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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन एटलस

  • 27 Mar 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भूमि अवनयन रोकने संबंधी परियोजनाएँ  

मेन्स के लिये:

भारत में मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन 

चर्चा में क्यों?

हाल में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री (Union Minister of Agriculture and Farmers Welfare) ने राज्यसभा में उत्तर देते हुए बताया कि सरकार अवनयित भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदलने के लिये अनेक कदम उठा रही है। 

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2011-2013 की अवधि के लिये इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre- SAC) द्वारा तैयार किये गए ‘भारत में मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन एटलस’ (Desertification and Land Degradation Atlas of India) के अनुसार, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 96.4 मिलियन हेक्टेयर अर्थात् 29.32% क्षेत्र मरुस्थलीकरण/भूमि क्षरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है।

IPCC रिपोर्ट: 

  • अगस्त 2019 में ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel for Climate Change- IPCC) द्वारा जलवायु परिवर्तन एवं भूमि पर विशेष रिपोर्ट (Special Report on Climate Change & Land) जारी की गई, जिसके अनुसार भूमि उपयोग परिवर्तन, भूमि उपयोग तीव्रता एवं जलवायु परिवर्तन ने मरुस्थलीकरण तथा भूमि अवनयन को बढ़ाया है। 
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, जिसमें चरम जलवायवीय घटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि भी शामिल है, ने खाद्य सुरक्षा एवं  स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, साथ ही कई क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन को बढ़ाया है।

भूमि पूनर्बहाली की दिशा में कदम:

  • वर्षा अपवाह जल संबंधी:
    • बंजर भूमि की पुनः बहाली के लिये ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’, नई दिल्ली (Indian Council for Agricultural Research- ICAR) भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (Indian Institute of Soil and Water Conservation- IISWC) के माध्यम से ने वर्षा अपवाह जल से मिट्टी के अवनयन रोकने के लिये अवस्थिति विशिष्टता (Location Specific) आधारित जैव-इंजीनियरिंग मानक विकसित किये हैं।
  • वायु अपरदन संबंधी:
    • केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (Central Arid Zone Research Institute- CAZRI), जोधपुर ने वायु अपरदन रोकने के लिये बालुका स्तूप स्थिरीकरण (Sand Dune Stabilization) तथा आश्रय बेल्ट (Shelter Belt) तकनीक विकसित की है।
  • लवणता संबंधी 
    • नमक प्रभावित मृदाओं पर केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल (Central Soil Salinity Research Institute, Karnal) तथा अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (All India Coordinated Research Project- AICRP) के माध्यम से ICAR लवणीय मृदा की उत्पादकता में सुधार के लिये भूमि पुनरुद्धार, उप-सतही जल निकासी, जैव-जल निकासी, कृषि वानिकी हस्तक्षेत, लवणता सहिष्णु फसल किस्मों का विकास किया है ताकि देश में लवणीय, क्षारीय तथा जल जमाव युक्त मिट्टी की उत्पादकता में सुधार किया जा सके।
  • कृषि संबंधी:
    • ICAR जलवायु सुनम्य कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार ( National Innovations on Climate Resilient Agriculture- NICRA) प्रोज़ेक्ट के माध्यम से जलवायु सुनम्य तकनीकों, जिसमें सूखा सहन करने वाली छोटी अवधि की फसल, फसल विविधीकरण, एकीकृत कृषि प्रणाली, मिट्टी एवं जल संरक्षण जैसे उपाय शामिल हैं, को जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य 151 ज़िलों में लागू किया जाएगा। 
    • 651 ज़िलों के लिये किसी भी प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से निपटने के लिये कृषि आकस्मिक योजनाएँ (Agricultural Contingent Plans) तैयार की गई हैं।
  • वनारोपण संबंधी:
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) का राष्ट्रीय वनीकरण और पर्यावरण विकास बोर्ड (National Afforestation & Eco Development Board- NAEB) अवनयित वन क्षेत्रों की पारिस्थितिक बहाली के लिये 'राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम' (National Afforestation Programme- NAP) को लागू कर रहा है, जिसके तहत 2 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में वनीकरण के लिये 3.874 करोड़ से अधिक को मंज़ूरी दी गई है।
    • ग्रीन इंडिया मिशन, ‘क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण’ (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority- CAMPA) के तहत संचित निधि तथा नगर वन योजना आदि के तहत जमा किया गया फंड भी वन परिदृश्य के अवनयन रोकने तथा पुनर्स्थापन में भी मदद करेगा।
    • MoEF&CC वनों के बाहर भी वृक्षारोपण को बढ़ावा देगा क्योंकि देश में कृषि वानिकी के विस्तार, बंजर भूमि के इष्टतम उपयोग एवं खुली भूमि पर वृक्षारोपण के माध्यम से वनों के बाहर वृक्ष (Trees Outside Forest- TOF) क्षेत्र को बढ़ाने की बहुत अधिक संभावना है।
  • जल ग्रहण प्रबंधन संबंधी:
    • भूमि संसाधन विभाग ने वर्ष 2009-10 से वर्ष 2014-15 की अवधि के दौरान  28 राज्यों में (गोवा के अलावा) में (अब 27 राज्य और जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के 2 केंद्र शासित प्रदेश) लगभग 39.07 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 8214 वाटरशेड विकास परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है। शुद्ध कृषि क्षेत्र तथा कृषि योग्य बंजर भूमि के वर्षा आधारित भागों के विकास के लिये एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम (Integrated Watershed Management Programme- IWMP) को लागू किया जाएगा। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि IWMP को वर्ष 2015-16 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (WDC-PMKSY) के वाटरशेड विकास घटक के रूप में शामिल कर दिया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता:
    • भारत ने वर्ष 2030 तक भूमि अवनयन तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) की स्थिति हासिल करने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की है।

भूमि अवनयन तटस्थता

(Land Degradation Neutrality- LDN):

  • LDN को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है,  जिसमें भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता, पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों तथा सेवाओं का समर्थन करने और खाद्य सुरक्षा के लिये आवश्यक है, तथा वे कालिक या स्थानिक पैमानों  पर स्थिर रहते हैं या उनमें वृद्धि होती है।
  • इसके अलावा, सितंबर 2019 में भारत में आयोजित यूनाइटेड  ‘मरुस्थलीकरण रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UNCCD) के ‘COP- 14’ वें सत्र में वर्ष 2030 तक 21-26 मिलियन हेक्टेयर अवनयित भूमि को पुन: बहाल करने की अपनी महत्त्वाकांक्षा जाहिर की है। 

आगे की राह:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्थिर करने, वन्यजीव प्रजातियों को बचाने , खाद्य सुरक्षा एवं समस्त मानव जाति की रक्षा के लिये मरुस्थलीकरण को समाप्त करना आवश्यक है। वनों की रक्षा करना तथा भूमि संरक्षण करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है, अत: दुनिया भर के लोगों एवं सरकारों को इसे निभाने के लिये आगे आना चाहिये।

स्रोत: PIB

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