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सिकल सेल एनीमिया रोगियों को पेंशन लाभ
चर्चा में क्यों ?
अधिकारियों के अनुसार, झारखंड के खूंटी ज़िले में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित लोगों को 1,000 रुपए मासिक पेंशन मिलेगी।
मुख्य बिंदु:
- खूंटी ज़िला प्रशासन ने स्वामी विवेकानंद निशक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना के तहत सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित व्यक्तियों के लिये पेंशन लाभ को स्वीकृति दे दी है।
- पहले चरण में विभिन्न ब्लॉकों से नौ लाभार्थियों की पहचान की गई है- खूंटी और कर्रा से तीन-तीन, मुरहू से दो तथा तोरपा ब्लॉक से एक।
- यदि कोई सिकल सेल रोग का मामला सामने आता है या बाद में इसकी पहचान की जाती है तो उसे इस योजना के तहत कवर किया जाएगा।
- ज़िले में अब तक 99,165 लोगों की सिकल सेल जाँच की गई है।
- इनमें से 114 सिकल सेल रोग के वाहक पाए गए तथा कुल 46 व्यक्ति सिकल सेल एनीमिया-थैलेसीमिया रोग से पीड़ित पाए गए
- इनमें से नौ ऐसे लोग हैं जो 40 प्रतिशत या उससे अधिक सिकल सेल एनीमिया-थैलेसीमिया रोग से पीड़ित हैं, उन्हें दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर योजना के तहत पेंशन दी जा रही है।
स्वामी विवेकानंद निशक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना
- यह झारखंड सरकार के महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग द्वारा शुरू की गई योजना है
- इसका उद्देश्य पाँच वर्ष या उससे अधिक आयु के दिव्यांग जनों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जिन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता है
- यह योजना प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के रूप में संचालित होती है, जहाँ पेंशन राशि सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में स्थानांतरित की जाती है।
सिकल सेल रोग
- सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जो हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन परिसंचरण के लिये ज़िम्मेदार प्रोटीन) में असामान्यता के कारण होता है
- इस विकार में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्द्धचंद्राकार हो जाता है और वाहिकाओं के माध्यम से उनकी गति बाधित होती है, जिससे गंभीर दर्द, संक्रमण, एनीमिया तथा स्ट्रोक जैसी संभावित जटिलताएँ हो सकती हैं
- केवल भारत में प्रत्येक वर्ष अनुमानतः 30,000-40,000 बच्चे सिकल सेल रोग के साथ पैदा होते हैं।
थैलेसीमिया
- सिकल सेल रोग की तरह ही थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति कम हीमोग्लोबिन के स्तर के कारण गंभीर एनीमिया का अनुभव करते हैं, जिसके उपचार के लिये आजीवन रुधिर आधान और आयरन संचय को प्रबंधित करने के लिये केलेशन थेरेपी की आवश्यकता होती है।
- प्रमुख लक्षणों में थकान, पीलापन या पीलिया, साँस की तकलीफ, शारीरिक विकास में विलंब, चेहरे की हड्डी की विकृति (गंभीर मामलों में) आदि शामिल हैं।
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बाघिनों को पलामू रिज़र्व में स्थानांतरित किया गया
चर्चा में क्यों ?
सूत्रों के अनुसार, पलामू टाइगर रिज़र्व (PTR) में स्थानांतरित हुए चार बाघों के जीवन निर्वहन के लिये दूसरे रिज़र्व से दो बाघिनों और एक बाघ को लाने का प्रयास किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- रिज़र्व में स्थापित सॉफ्ट रिलीज़ सेंटर (Soft Release Centers- SRC) में 350 जानवरों को स्थानांतरित करने के लिये केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की मंज़ूरी का इंतज़ार है।
- चीतल, सांभर और हिरणों को स्थानांतरित करने के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) से अनुमति पहले ही प्राप्त हो चुकी है।
- वन अधिकारियों ने बाघों के लिये पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने हेतु चार SRC स्थापित किये हैं, जिससे उन्हें रिज़र्व में प्रजनन करने में सहायता मिलेगी।
- इन केंद्रों में पशुओं को पूर्व-मुक्ति पिंजरों में रखा जाता है, जो उस स्थान के निकट रखे जाते हैं जहाँ उन्हें स्वछंद छोड़ा जाएगा।
- बारेसाढ़, लुकैया, मुंडू और धरधरिया में सॉफ्ट रिलीज़ से 10-10 हेक्टेयर क्षेत्र कवर होता है, जिससे चीतल के प्रजनन के लिये उपयुक्त वातावरण तैयार होता है, जो बाघों के लिये शिकार का कार्य करेगा।
- चीतल और सांभर को बेतला राष्ट्रीय उद्यान तथा भगवान बिरसा जैविक उद्यान (बिरसा चिड़ियाघर) से अलग SRC में स्थानांतरित किया जाएगा।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2019 में जारी भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट के अनुसार, PTR में कोई बाघ नहीं थे।
- PTR करीब 1,230 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसे वर्ष 1973 में बाघ अभयारण्य बनाया गया था।
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण
- यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक सांविधिक निकाय है। इसका गठन वर्ष 1992 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत किया गया था।
- इसके अध्यक्ष केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हैं और इसमें 10 सदस्य तथा एक सदस्य-सचिव हैं।
- प्राधिकरण का मुख्य उद्देश्य समृद्ध जैवविविधता के संरक्षण में राष्ट्रीय प्रयास को पूरक और मज़बूत बनाना है।
- यह प्राधिकरण चिड़ियाघरों को मान्यता प्रदान करता है तथा देश भर के चिड़ियाघरों को विनियमित करने का भी कार्य करता है।
- यह दिशा-निर्देश और नियम निर्धारित करता है जिसके तहत जानवरों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिड़ियाघरों के बीच स्थानांतरित किया जा सकता है।
- यह चिड़ियाघर कर्मियों के क्षमता निर्माण, नियोजित प्रजनन कार्यक्रमों और बाह्य-स्थाने अनुसंधान पर कार्यक्रमों का समन्वय और कार्यान्वयन करता है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)
- यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 38L (1) के तहत एक वैधानिक निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी।
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