सारनाथ मूर्तिकला शैली | उत्तर प्रदेश | 07 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
थाईलैंड की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न को सारनाथ शैली में निर्मित ध्यान मुद्रा में बुद्ध की पीतल की प्रतिमा उपहार में दी।
- सारनाथ मूर्तिकला के बारे में:
- उद्भव एवं विकास:
- सारनाथ कला शैली का उद्भव कुषाण काल में हुआ और गुप्त काल में यह कला अपने उच्चतम शिखर पर पहुँची।
- नामकरण:
- यह शैली सारनाथ में विकसित हुई थी, जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपना प्रसिद्ध 'धर्मचक्र प्रवर्तन' (प्रथम उपदेश) दिया था।
- इसके परिणामस्वरूप इस कला शैली को 'सारनाथ शैली' के नाम से जाना गया।
- निर्माण सामग्री:
- प्राचीन काल में मूर्तियों के निर्माण के लिये मुख्यतः बलुआ पत्थर का प्रयोग किया जाता था। किंतु वर्तमान में, पत्थर के साथ-साथ पीतल जैसी धातुओं का भी उपयोग किया जाने लगा है, जिससे मूर्तियों की संरचना और स्थायित्व में सुधार हुआ।
- विशेषताएँ:
- सारनाथ कला की बुद्ध की मूर्तियाँ शांति और ज्ञान की गहरी भावना को व्यक्त करती हैं।
- बुद्ध की मूर्तियों में झुकी हुई आँखें और तीव्र नाक होती है, साथ ही उनके होठों पर एक सौम्य मुस्कान होती है। सारनाथ शैली के बुद्ध का चेहरा अत्यंत कोमल है।
- बुद्ध को धर्मचक्र मुद्रा (शिक्षा मुद्रा) में बैठा हुआ दर्शाया जाता है, जहाँ उनके हाथ धर्म चक्र घुमाने और शिक्षा देने की मुद्रा में होते हैं।
- इन मूर्तियों में अक्सर अभंग मुद्रा को चित्रित किया जाता है, जिसमें बुद्ध का शरीर हल्का झुका होता है, जो गति और सुंदरता का आभास कराता है।
- बुद्ध की मूर्ति के पीछे का प्रभामंडल प्रायः जटिल पुष्प आकृतियों से सुसज्जित होता है, जो मूर्ति की भव्यता और आध्यात्मिक महत्त्व को और भी बढ़ा देता है।
