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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने भिक्षावृत्ति के खिलाफ कानून पर नोटिस जारी किया
चर्चा में क्यों?
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) के संबंध में हरियाणा और पंजाब सरकारों को नोटिस जारी किये हैं, जिसमें 50 वर्ष पुराने राज्य कानूनों के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जो भिक्षावृत्ति को अपराध मानते हैं।
मुख्य बिंदु
- याचिका: परिचय
- याचिका में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में भिक्षावृत्ति से संबंधित कानून भेदभावपूर्ण हैं और भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त समानता, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
- जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि राज्य के पास यह सुनिश्चित करने के लिये एक सामाजिक अनुबंध है कि उसके नागरिक सम्मानजनक जीवन जी सकें और राज्य को भिक्षावृत्ति को अपराध मानने की “अनुमति नहीं दी जा सकती”।
- याचिका में इन कानूनों में भिक्षावृत्ति की प्रक्रिया को जिस तरह से परिभाषित किया गया है, उस पर भी सवाल उठाया गया है और तर्क दिया गया है कि ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं।
- भिक्षावृत्ति की परिभाषा:
- इस परिभाषा के अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षा मांगने या प्राप्त करने का कोई भी कार्य भिक्षावृत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें गाना, नृत्य करना, भविष्य बताना, करतब दिखाना या वस्तुएँ बेचना शामिल है।
- इन व्यवसायों और अन्य के बीच एकमात्र अंतर यह है कि इन व्यवसायों में "कोई मूल्य टैग" नहीं है क्योंकि इसे दर्शकों को भुगतान करने के लिये छोड़ दिया गया है।
- कानून में भीख मांगने को निजी संपत्ति पर भिक्षावृत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, विशेषकर यदि इसमें घाव, विकृति या चोट दिखाना शामिल हो।
- हरियाणा भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1971 में भिक्षावृत्ति की जिस परिभाषा को चुनौती दी गई है, वह बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 पर आधारित है।
- यह एक परिभाषा है जिसका उपयोग केंद्र सरकार द्वारा कल्याण और पुनर्वास योजनाओं के लिये भिक्षावृत्ति में लगे लोगों की पहचान करने के लिये किया जाता है।
- कानूनी निहितार्थ:
- इस मामले के परिणाम का भारत में हाशिये पर रह रहे समुदायों के साथ व्यवहार तथा गरीबी और बेघरपन से संबंधित कानूनी ढाँचे पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।