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उत्तराखंड ने पतंजलि उत्पादों का लाइसेंस निलंबित किया
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड सरकार ने योग गुरु रामदेव की दवा कंपनियों द्वारा बनाए गए 14 उत्पादों की प्रभावशीलता के बारे में बार-बार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिये उनके विनिर्माण लाइसेंस निलंबित कर दिये हैं।
मुख्य बिंदु:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल के सप्ताहों में अपनी कुछ पारंपरिक आयुर्वेदिक दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों को रोकने हेतु चल रहे मुकदमे में अपने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिये रामदेव की बार-बार आलोचना की है।
- जिन 14 उत्पादों के लाइसेंस निलंबित किये गए, उनमें अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और मधुमेह की पारंपरिक दवाएँ शामिल थीं।
- सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उन आरोपों से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि पतंजलि पारंपरिक दवाओं की उपेक्षा करती है और न्यायालय के निर्देश के बावजूद भ्रामक विज्ञापन जारी करती है।
- पतंजलि के विज्ञापनों ने औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 (DOMA) तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (CPA) का उल्लंघन किया।
- औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954, औषधि विज्ञापनों को नियंत्रित करता है तथा कुछ चमत्कारिक उपचारों के प्रोत्साहन पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह अधिनियम में सूचीबद्ध विशिष्ट व्याधियों के लिये औषधियों के उपयोग का प्रोत्साहन करने वाले और औषधि की प्रकृति अथवा प्रभावशीलता का अनुचित प्रतिनिधित्व करने वाले विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है।
- इसके अतिरिक्त यह उन्हीं व्याधियों के उपचार का दावा करने वाले चमत्कारिक उपचारों के विज्ञापन पर रोक लगाता है।
- CPA की धारा 89 झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिये कठोर दंड लगाती है।
- इसमें कहा गया है कि कोई भी निर्माता या सेवा प्रदाता जो किसी गलत या भ्रामक विज्ञापन का कारण बनता है, जो उपभोक्ताओं के हित के लिये हानिकारक है, उसे दो वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी, जो दस लाख रुपए तक का हो सकता है और प्रत्येक उत्तरोत्तर अपराध के लिये पाँच वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी।
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