तर्कहीन/निराधार गिरफ्तारी मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन | उत्तर प्रदेश | 22 Jun 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के लंका पुलिस स्टेशन में गौहत्या अधिनियम, 1955 के तहत आरोपित एक व्यक्ति की अग्रिम ज़मानत मंज़ूर कर ली।
मुख्य बिंदु:
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना पुलिस के लिये अंतिम उपाय होना चाहिये, ऐसा केवल असामान्य परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिये, जब पूछताछ के लिये ऐसा करना अत्यंत आवश्यक हो।
- निराधार और मनमाने ढंग से गिरफ्तारियाँ करना गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है।
अग्रिम ज़मानत (गिरफ्तारी पूर्व ज़मानत)
- यह एक कानूनी प्रावधान है जो किसी आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले ज़मानत के लिये आवेदन करने की अनुमति देता है।
- भारत में गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 के तहत दी जाती है। यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है।
- गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत का प्रावधान विवेकाधीन है और अदालत अपराध की प्रकृति तथा गंभीरता, अभियुक्त के पूर्ववृत्त एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के पश्चात ज़मानत दे सकती है।
- न्यायालय ज़मानत देते समय कुछ शर्तें भी लगा सकती है, जैसे- पासपोर्ट जमा करना, देश छोड़ने से बचना या नियमित रूप से पुलिस स्टेशन में उपस्थित होना।