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बाल तस्करी
चर्चा में क्यों?
कथित तौर पर अवैध रूप से बिहार से उत्तर प्रदेश ले जाए जा रहे 95 बच्चों को उत्तर प्रदेश बाल आयोग ने बचाया।
- धर्म के नाम पर चंदा कमाने के लिये बच्चों को दूसरे राज्यों में ले जाकर मदरसों में रखना संविधान का उल्लंघन है।
मुख्य बिंदु:
- जिन बच्चों को बचाया गया उनकी उम्र 4-12 वर्ष के बीच थी। इस घटना ने बाल तस्करी को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक, भारत के संविधान ने हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार दिया है। प्रत्येक बच्चे के लिये स्कूल जाना अनिवार्य है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR) की स्थापना वर्ष 2007 में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
- आयोग का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान एवं बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention on the Rights of the Child- UNCRC) में निहित बाल अधिकारों के परिप्रेक्ष्य के अनुरूप हैं।
बाल तस्करी (Child Trafficking)
- यह घरेलू श्रम, उद्योगों में बलात् बाल श्रम और भीख मांगने, अंग व्यापार एवं व्यावसायिक यौन उद्देश्यों जैसी अवैध गतिविधियों के रूप में उजागर होता है।
- वर्ष 2021 में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) ने एक चौंका देने वाला आँकड़ा प्रस्तुत किया: भारत में हर दिन औसतन आठ बच्चे तस्करी का शिकार होते हैं। इन मामलों में शोषण के विभिन्न रूप शामिल थे, जिनमें बलात् श्रम, भीख मांगना और यौन शोषण शामिल था।
- ये आँकड़े एक चिंताजनक प्रवृत्ति को उजागर करते हैं, जिनमें वर्ष 2018 में 2,834 मामले, वर्ष 2019 में 2,914 मामले और वर्ष 2020 में 2,222 मामले दर्ज किये गए।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि ये आँकड़े लापता बच्चों के मामलों को छोड़कर, केवल पुष्टि किये गए तस्करी के मामलों के हैं।
- समस्या का वास्तविक दायरा इन आँकड़ों से कहीं अधिक बड़ा हो सकता है
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