उत्तर प्रदेश Switch to English
मियावाकी पद्धति
चर्चा में क्यों?
प्रयागराज नगर निगम ने शुद्ध वायु उपलब्ध कराने और स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देने के लिये प्रयागराज में कई स्थानों पर घने वन विकसित किये हैं।
- जापानी मियावाकी पद्धति का उपयोग करते हुए, निगम ने कई ऑक्सीजन बैंक स्थापित किये जो अब हरे-भरे वनों में बदल गए हैं।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के लाभ:
- यह पहल औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन में सहायता करती है तथा धूल, गंदगी और दुर्गंध को कम करती है।
- इससे शहर की वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा तथा पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- मियावाकी वन वायु और जल प्रदूषण को कम करने, मृदा अपरदन को रोकने और जैव विविधता को बढ़ाने में सहायता करते हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- ये वन गर्मियों के दौरान दिन और रात के तापमान के अंतर को कम करते हैं।
- वे जैव विविधता को बढ़ाते हैं, मृदा की उर्वरता में सुधार करते हैं और जानवरों और पक्षियों के लिये आवास बनाते हैं।
- इस पद्धति के माध्यम से विकसित बड़े वन तापमान को 4 से 7 डिग्री सेल्सियस तक कम कर देते हैं।
- मियावाकी जंगलों में प्रजातियों की विविधता:
मियावाकी पद्धति
- परिचय:
- 1970 के दशक में जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित इस पद्धति से सीमित स्थानों में घने जंगल तैयार किये जाते हैं।
- इसे 'पॉट प्लांटेशन मेथड' के नाम से जाना जाता है, इसमें तेज़ी से विकास के लिये देशी प्रजातियों को एक दूसरे के निकट लगाया जाता है।
- मुख्य विशेषताएँ एवं लाभ:
- पौधे घने वृक्षारोपण वाले प्राकृतिक वनों की संरचना की अनुकरण करते हुए 10 गुना अधिक तेज़ी से विकसित होते हैं।
- मृदा की गुणवत्ता, जैव विविधता और कार्बन अवशोषण में सुधार होता है।
- शहरी क्षेत्रों में प्रदूषित और बंजर भूमि को हरित पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिये प्रभावी।