48 देशों का समूह है। NSG की स्थापना 1975 में की गई थी।
  • परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक इसी के दायरे में आता है।
  • भारत में इस समय परमाणु संयंत्र लगाए जाने का काम तेज़ी से चल रहा है।
  • भारत सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि उसका उद्देश्य बिजली तैयार करना है और NSG की सदस्यता मिलने से उसकी राह आसान हो जाएगी। लेकिन NSG की सदस्यता के लिये भारत को कई शर्तों को भी मंज़ूर करना होगा, जैसे कि परमाणु परीक्षण न करना आदि।

क्या है परमाणु अप्रसार संधि ?

  • परमाणु अप्रसार संधि जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु टेक्नोलॉजी के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इस संधि की घोषणा 1970 में की गई थी।
  • अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 188 सदस्य देश इसके पक्ष में हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते।
  • हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।

भारत के लिये क्यों ज़रूरी है NSG की सदस्यता?

  • गौरतलब है कि भारत ने अमेरिका और फ्राँस के साथ परमाणु करार किया है तथा कई अन्य देशों से भी करार की संभावनाएँ बनी हुई हैं।
  • फ्राँसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं, अमेरिकी कंपनियाँ गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में हैं।
  • NSG की सदस्यता हासिल करने से भारत बिना किसी विशेष समझौते के परमाणु तकनीक और यूरेनियम हासिल कर सकेगा।
  • परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह ज़रूरी है कि भारत को NSG में प्रवेश मिले।

परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT)

  • परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) को एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।
  • यह 18 मई, 1974 को तब सामने आया जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया ।
  • भारत का मानना है कि 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, साथ ही यह असमानता पर आधारित एकपक्षीय व अपूर्ण है।
  • भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहियें।  
  • परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के हितों का पोषण करता है।
  • यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है।
  • भारत के अनुसार, वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वज़ह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
  • कह सकते हैं कि परमाणु अप्रसार संधि पर भारत का रुख बेहद स्पष्ट है। वह किसी की देखा-देखी या दबाव में इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।  
  • इस पर हस्ताक्षर करने से पहले भारत अपने हितों और अपने भविष्य को सुरक्षित रखते हुए मामले के औचित्य पर पूरी तरह से विचार करेगा।
  • भारत इस अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।  

इसके लिये भारत दो तर्क देता है:

  • इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
  • इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता।

स्रोत-द हिंदू


भूगोल

दुनिया भर में रिकॉर्ड तोड़ता मौसम

चर्चा में क्यों?


कुछ ही हफ्तों के अंतराल में, इस साल दुनिया भर में मौसम के तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। एक ओर जहाँ अमेरिका के मध्य-पश्चिमी क्षेत्रों में तापमान शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट देखी गई वहीं ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्से में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच गया।

  • अमेरिका के शहर शिकागो का तापमान शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला गया जो कि जनवरी 1985 के -32° सेल्सियस के तापमान से थोड़ा ऊपर है।
  • मध्य-पश्चिमी राज्यों- विस्कॉन्सिन, मिशिगन और इलिनॉय के साथ ही आमतौर पर गर्म रहने वाले दक्षिणी राज्यों-अलबामा और मिसीसिपी में आपातकाल घोषित कर दिया गया है।
  • अत्यधिक ठंड की स्थिति आर्कटिक की तेज़ हवाओं के कारण हुई है, जिन्हें ध्रुवीय भंवर/पोलर वोर्टेक्स (Polar Vortex) घटना के रूप में जाना जाता है।

क्या है पोलर वोर्टेक्स?

  • यह पृथ्वी के ध्रुवों के आस-पास कम दबाव और ठंडी हवा का एक बड़ा क्षेत्र है।
  • यह ध्रुवों पर हमेशा मौजूद होता है तथा गर्मियों में कमज़ोर पड़ता है, जबकि सर्दियों में प्रबल हो जाता है।
  • शब्द ‘वोर्टेक्स’ हवा के प्रतिप्रवाह (Counter-Clockwise) को संदर्भित करता है जो ठंडी हवा को ध्रुवों के पास रोकने में मदद करता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों के दौरान कई बार पोलर वोर्टेक्स में विस्तार होता है जो जेट स्ट्रीम के साथ दक्षिण की ओर ठंडी हवा को भेजता है।

polar

  • यह मौसम की ऐसी विशेषता के बारे में बताता है, जो हमेशा से मौजूद रही है। हालाँकि जब भी हम पृथ्वी की सतह पर आर्कटिक (Arctic) क्षेत्रों से आने वाली बेहद ठंडी हवाओं को महसूस करते हैं, तो यह घटना कभी-कभी पोलर वोर्टेक्स से जुड़ी होती है।

पोलर वोर्टेक्स : कुछ अन्य तथ्य

  • पोलर वोर्टेक्स कोई नया शब्द नहीं है बल्कि यह हाल के वर्षों में अधिक लोकप्रिय हुआ है। यह शब्द पहली बार लिट्टेल्स लिविंग एज (Littell's Living Age) के 1853 के अंक में सामने आया था।
  • यह एक ऐसी आकृति (Feature) भी नहीं है जो पृथ्वी की सतह पर मौजूद है।
  • यह केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं है। यूरोप और एशिया के हिस्से भी पोलर वोर्टेक्स के कारण ठंड बढ़ने का अनुभव करते हैं।
  • यह स्वयं बहुत अधिक खतरनाक नहीं है लेकिन इसके साथ आर्कटिक से आने वाली ठंडी हवा से लोगों को खतरा हो सकता है।

कब अत्यधिक ठंड का कारण बनता है पोलर वोर्टेक्स?

  • सर्दियों के दौरान पोलर वोर्टेक्स कभी-कभी कम स्थिर होता है और इसमें विस्तार होता है। कई बार सर्दियों के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध में पोलर वोर्टेक्स (उत्तरी) का विस्तार होता है जिसके कारण जेट स्ट्रीम के साथ दक्षिण की ओर ठंडी हवा प्रवाहित होती है। इस घटना को पोलर वोर्टेक्स नाम दिया गया है।

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  • आमतौर पर, जब वोर्टेक्स प्रबल अवस्था में होता है, तो यह हवा के प्रवाह को बनाए रखने में मदद करता है, जिसे दुनिया भर में घूमने वाले जेट स्ट्रीम के रूप में जाना जाता है। यह धारा उत्तर की ओर ठंडी हवा और दक्षिण की ओर गर्म हवा को बनाए रखती है।

क्या सभी ठंडे मौसम पोलर वोर्टेक्स का परिणाम हैं?

  • नहीं, यद्यपि पोलर वोर्टेक्स हमेशा उत्तर की ओर विद्यमान रहता है, फिर भी यह बहुत ही असामान्य स्थितियों में कमज़ोर पड़ता है और दक्षिण की ओर पलायन करता है।

स्रोत : द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस तथा NOAA वेबसाइट


भारतीय अर्थव्यवस्था

पीसीए की पाबंदियों से मुक्त हुए सार्वजनिक क्षेत्र के तीन बैंक

चर्चा में क्यों?


भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने सार्वजनिक क्षेत्र के 3 बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA) की पाबंदियों से मुक्त कर करने का फैसला किया है।


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जिन तीन बैंकों को PCA की पाबंदियों से मुक्त करने का निर्णय लिया गया है उनमें बैंक ऑफ इंडिया (Bank Of India-BOI), बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra) और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (Oriental Bank of Commerce) शामिल हैं।
  • RBI ने यह निर्णय सरकार द्वारा पूंजी लगाने और इन बैंकों के शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) के अनुपात में हुई कमी को देखते हुए लिया है।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने नियामकीय बाध्यताओं को पूरा कर लिया है। इसके अलावा, तीसरी तिमाही के परिणामों में इन बैंकों का शुद्ध NPA 6% से कम रहा है। इसलिये इन्हें PCA के दायरे से बाहर करने का निर्णय लिया गया है।
  • इन तीन बैंकों के PCA दायरे से बाहर निकलने के बाद अभी भी सार्वजनिक क्षेत्र के आठ बैंक प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं जिन पर खराब वित्तीय स्थिति के कारण प्रतिबंध लगाए गए थे।
  • ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में सरकार की ओर से पर्याप्त पूंजी डाले जाने के बाद बैंक का शुद्ध NPA 6% से नीचे आ गया। जिसके चलते इस बैंक को भी PCA के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया गया है। हालाँकि, ओरियंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स पर कुछ प्रतिबंध लगे रहेंगे और उस पर नज़र रखी जाएगी।

त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA)

  • त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) एक ऐसा ढाँचा है जिसके तहत कमज़ोर वित्तीय तंत्र वाले बैंकों को RBI की निगरानी में रखा जाता है।
  • RBI ने वर्ष 2002 में PCA फ्रेमवर्क को एक संरचित (Structured) त्वरित हस्तक्षेप तंत्र (Early-Intervention Mechanism) के रूप में उन बैंकों के लिये तैयार किया था जो परिसंपत्ति की ख़राब गुणवत्ता या लाभप्रदता के नुकसान के कारण ख़राब स्थिति में पहुँच चुके थे।
  • इसके तहत भारतीय रिज़र्व बैंक कमज़ोर और संकटग्रस्त बैंकों पर आकलन, निगरानी, नियंत्रण और सुधारात्मक कार्रवाई के लिये कुछ सतर्कता बिंदु आरोपित करता है।

स्रोत : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत द्वारा छह पनडुब्बियों का निर्माण

चर्चा में क्यों?


हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा नई पीढ़ी की छह पारंपरिक स्टील्थ पनडुब्बियों के निर्माण की लंबित परियोजना को ‘रणनीतिक साझेदारी’ (Strategic Partnership-SP) मॉडल के तहत पूरा किये जाने का औपचारिक निर्णय लिया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिदु

  • केंद्र सरकार द्वारा लिये गए निर्णय के अंतर्गत नई पीढ़ी की छह पारंपरिक स्टील्थ पनडुब्बियों के निर्माण को ‘रणनीतिक साझेदारी’ (Strategic Partnership-SP) मॉडल के तहत निष्पादित किया जाएगा, जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत भारतीय शिपयार्ड एवं विदेशी शिपयार्ड दोनों का सहयोग प्राप्त होगा।
  • इस परियोजना को ‘सभी पनडुब्बियों के सौदों की जननी’ नाम दिया गया, क्योंकि इसमें कम –से-कम 50,000 करोड़ रुपए की लागत आएगी।
  • हाल ही में रक्षा अधिग्रहण परिषद के अंतर्गत ‘P-75I परियोजना के तहत 111’ (Twin-Engine Naval Light Utility Choppers) हेलिकॉप्टरों के निर्माण के लिये 21,000 करोड़ रुपये की परियोजना को मंज़ूरी दी गई है जो SP मॉडल की दूसरी परियोजना है।
  • ‘प्रोजेक्ट -75 इंडिया (P -75I)’ नामक पनडुब्बी परियोजना को पहली बार नवंबर 2007 में रक्षा मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किया गया था, लेकिन सामान्य राजनीतिक-नौकरशाही उदासीनता संबंधी अवरोधों के कारण इस पर कार्य नही किया जा सका।
  • जुलाई 2017 में चार विदेशी जहाज़ निर्माताओं ने पहले SP मॉडल के तहत सहयोग करने की बात कही थी जो निम्नलिखित हैं –

♦ नेवल ग्रुप-DCNS (फ्राँस)
♦ थिससेनकृप मरीन सिस्टम्स (जर्मनी)
♦ रोसोबोरोनेक्सपोर्ट रूबिन डिज़ाइन ब्यूरो (रूस)
♦ साब कोकम्स (स्वीडन)


भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शक्तियाँ

  • अनुमोदित योजना के अनुसार, नौसेना के पास 18 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ होने के साथ-साथ चीन और पकिस्तान के खिलाफ प्रभावी निरोध के लिये परमाणु ऊर्जा से चलने वाली छह हमलावर पनडुब्बियाँ (जिन्हें SSN कहा जाता है) और चार अन्य पनडुब्बियाँ हैं।
  • वर्तमान में नौसेना के पास 13 पनडुब्बियाँ हैं जिनमें से सिर्फ आधे को ही किसी भी ऑपरेशन पर भेजा जा सकता है। छह फ्रेंच स्कॉर्पीन पनडुब्बियों में से एक मझगांव डॉक्स (MDL) में 23,652 करोड़ रुपए के ‘प्रोजेक्ट -75’ के तहत बनाई जा रही है।
  • सेना के पास रूस से लीज़ पर ली गई दो परमाणु-पनडुब्बियाँ, स्वदेशी INS अरिहंत (SSBN) और INS चक्र (SSN) भी हैं।
  • SP मॉडल का उद्देश्य वैश्विक आयुध की बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर नई पीढ़ी की हथियार प्रणालियों के उत्पादन में भारतीय निजी क्षेत्र की भूमिका को संयुक्त रूप से बढ़ावा देना है। लेकिन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण के बाद डिफेंस शिपयार्ड MDL किसी भी निजी शिपयार्ड के बजाय ‘P -75I’ को स्वचालित रूप से चलाने के लिये प्रथम दावेदार होगा।
  • कई घोषणाओं और नीतियों के बावजूद ‘मेक इन इंडिया’ के तहत कोई बड़ी रक्षा परियोजना वास्तव में पिछले चार वर्षों में धरातल पर नहीं आ सकी है। लड़ाकू विमानों और पनडुब्बियों से लेकर हेलीकॉप्टर और पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों तक की 3.5 लाख करोड़ रुपए की कम-से-कम छह बड़ी मेगा परियोजनाएं विभिन्न चरणों में अटकी हुई हैं।
  • पूरी प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता’ लाने और निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों(Defence Public Sector Units-DPSUs) व आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board-OFB) दोनों हेतु एक समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों के ‘सूत्रीकरण’ के कारण SP मॉडल को संचालित करने में बहुत देरी हुई है।

स्रोत – टाइम्स ऑफ इंडिया


भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रमुख उद्योगों के विकास की गति हुई धीमी

चर्चा में क्यों?


हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा आठ प्रमुख कोर उद्योगों (Core Industries) के उत्पादन में वृद्धि के आँकड़े जारी किये गए, जिसमें दिसंबर 2018 में लगभग 2.6% की गिरावट दर्ज की गई।

कोर इंडस्ट्रीज़

  • कोर उद्योग को एक मुख्य उद्योग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका अर्थव्यवस्था पर ‘गुणक प्रभाव’ (Multiplier Effect) पड़ता है।
  • ज्यादातर देशों में विशेष उद्योग स्थापित हैं जो अन्य सभी उद्योगों की रीढ़ (Backbone) माने जाते हैं तथा कोर उद्योग होने के योग्य प्रतीत होते हैं।
  • आठ कोर इंडस्ट्रीज़ पर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production-IIP) में शामिल वस्तुओं का 40.27% भार है।
  • उनके भार के घटते क्रम में आठ कोर इंडस्ट्रीज़ हैं - रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> स्टील> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।
  • इससे पहले जुलाई, 2018 में वी. के. सारस्वत (NITI आयोग सदस्य) की एक रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि सरकार को एल्यूमिनियम क्षेत्र को भारत के नौवें प्रमुख उद्योग के रूप में वर्गीकृत करने पर विचार करना चाहिये।

औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (Index of Industrial Production)

  • औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (IIP) एक सूचकांक है जो अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास का विवरण देता है, जैसे कि खनिज खनन, बिजली, विनिर्माण आदि।
  • इसे केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • अप्रैल 2017 में आठ कोर इंडस्ट्रीज़ के सूचकांक का आधार वर्ष 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है।
  • वर्तमान में IIPआईआईपी आँकड़ों का आधार वर्ष 2011-12 है। आईआईपी में आठ प्रमुख उद्योगों (Core Industries) का भारांश अवरोही क्रम में निम्नलिखित है –
रिफाइनरी उत्पाद (Refinery Products) 28.04%
विद्युत (Electricity) 19.85%
इस्पात (Steel) 17.92%
कोयला (Coal)  10.33%
कच्चा तेल (Crude Oil) 8.98%
प्राकृतिक गैस (Natural Gas) 6.88%
सीमेंट (Cement) 5.37%
उर्वरक (Fertilizers) 2.63%


स्रोत – PIB


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (1 February)

  • 2017-18 की GDP वृद्धि दर का आँकड़ा संशोधित होकर 7.2 प्रतिशत पर पहुँच गया है। पहले इसके 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) के अनुसार, 2017-18 और 2016-17 में वास्तविक यानी 2011-12 के स्थिर मूल्य पर GDP क्रमश: 131.80 लाख करोड़ रुपए और 122.98 लाख करोड़ रुपए रही। यह 2017-18 में 7.2 प्रतिशत और 2016-17 में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। 2017-18 के लिये पहला संशोधित अनुमान अब उद्योगवार और संस्थानों के आधार पर विस्तृत सूचना को शामिल करते हुए जारी किया गया है। जबकि इससे पहले 31 मई, 2018 को जारी अस्थायी अनुमान उस समय प्रयोग में लाए गए बेंचमार्क संकेतक तरीके के आधार पर जारी किया गया था।
  • देश में रोज़गार से जुड़ी नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (NSSO) की एक रिपोर्ट सामने आई है। इसके मुताबिक, 2017-18 में बेरोज़गारी दर 45 साल में सबसे ज़्यादा 6.1% के स्तर पर पहुँच गई। 2017-18 में बेरोज़गारी दर ग्रामीण क्षेत्र में 5.3% और शहरी क्षेत्र में सबसे ज़्यादा 7.8% रही। इनमें नौजवान बेरोज़गार सबसे ज़्यादा थे, जिनकी संख्या 13% से 27% थी। 2011-12 में बेरोज़गारी दर 2.2% थी। लेकिन नीति आयोग ने इन आँकड़ों को अपुष्ट बताते हुए कहा कि ये आँकड़े सरकार ने जारी नहीं किये हैं। विमुद्रीकरण के बाद देश में बेरोज़गारी को लेकर NSSO का यह पहला सर्वे है।
  • रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन बैंकों- बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA) के दायरे से बाहर कर दिया है। इसके बाद इन बैंकों द्वारा कर्ज़ बाँटने पर लगा प्रतिबंध हट गया हैं। बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने नियामकीय बाध्यताओं को पूरा कर लिया है। इसमें पूंजी संरक्षण कोष भी शामिल है तथा इसके अलावा तीसरी तिमाही के परिणामों में इन बैंकों का नेट NPA 6 प्रतिशत के स्तर से कम रहा है। इसलिये इन्हें PCA के दायरे से बाहर निकला गया है। इसके अलावा, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में सरकार की ओर से पर्याप्त पूंजी डाले जाने के बाद बैंक का नेट NPA 6 प्रतिशत से नीचे आ गया, जिसके चलते इस बैंक को भी PCA के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया गया।
  • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी गरीबों के लाभ के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत और 4,78,670 किफायती मकानों के निर्माण को मंज़ूरी दी है। इस प्रकार प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत अब कुल स्वीकृत मकानों की संख्या 72,65,763 हो गई है। नई मंज़ूरी के तहत आंध्र प्रदेश के लिये 1,05,956 और पश्चिम बंगाल के लिये 1,02,895 मकानों को स्वीकृति दी गई है। उत्तर प्रदेश के लिये 91,689 और तमिलनाडु के लिये 68,110 मकानों को स्वीकृति दी गई है। मध्य प्रदेश के लिये 35,377, केरल के लिये 25,059, महाराष्ट्र के लिये 17,817 और ओडिशा के लिये 12,290 मकानों को मंज़ूरी दी गई है। बिहार के लिये 10,269 और उत्तराखंड के लिये 9,208 मकानों को मंज़ूरी दी गई है।
  • केंद्र सरकार के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने FDI वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये संशोधित नियमों को 1 फरवरी से लागू कर दिया है। गौरतलब है कि एमेजॉन, वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने 1 फरवरी की समय-सीमा को बढ़ाने के लिये कहा था। इन नए नियमों के तहत उन फर्मों के उत्पादों की बिक्री पर रोक लगा दी गई है जिनमें इन ई-कॉमर्स कंपनियों की हिस्सेदारी है। इसके अलावा ई-कॉमर्स कंपनियों पर उत्पादों की एक्सक्लूसिव बिक्री के लिये करार करने पर भी रोक लगाई गई है। संशोधित नियमों के अनुसार, कोई वेंडर उसी मार्केटप्लेस के समूह की कंपनियों से 25 प्रतिशत से अधिक की खरीद नहीं कर सकता, जहां से उसे उन उत्पादों की बिक्री करनी है।
  • 1 फरवरी से देशभर में ट्राई की नई ब्रॉडकास्टिंग नीति लागू हो गई है। इसके तहत DTH और केबल ग्राहकों को पसंदीदा चैनल व मनचाहे पैक चुनने की सुविधा दी गई है। इसके अलावा ट्राई ने DTH सेवा प्रदाताओं को लंबी अवधि के प्री-पेड पैक जारी रखने की छूट दे दी है। इस नई नीति का फायदा उन ग्राहकों को मिलेगा, जो अब तक DTH और केबल ऑपरेटर के मुताबिक ही चैनल देख सकते थे। नई नीति से न देखे जाने वाले चैनलों पर होने वाला खर्च बचेगा। इन नए नियमों से ग्राहक, सेवा प्रदाताओं और चैनलों के बीच संतुलन बना रहेगा।
  • केंद्रीय मंत्रियों-नितिन गडकरी और राज्यवर्धन सिंह राठौर ने दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम रग-रग में गंगा तथा क्विज-शो मेरी गंगा की शुरुआत की। इन्हें दूरदर्शन ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के सहयोग से बनाया है। इस धारावाहिक में 21 कड़ियाँ हैं, जो गोमुख से गंगा सागर तक गंगा नदी की यात्रा को दिखाते हैं। इस धारावाहिक में गंगा संरक्षण की आवश्यकता का संदेश दिया गया है और गंगा को स्वच्छ करने के लिये सरकार के प्रयासों की जानकारी भी दी गई है।
  • राजस्थान सरकार ने 1 मार्च से युवाओं को बेरोज़गारी भत्ता देने के घोषणा की है। इसके तहत लड़कियों को 3500 रुपए और लड़कों को 3000 रुपए प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता मिलेगा। यह भत्ता स्नातक (ग्रेजुएशन) स्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद दो वर्ष तक दिया जाएगा। इस भत्ते को पाने के लिये राजस्थान का निवासी होना ज़रूरी है। बेरोज़गार युवाओं को राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक होना ज़रूरी है। इसके अलावा, बेरोज़गार युवाओं के परिवार की वार्षिक आय 2 लाख रुपए तक या उससे कम होनी चाहिये।
  • सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की अवधि और एक वर्ष के लिये बढ़ा दी गई है। 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 2454 को सर्वसम्मति से पारित किया, जिसके तहत 31 जनवरी, 2020 तक हथियार एवं यात्रा प्रतिबंध और संपत्ति ज़ब्त करने से जुड़े प्रतिबंध नवीनीकृत हो गए हैं। सुरक्षा परिषद का यह प्रस्ताव सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में विभिन्न क्षेत्रों में प्रमुख मानदंड स्थापित करने पर विचार करता है। गौरतलब है कि सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2012 से गृहयुद्ध चल रहा है।
  • जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन ने ईरान के साथ व्यापार जारी रखने और अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम करने में सहायक एक भुगतान चैनल इन्सटैक्स बनाया है। यह विशेष भुगतान व्यवस्था ईरान के साथ महाशक्तियों के हुए परमाणु समझौते को बनाए रखने में सहायक होगी। इसके अलावा पिछले वर्ष अमेरिका द्वारा फिर से लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ईरान और यूरोपीय संघ की कंपनियों के बीच कारोबार में रुकावट नहीं आएगी।
  • लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चोपड़ा की नियुक्ति NCC के महानिदेशक के पद पर की गई है। दिसंबर 1980 में मद्रास रेजिमेंट में कमीशन पाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल चोपड़ा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पूर्व छात्र हैं। आपको बता दें कि 16 अप्रैल, 1948 को National Cadet Crops Act, 1948 के तहत NCC का गठन किया गया था। NCC में स्कूल तथा कॉलेज स्तर के विद्यार्थियों को सेना के तीनों अंगों (थल सेना, नौसेना वायु सेना) के लिये सैन्य प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस कोर्स को पूरा करने के बाद योग्यतानुसार सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है।

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