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जैव विविधता और पर्यावरण

वाटरशेड प्रबंधन

  • 27 Oct 2021
  • 12 min read

अवलोकन

वाटरशेड:

  • जल संभरण या वाटरशेड (Watershed) भूमि का वह क्षेत्र होता है जिसका समस्त अपवाहित जल एक ही बिंदु से होकर गुजरता है।
  • यह सतही जल अपवाह के लिये एक स्वतंत्र जल निकासी इकाई है।
  • एक वाटरशेड दूसरे से एक प्राकृतिक सीमा के ज़रिये ही अलग होता है जिसे जल विभाजक या रिज लाइन (Ridge Line) के रूप में जाना जाता है।

Watershed

वाटरशेड के प्रकार: वाटरशेड को आकार, जल निकासी और भूमि उपयोग पैटर्न के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

  • मैक्रो वाटरशेड (> 50,000 हेक्टेयर)
  • सब-वाटरशेड (10,000 से 50,000 हेक्टेयर)
  • मिली-वाटरशेड (1000 से 10,000 हेक्टेयर)
  • माइक्रो वाटरशेड (100 से 1000 हेक्टेयर)
  • मिनी वाटरशेड (1-100 हेक्टेयर)

वाटरशेड प्रबंधन:

यह वाटरशेड के जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता की रक्षा और सुधार के लिये भूमि उपयोग प्रथाओं व जल प्रबंधन प्रणालियों को उचित रूप से लागू करने की प्रक्रिया है।

वाटरशेड प्रबंधन के उद्देश्य:

  • प्रदूषण नियंत्रण,
  • संसाधनों के अति-शोषण को कम करना,
  • जल भंडारण, बाढ़ नियंत्रण, अवसादन की जाँच,
  • वन्यजीव संरक्षण,
  • कटाव नियंत्रण और मिट्टी की रोकथाम,
  • नियमित जल आपूर्ति के लिये भूजल स्तर को बनाए रखना इत्यादि।

वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रमों के घटक:

  • मिट्टी और जल संरक्षण,
  • वृक्षारोपण,
  • कृषि संबंधी अभ्यास,
  • पशुधन प्रबंधन,
  • नवीकरणीय ऊर्जा,
  • संस्थागत विकास।

एकीकृत वाटरशेड विकास कार्यक्रम (IWMP):

  • ग्रामीण विकास मंत्रालय का भूमि संसाधन विभाग वर्ष 2009-10 से एकीकृत वाटरशेड विकास कार्यक्रम (IWMP) चला रहा है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2027 तक 55 मिलियन हेक्टेयर वर्षा सिंचित भूमि को कवर करना है।
    • IWMP चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वाटरशेड कार्यक्रम है।
  • इसमें वाटरशेड प्रबंधन पहलों के माध्यम से मिट्टी, वानस्पतिक आवरण और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन रोकने एवं इनका संरक्षण व विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को पुनः बहाल करने की परिकल्पना की गई है।
  • यह कार्यक्रम देश के सभी राज्यों में लागू किया जा रहा है और इसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 90:10 के अनुपात में वित्तपोषित किया जाता है।
  • IWMP के परिणामस्वरूप मृदा अपवाह की रोकथाम, प्राकृतिक वनस्पतियों का पुनर्जनन, वर्षा जल संचयन और भूजल तालिका का पुनर्भरण हो रहा है।
    • यह बहु-फसल और विविध कृषि-आधारित गतिविधियों को सक्षम बनाता है, जिससे वाटरशेड क्षेत्र में रहने वाले लोगों को स्थायी आजीविका प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • वर्ष 2015 में IWMP को ऑन-फार्म जल प्रबंधन (OFWM) योजना और त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) में शामिल किया गया था।

अन्य पहल:

  • 'हरियाली' केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित एक वाटरशेड विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण आबादी को पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वनीकरण के लिये जल के संरक्षण में सक्षम बनाना है।
    • परियोजना का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों द्वारा जनभागीदारी से किया जा रहा है।
  • नीरू-मीरू (जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में) और अरवरी पानी संसद (अलवर, राजस्थान में) ने विभिन्न जल संचयन संरचनाओं जैसे कि रिसाव टैंक, खुदे हुए तालाब (जिहाद), चेक डैम, आदि का निर्माण लोगों की भागीदारी के माध्यम से शुरू किया है।
  • तमिलनाडु ने घरों में जल संचयन संरचनाओं को अनिवार्य कर दिया है।
    • वहाँ जल संचयन के लिये कोई संरचना बनाए बिना किसी भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता है।

वाटरशेड प्रबंधन का महत्त्व

  • प्रदूषण पर नियंत्रण: तेज़ बारिश या हिमपात झील या नदी को प्रदूषित कर सकता है।
    • वाटरशेड प्रबंधन वाटरशेड में जल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में खतरनाक गतिविधियों की पहचान और उनका विनियमन: एक वाटरशेड के भीतर होने वाली सभी गतिविधियाँ किसी-न-किसी तरह इसके प्राकृतिक संसाधनों और जल की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
    • वाटरशेड प्रबंधन योजना ऐसी गतिविधियों की व्यापक रूप से पहचान करती है और उन्हें उचित रूप से संबोधित करने के लिये सिफारिश करती है ताकि उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके।
  • हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा: वाटरशेड प्रबंधन योजना के परिणामस्वरूप वाटरशेड में सभी हितधारकों के बीच भागीदारी को बढ़ावा मिलता है जो भूमि और जल संसाधनों के सफल प्रबंधन के लिये आवश्यक है।
    • ऐसे समय में जब संसाधन सीमित हो सकते हैं, वाटरशेड प्रबंधन योजनाओं के कार्यान्वयन को प्राथमिकता देना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का एक कुशल तरीका है।
  • समावेशी विकास: समावेशी विकास आर्थिक विकास को संदर्भित करता है जो पूरे समाज में उचित रूप से वितरित होता है और सभी के लिये अवसर पैदा करता है। वाटरशेड प्रबंधन सतत् और समावेशी विकास की कुंजी है।
    • उदाहरण के लिये सूखाग्रस्त वर्षा आधारित क्षेत्रों में वाटरशेड प्रबंधन ने कृषि उत्पादकता को दोगुना करने, पानी की उपलब्धता बढ़ाने, फसल और कृषि प्रणालियों में विविधता लाने के परिणामस्वरूप ग्रामीण परिवारों की आय के स्रोतों को बढ़ाया है।

वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रमों से संबंधित मुद्दे

  • परियोजना से संबंधित मुद्दे: पुराने दृष्टिकोण, कमज़ोर परियोजना डिज़ाइन, अपर्याप्त वित्तीय संसाधन, परियोजना के लिये बहुत कम समयसीमा एवं ऊपरी और निचले इलाकों के मध्य संबंधों की समझ में कमी जैसे कारकों ने वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम की उपलब्धि को कम किया है। 
  • विधायी समर्थन की कमी: हालाँकि कई देशों में व्यापक पर्यावरण नीतियाँ मौजूद हैं किंतु आमतौर पर वाटरशेड प्रबंधन नीतियों के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
    • राष्ट्रीय नीतियों, रणनीतियों और कार्य योजनाओं की कमी या अपर्याप्तता स्थायी वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रमों को लागू करने में प्रमुख बाधाएँ हैं।
  • कमज़ोर संस्थागत आधार: इन कार्यक्रमों के पूरा होने के बाद भी वाटरशेड-आधारित संस्थानों का पतन देखा गया है, क्योंकि उन्हें प्राप्त इनपुट अक्सर संस्थागत आधार को बनाए रखने के लिये अपर्याप्त होते हैं।
    • इसी तरह स्वयं सहायता समूहों को वाटरशेड कार्यक्रमों में ठीक से एकीकृत नहीं किया गया है।
    • संस्थागत आधार की प्रकृति प्राकृतिक संसाधनों की स्थिरता, समुदायों की विविधता और विभिन्न कार्यक्रमों से समर्थन प्राप्त करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
  • आरक्षित वन भूमि के गैर-समावेशी कार्यक्रम: आरक्षित वन भूमि को वाटरशेड विकास योजनाओं में शामिल करना और वन उपज पर अधिकार अभी तक वाटरशेड विकास कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं है।
    • वन विभाग और ग्रामीण विकास विभाग के बीच परिचालन पहलुओं पर समझौते की अनुपस्थिति एक बड़ी बाधा है।

आगे की राह

  • स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करना: स्थानीय भागीदारी के माध्यम से आम जनता को अधिक जागररूक बनाने के साथ ही उसका समर्थन प्राप्त किया जा सकता है।
    • इससे जागरूक व्यक्ति निर्णय लेने, सुरक्षा और बहाली के प्रयासों में अधिक शामिल होंगे।
    • इस तरह की भागीदारी समुदायिक भावना का निर्माण करती है, संघर्षों को कम करने में मदद करती है और पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक कार्यों के प्रति प्रतिबद्धता को बढ़ाती है।
  • कार्रवाई के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करना: वाटरशेड प्रबंधन योजना को यह भी निर्धारित करना चाहिये कि प्रदूषण को कम करने या अन्य दबाव वाले पर्यावरणीय मुद्दों को कैसे संबोधित किया जाए, इन प्राथमिकताओं के साथ ही प्रदूषण को कम करने और संसाधन एवं आवास में सुधार के लिये एक समयसीमा तय की जानी चाहिये।
    • वे मुद्दे जो मानव स्वास्थ्य या संसाधनों के लिये सबसे बड़ा जोखिम पैदा कर सकते हैं, उन्हें नियंत्रित करने के लिये सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा सकती है।
  • शैक्षणिक कार्यक्रमों का संचालन: सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में डिग्री और योजना प्रक्रिया में भागीदारी वाटरशेड प्रबंधन की सफलता को काफी प्रभावित कर सकती है।
    • वाटरशेड प्रबंधन में जनता को शामिल करने और शिक्षित करने के कई तरीके हैं; नागरिक द्वारा योजना के समीक्षा समूहों का निर्माण और सलाहकार समितियों के गठन को वाटरशेड से जनता का समर्थन मिल सकता है।
  • प्रभावी कार्यान्वयन और अनुवर्ती कार्रवाई: वाटरशेड योजना प्रक्रिया को गतिशील और अनुकूल तरीके से लागू किया जाना चाहिये।
    • वाटरशेड संसाधनों की लंबी अवधि तक निगरानी और योजना में चिन्हित कार्रवाइयों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया महत्त्वपूर्ण है।

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