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भूगोल

पश्चिमी घाट

  • 21 Jan 2022
  • 17 min read

परिचय:

  • पश्चिमी घाट, जिसे सह्याद्री पहाड़ियों के रूप में भी जाना जाता है, वनस्पतियों और जीवों के अपने समृद्ध और अद्वितीय संयोजन के लिये जाना जाता है।
  • इस श्रेणी को उत्तरी महाराष्ट्र में सह्याद्री और केरल में सह्या पर्वतम कहा जाता है।
  • पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच के संकीर्ण तटीय मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण तट के रूप में जाना जाता है।
  • मध्य भाग को कनारा और दक्षिणी भाग को मालाबार क्षेत्र या मालाबार तट कहा जाता है।
  • महाराष्ट्र में घाटों के पूर्व में तलहटी क्षेत्र को 'देश' (Desh) के रूप में जाना जाता है, जबकि मध्य कर्नाटक राज्य की पूर्वी तलहटी को मलनाडु के रूप में जाना जाता है।
  •  दक्षिण या तमिलनाडु में इस श्रेणी को नीलगिरि मलाई के नाम से जाना जाता है।
  • इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • यह अपने उच्च स्तर की जैविक विविधता और स्थानिकता के कारण दुनिया में जैविक विविधता के आठ हॉटस्पॉट में से एक है।

पश्चिमी घाट का भूविज्ञान:

पश्चिमी घाट के भूविज्ञान के संबंध में दो मत हैं।

  •  पश्चिमी घाट के पहाड़ ब्लॉक पर्वत हैं जो अरब सागर में भूमि के एक हिस्से के नीचे की ओर मुड़ने के कारण बनते हैं।
  • इस क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रमुख चट्टानों में बेसाल्ट, चार्नोकाइट्स, ग्रेनाइट नीस, खोंडालाइट्स, लेप्टाइनाइट, मेटामॉर्फिक नीस शामिल हैं, जिनमें क्रिस्टलीय चूना पत्थर, लौह अयस्क, डोलराइट्स और एनोरोसाइट्स शामिल हैं।

मूल स्थलाकृति:

भौगोलिक विस्तार:

  • पश्चिमी घाट उत्तर में सतपुड़ा रेंज से गोवा के दक्षिण में, कर्नाटक के मध्य और केरल व तमिलनाडु से होते हुए कन्याकुमारी में हिंद महासागर तक फैला हुआ है।
  • पहाड़ों की 30-50 किमी. की शृंखला लगभग भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलती है।
  • ये पहाड़ 1,600 किमी. लंबे खंड में लगभग 140,000 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हैं।

पर्वत शृंखलाएँ:

  • कर्नाटक में मैसूर के दक्षिण-पूर्व में नीलगिरि पर्वतमाला, पश्चिमी घाट को पूर्वी घाट से जोड़ने वाले शेवरॉय (सर्वरायण श्रेणी) और तिरुमाला श्रेणी से आगे पूर्व में मिलती हैं।
  • केरल में अनामुडी की चोटी पश्चिमी घाट में सबसे ऊँची चोटी है, यहाँ तक कि हिमालय श्रेणी की चोटियों को छोड़ दिया जाए तो यह भारत में सबसे ऊँची चोटी है
  • प्रसिद्ध हिल स्टेशन: यह रेंज माथेरान, लोनावाला-खंडाला, महाबलेश्वर, पंचगनी, अंबोली घाट, कुद्रेमुख और कोडागु जैसे कई हिल स्टेशनों का घर है।

नदियाँ:

  • पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ जो पश्चिमी घाट से निकलती हैं और पश्चिम की ओर बहती हैं वे हैं, पेरियार, भरतप्पुझा, नेत्रावती, शरवती, मंडोवी आदि।
  • कम दूरी की यात्रा और तेज़ ढाल के कारण पश्चिमी घाट से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों का बहाव तेज़ होता हैं।
  • यह पश्चिमी घाटों को जलविद्युत उत्पादन की दृष्टि से अधिक उपयोगी बनाता है।
  • पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ जो पश्चिमी घाट से निकलती हैं और पूर्व की ओर बहती हैं, उनमें तीन प्रमुख नदियाँ शामिल हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी और कई छोटी/सहायक नदियाँ जैसे तुंगा, भद्रा, भीमा, मालाप्रभा, घटप्रभा, हेमवती, काबिनी।
  • ये पूर्व की ओर बहने वाली नदियों की तुलना में धीमी गति से बहती हैं और अंततः कावेरी व कृष्णा जैसी बड़ी नदियों में मिल जाती हैं।

जलवायु और वनस्पति:

  • यहाँ के जंगलों में गैर-भूमध्यरेखीय उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों की कुछ बेहतरीन प्रजातियाँ शामिल हैं और यह कम-से-कम 325 विश्व स्तर पर संकटग्रस्त वनस्पतियों, जीवों, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मछली प्रजातियों का घर हैं।
  • उच्च पर्वतीय वन पारिस्थितिकी तंत्र भारतीय मानसून मौसम पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
  • पश्चिमी घाट गर्मियों के दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के लिये एक बाधा के रूप में कार्य करता है।
  • पश्चिमी ढलानों में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय आदि (चौड़ी पत्ती वाले) वन हैं, जिसमें मुख्यतः रोज़वुड, महोगनी, देवदार आदि शामिल है।
  • पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलानों में मुख्य रूप से सागौन, साल, शीशम, चंदन के पेड़ों जैसे शुष्क और आद्र पर्णपाती वन हैं।

वन्यजीव:

  • पश्चिमी घाट के जंगलों में छोटे मांसाहारी नीलगिरि मार्टन, ब्राउन पाम सिवेट, स्ट्राइप नेवले नेवले, इंडियन ब्राउन नेवले, स्मॉल इंडियन सिवेट और लेपर्ड कैट पाए जाते हैं।
  • कई प्रजातियाँ स्थानिक हैं, जैसे नीलगिरि ताहर (हेमिट्रैगस हीलोक्रिस) और शेर-पूंछ वाला मकाक (मकाका सिलेनस)।
  • पश्चिमी घाट में विश्व स्तर पर संकटग्रस्त वनस्पतियों और जीवों में लगभग 229 पौधों, 31 स्तनपायी, 15 पक्षी, 43 उभयचर, 5 सरीसृप  और 1 मछली की प्रजातियाँ शामिल है।

संरक्षित क्षेत्र:

  • पश्चिमी घाट में भारत के दो बायोस्फीयर रिज़र्व, 13 राष्ट्रीय उद्यान, कई वन्यजीव अभयारण्य और कई रिज़र्व वन पाए जाते हैं।
  • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व पश्चिमी घाट में सबसे बड़ा सन्निहित संरक्षित क्षेत्र है।
  • इसमें नागरहोल के सदाबहार वन, कर्नाटक में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान और नुगु के पर्णपाती वन तथा केरल व तमिलनाडु राज्यों में वायनाड और मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के क्षेत्र शामिल थे।
  • केरल में साइलेंट वैली नेशनल पार्क भारत में कुंवारी उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन के अंतिम इलाकों में से एक है।

पश्चिमी घाट का महत्व:

  • जल विज्ञान:
    • पश्चिमी घाट प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व की ओर बहने वाली तीन प्रमुख नदियों गोदावरी, कृष्णा और कावेरी सहित बड़ी संख्या में बारहमासी नदियों का उद्गम स्थल है।
    • प्रायद्वीपीय भारतीय राज्य अपनी अधिकांश जल आपूर्ति पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियों से प्राप्त करते हैं।

जलवायु:

  • पश्चिमी घाट के पहाड़ भारतीय मानसून के मौसम पैटर्न को प्रभावित करते हैं जो इस क्षेत्र की गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु में मध्यस्थता करते हैं
  • पश्चिमी घाट गर्मियों के दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के लिये एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है।
  • पश्चिमी घाट वायुमंडलीय CO2 के अवशोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • यह अनुमान है कि वे हर साल लगभग 4 मिलियन टन कार्बन को अवशोषित करते हैं (लगभग 10% उत्सर्जन सभी भारतीय वनों द्वारा निष्प्रभावी कर दिया जाता है)।

जैव विविधता के स्तर पर:

  • श्रीलंका के वेट ज़ोन में अपने भौगोलिक विस्तार के साथ पश्चिमी घाट को अब जैव विविधता के आठ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हॉटस्पॉट' में से एक माना जाता है।
  • पश्चिमी घाट में पौधों और जीवों की विविधता व स्थानिकता का स्तर असाधारण है।

 आर्थिक स्तर पर:

  • पश्चिमी घाट लोहा, मैंगनीज और बॉक्साइट अयस्कों में समृद्ध है।
  • पश्चिमी घाट जंगल से प्राप्त होने वाली लकड़ी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है और बड़ी संख्या में वन-आधारित उद्योगों जैसे कागज़, प्लाईवुड, पॉली-फाइबर और माचिस की लकड़ी आदि में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • काली मिर्च और इलायची, जो पश्चिमी घाट की सदाबहार जंगलों की मूल प्रजाति हैं, का बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कर फसलों के रूप में उपजाया जाता है।
  • अन्य बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण में चाय, कॉफी, पाम तेल और रबर शामिल हैं।

स्वदेशी जनजातियों का घर:

  • पश्चिमी घाट, मूल निवासी, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों सहित कर्नाटक के 6.95% आदिवासी आबादी का 44.2% का घर है।
  • पश्चिमी घाट गोवलिस, कुनबी, हलक्की वक्कला, करे वक्काला, कुनबी और कुलवाड़ी मराठी जैसे समुदायों की एक बड़ी आबादी का भी घर है।
  • यह समुदाय गैर-लकड़ी वन उपज (NTFP) एकत्र करके जंगल से जीविका प्राप्त कर रहे हैं।

पर्यटन और तीर्थयात्रा केंद्र:

  • ऐसे कई पर्यटन केंद्र हैं जो पश्चिमी घाट में उभरे हैं;  उदाहरण: ऊटी।
  • इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल रहे हैं- इनमें केरल में सबरीमलाई, कर्नाटक में मदेवेश्वरमलाई और महाराष्ट्र में महाबलेश्वर प्रमुख हैं।

पश्चिमी घाटों के लिये खतरा:

  • खनन: विशेष रूप से गोवा में खनन गतिविधियों में तेज़ी से वृद्धि हुई है और अक्सर सभी कानूनों का उल्लंघन होता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर पर्यावरणीय क्षति और सामाजिक व्यवधान उत्पन्न होता है।
    • केरल में रेत खनन एक बड़े खतरे के रूप में उभरा है।
    • सतत् खनन ने भूस्खलन, जल स्रोतों में प्रदूषण और कृषि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा दी है, इस प्रकार उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
  • वन उपज : पश्चिमी घाट में संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और आसपास रहने वाले मानव समुदाय अक्सर निर्वाह व वाणिज्यिक जरूरतों की विविधता को पूरा करने के लिये NTFP पर निर्भर होते हैं।
    • बढ़ती आबादी और बदलते खपत पैटर्न के साथ, NTFP की स्थिरता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
  • पशुधन चराई: पशुधन (मवेशी और बकरियों) के उच्च घनत्व द्वारा संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और सीमावर्ती इलाके में पशुओं को चराना एक गंभीर समस्या है, जिससे पश्चिमी घाटों में निवास स्थान का क्षरण होता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: पश्चिमी घाट में आबादी घनत्व अधिक होने के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष एक सामान्य घटना है।
  • शिकार: परंपरा या जंगली मांस की मांग से प्रेरित अवैध स्थानीय शिकार पूरे पश्चिमी घाट में व्याप्त है।
  • शिकारी शिकार के लिये बंदूकों के साथ-साथ पारंपरिक तरीकों की एक विस्तृत शृंखला का उपयोग करते हैं।
  • जंगली जीवों का मांस उन शिकारियों के आहार का एक अनिवार्य हिस्सा है, जिनके पास अक्सर पशु प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों तक पहुँच नहीं होती है।
  •  वृक्षारोपण: पश्चिमी घाट की कृषि वानिकी प्रणाली में आज चाय, कॉफी, रबर और विभिन्न प्रजातियों के मोनोकल्चर का प्रभुत्व है, जिसमें हाल ही में पाम ऑयल भी शामिल किया गया है।
    • पश्चिमी घाट में बड़े पैमाने पर कॉफी की खेती वर्ष 1854 में शुरू हुई जब अंग्रेज़ों ने कोडागु में खुद को स्थापित किया।
    • पिछले कुछ वर्षों में नकदी फसलों के रोपण ने पूरे पश्चिमी घाट में प्राकृतिक वनों को व्यापक रूप से विस्थापित कर दिया है और आसपास के वन क्षेत्रों का अतिक्रमण भी हुआ है।
  • मानव बस्तियों द्वारा अतिक्रमण: मानव बस्तियाँ भूमि स्वामित्व के कानूनी या पारंपरिक अधिकार पर पूरे पश्चिमी घाट में संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और बाहर दोनों जगह बसी होती हैं और जैव विविधता के लिये एक खतरे के रूप में मौजूद रहती हैं।
  • जलविद्युत परियोजनाएँ: पश्चिमी घाट में बड़ी बाँध परियोजनाओं के परिणामस्वरूप सरकार और कंपनियों द्वारा लागत लाभ विश्लेषण और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के बावजूद पर्यावरण एवं सामाजिक व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
  • वनों की कटाई: वन भूमि का कृषि भूमि में परिवर्तन या पर्यटन जैसे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये एवं लकड़ी के लिये अवैध कटाई से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • जलवायु परिवर्तन: वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण वर्षा की अवधि और तीव्रता में बड़ा बदलाव आया है।
    • जलवायु परिवर्तन को हाल के दिनों में कई क्षेत्रों में बाढ़ का कारण माना गया है।

पश्चिमी घाट के संरक्षण हेतु प्रयास:

  • पश्चिमी घाट के लिये समितियाँ:
    • गाडगिल समिति (वर्ष 2011): इसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) के रूप में भी जाना जाता है। इसने सिफारिश की कि सभी पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) के रूप में घोषित किया जाए, केवल सीमित क्षेत्रों में सीमित विकास की अनुमति हो।
    • कस्तूरीरंगन समिति (वर्ष 2013): इसने गाडगिल रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित प्रणाली के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की मांग की।
      • कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की कि पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्र के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ही ESA के तहत लाया जाना चाहिये और ESA में खनन, उत्खनन व रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।

पश्चिमी घाट के दर्रे:

  • थाल घाट दर्रा (कसरा घाट): मुंबई को नासिक से जोड़ता है।
  • भोर घाट दर्रा: मुंबई को खोपोली के माध्यम से पुणे से जोड़ता है।
  • पलक्कड़ गैप (पाल घाट): कोयंबटूर, तमिलनाडु से पलक्कड़, केरल को जोड़ता है।
  • अम्बा घाट दर्रा: रत्नागिरी ज़िले को कोल्हापुर से जोड़ता है।
  • नानेघाट दर्रा: पुणे ज़िले को जुन्नार शहर से जोड़ता है।
  • अंबोली घाट दर्रा: महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी को कर्नाटक के बेलगाम से जोड़ता है।
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