पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों का संरक्षण
प्रीलिम्स के लिये:गाडगिल समिति, कस्तूरीरंगन समिति, पारिस्थितकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (ESA), पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट मेन्स के लिये:पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों के संरक्षण का मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने 21 मई, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पश्चिमी घाटों से संबंधित ‘पारिस्थितकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र’ (Ecologically Sensitive Area- ESA) की अधिसूचना से जुड़े मामलों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिये छह राज्यों अर्थात् केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ बातचीत की।
प्रमुख बिंदु:
- इस क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास को बरकरार रखते हुए पश्चिमी घाटों की जैव विविधता के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये भारत सरकार ने डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यदल का गठन किया था।
- इस समिति ने सिफारिश की थी कि छह राज्यों- केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में आने वाले भौगोलिक क्षेत्रों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।
पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र
(Ecologically Sensitive Area- ESA):
- यह संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर स्थित क्षेत्र होता है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा ESAs को अधिसूचित किया जाता है।
- इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
किसी क्षेत्र को ESA घोषित करने का उद्देश्य:
- कुछ प्रकार के 'शॉक अब्ज़ार्बर' बनाने के इरादे से इन क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों का प्रबंधन एवं नियमन करना।
- अत्यधिक संरक्षित एवं अपेक्षाकृत कम संरक्षित क्षेत्रों के बीच एक संक्रमण क्षेत्र (Transition Zone) प्रदान करने के लिये।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3 (2) (v) जो उद्योगों के संचालन को प्रतिबंधित करता है या कुछ क्षेत्रों में किये जाने वाली प्रक्रियाओं या उद्योगों को संचालित करने हेतु कुछ सुरक्षा उपायों को बनाए रखने के लिये प्रतिबंधित करता है, को प्रभावी करने के लिये।
गाडगिल समिति ने क्या कहा?
- इसने पारिस्थितिक प्रबंधन के उद्देश्यों के लिये पश्चिमी घाट की सीमाओं को परिभाषित किया। यह सीमा कुल क्षेत्र का 1,29,037 वर्ग किमी. था, जो उत्तर से दक्षिण तक 1.490 किमी. में विस्तृत है।
- इसने प्रस्तावित किया कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ (ESA) के रूप में नामित किया जाए।
- साथ ही इस क्षेत्र के भीतर छोटे क्षेत्रों को उनकी मौजूदा स्थिति और खतरे की प्रकृति के आधार पर पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ ) को I, II या III के रूप में पहचाना जाना था।
- इस समिति ने इस क्षेत्र को लगभग 2,200 ग्रिड में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें से 75% ESZ-I या II के तहत या वन्यजीव अभ्यारण्य या प्राकृतिक उद्यानों के माध्यम से पहले से ही संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं।
- इसके अलावा समिति ने इस क्षेत्र में इन गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये एक पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण बनाए जाने का प्रस्ताव भी दिया।
बाद में कस्तूरीरंगन समिति का गठन क्यों किया गया?
- गाडगिल समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2011 में प्रस्तुत की थी जिसकी सिफारिशों से छह राज्यों- केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में से कोई भी सहमत नहीं था।
- तब सरकार ने आगे की दिशा तय करने के लिये कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया, जिसने अप्रैल, 2013 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।
- कस्तूरीरंगन की रिपोर्ट गडगिल रिपोर्ट द्वारा सुझाए गए पश्चिमी घाट के 64% क्षेत्र को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) के अंतर्गत लाने के बजाय सिर्फ 37% क्षेत्र को इसके अंतर्गत लाने की बात करती है।
कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें:
- खनन, उत्खनन और रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया जाए।
- किसी नई ताप विद्युत परियोजना की अनुमति न दी जाए किंतु प्रतिबंधों के साथ पनबिजली परियोजनाओं की अनुमति दी जाए।
- नए प्रदूषणकारी उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
- 20,000 वर्ग मीटर तक के भवन एवं निर्माण परियोजनाओं की अनुमति दी जा सकती है किंतु टाउनशिप पर पूरी तरह से प्रतिबंधित लगाने की बात कही गई है।
- अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के साथ ‘वनों के डायवर्ज़न’ (Forest Diversion) की अनुमति दी जा सकती है।
पश्चिमी घाट का महत्त्व:
- पश्चिमी घाट ताप्ती नदी से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के 6 राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में फैला है।
- पश्चिमी घाट, भारत के सबसे ज़्यादा वर्षण क्षेत्रों में से एक है साथ ही यह भारतीय प्रायद्वीप की जलवायु को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित भी करता है।
- प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से ही होता है। इसलिये दक्षिण भारत का संपूर्ण अपवाह तंत्र पश्चिमी घाट से ही नियंत्रित होता है।
- पश्चिमी घाट भारतीय जैव विविधता के सबसे समृद्ध हॉटस्पॉट में से एक है, साथ ही यह कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को भी समावेशित करता है।
- यूनेस्को विश्व धरोहर समिति ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है।
पूर्वी घाट:
- पूर्वी घाट की असंबद्ध पहाड़ी श्रृंखलाएँ ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली हुई हैं जो कि अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का उदहारण है।
- यहाँ 450 से अधिक स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ विद्यमान होने के बावजूद भी यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक दोहन किये गए और निम्नीकृत पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।