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हरियाणा स्टेट पी.सी.एस.

  • 06 Feb 2024
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हरियाणा में निजी क्षेत्र के रोज़गार में आरक्षण के संबंध में केंद्र को सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से उत्तर मांगा, जिसमें राज्य के निवासियों को निजी क्षेत्र में रोज़गार में 75% आरक्षण प्रदान करने वाले कानून को 'असंवैधानिक' घोषित किया गया था।

मुख्य बिंदु:

  • उच्च न्यायालय ने 15 जनवरी, 2022 से लागू हुए हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार अधिनियम, 2020 के खिलाफ कई याचिकाएँ स्वीकार की थीं और राज्य के उम्मीदवारों को निजी क्षेत्र में रोज़गार में 75% आरक्षण प्रदान किया था।
    • इसमें अधिकतम सकल मासिक वेतन या 30,000 रुपए तक की मज़दूरी देने वाले रोज़गार शामिल थे।
  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की राय थी कि इस मुद्दे पर कानून बनाना तथा निजी नियोक्ताओं को 30,000 रुपए प्रति माह से कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों की श्रेणी के लिये खुले बाज़ार से भर्ती करने से रोकना राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
  • उच्च न्यायालय ने देखा था कि हरियाणा राज्य से संबंधित नहीं होने वाले नागरिकों के एक समूह को द्वितीयक दर्जा प्रदान करके और उनकी आजीविका के मौलिक अधिकारों में कटौती करके संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा का उल्लंघन किया गया है।
  • इसमें यह भी कहा गया था कि संविधान के तहत नागरिकों के बीच उनके जन्म स्थान और निवास स्थान के आधार पर रोज़गार के मामलों में भेदभाव पर रोक है।

नोट:

  • आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी अधिवासियों के लिये रोज़गार आरक्षण विधेयक या कानून की घोषणा की गई है।
  • वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेश विधानसभा में पारित रोज़गार कोटा विधेयक में स्थानीय लोगों के लिये तीन-चौथाई निजी पद भी आरक्षित किये गए।

अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 किसी भी सार्वजनिक कार्यालय में रोज़गार या नियुक्ति के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता प्रदान करता है।
  • किसी भी पिछड़े वर्ग के लिये नियुक्तियों या पदों में आरक्षण के प्रावधान हैं जिनका राज्य सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।


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