आदिवासी संपत्तियों पर सुरक्षा शिविर | झारखंड | 13 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
सिटीज़न की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के बाद छत्तीसगढ़ और झारखंड में अधिकांश सुरक्षा शिविर आदिवासियों की निजी या सामुदायिक संपत्तियों पर उनकी सहमति के बिना तथा मौजूदा कानूनों का गंभीर उल्लंघन करते हुए स्थापित किये गए हैं।
मुख्य बिंदु
- छत्तीसगढ़ और झारखंड में आदिवासी समुदायों की सहमति के बिना स्थापित अर्द्धसैनिक शिविरों का प्रसार, जिनका उद्देश्य आदिवासियों के जीवन तथा संवैधानिक अधिकारों की कीमत पर खनन कार्यों एवं कॉर्पोरेट हितों को सुविधाजनक बनाना है।
- शिविरों के विरुद्ध शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध को नज़रअंदाज़ किया गया है या लाठीचार्ज, स्थलों को जलाने और प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी जैसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करके दबा दिया गया है।
- इनमें से अधिकांश शिविर ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किये गए हैं, जो वर्तमान में संधारणीय खनन प्रबंधन योजना 2018 के अनुसार संरक्षण या खनन निषेध क्षेत्र में आते हैं।
- रिपोर्ट में कानून का सम्मान करने और मानव अधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करने के लिये पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन का आह्वान किया गया है।3
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- परिचय:
- PESA अधिनियम 1996 में “पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिये” अधिनियमित किया गया था।
- संविधान के भाग IX में अनुच्छेद 243-243ZT शामिल हैं, जिसमें नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
- प्रावधान:
- अधिनियम के तहत, अनुसूचित क्षेत्र वे हैं जो अनुच्छेद 244(1) में संदर्भित हैं, जिसमें कहा गया है कि पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों पर लागू होंगे।
- पाँचवीं अनुसूची में इन क्षेत्रों के लिये अनेक विशेष प्रावधान किये गये हैं।
- दस राज्य- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना ने पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को अधिसूचित किया है, जो इनमें से प्रत्येक राज्य के कई ज़िलों को (आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से) कवर करते हैं।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को वन भूमि पर औपचारिक रूप से वन अधिकारों तथा कब्ज़े को मान्यता देने एवं प्रदान करने के लिये पेश किया गया था, जो इन वनों में पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं, भले ही उनके अधिकारों को आधिकारिक तौर पर दस्तावेज़ित नहीं किया गया हो।
- इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत की वन प्रबंधन नीतियों के कारण वन-निवासी समुदायों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना था, जो वनों के साथ उनके दीर्घकालिक सहजीवी संबंधों को स्वीकार करने में विफल रहे।
- इसके अतिरिक्त, अधिनियम का उद्देश्य वनवासियों को वन संसाधनों तक पहुँच और उनका स्थायी उपयोग करने, जैवविविधता तथा पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देने एवं उन्हें गैरकानूनी बेदखली व विस्थापन से बचाने के लिये सशक्त बनाना था।