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उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष
चर्चा में क्यों?
बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष और ग्रामीण क्षेत्रों में खराब कनेक्टिविटी के कारण उत्तराखंड के नैनीताल एवं पौड़ी ज़िलों में सुदूरवर्ती ग्रामवासियों को प्रवासन का सामना करना पड़ रहा है, जिससे स्वास्थ्य ग्राफ में उतार-चढ़ाव हो रहा है।
मुख्य बिंदु:
- पिछले एक दशक में, उत्तराखंड में बड़े वन्य जीवों के कारण 264 लोगों की जान चली गई, जिनमें से 203 मौतों के लिये तेंदुए और 61 मौतों के लिये बाघ जिम्मेदार हैं।
- इन वन्यजीव घटनाओं ने प्रभावित क्षेत्रों में बहुत बड़ा व्यवधान उत्पन्न किया है, जिसके कारण स्कूल बंद हो गए हैं और सावलदेह, पटरानी, ढेला एवं पौड़ी जैसे गाँवों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
- राज्य सरकार ने देश के पहले मानव-वन्यजीव संघर्ष-शमन कक्ष की स्थापना की, प्रभावित परिवारों को मुआवज़ा देने के लिये विशेष धन आवंटित किया और एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया। हालाँकि, स्थिति अभी भी अस्थिर है।
- वन्यजीव हमलों ने क्षेत्र में चुनावी घटनाओं को प्रभावित किया है। वर्ष 2022 में टिहरी में, स्थानीय लोगों ने विधानसभा चुनावों में भाग लेने से इनकार कर दिया, जो कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान पौड़ी में की गई कार्रवाइयों को दर्शाता है।
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