छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ के कार्यकर्त्ता को मिलेगा ग्रीन नोबेल
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ के पर्यावरण कार्यकर्त्ता और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (CBA) के संयोजक आलोक शुक्ला को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार 2024 के लिये चुना गया है, जिसे ग्रीन नोबेल भी कहा जाता है।
मुख्य बिंदु:
- उन्हें पर्यावरण की रक्षा के लिये उनके संघर्षों और पहलों के लिये चुना गया है, जिसमें मध्य भारत के सबसे सघन वनों में से एक हसदेव अरण्य भी शामिल है, जो 170,000 हेक्टेयर तक फैला हुआ है, जिसमें 23 कोयला ब्लॉक हैं। उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में सम्मानित किया जाएगा।
- उन्होंने आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में 21 नियोजित कोयला खदानों से 445,000 एकड़ जैवविविधता से समृद्ध वनों को बचाने के लिये अडानी खनन के खिलाफ अभियान चलाने के लिये स्वदेशी समुदायों और कोयला खनन से प्रभावित लोगों को सफलतापूर्वक अभियान चलाया तथा संगठित किया।
- वर्ष 2009 में, पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य को उसके समृद्ध वन क्षेत्र के कारण खनन के लिये "नो-गो" क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया, लेकिन इसे खनन हेतु फिर से खोल दिया। हसदेव अरण्य को खनन मुक्त बनाने के लिये CBA ने लगातार संघर्ष किया।
हसदेव अरण्य वन
- छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में फैला हुआ हसदेव अरण्य वन क्षेत्र अपनी जैवविविधता और कोयला भंडार के लिये जाना जाता है।
- यह वन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण आदिवासी आबादी वाले ज़िलों कोरबा, सुजापुर और सरगुजा के अंतर्गत आता है।
- महानदी की सहायक नदी हसदेव यहाँ से प्रवाहित होती है।
- हसदेव अरण्य मध्य भारत का सबसे बड़ा अखंडित वन है जिसमें प्राचीन साल (शोरिया रोबस्टा) और सागौन के वन शामिल हैं।
- यह एक प्रसिद्ध प्रवासी गलियारा है, जिसमें हाथियों की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है।
ग्रीन नोबेल पुरस्कार
- गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार (जिसे ग्रीन नोबेल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है) अक्सर बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्द्धन हेतु निरंतर तथा महत्त्वपूर्ण प्रयासों के लिये व्यक्तियों को मान्यता देता है।
- यह वर्ष 1990 से गोल्डमैन एनवायर्नमेंटल फाउंडेशन द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
- यह विश्व के छह महाद्वीपीय क्षेत्रों के लोगों का सम्मान करता है: अफ्रीका, एशिया, यूरोप, द्वीप एवं द्वीप राष्ट्र, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण एवं मध्य अमेरिका।
- गोल्डमैन पुरस्कार "ज़मीनी स्तर" के नेताओं को स्थानीय प्रयासों में शामिल लोगों के रूप में देखता है, जहाँ उन्हें प्रभावित करने वाले मुद्दों में समुदाय या नागरिक की भागीदारी के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन किया जाता है।
- गोल्डमैन पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता सामान्यतः पृथक् गाँवों या सुदूर शहरों के लोग होते हैं जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिये बड़े व्यक्तिगत जोखिम उठाना चुनते हैं।
- विजेताओं की घोषणा पृथ्वी दिवस पर की जाती है जो प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ Switch to English
मुरिया जनजाति
चर्चा में क्यों?
आंध्र प्रदेश व छत्तीसगढ़ के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली मुरिया/मुड़िया जनजाति के पास दोनों राज्यों से प्राप्त मतदाता कार्ड हैं, एक उनके मताधिकार का प्रयोग करने के लिये है एवं दूसरा उनके जन्म के संदर्भ और प्रमाण के लिये।
मुख्य बिंदु:
- यह बस्ती नक्सलवाद से प्रभावित आंध्र प्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा पर 'भारत के रेड कॉरिडोर’ के भीतर स्थित है जो आरक्षित वन के भीतर स्थित एक मरूद्यान (Oasis) है तथा यह बस्ती और निर्वनीकरण पर प्रतिबंध लगाने वाले सख्त कानूनों द्वारा संरक्षित है।
- मुरिया बस्ती को आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDP) के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है, जिनकी आबादी आंध्र प्रदेश में लगभग 6,600 है और यहाँ के मुरियाओं को मूल जनजातियों द्वारा 'गुट्टी कोया' कहा जाता है।
- यह जनजाति माओवादियों और सलवा जुडूम के बीच संघर्ष के दौरान विस्थापित हुई थी।
- मुरिया भारत के छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले का एक मूल आदिवासी, अनुसूचित जनजाति द्रविड़ समुदाय है। वे गोंडी समुदाय का हिस्सा हैं।
सलवा जुडूम
- यह गैरकानूनी सशस्त्र नक्सलियों के खिलाफ प्रतिरोध के लिये संगठित आदिवासी व्यक्तियों का एक समूह है। इस समूह को कथित तौर पर छत्तीसगढ़ में सरकारी तंत्र द्वारा समर्थित किया गया था।
- वर्ष 2011 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों को इस तरह से हथियार देने के खिलाफ निर्णय सुनाया और सलवा-जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया तथा छत्तीसगढ़ सरकार को माओवादी गुरिल्लाओं से निपटने के लिये स्थापित किसी भी मिलिशिया बल को भंग करने का निर्देश दिया।
आंतरिक रूप से विस्थापित लोग (IDP)
- IDP ऐसे व्यक्ति विशेष या व्यक्तियों के समूह हैं जिन्हें पलायन करने या अपने घरों या निवास स्थानों को छोड़ने के लिये मज़बूर किया गया है, विशेष रूप से सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव से बचने के लिये, सामान्य हिंसा की स्थिति, मानवाधिकार या प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं का उल्लंघन और जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा को पार नहीं किया है
उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड ने पतंजलि उत्पादों का लाइसेंस निलंबित किया
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड सरकार ने योग गुरु रामदेव की दवा कंपनियों द्वारा बनाए गए 14 उत्पादों की प्रभावशीलता के बारे में बार-बार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिये उनके विनिर्माण लाइसेंस निलंबित कर दिये हैं।
मुख्य बिंदु:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल के सप्ताहों में अपनी कुछ पारंपरिक आयुर्वेदिक दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों को रोकने हेतु चल रहे मुकदमे में अपने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिये रामदेव की बार-बार आलोचना की है।
- जिन 14 उत्पादों के लाइसेंस निलंबित किये गए, उनमें अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और मधुमेह की पारंपरिक दवाएँ शामिल थीं।
- सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उन आरोपों से संबंधित है जिसमें कहा गया है कि पतंजलि पारंपरिक दवाओं की उपेक्षा करती है और न्यायालय के निर्देश के बावजूद भ्रामक विज्ञापन जारी करती है।
- पतंजलि के विज्ञापनों ने औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 (DOMA) तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (CPA) का उल्लंघन किया।
- औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954, औषधि विज्ञापनों को नियंत्रित करता है तथा कुछ चमत्कारिक उपचारों के प्रोत्साहन पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह अधिनियम में सूचीबद्ध विशिष्ट व्याधियों के लिये औषधियों के उपयोग का प्रोत्साहन करने वाले और औषधि की प्रकृति अथवा प्रभावशीलता का अनुचित प्रतिनिधित्व करने वाले विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है।
- इसके अतिरिक्त यह उन्हीं व्याधियों के उपचार का दावा करने वाले चमत्कारिक उपचारों के विज्ञापन पर रोक लगाता है।
- CPA की धारा 89 झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिये कठोर दंड लगाती है।
- इसमें कहा गया है कि कोई भी निर्माता या सेवा प्रदाता जो किसी गलत या भ्रामक विज्ञापन का कारण बनता है, जो उपभोक्ताओं के हित के लिये हानिकारक है, उसे दो वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी, जो दस लाख रुपए तक का हो सकता है और प्रत्येक उत्तरोत्तर अपराध के लिये पाँच वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी।
बिहार Switch to English
बिहार: आकाशीय बिजली/तड़ित गिरने से सबसे ज़्यादा मौतें
चर्चा में क्यों?
बिहार में आकाशीय बिजली/तड़ित गिरने से होने वाली मौतों के एक नए अध्ययन से पता चला है कि राज्य में शिवहर, बाँका, कैमूर और किशनगंज ज़िले इस प्राकृतिक खतरे के प्रति सबसे संवेदनशील थे, जहाँ प्रति मिलियन जनसंख्या पर मृत्यु दर सबसे अधिक दर्ज की गई।
- अध्ययन में वर्ष 2017-2022 की अवधि के आँकड़ों की जाँच की गई और पाया गया कि आकाशीय बिजली गिरने से 1,624 लोगों की मौत हो गई तथा 286 घायल हो गए।
मुख्य बिंदु:
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार, लगभग सभी 1,624 मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं और इनमें से अधिकतर मृत्यु और हताहत की संख्या, लगभग 76.8%, दोपहर 12:30 बजे से शाम 6:30 बजे के बीच आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुईं।
- अध्ययन में 1,577 मौतों के लिये लिंग-पृथक डेटा की पहचान की गई। इन 1,577 मौतों में से 1,131 (71%) पुरुष थे। 11-15 वर्ष और 41-45 वर्ष के आयु वर्ग के ग्रामीण पुरुष विशेष रूप से असुरक्षित थे।
- छह वर्ष की अध्ययन अवधि के दौरान बिहार में प्रत्येक वर्ष आकाशीय बिजली गिरने से औसतन 271 लोगों की मौत हुई और 57.2 लोग घायल हुए।
- राज्य की प्रति मिलियन वार्षिक दुर्घटना दर 2.65, राष्ट्रीय औसत 2.55 से अधिक थी।
- मई से सितंबर के बीच की अवधि आकाशीय बिजली गिरने के मामले में चरम पर थी और जून-जुलाई में आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली 58.8% मौतें हुईं।
- शोधकर्त्ताओं ने बताया कि जून और जुलाई में मानसूनी धारा शुरू होने के साथ ही आकाशीय बिज़ली गिरने की घटनाएँ रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच जाती हैं, जो मुख्य रूप से पूर्वी तथा पश्चिमी पवनों के संपर्क के कारण होती है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, बादल से ज़मीन पर आकाशीय बिजली गिरने से प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोगों की जान चली जाती है और आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों के मामले में बिहार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के साथ शीर्ष तीन सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक है।
- मैदानी क्षेत्र में तूफान और आकाशीय बिज़ली गिरने की संभावना रहती है क्योंकि उत्तर-पश्चिम भारत की गर्म, शुष्क पवन बंगाल की खाड़ी से निकलने वाली नम हवा के साथ मिलती है, जिससे गहरे संवहन बादलों के निर्माण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं।
- उत्तर पश्चिम बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ कम होती हैं लेकिन हताहतों की संख्या अधिक होती है। बिहार के ये हिस्से शहरीकृत नहीं हैं और कृषि क्षेत्रों के आस-पास आश्रय घनत्व कम हो सकता है। ऐसे प्राकृतिक खतरों के प्रभाव को कम करने में सामाजिक-आर्थिक कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- आकाशीय बिजली गिरने की खतरे की संभावना एक समान नहीं है। स्थलाकृति, ऊँचाई और स्थानीय मौसम संबंधी कारक आकाशीय बिज़ली गिरने के स्थानिक वितरण को निर्धारित करते हैं।
- अधिक नमी के कारण पूर्वी क्षेत्र में आकाशीय बिज़ली की अधिक आवृत्ति देखी जाती है।
- नीति निर्माताओं के लिये भेद्यता और हॉटस्पॉट का आकलन करना व शमन उपायों को डिज़ाइन करना महत्त्वपूर्ण है।
पछुआ पवन
- वे उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब पेटी से उत्पन्न होती हैं तथा उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी की ओर बढ़ती हैं और 35° से 60° अक्षांशों के बीच प्रबल होती हैं।
- ये स्थायी होती हैं लेकिन सर्दियों के दौरान अधिक तीव्र होते हैं। ये गर्म और नम पवन को ध्रुव की ओर ले जाती हैं।
- पछुआ पवन उप ध्रुवीय निम्न दाब क्षेत्रों के साथ फ्रंट्स के निर्माण का कारण बनती है और चक्रवातों को पश्चिमी सीमा की ओर ले जाती है।
राजस्थान Switch to English
चंबल नदी
चर्चा में क्यों?
आत्महत्या के एक संदिग्ध मामले में, राजस्थान के कोटा में एक घाट के पास चंबल नदी से एक पुरुष और एक महिला के शव बरामद किये गए।
मुख्य बिंदु:
- चंबल 960 किमी. लंबी नदी है जो विंध्य पर्वत (इंदौर, मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलान में सिंगार चौरी चोटी से निकलती है। वहाँ से यह मध्य प्रदेश में उत्तर दिशा में लगभग 346 किमी. की लंबाई तक बहती है और फिर राजस्थान से होते हुए 225 किमी. की लंबाई तक उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है।
- यह उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और इटावा ज़िले में यमुना नदी में मिलने से पूर्व लगभग 32 किमी. तक बहती है।
- यह एक बरसाती नदी है और इसका बेसिन विंध्य पर्वत शृंखलाओं तथा अरावली से घिरा है। चंबल और उसकी सहायक नदियाँ उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से बहती हैं।
- सहायक नदियाँ: बनास, काली सिंध, पारबती।
- मुख्य विद्युत परियोजनाएँ/बाँध: गांधी सागर बाँध, राणा प्रताप सागर बाँध, जवाहर सागर बाँध और कोटा बैराज।
- राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के त्रि-जंक्शन पर चंबल नदी के तट पर स्थित है। यह गंभीर रूप से संकटग्रस्त घड़ियाल, रेड क्राउन्ड रूफ टर्टल और संकटग्रस्त गंगा नदी डॉल्फिन के लिये प्रसिद्ध है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
काशी विश्वनाथ धाम और UPSNA के बीच समझौता ज्ञापन
चर्चा में क्यों?
श्री काशी विश्वनाथ विशेष क्षेत्र विकास बोर्ड, महाशिवरात्रि जैसे विभिन्न अवसरों के दौरान काशी विश्वनाथ धाम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ाने के लिये उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी (UPSNA) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने के लिये तैयार है।
मुख्य बिंदु:
- लखनऊ में आयोजित एक वैश्विक कार्यशाला के दौरान, पवित्र शहर के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर सांस्कृतिक गतिविधियों के सकारात्मक प्रभाव पर एक प्रस्तुति पर ज़ोर दिया गया।
- इसके बाद, महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों और सनातन कैलेंडर में प्रदोष जैसी महत्त्वपूर्ण तिथियों पर आयोजित कार्यक्रमों एवं गतिविधियों में रंगों की एक विस्तृत शृंखला पेश करने का निर्णय लिया गया।
- UPSNA के निदेशक के अनुसार, अकादमी द्वारा काशी विश्वनाथ धाम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की एक व्यापक योजना शीघ्र ही राज्य सरकार को प्रस्तुत की जाएगी।
- राज्य सरकार से मंज़ूरी मिलने के बाद प्रस्तावित MoU पर हस्ताक्षर करने के लिये धार्मिक कार्य विभाग के निदेशक और संभागीय आयुक्त की सहमति मांगी जाएगी।
- MoU के अनुसार स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों को शामिल करके नई व्यवस्थाएँ बनाई जाएंगी।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी (UPSNA)
- यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में संगीत, नृत्य और रंगमंच के प्रचार तथा संरक्षण के लिये समर्पित एक प्रमुख संस्थान है।
- इसकी स्थापना 13 नवंबर, 1963 को हुई थी।
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