छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ में 18 लंगूरों की गोली मारकर हत्या
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ के बेलगाँव में फसल की हानि के कारण लगभग 18 लंगूरों को गोली मार दी गई, जिसके बाद वन विभाग ने जाँच शुरू की।
मुख्य बिंदु
- सांस्कृतिक संदर्भ: यह घटना असामान्य थी, क्योंकि ग्रामीण लोग आमतौर पर बंदरों को मारने से बचते हैं, क्योंकि उन्हें डर रहता है कि इससे सूखा पड़ सकता है, जो वन्यजीवों के सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्त्व को उजागर करता है।
- कानूनी कार्रवाई: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है।
- अनुसूची I: यह कठोर दंड के साथ लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करता है; कुछ विशिष्ट मामलों को छोड़कर शिकार पर प्रतिबंध लगाता है (जैसे- काला हिरण, हिम तेंदुआ)।
- अनुसूची II: कुछ प्रजातियों के लिये उच्च सुरक्षा और व्यापार निषेध (जैसे- असमिया मैकाक, भारतीय कोबरा)।
- अनुसूची III और IV: उल्लंघन के लिये कम दंड के साथ गैर-लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करता है (जैसे- चीतल, फ्लेमिंगो)।
- अनुसूची V: उन कृमि प्रजातियों की सूची बनाता है जिनका शिकार किया जा सकता है (जैसे- आम कौवे, चूहे)।
- अनुसूची VI: निर्दिष्ट पौधों की खेती और व्यापार को नियंत्रित करता है, जिसके लिये पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है (जैसे- नीला वांडा, कुथ)।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली पशुओं और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली पशुओं, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है
- इसमें उन पौधों और पशुओं की अनुसूचियाँ भी सूचीबद्ध की गई हैं जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर पर संरक्षण और निगरानी प्रदान की जाती है।
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