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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 10 May 2024
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भीमताल झील के जलस्तर में कमी

चर्चा में क्यों?

सूत्रों के अनुसार, राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में वर्षा और हिमपात की कमी के कारण उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित भीमताल झील का जल स्तर 22 मीटर से घटकर 17 मीटर हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • मौजूदा स्थिति के कारण इस पहाड़ी शहर में पर्यटकों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है।
    • झील में जल का स्तर कम होने से उन हज़ारों लोगों की आजीविका प्रभावित होगी जो होटल और रिसॉर्ट्स सहित पर्यटन उद्योग पर निर्भर हैं।
  • अधिकारियों द्वारा झील की लगातार उपेक्षा और पूरे क्षेत्र में कई नालों को झील में बहाए जाने से स्थिति गंभीर हो गई है।

भीमताल झील

  • भीमताल झील नैनीताल ज़िले की सबसे बड़ी झील है। यह कुमाऊँ क्षेत्र की सबसे बड़ी झील है, जिसे "भारत का झील ज़िला" कहा जाता है।
    • इसका नाम प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत के दूसरे पांडव भीम के नाम पर रखा गया है।
  • यह एक प्राकृतिक झील है और इसकी उत्पत्ति का श्रेय भू-पर्पटी के खिसकने के कारण उत्पन्न हुए कई भ्रंश को दिया जाता है।
  • इस झील का निर्माण वर्ष 1883 में ब्रिटिश काल के दौरान हुआ था और इस पर चिनाई-बाँध (Masonry Dam) बनाया गया है।
  • झील के चारों ओर समृद्ध वनस्पति और जैव पारिस्थितिकी तंत्र हैं साथ ही पहाड़ी ढलानों पर देवदार एवं ओक के घने वन हैं।
    • सर्दियों के महीनों के दौरान यह कई प्रवासी पक्षियों का आवास होता है।
    • क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रसिद्ध प्रजातियों में बुलबुल, वॉल क्रीपर, एमराल्ड डव, ब्लैक ईगल और टॉनी फिश आउल शामिल हैं।


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चार धाम यात्रा 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देवी गंगा की मूर्ति को उनके शीतकालीन अधिष्ठान मुखबा गाँव से गंगोत्री ले जाकर गंगोत्री मंदिर की अनुष्ठानिक शुरुआत की गई।

  • मुख्य बिंदु:
  • परंपरा के अनुसार, समारोह की शुरुआत देवी गंगा को पालकी पर बिठाने और मंदिर से बाहर निकालने से पहले उनकी प्रार्थना के साथ हुई।
  • तीर्थयात्रियों का प्रारंभिक जत्था ऋषिकेश से रवाना हुआ। धार्मिक हस्तियों और राजनीतिक नेताओं द्वारा विभिन्न समूहों को विभिन्न स्थानों से रवाना किया गया।
  • केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के द्वार अक्षय तृतीया (10 मई, 2024) को खुलेंगे तथा बद्रीनाथ धाम के द्वार 12 मई 2024 को खुलेंगे।

चारधाम यात्रा

  • यमुनोत्री धाम:
    • स्थान: उत्तरकाशी ज़िला।
    • समर्पित: देवी यमुना।
    • गंगा नदी के बाद यमुना नदी भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी है।
  • गंगोत्री धाम:
    • स्थान: उत्तरकाशी ज़िला।
    • समर्पित: देवी गंगा।
    • सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है।
  • केदारनाथ धाम:
    • स्थान: रुद्रप्रयाग ज़िला।
    • समर्पित: भगवान शिव
    • मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
    •  भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य प्रतिनिधित्व) में से एक।
  • बद्रीनाथ धाम:
    • स्थान: चमोली ज़िला।
    • पवित्र बद्रीनारायण मंदिर का स्थान।
    • समर्पित: भगवान विष्णु।
    • वैष्णवों के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक

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IIT-रुड़की के शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली

चर्चा में क्यों?

हाल ही में IIT-रुड़की के शोधकर्त्ताओं ने वर्षा पैटर्न का विश्लेषण करके कम-से-कम छह घंटे की पूर्व चेतावनी देकर हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन होने से पहले भविष्यवाणी करने के लिये एक फ्रेमवर्क विकसित की है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन एक सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे भारत में अपनी तरह का पहला अध्ययन माना जाता है।
  • मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की संयुक्त विशेषज्ञता ने एक ऐसी विधि का निर्माण किया है जो मौसम विज्ञान मॉडलिंग को मलबे के प्रवाह के संख्यात्मक सिमुलेशन के साथ जोड़ती है।
  • शोधकर्त्ता मौसम अनुसंधान एजेंसियों से पहाड़ियों में वर्षा के पैटर्न पर वास्तविक समय का डेटा एकत्र करेंगे।

भू-स्खलन

  • ये मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ हैं जहाँ मृदा, चट्टान, भूविज्ञान और ढलान की अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
  • किसी ढलान से चट्टान, पत्थर, मृदा या मलबे के अचानक खिसकने को भूस्खलन कहा जाता है।
  • कारण:
    • इसके ट्रिगर करने वाले प्राकृतिक कारणों में भारी वर्षा, भूकंप, बर्फ का पिघलना और बाढ़ के कारण ढलानों का कटना शामिल है।
    • वे मानवजनित गतिविधियों जैसे उत्खनन, पहाड़ियों एवं पेड़ों की कटाई, अत्यधिक बुनियादी ढाँचे के विकास और मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई के कारण भी हो सकते हैं।
    • भूस्खलन को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य कारक हैं आश्मिक, भूवैज्ञानिक संरचनाएँ जैसे भ्रंश, पहाड़ी ढलान, जल निकासी, भू-आकृति विज्ञान, भूमि उपयोग और भूमि आवरण, मृदा की बनावट व गहराई तथा चट्टानों का अपक्षय।
    • जब योजना बनाने और पूर्वानुमान लगाने के लिये भूस्खलन संवेदनशीलता क्षेत्र निर्धारित किया जाता है तो इन सभी को ध्यान में रखा जाता है।

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