उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव | उत्तराखंड | 05 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तराखंड में हुई भारी वर्षा बादल फटने के कारण नहीं हुई, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाती है, जो भारतीय हिमालय की ऐसी तीव्र वर्षा के लिये तैयारियों की कमी को उजागर करती है।
मुख्य बिंदु
- रुद्रप्रयाग, देहरादून, पौड़ी और टिहरी गढ़वाल ज़िलों में भारी वर्षा के कारण जान-माल के नुकसान की खबर है।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मौसम विज्ञानी के अनुसार, 'बादल फटना' एक घंटे में 100 मिमी. से अधिक वर्षा को कहा जाता है।
- इस मामले में केदारनाथ में बादल नहीं फटा, लेकिन नैनीताल और देहरादून में एक घंटे में 50 मिमी. से अधिक तथा सोनप्रयाग में एक घंटे में 30 मिमी. से अधिक बारिश दर्ज की गई।
- उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की संवेदनशील भू-आकृति विज्ञान संबंधी स्थितियों के कारण कम वर्षा भी अधिक नुकसान पहुँचाती है।
- भूस्खलन तीव्र ढलान, भूमि के आकार और मृदा की प्रकृति के कारण होता है, जिससे व्यापक क्षति होती है।
- भूगर्भीय दृष्टि से युवा हिमालय पर्वतमाला भारी वर्षा के लिये नहीं बनी है तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतों में गर्मी एवं वर्षा दोनों की तीव्रता बढ़ रही है।
भूस्खलन
- भूस्खलन को चट्टान, मलबे या मृदा के द्रव्यमान का ढलान से नीचे खिसकना कहा जाता है।
- यह एक प्रकार का सामूहिक क्षय (Mass Wasting) है, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के तहत मृदा और चट्टान के नीचे की ओर होने वाले किसी भी प्रकार के संचलन को दर्शाता है।
- भूस्खलन शब्द में ढलान संचलन के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना (Fall), लटकना (Topple), फिसलना (Slide), फैलाव (Spread) और प्रवाह (Flow)।
उत्तराखंड स्थापना दिवस से पहले UCC | उत्तराखंड | 05 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि उनका राज्य स्थापना दिवस (9 नवंबर, 2024) से पहले समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करेगा।
मुख्य बिंदु
- UCC विधेयक 6 फरवरी, 2024 को राज्य विधानसभा में पेश किया गया था और 7 फरवरी, 2024 को उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान पारित किया गया था।
- भारत में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिये समान नियम स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया था, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म, लिंग या यौन अभिविन्यास कुछ भी हो।
- प्रस्तावित कानून में 392 धाराएँ हैं, जिन्हें चार भागों और सात अध्यायों में विभाजित किया गया है, जो महिलाओं को विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता तथा संपत्ति के उत्तराधिकार में समान अधिकार प्रदान करते हैं, यह कानून कुछ संबंधों को प्रतिबंधित करता है, बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाता है, पुरुषों एवं महिलाओं के लिये विवाह योग्य आयु (क्रमशः 21 वर्ष और 18 वर्ष) निर्धारित करता है व विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बनाता है।
- राज्य की अनुसूचित जनजाति की आबादी, जो कुल जनसंख्या का 2.89% है, को इस कानून से छूट दी गई है।